बुधवार, 17 नवंबर 2021

सनराइज ओवर अयोध्या अर्थात सनसेट ऑफ कांग्रेस

 

सनराइज ओवर अयोध्या अर्थात सनसेट ऑफ कांग्रेस

 


कांग्रेसी नेता सलमान खुर्शीद की एक और पुस्तक "सनराइज ओवर अयोध्या"  ने कोहराम मचा दिया है, और शायद यही उनकी मंशा भी थी. हासिये  पर पड़ी कांग्रेस  के नेपथ्य में पड़े ऐसे नेताओं की मंशा किसी न किसी प्रकार कांग्रेस और खुद को सुर्खियों में लाने  की रहती है. सलमान खुर्शीद ने इस किताब में हिंदुत्व की तुलना दुनिया के  क्रूरतम  आतंकवादी संगठन बोको हराम और आईएसआईएस से की है. एक हिंदू बहुसंख्यक देश  में इस तरह के बयान देना यह   साबित  करता है कि हिंदुस्तान में मुसलमान कितना  डरा हुआ है या बहुसंख्यकों को कितना डरा कर रखता है.   


सलमान खुर्शीद ने  अपनी किताब में अयोध्या में राम जन्मभूमि पर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले पर भी टिप्पणियां की हैं. प्रत्यक्ष तौर पर तो उन्होंने इस फैसले की प्रशंसा की है लेकिन उन्होंने स्पष्ट लिखा है कि अयोध्या में राम मंदिर को तोड़कर  मस्जिद बनाई गई थी यह कभी साबित नहीं हुआ. यह लिखकर सलमान खुर्शीद क्या कहना चाहते हैं, यह कोई भी समझ सकता है. असदुद्दीन ओवैसी भी यही बात कहते हैं "वन्स ए मस्जिद ऑलवेज ए मस्जिद" चाहे वह कहीं भी किसी की जमीन पर जबरदस्ती कब्जा करके ही क्यों न बनाई जाए. ओवैसी ने कह रखा है कि वह अयोध्या में बाबरी मस्जिद की जगह  राम मंदिर स्वीकार नहीं करते और जब भी उन्हें मौका मिलेगा वह दोबारा वहां पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाएंगे. यह दोनों बयान लगभग एक जैसे हैं सिर्फ भाषा का अंतर है.

 

कुछ हिंदू इस बात पर आश्चर्य कर रहे  हैं  और समझ नहीं पा रहे हैं कि सलमान खुर्शीद जैसे  बेहद शिक्षित, प्रगतिशील और नरमपंथी मुसलमान ने  आखिर हिंदुत्व की तुलना आतंकवादी संगठनों से क्यों की ? ऐसे सभी लोगों को यह जान लेने की आवश्यकता है कि ज्यादातर मुसलमान वह चाहे जितनी ही शिक्षित और प्रगतिशील क्यों न हो,  मजहब ही उनके लिए सर्वोपरि होता  है और राष्ट्र, राष्ट्रीयता, व देशभक्ति उनके लिए कोई मायने नहीं रखती.  मजहब के लिए  वे कुछ भी कर सकते हैं. आजकल देश में बड़े-बड़े पदों पर बैठे लोगों द्वारा धर्मांतरण और जिहादी क्रियाकलापों में संलग्न होने के अनगिनत उदाहरण सामने आ रहे हैं.  उत्तर प्रदेश कैडर के एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी इफ्तिखारउद्दीन ने कानपुर में आयुक्त रहते हुए अनेक  परिवारों  का धर्मांतरण कराया और  जिहादी गतिविधियों में भाग लिया . स्वाभाविक है उन्होंने अचानक ऐसा करना शुरू नहीं किया बल्कि  वह शुरू से इस तरह की गतिविधियों में संलग्न रहे होंगे. ऐसा करने वाले वह अकेले नहीं है अगर जांच की जाए तो हैरान-परेशान करने वाले आंकड़े सामने आएंगे.

 

देश के पहले शिक्षा मंत्री मौलाना आजाद जिनकी धर्मनिरपेक्षता के बारे में जवाहरलाल नेहरू  कसीदे काढ़ते थे और कांग्रेस आज तक मुस्लिमों को लुभाने के लिए उनका नाम इस्तेमाल करती है, उन्होंने भी कहा था कि प्रत्येक मोमिन जो अल्लाह में विश्वास करता है, उसके पैगंबर और उसकी किताब कुरान में विश्वास करता है उसके लिए आज्ञा है कि वह अल्लाह के रास्ते जिहाद के लिए खड़ा हो जाए. पहला जिहाद आर्थिक जिहाद है और फिर जरूरत पड़े तो जिस्म  और जिंदगी का जिहाद.


इसलिए सलमान खुर्शीद ने क्या लिखा इस पर बहुत आश्चर्य नहीं करना चाहिए. वह ऐसे अशराफ हैं जिनकी दिली चाहत है कि जितनी जल्दी हो सके पूरी दुनिया पर इस्लाम का शासन हो और ऐसा करने के लिए वह कुछ भी करने को तैयार हैं. यह पहली बार नहीं है कि सलमान खुर्शीद ने हिंदुओं के विरुद्ध विषाक्त बयान दिया है या कुछ लिखा है. 1984 के दंगों में सिखों के बर्बर नरसंहार, जिसके केंद्र में स्वयं कांग्रेस  थी, के बाद भी उन्होंने एक किताब लिखी थी और उसका नाम था "एट होम इन इंडिया- रिस्टेटमेंट ऑफ इंडियन मुस्लिम". इस किताब में खुर्शीद ने लिखा था कि 1984 के दंगे बेहद दुखद है किंतु मुसलमानों के लिए बहुत बड़ा संदेश है कि भारत में कोई भी अल्पसंख्यक सुरक्षित नहीं है. 1947 के विभाजन के समय हिंदू और सिखों ने मिलकर मुसलमानों का कत्लेआम किया था, जिसे मुसलमान अभी भी नहीं भूले हैं और आज जब हिंदुओं ने सिखों का नरसंहार किया है, यह देखकर मुसलमानों के कलेजे को ठंडक पहुंची है. हिंदू और सिख दोनों को मुसलमानों का  रक्त बहाने के उनके पाप की सजा मिली है. सिखों  को श्रीमती गांधी की हत्या की सजा भी मिली है, जो जवाहरलाल नेहरू के बाद मुसलमानों की अंतिम आशा थी.


आसानी से समझा जा सकता है कि सलमान खुर्शीद, और जिन्ना की भाषा में अंतर हो सकता है लेकिन भावनाओं में नहीं. बटला कांड के बाद भी सलमान खुर्शीद का विलाप सामने आया था जिसमें उन्होंने कहा था कि जब उन्होंने बटला कांड के मृतकों की फोटो सोनिया गांधी को दिखाई  तो वह बिलख  बिलख  कर रो पड़ी. कश्मीर घाटी से हिंदू पंडितों के विस्थापन पर वह मौन  नहीं रहते, वे कहते हैं अगर घाटी से पंडित बेघर हुए तो  हुए, वह रह तो आज भी अपने देश में ही रहे हैं.

 

इसे देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि  जवाहरलाल नेहरू अपनी  कपट पूर्ण नीति और उसे गांधी के समर्थन के कारण इस प्राचीन सनातन संस्कृति वाले देश को धर्मनिरपेक्षता का लबादा उढाने में  सफल हुए थे  और शायद यह सनातन धर्म और संस्कृति पर अब तक का सबसे बड़ा आक्रमण था. मुस्लिम लुटेरे आक्रमणकारियों, मुगलों और अंग्रेजो  द्वारा सनातन संस्कृति को इतना दुष्प्रभावित और नुकशान  नहीं किया जा सका था जितना स्वतंत्रता के बाद  हुआ है. यह नेहरू और गांधी ही थे जिन्होंने देश का विभाजन  स्वीकार करके हिंदू और मुसलमानों के लिए अलग अलग देश बनाना तो स्वीकार किया लेकिन सोची समझी रणनीति के कारण हिंदुओं के हिस्से  वाले देश से मुसलमानों को जाने नहीं दिया गया. यह कैसा विभाजन था ? इसलिए जब कुछ मुसलमान कहते हैं कि "हंस के लिया  पाकिस्तान, लड़के लेंगे हिंदुस्तान " तो उनकी बात में  दम नजर आता है और उसके पीछे नेहरू गांधी की यह  गलती या सोची समझी साजिश नजर आती है.

 

कई वर्ष पहले सीताराम गोयल ने अपनी किताब में लिखा था कि  जवाहरलाल नेहरू भारत में सनातन धर्म और संस्कृत पर आक्रमण करने वाले इस्लामिक जिहादियों,  क्रिस्चियन मिशनरियों और खतरनाक वामपंथियों का प्रतिनिधित्व करते हैं, इसलिए अगर देश को बचाना है तो हम सभी को नेहरूवाद से छुटकारा पाना  होगा. सीताराम गोयल द्वारा यह लिखें जाने के पहले ही डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, जॉन मथाई, श्यामा प्रसाद मुखर्जी जैसे नेताओं ने जवाहरलाल नेहरू के बारे में बहुत सारे रहस्योद्घाटन किए थे, लेकिन एक संगठित अभियान के अंतर्गत इन सभी को किनारे कर दिया गया  था .  

 


सलमान खुर्शीद के बाद   कांग्रेस के एक अन्य नेता राशिद अल्वी भी मैदान में आ गए और उन्होंने कहा कि जय श्री राम बोलने वाले  राक्षस हैं. उनकी बात को और आगे बढ़ाने के लिए कांग्रेश के एक अन्य नेता मणिशंकर अय्यर, जो दून स्कूल में राजीव गांधी के सहपाठी भी रहे हैं, सामने आ गए और उन्होंने कहा कि मुगलों ने कभी भी धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं किया और न ही उन्होंने किसी धार्मिक स्थल को क्षति पहुंचाई. यह वही मणिशंकर अय्यर हैं जिन्होंने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद से हटाने के लिए पाकिस्तान से समर्थन मांगा था. विडंबना देखिए सलमान खुर्शीद राशिद अल्वी और मणि शंकर अय्यर  तीनों ही सोनिया गांधी के अत्यंत करीबी व्यक्ति हैं, इसलिए इनकी बयानों को व्यक्तिगत बयान कहकर नहीं टाला जा सकता क्योंकि कांग्रेस और सोनिया गांधी समय-समय पर इन नेताओं का ऐसा ही इस्तेमाल करती रही हैं.



सलमान खुर्शीद की बात का समर्थन करने के लिए राहुल गांधी स्वयं मैदान में आ गए और उन्होंने भी हिंदुत्व पर अपना ज्ञान लोगों को दिया, जिस पर किसी ने कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की क्योंकि सभी राहुल गांधी के ज्ञान के बारे में परिचित हैं. आने वाले कुछ महीनों में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और पंजाब में चुनाव होने हैं, इसलिए ज्यादातर लोगों का मत है की चुनाव में वर्ग विशेष के वोट हथियाने के लिए जानबूझकर ऐसा किया गया लेकिन इससे सहमत नहीं हुआ जा सकता क्योंकि इन प्रदेशों  में केवल वर्ग विशेष के मतों के सहारे चुनाव नहीं जीता जा सकता और इतनी आसान सी बात सोनिया गांधी के सलाहकारों को भी मालूम होगी. फिर भी ऐसे समय जब वोटों के लालच में जनेऊ धारी राहुल गांधी वैष्णो देवी सहित अन्य मंदिरों की परिक्रमा कर रहे हो, और प्रियंका वाड्रा गंगा स्नान कर, चंदन लगाकर और शंकराचार्य की चरण वंदना कर स्वयं को विशुद्ध  हिंदू साबित करने की मुहिम चला रही हो, इन नेताओं के बयान कांग्रेश की जीत की मुहिम में करारा झटका साबित हो सकती है.

 

देश को  मुस्लिम शिया वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी का अनुग्रहीत होना चाहिए कि  उन्होंने आशा  की किरण बनकर  इस्लाम धर्म में व्याप्त बुराइयों को सामने लाकर समाज के पथ प्रदर्शन का काम किया है, जिसके लिए कट्टरपंथी मुस्लिमों की तरफ से  उन्हें धमकियां मिल रही हैं और उनकी जान को गंभीर खतरा है. वसीम रिजवी ने कुरान में लिखी  उन आयतों के खिलाफ भी आवाज उठाई है जो आतंकवाद और हिंसा को बढ़ावा देती  हैं. उन्होंने मदरसों पर तत्काल प्रतिबंध लगाने का सरकार से अनुरोध किया है. उनकी इस बात से कोई भी बुद्धिजीवी इनकार नहीं कर सकता कि भारत चाहे कितने ही आतंकवादियों को मार गिराये  लेकिन जब तक आतंकवाद की फैक्ट्री बने मदरसों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जाता, भारत से आतंकवाद कभी खत्म नहीं हो सकता.


दुर्भाग्य से भारतीय जनता पार्टी ने भी  वसीम रिजवी की इस मुहिम का न केवल विरोध किया है बल्कि उत्तर प्रदेश सरकार के एक मुस्लिम मंत्री दिन प्रतिदिन उनकी आलोचना करते रहते हैं. भाजपा और उत्तर प्रदेश सरकार को इससे बचना चाहिए और वसीम रिजवी को आवश्यक सुरक्षा तुरंत प्रदान करनी चाहिए ताकि उनके जैसे अन्य साहसी मुस्लिम व्यक्ति, इस्लामिक जिहाद के खिलाफ संघर्ष करने की हिम्मत कर सकें. सूचना प्रौद्योगिकी के इस क्रांतिकारी युग में सूचनाएं और अन्य पठन सामग्री पर रोक लगाना संभव नहीं है और इसीलिए आज कुरान के हिंदी रूपांतर, और अन्य ऐसी पुस्तकें आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध है जिन पर विभिन्न सरकारों ने रोक लगा रखी है.  इनमें अली सीना की अंडरस्टैंडिंग मोहम्मद, सलमान रशदी की शैतानिक वर्सेस, तस्लीमा नसरीन की लज्जा आदि प्रमुख पुस्तकें इंटरनेट पर आसानी से उपलब्ध है. वैसे तो सभी धार्मिक समुदायों को अन्य धर्मों को समझने के लिए उनकी पुस्तकें  पढ़नी चाहिए लेकिन हिंदुओं को इस्लाम से संबंधित इन पुस्तकों को अवश्य पढ़ना चाहिए ताकि वह किसी गलतफहमी के शिकार न रहे.

- शिव मिश्रा 

 

उप-चुनावों के सन्देश

 

उप-चुनावों  के सन्देश



हाल ही में संपन्न हुए उपचुनावों  का संदेश भाजपा के लिए खतरे की घंटी है । यद्यपि इन चुनावों ने कुछ ऐसे राज्यों में भाजपा को एक दो सीटें प्रदान की है जहां भाजपा का बहुत अधिक प्रभाव नहीं था लेकिन यह बिलुल भी संतोष की बात नहीं है  । उप चुनाव में सत्ताधारी दल को फायदा मिलना एक सामान्य बात  है, लेकिन हिमाचल प्रदेश जैसे भाजपा के  पुराने  गढ़ में सत्ताधारी  भाजपा की दर्दनाक पराजय होना इस बात को रेखांकित   करता है कि भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारें कहीं न कहीं गंभीर गलतियां कर रही है. हिमाचल में  कांग्रेस ने न केवल अपनी  सीटें बचाई बल्कि भाजपा से लोकसभा की एक  सीट ( मंडी) और विधानसभा की एक  सीट छीन ली. भाजपा कोई भी सीट जीतने में सफल नहीं हो सकी. सामान्यतः सत्ताधारी दल को इस तरह की परिस्थिति का सामना नहीं करना पड़ता है और हिमाचल प्रदेश तो भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा का गृह प्रवेश है. इस तरह की घटनाएं तभी सामने आती  हैं जब सत्ताधारी दल के विरुद्ध जनाक्रोश अपने चरम पर हो. ज्यादातर विश्लेषक भाजपा का बचाव करते हुए कहते रहते हैं कि  जनता विधानसभा और लोकसभा के लिए अलग-अलग तरह से वोट करती है, लेकिन ऐसे समय जब प्रदेश के चुनाव शीघ्र ही होने वाले हैं यहां लोकसभा सहित विधानसभा की सभी सीटें  हार जाना केंद्र और राज्य कि दोनों सरकारों  के लिए  एक बहुत बड़ा चेतावनी है.



 पश्चिम बंगाल में तो ऐसा लगता है कि भाजपा ने अपने आप को परिस्थितियों के हवाले छोड़ दिया है और यहां भाजपा लगातार अपने पराभव पर है. कोई बड़ी बात नहीं कि अगले लोकसभा चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनाव तक भाजपा अपने पूर्व स्थिति तक सिमट जाए, जिसके लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह सहित भाजपा का शीर्ष नेतृत्व पूरी तरह से जिम्मेदार है. पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने यहां की जनता को बहुत  सब्जबाग दिखाये,  प्रत्येक बूथ पर सुरक्षा के कड़े बंदोबस्त भी किए लेकिन वावजूद इसके  केंद्र सरकार यह सुनिश्चित नहीं कर सकी कि मतदाता अपने घरों से बिना किसी हिचकिचाहट और डर के मतदान के लिए निकल सके. इसका परिणाम यह हुआ कि ऐसे मतदाता जो टीएमसी के विरोध में मत करना चाहते थे अपने घरों से ही नहीं निकल सके. कई विश्लेषकों ने यह स्पष्ट किया है कि अगर  केंद्र सरकार मतदाताओं को उनके घर से निकलना सुनिश्चित कर सकती तो संभव था भाजपा पश्चिम बंगाल में सरकार बना सकती थी.

यद्यपि पश्चिम बंगाल में भाजपा सरकार नहीं बना सकी लेकिन विधानसभा में उसकी संख्या और प्राप्त मत प्रतिशत  में भारी वृद्धि हुई, फिर भी  जनता को जिसका डर था,वह  तृणमूल कांग्रेस की विजय के बाद सामने आ गया. पूरे प्रदेश में हत्या, लूटपाट, बलात्कार और  पलायन के वैसे ही दृश्य देखने को मिले जैसे देश के बंटवारे के समय देखने को मिले  थे. केंद्र सरकार ने ना तो कोई प्रभावी कार्यवाही की और ना ही प्रदेश की जनता को सांत्वना देने और उसका विश्वास बहाल करने के लिए कोई कदम उठाया. यहां तक कि प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने हत्या, बलात्कार और आगजनी की घटनाओं की  ना तो खुलकर निंदा की और ना ही जनता को सांत्वना देने के लिए कोई बयान दिया. बात बात पर ट्वीट करने वाले और मन की बात में पूरे देश को समेटने की कोशिश करने वाले प्रधानमंत्री ने पश्चिम बंगाल की घटनाओं पर एक ट्वीट तक नहीं किया. इसका परिणाम यह हुआ कि प्रदेश की भलाई के लिए भाजपा से जुड़ने  वाले बड़े नेता और कार्यकर्ता अपनी जान बचाने के लिए बेहद मजबूरी और निराशा में भाजपा छोड़कर पुनः तृणमूल कांग्रेस की शरण में चले गए और यह सिलसिला अनवरत चल रहा है. पश्चिम बंगाल में  भाजपा द्वारा अपनाए गए इस रवैये  का क्या कारण है, यह आज तक रहस्य बना हुआ है और इसने  पूरे देश के बुद्धिजीवियों को हैरान किया और भाजपा के प्रति समर्पित या सहानुभूति रखने वाले सभी देशभक्तों को बेहद निराश किया. 

कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने के बाद भी वर्तमान मुख्यमंत्री के गृह जिले की सीट भी भाजपा नहीं जीत सकी यह भी चिंता का बड़ा कारण होना चाहिए. राजस्थान में तमाम उठापटक के बाद भी गहलोत सरकार ने बड़े अंतर से विधानसभा की सीटें जो भाजपा के पास थी जीत ली.  भाजपा ने तेलंगाना में एक सीट जीतकर राज्य में आशा की किरण जगाई है लेकिन भाजपा के लिए सबसे अधिक सफलता असम मैं मिली जहां मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा के नेतृत्व में राज्य की सभी 5 सीटों पर विजय मिली. मध्यप्रदेश में भी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह भाजपा के साख बचाने में सफल रहे.

भाजपा के इस निराशाजनक प्रदर्शन के पीछे सबसे बड़ा कारण है, जिस पर सबसे कम बहस होती है वह है "सबका विश्वास" जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2019 के लोकसभा चुनाव की जीत के बाद "सबका साथ, सबका विकास" के साथ जोड़ दिया है. यह कोई छिपी  बात नहीं है  कि सबका विश्वास जोड़ने का  मतलब मुस्लिम समुदाय का विश्वास प्राप्त करना है. इससे सनातन संस्कृति के प्रति आस्था रखने वाले और हिंदूवादी शक्तियों को बेहद निराशा हुई है. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख श्री मोहन भागवत  द्वारा भी इसी तरह के प्रयास किए जा रहे हैं.  उनके भी कई वक्तव्य हिंदुओं में घोर निराशा का कारण बने हैं. संघ प्रमुख ने अभी हाल ही  पुणे स्थित ग्लोबल स्ट्रैटेजिक पॉलिसी फाउंडेशन द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहा था  कि हिंदुओं और मुसलमानों के पूर्वज एक ही हैं, और हमारी मातृभूमि और गौरवशाली अतीत हमारी एकता का आधार है। हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दूरी अंग्रेजों द्वारा पैदा की गई थी . इसके पहले भी वह मुस्लिम राष्ट्रीय मंच के सम्मेलन में कह चुके हैं कि हिंदू और मुस्लिमों का डीएनए एक है, हिंदू मुस्लिम भाई भाई हैं और हमें मिलजुलकर इस राष्ट्र को आगे बढ़ाना है. इन सब बातों से न तो कोई इनकार  कर सकता है  और ना ही असहमत हो सकता है, लेकिन वास्तविकता बिलकुल अलग है . उन्होंने यह भी कहा की लिचिंग हिंदुत्व के खिलाफ है और लिंचिंग करने वाले हिंदू नहीं हो सकते और उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए. ऐसा कहकर  उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से हिंदुओं द्वारा लिंचिंग करना स्वीकार कर लिया.

भाजपा और संघ दोनों के इस दृष्टिकोण में भाजपा को समर्थन देने वाले एक बहुत बड़े पर्व में निराशा पैदा करने का काम किया है. हिंदुओं के एक बड़े वर्ग जो शुरू से ही भाजपा के प्रति समर्पित है और भाजपा को समर्थन करता है, का यह मानना है कि भाजपा ने स्वयं और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के माध्यम से वोटों के लालच में मुस्लिमों को लुभाने का कार्य शुरू कर दिया है जो कुछ और नहीं कांग्रेस और अन्य दलों द्वारा किया जाने वाला मुस्लिम तुष्टिकरण ही  है. अभी तक भाजपा को अन्य दलों से इसलिए अलग माना जाता था कि वह हिंदुओं का  समर्थन करने वाला एकमात्र राजनीतिक दल है. बहुत से ऐसे हिंदू भी जो भाजपा की नीतियों और सरकार की कार्यप्रणाली से संतुष्ट नहीं होते वह भी हिंदूवादी पार्टी होने के कारण परंपरागत रूप से भाजपा को वोट देते हैं. अगर कोई अन्य हिंदूवादी पार्टी होती तो निश्चित रूप से ऐसे लोग भाजपा विकल्प के रूप में उसे वोट देते.   ऐसे लोग भी अब सोचने लगे हैं कि  जब भाजपा भी अन्य दलों की तरह मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चलने लगे तो फिर उसे वोट देने का क्या औचित्य. ऐसा सोचने  वाले लोगों की संख्या बहुत बड़ी है और अगर भाजपा ने विशाल हिंदू जनमानस की इस संवेदनशीलता पर अति शीघ्र ध्यान नहीं रखा तो आगामी सभी चुनाव में उसे व्यापक नुकसान के लिए तैयार रहना चाहिए.

 दुनिया में जितने भी इस्लामिक  या मुस्लिम बाहुल्य  देश हैं वहां लोकतंत्र नहीं है क्योंकि उनका लक्ष्य धार्मिक कानून (सरिया) लागू  करना होता है. भारत ही नहीं, यदि पूरे वैश्विक परिवेश में  देखे तो एक बात अत्यंत ध्यान देने योग्य है कि जो सरकार मुस्लिम मतों के आधार पर बनती है, वह राष्ट्र के लिए काम नहीं कर सकती. इसका सीधा और स्पष्ट कारण यह है कि ऐसी सरकारें मुस्लिम तुष्टिकरण के कारण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मजहबी कट्टरपंथ को बढ़ावा देने का कार्य करती है जो आगे चलकर राष्ट्र की मूल संस्कृति को नष्ट करके इस्लामिक राष्ट्र बनने का मार्ग प्रशस्त करती  हैं. भारत इसका जीता जागता उदाहरण है.अंग्रेजों के शासन से लेकर अब तक आए ज्यादातर सरकारें मुस्लिम तुष्टिकरण की राह पर चलती रही है, जिसके कारण आज देश एक ऐसी विषम परिस्थिति में खड़ा हो गया है जहां राष्ट्र मजहबी  कट्टरपंथ और उन्माद  के ज्वालामुखी पर बैठकर आतंकवाद अलगाववाद से जूझ रहा है. कश्मीर और केरल में क्या हुआ यह हम सभी ने देखा और यह भी देख रहे हैं कि पश्चिम बंगाल में कैसे जनसंख्या घनत्व बड़ी तेजी से परिवर्तित हो रहा है. नेपाल की सीमा से लगे हुए उत्तर प्रदेश और बिहार के जिलों में खुले अनगिनत मदरसों में आतंक की फैक्ट्रियां चल रही है जिन्हें रोके बिना आतंकवाद पर लगाम लगाना मुश्किल है. धर्मांतरण, लव जिहाद और अन्य कई तरीकों से मुस्लिम आबादी बढ़ाने के युद्ध स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं.

उत्तर प्रदेश शिया मुस्लिम वक्फ  बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष वसीम रिजवी जैसे लोग  साहस का परिचय देते हुए लोगों को जागरूक कर रहे हैं कि कुरान में बाद में जोड़ी गई कुछ आयते   वैश्विक स्तर पर इस्लामिक उन्माद बढ़ा रही है और आतंकवाद का वातावरण तैयार कर रही है. एक यूट्यूब चैनल को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने बताया उत्तर प्रदेश और बिहार के नेपाल सीमा से जुड़े कुछ जिलों में मदरसों की बाढ़ आ गई है जिनमें आतंकवाद की फैक्ट्रियां चलाई जा रही हैं. उन्होंने स्वयं कुछ मदरसों का दौरा करके इसकी समीक्षा की और सरकार से इन मदरसों के विरुद्ध सख्त कार्यवाही करने और उन्हें बैन करने की मांग की है. दुर्भाग्य से  भाजपा ने शाहनवाज हुसैन जेथे राष्ट्रीय प्रवक्ता  को मैदान में उतारकर वसीम रिजवी कि न केवल आलोचना की बल्कि उनके  विरुद्ध मोर्चा भी खोल दिया. आज वसीम रिजवी मुस्लिम समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं और पूरे समाज को जागृत करने का काम कर रहे हैं कि कैसे मुस्लिम समाज के कुछ स्वार्थी तत्व मदरसों तथा अन्य धार्मिक संस्थाओं  की आड़ में राष्ट्र के विरुद्ध जिहाद चला रहे हैं. सरकार उनकी बातों पर ध्यान भले ही ना दें लेकिन सोशल मीडिया के इस युग में उनकी बातें न केवल ध्यान से सुनी जा रही है, बल्कि उनके वायरल प्रसारण के कारण सुखद परिणाम भी सामने आने लगे हैं. भाजपा और केंद्र  सरकार अभी भी सबका विश्वास प्राप्त करने के अभियान में जुटी है. वसीम रिजवी की इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि भाजपा चाहे सिर के बल खड़ी हो जाए उसे मुस्लिम समुदाय के वोट नहीं प्राप्त हो सकते.

आज सनातन संस्कृति  के समक्ष गंभीर चुनौती उत्पन्न हो गई है और  संकट दिन प्रतिदिन गहराता जा रहा है. ऐसे में भाजपा अगर सब का विश्वास जीतने के प्रयास में लगे रहे तो उसे बहुसंख्यक वर्ग का विश्वास होना पड़ सकता है और इसका परिणाम यह होगा कि भाजपा "पुनः  मूषक: भव" होने   के लिए अभिशप्त हो जाएगी.


- शिव मिश्रा 

लेखक  आर्थिंक सामाजिक और सम सामायिक विषयों के लेखक  हैं .

बुधवार, 3 नवंबर 2021

पटखा विहीन दिवाली - सुनियोजित षड्यंत्र

 


पटाखा विहीन  दीवाली

यह तो अब किसी से छिपा नहीं है कि प्राचीन भारतीय संस्कृति के विरुद्ध लंबे समय से एक अघोषित युद्ध चल रहा है । वैसे तो स्वतंत्र भारत में यह काम वामपंथी इस्लामिक गठ जोड़, तथाकथित प्रगतिशील और धर्मनिरपेक्ष लोगों द्वारा किया जा रहा है लेकिन इसकी शुरुआत भारत में  आक्रांताओं  के  आने की समय से ही शुरू हो गई थी. रही सही कसर अंग्रेजी शासन में सुनियोजित षड्यंत्र के रूप में पूरी कर दी थी. शायद ही हिंदुओं का कोई ऐसा त्यौहार हो जिसके  विरुद्ध कोई अभियान न चलाया जाता हो. अबकी बार तो रक्षाबंधन पर भी एक अभियान चलाया गया था जिसमें गायों के दूध सेवन का विरोध किया गया था. इसी कड़ी में गुजरात के अमूल ब्रांड के विरुद्ध व्यापक अभियान छेड़ा गया.

होली और दिवाली हिंदुओं के प्रमुख त्यौहार है और इनके विरुद्ध तो अनेक कारण गिना कर विरोध किया जाता है. जहां होली में खतरनाक रंगों और पानी की बर्बादी के रूप में विरोध किया जाता है वही दिवाली को  पटाखों के वायु और ध्वनि प्रदूषण के नाम पर निशाने पर लिया जाता है. 

दिल्ली की  केजरीवाल सरकार ने जनवरी 2022 तक पटाखों की भंडारण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया.  कोलकाता उच्च न्यायालय ने राज्य में दुर्गा पूजा के पूर्व ही किसी भी तरह के पटाखों के भंडारण और बिक्री पर प्रतिबंध लगा दिया. पश्चिम बंगाल के पटाखा व्यापारियों की ओर से दायर एक याचिका में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया है कि सभी तरह के पटाखों पर रोक नहीं लगाई जा सकती है और ग्रीन पटाखे चलाए जा सकते हैं. सर्वोच्च न्यायालय का यह निर्णय कि भारत में केवल ग्रीन पटाखों का ही उत्पादन और बिक्री की जा सकती है, का स्वागत करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है क्योंकि इससे  कुछ तो राहत मिली है अन्यथा आज भारत में स्थिति यह है कुछ राजनीतिक दल और उनकी सरकारें वर्ग विशेष को खुश करने के लिए होली और दिवाली त्यौहारों पर प्रतिबंध लगाने के लिए भी तत्पर हो सकती हैं.

 सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय उत्तर भारत के राज्यों के लिए जहां सर्दियों में प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है, तो उचित है लेकिन दक्षिण भारत सहित तमाम उन राज्यों के लिए बिल्कुल भी उचित नहीं है, जहां प्रदूषण की कोई समस्या नहीं है. सर्वोच्च न्यायालय को भी इस तरह के निर्णय करते समय भारत भूमि की विशालता और जलवायु  विविधता का भी ध्यान रखना चाहिए क्योंकि यह मामला लोगों के रोजगार से भी जुड़ा है.

इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि पटाखों के चलने से ध्वनि और वायु प्रदूषण होता है लेकिन क्या भारत में प्रदूषण का केवल यही एक कारण है ?  क्या पटाखे सिर्फ दिवाली में ही प्रदूषण फैलाते हैं?  और क्या पटाखों के प्रदूषण की समस्या केवल भारत तक ही सीमित है?

 अगर हम इन प्रश्नों की  विस्तार से विवेचना करें तो पाते हैं कि भारत में पटाखे केवल दिवाली पर ही  नहीं  वरन शादी समारोह और अन्य खुशी के मौकों पर भी चलाए जाते हैं. हाल ही में नशा सेवन और कारोबार के आरोपी शाहरुख खान के पुत्र आर्यन खान की जेल से  रिहाई पर उनके आवास के सामने ही इतने  पटाखे चलाए गए जो किसी छोटे-मोटे शहर में दीवाली पर चलाये जाने  वाले पटाखों से भी ज्यादा थे लेकिन कहीं से कोई आवाज सुनाई नहीं दी . कोई बड़ी बात नहीं कि ये पटाखे शाहरुख खान द्वारा स्वयं ही उपलब्ध कराए गए हो ताकि उनकी खोई प्रतिष्ठा की कुछ भरपाई की जा सके .

दिल्ली, पंजाब ,हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वायु प्रदूषण के लिए सबसे अधिक अगर कुछ जिम्मेदार है तो है वाहनों से निकलने वाला धुआं और किसानों द्वारा जलाई जाने वाली पराली लेकिन इस दिशा में कोई खास  कदम नहीं उठाया जा सका है. पराली जलाने की समस्या का आज भी कोई समाधान नहीं निकला है और यह कार्य बदस्तूर जारी है. केजरीवाल वाहनों के लिए आड-एविन वार्षिक कार्यक्रम और  टीवी चैनलों पर 24 घंटे विज्ञापन देकर प्रदूषण कम करने का सफल आयोजन करते हैं वहीं पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश को यह भी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती.

स्वच्छ भारत मिशन ने एक बेहद संवेदनशील मामले को छुआ जरूर और लोगों को जागरूक भी किया लेकिन इसमें भी उल्लेखनीय प्रगति हुई हो ऐसा नहीं कहा जा सकता. आज भी अधिकांश शहरों, पर्यटन और सार्वजनिक स्थलों पर पॉलिथीन, प्लास्टिक की खाली बोतले और अन्य  कचरा पूरे अभियान का मजाक उड़ाता दिखाई पड़ता है. राजनीतिक रैलियां आयोजित करने के बाद सभा स्थल और आसपास के अ क्षेत्रों में फैलाई गंदगी महीनों तक लोगों का जीना दूभर करती  हैं. नमामि गंगे परियोजना के अनेक  वर्ष  बीत जाने के बाद भी फैक्ट्रियों का औद्योगिक कचरा और गंगा के किनारे बसे शहरों के नाले और सीवर का पानी आज भी गंगा के उद्धार  में बहुत बड़ी बाधा है.

भारत में चीन के बाद सबसे अधिक स्मार्टफोन इस्तेमाल किए जाते हैं और उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार लगभग 55 करोड़ लोग व्हाट्सएप,  40 करोड फेसबुक,  20 करोड़  इंस्टाग्राम, 5 करोड़  टि्वटर और 10 करोड़ अन्य सामाजिक प्लेटफार्म उपयोग करते हैं. एक छोटा टेक्स्ट मैसेज 3 से 5 ग्राम कार्बन फुटप्रिंट उत्पन्न करता है और इसकी मात्रा फोटो या फाइल संलग्न करने से बढ़ती जाती है. इस समय भारत में एक अनुमान के अनुसार 700 से 1000 करोड़ संदेश सभी सामाजिक प्लेटफॉर्म के माध्यम से प्रेषित किए जा रहे हैं. इन  सबका कुलकार्बन फुटप्रिंट लगभग 15 करोड़ किलोग्राम प्रतिदिन आता है. सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन सब की तुलना में पटाखों द्वारा फैलने वाला प्रदूषण कुछ भी नहीं है.

एक चीज और ध्यान देने योग्य है कि दुनिया के लगभग हर देश में खुशी और खास मौकों पर पटाखे चलाए जाते हैं और आतिशबाजी का सार्वजनिक प्रदर्शन किया जाता है. चीन के बाद सबसे अधिक पटाखों का प्रयोग विकसित देशों में किया जाता है. ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन जैसे देशों में अधिकारिक  तौर पर सरकारी समारोहों में भी आतिशबाजी का जमकर इस्तेमाल होता है लेकिन  यह सभी देश पूरे साल भर प्रदूषण नियंत्रण के उपाय पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ करते रहते हैं जिससे ये  देश न केवल साफ-सुथरे हैं बल्कि प्रदूषण स्तर के मामले में भारत की तुलना में काफी बेहतर स्थिति में है. चीन में तो पटाखों पर कोई खास प्रतिबंध नहीं है इसलिए यहां पर भी पटाखों का जमकर उपयोग होता है और आजकल चीन पटाखा निर्यात करने वाला विश्व का सबसे प्रमुख देश है.

मैंने अपने जीवन में  कभी नहीं सुना कि किसी भी व्यक्ति या संस्था ने बकरीद पर जानवरों की हत्या, फैलने वाली बीभत्स गंदगी और उसके फलस्वरूप  संक्रमण से होने वाली बीमारियों का विरोध किया हो. इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा मस्जिदों में लाउडस्पीकर की रोक के बावजूद  उत्तर प्रदेश में गली मोहल्लों में गैर कानूनी ढंग से बनाई गई सभी अनगिनत मस्जिदों में बेहद तेज ध्वनि के साथ ध्वनि प्रदूषण फैलाने का काम धड़ल्ले से किया जा रहा है, जिससे  बच्चों,  बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों को  अत्यधिक परेशानी का सामना करना पड़ रहा है.  किसी भी राजनीतिक दल या स्वयंसेवी संगठन ने इसका विरोध नहीं किया है.  मुंबई में  गायक सोनू निगम ने उनके घर के पास की मस्जिद से  बेहद तेज  लाउडस्पीकर से की जा रही अजान से उन्हें और मोहल्ले के निवासियों को होने वाली परेशानियों का मामला उठाया था.  जिस पर उनके विरुद्ध तमाम फतवे जारी हो गए और  कई राजनीतिक दलों ने भी सोनू निगम की भर्त्सना की. बॉलीवुड के कॉकस ने उन्हें काम देना भी बंद कर दिया. जिहादी जिद ने  उस मस्जिद में  लाउडस्पीकर की संख्या बढ़ाकर ध्वनि को और कई गुना और बड़ा दिया.

प्रदूषण नियंत्रण मामले में भी अन्य मामलों की तरह,  भारत की सबसे बड़ी समस्या सरकार  की ढुलमुल नीति है और उधार लिए गए कानून हैं.   कई मामलों में तो सरकार स्वयं निर्णय न ले कर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय पर निर्भर रहती है. जनता के प्रति जवाबदेही के अभाव में  सर्वोच्च न्यायालय का न्यायिक दृष्टिकोण न तो  व्यापक हो सकता है और न ही सरकार के नीति निर्माता का स्थान ले सकता है. इसलिए स्वाभाविक रूप से सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सामाजिक सरोकार वाले मामलों में दिए गए निर्णय वामपंथ और छद्म  धर्मनिरपेक्षता से प्रेरित होने का आभास देते हैं.

होली और दिवाली पर तथाकथित सामाजिक संगठनों द्वारा किसी न किसी रूप में इन त्योहारों का उत्साह कम करने की कोशिश हमेशा की जाती रही  है. दिवाली  का प्रसंग तो मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की अयोध्या वापसी से जुड़ा है और इसलिए जो लोग राम के अस्तित्व को ही स्वीकार नहीं करते उन्हें  ना तो दिवाली के त्योहार से और नहीं इन त्योहारों को मनाने वालों से कोई मतलब है.

सामाजिक संगठन तर्क देते हैं कि पटाखों का प्रचलन लगभग 100 वर्ष पहले से ही शुरू किया गया अन्यथा दिवाली और दशहरा में  पटाखों का क्या काम. यह त्यौहार मनाने की प्राचीन परंपरा  नहीं है. ये बातें  बिल्कुल सही है लेकिन कोई भी सामाजिक संगठन किसी अन्य धार्मिक समुदाय के लिए इस तरह की प्रगतिशील बातें नहीं कर सकता है. लाउडस्पीकर तो अभी बहुत नई खोज है इसका अजान देने में कोई योगदान नहीं हो सकता. लेकिन यह कोई नहीं कह सकता.

मेरे विचार से  पटाखों पर पूर्ण प्रतिबंध और ग्रीन पटाखों का उत्पादन और बिक्री भारत में प्रदूषण की समस्या का समाधान नहीं है. अगर हमें प्रदूषण पर नियंत्रण करना है तो इसके लिए व्यापक दृष्टिकोण अपना कर प्रभावी नीति बनानी होगी जिसे बिना किसी भेदभाव को लागू किया जाना चाहिए. दिवाली और दशहरा जैसे हर्षोल्लास के त्योहारों पर पटाखों पर प्रतिबंध लगाना समस्या का समाधान नहीं बल्कि एक बहुत बड़ी समस्या को जन्म देना है. इस तरह के प्रतिबंध बहुसंख्यक वर्ग में कुंठा उत्पन्न करते हैं जिसका दूरगामी प्रभाव राष्ट्रीय हित में तो बिल्कुल भी नहीं है. बहुसंख्यक वर्ग  को भी इन तथाकथित सामाजिक संगठनों और राजनीतिक दलों  से और  अत्यंत सावधान रहने की आवश्यकता है, ताकि वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्राचीन भारतीय संस्कृत को संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थ बस दुष्प्रभावित करने और हिंदू जनमानस के मनोबल तोड़ने का का कार्य न कर सकें.

- शिव मिश्रा 

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