जेएनयू में हुई हिंसा के लिए केंद्रीय गृहमंत्री , प्रधानमंत्री या केंद्र सरकार को दोष देना कितना उचित है इसका निर्णय आप मेरा लेख पढ़ने के बाद करेंगे तो मेहरबानी होगी। सबसे पहले इस बात पर विचार करना चाहिए कि जेएनयू में हिंसा क्यों हुई ? हिंसा के पीछे क्या संभावित कारण हो सकते हैं ? क्या इस हिंसा का सम्बन्ध जामिया और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से है ?
संशोधित नागरिक अधिनियम के खिलाफ दिल्ली में सबसे पहले प्रदर्शन जामिया में किए गए और इसने कुछ भी असामान्य नहीं क्योंकि हिंदुस्तान एक लोकतांत्रिक देश है और यहां विरोध करना संविधान प्रदत्त अधिकार है लेकिन अधिकारों के साथ-साथ कर्तव्यों का निर्वाहन भी बहुत जरूरी है। इसके पहले भी जामिया आतंकवादियों के मुठभेड़ के मामले में काफी चर्चा में रहा था और उसमें भी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता वादी और लोकतंत्र की रक्षा करने के नाम पर तुष्टिकरण की राजनीति करने वालों ने बहुत ही घड़ियाली आंसू बहाए थे और मुठभेड़ में एक शहीद पुलिस अधिकारी के विरुद्ध भी आरोप गढ़े गए थे। एक राष्ट्रीय पार्टी की तत्कालीन अध्यक्ष भी बिलख बिलख कर रोयी थी। जामिया में CAA के विरुद्ध हुए प्रदर्शन ने हिंसा का रूप ले लिया था । उपलब्ध वीडियो फुटेज और मौके पर मौजूद पत्रकारों के अनुसार प्रदर्शनकारी अपने साथ पत्थर के टुकड़े लाए हुए थे और भी पत्थर छोटी छोटी गाड़ियों में , टेंपो आदि में भरकर लाये जा रहे थे । कई ऐसे प्रदर्शनकारी थे जिनके बैग में पत्थर भरे हुए थे और उन्होंने पत्थरों का इस्तेमाल पुलिस पर किया। कश्मीर के बाहर पुलिस पर यह अपनी तरह की पत्थरबाजी की पहली घटना है । इसके पहले पत्थरबाजी सेना और पुलिस पर केवल कश्मीर घाटी में होती थी। इस प्रदर्शन में प्रदर्शनकारी पत्थरबाजी करते हुए जामिया के कैंपस के अंदर चले गए और लगातार वहां से पत्थरबाजी होती रही। कहा जाता है कि पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों ने जामिया के उच्च प्रबंधन से संपर्क किया लेकिन कोई जवाब न मिलने पर पुलिस को जामिया के अंदर प्रवेश करना पड़ा और ऐसा करना इस पत्थरबाजी के रूप में हो रही आतंकवाद की इस घटना को रोकने के लिए जरूरी था। जामिया कैंपस के अंदर बड़ी मात्रा में फर्जी आईडी कार्ड बरामद किए गए जिससे पता चलता है कि प्रदर्शन और पत्थरबाजी की घटना कितनी पूर्व नियोजित थी और जामिया के अंदर नियमित स्टूडेंट्स के अलावा भी उपद्रवी लोग रहते थे या उस समय मौजूद थे। इस घटना की पीछे की साजिश का पर्दाफाश होते ही साजिशकर्ता और उनके तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रवादी लोग सक्रिय हो गए और इस पूरी घटना की भर्त्सना इस कदर की गई कि कई दिन तक टीवी चैनलों और समाचार पत्रों में सुर्खियां बटोरते रहे। बहुत दुर्भाग्य पूर्ण बात है कि कुछ बड़े नेताओं ने जामिया की तुलना जलियांवाला कांड से की और विपक्ष के लगभग हर छोटे-बड़े नेता ने केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस के खिलाफ बिगुल बजा दिया । जामिया हिंसा का प्रचार करने के लिए समाचार पत्रों, टीवी और सोशल मीडिया का भरपूर दुरुपयोग किया गया और पूरे देश में एक लहर बनाने की कोशिश की गई कि केंद्र की भाजपा सरकार छात्र विरोधी है, मुस्लिम विरोधी है, और एक निश्चित हिंदुत्व के एजेंडे पर काम कर रही है। विपक्ष के सभी राजनीतिक दलों और तथाकथित प्रगतिशील विचारों वाले लोगों और लुटियन दिल्ली की सत्ता में स्थापित कई विद्वान लोगों ने भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ अभियान छेड़ दिया। अब यह परिपाटी बन गई है कि जब भी नरेंद्र मोदी और अमित शाह का विरोध होता है , तथाकथित पेशेवर धर्मनिरपेक्ष संत और विद्वान लोग इतना आगे निकल जाते हैं कि उन्हें मोदी विरोध और देश विरोध में कोई अंतर समझ में नहीं आता।
जामिया के प्रदर्शन मैं जेएनयू स्टूडेंट भी शामिल हुए और उन्होंने पुलिस के खिलाफ दिल्ली पुलिस मुख्यालय घेर कर लगातार प्रदर्शन किया। जेएनयू के पेशेवर छात्रों और उनके राजनीतिक संरक्षकों ने आंदोलन को जेएनयू कैंपस तक ले आने के लिए जी तोड़ प्रयास किया और पुराने गड़े मुर्दे उखाड़े गए । एक हिंदूवादी विचारधारा से संबंधित छात्रों को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा गया। कोशिश की गई कि किसी भी तरीके से जेएनयू को पुनः आंदोलन का बड़ा केंद्र बनाया जाए। इसके लिए एक विशेष विचारधारा से संबंधित स्टूडेंट्स यूनियन ने दूसरे विचारधारा से संबंधित लोगों को चेहरे ढक कर और मास्क लगाकर आक्रमण किया। इससे कई लोगों को चोटें आई। पुलिस जेएनयू के गेट पर पहुंच गई लेकिन कहते हैं कि दूध का जला मट्ठा भी फूंक फूंक कर पीता है। जामिया कांड में पुलिस पर दोषारोपण किया गया था कि वे बिना इजाजत के कैंपस में कैसे घुसी ? जिसमें जावेद अख्तर से लेकर कई गणमान्य स्वयंभू लोग शामिल है। दिल्ली पुलिस जेएनयू के अंदर नहीं घुसी और और जेएनयू गेट पर ही योगेंद्र यादव जैसे छात्रों के परम हितैषी चिल्लाते देखे गए कि पुलिस अंदर क्यों नहीं जा रही है। और बेचारी पुलिस ! अंदर जाए तो मुश्किल और न जाए तो मुश्किल। एक बड़े नेता को इतना दुख पहुंचा की उन्होंने इस मारपीट की घटना में 26/11 याद आ गया ।
अब जेएनयू के अंदर हुई हिंसा की एक उच्चस्तरीय जांच की जा रही है और कई वीडियो और सीसीटीवी फुटेज सामने आ गए हैं जिसे पता चलता है कि इस काण्ड में कई ऐसे छात्र और छात्र संगठन शामिल है जो पुलिस और सरकार पर हिंसा का आरोप लगा रहे थे । पुलिस ने ऐसे कई छात्रों को नामजद किया है और उनसे पूछताछ की जा रही है। एक बात विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि जेएनयू स्टूडेंट का एक वर्ग बहुमुखी प्रतिभा का इतना धनी है की कई घटनाओं को नाटकीय अंदाज में अंजाम दिया जाता है जैसे कि कोई नुक्कड़ नाटक। 5 जनवरी को जेएनयू के अंदर हुई हिंसा की चपेट में बहुत से छात्र आए और कई को ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस में भर्ती कराया गया लेकिन ताज्जुब की बात यह है कि उन छात्रों के वहां पहुंचने के पहले ही कई राजनेता उनकी मिजाज पुर्सी के लिए पहुंच गए थे जैसे कि उन्हें मालूम था कि अब क्या होने वाला है। कुछ चोटिल / घायल छात्रों का फोटो विश्लेषण किया गया और पाया गया कि उनमें से कई की चोटों के स्थान बदल गए है ।जिस के बाएं हाथ में पट्टी बंधी थी , दूसरे दिन वह दाएं हाथ पर पहुंच गई । कई लोगों की गंभीर चोटों के घाव जिनमें 20 से 22 टांके लगे बताए गए थे, वह एक-दो दिन में ही ठीक हो गए और वे पट्टी बांध कर टीवी इंटरव्यू देते रहे और पुलिस के विरुद्ध प्रदर्शन भी करते रहे।
इन प्रदर्शनों में जो जेएनयू से लेकर इंडिया गेट तक और शाहीन बाग से लेकर जंतर-मंतर तक फैलते रहे, धारा 370 और कश्मीर की आजादी से संबंधित पोस्टर भी लहराए गए और नारे भी लगाए गए। इन प्रदर्शनों की एक सबसे खास बात अबकी बार यह रही कि इसमें हिंदुत्व को निशाना बनाया गया जो वास्तव में धर्म नहीं है और हिंदुत्व से आजादी के नारे भी लगाए गए । भाजपा मुर्दाबाद, मोदी ,अमित शाह मुर्दाबाद के नारों से तो शायद किसी को एतराज नहीं होगा लेकिन "हिंदुत्व की कब्र खुदेगी" के नारों से पूरा देश आक्रोशित है क्योंकि हिंदुत्व, धर्म नहीं एक जीवन विधा है और हिंदुस्तान की आत्मा है। इस तरह की वीडियो फुटेज कई टीवी चैनल पर दिखाए गए हैं। इससे ऐसा लगता है कि जो प्रदर्शन जेएनयू में हुए उसमें न तो छात्रों से संबंधित कोई मुद्दे थे और न ही संशोधित नागरिक कानून से संबंधित, बल्कि चिर परिचित मुद्दे जिसके केंद्र में कश्मीर और धारा 370, हिंदू , मोदी और अमित शाह थे।
इस बीच अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हुए और वहां भी हिंदुत्व से आजादी और सावरकर मुर्दाबाद जैसे नारे भी लगाए गए । अलीगढ़ के पुलिस अधिकारी जिनके कई वीडियो सोशल मीडिया में वायरल हो रहे हैं उनकी तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने बहुत ही अच्छे तरीके से स्टूडेंट को समझाने की कोशिश की और बिना बहुत ज्यादा बल प्रयोग किए हुए आंदोलन पर काबू पाया। यूनिवर्सिटी का प्रबंध तंत्र भी प्रशंसा का पात्र है जिसने समय रहते ही पुलिस को कैंपस में आने की छूट देकर , सार्वजनिक संपत्ति और जान माल के नुकसान को बचाने का प्रयास किया। एक और यूनिवर्सिटी में भी प्रदर्शन हुए उसका नाम है जाधवपुर यूनिवर्सिटी लेकिन उस यूनिवर्सिटी की घटनाएं मीडिया की सुर्खियां नहीं बन सकी क्योंकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री स्वयं विरोध का झंडा लेकर धरना और प्रदर्शनों की अगुवाई कर रही हैं। CAA पर तो उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ को भी एक पक्ष बनाने की अपील की, जनमत संग्रह कराने की बातें की और भी जो कुछ उनकी वोट बैंक की राजनीति के लिए आवश्यक था, कहा और किया जिससे पूरे विश्व में हिंदुस्तान की किरकिरी हुई। उनकी इन हरकतों से न केवल केंद्र सरकार बल्कि राज्य सरकार की संपत्तियों का भी अत्यधिक नुकसान हुआ। ज़ाहिर सी बात है वे मीडिया में छाई रही और जाधवपुर यूनिवर्सिटी सुर्खियों मे नहीं आ सकी। लेकिन वहां भी राज्यपाल के साथ दुर्व्यवहार, दूसरी विचारधारा के छात्रों के साथ मारपीट जैसे सभी कार्य किए गए जो जेएनयू की पहचान होते है ।
इससे यह अंदाजा लगाना बहुत आसान है कि यह प्रदर्शन चिर परिचित प्रदर्शन है और इनके पीछे वही शक्तियां काम कर रही हैं जो हिंदू और मुसलमान को बांटना चाहते हैं और पूरे देश में अराजकता की स्थिति लाना चाहती हैं। ऐसा करने वाले कौन लोग हो सकते हैं ? उत्तर बहुत आसान है ऐसा करने वाले हमारे पड़ोसी देश हो सकते हैं और ऐसे देश हो सकते हैं जो भारत को फलता फूलता नहीं देख सकते जिन्हें भारत में हो रही प्रगति बर्दाश्त नहीं हो सकती। ऐसे देश और ऐसी संस्थाएं इस तरह के आंदोलनों को बढ़ावा दे रही हैं और उसमें अनाप-शनाप पैसा भी खर्च कर रही है। और कुछ राजनैतिक दल जिन की दुकानें बंद हो चली है और कई ऐसे बिचौलिए है जो छोटे-मोटे ठेकों से लेकर रक्षा सौदा तक दलाली करते थे वह भी बेरोजगार हो गए हैं एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल तो सत्ता की आकांक्षा में कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है , चाहे मोदी के विरुद्ध विदेशों में प्रदर्शन करना पड़े , चाहे पाकिस्तान का साथ देना पड़े या पूरे देश को आग के हवाले करना पड़े। और तो और चाहे देश का एक और विभाजन करना पड़े......सत्ता चाहिए।
क्या 2014 से पहले किसीको मालूम था कि ....
जेएनयू में राष्ट्र विरोधी नारे भी लगाए जाते हैं?
जेएनयू में 40 से 50 साल की उम्र तक छात्र पढ़ते हैं?
जेएनयू में शिक्षक भी हड़ताल और धरना प्रदर्शन में शामिल हो जाते है?
जेएनयू में हिंदू धर्म को खुलेआम गाली दी जाती है?
जेएनयू में खुलेआम हिंदुस्तान से आजादी की मांग की जाती है?
जेएनयू वामपंथी विचारधारा का गढ़ है जहां पढ़ाई लिखाई और राष्ट्रहित के कामों से बामपंथी विचारधारा सर्वोपरि है?
आज जेएनयू सहित कई ऐसी संस्थाएं इस देश में है जो देश के हितों के विरुद्ध काम कर रही हैं और इनमें अराजकता की फैक्ट्रियां चल रही है इन्हें चलाने वाले उसी विचारधारा के लोग हैं जो कभी विभाजन से पहले मुस्लिम लीग की विचारधारा थी । इन्हें देश से कुछ मतलब नहीं है , देश के लोगों से कुछ भी लेना देना नहीं है इन्हें सिर्फ आज की चिंता है यह लोग वर्तमान में जीने वाले लोग हैं ये अपने आगे आने वाली पीढ़ियों के लिए भी नहीं सोचते हैं। देश बचेगा या नहीं बचेगा इनकी समझ से बाहर है और शायद इसीलिए ये कश्मीर कीआजादी , टुकड़े-टुकड़े गैंग की हिमायत , आतंकवादियों के मानवीय अधिकारों की वकालत, हिंदुत्व की कब्र खोदने के नारे लगाने का काम कर रहे हैं और संविधान बचाने की कसमें खा रहे हैं । पर वास्तविकता में सिर्फ और सिर्फ इनका स्वार्थ है। रही बात मोदी की ? तो कौन खुश है इस व्यक्ति से ? न विपक्ष के लोग, न अपनी पार्टी के लोग, न नौकरशाह , न पत्रकार और न ही न्यायपालिका । क्या यह व्यक्ति जो कर रहा है वह सिर्फ अपने लिए कर रहा है ? अपने स्वार्थ के लिए कर रहा है ? नहीं ये यह भारत के भविष्य के लिए कर रहा है, भावी पीढ़ियों के लिए कर रहा है, भारत बचाने केलिए कर रहा है क्योंकि जब भारत ही नहीं बचेगा तो कुछ भी करने का क्या फायदा ? ये लोगो को समझ में नहीं आ रहा। और अमित शाह ..........वह केंद्रीय गृह मंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के साथ पूरी मजबूती से खड़ा हुआ है। देश के लिए वह काम कर रहा है , वह कार्य जो पिछले 70 सालों में कोई करने की हिम्मत नहीं जुटा सका । देश की अधिसंख्य जनता इन कार्यों की बड़ी शिद्दत और उत्सुकता से प्रतीक्षा कर रही थी और यही शक्ति है जो मोदी और अमित शाह के साथ है। हमें एकजुट होकर इनका इस्तीफा मांगने की जरूरत नहीं है बल्कि सामूहिक रूप से इनका उत्साहवर्धन करने की जरूरत है , हर उस कार्य के लिए जिससे देश मजबूत होता हो , तुष्टिकरण समाप्त होता हो, हिंदुत्व जो धर्म नहीं जीने की कला है , जीवन जीने की एक कला है, हिंदुस्तान की आत्मा है , की रक्षा हो सके। भारतवर्ष अपने पुराने गौरव को पुनः प्राप्त कर सके।
याद रखिए आज देश में लगभग वैसी ही परिस्थितियां हैं जैसे विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण के समय थी। जब हिंदुस्तान के राजा आपस में एकजुट नहीं थे , देश में एकजुटता नहीं थी और जिसका फायदा उठाकर आक्रांताओंं ने इस देश की आत्मा को छलनी कर दिया और देश हजारों साल तक गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा रहा। आज .........आप की एक गलती , आपकी आने वाली पीढ़ियों को फिर से दासता की दहलीज के अंदर धकेल सकती है ।
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