बुधवार, 25 नवंबर 2015

आमिर भी दंगल में........... या दलदल में ........

एक सम्मान समारोह में आमिर खान ने कुछ ऐसा बयान दे दिया जिसे उनके प्रशंसक सकते में हैं.  कुछ प्रश्नों के जबाब में उन्होंने कहा कि  देश में डर और असुरक्षा का माहौल है और उनकी पत्नी ने  कुछ समय पहले उनसे हिंदुस्तान छोड़ने के लिए उनसे कहा था, क्यों कि वह अपने बच्चों के लिए बहुत चिंतित है. उन्होंने कहा कि पिछले  सात आठ महीने से ऐसा हुआ है, पता नहीं इसके पीछे कौन है ? स्वाभाविक है इस बयान से भूचाल आना ही था.


कुछ फिल्मो में बेहतरीन अदाकारी के कारण मैं आमिर खान का बहुत बड़ा फैन हूँ और देश के पर्यटन के ब्रांड एंबेसडर होने के कारण, जिसमे वह देश की इज्जत, मान- मर्यादा की बात करते हैं उनके प्रति  मेरा  सम्मान  और बढ़ गया था  लेकिन अनायास मुझे ऐसा क्यों लगने लगा  है कि मैं ठगा गया हूँ ? आमिर में जो मैंने देखा सुना वह सिर्फ ...... एक नाटक था और वे अच्छे कलाकार तो हैं लेकिन अच्छे इंसान नहीं. थ्री इडियट के, एक  इडियट वे नहीं, मैं हूँ और वे सारे लोग है जो उनके प्रसंशक हैं . अफ़सोस ... मैं उनकों क्या समझता था और वे क्या निकले. क्या एक कलाकार  जिसने तमाम ऐसे  किरदार निभाये हों  जिसमें जाति-पात धर्म  और संप्रदाय से  ऊपर उठकर काम करने की शिक्षा दी  हो, देश का  गौरव बढ़ाने की बात की हो और वह  लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचने के बाद भी सिर्फ एक .... मुसलमान बन कर रह जाय, ....ये करोडों लोगो के दिल दुखाने की बात है. बड़े दिखने वाले लोग अंदर से कितने छोटे होतें हैं, इसका पता ऐसे वक्त में ही चलता है. पता नहीं उनकी बात में कितनी  सच्चाई है किन्तु  आमिर जैसा कोई व्यक्ति (या मुसलमान) जो इतना बड़ा व्यक्ति हो, पैसे वाला हो, इतना बड़ा स्टार हो, अगर वह अपने बच्चों के लिए चिंतित हैं, तो  स्वाभाविक कि आम  मुसलमान क्या सोचेगा ? और उसका क्या हाल होगा ? 

 आमिर खान ने अपने  इस बयान से देश का, समाज का और विशेष कर मुसलमानों का कितना अहित किया है, शायद इसका अंदाजा उन्हें नहीं है.  हर समाज में हर कौम में कुछ न कुछ तत्व मुख्यधारा से अलग होते हैं.  तमाम प्रयासों के वावजूद फैक्ट्री में भी तो कुछ डिफेक्टेड आइटम बन जाते हैं. हिन्दू समाज के ऐसे सिरफिरे लोगों की कुछ बातों को लेकर, जो बिलकुल भी नयी नहीं है हर शासनकाल में ऐसी बातें होती रहीं हैं, एक सुनियोजित अभियान चलाना, समझ से बाहर है.   हिन्दू समाज से ही नहीं किसी समाज से आदर्श की अपेक्षा करना बेमानी है. अगर आप राम जैसे भाई की कल्पना करते है, तो लक्ष्मण बनना सीखना होगा. आमिर का  बयान पूरे हिन्दू समाज के मुहँ पर एक तमाचा है.  इतने वर्षों तक मुझे कभी हिन्दू और मुसलमानों का अंतर समझ में नहीं आया आज उम्र के इस पड़ाव पर जैसे मुझे झकझोरा जा रहा कि मैं  हिन्दू हूँ ...मै  हिन्दू हूँ ....और मैं सोच रहा हूँ कि मैंने क्या गलती की ? हिंदुस्तान में मोदी सरकार बनने के बाद एक बड़ा वर्ग  जहां जोश और जश्न के मूड में था वही एक बड़ा वर्ग सदमे में था. इसमें ज्यादातर कांग्रेसी और बामपंथी विचारधारा से जुड़े ऐसे लोग भी थे, जिन्हें कालांतर में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के का डर दिखाकर उन के विरुद्ध खडा कर  दिया गया था. कई दशक बाद पूर्ण बहुमत की मोदी सरकार बहुतों के लिए अप्रत्याशित थी.. और बहुतों के लिए आज भी असहनीय है. मेरा और मेरे जैसे बहुत लोगों का मत बनता जा रहा है कि मोदी जरूर कुछ न कुछ अच्छा  कर रहे होंगे तभी तो उनका इतना विरोध किया जा रहा है यहाँ तक उनकी पार्टी के ही बहुत से लोग विरोध के स्वर दे रहें हैं. कई पार्टियों के लोग पाकिस्तान और आई एस आई से मोदी को  हटाने की गुहार लगा रहें हैं.  कई  संस्थान, राजनैतिक दल और देश  मिलकर ऐसी कूट रचनाएँ कर रहें हैं जिससे  सरकार को बदनाम किया जाय और ऐसा  करने में  वे चाहे अनचाहे हिन्दुस्तान को भी बदनाम कर रहे हैं ये उचित नहीं है.
आज जब तथा कथित बड़ी बड़ी हस्तियाँ देश को बदनाम करने की मुहिम में लग गयी हैं, हम सामान्य जनो को चाहिए कि वे देश हित में आगे आयें और ऐसे सुन्योजित अभियानों का पर्दाफास करे. जय हिन्द .                      ***********************************                                                          - शिव प्रकाश मिश्रा 

http://mishrasp.blogspot.in

गुरुवार, 22 अक्टूबर 2015

आप सभी को विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाये







माँ दुर्गा के मंत्र 


१.       नमो देव्यै महादेव्यै शिवायै  सततं  नमः .
      नमः प्रकृत्यै भद्रायै नियता: प्रणिता:स्मताम .. 

२.       या देवी सर्व भूतेषु लक्ष्मीरुपेण संस्थिता 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै  नमो नमः ..

३.       या देवी सर्व भूतेषु बुद्धिरुपेण संस्थिता .
   नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

४.       या देवी  सर्व भूतेषु मातृरुपेण  संस्थिता
    नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

५.       जयंती मंगला   काली भद्रकाली कपालिनी.
   दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नामेस्तु ते..

६.       देहि सौभाग्यमारोग्यम देहि में परम सुख़म .
    रुपम देहि जयं देहि यशो देहि द्विषो जहि ..

७.       सर्व   मंगलमंगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके .
      शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणि नमोस्तु ते ..

८.       सर्व बाधा विनुर्मुक्तो धन धान्य सुतान्वित:
    मनुष्यों मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय: ..

९.       शरणागत    दीनार्त   परित्राण परायणे .
  सर्वस्यर्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तु ते ..

१०.    सर्वबाधाप्रश्मनं त्रिलोक्यस्याखिले श्वरि .
     एवमेव त्वया यर्मस्मद्वैरि  विनाशनम ..


*******शिव प्रकाश मिश्रा ***********

मंगलवार, 20 अक्टूबर 2015

हिंदुस्तान का मुंह काला कर रहे है तथाकथित बुद्धिजीवी !

      तस्लीमा नसरीन ने अभी हाल में दिए अपने इंटरव्यू  कहा कि हिंदुस्तान में यह एक फैशन हो गया है जो लोग धर्म निरपेक्ष होते है (या कहलाते हैं ) वह हिंदुओं के विरुद्ध होते है.  उनका इंटरव्यू साहित्यकारों द्वारा वापस किए जा रहे साहित्य अकादमी पुरस्कारों के परिपेक्ष में था. उन्होंने कहा जब पश्चिम बंगाल में उनकी किताब पर प्रतिबन्ध लगाया गया और राज्य से बाहर कर  दिया गया तो उन्हें दिल्ली आकर रहना पड़ा था. कट्टर पंथियों के दबाव में  उन्हें हिंदुस्तान भी छोड़ना  पड़ा, उस समय कम से कम साहित्यकारों ने तो कोई आवाज नहीं उठाई.

      अब तक लगभग 24 साहित्यकार अपने पुरस्कार वापस कर चुके है . और तो और मोहान की पतली पगडंडी से चल कर हजरतगंज पहुँचने वाले अपने प्रिय मुनव्वर राना भी उसी श्रेणी में गिर चुके है. और न जाने कितने लोग गिरेंगे ? और कितना गिरेंगे ? इन्हे नहीं मालूम जो ये काम कर रहे है, उससे विदेशों में भारत की छवि कितनी  खराब हो रही है ? पुरुस्कार वापसी का सिलसिला कुलवर्गी जैसे लेखक की ह्त्या से शुरू होकर अख़लाक़ की हत्या से जुड़ गया. अब तो पाकिस्तान ने भी कहना शुरु कर दिया है कि हिंदुस्तान में मुसलमानो के साथ बहुत अत्याचार किया जा रहा है. इसका जबाब तो हिन्दुस्तान का मुसलमान ही दे सकता है और उन्हें पाक को कड़ा सन्देश देना चाहिए.

      पकिस्तान और उनके समर्थको की जानकारी के लिए ये बताना उचित होगा पाकिस्तान में हिंदू अल्पसंख्यक हैं जिनकी जनसंख्या 1947 में  17 प्रतिशत से कुछ अधिक थी, जो 1998 में घटकर एक दशमलव छह प्रतिशत रह गई है और आज की तारीख में यह लगभग एक प्रतिशत से भी कम है. कम से कम पकिस्तान जैसे  देश को अल्पसंख्यको की दशा पर बोलने का कोई हक नहीं है. क्या किसी धर्मनिरपेक्ष साहित्यकार ने इस बारे कभी पुरुस्कार वापस करने के बारे सोचा ? जब कश्मीर में भयानक नरसंघार हुआ था और कश्मीरी पंडितो को घाटी से बाहर कर दिया गया, जब गोधरा कांड हुआ, जब मुंबई बम कांड हुआ, जब दंगों में हजारों सिखों की हत्या हुयी, तब कोई भी साहित्यकार पुरस्कार वापस करने क्यों नहीं आया ?

      केंद्र में नई सरकार बनने के बाद पिछले डेढ़ साल में ऐसा क्या हो गया जिससे इन साहित्यकारों ने इतना हाय तौबा  मचा रखा है. क्या साहित्य अकादमी के पास राज्य सरकारों से भी अधिक अधिकार है कि सम्पूर्ण भारत में कानून व्यवस्था सम्भाल ले. कानून व्यबस्था राज्य सरकार का विषय है. क्या राज्य सरकारों को सख्त कारवाही से कोई रोकता है ?

      एक टी वी  शो में सुब्रमंयम स्वामी ने बताया कि  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक एजेंसी  काम कर रही है जो भारत में इस तरह की घटनाओं को अंजाम देकर माहौल को खराब करने की कोशिश कर रही है. इसका मकसद न सिर्फ केंद्र में मोदी सरकार को परेशान करना अपितु  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की छवि खराब करना भी है . श्री स्वामी ख्याति प्राप्त व्यक्ति है उनके कहने में अगर कुछ भी सच्चाई है तो सरकार को चाहिए कि  पूरी घटना की जाँच  कराई जाए और अगर कोई इस तरह की कोई एजेंसी काम कर रही है तो उसे बेनकाब किया जाए. ऐसा लगता है कि सुब्रमणयम स्वामी की बात में काफी सच्चाई है. पंजाब में हो रहे उन्माद के पीछे किसी सुनियोजित अभियान का पता चला है . अभी पश्चिम बंगाल मे हुए नन  रेप कांड,  दिल्ली और मुंबई में चर्चों  पर  हुए हमले द्वारा माहौल ख़राब करने के लिए केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया गया. लेकिन बड़े ताज्जुब की बात यह है केंद्र सरकार ने भी इन घटनाओं पर आ बहुत ज्यादा संज्ञान नहीं लिया और ना ही इन घटनाओं की तह तक जाने की कोशिश की गई ताकि उस अभियान की पोल  खोली जा सके और उसके पीछे छिपे व्यक्ति  की  पहचान की जा सके. अब समय आ गया है कि केंद्र सरकार को चाहिए भारत में इस तरह  चलने वाले किसी भी अभियान को रोका जाना चाहिए ताकि भारत के अच्छे कार्यो को दुनिया को बताया जा सके और  भारत में तीव्र गति से विकास हो सके . हिदुस्तान में रहने वाला हर व्यक्ति पहले हिन्दुस्तानी है चाहे वह किसी भी धर्म का क्यों न हो और हर हिन्दुस्तानी का फर्ज है कि वह सांप्रदायिक सौहार्द और भाई चारा बनाये रखे .
                                         ********  शिव प्रकाश मिश्रा **************


मंगलवार, 13 अक्टूबर 2015

साहित्य अकादमी पुरस्कार या राजनैतिक हथियार ..

नयनतारा सहगल जो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरु की भांजी है, ने कुछ समय पूर्व साहित्य अकादमी पुरस्कार यह कहते हुए वापस कर दिया था कि भारत में लिखने की आजादी नहीं बची है और धर्मनिरपेक्षता के प्रति असम्वेदनशीलता बढ़ती जा रही है. ऐसा उन्होंने हाल ही में उत्तर प्रदेश के दादरी गाँव में  गोमांस  के संदेह में  एक मुसलमान की हत्या होने के विरुद्ध में किया. उन्होंने  कहा के वर्तमान सरकार के शासन में लेखकों  के प्रति आक्रामकता  बढ़ती जा रही है और जिसके विरोध में  उन्होंने अपना पुरस्कार वापस करने का फैसला किया . देखते ही देखते कई कवि और साहित्यकारों ने अपने अपने पुरस्कार वापस कर दिए है.  इनमे से कन्नड़ लेखक अरविन्द बलगती का साहित्य अकादमी आम परिषद से इस्तीफा देना भी शामिल है. पंजाब के तीन तथाकथित सुप्रसिद्ध लेखकों ने भी  साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाने की घोषणा की है. गुरबचन भुल्लर,औलख, अजमेर सिंह, नयनतारा सहगल आत्मजीत सिंह, उदय प्रकाश और अशोक बाजपेई जैसे लेखकों ने भी पुरुस्कारों के वापस करने की घोषणा की है. इस  बीच साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा साहित्यिक संस्था अभिव्यक्ति  की स्वतंत्रता के पक्ष मे है और किसी भी लेखक के कलाकार पर आक्रमण या हमले की निंदा करती है .

यहां पर यह बात करना समोचित है कि यह पुरस्कार क्यों वापस किए जा रहे है ? पुरस्कार प्राप्त करने वाले कौन लोग है ? पुरस्कार किसे दिया जाता है ?और क्यों दिया जाता है ?

साहित्य अकादमी  एक स्वायत्तता संस्था  है और यह भारत की विभिन्न भाषाओं में उत्कृष्ट लेखन  के लिए मौलिक कार्य (किताब) पर दिया जाता है. वस्तुतः यह पुरस्कार रचना पर दिया जाता है और रचनाकार को सम्मानित किया जाता है. इस पुरस्कार की वर्तमान राशि एक लाख रुपए और प्रशस्ति पत्र है. जिन्होंने  ने यह पुरस्कार वापस किया है, अभी तक पता नहीं चला है कि उंन्होंने  पुरस्कार की धनराशि भी वापस की है या नहीं. अगर पुरस्कार की धनराशि वापस हुई है तो जिस समय यह पुरुस्कार  दिया गया था तब  से लेकर आज तक इस पर बैंक की ब्याज दर के हिसाब से पूरा व्याज  भी  अदा करना चाहिये . लेखकों को  यह भी बताना चाहिए कि जिस समय उन्हें यह  पुरस्कार दिया गया  था, क्या पहले उन्होंने  इस बात की सहमति सरकार को दी थी कि  अगर इस देश में कभी धार्मिक उन्माद फैलेगा या लेखकों  के प्रति अनादर होगा  तो वे  पुरस्कार वापस करेंगे. इस तरह के  ज्ञानी और बुद्धिमान साहित्यकारों से अब इस तरह की अपेक्षा नहीं की जा सकती. देश में जब तक सब कुछ आदर्श ढंग से चलेगा तब तक वह अपना पुरस्कार लिए रहेंगे. किन्तु  देश के सामने अगर कोई चुनौती आएगी तो वह अपना पुरस्कार वापस कर देंगे और केंद्र में जो भी सरकार होगी उसका विरोध करेंगे. ये कायरता है.

ऐसा लगता है कि इन पुरस्कार और वापस करने के पीछे एक तुच्छ राजनीति काम कर रही है और उस राजनीति के दुष्प्रभाव के कारण  यह पुरस्कार वापस किए जा रहे है जो किसी भी साहित्यकार के लिए सर्वथा अनुचित है. कहा तो यह जाता है कि साहित्यकार देश और समाज के लिए दर्पण का काम करते है ताकि उसमें  समाज और देश अपनी छवि देख कर अपने आप को व्यवस्थित करने की कोशिश करता रहे और साहित्यकार लेखक स्वतंत्र रूप  से अपना काम करते हुए सभी कुरीतियों और आलोकतान्त्रिक गतविधियों  के खिलाफ आवाज उठाते रहेंगे  और लोकतंत्र की रक्षा करेंगे. लेकिन आजकल ऐसे साहित्यकार भी पाए जाते  है जो स्वयं यह घोषणा करते है अगर अमुक  व्यक्ति प्रधानमंत्री बन जाएगा तो वह  देश छोड़ देंगे, अगर अमुक पार्टी की सरकार बन जाएगी तो देश छोड़ देंगे. पुरस्कार लौटाने वाले ज्यादातर लेखक  देश में  भगवा करण से बहुत परेशान है. कितनी विडंबना है कि इस समाज और देश का मार्गदर्शन करने वाले तथाकथित लेखक और साहित्यकार सिर्फ इस बात से परेशान है कि इस  देश में कौन सा राजनैतिक दल शासन करें और कौन सत्ता से  दूर रहें. यह कहना अनुचित  नहीं होगा कि  जितने भी लेखक है उनमे से ज्यादातर को पुरस्कार  अपने राजनीतिक संबंधो के कारण दिए गए थे और शायद यही कारण है कि वह अपने राजनीतिक संबंधो को महत्व देते हुए यह पुरस्कार वापस कर रहे है. इससे थोड़े समय के लिए ऐसा लग सकता है कि  केंद्र सरकार के विरुद्ध एक जनादेश बना है लेकिन इस बात का  बहुत जल्दी पता लग जाएगा कि  इसके पीछे कौन सा राजनैतिक दल है. क्या इसमें कहीं किसी व्यक्ति विशेष के प्रति और किसी राजनीतिक दल विशेष के प्रति उनका दुराग्रह है ? और इसके पीछे क्या कोई षड्यंत्र काम कर रहा है ? निश्चित रुप से इस बात की जांच की ही जानी चाहिए. ऐसी क्या बात  हो गई है जिनकी वजह से इन ज्ञानियों  को त्याग पत्र देना पड़ रहा है. क्या इस तरह के त्यागपत्र  लेखकों को किसी तरह की सुरक्षा दे पाएंगे ? और क्या उनके यह त्याग पत्र, देश में यदि कोई खराब वातावरण बन रहा है या साहित्यिक संस्थाओं का भगवा कारण हो रहा है, तो उसे रोकने में मदद मिलेगी ? कई प्रश्न है और यह जनमानस पूछ रहा है कि अभी कुछ समय पहले केरल मे एक प्रोफेसर के हाथ काट दिए गए थे और उनके ऊपर आरोप था कि उन्होंने  एक धर्म विशेष के खिलाफ लिखा हुआ था, तब ये महानुभाव कहाँ थे ?


 बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन, जिन्हें कट्टरपंथियों के दबाव में अपना देश छोड़ना  और  जो कोलकाता को अपना दूसरा घर मानती थी, लेकिन उन्हें कलकत्ता भी छोड़ कर जाना पड़ा.  उनके बीजा न बढ़ाने में तत्कालीन सरकार के ऊपर अत्यधिक दबाव बनाया गया और उन्हें कुछ समय के लिए भारत  भी छोड़ना पडा.  पता नहीं उस समय क्रांतिकारी विचारो वाले और लोकतंत्र के ये महान जननायक कहाँ  थे ? और लेखकों  के अधिकार के प्रति जागरुक ये साहित्यकार कहां थे ? जयपुर में हुए एक साहित्यिक सम्मेलन में सलमान रश्दी  को प्रवेश नहीं दिया जाता है, सिर्फ इसलिए प्रवेश नहीं दिया गया कि उन्होंने इस्लाम के विरुद्ध काफी लिखा है. उनकी किताब शैतानिक  वर्सेस पर भारत ने प्रतिबंध लगाया गया. भारत के किसी भी साहित्यकार ने  इस बात का विरोध नहीं किया.  किसी भी लेखक को किसी भी संस्थान के प्रति विरोध व्यक्त करने का अधिकार है लेकिन इनका प्रथम दायित्व है कि वह समाज के लिए ऐसा लिखे जिससे समाज और देश में रचनात्मक बदलाव आए और हमारी आने वाली पीढ़ियां इससे प्रेरणा लेकर आगे बढ़ें. जिससे  लोकतंत्र मजबूत हो और देश की विचारधारा प्रगतिशील बने. बजाय इसके लेखक अपने निजी स्वार्थ में लगे हुए है. इस तरह के कृत्य से किसी भी सरकार का न तो मनोबल गिराया जा सकता है, ना ही किसी भी देश का वातावरण समृद्ध किया जा सकता है और ना ही है ही देश में कोई विचारधारा का प्रसार किया जा सकता है. अगर किसी व्यक्तिगत कारण से किसी किसी व्यक्ति का या किसी विशेष राजनीतिक दल का  विरोध करना है तो अच्छा होगा कि ये साहित्यकार  राजनीति में प्रवेश करें और अगर उनमे  इतना आत्मविश्वास है कि वे इस  देश की दुर्दशा को दूर कर सकते है. इस देश में फ़ैली  तमाम बुराइयों को दूर कर सकते हैं और इस देश में बढ़ गई धार्मिक असहिष्णुता को खत्म कर सकते है. लेखको  को और अधिक आजादी दिला सकते है तो निश्चित रुप से उन्हें राजनेति करने चाहिए और सत्ता के शिखर पर पहुंच कर देश के लिए कुछ करना चाहिए. अगर वे राजनीति में नहीं आते है तो देख ही समझेगा कि वह किसी ने किसी राजनीतिक दल के इशारे पर यह काम कर रहें हैं जो बेहद शर्मनाक है.  जो पुरस्कार उन्हें  उनकी रचना पर दिया गया है उसे वह राजनीतिक  हथियार के रूप में इस्तेमाल न करें.
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- शिव प्रकाश मिश्रा 

गुरुवार, 7 मई 2015

न्याय निर्णय ~ देर, दुरुस्त और चुस्त

सलमान खान को मुंबई की सत्र न्यायलय ने पांच वर्ष की सश्रम कारावास  की सजा सुनायी है।  सजा सुनाने के तुरंत बाद हाईकोर्ट से उनकी जमानत भी हो गयी।  अब उनके पक्ष में कई नामी गिरामी हस्तियां आ गयी हैं और लगभग हर टीवी चैनल पर इसकी चर्चा हो रही है। सलमान के घर मिलने वालों का ताँता लगा है।  इनमे बालीबुड  की सभी प्रमुख हस्तिया और राजनैतिक लोग भी शामिल   हैं।  लोग सलमान के पक्ष में मीडिया में बेतुके बयान दे रहें हैं।   ऐसा लग रहा है जैसे पीड़ित सलमान हैं।

इस देश में कितने मुक़दमे लंबित हैं ?  कितने लोगों को न्याय का इन्तजार है और कितने लोग न्याय का इन्तजार करते करते परलोक चले गए ? शायद इसका आंकड़ा नहीं मिल सकता  सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि यदि आज के बाद सारे नए मुक़दमे रोक कर सिर्फ लंबित मुकदमों का निपटारा किया जाय तो कम से कम १००  साल लग सकते हैं ( एक मोटे अनुमान के अनुसार निचली अदालतों में दो करोड़,  हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ५० लाख मुक़दमे लंबित हैं )।  हिट  एंड रन नाम से प्रसिद्ध  इस मुक़दमे का निर्णय केवल १३ साल में हुआ (अभी सिर्फ  निचली अदालत से ) ये भी काफी संतोष जनक है। ये निर्णय सत्र न्यायाधीश  श्री देशपांडे ने दिया जिनका हाल में ही मुम्बई के बाहर स्थान्तरण हो चुका है।  सलमान खान बालीबुड के दबंग हैं बहुत पैसे वाले हैं।  उनके पिता श्री सलीम खान भी एक प्रतिष्ठित व्यक्ति हैं।  अगर अन्यथा दबाव न भी रहा हो तो भी न्यायाधीशों पर कितना  मानसिक दबाव रहा  होगा इसका अंदाजा लगाना आसान नहीं है।  फिर भी तेरह साल बाद ही सही... दुरुस्त निर्णय देना बहुत साहस का काम है और अत्यधिक स्वागत योग्य है।  ऐसे जज का नमन किया जाना चाहिए ।  स्वागत किया जाना चाहिए।  निर्णय ने सन्देश दिया है कि कानून की नजर में सभी बराबर है।  अपराधी को सजा तो मिलनी ही चाहिए चाहे वह कितना ही बड़ा क्यों न हो ।  लेकिन संम्भवता  एक छोटी सी  भूल मुझे नजर आती है कोर्ट ने माना है कि कार सलमान चला रहे थे तो फिर झूठी गवाही देने वाले अशोक सिंह जिसने कहा था कि कार वह चला रहा था , के विरुद्ध भी कार्यवाही की जानी चाहिए थी ताकि भविष्य में कोई इस तरह की गवाही देने की कोई हिम्मत न जुटा सके। 

हाई कोर्ट ने दो घंटे के अन्दर जमानत दे दी, ये निराशा जनक लगा। हाई कोर्ट का निर्णय जरूर ये सोचने को मजबूर करता है कि क्या सामान्य व्यक्ति के लिए भी इतनी तत्परता दिखाई जाती है ।  सामान्य तौर पर इतनी जल्दी जमानत नहीं मिलती और चुस्ती तो कभी दिखाई नहीं पड़ती। इससे सलमान के प्रसंसक तो खुश हुए किन्तु सामान्य जनता को बहुत अच्छा सन्देश नहीं गया।  न्याय सिर्फ होना ही नहीं चाहिए बल्कि ऐसा लगना भी चाहिए कि न्याय  हुआ है।   ऐसा लगता है कि सलमान को जमानत मिल ही जायेगी  और मीडिया में ऐसा माहौल भी बनाया जा रहा है। अगर ऐसा होता है तो अगले दस पंद्रह साल लग जायेंगे हाईकोर्ट में और फिर भी निर्णय नहीं बदलता है तो सुप्रीम कोर्ट।   कितने साल लगेंगे पता नहीं ?  सलमान आज ४९ साल के है और सुप्रीम कोर्ट से निर्णय होते होते ७५ - ८० साल के हो जायेंगे। जो मर गए वो तो चले गए लेकिन पांच परिवार उजड़ गए। उन्हें कोई मुवावजा भी नहीं मिला।

क्या सलमान जैसे लोगों के लिए अलग कानून  के जरूरत है ? अगर ऐसा है तो पूर्ण स्वराज और अच्छे दिन आने में अभी बहुत देर है। 
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                 - शिव प्रकाश मिश्र





सोमवार, 4 मई 2015

यात्रा वृतांत ~ श्री हरिहरेश्वर , देवघर , रायगढ़ महाराष्ट्र

 श्री हरिहरेश्वर  को दक्षिण का काशी कहा जाता है।  ये रायगढ़ जिले की देवघर तैह्सील के अंतर्गत स्थिति है।  ये चारो तरफ से चार पहाड़ो   हरिहरेश्वर, हर्शिनाचल ,  ब्रह्माद्री और पुश्पाद्री  से घिरा है।  अरब सागर के किनारे को छूते हुए सिरे पर श्री हरिहरेश्वर  यानी भगवांन  शंकर का मंदिर स्थित है। पास ही भैरव नाथ जी का मंदिर है ये मंदिर १८वी शताब्दी में बनाये गए थे . 

 पश्चिमी घाट यों ही बहुत मनमोहक हरेभरे क्षेत्रो से भरा पड़ा है, पर  पहाड़ों से घिरी हरी भरी घाटियों और सुंदर बीचों वाला ये  क्षेत्र  बहुत खूबसूरत है  और  इसलिए इस इलाके को देवभूमि कहा जाता है। पहाड़ियों से होकर गुजरने वाले रास्ते बेहद हरेभरे और खूबसूरत है।  बर्षात के दिनों में  कई झरने , रास्ते में आपका स्वागत करते मिल जायेंगे। सावित्री नदी यहाँ अरब सागर से मिलती है . 

राय गढ़  क्षत्र पति शिवाजी महाराज का जन्म और कार्य भूमि  है।   हरिहरेश्वर मंदिर  जिस जगह स्थिति है उस गाँव का नाम भी  हरिहरेश्वर गाँव है।  मंदिर का रखरखाव एक ट्रस्ट करता है जिसे उस गाँव के सरदार ने दान में दे दी थी।  आज यहाँ बहुत से रिसोर्ट और होटल हैं और यहाँ के सुंदर बीच आकर्षण का केंद्र हैं।  मुम्बई से लगभग २०० किमी स्थिति इस स्थान पर सप्ताहांत पुण्य लाभार्थियों के अलावा भी बड़ी संख्या में लोग आते हैं।  कोंकण क्षेत्र का महत्व् पूर्ण टूरिस्ट स्पॉट है।





ये है मंदिर का बहार से दिखने वाला स्वरूप . मंदिर जैसे पहाड़ो पर परम्परागत रूप से बनाया जाता है . मंदिर के सामने एक बड़ा सा हाल है जो यात्रियों के ठहरने और धुप से बचने के लिए है .








मंदिर के अन्दर का द्रश्य 

















कैम्पस में स्थिति श्री हनुमान मंदिर






 श्री हनुमान मंदिर के अन्दर का द्रश्य



 बीच के मनोरम द्रश्य

















बीच के पास रिसोर्ट के कोटेज





बीच में तांगा चलाने वाले व्यक्ति का बेटा शनी जिसे जब पता चल कि उसकी फोटो खींची जायेगी तो वह बहुत खुश हुआ 
 और तांगा चलाने वाले व्यक्ति को मालूम हुआ तो वह भी खुशी खुशी फोटो खिचवाने के लिए तैयार हो गया .
 शनी को सेल्फी के बारे बताया गया तो बहुत खुश हुआ और जानकारी हेतु उत्सुकता दिखाता हुआ








पहाड़ के ऊपर से नीचे समुद्र तक जाने का रास्ता 








                                                                          बीच का एक विडियो


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                                                       -   शिव प्रकाश मिश्रा 

शुक्रवार, 1 मई 2015

संसद का दुरूपयोग

एक तथा कथित गांधीवादी नेता जी ने राज्यसभा में ये कह कर हंगामा खड़ा कर दिया कि पतंजलि योग पीठ की एक दवा पुत्र पैदा करने के लिए बेची जा रही है।  ये गैर कानूनी और असवैधानिक है।  उन्होंने कहा कि ये दवा हरियाणा में बेची जा रही है। उनका साथ स्वाभाविक रूप से सभी विपक्षी पार्टियों ने दिया।  हरियाणा में इसलिए क्योकि स्वामी रामदेव को हरियाणा सरकार ने अपना  ब्रांड अम्बेसडर बनाया है।  सरकार द्वारा उन्हें कैबिनेट मंत्री का दर्जा भी दिया गया था जिसे स्वामी रामदेव ने  अस्वीकार कर दिया था। इससे पहले वे पद्म विभूषण का पुरुष्कार भी अस्वीकार कर चुके हैं।  ये दो बहुत अच्छे काम हैं जो हाल में उन्होंने किये हैं।

स्वामी रामदेव ने  योग का  प्रचार प्रसार करके  लोगो में योग अपनाने की जिज्ञासा पैदा की और आज आप देश में कहीं भी जाएँ पार्कों में योग करते हुए लोग मिल जायेंगे।  बहुतायत घरों में आज योग करने वाले हैं।  लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता ने बिना किसी औषधि के स्वस्थ्य  रहने की लालसा पैदा कर दी है।  ऐसा नहीं कि योग का बाबा रामदेव ने  आविष्कार किया है पर योग के प्रति इतना समपर्ण इससे पहले किसी ने नहीं किया। लोगो को इसका फायदा हुआ है।  मुझे इसका फायदा हुआ है। अगर निष्पक्ष रूप से देखा जाय तो समूचे हिंदुस्तान को उनका अहसान मंद होना चाहिए। ज्यादातर लोग ऐसा मानते भी हैं और ऐसा मानने वाले उनके अंध भक्त नहीं है।  ज्यादातर लोग ऐसे है जिन्होंने सिर्फ टीवी पर उनके प्रोग्राम देख कर योग करना सीखा और अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाया।  इससे देश को बीमारियों पर होने वाले खर्च में कितनी बचत हुई है इसका आंकड़ा नहीं जुटाया गया है पर हर व्यक्ति को इसका हिसाब लगाना ही चाहिए कि योग ने उसके परिवार की कितनी आर्थिक बचत की है।  शायद तभी हम सब समझ सकेंगे कि देश की कितनी बचत हुई है।  निश्चित रूप से ये धनराशि बहुत बड़ी है। जितनी बड़ी राशि है उतना ही बड़ा किसी का नुक्सान भी है।   बाबा रामदेव ने दूसरा सबसे बड़ा काम किया है आयर्वेद की दवाये बना कर और आयुर्वेद का प्रचार और प्रसार करके।  ये बताने की आवश्यकता नहीं कि आयुर्वेद की दवाये बिना किसी अतरिक्त साइड इफेक्ट के लाभ पहुँचाती हैं।  दिव्य फार्मेसी की बनी दबायें कम कीमत की हैं और इससे दूसरी कंपनियों की दवाओं के दाम भी गिरे है जो पहले बहुत महंगी हुआ करती थीं. इसका दूसरा पहलू है जडी बूटियों के उगाने और उनके प्रोसिसिंग से सामान्य जन को मिलने वाले रोजगार से।   अभी इसमें और अधिक संभावनाएं हैं जिनका दोहन किया जाना बाकी है। 

स्वामी रामदेव के इन प्रयासों ने जहाँ उन्हें सामान्य जन का हीरो बना दिया वही एक बड़ा वर्ग उनसे सख्त नाराज है जो आर्थिक रूप से प्रभावित हुए है।  इनमे द्बाइयां बनाने वाली कंपनियों से लेकर कोल्ड ड्रिंक और जंक फ़ूड बेचने वाले शामिल हैं।  कुछ लोग धार्मिक आधार पर योग के विरुद्ध है और इनके वोट बैंक के स्वयंभू ठेकेदार भी  इसी वजह से नाराज है।  ये सारा गठजोड़ हमेशा इस कोशिश में रहता है कि उन्हें कुछ मिले तो अपनी तलवार भांज  कर  इन सबकी हमदर्दी हाशिल कर लें।  कुछ को ये सुर्ख़ियों में आने का अच्छा नुस्खा लगता है।  कुछ राजनैतिक दल तो उनसे खासे नाराज रहते हैं जिनकी वजहें जग जाहिर हैं।   
 
दिव्य पुत्र जीवक बीज औषधि  जो सुर्ख़ियों में है, वस्तुत: infertility  की दवा है जो पुरुष और महिलाओं दोनों की दी जाती है इसकी कीमत केवल रु ३५ है।  जाहिर है अगर इसका उद्देश्य रूपया कमाना होता तो ये दबा बहुत महंगी होती।  फिरभी हो सकता कुछ दवा विक्रेता   कुछ भ्रम फैला कर बेचते हों।   पतंजलि योगपीठ की वेबसाइट पर दी गई दवाओं की लिस्ट देखने पता चलता है कि यह दवा अभी भी बेची जा रही है।  दवा के एक पैकेट की कीमत 35 रुपये है, हालांकि इस दवा पर कहीं भी ऐसा कुछ नहीं लिखा है जिससे यह कहा जा सके कि यह बेटा पैदा होने के लिए दी जाने वाली दवा है। दिव्य फार्मेंसी की साइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक यह दवा प्रसव संबंधी समस्याओं और इन्फर्टिलिटी के लिए है। बाबा रामदेव को हरियाणा का ब्रांड एम्बेसडर बनाए जाने के बाद भी यह मुद्दा सोशल साइट्स पर चर्चा पर आया था। इस मामले में संस्थान के फाउंडर सदस्य आचार्य बाल कृष्‍ण को अपनी फेसबुक वॉल पर इस मामले में सफाई देनी पड़ी थी । बालकृष्ण ने कहा था कि विदेशी कंपनियां बाबा रामदेव की जड़ीबूटियों को बदनाम करने के लिए एक मुहिम चला रही हैं। यह जड़ी महिलाओं में बांझपन दूर करने के लिए है। खास बात यह है कि दवा का नाम पुत्र जीवक बीज नाम की इस दवा को लेकर दिव्य फार्मेसी ने ऐसा कोई दावा नहीं किया है कि इसके सेवन से पुत्र ही पैदा होगा। इससे पहले भी पतंजलि योगपीठ में ' पुत्रवती ' नामक दवा बेचने को लेकर काफी विवाद हो चुका है और 2007 में इस मामले की जांच भी की गई थी और कुछ भी अन्यथा नहीं पाया गया था।  जाँच भी उत्तराखंड सरकार  ने की थी जो पहले भी अन्य कारणों से बाबा के पीछे पडी हुई थी। तत्कालीन केंद्र सरकार  ने तो अनेक बड़े घोटाले छोड़ कर पतंजलि पीठ की जाँच शुरू कर दी थी।  पासपोर्ट और अन्य कारणों से बालकृष्ण को गिरफ्तार कर लिया गया था।  बाबा रामदेव के उत्पाद विश्व भर में तहलका मचा रहे हैं लेकिन कुछ हिन्दुस्तानी  कुछ स्वार्थी लोगो के इशारों पर  बाबा रामदेव के नाम पर देश का बेडा गर्क कर रहें हैं. टीवी , रेडियो और समाचार पत्रों में आयी सुर्ख़ियों से उनके मंसूबे पूरे होते है, क्यों कि बड़ी कंपनिया जो तमाम पैसा खर्च कर मीडिया में जगह नहीं पा  पाती इन नेताओं पर थोडा सा उपकार कर ये काम पूरा कर लेती हैं। 

दवाई का नाम ( दिव्य पुत्र जीवक बीज) बेहद भ्रामक है और ऐसा संदेश देता है कि इससे पुत्र पैदा होगा, हालांकि दवा के पैकेट पर इस बात का दावा नहीं किया जा रहा है, दिव्या फमेसी को चाहिए कि इसका नाम बदले और अगर ऐसी और भी कोई दवा है तो उसके नाम में कोई संसय न हो।
 
इन तथा कथित गांधीवादी नेता ( पता नहीं सोनिया गांधीवादी या राहुल गांधीवादी ) का उद्देश्य  प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के  बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की हवा निकालना और उन्हें घेरना है।  इन तथाकथित नेताओं ने देश का बहुत अहित किया है इनसे बहुत सावधान रहने की आवश्यकता है। 
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-शिव प्रकाश मिश्र

शनिवार, 25 अप्रैल 2015

संसार के सौ शीर्ष विश्वविद्यालयों में भारत का कोई भी नहीं .....

प्रतिष्ठित टाइम्स अखबार की  हायर एजुकेशन मैगज़ीन ने अभी हाल  ही में संसार के ऐसे सौ सर्वश्रेष्ठ  विश्वविद्यालयों की सूची बनाई जिनकी स्थापना ५० वर्ष के भीतर हुई है . दुर्भाग्य से भारत का कोई भी विश्वविद्यालय इस सूची में स्थान नहीं पा सका। ये बड़ी हैरानी की बात है परंतु इसका अर्थ ये नहीं है की सूची बनाने में  भारत के साथ कोई भेदभाव किया गया . इसमें २८ देशो के विश्वविद्यालय शामिल हैं किन्तु भारत के अलावा चीन और रूस का नाम भी गायब है .
 
 समूचे विश्व में हाल  के वर्षों में पढाई  के तौर तरीको और स्तर  में बहुत अंतर आया है  तुलनात्मक रूप से छोटे छोटे देशो ने अध्ययन अध्यापन के क्षेत्र में उत्कृष्टता हासिल की है हमारा देश  बी टी सी और बी ऐड जैसे कोर्सों के साथ संघर्ष रत है  और प्राइमरी शिक्षा सुधारने  हेतु फैक्ट्री मॉडल पर शिक्षक उत्पन्न कर रहा है . प्राइमरी शिक्षा की दशा सुधरने की बजाय दिन प्रति दिन बिगडती जा रही है . स्वयं शिक्षको की माने तो उन्हें मुफ्त के तनख्वाह मिल रही है और घर के पास पोस्टिंग  . उनके पास अगर जन गणना  , चुनाव , मतदाता सूची निर्माण जैसे कार्य यदि न हों तो  वे निश्कोच कह सकते है की उनके पास कोई भी काम नहीं है . इस स्थिति ने प्राइमरी अध्यापक की नौकरी के लिए इतना अधिक आकर्षण पैदा कर दिया है कि  बी टेक , एम् टेक , एम् बी ए  आदि  बड़ी संख्या में  युवक इस अध्यापन की भीड़ में शामिल हो रहे हैं .
 
कोई भी विश्वविद्यालय या इंजीनियरिंग कॉलेज भारत में ऐसा नहीं है जहाँ के डिग्री धारको को कोई कंपनी नियुक्त करके सीधे या सामान्य  ट्रेनिंग करवा कर  काम पर लगा सके . उन्हें लम्बी ट्रेनिंग देनी होती है . यह प्रदर्शित करता है की उद्योग और विश्वविद्यालयों में कोई समन्वय नहीं है  मैकाले की शिक्षा  पद्धति को हम चाहे कितना भी दोष क्यों न दें  किन्तु  नए ज़माने की प्रोफेशनल कोर्सेज भी मैकाले की रह पर चल निकले हैं . शिक्षा के निजीकरण से ज्यादातर देशों में शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार  हुआ है . शायद भारत इसका अपवाद है जहाँ  निजीकरण से इस क्षेत्र को सिर्फ उद्योग धंधे की तरह चलाया जा  रहा है  बिना किसी क्वालिटी कण्ट्रोल के  इसमें निरंतर गिरावट होती जा रही है .
 
कालेजो और विश्वविद्यालयों से डिग्री लेने के बाद शायद ही कोई अत्यंत मेधावी छात्र  हो जो बिना कोचिंग के कोई भी  प्रतियोगिता  पास कर सके . चाहे  ये  प्रतियोगिता किसी नैकरी के लिए हो या फिर किसी दूसरे कोर्स में प्रवेश के लिए हो . इसी कारण कोचिंग व्यवसाय ने समान्तर बड़े उद्योग का रूप धारण कर लिया है . इससे निजात पाने का कोई साधारण तरीका ढूदना बहुत मुश्किल है .
 
कुछ विश्वविद्यालयो ने बी ए , बी कॉम  जैसी साधारण डिग्रियों के लिए ४ साल का समय कर दिया है . इसके पक्ष विपक्ष में बहुत तर्क दिए जा रहे हैं  परन्तु ये समय की बर्बादी के अतरिक्त और कुछ नहीं है . अभी बहुत वर्ष नहीं हुए जब इसका समय २ से बढ़ा कर ३ वर्ष किया गया था। इस २ साल की डिग्री करके बहुत से लोग वैज्ञानिक , प्रशासन  और प्रबंधन के उच्च पदों पर उत्कृष्टता से काम  कर रहे हैं .
 
खैर , भारत का कोई भी विश्वविद्यालय  इन सौ शीर्ष विश्वविद्यालयों की सूची में क्यों नहीं आ पाया ? ये विचारणीय विषय है . संभवता निम्न  मुख्य कारण  है .
 
- विश्वविद्यालयो की कमजोर आर्थिक स्थित 
- पाठ्यक्रम में कमी 
- शिक्षण की गुणवत्ता में कमी 
- अनुशासन का अभाव  
-शिक्षको की क्षमता  और संख्या में कमी 
-मूलभूत सुविधाओं का अभाव 
-व्योहारिकता का अभाव  
-समय के साथ बदलाव का अभाव 
-उपयोगिता  और रोजगार पूरकता का अभाव 
 
 
टाइम्स मागज़ीन द्वारा प्रकाशित सूची  निम्नवत है .
 

THE 100 Under 50 universities 2012

1
Republic of Korea
71.8
2
Switzerland
66.2
3
Hong Kong
63.0
4
United States
60.0
5
Republic of Korea
58.6
6
France
56.3
7
United States
56.0
8
United Kingdom
55.7
9
United Kingdom
53.6
10
United Kingdom
51.0
11
United States
48.7
12
Hong Kong
48.5
13
United Kingdom
48.1
14
Germany
47.7
15
France
46.8
16
Singapore
46.0
17
Spain
45.7
18
Hong Kong
45.5
19
Netherlands
44.9
20
United Kingdom
44.7
21
United States
44.6
22
Germany
43.3
23
Sweden
42.1
24
Spain
41.7
25
Italy
41.1
26
Germany
40.7
27
Sweden
40.6
28
Canada
40.4
29
United States
40.3
30
Canada
40.0
30
Taiwan
40.0
32
Turkey
38.9
33
Australia
38.5
33
Australia
38.5
35
United Kingdom
38.4
36
Denmark
37.8
37
Italy
37.5
37
United Kingdom
37.5
39
Japan
37.1
40
Australia
37.0
41
Austria
36.8
42
Germany
36.5
43
Norway
36.2
44
Brazil
35.9
45
Australia
35.8
46
France
35.4
46
Hong Kong
35.4
48
Australia
35.3
49
Spain
34.9
50
Greece
34.5
50
United Kingdom
34.5
50
Canada
34.5
53
United States
34.4
54
Finland
34.3
55
Taiwan
33.5
56
United Kingdom
33.4
57
United States
33.0
58
New Zealand
32.4
59
Sweden
32.3
60
United Kingdom
32.2
61
United Kingdom
31.9
62
United Kingdom
31.1
63
United States
30.8
64
Republic of Ireland
30.1
65
Australia
29.9
66
Portugal
29.8
67
Denmark
29.7
68
Iran
29.2
69
United Kingdom
27.9
70
Taiwan
27.8
71
United Kingdom
27.7
72
United Kingdom
27.6
72
United Kingdom
27.6
74
Spain
27.1
75
France
26.6
75
Australia
26.6
77
New Zealand
26.4
78
Australia
26.1
78
Australia
26.1
80
United Kingdom
25.9
81
Australia
25.1
81
Australia
25.1
83
United Kingdom
24.9
84
United States
24.7
85
Portugal
24.6
86
Ireland
23.9
86
Spain
23.9
88
Australia
23.4
89
Taiwan
23.3
90
United Kingdom
22.9
91
Canada
22.6
92
United Kingdom
22.4
93
Australia
22.1
94
Saudi Arabia
21.8
95
Taiwan
21.7
96
Egypt
21.0
97
Ireland
20.3
98
Malaysia
20.0
99
Brazil
19.9
100
Australia
19.8
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                                                                                           - शिव प्रकाश मिश्रा 
     हमारा                                                                                      http://shivemishra.blogspot.com
 

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