शनिवार, 19 जुलाई 2025

कांवड़ यात्रा पर आतंकी हमला ?

 


कांवड़ यात्रा पर आतंकी हमला ?


हिंदुओं की इस भूमि पर हिंदुओं का ही जीना दूभर हो जाए और वे अपने पर्व त्यौहार भी श्रद्धा और भक्ति के साथ शांति पूर्वक न मना सकें, इससे बड़ा दुर्भाग्य हिंदुओं का और इस देश का, नहीं हो सकता. हिन्दुओं की कोई भी धार्मिक शोभायात्रा ऐसी ही नहीं होती जिसमें व्यवधान न डाला जाता हो. अगर शोभा यात्रा के रास्ते में कोई मस्जिद पड़ रही हो तो इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि उसमें व्यवधान डालने की पहले से ही तैयारी कर ली जाती है. कभी कभी डीजे की तेज आवाज, तो कभी किसी अन्य झूठे कारणों से पत्थरबाजी और सांप्रदायिक संघर्ष शुरू कर दिया जाता है. सबसे दुखद स्थिति यह होती है कि सभी राजनैतिक दल मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ मिलकर हिंदुओं को कटघरे में खड़ा कर देते हैं. सनातन धर्म पर लांछन लगाए जाते हैं और मानसिक रूप से हिंदुओं को इतना प्रताड़ित करने की कोशिश की जाती है कि अगली बार से वे इस तरह की शोभा यात्रियों का हिस्सा न बने. पश्चिम बंगाल केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में तो हिंदू तीज त्योहारों की शोभा यात्रायें सुरक्षित रूप से निकालना असंभव है. पहले तो राज्य सरकारे ही उस पर प्रतिबंध लगा देती हैं और अगर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद शोभा यात्राएं निकलती भी है तो उन पर सुनियोजित रूप से हमले किए जाना सामान्य बात हो गई है. इस सब का दूरगामी परिणाम यह हुआ कि चूंकि इन राज्यों में सनातन धर्म को नष्ट करने के जेहादी प्रयासों को सरकारी संरक्षण प्राप्त हो जाता है, इसलिए अधिकांश हिंदू सार्वजनिक रूप से मनाए जाने वाले आयोजनों से विमुख होता जा रहा है. पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी प्रमुख हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया है. पाक अधिकृत कश्मीर की शारदा पीठ पूरी तरह से नष्ट कर दी गई है. जम्मू-कश्मीर में भी स्थिति बहुत अलग नहीं है. साल में एक बार पड़ने वाली अमरनाथ यात्रा तमाम सरकारी प्रयासों के बाद भी डर के माहौल में ही संपन्न होती है. यही हाल वैष्णो देवी यात्रा का भी है. कुछ अंतराल पर कोई न कोई घटना घटती रहती है जो हिंदू तीर्थयात्रियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है और सुरक्षा कारणों से बड़ी संख्या में लोग इन तीर्थयात्रियों में चाहते हुए भी नहीं जाते यद्दपि ये यात्राये मुसलमानों की रोजी रोटी से जुडी हैं.

पिछले कुछ वर्षों से कांवड़यात्रा मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर है. कांवड़ यात्रियों की श्रद्धा-भक्ति में शारीरिक तथा मानसिक स्वच्छता, शुद्ध और सात्विक भोजन, संयमित, नशामुक्त एवं ब्रह्मचर्य पालन का विशेष महत्त्व है. कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले कई भोजनालय, ढाबे और खाद्य पदार्थों की दुकानें मुस्लिम समुदाय के लोग छद्म हिन्दू नाम, और देवी देवताओं के नाम से खोलते हैं. अतीत में ऐसी शिकायतें मिलती रही है कि कि छद्म नाम के इन भोजनालयों के भोजन और खाद्य पदार्थों में मल, मूत्र और थूंक मिलाकर कांवड़ियों की श्रद्धा और भक्ति के साथ खिलवाड़ किया जाता है. मुस्लिम तुष्टीकरण में लिप्त सरकारों ने इन शिकायतों पर कभी कोई संज्ञान नहीं लिया जिससे ऐसे हिंदू विरोधी अराजक तत्वों का मनोबल बढ़ता रहा. इस समस्या के समाधान के लिए पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग में पड़ने वाले दुकानदारों के लिए दिशा निर्देश जारी किए थे जिसके अंतर्गत प्रत्येक दुकानदार को अपना नाम तथा मोबाइल नंबर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया जाना था लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों, जो हिंदुओं से व्यापार करके फायदा तो कमाना चाहते हैं लेकिन धोखा जिहाद से धर्म भी भ्रष्ट करना चाहते हैं, को ये रास नहीं आया. इसलिए कट्टरपंथी मुल्लाओं, मौलानाओं के माध्यम से विरोध किया गया, जिससे राजनीतिक दल इनके साथ खड़े हो गए. देश तथा हिन्दू विरोधियों एवं आतंकवादियों के लिए मुफ्त वकालत करने वाले कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कुख्यात वकील सर्वोच्च न्यायालय पहुँच गए और सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखते हुए हिंदुओं की श्रद्धा भक्ति और धार्मिकता को नजरंदाज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर उस समय तक के लिए रोक लगा दी जब तक इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता और अंतिम फ़ैसला ठंडे बस्ते में है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पहचान उजागर करने के लिए विवश नहीं किया जा सकता. इसके कुछ दिन बाद ही मुंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई के एक नामी स्कूल द्वारा छात्राओं के हिजाब और बुर्का पहनकर आने पर लगाए गए प्रतिबंध को अनुचित और गैरकानूनी घोषित करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पहचान छिपाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता. इसका सीधा मतलब है कि अगर मामला मुस्लिम समुदाय का है तो किसी न किसी तरह न्यायोचित ठहरा कर फैसला मुस्लिम समुदाय के पक्ष में ही जाएगा.

इस बार भी उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग वैसे ही दिशानिर्देश जारी किए हैं लेकिन पुलिस या सम्बंधित विभागों द्वारा अभी तक सतर्कता जांच शुरू नहीं की गई है. एक योगाश्रम के स्वामी यशवीर महाराज ने देखा कि दिल्ली देहरादून राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित एक भोजनालय का नाम “पंडित जी वैष्णो भोजनालय” है लेकिन ढाबे पर लगे बारकोड को स्कैन करने से पता चला कि इसका मालिक सनुव्वर नाम का एक मुस्लिम है और उसके कर्मचारी भी मुस्लिम हैं, जिन्होंने अपना आधार कार्ड दिखाने से मना कर दिया. एक मुस्लिम कर्मचारी ने बताया कि उसका नाम तज्ज्मुल है लेकिन ढाबा मालिक ने नाम बदल कर गोपाल रख दिया और उसके हाथ में कड़ा पहना दिया गया था ताकि वह हिन्दू दिखाई पड़े. उसे कलावा भी पहनने को कहा गया था. स्पष्ट है कि एक मुस्लिम द्वारा अपने ढाबे का नाम पंडित जी वैष्णव भोजनालय रखना कांवड़ियों और अन्य हिदुओं को आकर्षित करने का व्यापारिक प्रयास तो है लेकिन यह सीधे तौर पर ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी का मामला है, हिन्दुओं की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाला भी है. ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मालिको और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देशों की सार्थकता स्वयं सिद्ध हो जाती है और सर्वोच्च न्यायलय के स्थगन आदेश पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है.

धोखाधड़ी का यह मामला सामने आने के बाद मुस्लिम तुष्टीकरण में डूबे राजनीतिक दल हाय तौबा करने लगे. राहुल की कांग्रेस और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में प्रतियोगिता हो गई कि हिंदुओं और सनातन धर्म को कौन अधिक लांछित और अपमानित कर सकता है. जहाँ समाजवादी पार्टी के एक मुस्लिम संसद ने स्वामी यशवीर को आतंकवादी बताते हुए उनकी तुलना पहलगाम में धर्म पूंछ कर हत्या करने वाले आतंकवादियों से की, वहीं दिग्विजय सिंह ने कांवड़ यात्राः को मुस्लिम समुदाय को आतंकित और प्रताड़ित करने का जरिया बताया. उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कांवड़ यात्रा और उप्र सरकार के दिशा निर्देशों को मुस्लिम विरोधी और ध्रुवीकरण का भाजपा का एजेंडा बताया. कांग्रेस और सपा के नेता मीडिया में खुले तौर मुस्लिम समुदाय का पक्ष लेते हुए कुतर्क गढ़ रहे हैं और सनातन धर्म को अपमानित कर रहे हैं. कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू होनी है इसलिए इस बात की भी संभावना है कि यह मामला फिर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचेगा और सर्वोच्च न्यायालय एक बार फिर समुदाय विशेष के पक्ष में निर्णय देकर अपनी धर्मनिरपेक्षता और न्यायप्रियता को सर्वश्रेष्ठ ठहराने में पीछे नहीं हटेगा.

राजनैतिक और न्यायिक कुतर्कों के परिपेक्ष में देखा जाए तो मुसलमान हालाल उत्पादों के प्रयोग को धार्मिक अधिकार मानते हैं, चाहे वह मांस हो या अन्य सामान. भारत में मांस से लेकर आटा दाल, चावल, कपड़े, गहने, सौंदर्य प्रसाधन के सामान हलाल मिलने लगे है. अब तो हलाल फ्लैट, विला और मकान भी बनने लगे है. इसका सीधा मतलब भारत में मुस्लिमो के लिए अलग इस्लामिक अर्थव्यवस्था बनाना है. जिसका उद्देश्य छल, कपट, जोर-जबरदस्ती, कानूनी और संवैधानिक जामा पहनाकर हलाल उत्पाद अन्य धार्मिक समुदायों पर थोपना और मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर अन्य धार्मिक समुदायों द्वारा बनाये हुए गैर हलाल उत्पादों को खरीदने से रोकना है.

इस तरह की षड्यंत्रकारी नीति का उद्देश्य दूसरे धार्मिक समुदायों को व्यापारिक रूप से बहिष्कृत कर आर्थिक रूप से कमजोर करना है. इससे सबसे अधिक प्रभावित गरीब तबके के लोग होते हैं. कुछ दशक पहले तक भारतीय वर्ण व्यवस्था रोजगार पूरक थी जिसके हर क्षेत्र में विशेषज्ञ थे, लोहार, बढ़ई, मोची, माली, तेली, कुम्हार, कंहार, निषाद, हलवाई, बनिया, काछी (शब्जी वाला), कुंजड़ा (फलवाला), नाई आदि. आज इन सभी क्षेत्रों से मुस्लिम समुदाय ने हिन्दुओं को बाहर कर दिया है. मुस्लिमों ने भारत के इन आधारभूत व्यवसायों पर एकाधिकार कर लिया है. इन कामो से बेदखल होकर हिन्दू अब जाति प्रमाणपत्र लेकर सरकारी नौकरी के लालच में आजीवन बेरोजगार बने रहते हैं. एक मात्र बचे छोटे छोटे ढाबों और भोजनालयों के व्यवसाय पर भी अब मुसलमानों द्वारा कब्जा किया जा रहा है. मुम्बई से अहमदाबाद और दिल्ली से जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर हिन्दू देवी दवताओं के नाम से, मुस्लिम समुदाय के लोग ढाबे चला रहे हैं. हरद्वार और ऋषिकेश में अनेक मुस्लिम फर्जी हिन्दू नामों से होटल, ढाबे और पूजा प्रसाद आदि की दुकाने चला रहे हैं. कांवड़ के समय तो मामला केवल सुर्ख़ियों में आता है. अनेक ऐसे मामले सामने आये हैं , जिनके विडियो सोशल मीडिया में उपलब्ध हैं, जिसमें मुस्लिम मल मूत्र और थूंक मिला कर खाद्य पदार्थ हिन्दुओं को बेंचते पाए गए. हिन्दू सहित भला किसी भी अन्य व्यक्ति को ऐसे अशुद्ध और प्रदूषित खाद्य पदार्थ खरीदने के लिए मजबूर कैसे किया जा सकता है.

~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~

गजवा ए हिन्द अब आपके दरवाजे पर

 


झांगुर बाबा का अनोखा लव जिहाद जहाँ हिन्दू लड़कियों की लगती थी बोली || सभी का इल्म शामिल है गज़वा-ए-हिंद में


झांगुर बाबा उर्फ जलालुद्दीन को उप्र एटीएस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद कई बड़े खुलासे हो रहे हैं, लेकिन सारांश है, “विदेशों से मिली भारी भरकम धनराशि का उपयोग करके हिंदू युवतियों का धर्मांतरण करना”, जिसका उद्देश्य है भारत को जल्द से जल्द इस्लामिक राष्ट्र बनाना. भारत में रहने वाले अधिकांश मुसलमानों का सपना भी यही है, भले ही कुछ लोग भाईचारा, गंगा जमुनी तहज़ीब और देश के स्वतंत्रता आंदोलन में मुसलमानों की भूमिका का बखान करके अपने अपराध को ढकने का प्रयास करें, जिसके लिए कुख्यात अंतर्राष्ट्रीय जुमले बनाए गए हैं, जिनका उपयोग भारत के अलावा उन सभी देशों में किया जा रहा है जिन्हें निकट भविष्य में इस्लामिक राष्ट्र बनाए जाने की योजना है. इनमे अमेरिका के कुछ राज्यों सहित यूरोप के कई देश शामिल है. इनका उपयोग उन देशों में भी किया गया था जो आज इस्लामिक राष्ट्र हैं. उदाहरण के लिए, “चंद भटके लोगों के कारण पूरी मुस्लिम कौम को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए”, “इस्लाम शांति और भाई चारे का संदेश देता है”, “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता”, “दूसरे धर्मस्थलों को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई जाती”, “जबरन धर्मांतरण की इस्लाम में मनाही है” आदि.

भारत की पवित्र देवभूमि को गज़वा-ए-हिंद के माध्यम से इस्लामिक राष्ट्र बनाने की योजना इस्लाम के उदय होने के ठीक बाद ही बन गई थी. इस कारण भारत पर अनेक इस्लामिक आक्रान्ताओं द्वारा आक्रमण किए गए और सल्तनत भी कायम की गई लेकिन अथक कोशिशों के बाद भी भारत को इस्लामिक राष्ट्र नहीं बनाया जा सका. कुछ हद तक इसका श्रेय अंग्रेजों को भी जाता है, जिन्होंने सभी इस्लामिक शासकों को अपने आधीन कर लिया था. गज़वा ए हिंद की योजना पर पानी फिर जाने के कारण भारत के मुसलमानों ने मुस्लिम देशों, कट्टरपंथियों और जिहादियों के सहयोग से अंग्रेजी शासन में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके हिंदुओं के विरुद्ध भयानक रक्तपात शुरू कर दिया था और इसका उपयोग जबरन धर्मांतरण के लिए भी किया गया था. गाँधी, नेहरू सहित कांग्रेस के कई नेता देश के लिए अभिशाप बन गए जिन्होंने मुस्लिम तुष्टीकरण के आगे नतमस्तक होते हुए धर्म के आधार पर देश का बंटवारा स्वीकार किया और पाकिस्तान बना कर गज़वा-ए-हिंद की योजना को सफल करने में भरपूर सहयोग किया. देश के विभाजन के बाद सत्ता पर काबिज नेहरू ने मुस्लिम तुष्टिकरण के माध्यम से आजीवन गज़वा-ए-हिंद के लिए ही काम किया. जिसे उनकी पीढ़ियों ने भी, न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि देश में ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि आज हर राजनीतिक दल मुस्लिम तुष्टिकरण की कोई भी सीमा लांघने को तैयार हैं. इसी कारण अनेक झांगुर बाबा किसी न किसी भी देश में पूरे देश में सक्रिय हैं.

आसपास के गांवों में साइकिल पर फेरी लगाकर अंगूठी और नग बेचने वाला जलालुद्दीन चार पांच साल के अंदर ही सैकड़ों करोड़ का मालिक बन गया, ये धर्मांतरण में लगे दूसरे मुस्लिमों के लिए अनुकरणीय तो हो सकता है लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं लगाया जाना चाहिए कि वह पैसा कमाने के लिए यह सब कर रहा था. सामान्य मुस्लिम की तरह उसके लिए यह धार्मिक दायित्व और जिहाद का कार्य था. वह तब भी यही करता था, जब वह बेहद गरीब था और फेरी लगाता था. उसे अच्छी तरह मालूम है कि सूफी और आलिया का अशिक्षित और अभावग्रस्त लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ता है. भारत में इस्लामिक साम्राज्य बनाने और बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करने में सूफियों और औलियाओं की बहुत बड़ी भूमिका रही है. इसलिए वह पीर बाबा बनकर संतान पाने, शराब छुड़ाने, गरीबी दूर करने आदि के लिए दुआएं करके लोगों में इस्लाम के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने लगा. भारत में अधिकांश दरगाहें, मदरसे, जलसे, उर्स आदि काफी लंबे समय से धर्मांतरण के लिए उपयोग किए जाते हैं. जलालूद्दीन ने मुंबई की हाजी अली दरगाह से जुड़कर धर्मांतरण के लिए धन उपलब्ध कराने वाले अरब देशों के कट्टरपंथियों और जेहादियों से संपर्क बनाए और भारत में विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण के लिए अपना खुद का नेटवर्क तैयार कर लिया. उसकी धन सम्पत्तियों, आलीशान कोठियों, और विलासितापूर्ण जीवन का विस्तार से चर्चा मीडिया में हो रही है, लेकिन यह धर्मान्तरण का उत्प्रेरक है ताकि अशिक्षित और गरीब परिवारों की भोली भाली हिंदू नवयुवतियों को आसानी से आकर्षित करके धर्मांतरित किया जा सके. सिंधी दंपति नीतू और नवीन धर्मांतरित होकर नसरीन और जमालुद्दीन बनकर धर्मांतरण व्यवसाय में लग गए और लगातार दुबई जाकर विदेशी आकाओं से संपर्क बनाते रहे.

नेपाल की सीमा से लगे उत्तर प्रदेश और बिहार के जिले हमेशा से मुस्लिम कट्टरपंथियों और जिहादियों के पसंदीदा स्थान रहे हैं, जहाँ से आतंकवादियों को भी हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाती है. यहाँ अवैध मदरसों, मसजिदों और दरगाहों की भरमार है. आतंकवादी इन स्थानों का प्रयोग न केवल ठहरने के लिए बल्कि पुलिस की पकड़ से बचने के लिए नेपाल भागने के लिए भी करते रहे हैं. इन मदरसों, दरगाहों आदि के लिए बड़ी मात्रा में विदेशों से फंडिंग होती है. प्रदेश में मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले दलों की सरकारों के समय जिहादी यहाँ पूरी निडरता से धर्मांतरण सहित अन्य देश विरोधी कार्य बिना रोक टोक के करते रहे हैं. इन पर अब भी पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकी है.

झांगुर बाबा उर्फ जलालूद्दीन के यहाँ मुस्लिम लड़कों को हिंदू नामों से हिंदू लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाने का प्रशिक्षण दिया जाता था. निकाह के लिए इन लड़कियों को धर्मांतरण के लिए विवश किया जाता था. हिंदू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर धर्मांतरण कराने के लिए लड़कियों के जातिवार रेट इस तरह निश्चित किये थे, ब्राह्मण 15-16 लाख, पिछड़ी जाति 10-12 लाख, दलित 8-10 लाख, जिन्हें मुस्लिम लडको को पुरूस्कार के रूप में दिया जाता था. इससे इस गिरोह के सूत्र भारत के एक कुख्यात मदरसा तथा अरब के बड़े षड्यंत्रकारियों से जुड़े होने की संभावना है, क्योंकि इनका मानना है कि भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने में ब्राह्मण सबसे बड़ी बाधा है. इसलिए लंबे समय से ब्राह्मण इनके निशाने पर हैं. विदेशी फंडिंग के सहारे हिंदुओं में जातिगत विभेद उभारने तथा दलितों एवं पिछड़ों को सवर्ण जातियों, विशेषकर ब्राह्मणों के विरुद्ध खड़ा करने का कार्य किया जा रहा हैं. दलितों और पिछड़ों के प्रमुख नेताओं को बड़े पैमाने पर धन दिया जाता है और उनके माध्यम से जाति - वर्ग संघर्ष उत्पन्न करने की कोशिश की जाती है. पीएफआई से बरामद जिन दस्तावेजों का एनआईए ने खुलासा किया है, उनके अनुसार पिछड़े दलित और मुसलमानों( पीडीए) को संगठित कर गज़वा-ए-हिंद में शामिल करना है. इस्लामिक राष्ट्र बनने के बाद धर्मान्तरित न होने वाले दलितों और पिछड़ों के साथ वही करना है, जो पाकिस्तान और बांग्लादेश में किया गया. इस मामले का खुलासा भी एक दलित युवती द्वारा ही किया गया, जिस पर दलित, पिछड़े और पीडीए सभी मौन हैं.

जिहादी जलालूद्दीन से संबंधित 40 बैंक खातों में 106 करोड़ की विदेशी फंडिंग का पता चला है. हैरान करने वाली बात है कि सभी बैंको में अत्याधुनिक एएमएल-सीएफटी (एंटी मनी लांड्रिंग-कमबैटिंग फाइनैंस टू टेरोरिज्म) प्रणाली लागू होने के बाद भी केंद्र सरकार की एफआईयू (फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट) इसे क्यों नहीं पकड़ सकी. बलरामपुर जिले के एक छोटे से गांव मधुपुर में फेरी लगाने वाला एक गरीब मुसलमान कई एकड़ जमीन पर करोड़ों रुपए लागत की एक कोठी का निर्माण करवाता रहा और स्थानीय अभिसूचना इकाई सोती रही. जिला प्रशासन को इसकी खबर भी नहीं लगी. उसी कोठी में सैंकड़ों हिंदू युवतियों का धर्मांतरण और निकाह किया जाता रहा.

ब्रिटेन के ग्रूमिंग गैंग की तरह उत्तर प्रदेश के फूलपुर जिले में एक नाबालिग दलित युवती को केरल ले जाकर जबरन धर्मांतरण कराने और आतंकी बनाने की कोशिश की गई. प्रयागराज पुलिस की जांच में सामने आया है कि दलित युवती को पड़ोस में रहने वाली मुस्लिम महिला बहला फुसलाकर अपने एक मुस्लिम दोस्त के साथ दिल्ली और उसके बाद केरल ले गई. त्रिशूर में उसका जबरन धर्मांतरण कराया गया और उसके बाद आत्मघाती दस्ते में शामिल करने के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगी. उसे अफगानिस्तान भेजा जाना था जहाँ उसे आईएसआईएस खुरासन में शामिल करा कर आतंकवादियों की सेक्स स्लेव बनाया जाना था. किसी तरह लड़की ने अपनी माँ को फ़ोन किया, और फिर उत्तर प्रदेश पुलिस उसे बरामद कर वापस ले आयी. इस मामले की गहनता से जांच की जा रही है.

इस तरह के मामले जहाँ हिंदू परिवारों में उचित संस्कार न दिया जाना रेखांकित करते हैं वहीं प्रखंड हिंदू संगठनों की सक्रिय भूमिका की आवश्यकता पर भी बल देते हैं. हिंदू एकता का अभाव, राजनैतिक स्वार्थ बस जातिगत को बढ़ावा दिया जाना और धर्म से विमुखता भी बहुत बड़ा कारण है. सरकार को धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून बनाकर इस समस्या के समाधान के लिए गंभीरता से कार्य करना चाहिए. विश्व में शायद भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यक समुदाय का धर्म परिवर्तन कराते हैं अन्यथा पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं का क्या हुआ सबको मालूम है.

~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

एनसीईआरटी की पुस्तकों में ही नहीं, इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक

 


||साप्ताहिक समीक्षा || भारत का बदलता इतिहास || क्यों एक अनपढ़ विदेशी मूल के व्यक्ति को स्वतन्त्र भारत का शिक्षा मंत्री बनाया गया || एनसीईआरटी की पुस्तकों में ही नहीं, इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक


जो देश और सभ्यता अपना इतिहास नहीं संभाल सकती, वह न तो अपना वर्तमान सुव्यवस्थित कर सकती है और न ही अपना भविष्य सुरक्षित कर सकती है. भारत में तो साथ यही होता आया है और यही इस देश की सभी समस्याओं की जड़ है. भारत सरकार ने हाल में एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों में मामूली सा बदलाव किया है, जिसके पक्ष-विपक्ष में तर्कों और कुतर्कों के साथ बहस छिड़ गई है.

भारत पर अनेक विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण हुए लेकिन सातवीं शताब्दी के बाद इस्लामिक आक्रांताओं ने राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने का वीभत्स कार्य जितनी निर्दयता, बहशीपन और अकल्पनीय क्रूरता से किया, वैसा उदाहरण विश्व में कहीं नहीं मिलता. किसी भी राष्ट्र का इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता, जिसके शासकों ने आक्रांताओं के कुकृत्यों और अत्याचारों को न केवल ढकने का काम किया हो बल्कि उनके भयानक अत्याचारों को महिमा मंडित कर अपनी ही सभ्यता और संस्कृति को कलंकित करने का काम किया हो. भारत में स्वतंत्रता के बाद जब अपने अतीत के गौरवमयी इतिहास को अपनी भावी पीढ़ियों के समक्ष रखकर उन्हें राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए दृढ़ संकल्पित करने का समय था, बजाय इसके उसे विकृत रूप में प्रस्तुत करके अपने बच्चों तथा युवाओं को अपने जड़ों से विमुख करने का कार्य किया गया. आश्चर्यजनक है कि ऐसा करने वाले कोई और नहीं कथित स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्र शिल्पी के रूप में विभूषित किए जाने वाले लोग हैं, जो ठेके पर भारत को स्वतंत्रता दिलाने वाला राजनैतिक दल से सम्बंधित है.

प्रश्न बहुत स्वाभाविक है कि आखिर मोदी सरकार ने अपने 11 वर्ष के शासन के उपरान्त ये बदलाव क्यों शुरू किये जब उनका बहुमत भी नहीं है, और सरकार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के समर्थन से बनी है. 11 वर्ष का समय शैक्षणिक, ऐतिहासिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए पर्याप्त समय होता है. इतने समय के बाद इन परिवर्तनों की झलक सामाजिक परिवर्तन के रूप में दिखाई पड़ जानी चाहिए थी. दुर्भाग्य से मोदी सरकार ने सत्ता में आने के तुरंत बाद विरूपित और प्रदुषित इतिहास को सुधारने कार्य नहीं किया, जो सनातन संस्कृति को कलंकित कर भावी पीढ़ियों को गौरवमयी अतीत से विमुख करने के लिए बनाया गया था. 2014 में सत्ता में आने के बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी ने इस दिशा में कार्य शुरू किया लेकिन विपक्ष और विमर्शकारी शक्तियों ने विरोध शुरू किया और सरकार ने न केवल स्मृति ईरानी को ऐसा करने से रोका बल्कि विरोधियो को शांत करने के लिए उनका मंत्रालय भी बदल दिया. इसके बाद बने शिक्षा मंत्रियों प्रकाश जावडे़कर और रमेश पोखरियाल को मंत्री पद गंवाकर राजनैतिक रूप से हाशिए पर भेज दिया गया. हो सकता है कि इसका कारण भी शिक्षा में आवश्यक बदलाव की दिशा में बढ़ने के प्रयास रह हो. वर्तमान शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान प्रधानमंत्री मोदी के करीबी हैं और सरकार तथा भाजपा की रीतिनीति से भली भांति परिचित हैं, इसलिए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा कोई क्रांतिकारी बदलाव किया हो, किसी को पता नहीं है. वह शिक्षा के अलावा अन्य सभी मुद्दों पर खुलकर बात करते हैं. कई बार कुछ न करना, कुछ करने से बेहतर होता है.

सोशल मीडिया की कृपा से जागरूक हुए भारतीय जनमानस को अब यह मालूम है कि जो इतिहास विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है, वह इतिहास है ही नहीं. इतिहास के नाम पर भावी पीढि़यों को गुमराह करने के लिए जो इतिहास लिखा गया था उसका उद्देश्य झूठी और काल्पनिक बातों को जोड़कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद समाप्त करना था. स्वतंत्रता के बाद किसी भी राष्ट्र के लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान का पुनर्जागरण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और इसके लिए शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करना आवश्यक होता है ताकि भावी पीढ़ियों को उनके गौरवमयी संस्कृति तथा इतिहास की सच्चाई से परिचित कराया जा सके चाहे कितनी ही कड़वी क्यों न हो. सैकड़ों साल की गुलामी के बाद स्वतंत्र हुए भारत के पहले शिक्षा मंत्री का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण था. शैक्षणिक क्षेत्र में किये जाने वाले कार्य, राष्ट्र के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे. जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने के बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद को भारत का पहला शिक्षा मंत्री बनाया, जो न तो शिक्षित थे और न ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति से परिचित थे. उनका तो जन्म भी भारत में नहीं मक्का में हुआ था. उनका पूरा नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था और उनके पिता मौलवी खैरुद्दीन एक इस्लामी विद्वान थे, जो इस्लाम का प्रचार करने के लिए भारत आकर कोलकाता में बस गए थे। मौलाना आज़ाद ने घर पर ही पारंपरिक इस्लामी शिक्षा प्राप्त की थी. ऐसा व्यक्ति भारतीय शिक्षा मंत्री के रूप में जो कर सकता था, उसने वही किया.

इतिहास लेखन का कार्य ऐसे व्यक्तियों को सौंपा गया जो हिंदू और हिंदुत्व से घृणा करते थे तथा उसे कलंकित और लांछित करने के लिए जाने जाते थे. रोमिला थापर, इरफान हबीब और डीएन झा जैसे हिंदू हिंदुत्व और राष्ट्र विरोधियो को इतिहास लिखने का कार्य सौंप दिया गया. इनमें से तीनों को संस्कृति नहीं आती थी. रोमिला थापर और डीएन झा को संस्कृत के आलावा अरबी फारसी उर्दू का भी ज्ञान नहीं था. हिंदू विरोधी और वामपंथी मानसिकता के इन लोगों ने मिलकर प्राचीन भारतीय इतिहास से लेकर मध्ययुगीन और आधुनिक भारत का इतिहास लिख डाला. ऐसे में जो होना था वही हुआ. आर्यों को भारत पर आक्रमणकारी और बाहरी बताया गया ताकि कोई मुस्लिम आक्रांताओं पर अंगुली न उठा सके. इसके लिए सिंधु घाटी सभ्यता की वास्तविकता को विरूपित करके प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया गया. सिकंदर को महान बताते हुए, “जो जीता वही सिकंदर” का विमर्श बनाते हुए, विजेता भी बना दिया गया. चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों को अतिवादी / आतंकवादी बताया गया. छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप जैसे महान राष्ट्र सपूतों को डाकुओं के रूप में प्रस्तुत किया गया लेकिन अकबर को महान बना दिया गया. गजनवी के सोमनाथ पर किये गए आक्रमणों को इस्लामिक जिहाद के बजाय धन दौलत की लूट के लिए साधारण डकैतियां बताया गया. इस्लामिक आक्रांताओं और मुगलों द्वारा किये गए हिंदू नरसंहार को छिपाने का कार्य किया गया.

भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ आक्रान्ताओं द्वारा लगभग 10 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार किया गया, जिसका वर्णन पश्चिमी देशों के इतिहास में तो मिलता है लेकिन भारतीय इतिहास में इसकी कोई चर्चा तक नहीं है. इस्लामिक आक्रांताओं ने अनेक महत्वपूर्ण हिंदू, जैन और बौद्ध मंदिरों को नेस्तनाबूद करके उन पर मस्ज़िदों का निर्माण करवाया लेकिन भारतीय इतिहास से यह पूरी तरह गायब हैं. बाबर, अकबर और औरंगजेब सहित सभी मुगल और मुस्लिम शासकों को महिमामंडित करने के लिए उनके द्वारा किए गए अत्याचारों और अमानवीय कृत्यों पर पर्दा डालने का काम किया गया. जोधा बाई जैसे काल्पनिक चरित्रों का निर्माण किया गया और अकबर को महान बना दिया गया. जजिया कर और उसको वसूल करने के अपमानजनक तौर तरीकों को छुपा दिया गया. औरंगजेब जैसे क्रूर और कट्टरपंथी इस्लामिक शासक, जिसने अनेक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों को करवाकर मस्जिद बनवाई थी, द्वारा कई मंदिरों को दान देना और पुनरुद्धार करना लिखा गया. स्वतंत्रता संग्राम के अनेक महान सपूतों को इतिहास से पूरी तरह गायब कर दिया गया. सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा करने की बात करने वाले सभी महापुरुषों का किसी न किसी रूप में चरित्र हनन किया गया और उन्हें खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया.

जवाहरलाल नेहरू इस्लाम के विचारधारा के बहुत नजदीक थे और विदेशी आक्रांताओं की तरह सनातन धर्म और संस्कृति को मिटाने पर तुले थे. इसलिए उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे इस्लामिक कट्टरपंथी को जीवन पर्यंत शिक्षा मंत्री बनाए रखा और उसके बाद हुमांयू कबीर जैसे व्यक्तियों को शिक्षा मंत्री बनाकर सनातन विरोधी शैक्षणिक वातावरण बनाए रखने का कार्य किया. नूर उल हसन जैसे व्यक्तियों को शिक्षा मंत्री बनाकर कांग्रेस की दूसरी सरकारों ने भी इस परंपरा को बनाए रखा.

मोदी सरकार ने एनसीईआरटी की किताबों में जो परिवर्तन किए हैं वह पेड़ की पत्तियों पर पानी डालने जैसा है. भारतीय इतिहास को सत्य के नजदीक ले जाने के लिए व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है जिसके लिए पूरे इतिहास की समीक्षा और पुनर्लेखन की आवश्यकता है. पूर्ण बहुमत होते हुए पिछले दो कार्यकालों में मोदी सरकार इस दिशा में कार्य करने के लिए साहस नहीं जुटा सकी तो फिर अब बैसाखियों के सहारे टिकी सरकार में छोटे मोटे परिवर्तनों पर प्रश्न तो उठेंगे ही. जो हुआ वह पूरी तरह उचित तो है, लेकिन जो किया गया वह बहुत कम है.

~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~




शनिवार, 28 जून 2025

लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है

 


संविधान हत्या दिवस || लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है || क्या मोदी सरकार के कार्यकाल में भी अघोषित आपातकाल लगा है


आपातकाल के 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन लोगों के मन और मस्तिष्क से इस अवधि की भयावह यादें अभी भी मिटी नहीं है. 25 जून 1975 को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने बिना मंत्रिमंडल की सिफारिश के केवल इंदिरा गाँधी के कहने पर आपातकाल घोषित कर दी थी. संविधान ताक पर रख कर सभी नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. लोकतंत्र समाप्त हो गया था. स्वतंत्र भारत का यह सबसे अलोकतांत्रिक, काला और वीभत्स कालखंड था. कोई भी सभ्य भारतीय कभी भी इसे नहीं भूल सकता और भूलना भी नहीं चाहिए. इसलिए मोदी सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का निर्णय लिया गया जो सर्वथा उचित है.

आपात काल की सबसे बड़ी बात यह थी कि यह देश पर आए किसी खतरे का सामना करने के लिए नहीं बल्कि यह इंदिरा गाँधी के अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण लगाया गया था. चुनाव स्थगित हो गए थे और सामान्य नागरिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई थी और पूरी तरह से सरकार की मनमानी चल रही थी. प्रेस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसमें मीसा (आंतरिक सुरक्षा कानून) लागू कर दिया गया था, जिसमें किसी को भी बिना कोई कारण बताए जेल में डाला जा रहा था. जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई जैसे विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था. इंदिरा गाँधी ने अपने सभी राजनैतिक विरोधियो और विरोध की आशंका वाले लोगो को जेल में ठूंस दिया था.

इंदिरा गाँधी द्वारा देश पर आपातकाल थोपने का असली कारण यह था कि प्रयागराज उच्च न्यायालय ने उन्हें चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया था और उनको छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के अयोग्य तथा कोई भी सरकारी पद संभालने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. उच्च न्यायालय के इस आदेश को नकारते हुए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और 24 जून 1975 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश में आंशिक बदलाव करते हुए उन्हें पद पर बने रहने की अनुमति प्रदान कर दी थी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जयप्रकाश नारायण ने घोषणा कर दी कि जब तक इंदिरा गाँधी इस्तीफा नहीं देंगी रोज़ उनके विरुद्ध पूरे देश में प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे लेकिन अगले ही दिन 26 जून 1975 को उन्होंने देश पर आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी. चुनाव में धांधली का मामला उस चुनाव से संबंधित था जिसमें उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया था लेकिन राजनारायण ने प्रयागराज उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी कि इंदिरा गाँधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर चुनाव जीता है. चार साल बाद आए इस फैसले ने श्रीमती गाँधी का चुनाव रद्द कर दिया था. इंदिरा गाँधी के समर्थन में पूरी तरह आई कांग्रेस पार्टी ने उनके नेतृत्व को देश के लिए अपरिहार्य बताते हुए आपातकाल का समर्थन किया था.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था क्योंकि इंदिरा गाँधी का मानना था यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है और अपने मजबूत संगठनात्मक आधार के कारण वह सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन कर सकता है. हजारों स्वयंसेवकों को जेल में ठूंस दिया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो उस समय आरएसएस के प्रचारक थे, वेश बदलकर संगठन की गतिविधियों लगे रहे थे. पूरा देश सदमे में था. उनकी आवाज उठानेवाला विपक्ष जेल में बंद था और प्रेस पर पूर्ण प्रतिबंध था. डीएमके की सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने आपातकाल की आलोचना करते हुए इसे तानाशाही की शुरुआत बताया था, इस कारण 31 जनवरी 1976 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई. उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को भी मद्रास केंद्रीय कारागार में यातनाओं का का सामना करना पड़ा था, यह अलग बात है कि वह आज कांग्रेस के साथ खड़े हैं. सबसे अधिक परेशानियाँ समाज के गरीब और कमजोर तबके को हुई थी जिनकी रोज़ी रोटी भी छिन गई थी और उन पर ज्यादतियां भी की गई थी. संजय गाँधी आपातकाल के शक्ति केंद्र थे और उनके निर्देश पर लाखों पुरुषों की नसबंदी कर दी गई थी. बिना वजह लोगों को जेल में डाल दिया गया था. दिल्ली के तुर्कमान गेट जैसी घटनाएं देश के अन्य भागों में भी खूब हुई थी.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान की हत्या बताते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा थोपे गए आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का काला अध्याय बताते हुए कहा कि कोई भी भारतीय कभी नहीं भूल सकता कि किस तरह हमारे संविधान की भावना का उल्लंघन किया गया था, संसद की आवाज दबाई गई थी और अदालतों को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया था। 42वां संविधान संशोधन उनके काले कारनामों का एक प्रमुख उदाहरण है। लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है. 21 महीने चले आपातकाल में 4 बार संविधान संशोधन किया गया और 48 नए अध्यादेश लाए गए. 30 वें संशोधन में आपातकाल को अदालत में चुनौती देने का अधिकार भी छीन लिया गया था जबकि 42 वें संशोधन में मौलिक अधिकार कमजोर कर दिए गए और न्यायपालिका की शक्ति भी सीमित कर दी गई थी.

आज कांग्रेस के नेता भले ही यह कहते घूमें कि पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार के कार्यकाल में देश में अघोषित आपात स्थिति है लेकिन उनका यह कहना सत्ता से बाहर रहने की पीड़ा और देश को गुमराह करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है. अगर अघोषित आपात स्थिति होती तो राहुल गाँधी जिस भाषा में प्रधानमंत्री को प्राय: अपमानित करते हैं, चुनाव आयोग संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, संभव नहीं हो पाता. अघोषित आपात स्थिति रहते हुए भी शाहीनबाग और किसान आंदोलन, जिन्होंने अरबों रुपए की राष्ट्रीय क्षति पहुंचाई, कैसे लंबे समय तक चलाये जा सके. कैसे नूपुर शर्मा को घर में कैद होकर बैठना पड़ा, कैसे ममता बेनर्जी के पश्चिम बंगाल में हिंदू नरसंहार का खुला खेल खेला गया, कैसे तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन और उनके उप मुख्यमंत्री पुत्र सनातन को डेंगू और मलेरिया बता सके. कैसे संसद से अयोग्य ठहराए गए राहुल गाँधी सर्वोच्च न्यायालय से राहत पा सके. कैसे सर्वोच्च न्यायलय धारा 370 हटाने और वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई कर सका.

राहुल गाँधी भले ही संविधान की कॉपी हाथ में लेकर घूमे और भाजपा सरकार पर संविधान और लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाएं लेकिन यह एक निर्विवादित तथ्य है कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में छोटी छोटी बातों पर कार्टूनिस्ट, यूट्यूबर, पत्रकार और प्रदर्शनकारी गिरफ्तार हो जाते हैं. पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिल नाडु इसके ज्वलंत उदाहरण है. मोदी सरकार द्वारा आपातकाल लगाए जाने वाले दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में घोषित किया जाना अत्यंत सार्थक और भावनात्मक है क्योंकि संविधान तभी मरता है जब नागरिको के मूल अधिकार छीन लिए जाते हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली जाती है, प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली जाती है, न्यायालयों का अपमान किया जाता है और मनचाहा फैसला लेने के लिए उन पर दबाव बनाया जाता है.

यदि इस आधार पर स्वतंत्र भारत के अब तक के कालखंड का विश्लेषण किया जाए तो हम पाते हैं कि गाँधी परिवार के पांच सदस्यों ने अपने तानाशाही व्योहार से किसी न किसी रूप में संविधान की हत्या की है. जवाहर लाल नेहरू ने पहला संविधान संशोधन करके अनेक पुस्तकों, फ़िल्मों आदि पर प्रतिबंध लगा दिया था तथा अनेक इतिहासकारों, लेखको, पत्रकारों और समाजसेवियों को जेल में डाल दिया था. इंदिरा गाँधी ने उच्च न्यायालय के फैसले की अवमानना करते हुए विरोध की आवाज दबाने के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी थी. उन्होंने अपने सभी राजनीतिक विरोधियो और विरोध करने वाले सामान्य नागरिको को जेल में ठूंस दिया था. नागरिको के मूल अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली गई थी. समाचार पत्र बिना सरकार की अनुमति के कुछ भी छाप नहीं सकते थे. सही अर्थों में देश में कोई भी इंदिरा गाँधी और उनकी सरकार का विरोध नहीं कर सकता था. राजीव गाँधी ने शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय का अपमान करते हुए कानून बना कर उसके फैसले को पलट दिया था. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में परोक्ष रूप से सत्ता संभाल रही सोनिया गाँधी ने शाह आयोग द्वारा आपातकाल की ज्यादतियों के लिए दोषी पाए गए और किसी भी संवैधानिक पद के लिए आयोग्य घोषित किए गए नवीन चावला को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था. सोनिया गाँधी के निर्देश पर चुनाव धांधलियों का विरोध करने पर हजारों प्रदर्शनकारियों को देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया गया था. राहुल गाँधी ने मंत्रिमंडल द्वारा पारित बिल को सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया था. आज भी वह संविधान की कॉपी लहराते हुए वह संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करते हैं और उनका अपमान भी करते हैं. मानहानि के मामले में 2 साल की सजा पाए और संसद द्वारा सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किए गए राहुल गाँधी ने दबाव बनाकर ही अपनी सदस्यता बहाल करायी, यह भी किसी से छिपा नहीं है.

संविधान की रक्षा की जा सके और इस देश को पुन: अपातकाल न देखना पड़े, इसके लिए हम सभी को प्रयासरत रहना चाहिए और संविधान में तभी संशोधन होने चाहिए जब यह राष्ट्रीय हित में हो क्योंकि संविधान से भी बड़ा राष्ट्र होता है और हमें राष्ट्र को बचाने और मजबूत करने की आवश्यकता है.

~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ट्रम्प का लंच मुनीर के संग

 



ट्रम्प का लंच मुनीर के संग || क्यों इतने महत्त्वपूर्ण हो गए हैं असिम मुनीर || क्या सचमुच लंच की राजनीति नोबल शांति पुरुस्कार की राजनीति है


दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे समृद्ध देश अमेरिका के राष्ट्रपति यदि पाकिस्तान जैसे एक आतंकवादी देश के सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में लंच पर आमंत्रित करें तो भारत ही नहीं पाकिस्तान में लोग चौंक गए. भारत इसलिए चौंका कि “अमेरिका प्रथम” और “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” नारे लगाने वाले ट्रंप ने ऐसा किया जबकि अमेरिका ने 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर को ध्वस्त करने वाली आतंकी घटना के जनक ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद सैन्य क्षेत्र में सालों की मेहनत के बाद मार गिराने में सफलता प्राप्त की थी. पाकिस्तान में लोग इसलिए चौंके कि ट्रम्प ने हाल के दिनों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी व्हाइट हाउस में लंच / डिनर पर आमंत्रित नहीं किया. अमरीकी राष्ट्रपति के साथ लंच करने वाले आसिम मुनीर पाकिस्तान के पहले सेनाध्यक्ष हैं, यद्यपि इसके पहले जनरल अयूब और परवेज मुशर्रफ़ सैनिक तानाशाह के रूप में राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ व्हाइट हाउस में लंच या डिनर पर जाने का सौभाग्य पा चुके हैं. पाकिस्तान के राजनैतिक क्षेत्रों में हड़कंप मच गया है, क्योंकि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से अधिक सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर को महत्त्व दिया जाना पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का इशारा कर रहा है. हैरान तो लोग अमेरिका में भी है, क्योंकि यह सरकारी शिष्टाचार के अनुरूप नहीं है. प्रश्न उठना बहुत स्वाभाविक है कि ऐसा क्या है जिस कारण डोनाल्ड ट्रम्प ने आसिम मुनीर को इतना महत्त्व दिया. पूरी दुनिया में तरह तरह की अटकलें लगाई जा रही है.

इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए पाकिस्तान की राजनीति और आसिम मुनीर को समझना बहुत आवश्यक है. पहलगाम में हिन्दुओं के नरसंहार की घटना के पहले भारत और शेष दुनिया में असीम मुनीर को बहुत कम लोग जानते थे लेकिन बाद में वह अपने उस भाषण से बहुत चर्चा में आ गए जिसमें उन्होंने भारत के विभाजन और दो राष्ट्रों सिद्धांत की तारीफ करते हुए हिंदुओं के प्रति अपनी घृणा का प्रदर्शन किया था, तथा मुसलमानों को हिंदुओं के नरसंहार के लिए उकसाया था. पाकिस्तान में भी लोगों का मत है कि मुनीर का वह भाषण हिंदुओं के नरसंहार की उनकी योजना का हिस्सा था. पहलगाम में धर्म पूछकर और कपड़े उतरवाकर खतना सुनिश्चित करने के बाद, हिन्दू पुरुषों को उनकी पत्नियों और बच्चो के सामने बेहद क्रूरता से मौत के घाट उतारने की घटना ने भारत ही नहीं पूरे विश्व को झकझोर दिया था. इस घटना ने भारत पर आक्रमण करने वाले राक्षसी वृत्ति के इस्लामिक आक्रांताओं की यादें ताजा कर दीं. इस पर भारत द्वारा सख्त कार्रवाई अपेक्षित और आवश्यक थी, जो ऑपरेशन सिंदूर के अंतर्गत की गई. भारत ने आतंकवादियों के कई ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया था. बौखलाए पाकिस्तान द्वारा नियंत्रण रेखा पर भारतीय नागरिको तथा सिख गुरु द्वारे पर अंधाधुंध गोलीबारी की गई जिससे अनेक नागरिक हताहत हुए. भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों पर मिसाइल आक्रमण कर पाकिस्तानी वायु सुरक्षा तंत्र को ध्वस्त कर दिया था. चीन और तुर्की निर्मित हथियारों तथा अमेरिकी लड़ाकू विमानों द्वारा पाकिस्तान के आक्रामक प्रयास निरर्थक साबित हो गए. पाकिस्तान की सैन्य कार्यवाही के महानिदेशक द्वारा भारत की सैन्य कार्रवाई के महानिदेशक से अनुनय विनय करने पर आपसी बातचीत के माध्यम से सीजफायर का ऐलान किया गया.

  1. इस सीजफायर का श्रेय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नाम कर लिया. यद्यपि भारत ने इसका खण्डन किया लेकिन ट्रंप लगातार भ्रामक बयान देते रहे. पाकिस्तान द्वारा सोशल मीडिया में चलाए जा रहे झूठे विमर्श और डोनाल्ड ट्रम्प के भ्रामक बयानों के आधार पर कांग्रेस सहित भारतीय विपक्ष ने मोदी सरकार के आतंकवादियों को नेस्तनाबूत करने के साहसिक कृत्य को नकारने का काम शुरू कर दिया. राहुल गाँधी ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ट्रंप के दबाव में सरेंडर करने का आरोप लगाया जिसे उनकी चाटुकार मंडली ने भी आगे बढ़ाने का कार्य किया. राहुल गाँधी ने पीएम मोदी का विरोध करने के लिए न केवल राष्ट्र विरोधी कार्य किया बल्कि कई मौकों पर पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आए. यहाँ तक कि उसने विदेशों में भेजे गए प्रतिनिधिमंडलों में शामिल कांग्रेसी नेताओं के प्रति भी आक्रामक रुख अपनाया और उन्हें मोदी का एजेंट तक करार दे दिया.  
  2. कांग्रेस द्वारा जी-7 में मोदी को निमंत्रण न मिलने की भी बहुत ज़ोर शोर से उछाला और मोदी पर कटाक्ष करने के चक्कर में भारत की प्रतिष्ठा को भी धूल धूसरित किया यद्यपि कनाडा के प्रधानमंत्री ने फ़ोन पर व्यक्तिगत आग्रह करके मोदी को निमंत्रित किया और मोदी ने जी-7 की मीटिंग में हिस्सा भी लिया, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप भी पहुंचे थे लेकिन ईरान इजराइल युद्ध के चलते वह समय से पहले ही चले गए थे. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और उनकी तयशुदा बैठक नहीं हो सकी. बाद में ट्रंप के अनुरोध पर प्रधानमंत्री मोदी की उनसे लंबी बातचीत हुई. मोदी ने ट्रंप को स्पष्ट रूप से कहा की पाकिस्तान और भारत के बीच सीजफायर पाकिस्तान के अनुरोध और आपसी बातचीत के आधार पर किया गया था इसमें ट्रंप सहित किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी. 

जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है, शहबाज शरीफ की सरकार सेना की रहमोकरम पर ही बनी थी चल भी उसकी मर्जी से रही है. इसलिए भारत पाक संघर्ष में पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय के बाद भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर का गुणगान करते रहे. पाकिस्तानी मीडिया और जनता द्वारा सरकार को लगातार आईना दिखाने के बावजूद शहबाज शरीफ सरकार ने असीम मुनीर को प्रोन्नत करके फील्ड मार्शल बना दिया या स्वयं मुनीर ने अपने आप को फील्ड मार्शल बना लिया. फील्ड मार्शल बनना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पद जीवन पर्यंत के लिए होता है. जनरल अयूब खान के बाद असीम मुनीर दूसरे ऐसे सेनाध्यक्ष है जो फील्ड मार्शल बने हैं. जनरल अयूब ने सत्ता पर कब्जा करके अपने आप को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था. वह 1958 से 1969 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे. आसिम मुनीर के बारे में भी अटकलें लगाई जा रही है कि वह शीघ्र ही सैनिक तानाशाह बनकर पाकिस्तान की सत्ता संभालेंगे. ट्रम्प द्वारा असीम मुनीर को व्हाइट हाउस आमंत्रित करना इस बात को रेखांकित करता है कि अमेरिका उन्हें पाकिस्तान का सर्वेसर्वा मानता है. भारत पाकिस्तान संघर्ष के दौरान भी अमेरिकी विदेशमंत्री ने केवल आसिम मुनीर से ही बात की थी. मदरसे से शिक्षा प्राप्त आसिम मुनीर बेहद कट्टरपंथी मुस्लिम हैं और इस समय धार्मिक उन्माद भड़काकर इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जा करने की योजना बना रहे हैं. हिंदुओं के प्रति नफरती भाषण और भारत में योजना बद्ध ढंग से पहलगाम जैसी घटनाएं करा कर वह इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.

ईरान और इजरायल के वर्तमान युद्ध में अमेरिका अपने लिए बेहद चालाकी भरी भूमिका तैयार कर रहा है, जिससे उसे अफगानिस्तान की तरह मुँह की न खानी पड़े. इजराइल से ईरान लगभग 2000 किलोमीटर दूरी पर स्थित है, इसीलिए वह केवल मिसाइलों से ईरान को नहीं हरा सकता है और न हीं इस तरह अमरीका तेहरान पर कब्जा कर सकता है क्योंकि किसी देश पर कब्जा करने के लिए सोना का उस देश में घुसना आवश्यक है. इसके लिए अमेरिका ईरान पर जमीनी आक्रमण करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करना चाहता है, क्योंकि पाकिस्तान के साथ ईरान की 900 किलोमीटर लंबी सीमा है. इसके लिए असीम मुनीर पूरी तरह उपयुक्त है. यदि वह फील्ड मार्शल के रूप में अमेरिका की सहायता नहीं कर सके तो उन्हे सैनिक शासन के अंतर्गत राष्ट्रपति बनाया जा सकता है. पाकिस्तान में स्थायी सैनिक अड्डे बनाने के लिए भी अमेरिका को असीम मुनीर जैसे व्यक्ति की आवश्यकता है. पाकिस्तानी सैन्य सरकार और भारत की लोकतांत्रिक सरकार के बीच कभी मित्रता नहीं हो सकती और इस तरह दोनों देशों के बीच शीत युद्ध अमेरिका को हथियारों की बिक्री में बहुत सहायक सिद्ध होगा. दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति में अमेरिका अपने नियम और शर्तों पर भारत को व्यापारिक समझौते करने के लिए विवश करता रहेगा. डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने से पहले एक सफल व्यापारी थे और राष्ट्रपति से सेवानिवृत्त होने के बाद भी व्यापारी रहेंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं है लेकिन वह राष्ट्रपति रहते हुए भी व्यापारी की तरह कार्य कर रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप की क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित एक कंपनी का हाल ही में पाकिस्तान सरकार के साथ समझौता हुआ है. तब से पाकिस्तान के प्रति ट्रंप का रवैया उदार हो गया है. पाकिस्तान को विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से नया कर्ज दिलवाने में भी अमेरिका की अप्रत्यक्ष भूमिका है. इसलिए यह बहुत स्वाभाविक है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तानी फील्ड मार्शल असीम मुनीर के साथ एक समझ विकसित कर रहे हैं ताकि पारस्परिक समन्वय से दोनों के हित साधे जा सके.

एक और कारण भी है. आसिम मुनीर के दबाव में ही पाकिस्तान सरकार ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिएडोनाल्ड ट्रंप के नाम की सिफारिश की है. डोनाल्ड ट्रंप भी जी जान से जुटे हुए हैं इस पुरस्कार को पाने के लिए और जो उनके नाम की सिफारिश करेगा उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना उनका मानवीय फर्ज है और दुनिया के अन्य देशों के लिए एक सन्देश भी है. इस सब के बाद भी डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिल सकेगा इसकी संभावना बहुत कम है.

डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम से पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार पर खतरा मड़राने लगा है और यदि पाकिस्तान में सैन्य सरकार बनती है तो भारत पर भी युद्ध और आतंकवाद दोनों का खतरा बढ़ जाएगा. आप

~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~

रविवार, 15 जून 2025

ट्रंप बनाम अमेरिका और मोदी बनाम भारत

 



ट्रंप बनाम अमेरिका और मोदी बनाम भारत || भारत और पाकिस्तान के बीच सीज फायर कराने का दावा करने वाले गृहयुद्ध नहीं रोक पा रहे || अवैध अप्रवासियों पर ट्रम्प की कार्यवाही भारत के लिए प्रेरणादायक कैसे है


अमेरिका में उबाल है, जिसका कारण है गैरकानूनी अप्रवासियों का निष्कासन. अप्रवासन विभाग देशभर में जगह-जगह तलाशी अभियान चलाकर अवैध अप्रवासियों को गिरफ्तार कर रहा है। कैलिफोर्निया के लॉस एंजेलिस में भी अप्रवासन विभाग ने बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया, जिसके विरुद्ध सामाजिक संगठन और स्थानीय लोग अप्रवासन विभाग के डिटेंशन सेंटर्स के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों के दौरान दंगा भड़का। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कैलिफोर्निया के गवर्नर और लॉस एंजेलिस के मेयर पर अक्षम होने का आरोप लगाते हुए दंगा नियंत्रण के लिए नेशनल गार्ड्स की तैनात कर दिए. कैलिफोर्निया में लंबे समय से विरोधी दल की सरकार है जो अप्रवासियों का समर्थन करती है और इसलिए कोई कार्रवाई नहीं होती.

प्रदर्शनों को सख्ती से दबाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने नेशनल गार्ड्स की तैनाती कर दी है और बड़ी संख्या में मैरींस भी पहुंचने वाले हैं, जिसका राज्य सरकार विरोध कर रही है. स्थिति कुछ कुछ इस तरह की है जैसे भारत में प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के लिए केंद्रीय सुरक्षाबल भेजकर केंद्र सरकार स्वयं स्थिति पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगे. लॉस एंजिल्स में स्थिति बजाय सुधारने के बिगड़ती जा रही है. सरकारी संपत्तियों और गाड़ियों में आग लगाई जा रही है, शोरूम लूटे जा रहे हैं और सुरक्षाकर्मियों पर आक्रमण किये जा रहे हैं. प्रदर्शनकारी ट्रंप का विरोध करते हुए उन्हें तानाशाह और लोकतंत्र का दुश्मन बता रहे हैं. हॉलीवुड की राजधानी पूरी तरह से अराजक तत्वों के कब्जे में है.

इन प्रदर्शनो की प्रकृति, संशोधित नागरिकता कानून, किसान कानून और अग्निवीर योजना के विरोध में भारत में हुए हिंसक प्रदर्शन से पूरी तरह मेल खाती है. मोदी की तरह ट्रंप को तानाशाह बताया जा रहा है. ऐसा लगता है कि अमेरिका का डीप स्टेट जो अब तक भारत और दूसरे देशों को अस्थिर करनेका काम करता था, उसने अब अमेरिका में भी यही काम शुरू कर दिया है. दोनों देशों के प्रदर्शनो में अंतर केवल इतना है कि कैलिफोर्निया में संघीय सुरक्षाबल बहुत सख्ती कर रहे हैं. प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले रहे हैं और जेल में डाल रहे हैं. भारत में ऐसे हिंसक आंदोलनों के विरुद्ध कहीं कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई थी फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन आंदोलनों को सुर्खियां बनाने की भरपूर कोशिश हुई. स्वयं अमेरिका ने बोलने और आलोचना करने की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, मानव अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर भारत को कठघरे में खड़ा किया था. आज इन मुद्दों पर अमेरिका से कोई प्रश्न नहीं कर रहा है. मोदी ने इन मुद्दों पर चुप रहकर भी अपनी लोकप्रियता बनाए रखी लेकिन डोनाल्ड ट्रंप मुखर होने के बाद भी लगातार अ़लोकप्रिय होते जा रहे हैं.

भारत और अमेरिका दोनों ही लोकतान्त्रिक देश हैं लेकिन भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश ही नहीं, पृथ्वी की सबसे प्राचीन सभ्यता भी है. यह सही है कि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी और समृद्ध अर्थव्यवस्था है लेकिन उसका इतिहास 500 वर्ष से अधिक का नहीं है. अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भी रहा हो लेकिन उसने समय समय पर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, अल्पसंख्यकों की स्थिति मानव अधिकारों पर झूठा ज्ञान देने में कभी संकोच नहीं किया. मोदी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद तो जैसे नसीहतों की बाढ़ आ गई, जो अमेरिकन डीप स्टेट द्वारा अब तक चलाई जा रही है.

ऐसा नहीं है कि ट्रंप द्वारा गैर कानूनी अप्रवासियों के विरुद्ध की जा वाली कार्रवाई अमेरिकी हितों के विरुद्ध है क्योंकि लॉस एंजिल्स में गैर कानूनी अप्रवासियों की संख्या, कुल जनसंख्या की एक तिहाई से भी अधिक हो चुकी है. इनमें अधिकांश मुस्लिम हैं और उनमें भी मेक्सिकन की संख्या सबसे ज्यादा है. लेकिन सरकारी संरक्षण में अराजक वामपंथियों, उदारवादियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा संचालित डीप स्टेट पूरी दुनिया में जो कार्य करता है, वही अमेरिका में भी दोहरा रहा है. दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के पहले ट्रम्प ने देशवासियों से वायदा किया था कि वह मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” के लिए गैरकानूनी घुसपैठियों की समस्या से अमेरिका को मुक्त करेंगे. उन्होंने इस वर्ष की शुरुआत में लैकेन रिले एक्ट कानून बनाया जिसके अंतर्गत गैरकानूनी घुसपैठियों की पहचान कर हिरासत में लेना और उनके देश वापस भेजना काफी आसान कर दिया गया है. ट्रंप ने इसे एक अभियान के तौर पर चलाया और भारत सहित दुनिया के कई देशों के अवैध अप्रवासियों को प्रत्यर्पित भी किया गया है. ट्रम्प सरकार की इस नीति का विरोध इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि इससे डीप स्टेट का छुपा हुआ एजेंडा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. इसलिए विरोध प्रदर्शनों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया ठीक उसी तरह देखने को मिल रही है जैसी भारत में मोदी के विरुद्ध प्राय: मिलती है.

राष्ट्रवादी छवि वाले डोनाल्ड ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में भी उनके खिलाफ “ब्लैक लाइव मैटर्स” जैसे विरोध प्रदर्शनो और धरनो का लंबा सिलसिला चलाया गया था. ऐसे अनेक अभियान का ही नतीजा था कि ट्रंप 2020 में सत्ता में वापस नहीं आ सके. इसलिए वह घरेलू राजनीति के दबाव में ऐसा कर रहे है और अपने नागरिकों को यह एहसास दिलाना चाहते है कि उन्होंने चुनाव में जो कहा था, उसे पूरा कर रहे हैं. पद संभालते ही जिस तरह से उन्होंने ताबड़तोड़ फैसले किए, उसका संदेश भी यही था. अमेरिका की वर्तमान समस्या का एक सुखद पहलू यह है कि अवैध अप्रवासियों के खिलाफ अमेरिका, यूरोप सहित कई देशों में नकारात्मक माहौल बनने लगा है क्योंकि यूरोप के कई देशों का जनसंख्या घनत्व इस तरह से बदल गया है कि वे इस्लामिक राष्ट्र बनने के कगार पर पहुँच गए हैं.

यूरोप के कई देशों में प्रायः होने वाले दंगे फसाद की घटनाएँ और अब लॉस एंजिल्स से निकलकर अमेरिका के दूसरे राज्यों में फैलने की आशंका वाले इस आंदोलन की हिंसक घटनाएं सभी नागरिको के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि उनके टैक्स पर ही अवैध घुसपैठिए देश की संसाधनों पर पल रहे हैं. जिससे देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है. ऐसी गंभीर घटनाएं अवैध अप्रवासन के खिलाफ़ कानूनी नागरिको में जागरूकता बढ़ाने का कार्य करेंगी.

इस प्रकरण से भारत सरकार पर भी यह दबाव बनेगा कि वह देश में रह रहे अवैध नागरिकों को वापस भेजने की पहल करे. आज शायद ही कोई राजनीतिक दल अवैध आप्रवसान के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करेगा. असम में भाजपा की जीत का एक बड़ा कारण वहां अवैध आप्रवासन के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने का चुनावी वायदा ही था. यद्यपि राजनैतिक और कानूनी दांव पेंच के कारण सभी अवैध घुसपैठिये प्रत्यर्पित तो नहीं किए जा सके लेकिन असम सरकार की सख्ती के चलते है राज्य में घुसपैठ पर लगाम लग गयी है, यद्यपि भारत में हो रही घुसपैठ अभी भी ज्यों की त्यों चल रही है. अवैध घुसपैठिए अब असम की बजाय दूसरे राज्यों में पहुँच रहे हैं. लगातार हो रही घुसपैठ से कई राज्यों का जनसंख्या आंकड़ा बदल गया है और वहाँ हिंदू अल्पसंख्यक और मुस्लिम बहुसंख्यक हो गए हैं. जनसंख्या घनत्व का यह परिवर्तन गज़वा ए हिंद चलाने वाले मुस्लिम कट्टरपंथियों को अत्यंत प्रिय है. इसलिए वे घुसपैठियों के कानूनी प्रपत्र तैयार करके उन्हें रणनैतिक रूप से बसाने का कार्य भी कर रहे हैं. इसके बावजूद भी संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण योजनाएँ धरातल पर नहीं उतर पा रही.

यूरोपीय देशों में अवैध घुसपैठियों के विरुद्ध हो रही कार्रवाई की पृष्ठ भूमि में यदि भारत भी अगर ऐसा कोई अभियान चलाता है, तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिकूल प्रतिक्रिया नहीं होगी राजनीति और और राष्ट्रीय राजनीति में भी हलचल नहीं होगी. इसलिए भारत के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं वाली सबसे उपयुक्त स्थिति है.

~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~

रविवार, 1 जून 2025

चाटुकारों का चक्रव्यूह || राहुल का मोदी विरोध, बना भारत विरोध

 








चाटुकारों का चक्रव्यूह || राहुल का मोदी विरोध, कैसे बन जाता है भारत विरोध ?

कांग्रेस नेता शशि थरूर के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल अमेरिका, पनामा कोलंबिया, ब्राज़ील, और गुयाना की यात्रा पर हैं. ऑपरेशन सिंदूर की सफलता अर्जित करने के बाद भारत सरकार ने सात प्रतिनिधिमण्डल अपने रणनैतिक साझीदार तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों में भेजें हैं, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान द्वारा अपने देश में उगाई जा रही आतंकवाद की फसल के बारे में बताना और ये अनुरोध करना है कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान द्वारा लाए गए किसी भी भारत विरोधी प्रस्ताव का विरोध करें क्योंकि पाकिस्तान इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है.

शशि थरूर की अमेरिका यात्रा इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि उन्होंने अमेरिका अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे की पोल खोल दी जिसमें उन्होंने भारत और पाकिस्तान के मध्य युद्धविराम कराने का श्रेय लिया था. थरूर ने भारत का पक्ष इतनी मजबूती से रखा जिससे पूरा देश गौरवान्वित हुआ लेकिन उनकी धारदार और प्रभावी शैली स्वयं उनकी पार्टी कांग्रेस को रास नहीं आई. पार्टी प्रवक्ताओं ने उनपर जोरदार हमला बोला और उन्हें मोदी का चमचा तक करार दे दिया. स्वाभाविक है ऐसा पार्टी आलाकमान के निर्देश पर ही किया गया है. सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल के लिए कांग्रेस ने शशि थरूर का नाम नहीं दिया था लेकिन सरकार ने थरूर के संयुक्त राष्ट्र में अनुभव और अंतरराष्ट्रीय नीतियों की समझ को देखते हुए प्रतिनिधिमण्डल का नेता बना दिया. कांग्रेस हाई कमान की अनिच्छा के बाद भी शशि थरूर ने प्रतिनिधिमण्डल का नेता बनना स्वीकार किया तथा अपने अनुभव एवं ज्ञान का भरपूर लाभ देश को दिया.

कांग्रेस को वॉशिंगटन और पनामा में शशि थरूर द्वारा दिए गए प्रस्तुतिकरण पर आपत्ति है, क्योंकि उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में उड़ी सर्जिकल स्ट्राइक में पहली बार भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके पाकिस्तान स्थित आतंकी अड्डों तथा लॉन्च पैडों को नष्ट किया. थरूर ने कहा कि कारगिल युद्ध के दौरान भी भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार नहीं की थी लेकिन उरी हमले के बाद की. जब पुलवामा में आतंकी हमला हुआ तो भारतीय सेना ने, न केवल नियंत्रण रेखा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सीमा भी पार करते हुए पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट में आतंकवादियों का मुख्यालय नष्ट किया. उन्होंने आगे कहा कि ऑपरेशन सिंदूर भारत का एक नया सामान्य तरीका था. इस बार हम, न केवल नियंत्रण रेखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा से आगे गए, बल्कि हमने पाकिस्तान की हृदयस्थली पंजाब और पाकिस्तान के गैरकानूनी कब्जे वाले कश्मीर में नौ जगहों पर आतंकी ठिकानों, प्रशिक्षण केंद्रों, आतंकी मुख्यालयों पर हमला करके उन्हें नष्ट कर दिया. यह नया सामान्य तरीका होने जा रहा है। प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऑपरेशन सिंदूर जरूरी था क्योंकि पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने 26 हिंदू महिलाओं के माथे से सिंदूर मिटा दिया था।

पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद की जितनी घटनाएं भारत में हो चुकी है यदि उनका वर्णन किया जाए तो कई पुस्तकें तैयार हो जाएंगी लेकिन कुछ घटनाओं को भूलना संभव नहीं है. इनमें 26 नवंबर 2008 को मुंबई हमला भी है जिसमें 171 से अधिक लोग मारे गए थे और 300 से अधिक घायल हुए थे. कांग्रेस ने इसे भगवा आतंकवाद बनाने की कोशिश की लेकिन पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की. यूपीए सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल में पूरे भारतवर्ष में पाकिस्तानी आतंकियों ने घूम घूमकर हमले किए लेकिन सरकार ने पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की. अब कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार से पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक होती रही है और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी 6 बार सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी लेकिन कांग्रेस ने कभी उनका राजनैतिक लाभ लेने की कोशिश नहीं की. यह भी एक तथ्य है कि कांग्रेस शासनकाल की सर्जिकल स्ट्राइक का लेखाजोखा कम से कम भारतीय सेना के पास तो नहीं है. मोदी कार्यकाल में भी पांच बड़े पाकिस्तान प्रयोजित आतंकी हमले हो चुके हैं. जिनमें पहलगाम के अतिरिक्त, उडी, गुरदासपुर, पठानकोट, पुलवामा और अमरनाथ यात्रियों पर हमला शामिल है. लेकिन पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए ऑपरेशन सिंदूर से पहले भी मोदी सरकार ने दो सर्जिकल स्ट्राइक की थी.

ऐसा लगता है कि कांग्रेस ऑपरेशन सिंदूर की सफलता से बहुत घबराई हुई है और उसे अपने राजनीतिक अस्तित्व पर संकट लगने लगा है. उरी और बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार से सुबूत मांग कर जनता में भ्रम फैलाने की कोशिश की थी ताकि इसका राजनैतिक लाभ भाजपा को न मिल सके. लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के लिए मोदी ने जबरदस्त तैयारी की थी. पहले से ही ऐलान कर दिया था कि कार्यवाही करेंगे. पूरे ऑपरेशन की लाइव वीडियोग्राफी हो रही थी और वॉर रूम में सैन्य अधिकारियों के साथ बैठ कर मोदी स्वयं इसका लाइव कवरेज देख रहे थे. अबकी बार कांग्रेस के पास सुबूत मांगने का विकल्प भी नहीं हैं. भारतीय सेना ने जो वीडियो और फोटो जारी किए हैं उन्हें देखकर पूरा विश्व आश्चर्यचकित हैं. इतना अचूक प्रहार किया गया और पाकिस्तानी वायु रक्षा तंत्र को भनक तक नहीं लगी. पाकिस्तान को तब पता चला जब ऑपरेशन सिन्दूर पूरा हो चुका था. पाकिस्तानी सेना ने बाद में भारत में नागरिक ठिकानों पर गोले दागे और ड्रोन हमले किए. भारतीय सेनाओं ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तान के कई सैन्य हवाई पट्टियों को नष्ट कर दिया जिसमें सरगोधा और नूर खान जैसे महत्वपूर्ण एयरबेस भी शामिल है जिन्हें पाकिस्तान ने भारत पर परमाणु हमले करने के उद्देश्य से बनाया था है. इन एयर बेस के पास किराना हिल्स में पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने भी मिसाइल धमाकों से कांप उठे और उनसे विकिरण लीक होने की सूचनाएं अमेरिका तक पहुँच गई. घबराए पाकिस्तान ने भारत से सीजफायर की गुहार लगाई, जिसे भारत ने स्वीकार भी कर लिया क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकियों और उनके आकाओं के ठिकानों को नेस्तनाबूद करना था जो काफी हद तक पूरा हो चुका था. सबसे बड़ी बात, भारत किसी भी हालत में पकिस्तान के परमाणु संयंत्रों पर हमले का आरोप अपने ऊपर नहीं लगने देना चाहता था.

जहाँ तक शशि थरूर का प्रश्न है, कांग्रेस में पिछले काफी समय से उन्हें अनदेखा किया जा रहा है और ऐसी परिस्थितियां बनाई जा रही है कि वे स्वयं कांग्रेस छोड़ दें. पार्टी में अपने उदय के बाद राहुल गाँधी स्वयं योग्यता और विद्वता का पैमाना बन गए हैं. लोकप्रिय प्रभावशाली, कुशल और विद्वान व्यक्ति राहुल के नेतृत्व के लिए खतरा बन सकता है, इसलिए ऐसे व्यक्ति को पार्टी में दरकिनार किया जाता है. उसे राहुल गाँधी की हाँ में हाँ मिलाने के लिए प्रेरित किया जाता है और ऐसा न करने पर अपमानित करके पार्टी छोड़ने पर विवश कर दिया जाता है. ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण हैं. 2014 में शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस के पास केवल 44 सीटें थी, जो नेता विपक्ष के लिए आवश्यक संख्या से कम थीं. तब थरूर की योग्यता को अनदेखा करके मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा में नेता बनाया गया था. 2019 में भी कांग्रेस नेता विपक्ष के लिए पर्याप्त संख्या नहीं जुटा सकी. थरूर के चौथी बार चुनकर आने के बाद भी अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में नेता बनाया गया. ये दोनों नेता थरूर की तुलना में कहीं नहीं ठहरते. यदि थरूर को मौका दिया गया होता तो पार्टी लोकसभा में अपना पक्ष बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर सकती थी. पार्टी अध्यक्ष पद के लिए भी शशि थरूर एक प्रत्याशी थे लेकिन गाँधी परिवार ने मल्लिकार्जुन खड़गे पर दांव लगाया. ये घटनाएं और परिस्थितियां पार्टी में शशि थरूर की महत्वहीनता और पार्टी की दिशा और दशा भी रेखांकित करती हैं.

कांग्रेस में योग्यता की अहमियत न होने के कारण स्वाभिमानी नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. अब अधिकांश ऐसे लोग बचे हैं जो गाँधी परिवार के चाटुकार हैं और अपने अस्तित्व के लिए पूरी तरह से गाँधी परिवार पर निर्भर है. पार्टी में प्रबुद्ध मंडल अब बचा नहीं, और चाटुकार मण्डली के बस का कुछ है नहीं. इसलिए राहुल गाँधी और अन्य नेताओं द्वारा अनर्गल बयानबाजी की जा रही है, जिससे कांग्रेस की स्थिति दिन प्रतिदिन हास्यास्पद बनती जा रही है. अनर्गल बयानबाजी के बीच शशि थरूर ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमण्डल के नेता के रूप में अपने प्रस्तुतिकरण से देश और विदेश में प्रभावी नेता के रूप में अपने आपको स्थापित कर लिया है. इसलिए कांग्रेसी चाटुकारों का चक्रव्यूह उनका कुछ बिगाड़ पाएगा, इसकी संभावना नहीं है.

~~~~ शिव मिश्रा~~~~~~