सोमवार, 10 फ़रवरी 2025

महाकुंभ पर महाभारत

 



महाकुंभ पर महाभारत


29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के दिन कुंभ मेले में हुई भगदड़ में कई लोग मारे गए और अनेक घायल हुए, जिससे विपक्ष को योगी और उनकी व्यवस्था को कठघरे में खड़ा करने का मौका मिल गया. विपक्षी दल, जो पहले कुंभ आयोजन पर करदाताओं के पैसे की बर्बादी का राग अलापते थे, लाशों की राजनीति में लग गए. इसके लिए संसद से सड़क तक तरह तरह के उपक्रम किए जा रहे हैं. योगी और मोदी का इस्तीफा भी मांगा गया और जनता में रोष उत्पन्न करने के लिए साधु संतों का सहारा भी लिया गया. दुर्भाग्य से ऐसे अनेक साधु संत हैं भी जो सनातन धर्म और संस्कृति को लांछित करने के लिए विपक्ष का हथियार बन जाते हैं. ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने तो योगी आदित्यनाथ पर सीधे प्रहार करते हुए कहा कि वह मुख्यमंत्री के पद के योग्य नहीं है, वह झूठा है, और उनका इस्तीफा तक मांग लिया. यद्यपि शकाराचार्य स्वयं विवादित व्यक्ति है, लेकिन किसी भी शंकराचार्य को राजनीतिक मोहरा नहीं बनना चाहिए. आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म को समृद्ध और शक्तिशाली बनाने के लिए जिन पीठों की स्थापना की थी उनका दुरुपयोग सनातन धर्म और संस्कृति को अपमानित करने के लिए हो इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता. कुम्भ में अव्यवस्था का आरोप लगाते हुए इस्तीफ़े की मांग तो समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं ने भी की जिससे इस्तीफ़ा मांगने वालों के बीच आपसी सम्बन्ध का भी पता चलता है.

यद्यपि राज्य सरकार ने तुरंत पुलिस और न्यायिक जांच के आदेश दिए लेकिन राजनीतिक गिद्ध लाशों पर बैठ गए और अभी भी मृतकों की संख्या पर विवाद कर रहे हैं. अन्य देशों की घटनाओं से संबंधित भ्रामक वीडियो सोशल मीडिया में प्रसारित किये जा रहे हैं, और उनके आधार पर यह सिद्ध करने की कोशिश की जा रही है कि मृतकों की संख्या हजारों में है. सपा नेत्री जया बच्चन ने तो यहाँ तक कह डाला संगम का पानी तो दिल्ली में यमुना के पानी से भी ज्यादा संक्रमित है क्योंकि वहाँ हजारों लोगों की लाशें पानी में फेंकी गई हैं. कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने यहाँ तक कह डाला है कि कुंभ स्थान से न रोटी मिलती है न रोजगार लेकिन लोग हजारों रुपया बर्बाद करके डुबकी लगाने जा रहे हैं. इन दोनों ही दलों ने शुरुआत से ही कुम्भ के विरुद्ध अभियान चला रखा है त्ताकि यह आयोजन सफल न हो सके.  

यह तुष्टीकरण की ही पराकाष्ठा थी कि ज्ञानवापी में ऋंगार गौरी और संभल में श्री हरि विष्णु मंदिर में हिंदुओं की पूजा अर्चना बंद करवाने वाले राजनेता, कुंभ में मुस्लिमों के स्टाल लगाने  पर प्रतिबंध के विरोध में योगी के विरुद्ध विष वमन कर रहे थे, कुम्भ की भूमि को वक्फ की जमीन बता रहे थे, लेकिन भगदड़ में श्रद्धालुओं के मरने और घायल होने से खासे उत्साहित और प्रफुल्लित यही राजनेता घड़ियाली आंसू बहाने लगे. प्रत्यक्षदर्शियों और घायलों के अनुसार भगदड़ जान बूझकर करवाई गई थी और इसके लिए कुछ अराजक तत्वों को भेजा गया था. इसके बाद सरकार ने कुंभ दुर्घटना की जांच एसटीएफ को सौंपी दी, जिसकी प्रारंभिक जांच में षडयंत्र की पुष्टि हुई है. एसटीएफ ने कई लोगों को हिरासत में लिया है और पूछ्ताछ चल रही है. भगदड़ के लिए कोई भी पार्टी या नेता जिम्मेदार क्यों न हो, लेकिन राजनैतिक दुर्भावना से किया गया यह षड्यंत्र मानवता को शर्मसार करने वाला है. यदि यह षड्यंत्र है तो इसमें शामिल लोग हिंदू और हिंदुस्तान के हितैषी नहीं हो सकते, यह सभी हिन्दुओं को सदैव याद रखना चाहिए.  

144 बरसों बाद बने अद्भुत खगोलीय संयोग से प्रयागराज में हो रहे महाकुंभ 2025 पर कुछ राजनीतिक दल ओछी राजनीति कर रहे हैं. 6 वर्षों के अन्तराल पर अर्धकुंभ, 12 वर्षों पर पूर्ण कुम्भ का संयोग बनता है.144 वर्षों के बाद पडने वाले महाकुंभ का महत्त्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि इसमें कोई भी व्यक्ति अपने पूरे जीवनकाल में एक बार ही सम्मिलित हो सकता है. इसलिए इस महाकुंभ में श्रद्धालुओं की संख्या अर्द्धकुंभ और पूर्ण कुंभ में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या से कई गुना अधिक होना स्वाभाविक है. इस बार सरकार ने 40 करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के भाग लेने का अनुमान लगाया था और डिजिटल आकलन के अनुसार अब तक आये श्रद्धालुओं का आंकड़ा इसके काफी करीब पहुँच चुका है, जबकि अभी दो सप्ताह से अधिक का समय बाकी है. इस प्रकार यह आंकड़ा 60 करोड़ पार कर सकता है. उत्तर प्रदेश सरकार ने इसके लिए व्यापक तैयारियां भी की हैं. यह आयोजन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हृदय के बहुत नजदीक है और इसलिए वह लगातार आयोजन की व्यवस्थाओं की सूक्ष्म निगरानी करते रहे और अनेक बार संगम स्थल पर जाकर तैयारियों का जायजा लेने पहुंचे. इसमें कोई संदेह नहीं कि महाकुंभ 2025 की व्यवस्था अब तक के सभी कुंभ आयोजनों में सर्वश्रेष्ठ हैं.

वर्तमान समय में राजनीति में आ रही गिरावट नित नई नीचाइयाँ छू रही है, लेकिन यह अनायास नहीं है क्योंकि लगातार राजनीतिक गिरावट की व्यवस्था तो संविधान में ही निहित  है और उसका मूल कारण है ब्रिटेन की नकल कर बनाई गई बहुदलीय राजनैतिक प्रणाली. भारत में राजनीति अब समाज और राष्ट्रसेवा का माध्यम न हो कर सबसे अधिक फायदेमंद उद्योग बन गयी है. कुकुरमुत्तों की तरह राजनीतिक दल उग आए हैं और अनेक लोग सत्ता पाकर प्रादेशिक क्षत्रप बन गए हैं. यह स्थिति लगभग हर राज्य में हो चुकी है. सत्ता पाने के लिए ये कुछ भी करने को तैयार है लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण इनका अनिवार्य कर्तव्य बन गया है, और हिंदू विरोध स्वाभाविक दिनचर्या. इसलिए केवल समाजवादी पार्टी ही नहीं, कांग्रेस और उसके गठबंधन के राजनीतिक दल हिंदू और उनके तीज त्योहारों, पौराणिक परंपराओं का मुखर विरोध करते हैं. हिन्दुओं को बांटने के लिए जातिगत जनगणना का जाप करते हैं और अन्य पिछड़ा वर्ग में सभी मुसलमानों को भी जोड़ लेते हैं, जैसा कि हाल में तेलंगाना में हुए जातिगत सर्वे में किया गया है. अखिलेश यादव का पीडीए यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक (केवल मुसलमान) मात्र चुनाव जीतने का फॉर्मूला है, जो उनका अपना नहीं है, बल्कि भारत को 2047 तक इस्लामिक राष्ट्र बनाने का पीएफआई फॉर्मूला है. समाजवादी पार्टी का मुस्लिम तुष्टीकरण किसी से छिपा नहीं है. लालू यादव ने जब मुस्लिम तुष्टिकरण के लिए लालकृष्ण आडवाणी को गिरफ्तार कर उनका रामरथ रोक दिया था तो मुलायम सिंह यादव कहाँ पीछे रहने वाले थे उन्होंने राम जन्मभूमि पर राम भक्तों पर गोली चलवाकर सैकड़ों कार सेवकों की हत्या करवा दी. बाद में उन्होंने कहा भी था कि अगर मुस्लिमों को खुश करने के लिए और हिंदुओं को मरवाना होता तो वे जरूर मरवाते.

अखिलेश यादव की साढ़े चार  मुख्यमंत्री वाली सरकार में एक मुख्यमंत्री आजम खान भी थे जो 2013 में प्रयागराज में कुम्भ आयोजन के प्रभारी थे. सरकार द्वारा घोषित आंकड़ों के अनुसार उस समय लगभग 2 करोड़ श्रद्धालु शामिल हुए थे. उस समय भगदड़ में 42 से अधिक श्रद्धालुओं की मृत्यु हो गई थी. इस कारण वह योगी आदित्यनाथ द्वारा कुंभ आयोजन के लिए प्रस्तावित भव्य व्यवस्थाओं पर दिए जा रहे बयानों से काफी कुंठित थे. विपक्षी को इस बात की भी चिंता थी कि दावे के अनुसार यदि कुम्भ में 40 करोड़ लोग शामिल होते हैं और यह सकुशल संपन्न हो जाता है तो भारतीय जनता पार्टी को राजनीतिक लाभ होगा, योगी का कद बढ़ेगा और विपक्ष को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा. इसलिए उन्होंने कुंभ आयोजन में खामियां गिनवाने के नाम पर अनेक भ्रामक बयान दिये. उनकी देखा देखी राहुल भी इस अभियान में जुट गए. समाजवादी पार्टी, कांग्रेस तथा इंडी गठबंधन के घटक दल पूरे कुंभ आयोजन को कटघरे में खड़ा करने के लिये हर संभव गलतबयानी कर  हिंदू समाज को दिग्भ्रमित करने का काम रहे हैं. इसका उद्देश्य केवल हिंदू श्रद्धालुओं को कुम्भ में आने से रोकना नहीं है बल्कि बड़ा उद्देश्य हिन्दुत्व को कमजोर करने, हिंदू समाज को विभाजित करने के साथ हिंदू धर्म और संस्कृति को नष्ट करना है. ये सभी हिंदू विरोधी, वामपंथी और इस्लामिक कट्टरपंथियों के इशारे पर काम कर रहे हैं जो जल्द से जल्द भारत को इस्लामिक राष्ट्र में बदलना चाहते हैं.

समझना मुश्किल नहीं है कि अधिकांश राजनैतिक दल स्वार्थ में पूरी तरह अंधे हो चुके हैं. अब वे अपनी प्राचीन सनातन संस्कृति पर स्वयं प्रहार कर उसे नष्ट करने पर आमादा है. राष्ट्र की एकता और अखंडता पर उत्पन्न हो चुके गंभीर खतरे से भी उन्हें कोई लेना देना नहीं है. सत्य तो यह है कि वे स्वयं राष्ट्र के लिए बड़ा खतरा बन चुके हैं. इसलिए सभी राष्ट्रप्रेमियों को सावधान ही नहीं रहना होगा बल्कि ऐसे तत्वों से जमकर लोहा लेना होगा क्योंकि राष्ट्र की रक्षा के लिए सभी की सहभागिता और योगदान आवश्यक है. 

~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

शनिवार, 25 जनवरी 2025

जिहाद का अर्थशास्त्र है हलाल

 




               जिहाद का अर्थशास्त्र है हलाल

हलाल का बवाल फिर उबाल पर है और इसका कारण है उत्तर प्रदेश सरकार के हलाल उत्पादों पर प्रतिबंध के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में दायर हुई याचिका. योगी  सरकार ने 18 नवंबर 2023 को हलाल उत्पादों की बिक्री, वितरण और भंडारण पर प्रतिबंध लगा दिया था. योगी आदित्यनाथ के इस कदम की जितनी प्रशंसा की जाय कम है क्योंकि यह देश के धर्मनिरपेक्ष स्वरूप पर कलंक होने के साथ देश की अर्थव्यवस्था में सरकार के समानांतर जजिया की तरह टैक्स वसूलने का षडयंत्र है, जो राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए बहुत बड़ा खतरा है क्योंकि इस पैसे का इस्तेमाल आतंकवादी गतिविधियों, धर्मान्तरण और गजवा-ए-हिन्द के वित्तपोषण के लिए किया जाता है. यह बड़ा और राष्ट्रीय महत्त्व का मुद्दा है, इसलिए यह कार्य तो मोदी सरकार को बहुत पहले करना चाहिए था. दुर्भाग्य से दो पूर्ण बहुमत के कार्यकाल में उन्होंने इस पर कुछ नहीं किया. अब नाइडू और नीतीश की बैसाखी के सहारे चलने वाली सरकार कोई कार्रवाई करेगी या कानून बनाएगी इसकी संभावना नहीं है. वैसे भी मोदी सरकार हिंदू हितों के मामलों में स्वयं साहसिक कदम उठाने के बजाय सर्वोच्च न्यायालय के कंधे पर डाल कर समाधान खोजती है लेकिन भारतीय न्यायपालिका का इस्लामिक और वामपंथी शक्तियों के दबाव में काम करने का पुराना इतिहास है, इसलिए उससे  सकारात्मक निर्णय की अपेक्षा करना व्यर्थ है. इसे शाहीनबाग, किसान आंदोलन आदि के मामले से समझा जा सकता है.

सर्वोच्च न्यायालय ने निर्यात के लिए उत्पादित वस्तुओं को छोड़कर उप्र की योगी सरकार द्वारा हलाल उत्पादों की बिक्री, वितरण और भंडारण पर लगाए गए प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई प्रारम्भ की. ये याचिकाएं जमीयत उलेमा-ए-हिंद की तरफ से लगाई गई हैं, जो हलाल प्रमाण पत्र देकर जजिया की तरह टैक्स  वसूली करने वाली भारत की सबसे बड़ी संस्था है और यह देवबंद दारूल उलूम के सर्वेसर्वा और गज़वा ए हिंद के प्रमुख कर्ताधर्ता अरशद मदनी की जेबी संस्था है. भारत के महाधिवक्ता तुषार मेहता ने कहा कि यह हैरान करने वाला है कि सीमेंट, सरिया, आटा, बेसन यहां तक कि पानी की बोतल तक का हलाल प्रमाणन किया जा रहा है और लाखों करोड़ रुपये वसूले जा रहे हैं. न्यायमूर्ति बीआर गवाई की अध्‍यक्षता वाली पीठ के समक्ष सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने मांस आधारित उत्पादों के अतिरिक्त अन्य उत्पादों पर हलाल प्रमाणपत्र को लेकर हैरानी जताई. उन्‍होंने कहा कि जहां तक ​​हलाल मांस का सवाल है, किसी को कोई आपत्ति नहीं हो सकती लेकिन आश्चर्य की बात है  ​​कि सीमेंट-सरिये को भी हलाल-प्रमाणित किया जा रहा है. बोतलबंद पानी भी हलाल प्रमाणित किया जा रहा है. न्यायालय ने जमीयत उलेमा ए हिंद को प्रतिउत्तर दाखिल करने के लिए 1 मार्च तक का समय दे दिया. न्यायालय ने पहले ही जमीयत उलेमा ए हिंद के मालिक अरशद मदनी और इसके कर्मचारियों के विरुद्ध किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर प्रतिबंध लगा रखा है.

भारत में विभिन्न उत्पादों और सेवाओं के लिए सरकारी मानकीकरण की व्यवस्था है.  खाद्य पदार्थों की शुद्धता और गुणवत्ता के लिए FSSAI, अन्य उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए के लिए ISI (BIS), ISO आदि द्वारा प्रमाणन होता है. इसलिए किसी व्यक्ति या निजी संस्था द्वारा उत्पादों और सेवाओं का प्रमाणन न केवल अनावश्यक बल्कि गैरकानूनी है और देश की संप्रभुता को चुनौती है. स्थिति यह हो गयी है कि हलाल उत्पाद जो हिंदुओं के लिए धार्मिक रूप से अस्वीकार्य हैं, जबरन थोपे जा रहे हैं क्योंकि रेल, हवाई जहाज, होटल, रेस्टोरेंट और सरकारी कैंटीनों हलाल चाय, कॉफी, दूध और दूसरे खाद्य पदार्थ प्रयोग किए जा रहे हैं, और गैर मुस्लिमों को इसकी जानकारी भी नहीं दी जाती.

भारत में संविधान प्रदत्त धार्मिक स्वतंत्रता का दुरुपयोग कर कुछ मुस्लिम संस्थाओं द्वारा हलाल प्रमाणपत्र देकर भारी शुल्क वसूला जा रहा है. पिछली सरकारों ने वोट बैंक और तुष्टिकरण की राजनीति के चलते न केवल इसे अनदेखा किया बल्कि निर्यात किए जाने वाले मांस का हलाल प्रमाणन अनिवार्य भी कर दिया था जिस कारण मांस के निर्यात के व्यवसाय गैर मुस्लिम बाहर हो गए. यद्यपि मोदी सरकार ने मांस की  निर्यात प्रक्रिया में थोड़ा सुधार करके ऐसे देश जो हलाल मांस की मांग नहीं करते, उन्हें निर्यात किए जाने वाले मांस में हलाल प्रमाणन की अनिवार्यता खत्म कर दी है लेकिन यह नाकाफी है.

हलाल उत्पाद, जिहाद का ही एक हिस्सा हैं. गैर मुस्लिम राष्ट्र में जहाँ कहीं भी मुसलमान होते हैं, राजनीतिक इस्लाम के वैश्विक षड्यंत्र के अनुसार उस देश की अर्थव्यवस्था को कब्जाने की कोशिश की जाती है. मुसलमानों द्वारा सफाई, कूड़ा और कबाड़ बीनने जैसे छोटे छोटे कार्य अपने हाथ में लेकर बहुसंख्यकों का दिल जीतने की कोशिश की जाती है जिसके लिए अवैध घुसपैठियों को लगाया जाता है. पंचर जोड़ने से लेकर स्कूटर, मोटरसाइकिल और कार की मरम्मत, डेंटिंग, पेंटिंग, वेल्डिंग आदि का काम हथिया लेते हैं. बाल काटने से लेकर लुहार और बढ़ई का काम भी करते हैं. बहुसंख्यकों के तीज त्यौहार और उत्सवों में सेवा प्रदाता के रूप में अपनी पहुँच बनाते हैं. महिलाओं की चूड़ी, सिंदूर और सौंदर्य प्रसाधन की सामग्री से लेकर सिलाई कढ़ाई बुनाई पर इस समुदाय ने अपनी पकड़ बना ली है. सब्जी और फलों के थोक और फुटकर बाजार पर मुस्लिमों का कब्ज़ा है. मंदिरों में फूल और प्रसाद बेचने वाले भी बड़ी संख्या में मुस्लिम मिल जाएंगे. मांस, और चमड़ा उद्योग पूरी तरह से इस समुदाय के पास है. हलाल प्रमाण पत्र के लिए कई औपचारिकताएं होती हैं जिसमें उत्पाद बनाने के लिए मुसलमान कर्मचारियों का होना एक अनिवार्य शर्त है. यह बिना किसी संवैधानिक व्यवस्था के आरक्षण का लाभ लेना है, जो मुस्लिम समुदाय को रोजगार प्राप्त करने के अवसर भी उपलब्ध कराता है. इसके अतरिक्त उस परिसर में प्रार्थना कक्ष, क़िबला दिशा सूचक, नमाज चटाई, स्थानीय नमाज की समय सूची, कुरान की कॉपी, रमजान से संबंधित सेवाएं उपलब्ध होना भी आवश्यक है. इस तरह हलाल प्रमाण पत्र लेने वालों से ही इस्लाम का प्रचार और प्रसार करवाया जाता है.

हलाल का जाल अब केवल मांस तक सीमित नहीं है बल्कि यह दैनिक जीवन में प्रयोग किए जाने वाले सभी उत्पादों और सेवाओं  पर फैल गया है. सौंदर्य प्रसाधन, घर गृहस्थी  के सभी सामान, दवाइयां, अस्पताल, ईट, सीमेंट, सरिया, फ्लैट, विला साहित लगभग सभी वस्तुओं और सेवाओं पर शिकंजा कस दिया है. यही नहीं कच्चे माल, भण्डारण, और पूरी औद्योगिक इकाई पर भी हलाल प्रमाणन आवश्यक है। हलाल प्रमाणन  के नाम पर उत्पादकों और सेवा प्रदाताओं से बड़ी रकम वसूली जाती है, जिसका उपयोग इस्लामीकरण के लिए किया जा रहा है, जिसमे आतंकवादी गतिविधियों का वित्तपोषण, धर्मांतरण तथा जिहाद की सभी परियोजनाये शामिल हैं. जमीयत उलेमा-ए-हिंद गोधरा में 59 हिंदुओं को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में जिन्दा जलाकर मारने वाले सजायाफ्ता आतंकी कैदियों के सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रहे हैं. गोधरा तथा गुजरात दंगों में आरोपित मुस्लिमों के मुकदमे भी इसी ने लड़ें. चाहे  अयोध्या, मथुरा और काशी में हिंदू धर्म स्थलों को तोड़ कर बनाई गई मसजिदों के मुकदमें हों, या फिर संशोधित नागरिकता कानून, समान नागरिक संहिता, वक्फ बोर्ड आदि से संबंधित मुकदमे हो सब का वित्तपोषण प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जमीयत उलेमा ए हिन्द करता रहा है. देशभर में होने वाले हिंदू मुस्लिम दंगों के मुस्लिम आरोपितो के मुकदमों तथा दंगों में मुस्लिम मृतकों के परिवारों को वित्तीय सहायता भी जमीयत उलेमा-ए-हिंद और हलाल से जुड़े अन्य संगठन करते हैं. इसमें संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है कि जजिया की तरह वसूला गया हलाल टैक्स आतंकवादी और राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में किया जाता हैं. गज़वा-ए-हिंद से जुड़े हुए सभी जिहादी कार्य प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से देवबंद दारूल उलूम और जमीयत उलेमा ए हिंद से जुड़े होते हैं.

हलाल जिहाद का अर्थशास्त्र है जिसे हलालोनॉमिक्स कहते हैं. इसका उद्देश्य वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कब्जा करके गैर-मुस्लिमों से पैसा वसूल कर पूरी दुनिया में इस्लाम का वर्चस्व कायम करना है. पूरे विश्व में हलाल अर्थव्यवस्था ८ ट्रिलियन यूएस डॉलर पार कर चुकी है. विश्व हलाल कॉन्फ्रेंस में बोस्निया के ग्रैंड मुफ्ती मुस्तफा सरिक ने  कहा था कि “अब उन्हें हथियार उठाकर युद्ध करने और आतंक फैलाने की  जरूरत नहीं है, हलाल अर्थव्यवस्था के माध्यम से ही वे  पूरे विश्व पर राज कर सकेंगे.” 

सरकार और न्यायालय इस विषय में कुछ करेगा इसकी संभावना नहीं है लेकिन सभी गैर मुस्लिम विशेषकर हिंदू जागरूक बनें और हलाल उत्पादों का बहिष्कार करें. इस प्रकार देश और सनातन संस्कृति को काफी हद तक बचा सकते हैं, और यह काम आप आज से ही शुरू करें क्योंकि कल बहुत देर हो जायेगी. 

~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

 

महाकुंभ पर महाभारत

  महाकुंभ पर महाभारत 29 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या के अमृत स्नान के दिन कुंभ मेले में हुई भगदड़ में कई लोग मारे गए और अनेक घायल हुए, जिससे...