शनिवार, 28 जून 2025

लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है

 


संविधान हत्या दिवस || लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है || क्या मोदी सरकार के कार्यकाल में भी अघोषित आपातकाल लगा है


आपातकाल के 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन लोगों के मन और मस्तिष्क से इस अवधि की भयावह यादें अभी भी मिटी नहीं है. 25 जून 1975 को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने बिना मंत्रिमंडल की सिफारिश के केवल इंदिरा गाँधी के कहने पर आपातकाल घोषित कर दी थी. संविधान ताक पर रख कर सभी नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. लोकतंत्र समाप्त हो गया था. स्वतंत्र भारत का यह सबसे अलोकतांत्रिक, काला और वीभत्स कालखंड था. कोई भी सभ्य भारतीय कभी भी इसे नहीं भूल सकता और भूलना भी नहीं चाहिए. इसलिए मोदी सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का निर्णय लिया गया जो सर्वथा उचित है.

आपात काल की सबसे बड़ी बात यह थी कि यह देश पर आए किसी खतरे का सामना करने के लिए नहीं बल्कि यह इंदिरा गाँधी के अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण लगाया गया था. चुनाव स्थगित हो गए थे और सामान्य नागरिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई थी और पूरी तरह से सरकार की मनमानी चल रही थी. प्रेस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसमें मीसा (आंतरिक सुरक्षा कानून) लागू कर दिया गया था, जिसमें किसी को भी बिना कोई कारण बताए जेल में डाला जा रहा था. जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई जैसे विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था. इंदिरा गाँधी ने अपने सभी राजनैतिक विरोधियो और विरोध की आशंका वाले लोगो को जेल में ठूंस दिया था.

इंदिरा गाँधी द्वारा देश पर आपातकाल थोपने का असली कारण यह था कि प्रयागराज उच्च न्यायालय ने उन्हें चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया था और उनको छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के अयोग्य तथा कोई भी सरकारी पद संभालने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. उच्च न्यायालय के इस आदेश को नकारते हुए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और 24 जून 1975 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश में आंशिक बदलाव करते हुए उन्हें पद पर बने रहने की अनुमति प्रदान कर दी थी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जयप्रकाश नारायण ने घोषणा कर दी कि जब तक इंदिरा गाँधी इस्तीफा नहीं देंगी रोज़ उनके विरुद्ध पूरे देश में प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे लेकिन अगले ही दिन 26 जून 1975 को उन्होंने देश पर आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी. चुनाव में धांधली का मामला उस चुनाव से संबंधित था जिसमें उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया था लेकिन राजनारायण ने प्रयागराज उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी कि इंदिरा गाँधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर चुनाव जीता है. चार साल बाद आए इस फैसले ने श्रीमती गाँधी का चुनाव रद्द कर दिया था. इंदिरा गाँधी के समर्थन में पूरी तरह आई कांग्रेस पार्टी ने उनके नेतृत्व को देश के लिए अपरिहार्य बताते हुए आपातकाल का समर्थन किया था.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था क्योंकि इंदिरा गाँधी का मानना था यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है और अपने मजबूत संगठनात्मक आधार के कारण वह सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन कर सकता है. हजारों स्वयंसेवकों को जेल में ठूंस दिया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो उस समय आरएसएस के प्रचारक थे, वेश बदलकर संगठन की गतिविधियों लगे रहे थे. पूरा देश सदमे में था. उनकी आवाज उठानेवाला विपक्ष जेल में बंद था और प्रेस पर पूर्ण प्रतिबंध था. डीएमके की सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने आपातकाल की आलोचना करते हुए इसे तानाशाही की शुरुआत बताया था, इस कारण 31 जनवरी 1976 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई. उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को भी मद्रास केंद्रीय कारागार में यातनाओं का का सामना करना पड़ा था, यह अलग बात है कि वह आज कांग्रेस के साथ खड़े हैं. सबसे अधिक परेशानियाँ समाज के गरीब और कमजोर तबके को हुई थी जिनकी रोज़ी रोटी भी छिन गई थी और उन पर ज्यादतियां भी की गई थी. संजय गाँधी आपातकाल के शक्ति केंद्र थे और उनके निर्देश पर लाखों पुरुषों की नसबंदी कर दी गई थी. बिना वजह लोगों को जेल में डाल दिया गया था. दिल्ली के तुर्कमान गेट जैसी घटनाएं देश के अन्य भागों में भी खूब हुई थी.

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान की हत्या बताते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा थोपे गए आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का काला अध्याय बताते हुए कहा कि कोई भी भारतीय कभी नहीं भूल सकता कि किस तरह हमारे संविधान की भावना का उल्लंघन किया गया था, संसद की आवाज दबाई गई थी और अदालतों को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया था। 42वां संविधान संशोधन उनके काले कारनामों का एक प्रमुख उदाहरण है। लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है. 21 महीने चले आपातकाल में 4 बार संविधान संशोधन किया गया और 48 नए अध्यादेश लाए गए. 30 वें संशोधन में आपातकाल को अदालत में चुनौती देने का अधिकार भी छीन लिया गया था जबकि 42 वें संशोधन में मौलिक अधिकार कमजोर कर दिए गए और न्यायपालिका की शक्ति भी सीमित कर दी गई थी.

आज कांग्रेस के नेता भले ही यह कहते घूमें कि पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार के कार्यकाल में देश में अघोषित आपात स्थिति है लेकिन उनका यह कहना सत्ता से बाहर रहने की पीड़ा और देश को गुमराह करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है. अगर अघोषित आपात स्थिति होती तो राहुल गाँधी जिस भाषा में प्रधानमंत्री को प्राय: अपमानित करते हैं, चुनाव आयोग संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, संभव नहीं हो पाता. अघोषित आपात स्थिति रहते हुए भी शाहीनबाग और किसान आंदोलन, जिन्होंने अरबों रुपए की राष्ट्रीय क्षति पहुंचाई, कैसे लंबे समय तक चलाये जा सके. कैसे नूपुर शर्मा को घर में कैद होकर बैठना पड़ा, कैसे ममता बेनर्जी के पश्चिम बंगाल में हिंदू नरसंहार का खुला खेल खेला गया, कैसे तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन और उनके उप मुख्यमंत्री पुत्र सनातन को डेंगू और मलेरिया बता सके. कैसे संसद से अयोग्य ठहराए गए राहुल गाँधी सर्वोच्च न्यायालय से राहत पा सके. कैसे सर्वोच्च न्यायलय धारा 370 हटाने और वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई कर सका.

राहुल गाँधी भले ही संविधान की कॉपी हाथ में लेकर घूमे और भाजपा सरकार पर संविधान और लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाएं लेकिन यह एक निर्विवादित तथ्य है कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में छोटी छोटी बातों पर कार्टूनिस्ट, यूट्यूबर, पत्रकार और प्रदर्शनकारी गिरफ्तार हो जाते हैं. पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिल नाडु इसके ज्वलंत उदाहरण है. मोदी सरकार द्वारा आपातकाल लगाए जाने वाले दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में घोषित किया जाना अत्यंत सार्थक और भावनात्मक है क्योंकि संविधान तभी मरता है जब नागरिको के मूल अधिकार छीन लिए जाते हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली जाती है, प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली जाती है, न्यायालयों का अपमान किया जाता है और मनचाहा फैसला लेने के लिए उन पर दबाव बनाया जाता है.

यदि इस आधार पर स्वतंत्र भारत के अब तक के कालखंड का विश्लेषण किया जाए तो हम पाते हैं कि गाँधी परिवार के पांच सदस्यों ने अपने तानाशाही व्योहार से किसी न किसी रूप में संविधान की हत्या की है. जवाहर लाल नेहरू ने पहला संविधान संशोधन करके अनेक पुस्तकों, फ़िल्मों आदि पर प्रतिबंध लगा दिया था तथा अनेक इतिहासकारों, लेखको, पत्रकारों और समाजसेवियों को जेल में डाल दिया था. इंदिरा गाँधी ने उच्च न्यायालय के फैसले की अवमानना करते हुए विरोध की आवाज दबाने के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी थी. उन्होंने अपने सभी राजनीतिक विरोधियो और विरोध करने वाले सामान्य नागरिको को जेल में ठूंस दिया था. नागरिको के मूल अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली गई थी. समाचार पत्र बिना सरकार की अनुमति के कुछ भी छाप नहीं सकते थे. सही अर्थों में देश में कोई भी इंदिरा गाँधी और उनकी सरकार का विरोध नहीं कर सकता था. राजीव गाँधी ने शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय का अपमान करते हुए कानून बना कर उसके फैसले को पलट दिया था. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में परोक्ष रूप से सत्ता संभाल रही सोनिया गाँधी ने शाह आयोग द्वारा आपातकाल की ज्यादतियों के लिए दोषी पाए गए और किसी भी संवैधानिक पद के लिए आयोग्य घोषित किए गए नवीन चावला को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था. सोनिया गाँधी के निर्देश पर चुनाव धांधलियों का विरोध करने पर हजारों प्रदर्शनकारियों को देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया गया था. राहुल गाँधी ने मंत्रिमंडल द्वारा पारित बिल को सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया था. आज भी वह संविधान की कॉपी लहराते हुए वह संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करते हैं और उनका अपमान भी करते हैं. मानहानि के मामले में 2 साल की सजा पाए और संसद द्वारा सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किए गए राहुल गाँधी ने दबाव बनाकर ही अपनी सदस्यता बहाल करायी, यह भी किसी से छिपा नहीं है.

संविधान की रक्षा की जा सके और इस देश को पुन: अपातकाल न देखना पड़े, इसके लिए हम सभी को प्रयासरत रहना चाहिए और संविधान में तभी संशोधन होने चाहिए जब यह राष्ट्रीय हित में हो क्योंकि संविधान से भी बड़ा राष्ट्र होता है और हमें राष्ट्र को बचाने और मजबूत करने की आवश्यकता है.

~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

ट्रम्प का लंच मुनीर के संग

 



ट्रम्प का लंच मुनीर के संग || क्यों इतने महत्त्वपूर्ण हो गए हैं असिम मुनीर || क्या सचमुच लंच की राजनीति नोबल शांति पुरुस्कार की राजनीति है


दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था और सबसे समृद्ध देश अमेरिका के राष्ट्रपति यदि पाकिस्तान जैसे एक आतंकवादी देश के सेना प्रमुख को व्हाइट हाउस में लंच पर आमंत्रित करें तो भारत ही नहीं पाकिस्तान में लोग चौंक गए. भारत इसलिए चौंका कि “अमेरिका प्रथम” और “मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” नारे लगाने वाले ट्रंप ने ऐसा किया जबकि अमेरिका ने 11 सितंबर 2001 को वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर को ध्वस्त करने वाली आतंकी घटना के जनक ओसामा बिन लादेन को पाकिस्तान के एबटाबाद सैन्य क्षेत्र में सालों की मेहनत के बाद मार गिराने में सफलता प्राप्त की थी. पाकिस्तान में लोग इसलिए चौंके कि ट्रम्प ने हाल के दिनों में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी व्हाइट हाउस में लंच / डिनर पर आमंत्रित नहीं किया. अमरीकी राष्ट्रपति के साथ लंच करने वाले आसिम मुनीर पाकिस्तान के पहले सेनाध्यक्ष हैं, यद्यपि इसके पहले जनरल अयूब और परवेज मुशर्रफ़ सैनिक तानाशाह के रूप में राष्ट्रपति बनने के बाद अमेरिका के राष्ट्रपति के साथ व्हाइट हाउस में लंच या डिनर पर जाने का सौभाग्य पा चुके हैं. पाकिस्तान के राजनैतिक क्षेत्रों में हड़कंप मच गया है, क्योंकि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ से अधिक सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर को महत्त्व दिया जाना पाकिस्तान में सत्ता परिवर्तन का इशारा कर रहा है. हैरान तो लोग अमेरिका में भी है, क्योंकि यह सरकारी शिष्टाचार के अनुरूप नहीं है. प्रश्न उठना बहुत स्वाभाविक है कि ऐसा क्या है जिस कारण डोनाल्ड ट्रम्प ने आसिम मुनीर को इतना महत्त्व दिया. पूरी दुनिया में तरह तरह की अटकलें लगाई जा रही है.

इस प्रश्न का उत्तर पाने के लिए पाकिस्तान की राजनीति और आसिम मुनीर को समझना बहुत आवश्यक है. पहलगाम में हिन्दुओं के नरसंहार की घटना के पहले भारत और शेष दुनिया में असीम मुनीर को बहुत कम लोग जानते थे लेकिन बाद में वह अपने उस भाषण से बहुत चर्चा में आ गए जिसमें उन्होंने भारत के विभाजन और दो राष्ट्रों सिद्धांत की तारीफ करते हुए हिंदुओं के प्रति अपनी घृणा का प्रदर्शन किया था, तथा मुसलमानों को हिंदुओं के नरसंहार के लिए उकसाया था. पाकिस्तान में भी लोगों का मत है कि मुनीर का वह भाषण हिंदुओं के नरसंहार की उनकी योजना का हिस्सा था. पहलगाम में धर्म पूछकर और कपड़े उतरवाकर खतना सुनिश्चित करने के बाद, हिन्दू पुरुषों को उनकी पत्नियों और बच्चो के सामने बेहद क्रूरता से मौत के घाट उतारने की घटना ने भारत ही नहीं पूरे विश्व को झकझोर दिया था. इस घटना ने भारत पर आक्रमण करने वाले राक्षसी वृत्ति के इस्लामिक आक्रांताओं की यादें ताजा कर दीं. इस पर भारत द्वारा सख्त कार्रवाई अपेक्षित और आवश्यक थी, जो ऑपरेशन सिंदूर के अंतर्गत की गई. भारत ने आतंकवादियों के कई ठिकानों को नेस्तनाबूत कर दिया था. बौखलाए पाकिस्तान द्वारा नियंत्रण रेखा पर भारतीय नागरिको तथा सिख गुरु द्वारे पर अंधाधुंध गोलीबारी की गई जिससे अनेक नागरिक हताहत हुए. भारत ने जवाबी कार्रवाई करते हुए पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकानों पर मिसाइल आक्रमण कर पाकिस्तानी वायु सुरक्षा तंत्र को ध्वस्त कर दिया था. चीन और तुर्की निर्मित हथियारों तथा अमेरिकी लड़ाकू विमानों द्वारा पाकिस्तान के आक्रामक प्रयास निरर्थक साबित हो गए. पाकिस्तान की सैन्य कार्यवाही के महानिदेशक द्वारा भारत की सैन्य कार्रवाई के महानिदेशक से अनुनय विनय करने पर आपसी बातचीत के माध्यम से सीजफायर का ऐलान किया गया.

  1. इस सीजफायर का श्रेय अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अपने नाम कर लिया. यद्यपि भारत ने इसका खण्डन किया लेकिन ट्रंप लगातार भ्रामक बयान देते रहे. पाकिस्तान द्वारा सोशल मीडिया में चलाए जा रहे झूठे विमर्श और डोनाल्ड ट्रम्प के भ्रामक बयानों के आधार पर कांग्रेस सहित भारतीय विपक्ष ने मोदी सरकार के आतंकवादियों को नेस्तनाबूत करने के साहसिक कृत्य को नकारने का काम शुरू कर दिया. राहुल गाँधी ने तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर ट्रंप के दबाव में सरेंडर करने का आरोप लगाया जिसे उनकी चाटुकार मंडली ने भी आगे बढ़ाने का कार्य किया. राहुल गाँधी ने पीएम मोदी का विरोध करने के लिए न केवल राष्ट्र विरोधी कार्य किया बल्कि कई मौकों पर पाकिस्तान के साथ खड़े नजर आए. यहाँ तक कि उसने विदेशों में भेजे गए प्रतिनिधिमंडलों में शामिल कांग्रेसी नेताओं के प्रति भी आक्रामक रुख अपनाया और उन्हें मोदी का एजेंट तक करार दे दिया.  
  2. कांग्रेस द्वारा जी-7 में मोदी को निमंत्रण न मिलने की भी बहुत ज़ोर शोर से उछाला और मोदी पर कटाक्ष करने के चक्कर में भारत की प्रतिष्ठा को भी धूल धूसरित किया यद्यपि कनाडा के प्रधानमंत्री ने फ़ोन पर व्यक्तिगत आग्रह करके मोदी को निमंत्रित किया और मोदी ने जी-7 की मीटिंग में हिस्सा भी लिया, जिसमें डोनाल्ड ट्रंप भी पहुंचे थे लेकिन ईरान इजराइल युद्ध के चलते वह समय से पहले ही चले गए थे. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और उनकी तयशुदा बैठक नहीं हो सकी. बाद में ट्रंप के अनुरोध पर प्रधानमंत्री मोदी की उनसे लंबी बातचीत हुई. मोदी ने ट्रंप को स्पष्ट रूप से कहा की पाकिस्तान और भारत के बीच सीजफायर पाकिस्तान के अनुरोध और आपसी बातचीत के आधार पर किया गया था इसमें ट्रंप सहित किसी तीसरे पक्ष की कोई भूमिका नहीं थी. 

जहाँ तक पाकिस्तान का प्रश्न है, शहबाज शरीफ की सरकार सेना की रहमोकरम पर ही बनी थी चल भी उसकी मर्जी से रही है. इसलिए भारत पाक संघर्ष में पाकिस्तान की शर्मनाक पराजय के बाद भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री, सेनाध्यक्ष आसिम मुनीर का गुणगान करते रहे. पाकिस्तानी मीडिया और जनता द्वारा सरकार को लगातार आईना दिखाने के बावजूद शहबाज शरीफ सरकार ने असीम मुनीर को प्रोन्नत करके फील्ड मार्शल बना दिया या स्वयं मुनीर ने अपने आप को फील्ड मार्शल बना लिया. फील्ड मार्शल बनना इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पद जीवन पर्यंत के लिए होता है. जनरल अयूब खान के बाद असीम मुनीर दूसरे ऐसे सेनाध्यक्ष है जो फील्ड मार्शल बने हैं. जनरल अयूब ने सत्ता पर कब्जा करके अपने आप को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था. वह 1958 से 1969 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे. आसिम मुनीर के बारे में भी अटकलें लगाई जा रही है कि वह शीघ्र ही सैनिक तानाशाह बनकर पाकिस्तान की सत्ता संभालेंगे. ट्रम्प द्वारा असीम मुनीर को व्हाइट हाउस आमंत्रित करना इस बात को रेखांकित करता है कि अमेरिका उन्हें पाकिस्तान का सर्वेसर्वा मानता है. भारत पाकिस्तान संघर्ष के दौरान भी अमेरिकी विदेशमंत्री ने केवल आसिम मुनीर से ही बात की थी. मदरसे से शिक्षा प्राप्त आसिम मुनीर बेहद कट्टरपंथी मुस्लिम हैं और इस समय धार्मिक उन्माद भड़काकर इस्लाम के नाम पर पाकिस्तान की सत्ता पर कब्जा करने की योजना बना रहे हैं. हिंदुओं के प्रति नफरती भाषण और भारत में योजना बद्ध ढंग से पहलगाम जैसी घटनाएं करा कर वह इस दिशा में तेजी से आगे बढ़ रहे हैं.

ईरान और इजरायल के वर्तमान युद्ध में अमेरिका अपने लिए बेहद चालाकी भरी भूमिका तैयार कर रहा है, जिससे उसे अफगानिस्तान की तरह मुँह की न खानी पड़े. इजराइल से ईरान लगभग 2000 किलोमीटर दूरी पर स्थित है, इसीलिए वह केवल मिसाइलों से ईरान को नहीं हरा सकता है और न हीं इस तरह अमरीका तेहरान पर कब्जा कर सकता है क्योंकि किसी देश पर कब्जा करने के लिए सोना का उस देश में घुसना आवश्यक है. इसके लिए अमेरिका ईरान पर जमीनी आक्रमण करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करना चाहता है, क्योंकि पाकिस्तान के साथ ईरान की 900 किलोमीटर लंबी सीमा है. इसके लिए असीम मुनीर पूरी तरह उपयुक्त है. यदि वह फील्ड मार्शल के रूप में अमेरिका की सहायता नहीं कर सके तो उन्हे सैनिक शासन के अंतर्गत राष्ट्रपति बनाया जा सकता है. पाकिस्तान में स्थायी सैनिक अड्डे बनाने के लिए भी अमेरिका को असीम मुनीर जैसे व्यक्ति की आवश्यकता है. पाकिस्तानी सैन्य सरकार और भारत की लोकतांत्रिक सरकार के बीच कभी मित्रता नहीं हो सकती और इस तरह दोनों देशों के बीच शीत युद्ध अमेरिका को हथियारों की बिक्री में बहुत सहायक सिद्ध होगा. दोनों देशों के बीच युद्ध की स्थिति में अमेरिका अपने नियम और शर्तों पर भारत को व्यापारिक समझौते करने के लिए विवश करता रहेगा. डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बनने से पहले एक सफल व्यापारी थे और राष्ट्रपति से सेवानिवृत्त होने के बाद भी व्यापारी रहेंगे, इसमें किसी को संदेह नहीं है लेकिन वह राष्ट्रपति रहते हुए भी व्यापारी की तरह कार्य कर रहे हैं. डोनाल्ड ट्रंप की क्रिप्टोकरेंसी से संबंधित एक कंपनी का हाल ही में पाकिस्तान सरकार के साथ समझौता हुआ है. तब से पाकिस्तान के प्रति ट्रंप का रवैया उदार हो गया है. पाकिस्तान को विश्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से नया कर्ज दिलवाने में भी अमेरिका की अप्रत्यक्ष भूमिका है. इसलिए यह बहुत स्वाभाविक है कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पाकिस्तानी फील्ड मार्शल असीम मुनीर के साथ एक समझ विकसित कर रहे हैं ताकि पारस्परिक समन्वय से दोनों के हित साधे जा सके.

एक और कारण भी है. आसिम मुनीर के दबाव में ही पाकिस्तान सरकार ने नोबेल शांति पुरस्कार के लिएडोनाल्ड ट्रंप के नाम की सिफारिश की है. डोनाल्ड ट्रंप भी जी जान से जुटे हुए हैं इस पुरस्कार को पाने के लिए और जो उनके नाम की सिफारिश करेगा उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना उनका मानवीय फर्ज है और दुनिया के अन्य देशों के लिए एक सन्देश भी है. इस सब के बाद भी डोनाल्ड ट्रंप को नोबेल शांति पुरस्कार मिल सकेगा इसकी संभावना बहुत कम है.

डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम से पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार पर खतरा मड़राने लगा है और यदि पाकिस्तान में सैन्य सरकार बनती है तो भारत पर भी युद्ध और आतंकवाद दोनों का खतरा बढ़ जाएगा. आप

~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~

रविवार, 15 जून 2025

ट्रंप बनाम अमेरिका और मोदी बनाम भारत

 



ट्रंप बनाम अमेरिका और मोदी बनाम भारत || भारत और पाकिस्तान के बीच सीज फायर कराने का दावा करने वाले गृहयुद्ध नहीं रोक पा रहे || अवैध अप्रवासियों पर ट्रम्प की कार्यवाही भारत के लिए प्रेरणादायक कैसे है


अमेरिका में उबाल है, जिसका कारण है गैरकानूनी अप्रवासियों का निष्कासन. अप्रवासन विभाग देशभर में जगह-जगह तलाशी अभियान चलाकर अवैध अप्रवासियों को गिरफ्तार कर रहा है। कैलिफोर्निया के लॉस एंजेलिस में भी अप्रवासन विभाग ने बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ्तार किया, जिसके विरुद्ध सामाजिक संगठन और स्थानीय लोग अप्रवासन विभाग के डिटेंशन सेंटर्स के बाहर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। इन प्रदर्शनों के दौरान दंगा भड़का। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कैलिफोर्निया के गवर्नर और लॉस एंजेलिस के मेयर पर अक्षम होने का आरोप लगाते हुए दंगा नियंत्रण के लिए नेशनल गार्ड्स की तैनात कर दिए. कैलिफोर्निया में लंबे समय से विरोधी दल की सरकार है जो अप्रवासियों का समर्थन करती है और इसलिए कोई कार्रवाई नहीं होती.

प्रदर्शनों को सख्ती से दबाने के लिए ट्रंप प्रशासन ने नेशनल गार्ड्स की तैनाती कर दी है और बड़ी संख्या में मैरींस भी पहुंचने वाले हैं, जिसका राज्य सरकार विरोध कर रही है. स्थिति कुछ कुछ इस तरह की है जैसे भारत में प्रदर्शनकारियों पर काबू पाने के लिए केंद्रीय सुरक्षाबल भेजकर केंद्र सरकार स्वयं स्थिति पर नियंत्रण पाने की कोशिश करने लगे. लॉस एंजिल्स में स्थिति बजाय सुधारने के बिगड़ती जा रही है. सरकारी संपत्तियों और गाड़ियों में आग लगाई जा रही है, शोरूम लूटे जा रहे हैं और सुरक्षाकर्मियों पर आक्रमण किये जा रहे हैं. प्रदर्शनकारी ट्रंप का विरोध करते हुए उन्हें तानाशाह और लोकतंत्र का दुश्मन बता रहे हैं. हॉलीवुड की राजधानी पूरी तरह से अराजक तत्वों के कब्जे में है.

इन प्रदर्शनो की प्रकृति, संशोधित नागरिकता कानून, किसान कानून और अग्निवीर योजना के विरोध में भारत में हुए हिंसक प्रदर्शन से पूरी तरह मेल खाती है. मोदी की तरह ट्रंप को तानाशाह बताया जा रहा है. ऐसा लगता है कि अमेरिका का डीप स्टेट जो अब तक भारत और दूसरे देशों को अस्थिर करनेका काम करता था, उसने अब अमेरिका में भी यही काम शुरू कर दिया है. दोनों देशों के प्रदर्शनो में अंतर केवल इतना है कि कैलिफोर्निया में संघीय सुरक्षाबल बहुत सख्ती कर रहे हैं. प्रदर्शनकारियों को हिरासत में ले रहे हैं और जेल में डाल रहे हैं. भारत में ऐसे हिंसक आंदोलनों के विरुद्ध कहीं कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई थी फिर भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इन आंदोलनों को सुर्खियां बनाने की भरपूर कोशिश हुई. स्वयं अमेरिका ने बोलने और आलोचना करने की स्वतंत्रता, धार्मिक स्वतंत्रता, मानव अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर भारत को कठघरे में खड़ा किया था. आज इन मुद्दों पर अमेरिका से कोई प्रश्न नहीं कर रहा है. मोदी ने इन मुद्दों पर चुप रहकर भी अपनी लोकप्रियता बनाए रखी लेकिन डोनाल्ड ट्रंप मुखर होने के बाद भी लगातार अ़लोकप्रिय होते जा रहे हैं.

भारत और अमेरिका दोनों ही लोकतान्त्रिक देश हैं लेकिन भारत दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे पुराना लोकतांत्रिक देश ही नहीं, पृथ्वी की सबसे प्राचीन सभ्यता भी है. यह सही है कि अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी और समृद्ध अर्थव्यवस्था है लेकिन उसका इतिहास 500 वर्ष से अधिक का नहीं है. अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भी रहा हो लेकिन उसने समय समय पर भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था, अल्पसंख्यकों की स्थिति मानव अधिकारों पर झूठा ज्ञान देने में कभी संकोच नहीं किया. मोदी के केंद्र की सत्ता में आने के बाद तो जैसे नसीहतों की बाढ़ आ गई, जो अमेरिकन डीप स्टेट द्वारा अब तक चलाई जा रही है.

ऐसा नहीं है कि ट्रंप द्वारा गैर कानूनी अप्रवासियों के विरुद्ध की जा वाली कार्रवाई अमेरिकी हितों के विरुद्ध है क्योंकि लॉस एंजिल्स में गैर कानूनी अप्रवासियों की संख्या, कुल जनसंख्या की एक तिहाई से भी अधिक हो चुकी है. इनमें अधिकांश मुस्लिम हैं और उनमें भी मेक्सिकन की संख्या सबसे ज्यादा है. लेकिन सरकारी संरक्षण में अराजक वामपंथियों, उदारवादियों और इस्लामिक कट्टरपंथियों द्वारा संचालित डीप स्टेट पूरी दुनिया में जो कार्य करता है, वही अमेरिका में भी दोहरा रहा है. दूसरे कार्यकाल के लिए चुने जाने के पहले ट्रम्प ने देशवासियों से वायदा किया था कि वह मेक अमेरिका ग्रेट अगेन” के लिए गैरकानूनी घुसपैठियों की समस्या से अमेरिका को मुक्त करेंगे. उन्होंने इस वर्ष की शुरुआत में लैकेन रिले एक्ट कानून बनाया जिसके अंतर्गत गैरकानूनी घुसपैठियों की पहचान कर हिरासत में लेना और उनके देश वापस भेजना काफी आसान कर दिया गया है. ट्रंप ने इसे एक अभियान के तौर पर चलाया और भारत सहित दुनिया के कई देशों के अवैध अप्रवासियों को प्रत्यर्पित भी किया गया है. ट्रम्प सरकार की इस नीति का विरोध इसलिए भी किया जा रहा है क्योंकि इससे डीप स्टेट का छुपा हुआ एजेंडा बुरी तरह प्रभावित हो रहा है. इसलिए विरोध प्रदर्शनों में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के खिलाफ तीखी प्रतिक्रिया ठीक उसी तरह देखने को मिल रही है जैसी भारत में मोदी के विरुद्ध प्राय: मिलती है.

राष्ट्रवादी छवि वाले डोनाल्ड ट्रम्प के पिछले कार्यकाल में भी उनके खिलाफ “ब्लैक लाइव मैटर्स” जैसे विरोध प्रदर्शनो और धरनो का लंबा सिलसिला चलाया गया था. ऐसे अनेक अभियान का ही नतीजा था कि ट्रंप 2020 में सत्ता में वापस नहीं आ सके. इसलिए वह घरेलू राजनीति के दबाव में ऐसा कर रहे है और अपने नागरिकों को यह एहसास दिलाना चाहते है कि उन्होंने चुनाव में जो कहा था, उसे पूरा कर रहे हैं. पद संभालते ही जिस तरह से उन्होंने ताबड़तोड़ फैसले किए, उसका संदेश भी यही था. अमेरिका की वर्तमान समस्या का एक सुखद पहलू यह है कि अवैध अप्रवासियों के खिलाफ अमेरिका, यूरोप सहित कई देशों में नकारात्मक माहौल बनने लगा है क्योंकि यूरोप के कई देशों का जनसंख्या घनत्व इस तरह से बदल गया है कि वे इस्लामिक राष्ट्र बनने के कगार पर पहुँच गए हैं.

यूरोप के कई देशों में प्रायः होने वाले दंगे फसाद की घटनाएँ और अब लॉस एंजिल्स से निकलकर अमेरिका के दूसरे राज्यों में फैलने की आशंका वाले इस आंदोलन की हिंसक घटनाएं सभी नागरिको के लिए एक गंभीर चेतावनी है कि उनके टैक्स पर ही अवैध घुसपैठिए देश की संसाधनों पर पल रहे हैं. जिससे देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है. ऐसी गंभीर घटनाएं अवैध अप्रवासन के खिलाफ़ कानूनी नागरिको में जागरूकता बढ़ाने का कार्य करेंगी.

इस प्रकरण से भारत सरकार पर भी यह दबाव बनेगा कि वह देश में रह रहे अवैध नागरिकों को वापस भेजने की पहल करे. आज शायद ही कोई राजनीतिक दल अवैध आप्रवसान के खिलाफ कार्रवाई का विरोध करेगा. असम में भाजपा की जीत का एक बड़ा कारण वहां अवैध आप्रवासन के विरुद्ध सख्त कार्रवाई करने का चुनावी वायदा ही था. यद्यपि राजनैतिक और कानूनी दांव पेंच के कारण सभी अवैध घुसपैठिये प्रत्यर्पित तो नहीं किए जा सके लेकिन असम सरकार की सख्ती के चलते है राज्य में घुसपैठ पर लगाम लग गयी है, यद्यपि भारत में हो रही घुसपैठ अभी भी ज्यों की त्यों चल रही है. अवैध घुसपैठिए अब असम की बजाय दूसरे राज्यों में पहुँच रहे हैं. लगातार हो रही घुसपैठ से कई राज्यों का जनसंख्या आंकड़ा बदल गया है और वहाँ हिंदू अल्पसंख्यक और मुस्लिम बहुसंख्यक हो गए हैं. जनसंख्या घनत्व का यह परिवर्तन गज़वा ए हिंद चलाने वाले मुस्लिम कट्टरपंथियों को अत्यंत प्रिय है. इसलिए वे घुसपैठियों के कानूनी प्रपत्र तैयार करके उन्हें रणनैतिक रूप से बसाने का कार्य भी कर रहे हैं. इसके बावजूद भी संशोधित नागरिकता कानून और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण योजनाएँ धरातल पर नहीं उतर पा रही.

यूरोपीय देशों में अवैध घुसपैठियों के विरुद्ध हो रही कार्रवाई की पृष्ठ भूमि में यदि भारत भी अगर ऐसा कोई अभियान चलाता है, तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिकूल प्रतिक्रिया नहीं होगी राजनीति और और राष्ट्रीय राजनीति में भी हलचल नहीं होगी. इसलिए भारत के लिए अभी नहीं तो कभी नहीं वाली सबसे उपयुक्त स्थिति है.

~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~

रविवार, 1 जून 2025

चाटुकारों का चक्रव्यूह || राहुल का मोदी विरोध, बना भारत विरोध

 








चाटुकारों का चक्रव्यूह || राहुल का मोदी विरोध, कैसे बन जाता है भारत विरोध ?

कांग्रेस नेता शशि थरूर के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल अमेरिका, पनामा कोलंबिया, ब्राज़ील, और गुयाना की यात्रा पर हैं. ऑपरेशन सिंदूर की सफलता अर्जित करने के बाद भारत सरकार ने सात प्रतिनिधिमण्डल अपने रणनैतिक साझीदार तथा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के सदस्य देशों में भेजें हैं, जिसका उद्देश्य पाकिस्तान द्वारा अपने देश में उगाई जा रही आतंकवाद की फसल के बारे में बताना और ये अनुरोध करना है कि वे संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पाकिस्तान द्वारा लाए गए किसी भी भारत विरोधी प्रस्ताव का विरोध करें क्योंकि पाकिस्तान इस समय संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य है.

शशि थरूर की अमेरिका यात्रा इस दृष्टि से महत्वपूर्ण है कि उन्होंने अमेरिका अमेरिका में डोनाल्ड ट्रंप के उस दावे की पोल खोल दी जिसमें उन्होंने भारत और पाकिस्तान के मध्य युद्धविराम कराने का श्रेय लिया था. थरूर ने भारत का पक्ष इतनी मजबूती से रखा जिससे पूरा देश गौरवान्वित हुआ लेकिन उनकी धारदार और प्रभावी शैली स्वयं उनकी पार्टी कांग्रेस को रास नहीं आई. पार्टी प्रवक्ताओं ने उनपर जोरदार हमला बोला और उन्हें मोदी का चमचा तक करार दे दिया. स्वाभाविक है ऐसा पार्टी आलाकमान के निर्देश पर ही किया गया है. सर्वदलीय प्रतिनिधि मंडल के लिए कांग्रेस ने शशि थरूर का नाम नहीं दिया था लेकिन सरकार ने थरूर के संयुक्त राष्ट्र में अनुभव और अंतरराष्ट्रीय नीतियों की समझ को देखते हुए प्रतिनिधिमण्डल का नेता बना दिया. कांग्रेस हाई कमान की अनिच्छा के बाद भी शशि थरूर ने प्रतिनिधिमण्डल का नेता बनना स्वीकार किया तथा अपने अनुभव एवं ज्ञान का भरपूर लाभ देश को दिया.

कांग्रेस को वॉशिंगटन और पनामा में शशि थरूर द्वारा दिए गए प्रस्तुतिकरण पर आपत्ति है, क्योंकि उन्होंने कहा कि मोदी सरकार में उड़ी सर्जिकल स्ट्राइक में पहली बार भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार करके पाकिस्तान स्थित आतंकी अड्डों तथा लॉन्च पैडों को नष्ट किया. थरूर ने कहा कि कारगिल युद्ध के दौरान भी भारतीय सेना ने नियंत्रण रेखा पार नहीं की थी लेकिन उरी हमले के बाद की. जब पुलवामा में आतंकी हमला हुआ तो भारतीय सेना ने, न केवल नियंत्रण रेखा, बल्कि अंतरराष्ट्रीय सीमा भी पार करते हुए पाकिस्तान में घुस कर बालाकोट में आतंकवादियों का मुख्यालय नष्ट किया. उन्होंने आगे कहा कि ऑपरेशन सिंदूर भारत का एक नया सामान्य तरीका था. इस बार हम, न केवल नियंत्रण रेखा और अंतर्राष्ट्रीय सीमा से आगे गए, बल्कि हमने पाकिस्तान की हृदयस्थली पंजाब और पाकिस्तान के गैरकानूनी कब्जे वाले कश्मीर में नौ जगहों पर आतंकी ठिकानों, प्रशिक्षण केंद्रों, आतंकी मुख्यालयों पर हमला करके उन्हें नष्ट कर दिया. यह नया सामान्य तरीका होने जा रहा है। प्रधानमंत्री ने यह स्पष्ट कर दिया है कि ऑपरेशन सिंदूर जरूरी था क्योंकि पाकिस्तान से आये आतंकवादियों ने 26 हिंदू महिलाओं के माथे से सिंदूर मिटा दिया था।

पाकिस्तान प्रयोजित आतंकवाद की जितनी घटनाएं भारत में हो चुकी है यदि उनका वर्णन किया जाए तो कई पुस्तकें तैयार हो जाएंगी लेकिन कुछ घटनाओं को भूलना संभव नहीं है. इनमें 26 नवंबर 2008 को मुंबई हमला भी है जिसमें 171 से अधिक लोग मारे गए थे और 300 से अधिक घायल हुए थे. कांग्रेस ने इसे भगवा आतंकवाद बनाने की कोशिश की लेकिन पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की. यूपीए सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल में पूरे भारतवर्ष में पाकिस्तानी आतंकियों ने घूम घूमकर हमले किए लेकिन सरकार ने पाकिस्तान के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं की. अब कांग्रेस का कहना है कि मोदी सरकार से पहले भी सर्जिकल स्ट्राइक होती रही है और मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी 6 बार सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी लेकिन कांग्रेस ने कभी उनका राजनैतिक लाभ लेने की कोशिश नहीं की. यह भी एक तथ्य है कि कांग्रेस शासनकाल की सर्जिकल स्ट्राइक का लेखाजोखा कम से कम भारतीय सेना के पास तो नहीं है. मोदी कार्यकाल में भी पांच बड़े पाकिस्तान प्रयोजित आतंकी हमले हो चुके हैं. जिनमें पहलगाम के अतिरिक्त, उडी, गुरदासपुर, पठानकोट, पुलवामा और अमरनाथ यात्रियों पर हमला शामिल है. लेकिन पाकिस्तान को सबक सिखाने के लिए ऑपरेशन सिंदूर से पहले भी मोदी सरकार ने दो सर्जिकल स्ट्राइक की थी.

ऐसा लगता है कि कांग्रेस ऑपरेशन सिंदूर की सफलता से बहुत घबराई हुई है और उसे अपने राजनीतिक अस्तित्व पर संकट लगने लगा है. उरी और बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक के बाद कांग्रेस ने मोदी सरकार से सुबूत मांग कर जनता में भ्रम फैलाने की कोशिश की थी ताकि इसका राजनैतिक लाभ भाजपा को न मिल सके. लेकिन ऑपरेशन सिंदूर के लिए मोदी ने जबरदस्त तैयारी की थी. पहले से ही ऐलान कर दिया था कि कार्यवाही करेंगे. पूरे ऑपरेशन की लाइव वीडियोग्राफी हो रही थी और वॉर रूम में सैन्य अधिकारियों के साथ बैठ कर मोदी स्वयं इसका लाइव कवरेज देख रहे थे. अबकी बार कांग्रेस के पास सुबूत मांगने का विकल्प भी नहीं हैं. भारतीय सेना ने जो वीडियो और फोटो जारी किए हैं उन्हें देखकर पूरा विश्व आश्चर्यचकित हैं. इतना अचूक प्रहार किया गया और पाकिस्तानी वायु रक्षा तंत्र को भनक तक नहीं लगी. पाकिस्तान को तब पता चला जब ऑपरेशन सिन्दूर पूरा हो चुका था. पाकिस्तानी सेना ने बाद में भारत में नागरिक ठिकानों पर गोले दागे और ड्रोन हमले किए. भारतीय सेनाओं ने मुंहतोड़ जवाब देते हुए पाकिस्तान के कई सैन्य हवाई पट्टियों को नष्ट कर दिया जिसमें सरगोधा और नूर खान जैसे महत्वपूर्ण एयरबेस भी शामिल है जिन्हें पाकिस्तान ने भारत पर परमाणु हमले करने के उद्देश्य से बनाया था है. इन एयर बेस के पास किराना हिल्स में पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने भी मिसाइल धमाकों से कांप उठे और उनसे विकिरण लीक होने की सूचनाएं अमेरिका तक पहुँच गई. घबराए पाकिस्तान ने भारत से सीजफायर की गुहार लगाई, जिसे भारत ने स्वीकार भी कर लिया क्योंकि ऑपरेशन सिंदूर का उद्देश्य आतंकियों और उनके आकाओं के ठिकानों को नेस्तनाबूद करना था जो काफी हद तक पूरा हो चुका था. सबसे बड़ी बात, भारत किसी भी हालत में पकिस्तान के परमाणु संयंत्रों पर हमले का आरोप अपने ऊपर नहीं लगने देना चाहता था.

जहाँ तक शशि थरूर का प्रश्न है, कांग्रेस में पिछले काफी समय से उन्हें अनदेखा किया जा रहा है और ऐसी परिस्थितियां बनाई जा रही है कि वे स्वयं कांग्रेस छोड़ दें. पार्टी में अपने उदय के बाद राहुल गाँधी स्वयं योग्यता और विद्वता का पैमाना बन गए हैं. लोकप्रिय प्रभावशाली, कुशल और विद्वान व्यक्ति राहुल के नेतृत्व के लिए खतरा बन सकता है, इसलिए ऐसे व्यक्ति को पार्टी में दरकिनार किया जाता है. उसे राहुल गाँधी की हाँ में हाँ मिलाने के लिए प्रेरित किया जाता है और ऐसा न करने पर अपमानित करके पार्टी छोड़ने पर विवश कर दिया जाता है. ऐसे एक नहीं अनेक उदाहरण हैं. 2014 में शर्मनाक हार के बाद कांग्रेस के पास केवल 44 सीटें थी, जो नेता विपक्ष के लिए आवश्यक संख्या से कम थीं. तब थरूर की योग्यता को अनदेखा करके मल्लिकार्जुन खड़गे को लोकसभा में नेता बनाया गया था. 2019 में भी कांग्रेस नेता विपक्ष के लिए पर्याप्त संख्या नहीं जुटा सकी. थरूर के चौथी बार चुनकर आने के बाद भी अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में नेता बनाया गया. ये दोनों नेता थरूर की तुलना में कहीं नहीं ठहरते. यदि थरूर को मौका दिया गया होता तो पार्टी लोकसभा में अपना पक्ष बेहतर ढंग से प्रस्तुत कर सकती थी. पार्टी अध्यक्ष पद के लिए भी शशि थरूर एक प्रत्याशी थे लेकिन गाँधी परिवार ने मल्लिकार्जुन खड़गे पर दांव लगाया. ये घटनाएं और परिस्थितियां पार्टी में शशि थरूर की महत्वहीनता और पार्टी की दिशा और दशा भी रेखांकित करती हैं.

कांग्रेस में योग्यता की अहमियत न होने के कारण स्वाभिमानी नेता पार्टी छोड़ चुके हैं. अब अधिकांश ऐसे लोग बचे हैं जो गाँधी परिवार के चाटुकार हैं और अपने अस्तित्व के लिए पूरी तरह से गाँधी परिवार पर निर्भर है. पार्टी में प्रबुद्ध मंडल अब बचा नहीं, और चाटुकार मण्डली के बस का कुछ है नहीं. इसलिए राहुल गाँधी और अन्य नेताओं द्वारा अनर्गल बयानबाजी की जा रही है, जिससे कांग्रेस की स्थिति दिन प्रतिदिन हास्यास्पद बनती जा रही है. अनर्गल बयानबाजी के बीच शशि थरूर ने सर्वदलीय प्रतिनिधिमण्डल के नेता के रूप में अपने प्रस्तुतिकरण से देश और विदेश में प्रभावी नेता के रूप में अपने आपको स्थापित कर लिया है. इसलिए कांग्रेसी चाटुकारों का चक्रव्यूह उनका कुछ बिगाड़ पाएगा, इसकी संभावना नहीं है.

~~~~ शिव मिश्रा~~~~~~

शनिवार, 17 मई 2025

बायकाट टर्की कितना जरूरी

 

ऑपरेशन सिन्दूर || पाकिस्तान, टर्की, और अजर्वैजान तथा भारतीय विपक्ष की समानताएं और संभावनाएं || "बायकाट टर्की" कितना जरूरी ?


22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए हिंदू नरसंहार के बाद मोदी सरकार द्वारा आतंकवादियों और उनके आकाओं के विरुद्ध चलाए गए सुनियोजित अभियान में पाक अधिकृत कश्मीर तथा पाकिस्तान स्थित आतंकी ठिकानों पर किए गए जबरदस्त और ताबड़तोड़ हमले में सैकड़ों आतंकवादी मारे गए और बड़ी संख्या में घायल हुए. बौखलाए पाकिस्तान ने नियंत्रण रेखा के पार से भारी गोलीबारी की और ड्रोन से भारतीय वायुसैनिक अड्डों पर हमला करने की कोशिश की. भारतीय सेनाओं की जवाबी कार्रवाई तथा भारतीय वायु रक्षा की मजबूत प्रणाली ने पाकिस्तानी ड्रोन और मिसाइलें हवा में ही मार गिराये गए. पाकिस्तान के कई सैन्य ठिकाने पूरी तरह से बर्बाद हो गए, विशेषकर नूर खान और सरगोधा जिसके पास ही पाकिस्तान के परमाणु ठिकाने हैं. भारत पर परमाणु बम से हमला करने के लिए इन्हीं सैन्य ठिकानों का इस्तेमाल किया जाता, जिनके नष्ट होने से भारत पर परमाणु हमले की आशंका तो समाप्त हो गई लेकिन किराना हिल में भूमिगत परमाणु जखीरे में कुछ ऐसा हुआ जिससे उस क्षेत्र में भूकंप जैसे झटके महसूस किए गए और विकरण (रेडिएशन) की सूचनाएं भी मिली. बाद में अमेरिका और मिस्र के जहाज जिनमें न्यूक्लियर इमरजेंसी रिस्पॉन्स टीम के सदस्यों के पहुँचने की सूचनाएं भी प्राप्त हुई.

भारत को हमेशा परमाणु बम की धमकी देने वाले पाकिस्तान के लिए इतनी वीभत्स परिस्थितियों में भारत से युद्धविराम का अनुरोध करनें के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं था. युद्धविराम सुनिश्चित करने के लिए उसने अमेरिका और सऊदी अरब से भी गुहार लगाई जिनसे मोदी के अच्छे संबंध हैं. भारत का उद्देश्य पाकिस्तान और पाक अधिकृत कश्मीर स्थित आतंकवादियों और उनके आकाओं के ठिकानों को नेस्तनाबूत करना था, जो काफी हद तक पूरा हो चुका था. ब्रह्मोस मिसाइल सहित भारत में बने कई हथियारों का सफल प्रयोग और प्रदर्शन भी हो चुका था, इसलिए युद्धविराम भारत के लिए भी श्रेयस्कर था. यद्यपि अमेरिका के बड़बोले राष्ट्रपति ट्रंप ने हाल के अपने गलत फैसलों से विश्व का ध्यान हटाने के लिए भारत-पाक युद्ध विराम का श्रेय हड़पने की कोशिश करके भारत की सफलता को कमतर करने का प्रयास भी किया. ट्रंप के इस निंदनीय कार्य को अपना ट्रंप कार्ड बनाकर भारतीय विपक्ष ने मोदी के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और भारतीय सेना के उत्कृष्ट प्रदर्शन और शौर्य को हतोत्साहित करने का काम शुरू कर दिया क्योंकि भारतीय राजनेता हर काम में चुनावी राजनीति करते हैं चाहे देश का उससे कितना भी नुकसान क्यों न हो जाए. इसके पहले सर्वदलीय बैठक में विपक्ष ने पाकिस्तान के विरुद्ध किसी भी कार्रवाई के लिए मोदी सरकार को पूर्ण समर्थन दिया था लेकिन अब युद्ध विराम पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

आतंकी देश पाकिस्तान के विरुद्ध कार्रवाई में भारतीय नौसेना, वायु सेना, थल सेना और खुफिया एजेंसियों का जबरदस्त सामंजस्य देखने को मिला जिससे बिना नियंत्रण रेखा पार किए आतंकी ठिकानों को चिन्हित कर इतना सटीक प्रहार किया गया जिसे पाकिस्तान की चीन निर्मित वायुरक्षा प्रणाली समझ नहीं सकी. इससे चीन निर्मित वायु रक्षा प्रणाली तथा चीनी विमानों की किरकिरी हुई वहीं भारतीय हथियारों के लिए नया बाजार मिलने की असीम सम्भावनाएं बन गयी है. आतंकवाद के विरुद्ध भारतीय के इस अभियान में टर्की, अजरबैजान और चीन ने खुलकर पाकिस्तान का साथ दिया. चीन लंबे समय से पाकिस्तान और उसके आतंकवादियों के साथ देता रहा है क्योंकि उसने सीपैक के माध्यम से पाकिस्तान में बड़ा निवेश कर रखा है, और इसलिए आर्थिक हितों के कारण ऐसा करना मजबूरी भी है और जरूरी भी. टर्की ने पाकिस्तान को राजनीतिक और कूटनीतिक समर्थन देने के साथ साथ सैन्य सामग्री और ड्रोन भी उपलब्ध कराए. टर्की के सैनिक ही ड्रोन संचालित कर रहे थे. टर्की की इस भूमिका ने पारस्परिक संबंधों पर पुनर्विचार करने के लिए विवश कर दिया है. यद्यपि सरकार ने अभी कोई प्रतिबंधात्मक कदम नहीं उठाए हैं लेकिन टर्की के बहिष्कार की जनभावना का सम्मान करते हुए उद्योग एवं व्यापार तथा शिक्षा जगत ने टर्की से अपने संबंध समाप्त करने शुरू कर दिए हैं.

टर्की हमेशा भारत के लिए राक्षस की भूमिका में रहा है. तुर्क इस्लामिक आक्रांताओं ने न केवल भारत को लूटा बल्कि हिंदुओं का जघन्य नरसंहार भी किया. ऑटोमन साम्राज्य तुर्की के खलीफा को ब्रिटेन द्वारा पदच्युत किए जाने के विरोध में भारतीय मुसलमानों द्वारा खलीफ़त आन्दोलन चलाया गया. जिसका घोषित उद्देश्य अंग्रेजों को विरोध प्रदर्शन के माध्यम से तुर्की के खलीफा को बहल करने के लिए मजबूर करना था लेकिन इस आंदोलन की परिणित हिंदू नरसंहार के माध्यम से भारत का विभाजन करके पाकिस्तान बनाने के रूप में हुई. भले ही जिन्ना को पाकिस्तान का निर्माता कहा जाता हो लेकिन पाकिस्तान का असली निर्माता और प्रेरणा स्रोत टर्की है. इसलिए टर्की का पाकिस्तान को समर्थन और सैन्य संसाधन उपलब्ध कराना आश्चर्यजनक नहीं है.

पाकिस्तान और पाक-परस्त भारतीय मुसलमानों का जितना गहरा संबंध टर्की से है उतना ही गहरा संबंध टर्की से भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का भी है. गाँधी ने खलीफत आंदोलन को न केवल समर्थन दिया बल्कि हिंदू जनमानस को धोखा देने के लिए उसका नाम खिलाफत आंदोलन कर दिया जिससे यह असहयोग आन्दोलन का उर्दू रूपांतर लगने लगे. खलीफ़त आंदोलन के कारण देशभर में सांप्रदायिक दंगे हुए जिसमें हिंदुओं को निशाना बनाया गया लेकिन गाँधी और नेहरू तब तक आंखें बंद किए रहे जब तक हिन्दुओं को मुस्लिम नेताओं की यह बात सही नहीं लगने लगीं कि “हिंदू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते”. देश के विभाजन में गाँधी और नेहरू ने अंग्रेजों के साथ मिलकर हिंदुओं के साथ धोखा किया. धर्म के आधार पर पाकिस्तान का निर्माण हुआ लेकिन एक बड़े षड्यंत्र के अंतर्गत मुसलमान पाकिस्तान नहीं गए और इस कार्य में गाँधी और नेहरू मुस्लिमों के सबसे बड़े सहायक बने. गाँधी ने अहिंसा का पाठ पढ़ाकर हिन्दुओं के नरसंहार पर आंखें बंद रखी और केवल हिंदुओं को धर्मनिरपेक्षता का पाठ पढ़ाकर भारत को साझे की खेती बना दिया. गाँधी और नेहरू के सपनों का भारत बनाने के लिए कांग्रेस ने कभी भी मुस्लिम तुष्टीकरण के अभियान को मंद नहीं पड़ने दिया. उसने पाकिस्तान ही नहीं सभी मुस्लिम देशों के साथ अच्छे संबंध बनाने के लिए राष्ट्रीय हितों के साथ समझौता करने में कभी कंजूसी नहीं की. इसलिए कांग्रेस के टर्की में कार्यालय खोलने पर किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए.

टर्की में आई प्राकृतिक आपदा के समय मोदी सरकार ने सबसे पहले मानवीय सहायता पहुंचाई लेकिन टर्की के साथ संबंधों में प्रगाढ़ता कांग्रेस के शासनकाल में आई. नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो ने टर्की की सेलेबी एविएशन का लाइसेंस रद्द कर दिया है जिसे 9 हवाई अड्डों दिल्ली मुंबई, बैंगलोर, हैदराबाद,चेन्नई, कोचीन अहमदाबाद, गोवा, तथा कानपुर पर ग्राउंड हैंडलिंग, कार्गों, वेयर हाऊसिंग और यात्री सहायता कार्य करने का ठेका 2008 में कांग्रेस शासन में मिला था. इंडिगो एयरलाइन के टर्किश एयरलाइन्स के साथ कोड शेयरिंग समझौते का भी विरोध हो रहा है, जिसपर इंडिगो ने सफाई देकर समझौते का बचाव किया है. तुर्की के राष्ट्रपति तैयप एर्दोगन इस्लामिक देशों के खलीफा बनने और पूरे विश्व में इस्लाम का परचम फहराने को बेताब है, जिसके लिए किसी भी इस्लामिक देश के साथ खड़े होने का मौका नहीं छोड़ते. उन पर कई देशों द्वारा इस्लामिक आतंकवादियों के अंतर्राष्ट्रीय नेटवर्क को वित्तीय सहायता तथा हथियार देने का आरोप लगता रहा है, जिसके लिए टर्की की कंपनियों का उपयोग किया जाता है. इसलिए टर्की की किसी भी कंपनी को राष्ट्रीय हित में भारत में कार्य हेतु अनुमति नहीं मिलनी चाहिए.

भारत में बायकॉट टर्की का आंदोलन ज़ोर पकड़ चुका है जो उद्योग एवं व्यापार के हर क्षेत्र को बहुत तेजी प्रभावित कर रहा है. कई संगठनों ने टर्की से आयात न करने का फैसला किया है. बड़ी संख्या में भारत के पर्यटक टर्की और अजरबेजान जाते हैं. अब पर्यटन सेवा प्रदाता भारतीय कंपनियां पर्यटकों से टर्की और अजरबेजान के बजाय भारतीय स्थानों या अन्य देशों का चयन करने की अपील कर रही हैं. आइआइटी रुड़की और जेएनयू सहित कई विश्वविद्यालयों ने टर्की के साथ अपने समझौते समाप्त करने की घोषणा कर दी है. लाल सिंह चड्ढा की शूटिंग तुर्की में करने वाले आमिर खान, जिनके एर्दोगन परिवार से घनिष्ठ संबंध है, मौन हैं. फ़िल्म जगत भी शांत है लेकिन कांग्रेस ने बायकॉट का समर्थन करने या टर्की के विरुद्ध कुछ कहने के बजाय सरकार पर ही प्रश्न दागने शुरू कर दिए हैं.

टर्की के बायकॉट पर देश की सोच बिलकुल सही है. सभी को इस आंदोलन का हिस्सा बन कर जिहादी मानसिकता और खलीफाई महत्वाकांक्षा का विरोध करना चाहिए.

~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

शनिवार, 3 मई 2025

सब कुछ तैयार, तो मोदी को है किसका इन्तजार

 


सब कुछ तैयार, तो मोदी को है किसका इन्तजार || भारत पाक युद्ध में असमंजस के बीच देशवासियों के सब्र का बाँध छलकने लगा || अवैध पाकिस्तानियों ने उड़ाई सरकार की नींद लेकिन खेल अलतकिया सबाब पर


22 अप्रैल 2025 को जम्मू कश्मीर के पहलगाम में घूमने गए 27 से अधिक लोगों की इस्लामिक आतंकवादियों द्वारा धर्म पूछ कर केवल हिन्दुओं की नृशंस हत्या कर दी गई. आतंकियों ने इन लोगों से कलमा पढ़ने को कहा और जिन्होंने नहीं पढ़ा उन्हें गोलियों से भून दिया. इस हिंदू नरसंहार से पूरे देश में उबाल है. लोगों की प्रबल इच्छा है कि सरकार आतंकियों और उनके आकाओं को ऐसा सबक सिखाये कि वे फिर इस तरह की घटना करने की हिम्मत न जुटा सके. सरकार ने भी ऐसे संकेत दिए कि वह आतंकवादियों और आतंकी देश पाकिस्तान के विरुद्ध अब तक की सबसे बड़ी और निर्णायक कार्रवाई करेगी. सरकार द्वारा आहूत सर्वदलीय बैठक में सभी राजनीतिक दलों ने आतंकवाद के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई करने में सरकार के समर्थन की घोषणा की. संशोधित वक्फ बोर्ड कानून के विरुद्ध आक्रामक बयानबाजी और सड़कों पर हिंसक धरना प्रदर्शन में व्यस्त मुस्लिम नेताओं और मुस्लिम संगठनों ने भी आश्चर्यजनक रूप से न केवल इन जघन्य हत्याओं की निंदा की बल्कि काली पट्टी बांधकर नमाज़ अदा की और कई जगह कैंडल मार्च भी आयोजित किए. यदि यह विरोध वास्तविक है तो स्वागत योग्य है लेकिन इस्लाम, धर्म से अधिक राजनीति है और अलतकिया एक स्थापित परंपरा है जिसमे विपरीत परिस्थितियों में आडम्बर करना रणनीति होती है. इसलिए हिंदुओं को किसी भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए.

वैसे तो स्वतंत्रता के बाद से ही भारत पाकिस्तान प्रयोजित इस्लामिक आतंकवाद की चपेट में है और देश के लगभग सभी हिस्सों में आतंकी घटनाएं होती रही है लेकिन जम्मू कश्मीर में जिस ढंग से हिंदुओं का नरसंहार किया गया और उनकी जमीन जायदाद पर कब्जा किया गया वह विश्व का अनोखा उदाहरण है. यहाँ धर्मांध मुस्लिमो ने ही अपने पड़ोसी हिंदुओं का सफाया करने में मुख्य भूमिका निभायी. कई इस्लामिक संगठन और अतिवादी मुस्लिम भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए जम्मू कश्मीर का मॉडल पूरे देश में लागू करना चाहते हैं. इसलिए पूरी तैयारी के साथ सांप्रदायिक दंगों के लिए बहाने खोजे जाते हैं. पत्थरबाजी, आगजनी और हिंदुओं की निर्मम हत्याओं की प्रकृति भी कश्मीर प्रेरित होती है. आतंकवाद भले ही पाकिस्तान प्रयोजित हो लेकिन स्थानीय स्तर पर इस्लामिक कट्टरपंथी उनका न केवल पूरा सहयोग करते हैं बल्कि उनके दुष्कृत्यों को छिपाने के लिए राजनैतिक समर्थन भी हासिल कर लेते हैं.

सर्वदलीय बैठक में पाकिस्तान के विरुद्ध किसी भी कार्रवाई के लिए सरकार को पूर्ण समर्थन देने के बाद कई राजनेताओं ने तुष्टीकरण की राजनीति शुरू करते हुए आतंकी हमले का कारण सुरक्षा चूक और खुफिया एजेंसियों की विफलता बताना शुरू कर दिया है. कांग्रेस, वामपंथी. आरजेडी. टीएमसी, समाजवादी पार्टी आदि के नेताओं ने प्रत्यक्षदर्शियों और भुक्तभोगियों के दावों को झुठलाते हुए आतंकवादियों द्वारा धर्म पूछे जाने की बात पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. लालू की पार्टी ने आतंकी घटना को लिखी हुई पटकथा बताते हुए इसे सरकार प्रयोजित बताया. तुष्टीकरण की गंदी नाली के राजनीतिक कीड़ों को विवादित स्वयंभू शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का भी समर्थन मिला, जिन्होंने घटना के लिए मोदी को जिम्मेदार ठहराया और सरकार द्वारा प्रस्तावित कार्रवाई को केवल बयानबाजी बताया.

भारत ने प्रारंभिक तौर पर जो कदम उठाए हैं उनमें सिंध जल समझौता निलंबित करने, दूतावास में कर्मचारियों की संख्या कम करने,पाकिस्तानियों को वीज़ा बंद करने तथा वीजा पर आये पाकिस्तानियों को भारत छोड़ने, द्विपक्षीय व्यापार पर रोक लगाने पाकिस्तान के लिए भारतीय हवाई क्षेत्र प्रतिबंधित करने जैसे कई कदम शामिल हैं. इस बीच भारत में उच्च स्तरीय बैठकें हो रही है और सैन्य तैयारियां शुरू हो चुकी है. अरब सागर में भारतीय जल सेना ने मोर्चाबंदी कर ली है. वायु सेना अत्याधुनिक विमानों मिग, सुखोई और राफेल के साथगंगा एक्सप्रेस वे पर अभ्यास कर रही है और थल सेना ने रणनैतिक घेराबंदी शुरू कर दी है. पाकिस्तान में दहशत का माहौल है. उसने एटम बम की धमकियां देना शुरू कर दिया है. विश्व के अधिकांश देश या तो भारत के साथ हैं या पाकिस्तान के विरोध में लेकिन तुर्की खुलकर पाकिस्तान के समर्थन में आया है तथा चीन ने पाकिस्तान का खामोश समर्थन किया है.

भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की चर्चाओं के बीच आतंकवादियों की स्थानीय इकाइयों से ध्यान पूरी तरह हटा दिया गया है. तंत्र ने पूरे देश का आक्रोश पाकिस्तान की ओर मोड़ कर आतंकवाद की स्थानीय जड़ें पूरी तरह सुरक्षित करने का प्रयास किया है. पहलगाम हिंदू नरसंहार में केवल पुरुषों को मारा गया, स्त्रियों को छोड़ दिया गया जिनसे मिली जानकारी के आधार पर यह बिल्कुल स्पष्ट है कि स्थानीय घोड़ा चालकों और पर्यटन व्यवसाय में लगे अन्य स्थानीय लोगों में आतंकवादियों की बहुत अच्छी पैठ बन चुकी है. इन बदली परस्थितियों में सैलानियों की जान को गंभीर खतरा उत्पन्न हो गया है. इस घटना के बाद पर्यटक लौट गए हैं और घाटी में पर्यटन व्यवसाय पर गंभीर संकट आ गया है. यह नहीं माना जा सकता कि कश्मीर में पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों को इतनी समझ न हो कि ऐसी घटनाओं से उनका व्यवसाय बंद हो जाएगा. फिर भी यह हुआ तो इसका सीधा मतलब है कि घाटी में आर्थिक विकास से आतंकवाद समाप्त नहीं किया जा सकता. सरकार को इसके लिए कठोर निर्णय करने पड़ेंगे जो कश्मीरियत की गलत धारणा के कारण अब तक नहीं किए जा सकें. जम्मू कश्मीर में सरकार और विपक्ष में वही राजनैतिक दल है जिनके रहते घाटी में पहले भी भयानक हिंदू नरसंहार हो चुके हैं और जिनके रहते ही हिंदुओं का पलायन हुआ था. आज घाटी में नाम मात्र के हिंदू बचे हैं. मुस्लिम बहुसंख्यक हैं, इस कारण अलगाववाद का समर्थन करने वाले नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी जैसे दलों को सत्ता से बाहर करना संभव नहीं है. जब तक इनमें से कोई भी दल सत्ता में रहेगा, घाटी से आतंकवाद समाप्त होना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है .

भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के लिए मुसलमान और अनगिनत मुस्लिम संगठन देश में कहाँ क्या कर रहे हैं, इसकी सही और सटीक जानकारी किसी के पास उपलब्ध नहीं है. पाकिस्तानी पासपोर्ट पर वीजा लेकर आए नागरिको को वापस किए जाने को लेकर सनसनीखेज रहस्योद्घाटन हो रहे हैं. अनेक पाकिस्तानी नागरिक वीजा ख़तम होने के बाद भी दशकों से भारत में रह रहे हैं, उन्होंने भारत की नागरिकता भी नहीं ली लेकिन उनके पास आधार कार्ड, राशन कार्ड ओर वोटर आईडी कार्ड सब कुछ हैं. ऐसे लोगो की संख्या लाखों में हो सकती है. जम्मू कश्मीर में ही ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं, जिसमे एक इफ्तिखार अली वीजा खत्म होने के बाद भी पिछले 60 सालों से भारत में रह रहे हैं. वह जम्मू कश्मीर के पुलिस विभाग में कर्मचारी हैं, उनका मकान है, परिवार है और बच्चे भी यही बस चुके हैं, जबकि शेष भारत का कोई व्यक्ति कश्मीर में न तो जमीन खरीद सकता है और न ही वहाँ का निवासी बन सकता है. भारत की अनेक मुस्लिम महिलाओं ने पाकिस्तान में शादी की है. वे सरकारी अस्पतालों में सरकारी योजनाओं का फायदा लेकर बच्चे जनने के लिए मायके आती है. चूंकि बच्चे भारत में जन्मते हैं इसलिए वे अपने आप भारत के नागरिक बन जाते हैं. कई महिलाएं तो ऐसी भी हैं जो पाकिस्तानियों से शादी करने के बाद भी कभी भी पाकिस्तान नहीं गई और उनके दर्जनों बच्चे हैं क्योंकि उनकी पाकिस्तानी पति वीजा लेकर इसी काम के लिए भारत आते हैं. अभी तक भारत बांग्लादेशी और रोहिंग्या मुसलमानों से त्रस्त था, जिनकी संख्या भारत में 5 करोड़ से भी अधिक हो गयी बताई जाती है. लेकिन अब इन अवैध पाकिस्तानियों ने एक नई समस्या खड़ी कर दी है. यह भारत में मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाकर भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने का अभियान है. यह देश की एकता, अखंडता और संप्रभुता के लिए बहुत बड़ा खतरा है. अब जब उन्हें पाकिस्तान भेजा जा रहा है तो फारूक अब्दुल्ला और महबूबा मुफ़्ती जैसे मुस्लिम हितैषी और पाकिस्तान परस्त उन्हें भारत से निकाले जाने का विरोध कर रहे हैं और सरकार के इस कार्य को अमानवीय, अनैतिक और गैरकानूनी बता रहे हैं. अब्दुल्लाह और मुफ़्ती वही लोग हैं जिन्हें कश्मीर से हिंदुओं के पलायन पर न उस समय कोई अफसोस था और न आज. इन्होंने धारा 370 हटाने का विरोध किया था और इसकी बहाली के लिए चीन से सहायता लेने भी गए थे. ये आज भी पाकिस्तान से बात करने की हिमायती है.

जम्मू कश्मीर में आज आर्थिक विकास से ज्यादा इस बात की आवश्यकता है कि वहाँ प्राचीन सांस्कृतिक मूल्यों की स्थापना की जाए, हिंदू जनसंख्या को बढ़ाई जाए और विस्थापित हिंदुओं को वापस लाया जाए. हिंदुओं का जनसंख्या घनत्व बढाने के लिए पूर्व सैनिकों को बसाने का कार्य एक अच्छा विकल्प हो सकता है.

भारत के इस्लामीकरण अभियान को तभी रोका जा सकता है जब मदरसों पर रोक लगाई जाए, मस्ज़िदों को नियंत्रित किया जाए, वक्फ बोर्ड तथा मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जैसी संस्थाओं को तुरंत समाप्त किया जाए और पूजा स्थल कानून को रद्द किया जाए. समान नागरिक संहिता और समान शिक्षा नीति तुरंत लागू की जाए. जितनी जल्दी हो सके भारत को सनातन राष्ट्र घोषित किया जाए. अन्यथा भारत के इस्लामीकरण की गति रोक पान संभव नहीं लगता.

~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~

मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का हिंदू विरोध क्यों ?

 



स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती का हिंदू विरोध क्यों ?

आजकल एक दंडी बाबा  स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती बहुत चर्चा में है. वह अपने आप को ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य कहते हैं. सामान्य जनता भी उन्हें शंकराचार्य ही समझती है और मीडिया ने तो उन्हें शंकराचार्य के रूप में स्थापित कर ही दिया है. उन्होंने पहलगाम में हुई घटना के लिए मोदी पर कटाक्ष करते हुए कहा कि सबसे पहले तो चौकीदार को पकड़ा जाना चाहिए वह क्या कर रहा था और इस तरह उन्हें जिम्मेदार ठहराया है. पाकिस्तान के विरुद्ध प्रस्तावित कार्रवाई का भी उन्होंने मखौल उड़ाते हुए कहा कि मोदी कहते रहते हैं कि ये कर देंगे वो कर देंगे और जनता को बेवकूफ बनाते हैं. सिंधु नदी का जल रोका ही नहीं जा सकता है क्योंकि भारत के पास इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है लेकिन प्रधानमंत्री झूठ बोल रहे हैं और मीडिया भी सनसनी फैला रहा है कि पाकिस्तान को बूंद बूंद पानी को तरसा देंगे.

इसके पहले भी वह कई मामलों में हिंदू विरोध की दस्तक दे चुके हैं. उन्होंने मुर्शीदाबाद की घटना को कानून और व्यवस्था का मामला बताते हुए कहा कि इसे हिंदू मुस्लिम के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए. तीर्थराज प्रयाग में आयोजित महाकुंभ 2025 में भगदड़ मचने वाली घटना के बाद उन्होंने योगी आदित्यनाथ पर जमकर प्रहार किया था और उन्हें झूठा मुख्यमंत्री करार दिया था. उनके इस्तीफ़े की मांग की और महाकुंभ को सरकारी कुंभ की संज्ञा देते हुए तमाम अव्यवस्थाओं को बढ़ा चढ़ाकर पेश किया और योगी सरकार की आलोचना की. दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती भाजपा को घेरने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देते और कई मौकों पर तो ऐसा लगता है कि उनका व्यवहार विशुद्ध राजनैतिक है और वे किसी राजनीतिक दल का मोहरा बने हुए हैं. 

उनके व्यवहार से ऐसा लगता है जैसे वह एक असंतुष्ट व्यक्ति हैं और भाजपा से खासे नाराज उनकी नाराजगी की वजह क्या है, इस पर शोध करने से पता चलता है कि अविमुक्तेश्वरानंद को लगता है कि केंद्र की भाजपा सरकार ने उन्हें ज्योतिषपीठ का शंकराचार्य बनने से रोकने की कोशिश की और उनके कारण ही सर्वोच्च न्यायालय ने उनकी पट्टाभिषेक पर रोक लगा दी है.

अविमुक्तेश्वरानंद गुजरात की द्वारका-शारदा पीठ और उत्तराखंड की ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती के शिष्य हैं. स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का 11 सितंबर २०२२ को निधन हो गया था। इसके बाद उनकी वसीयत के आधार पर उनके निजी सचिव ने अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य घोषित कर दिया था। यह बहुत असामान्य घटना थी क्योंकि किसी भी शंकराचार्य की नियुक्ति वसीयत के आधार पर नहीं हो सकती. वास्तव में शंकराचार्य के चयन की एक प्रक्रिया है जिसका पालन नहीं किया गया था. इस कारण संन्यासी अखाड़े ने अविमुक्तेश्वर को ज्योतिष पीठ का नया शंकराचार्य मानने से इनकार कर दिया। निरंजनी अखाड़ा और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने भी विरोध किया और कहा कि शंकराचार्य की नियुक्ति की निर्धारित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है। मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा. अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने समर्थन में झूठ बोल कर कहा कि उनकी नियुक्ति का समर्थन गोवर्धन पीठ पुरी के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने भी किया है लेकिन गोवर्धन पीठ पुरी के शंकराचार्य की और से एक हलफनामा दायर कर बताया गया कि उन्होंने अविमुक्तेश्वरानंद की शंकराचार्य के रूप में नियुक्ति का समर्थन नहीं किया है. भारत सरकार के सॉलिसिटर जनरल ने भी इस बात की पुष्टि की जिसके बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अविमुक्तेश्वरानंद के पट्टाभिषेक समारोह पर अगले आदेशों तक रोक लगा दी, जो आज भी लगी है. पट्टाभिषेक समारोह वह होते हैं जिसमे चयनित शंकराचार्य की विधिवत शंकराचार्य के रूप में पदस्थापना की जाती है. इसलिए अविमुक्तेश्वरानंद ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य नहीं है.

ज्योतिषपीठ की विडंबना यह भी है की अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती भी पूरे कार्यकाल विवादों से घिरे रहे और उनकी नियुक्ति भी शंकराचार्य के रूप में कभी नहीं हो सकी थी. 1973 में जब ज्योतिष्पीठ में शंकराचार्य का पद रिक्त हुआ तो काशी विद्वत परिषद और भारत धर्म महामंडल ने शंकराचार्य की जिम्मेदारी स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती को दे दी लेकिन एक अन्य सन्यासी स्वामी वासुदेवानंद ने शंकराचार्य के पद पर अपनी दावेदारी पेश कर दी और मामला प्रयागराज उच्च न्यायालय पहुँचा. 44 साल बाद उच्च न्यायालय ने 2017 में अपने फैसले में वासुदेवानंद  की दावेदारी को ठुकरा दिया और स्वरूपानंद सरस्वती की नियुक्ति को अवैध घोषित कर दिया. उच्च न्यायालय ने काशी विद्वत परिषद को अन्य तीन मठों के प्रमुखों से सलाह करके किसी योग शंकराचार्य को चुनने का निर्देश दिया लेकिन न्यायालय ने यह भी कहा कि जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती स्वरूपानंद सरस्वती ज्योतिर्मठ के कार्यवाहक शंकराचार्य के रूप में कार्य कर सकते हैं. वह अपनी आखिरी सांस तक केयरटेकर शंकराचार्य के रूप में कार्य करते रहे. इन्हीं केयर टेकर शंकराचार्य की वसीयत के आधार पर अपनी दावेदारी पेश करने वाले अविमुक्तेश्वरानंद की नियुक्ति का मामला सर्वोच्च न्यायालय पहुंचा और उनके पट्टाभिषेक पर रोक लग गई.

शंकराचार्य के रूप में अपनी नियुक्ति ना हो पाने के लिए वे केंद्र की मोदी सरकार को पूरी तरह से जिम्मेदार ठहराते हैं और इसलिए वह राजनैतिक रूप से अत्यन्त मुखर होकर हर संभव उनका विरोध करते हैं. सर्वोच्च न्यायालय में कांग्रेस ने अपने वकीलों के माध्यम से उनकी सहायता की थी इसलिए वह कांग्रेस के पक्षधर हैं और कांग्रेस के पक्षधर होने के नाते वे पूरे इंडी गठबंधन के भी पक्षधर हैं. कांग्रेस ने अपने मीडिया विभाग के माध्यम से उन्हें शंकराचार्य के रूप में स्थापित कर दिया है और उन्हें इस्तेमाल कर रही है. अविमुक्तेश्वरानंद के गुरु स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती पर भी कांग्रेसी शंकराचार्य होने का आरोप पूरी जिंदगीभर चस्पा रहा क्योंकि वह धार्मिक मामलों में भी कांग्रेस का पक्ष आगे बढ़ाते थे तथा भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के खिलाफ खुलकर मोर्चा संभालते थे.

उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले के निवासी अविमुक्तेशरानंद  का नाम उमाशंकर उपाध्याय है जिहोने डॉक्टर संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय से शास्त्री और आचार्य की डिग्रियां लेते हुए राजनीति में भी ज़ोर आजमाइश की और छात्र राजनीति में हिस्सा लिया. अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने शंकराचार्य के प्रतिनिधि के रूप में मुस्लिम त्यौहार के परिदृश्य में गणेश प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगाने के सरकार के फैसले के विरुद्ध साधु संतों के एक प्रदर्शन का आयोजन किया था और सरकार के निर्देश पर पुलिस द्वारा उनकी जमकर पिटाई की गई थी.  महाकुंभ के दौरान अखिलेश यादव ने उनसे मिलकर पिछली घटना के लिए खेद व्यक्त किया तो उन्होंने अतीत की पीड़ा भूल कर अखिलेश यादव के साथ मिलकर महाकुंभ के नाम पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को जमकर घेरा.

सूत्र बताते हैं कि भाजपा के चुनाव चिन्ह पर उन्होंने 2014 में लोकसभा का चुनाव लड़ने की भी इच्छा ज़ाहिर की थी जिसे भाजपा ने उनके कांग्रेसी संबंधों के चलते स्वीकार नहीं किया. 2019 के लोकसभा चुनावों में अविमुक्तेश्वरानंद ने वाराणसी से प्रधानमंत्री नरेंद्र के खिलाफ एक उम्मीदवार उतारने का प्रयास किया था जो सफल नहीं हो सका लेकिन 2024 में गौ गठबंधन के बैनर तले एक उम्मीदवार उतार भी दिया था. कांग्रेस नेता अजय राय द्वारा वाराणसी में मोदी के विरोध में आयोजित राजनैतिक धरना प्रदर्शन में भी अविमुक्तेश्वरानंद ने बढ़ चढ़कर भाग लिया था.

भाजपा का विरोध करने के लिए वे आज सन्यासी की गरिमा को गिराते हुए हिंदू विरोधी और राष्ट्र विरोधी लाइन ले रहे हैं, जो उन्हें शंकराचार्य के पद हेतु पूरी तरह से अयोग्य सिद्ध करता है . ऐसे धर्मगुरु, साधु, सन्यासी और शंकराचार्य  जो अपने निजी स्वार्थ में लिप्त हैं,  सनातन धर्म और सनातन संस्कृति की रक्षा नहीं कर सकते.

~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

शुक्रवार, 25 अप्रैल 2025

पहलगाम में काफिरों पर कहर | आतंकवाद का धर्म है और धर्म का ही आतंक है

 


पहलगाम में काफिरों पर कहर | आतंकवाद का धर्म है और धर्म का ही आतंक है | आतंवादियों ने न जाति पूँछी और न ये कि पीडीए कौन है

कश्मीर में पहलगाम की खूबसूरत वादियों में छुट्टियां मनाने गए लोगों को इस्लामिक आतंकियों ने बेहद क्रूरता से मौत के घाट उतार दिया. इन मुस्लिम उन्मादी राक्षसों ने सैलानियों से उनका नाम पूछा, धर्म पूछा और हिंदुओं तथा सभी गैरमुस्लिमों को निर्दयता पूर्वक गोलियों से भून दिया. लोगों से कलमा पढ़ने को कहा गया. कपड़े उतरवाकर खतना देखा गया और 28 लोगों को मौके पर ही निर्ममता पूर्वक मार डाला गया. इससे भारत की षड्यंत्रकारी छद्म धर्मनिरपेक्षता ओर मुस्लिम तुष्टीकरण के उस नारे की एक बार पोल खुल गयी कि आतंकवादियों का धर्म नहीं होता. भारत में तो आतंकवाद का धर्म बिल्कुल स्पष्ट है और किसी को भी भ्रम में नहीं रहना चाहिए. जातिगत जनगणना की मांग करने वाले और पीडीए की बदौलत सत्तासीन होने का सपना देखने वाले राजनेताओं की आंखें खुल जानी चाहिए कि मुस्लिम आतंकवादियों ने किसी की जाति नहीं पूछी, नहीं पूछा कि वे पीडीए है. उनके लिए केवल यह जानना जरूरी था कि वे हिंदू हैं और इसी आधार पर सभी को मौत के घाट उतार दिया.

इस घटना से पूरे देश में उबाल है. लोगों में बेहद गुस्सा है आतंकवादियों तथा पाकिस्तान के लिए और थोडा केंद्र सरकार के लिए भी. निश्चित रूप से इस बात की समीक्षा की जानी चाहिए कि इतनी बड़ी घटना की नैतिक जिम्मेदारी किसकी है. राज्य की कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी उपराज्यपाल के माध्यम से केंद्र सरकार के पास है, जिसमें गृहमंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की महत्वपूर्ण भूमिका है. आखिर इतनी बड़ी सुरक्षा चूक कैसे हो गई. जहाँ खुफिया एजेंसियों की विफलता स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ती है, वहीं राज्य में स्थानीय राजनेताओं के दबाव में केंद्रीय सुरक्षा बलों की तैनाती में की गई कटौती भी एक प्रमुख कारण है. उपराज्यपाल की कार्यप्रणाली राजनैतिक रूप से सही भले ही हो लेकिन जम्मू कश्मीर जैसे आतंकवाद से प्रभावित अति संवेदनशील राज्य के लिए रणनीतिक रूप से बहुत उपयुक्त कभी नहीं रही. केंद्र सरकार जोरशोर से इस बात का प्रचार करती रही कि राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति बिल्कुल सामान्य है, जिसके पीछे भी उपराज्यपाल का सही वस्तुस्थिति से अवगत न कराना प्रमुख कारण हो सकता है.

अधिकांश क्षेत्रों में सफलता अर्जित करने वाले अजित डोभाल भी राज्य की स्थिति से अनभिज्ञ कैसे बने रहे. केंद्र सरकार को राज्य की सुरक्षा स्थिति की सघन समीक्षा करनी चाहिए और बिना किसी राजनीतिक बाजीगरी के सुरक्षा कमजोरियों को तुरंत दूर किया जाना चाहिए. केंद्रीय सुरक्षा बलों को घाटी में तब तक रहना चाहिए जब तक आतंकवाद का पूरी तरह से खात्मा नहीं हो जाता. राज्य के पुलिस और प्रशासनिक कर्मचारी अब केंद्र शासित प्रदेशों के कैडर का हिस्सा है, इसीलिए राज्य के अधिक से अधिक कर्मचारियों को दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों में तत्काल स्थानांतरित करने की आवश्यकता है, जिनके स्थान पर दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों के कर्मचारियों अधिकारियों को लाया जा सकता है. इससे राज्य के कर्मचारियों और पृथकतावादियों के बीच का वर्षों से चला आ रहा तंत्र टूट सकेगा और राज्य का वातावरण बदलने में सहायता मिल सकेगी.

पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद भारत के लिए नया नहीं है. दशकों से हम लोग आतंकवाद के साये में ही रहते आए हैं. हमने वह समय भी देखा है जब रेडियो और टीवी पर लगातार सूचनाएं प्रसारित की जाती है कि किसी भी लावारिस वस्तु को हाथ न लगाएं यह बम हो सकता है. रेलवे स्टेशनों और बस अड्डों पर गाड़ियों की सूचनाओं के बीच में यह सूचना लगातार प्रसारित की जाती थी. लोग जब घरों से कार्यालय, व्यवसाय या किसी कार्य से बाहर जाते थे तो उन्हें विश्वास नहीं होता था कि वह वापस आ पाएंगे और घर वाले भी वापस आने तक चिंता में डूबे रहते थे. मोदी सरकार बनने के बाद आतंकवाद पर जबरदस्त अंकुश लगा इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती. धारा 370 हटाना, जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करना बहुत सकारात्मक कदम था. राज्य में कानून व्यवस्था को सामान्य बनाना बहुत बड़ी चुनौती थी जिसमें भी मोदी सरकार को बहुत सफलता मिली. अच्छा होता यदि जम्मू को भी अलग केंद्र शासित प्रदेश बना दिया जाता, तो आतंकवाद के प्रभाव को केवल घाटी तक सीमित किया जा सकता था. जम्मू कश्मीर में बाहरी लोगों द्वारा संपत्ति खरीदने और स्थायी निवासी बनने के मामले में मोदी सरकार कमजोर पड़ गयी. राज्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन के मामले में भी केंद्र सरकार हिचकिचाहट से बाहर नहीं निकल पाई, इस कारण आज भी राज्य में सत्ता की धुरी कश्मीर घाटी है, जो भारत विरोधियों और पृथकतावादियों से बुरी तरह प्रभावित है. इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि कुछ दिन पहले ही फारूक अब्दुल्ला ने मुर्शीदाबाद हिंदू नरसंहार और पलायन पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि यह भारत की मुस्लिमों के प्रति नफरत की राजनीति का परिणाम है. इंजीनियर रशीद का लोकसभा में दिया गया भाषण भी कश्मीर घाटी के माहौल को रेखांकित करता है. एक प्रश्न यह भी है कि राज्य में चुनाव करवाने की इतनी जल्दी क्या थी जबकि इससे सुधरते माहौल का पटरी से उतरने का खतरा था, जो सही साबित हो गया. हो सकता है इसके पीछे सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ का दबाव हो जब उन्होंने कहा था कि राज्य को लंबे समय तक लोकतंत्र से बिरत नहीं रखा जा सकता लेकिन देश की एकता और अखंडता की जिम्मेदारी तो केंद्र सरकार की है.

भारत में हर आतंकवादी घटना को पाकिस्तान से जोड़ दिया जाता है, यह भारत के मुस्लिम संगठनों और मुस्लिम तुष्टिकरण का राजनीतिक विमर्श है, जो सरकारों के लिए भी उपयुक्त होता है लेकिन कड़वी सच्चाई यह है कि पाकिस्तान चाहे कितना ही ज़ोर लगा ले बिना स्थानीय समर्थन और सहयोग के भारत में किसी आतंकवादी घटना को अंजाम नहीं दिया जा सकता. भारत की विडंबना है कि हम स्थानीय आतंकवादियों पर कार्रवाई करना तो दूर उनकी तलाश तक नहीं करते और जब कभी स्थानीय रंगे हाथों पकड़े जाते हैं तो विभिन्न राजनैतिक दल उन्हें बचाने का प्रयास करते हैं और सफल भी हो जाते हैं. इस काम में न्यायपालिका का भी भरपूर समर्थन मिलता है उनके लिए रात 12:00 बजे सर्वोच्च न्यायालय खुल जाता है. उन्हें जेल जाने से बचाने के लिए सर्वोच्च न्यायलय में एक ही दिन में तीन तीन बेंचों का गठन कर जमानत देना सुनिश्चित कर लिया जाता है. कोई देश चाहे कितना ही शक्तिशाली क्यों न हो, जब तक आतंकवाद की स्थानीय इकाइयों को नष्ट नहीं करता, आतंकवाद का सफाया नहीं कर सकता.

भारत विश्व का इकलौता देश है जहाँ, इस्लामिक आक्रान्ताओं और मुस्लिम आतंकवादियों द्वारा 10 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार किया गया. वह देश भी कितना दुर्भाग्यशाली है जो आज तक यह नहीं समझ सका कि आतंकवाद का धर्म होता है. हिंदुओं का नरसंहार करना कुछ लोगों का धार्मिक कृत्य है. इस नासमझी के कारण ही भारत में आतंकवाद के विरुद्ध भारत में कभी कोई गंभीर लड़ाई लड़ी ही नहीं गई. कश्मीर मामले में भी मोदी सरकार का मत था कि घाटी के आतंकवाद पर सांप्रदायिक दृष्टिकोण नहीं अपनाना चाहिए और इसलिए आतंकवाद से लड़ने के लिए विकास का मॉडल चुना गया. जम्मू कश्मीर को जितनी केंद्रीय सहायता आज तक दी गयी उतनी तो उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे बड़े और गरीब राज्यों को भी कभी नहीं दी गई. घाटी को दी गई इस सहायता राशि का बड़ा हिस्सा राजनेताओ ने हड़प लिया, जो अप्रत्यक्ष रूप से अलगाववादियों और आतंकवादियों को भी पहुंचता रहा क्योंकि राज्य में राजनीति और आतंकवाद दोनों एक दूसरे के पूरक हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश की अपेक्षा के अनुरूप आतंकवादियों और उनके आकाओं को मिट्टी में मिला देने की चेतावनी देते हुए कहा है कि उन्हें ऐसी सजा मिलेगी जिसकी वे कल्पना भी नहीं कर सकते. संतोष की बात है कि पूरा विश्व भारत के साथ खड़ा है लेकिन भारत की उस राजनीति का क्या करें, जिसमें समूचा विपक्ष आतंकवादियों और पाकिस्तान के साथ खड़ा है क्योंकि उनकी पूरी राजनीति मुस्लिम तुष्टिकरण पर ही आधारित है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” के नारे के साथ भारत को विकसित राष्ट्र बनाने की धुन में है. उन्हें लगता है कि हिन्दुओं के विरुद्ध नफरत की भावना तथा भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की कामना को विकास के मॉडल से दूर किया जा सकता है, जो पूरी तरह से गलत है. यह वही गलती है जिससे विश्व की कई सभ्यताएं नष्ट हो गई और दुनिया में इस्लामिक राष्ट्रों की संख्या बढ़कर 57 हो गई. इस्लामिक विद्वान कहते हैं कि गज़वा-ए-हिंद धार्मिक कृत्य है, तो फिर इससे कौन इनकार कर सकता है कि भारत निशाने पर हैं.

~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है

  संविधान हत्या दिवस || लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है || क्या मोदी सरकार के कार्यकाल में भी अघोषित आ...