कश्मीर रहा है सनातन हिंदू संस्कृति का गढ़
- प्रहलाद सबनानी
अतिप्राचीन भारत में
कैलाश
पर्वत
के
आसपास
भगवान
शिव
के
गणों
की
सत्ता
थी।
उक्त
इलाके
में
ही
दक्ष
राजा
का
भी
साम्राज्य
था।
ऐसा
माना
जाता
है
कि
कश्यप
ऋषि
कश्मीर
के
पहले
राजा
थे।
कश्मीर
को
उन्होंने
अपने
सपनों
का
राज्य
बनाया
था
और
कश्यप
ऋषि
के
नाम
पर
ही
कश्यप
सागर
(कैस्पियन
सागर)
और
कश्मीर
का
प्राचीन
नाम
पड़ा
था।
शोधकर्ताओं
के
अनुसार
कैस्पियन
सागर
से
लेकर
कश्मीर
तक
ऋषि
कश्यप
के
कुल
के
लोगों
का
राज
फैला
हुआ
था।
कश्यप
की
एक
पत्नी
कद्रू
के
गर्भ
से
नागों
की
उत्पत्ति
हुई
जिनमें
प्रमुख
8 नाग
थे-
अनंत
(शेष),
वासुकि,
तक्षक,
कर्कोटक,
पद्म,
महापद्म,
शंख
और
कुलिक।
इन्हीं
से
नागवंश
की
स्थापना
हुई।
आज
भी
कश्मीर
में
इन
नागों
के
नाम
पर
ही
कई
स्थानों
के
नाम
हैं।
कश्मीर
का
अनंतनाग
नागवंशियों
की
राजधानी
हुआ
करता
था।
हाल
में
अखनूर
से
प्राप्त
हड़प्पा
कालीन
अवशेषों
तथा
मौर्य,
कुषाण
और
गुप्त
काल
की
कलाकृतियों
से
जम्मू
के
प्राचीन
इतिहास
का
पता
चलता
है।
1184 ईसा
पूर्व
के
राजा
गोनंद
से
लेकर
राजा
विजय
सिम्हा
(1129 ईसवी)
तक
के
कश्मीर
के
प्राचीन
राजवंशों
और
राजाओं
के
प्रमाणिक
दस्तावेज
उपलब्ध
हैं।
जम्मू कश्मीर और
लद्दाख
क्षेत्र
पहले
हिन्दू
शासकों
और
फिर
बाद
में
मुस्लिम
सुल्तानों
के
अधीन
रहा।
बाद
में
यह
क्षेत्र
अकबर
के
शासन
में
मुगल
साम्राज्य
का
हिस्सा
बन
गया।
वर्ष
1756 से
अफगान
शासन
के
बाद
वर्ष
1819 में
यह
क्षेत्र
पंजाब
के
सिख
साम्राज्य
के
अधीन
हो
गया
था।
जब
भारत
को
अंग्रेजों
से
राजनैतिक
स्वतंत्रता
प्राप्त
हुई
तब
धर्म
के
नाम
पर
भारत
के
एक
बड़े
भूभाग
को
अलग
कर
पाकिस्तान
बना
दिया
गया
था।
उस
समय
भी
जम्मू,
कश्मीर
और
लद्दाख
ये
तीनों
अलग
अलग
क्षेत्र
थे
और
यह
तीनों
क्षेत्र
एक
ही
राजा
के
अधीन
थे
तथा
26 अक्टोबर
1947 को
इस
क्षेत्र
के
शासक
महाराज
हरी
सिंह
ने
अपने
क्षेत्र
के
भारतीय
संघ
में
विलय
समझौते
पर
हस्ताक्षर
कर
दिए
थे।
विभाजन
की
इस
त्रासदी
के
समय
भी
पाकिस्तानी
सेना
ने
कबाईलियों
के
साथ
मिलकर
जम्मू
कश्मीर
क्षेत्र
पर
आक्रमण
कर
इसके
बहुत
बड़े
भू
भाग
पर
कब्जा
कर
लिया
था।
इस
आक्रमण
का
भारतीय
सेना
मुंहतोड़
जवाब
देते
हुए
कब्जा
मुक्ति
का
अभियान
बहुत
सफलतापूर्वक
चला
रही
थी
लेकिन
बीच
में
ही
तत्कालीन
प्रधानमंत्री
श्री
जवाहरलाल
नेहरू
ने
एकतरफा
युद्ध
विराम
की
घोषणा
कर
दी
जिसके
कारण
लगभग
आधा
जम्मू
कश्मीर
आज
भी
पाकिस्तान
के
अवैध
कब्जे
में
है।
यह
तत्कालीन
नेहरू
सरकार
की
सबसे
बड़ी
राजनैतिक
भूल
मानी
जाती
है,
जिसके
चलते
यह
क्षेत्र
पिछले
लगभग
70 वर्षों
तक
अशांत
क्षेत्र
बना
रहा
है।
हालांकि
कश्मीर
सनातन
हिंदू
संस्कृति
का
गढ़
रहा
है
परंतु
कश्मीर
का
इतिहास
और
भूगोल
दोनों
ही
बदल
दिए
गए
हैं।
हमें
ऐसा
आभास
कराया
जाता
है
कि
कश्मीर
क्षेत्र
इस्लाम
के
कब्जे
के
क्षेत्र
रहा
है।
तत्कालीन नेहरू सरकार
की
जम्मू
कश्मीर
से
सम्बंधित
दूसरी
सबसे
बड़ी
गल्ती
थी
राज्य
में
धारा
370 लागू
करवाना।
इस
धारा
के
अंतर्गत
केंद्र
सरकार
को
रक्षा,
विदेश
एवं
संचार
जैसे
कुछ
क्षेत्रों
को
छोड़कर
शेष
समस्त
क्षेत्रों
के
लिए
भारत
सरकार
के
कानून
जम्मू
कश्मीर
में
लागू
करने
के
लिए
राज्य
सरकार
की
अनुमति
लेना
आवश्यक
होता
था।
अतः
भारत
सरकार
के
कानून
जम्मू
कश्मीर
में
लागू
नहीं
होते
थे।
इसका
परिणाम
यह
निकलता
था
कि
भारत
के
अन्य
राज्यों
से
कोई
भी
भारतीय
नागरिक
जम्मू
कश्मीर
की
सीमा
के
अंदर
जमीन
या
सम्पत्ति
नहीं
खरीद
सकता
था।
जम्मू
कश्मीर
के
लिए
भारतीय
तिरंगा
के
अलावा
एक
अलग
राष्ट्रीय
ध्वज
भी
होता
था,
इसलिए
वहां
के
नागरिकों
द्वारा
भारतीय
तिरंगा
के
सम्मान
नहीं
करने
पर
उन
पर
कोई
अपराधिक
मामला
दर्ज
नहीं
हो
सकता
था।
यहां
तक
कि
जम्मू
और
कश्मीर
के
सम्बंध
में
भारत
की
सुप्रीम
कोर्ट
द्वारा
यदि
कोई
आदेश
दिया
जाता
है,
तो
वहां
के
लिए
यह
जरूरी
नहीं
है
कि
वे
इसका
पालन
करें।
जम्मू
और
कश्मीर
की
कोई
महिला
यदि
भारत
के
किसी
अन्य
राज्य
के
किसी
व्यक्ति
से
शादी
कर
लेती
है,
तो
उस
महिला
से
उसके
कश्मीरी
होने
का
अधिकार
छिन
जाता
था।
इसके
विपरीत
यदि
कोई
कश्मीरी
महिला
पाकिस्तान
में
रहने
वाले
किसी
व्यक्ति
से
निकाह
करती
है,
तो
उसकी
कश्मीरी
नागरिकता
पर
कोई
असर
नहीं
होता
था।
साथ
ही,
कोई
पाकिस्तानी
नागरिक
यदि
कश्मीरी
लड़की
से
शादी
करता
था
और
फिर
कश्मीर
में
आकर
रहने
लगता
था
तो
उस
व्यक्ति
को
भारतीय
नागरिकता
भी
प्राप्त
हो
जाती
थी।
यह
किस
प्रकार
के
नियम
बनाए
गए
थे
जिनके
अनुसार
एक
भारतीय
नागरिक
जम्मू
कश्मीर
में
नहीं
बस
सकता
था
परंतु
एक
पाकिस्तानी
नागरिक
यहां
बस
सकता
था
और
आतंकवाद
फैला
सकता
था।
कुल मिलाकर धारा
370 के
चलते,
नागरिकों
के
हितार्थ
पूरे
देश
में
भारत
सरकार
द्वारा
चलाई
जा
रही
कई
योजनाओं
का
लाभ
जम्मू
कश्मीर
एवं
लद्दाख
के
नागरिकों
को
नहीं
मिल
पा
रहा
था
एवं
इन
क्षेत्रों
का
विकास
भी
नहीं
हो
पा
रहा
था
क्योंकि
अत्यधिक
आतंकवाद
के
चलते
कोई
भी
उद्योगपति
अपना
निवेश
इस
क्षेत्र
में
करने
को
तैयार
ही
नहीं
होता
था।
इस
क्षेत्र
के
नागरिकों
को
लाभ
पहुंचाने,
इस
क्षेत्र
के
आर्थिक
विकास
को
गति
देने
एवं
आतंकवाद
को
समूल
नष्ट
करने
के
उद्देश्य
से
दिनांक
5 अगस्त
2019 को
भारत
सरकार
ने
जम्मू
एवं
कश्मीर
को
खास
दर्जा
देने
वाली
धारा
370 को
कानूनी
रूप
से
खत्म
कर
दिया
था।
इसके
बाद
से
वहां
कई
बदलाव
दृष्टिगोचर
हैं।
अब
केंद्र
के
समस्त
कानूनों
एवं
अन्य
कई
आर्थिक
योजनाओं
को
वहां
लागू
कर
दिया
गया
है
इससे
आम
नागरिकों
को
बहुत
सुविधा
एवं
लाभ
हुआ
है।
आतंकी
घटनाओं
में
भारी
कमी
आई
है।
आतंकवादियों
की
कमर
तोड़
दी
गई
है।
हजारों
की
संख्या
में
स्थानीय
नागरिकों
को
सरकारी
नौकरियां
प्रदान
की
गई
हैं।
जम्मू कश्मीर में
जिस
तरह
इंफ्रास्ट्रक्चर
का
विकास
हो
रहा
है,
कनेक्टिविटी
बढ़
रही
है,
उससे
राज्य
में
पर्यटन
गतिविधियों
का
विस्तार
हुआ
है
और
केलेंडर
वर्ष
2022 में
रिकार्ड
वृद्धि
के
साथ
26 लाख
से
अधिक
पर्यटक
वहां
पहुंचे
हैं।
भारत
की
आजादी
के
बाद
से
वर्ष
2019 तक
जम्मू
कश्मीर
में
तकरीबन
14,700 करोड़
रुपए
का
निवेश
हो
पाया
था,
जबकि
पिछले
केवल
3 वर्षों
में
यह
चार
गुना
बढ़कर
56,000 करोड़
रुपए
से
अधिक
का
हो
गया
है।
स्वास्थ्य
से
जुड़े
इंफ्रास्ट्रक्चर
का
भी
तेजी
से
विकास
हो
रहा
है।
2 नए
एम्स,
7 नए
मेडिकल
कॉलेज,
2 स्टेट
कैंसर
इंस्टीट्यूट
और
15 नर्सिंग
कॉलेज
खुलने
जा
रहे
हैं। इस
सबसे
स्थानीय
नागरिकों
के
लिए
रोजगार
के
नए
अवसरों
में
उल्लेखनीय
वृद्धि
हो
रही
है।
प्रहलाद
सबनानी
सेवा
निवृत्त उप
महाप्रबंधक,
भारतीय
स्टेट बैंक
के-8,
चेतकपुरी कालोनी,
झांसी
रोड, लश्कर,
ग्वालियर - 474 009
मोबाइल
क्रमांक - 9987949940
ई-मेल - psabnani@rediffmail.com
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