- शिव मिश्रा
भारत में तुष्टीकरण अब शर्मनाक से खतरनाक स्तर पर पहुँच चुकी है. सभी
राजनैतिक दल मुस्लिम वोटों को सत्ता प्राप्त करने की कुंजी मानते हैं और इसलिए उनके
हर अच्छे बुरे काम का पुरज़ोर समर्थन करते रहते हैं. ऐसा ही वातावरण कुख्यात माफिया
सरगना अतीक के बेटे अशद के पुलिस एनकाउंटर में मारे जाने को लेकर बनता दिखाई पड़
रहा है. उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज
पार्टी ने पुलिस एनकाउंटर पर प्रश्नचिन्ह लगाया है. जहाँ समाजवादी पार्टी ने एनकाउंटर
को फर्जी बताते हुए, इसे हिंदू मुस्लिम भाई चारा नष्ट करने का भाजपाई षड्यंत्र
बताया है, वहीं बहुजन समाज पार्टी ने एनकाउंटर की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है. असदुद्दीन
ओवैसी ने हमेशा की तरह सम्प्रदायिक रंग देते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार धर्म के
आधार पर इन काउंटर करती है और इसे मुस्लिमों के खिलाफ़ पक्षपाती कार्रवाई बताया है.
ऐसा कई अन्य विपक्षी दलों ने भी किया. स्वाभाविक तौर पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
वामपंथ इस्लामिक गठजोड़ इसे भारत में मुस्लिमों के नरसंहार के रूप में अतिरंजित
करेगा.
अभी हाल में देश के अनेक भागों में रामनवमीं जुलूसों
पर धर्मविशेष द्वारा किये गए आक्रमण को भी इसी तरह रंजित किया गया. अंतरराष्ट्रीय
मीडिया ने पश्चिम बंगाल और बिहार के
सत्ताधारी दल के नेताओं के बयानों के आधार पर सनसनीखेज खबरें बनाईं और उन्हें ऐसे
प्रस्तुत किया है जैसे भारत में मुस्लिमों पर अत्याचार किया जा रहा है. पश्चिम
बंगाल में रामनवमीं के जुलूसों पर धर्म स्थलों और मकानों की छतों से पत्थरों से
किए गए हमले पर कोलकाता उच्च न्यायालय ने सरकार पर तीखी टिप्पणियां करते हुए हमले
को सुनियोजित बताया है और ममता बेनर्जी के बयानों को आग में घी डालने वाला बताया
है. नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन की टीम ने भी इसी सच्चाई को उजागर किया है. लेकिन
इससे पहले ही इन नेताओं के बयानों के आधार पर ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कंट्रीज़ ने
भारत में मुसलमानों की स्थिति पर भारत की निंदा कर दी थी.
24 फरवरी 2023 को प्रयागराज में बसपा विधायक राजू
पाल हत्याकांड के एकमात्र चश्मदीद गवाह और उच्च न्यायालय के एडवोकेट उमेश पाल की
दिनदहाड़े गोलियां और बम मारकर हत्या कर दी गई थी. उनकी जान को खतरा देखते हुए राज्य
सरकार ने पुलिस सुरक्षा उपलब्ध कराई थी. इस दर्दनाक घटना में हमलावारों ने उनकी
सुरक्षा में तैनात दोनों पुलिसकर्मियों की भी हत्या कर दी थी. सीसीटीवी फुटेज के
आधार पर सभी हमलावारों की पहचान कर ली गई थी. पुलिस की जांच के अनुसार हमलावर अतीक
अहमद गैंग के थे और वारदात में अतीक का बेटा भी शामिल था. पुलिस सरगर्मी से सभी
अपराधियों की तलाश कर रही थी. कुछ ने आत्मसमर्पण कर दिया था और कुछ चकमा देकर एक
शहर से दूसरे शहर भाग रहे थे. झांसी के पास पुलिस दल ने जब उन्हें घेर कर गिरफ्तार
करने का प्रयास किया तो उन्होंने पुलिस पर गोली बारी शुरू कर दी. नतीजन पुलिस की
जवाबी फायरिंग अतीक का बेटा असद और उसका शूटर मारे गए. इस पूरे घटनाक्रम का
विडंबनापूर्ण तथ्य यह है कि जिन राजनीतिक दलों ने अतीक के बेटे असद की एनकाउंटर
में मौत के बाद इनकाउंटर पर प्रश्नचिन्ह लगाया है, उनकी संवेदना अतीक अहमद के साथ
है क्योंकी वह समाजवादी पार्टी और बहुजन
समाज पार्टी दोनों से जुड़ा रहा है. पुलिस की कार्रवाई पर प्रश्नचिन्ह लगाने का कारण
भी तुष्टिकरण की पराकाष्ठा है.
प्रयाग में दिन दहाड़े उमेश पाल सहित दो
पुलिसकर्मियों की हत्या पर सभी विपक्षी दलों ने विधानसभा में राज्य की बिगड़ती
कानून व्यवस्था का मामला उठाया था ओर राज्य सरकार को अपराधियों के साथ सख्ती से
निपटने में असफल बताया था. योगी सरकार के समक्ष अपराधियों को जल्द से जल्द कानून
की गिरफ्त में लाने की चुनौती थी. इसलिए पुलिस प्रशासन पूरी मुस्तैदी के साथ
अपराधियों की धर पकड़ कर रहा था. तुष्टीकरण में लगे राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया
उसी समय आने लगी थी जब वारदात में शामिल अपराधियों के गैरकानूनी निर्माण तथा सरकारी
जमीनों पर अवैध कब्जा कर किए गए निर्माण पर बुलडोजर चलाया जा रहा था.
इस बात में कोई संदेह नहीं कि योगी के शासनकाल में
माफियाओं के प्रति अपनाई जा रही ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के कारण ही प्रदेश की कानून
और व्यवस्था में उत्तरोत्तर सुधार हुआ है. योगी का बुलडोजर मॉडल पूरे विश्व में
चर्चा का विषय है. दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्री भी इस मॉडल को अपना रहे हैं लेकिन
उत्तर प्रदेश की योगी सरकार समुदाय विशेष के कट्टरपंथियों के निशाने पर हमेशा रहती
है. क्या कारण है कि भारत के ज़्यादातर राजनीतिक दल सत्ता के लालच में राष्ट्र की
एकता और अखंडता को दांव पर लगा रहे हैं. क्यों उन्हें इस बात का अहसास नहीं है कि
स्वतंत्रता के बाद इन 75 सालों में देश
में इतना बड़ा बदलाव आ चुका है कि कट्टरपंथियों ने विदेशी धन के बल पर कश्मीर से
केरल तक और काठियावाड़ से असम तक अपना जाल फैला रखा है. हिमाचल और उत्तराखंड की
ऊंची पहाडियों पर भी अवैध कब्जा और अनाधिकृत बस्तियों बसा कर खतरनाक खेल खेला जा
रहा है. देश के लगभग हर हिस्से में जिहादी तत्व अपनी पकड़ मजबूत करते जा रहे हैं. उनकी
तैयारियां देखकर 1947 के विभाजन के समय की स्थितियां बनने की संभावना से इनकार
नहीं किया जा सकता. इसका परिणाम क्या होगा, जानना बिलकुल मुश्किल नहीं क्योंकि
पीएफआई सहित अनेक कट्टरपंथी पृथकतावादी ताकतों का लक्ष्य सभी को ज्ञात है. बड़े
आश्चर्य की बात है कि ये सब जानते हुए भी राजनैतिक दल क्यों आंख बंद किए हुए हैं
और क्यों जानबूझकर राष्ट्रांतरण को आमंत्रित कर रहे हैं.
यह सही है कि स्वतंत्र भारत को मुस्लिम तुष्टीकरण विरासत में मिला है. तुष्टीकरण की शुरुआत किसने की, गाँधी ने या नेहरू ने, लोग इस बहस तो करते रहे किंतु इस मानसिकता से बाहर निकलने की कोशिश भी करते रहे. यह देश का दुर्भाग्य ही है कि केंद्र में सत्ताधारी कांग्रेस न केवल तुष्टीकरण का अभियान चलाती रही बल्कि धर्म विशेष के अराजक तत्वों की राष्ट्रविरोधीऔर धर्मांतरण संबंधी गतिविधियों को नजर अंदाज भी करती रही. देश की एकता अखंडता से लगातार समझौता किया जाता रहा. इसके परिणामस्वरूप ही देश के कई हिस्सों में जनसांख्यिकीय परिवर्तन होता चला गया. जम्मू कश्मीर में जो कुछ हुआ वह स्वतंत्र भारत के इतिहास का सबसे अश्रु पूरित दुखद अध्याय है. राज्य के मूल निवासी अपने ही देश में शरणार्थी बनकर आज भी नरकीय जीवन व्यतीत करने को मजबूर हैं. लेकिन, कश्मीर में जो हुआ वह खेल अभी भी बंद नहीं हुआ है बल्कि लगातार एक राज्य से दूसरे राज्य में फैलता चला जा रहा है. केरल में भी कश्मीर का प्रयोग दोहराने के बाद, वही खेल पश्चिम बंगाल में दोहराया जा रहा है और बिहार तथा झारखंड में इसकी शुरुआत हो चुकी है.
लोग अभी भी भूले नहीं है कि कैसे राजनीतिक दलों ने
तुष्टीकरण के लिए दुर्दांत आतंकवादियों तक
का समर्थन किया और उनके विरुद्ध दर्ज किए गए मुकदमे वापस लिए. कई राजनीतिक दलों ने
एनकाउंटर में मारे गए आतंकवादियों के लिए आंसू बहाए और मौत की सजा पाए आतंकवादियों
की फांसी रुकवाने के लिए रात 12:00 बजे सर्वोच्च न्यायालय भी खुलवाया. कांग्रेस ने
सत्ता में रहते हुए वक्फ बोर्ड और पूजा स्थल विधेयक जैसे राष्ट्र और सनातन विरोधी
कानून भी बनाए लेकिन अपने पास सत्ता बनाए नहीं
रख सके. हिंदू पुनर्जागरण के कारण सत्ताच्युत हुए दलों ने कभी इस पर विचार नहीं
किया कि देश के बहुसंख्यकों को भी लुभाकर चुनाव जीते जा सकते हैं. इसके विपरीत वे न केवल और अधिक तीव्र गति से तुष्टीकरण में
जुट गए बल्कि हिंदू समाज को जाति और उप जातियों में बांटने का भी प्रयास करने लगे. ये दलों सियासी समीकरण बनाकर कुछ जातियों को मुस्लिम
मतों के साथ जोड़कर सत्ता प्राप्त करने की योजना पर काम कर रहे हैं. अवैध बांग्लादेशी
और रोहिंग्या घुसपैठियों को शरण दे रहे हैं. उन्हें मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करा
रहे हैं और उनके नाम वोटर लिस्ट में जुड़वा रहे हैं. उन्हें इस बात की ज़रा भी चिंता
नहीं है कि वे ऐसा करके राष्ट्र को गहरी खाई में धकेल रहे हैं. इन राजनीतिक दलों की
केवल एक ही चिंता है कि कोई दूसरा राजनीतिक दल उनके मुस्लिम वोटबैं क में सेंध न
लगाने पाए और इस कारण तुष्टीकरण से ओतप्रोत एक से एक खतरनाक कदम उठाये जा रहे हैं.
तुष्टीकरण की यह बीमारी इतनी संक्रामक और खतरनाक
क्यों है. क्यों यह बीमारी हर राजनीतिक दल को अपनी चपेट में लेती चली जा रही है, निश्चित
रूप से इस पर शोध की आवश्यकता है. केंद्र की वर्तमान तथाकथित हिन्दूवादी सरकार भी तुष्टीकरण
से भी चार कदम आगे जाकर, तृप्तिकरण में लग
गई है. 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले अगर ये सरकार भी कोई बड़ा खतरनाक खेल खेले तो
कोई अचरज की बात नहीं.
विश्व पटल पर कई देश उदाहरण हैं जिन्होंने भारत की
तरह तुष्टीकरण भी नहीं किया केवल मानवीय आधार पर अल्पसंख्यकों और समुदाय विशेष के शरणार्थियों
और अवैध घुसपैठियों की मानवीय सहायता की. बिना
किसी भेदभाव के उनका जीवन स्तर भी सुधारा. कालान्तर में अल्पसंख्यकों, उस समुदाय
के शरणार्थियों और अवैध घुसपैठियों ने
मिलकर मूल निवासियों के विरुद्ध खूनी संघर्ष शुरू कर दिया और पूरे देश पर कब्जा कर
लिया. राष्ट्रांतरण करके एक धर्म विशेष का देश बना दिया. भारत पाकिस्तान और
बांग्लादेश से सबक नहीं लेना चाहता जहाँ हिंदू लगभग समाप्त हो चुके हैं, लेकिन उसे
लेबनान से सबक जरूर लेना चाहिए, जो आज एक मजहबी देश है. समय आ गया है जब सभी
राष्ट्रवादियों को चाहिए कि वह तुष्टिकरण करने वाले राजनीतिक दलों का जमकर बहिष्कार
करें, और भारत को बचाने का प्रयास करें.
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा
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