मंगलवार, 17 मई 2022

बाबा विश्वनाथ, ज्ञानवापी और पूजा स्थल कानून

 




                                          ( ज्ञानवापी सर्वे  में वजू  खाने में मिला शिवलिंग)

ज्ञानवापी परिसर के कोर्ट कमिश्नर के   सर्वे जिसमें वीडियोग्राफी और फोटोग्राफी की गई है, मिले तथ्य एक बार फिर इस बात की पुष्टि करते हैं ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण बाबा विश्वनाथ मंदिर को तोड़कर किया गया था. सर्वे के दौरान ज्ञानवापी परिसर स्थित सरोवर में  शिवलिंग बरामद हुई है, जो प्रथम दृष्टया वहीं प्रतीत होती हैं जो पुराने  विश्वनाथ मंदिर में के गर्भगृह में लगी थी, जिसे ज्ञानवापी मस्जिद के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है. पुराणों में वर्णित गर्भ गृह यही है और यही मूल शिवलिंग है .  हैरत और दुख की बात है कि जहाँ यह प्राचीन और मूल  शिवलिंग स्थापित है, उस जगह  पानी भरा हुआ है जिसे  वजू के लिए नमाजियों द्वारा इस्तेमाल किया जाता था.

स्थानीय न्यायालय ने शिवलिंग मिलने के इस स्थान को सील करके सुरक्षित रखने का आदेश दिया है. इस सूचना से काशी में लोग बहुत भावुक हो गए और कुछ लोग अश्रुपूरित नेत्रों से "बाबा मिल गए" कहकर खुशी मनाने लगे. यद्यपि कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट अभी न्यायालय को नहीं सौंपी गई है और उस पर अध्ययन किया जाना बाकी है, किंतु सर्वे में मिले साक्ष्य और शिवलिंग के  वायरल वीडियो ने लोगो में बाबा विश्वनाथ के मूल गर्भगृह पाने  की आकांक्षा जगा दी  है.  इस बीच सर्वोच्च न्यायालय ने मुस्लिम पक्ष की याचिका पर, जिसमें सर्वे पर रोक लगाने की मांग की गई थी, सुनवाई शुरू कर दी है.  सर्वोच्च न्यायालय ने भी जिला प्रशासन को निर्देश दिया है कि बरामद की गई शिवलिंग को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की जाए और नमाजियों को नमाज़ भी अदा करने दी जाए.

बाबा विश्वनाथ  का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना काशी का अस्तित्व, और पृथ्वी पर मानव सभ्यता का उदय. पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन मंदिर के स्थान पर भगवान विष्णु ने सृष्टि उत्पन्न करने की कामना से तपस्या की थी और उनकी नाभि कमल से ब्रह्मा जी की उत्पत्ति हुई थी जिन्होंने बाद में पूरे विश्व की रचना की थी. इसलिए काशी को आदि सृष्टि स्थली भी बताया जाता है.

मान्यता है कि  प्रलय काल में भी काशी का विनाश  नहीं होता  क्योंकि उस समय भगवान शंकर इसे अपने त्रिशूल पर धारण कर लेते हैं. पृथ्वी निर्माण के समय सूर्य की पहली किरण काशी पर पड़ी थी, इसलिए  काशी  ज्ञान, अध्यात्म और भक्ति की ऊर्जा सेपूरी दुनिया को आलोकित करती है भगवान शिव स्वयं मंदिर के स्थान पर कुछ समय के लिए रुके थे इसलिए उन्हें ही काशी का संरक्षक माना जाता है और उनकी कृपा के कारण ही  काशी को सर्व तीर्थ  और सर्व संताप हारिणी मोक्षदायिनी नगरी कहा जाता है. काशी में प्राण त्यागने वाले व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त हो जाता है. श्री विश्वेश्वर विश्वनाथ का यह ज्योतिर्लिंग साक्षात भगवान परमेश्वर महेश्वर का स्वरूप है, यहाँ भगवान शिव सदा विराजमान रहते हैं।

 इसलिए इस मंदिर का हिंदुओं के लिए उतना ही महत्व है जितना मुसलमानों के लिए मक्का और काबा का. बाबा भोलेनाथ का यह मंदिर भारत में सभी ज्ञात मंदिरों में प्राचीनतम है और यह भगवान पार्वती और शंकर का आदि स्थान है.  आधुनिक ज्ञात इतिहास  के अनुसार ईशा से लगभग 5000 वर्ष पूर्व में राजा हरिश्चंद्र ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था.  इसके पश्चात सम्राट विक्रमादित्य ने भी इस मंदिर का जीर्णोद्धार और पुनरुद्धार कराया.   

1194 में मुहम्मद गोरी  नाम के एक मुस्लिम लुटेरे  आक्रांता  ने इसे   तोड़  दिया था. बाद में मंदिर का बारंबार जीर्णोद्धार  होता रहाऔर मुस्लिम आक्रांता इसे तोड़ते रहे. अंतिम बार औरंगजेब के आदेश से मंदिर को तोड़कर मुख्य गर्भ गृह पर ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण करवाया गया था. तत्कालीन मुस्लिम लेखक साकी मुस्तइद खां द्वारा लिखित पुस्तक 'मासीदे आलमगिरी' में इस ध्वंस का वर्णन है। 2 सितंबर 1669 को औरंगजेब को मंदिर तोड़ने का कार्य पूरा होने की सूचना दी गई थी। जल्दबाजी मंदिर के अवशेषों में ही मस्जिद बना दी गयी जो प्रमाण के रूप में  आज भी उपलब्ध हैं.   







1809 में इस तथाकथित ज्ञानवापी मस्जिद पर हिंदुओं ने पुनः कब्जा कर लिया . 30 दिसंबर 1810 को बनारस के तत्कालीन जिला दंडाधिकारी मि. वाटसन ने ‘वाइस प्रेसीडेंट इन काउंसिल’ को एक पत्र लिखकर ज्ञानवापी परिसर हिन्दुओं को हमेशा के लिए सौंपने के लिए कहा था, लेकिन अंग्रेजों ने बड़ी कुटिलता से हिंदू मुस्लिम एकता न होने देने के लिए सांप्रदायिक तनाव बनाए रखना आवश्यक समझा जो उनकी फूट डालो और राज करो की नीति के अनुरूप था. उन्होंने पुरानी इस्तेमाल करते हुए हिंदुओं के आक्रोश को ठंडा करने के लिए मंदिर परिसर में ही एक नए  गर्भ गृह की व्यवस्था कर दी जबकि मंदिर का मूल गर्भ गृह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में है जिसे वर्तमान में कराए जा रहे सर्वे में शिवलिंग के साथ बरामद किया जाना बताया गया है. मंदिर प्रांगण में नंदी की प्रतिमा इसी बरामद की गई शिवलिंग की तरफ मुंह करके अभी भी खड़ी है. विशाल नंदी का मुख ज्ञानवापी मस्जिद की ओर से होने से काफी समय से इस स्थान के सर्वे की मांग की जा रही थी। शास्त्रों के अनुसार नंदी का मुख सदैव शिव की ओर रहता है इसलिए यही माना जा रहा था  कि शिव का मूल स्थान ज्ञानवापी मस्जिद ही था। 

इसके पहले फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट ने भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की सहायता से मंदिर के प्रमाण  ढूंढने के आदेश दिए थे और   जरूरत पड़ने पर अत्याधुनिक तकनीक जैसे ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार और जिओ रेडियोलॉजी सिस्टम  आदि के स्तेमाल की भी इजाजत दी थी किन्तु उच्च न्यायलय ने इस पर रोक लगा रखी है.

 सर्वे के विरोध में और ज्ञानवापी मस्जिद के पक्ष में असदुद्दीन ओवैसी सहित कई मुस्लिम नेता पूजा स्थल कानून 1991 का हवाला दे रहे हैं किंतु उन्होंने ज्ञानवापी कैसे बने इस पर कोई टिप्पणी नहीं की है क्योंकि यह उनको भी मालूम है कि ज्ञानवापी मस्जिद मंदिर को तोड़कर ही बनाई गई है. भारत के अधिकांश मुसलमान, वे हिंदू हैं जिन्हें तलवार की नोक पर मुसलमान बनने के लिए मजबूर कर दिया गया था, शायद ही कोई यहां का मुसलमान अरब से आया हो. इसलिए उन्हें सांप्रदायिक सद्भावना कायम करते हुए ज्ञानवापी परिसर समेत सभी ऐसे विवादित परिसरों को हिंदुओं को स्वयमेव दे देना चाहिए. ऐसे किसी भी विवादित परिसर का इस्लाम के लिए धार्मिक किया ऐतिहासिक महत्व नहीं है. इसलिए जो उदाहरण अयोध्या में मस्जिद के लिए अन्यत्र जमीन देकर स्थापित किया गया है उसका अनुकरण अन्य जगहों पर भी किया जाना चाहिए.

 जहां तक 1991 में कांग्रेस की पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा बनाए गए पूजा स्थल कानून का संबंध है, वह न्यायिक दृष्टिकोण से उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि यह संविधान के अनेक प्रावधानों का उल्लंघन करता है. किसी लोकतांत्रिक देश में अगर कोई व्यक्ति या समुदाय किसी विवाद को न्यायालय में भी नहीं ले जा सकता तो फिर यह कैसी स्वतंत्रता है कैसा लोकतंत्र है. इस कानून से यह भी साबित होता है कि या तो तत्कालीन सरकार को स्वयं अदालतों और भारत की न्याय प्रणाली पर भरोसा नहीं था या फिर अल्पसंख्यकों का तुष्टीकरण इस हद तक जाकर करना चाहती थी कि हिंदुओं के लिए न्याय का दरवाजा भी बंद कर दिया. इसलिए इसे खत्म होना ही चाहिए. अच्छा हो यदि सर्वोच्च न्यायालय इस पर संज्ञान ले अन्यथा मोदी सरकार को भी इस पर पुनर्विचार करना चाहिए जो उसके लिए वर्तमान परिस्थितियों में बहुतमुश्किल कार्य है क्योंकि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हीन ग्रंथि का शिकार हो चुके हैं , सबका विकास करते-करते, सब का विश्वास हासिल करने में जुट गए हैं, जो कभी संभव नहीं .

दुनिया के हर ऐसे देश में जो गुलामी से आजाद हुए थे उनमें आजादी के तुरंत बाद एक आयोग की स्थापना की गई थी जिसका उद्देश्य आक्रांताओं द्वारा नष्ट किए गए धर्मस्थलों, राष्ट्रीय अस्मिता और संस्कृति से संबंधित स्थलों, दस्तावेजों आज की पुनर्स्थापना करना था. दक्षिण अफ्रीका, जहां गांधी जी ने अपना राजनीतिक कैरियर शुरू किया था, वहां भी इस तरह के कार्यों के लिए आयोग की स्थापना की गई थी.

इसलिए सरकार को चाहिए कि देश में स्थाई रूप से सांप्रदायिक सद्भाव की स्थापना के लिए वह न केवल अलोकतांत्रिक ढंग से बनाए गए पूजा स्थल कानून को समाप्त करें बल्कि एक आयोग का भी गठन करें जो सभी विवादित धार्मिक स्थलों की सूची तैयार कर आपसी विचार विमर्श से धार्मिक स्थलों का आदान प्रदान करने में मध्यस्थ की भूमिका निभा सके. ऐसे मामले जिनका निपटारा आपसी बातचीत से नहीं हो सकता है उनमें आयोग न्यायिक निर्णय दे. सरकार को यह भी चाहिये कि अन्य महत्वपूर्ण विवादित धर्म स्थलों की पुख्ता सुरक्षा की जाए ताकि वहाँ उपलब्ध साक्षियों से  छेड़छाड़ नहीं की जा सके क्योंकि ज्ञानवापी में मिले प्रमाण जो आक्रान्ताओं द्वारा जल्दी जल्दी में की गई निर्माण के कारण छूट गए थे वे अन्य विवादित धर्म स्थलों में मिटाने के प्रयास किए जा सकते हैं.

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             -शिव मिश्रा

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शनिवार, 7 मई 2022

नरेन्द्र मोदी - विरोध और लोकप्रियता साथ साथ



नरेंद्र मोदी  लंबे समय से सत्ता में हैं, लेकिन मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री  के रूप में सत्ता विरोधी लहर से बेअसर हैं। मोदी  इतने लोकप्रिय क्यों हैं?



नरेन्द्र मोदी – विरोध और लोकप्रियता साथ साथ

नरेंद्र मोदी  लंबे समय से सत्ता में हैं, लेकिन मुख्यमंत्री/प्रधानमंत्री  के रूप में सत्ता विरोधी लहर से बेअसर हैं। आखिर मोदी की   लोकप्रियता इतनी मजबूत  क्यों हैं? ये देश और दुनियां में चर्चा का विषय है. 

नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के दो प्रमुख कारण है-

वह जनता से जुड़ने की हर संभव कोशिश करते हैं, जुड़ते हैं, उनकी समस्याओं को समझते हैं और कैसे उनकी समस्याओं का समाधान किया जाए इसका भरपूर प्रयास करते हैं. प्रधानमंत्री के रूप में भी सामान्य जनता से कई माध्यमों से वह सीधा संवाद स्थापित करते हैं. वहअच्छे कार्य और उपलब्धियां भी गिनाते हैं, चाहे वह स्वयं की हो पार्टी की है राज्य की हों या पूरे देश की हो.

 

२. उनके विरोधी भी विरोध के हर तौर तरीके का इस्तेमाल करके और किसी भी हद तक जाकर लगातार मोदी विरोध अभियान चलाकर उनकी लोकप्रियता को कम नहीं होने देते.

 

 लेकिन फिर भी नरेंद्र मोदी के विरुद्ध हिंदुओं में उनकी समस्याओं के निस्तारण में बेहद धीमी गति या “सबका विश्वास” के कारण जान बूझकर उनकी अनदेखी करने से  अंदर ही अंदर असंतोष पनप रहा है, जो धीरे धीरे विकराल होकर उन्हें सत्ता से बाहर कर सकता है. चूँकि हिंदुओं के पास भाजपा और मोदी के अलावा कोई राजनीतिक विकल्प आज की परिस्थितियों में उपलब्ध नहीं है, इसलिए वोट तो उन्हें ही करेंगे जब तक कि भाजपा का पूरी तरह से कांग्रेसीकरण नहीं हो जाता.  

 

आइए इन बिंदुओं पर विस्तार से विश्लेषण करते हैं -

 

१. नरेंद्र मोदी ने 7 अक्टूबर 2001 को गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और 2014 में देश के प्रधानमंत्री बनने के पहले वह लगातार गुजरात के मुख्यमंत्री बने रहे. यह एक संयोग ही कहा जाएगा कि वह पहली बार विधायक बने और मुख्यमंत्री बन गए पहली बार सांसद बने और प्रधानमंत्री बन गए. समाज के हर वर्ग से जुड़ने के प्रयास और उनके लिए कुछ करने की आकांक्षा और अदम्य इच्छाशक्ति के कारण उन्होंने जो गुजरात मॉडल विकसित किया उसे लोगों ने खूब सराहा. तब से आज तक भाजपा गुजरात में लगातार सत्ता में है और आज भी उसे कोई बड़ी चुनौती नहीं है.

 

2014 में केंद्र में भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का श्रेय नरेंद्र मोदी को ही जाता है. उनके नेतृत्व में पूर्ण बहुमत वाली कोई सरकार 1984 के बाद पहली बार बनी थी. इसके बाद 2019 में भी पहले से अधिक बहुमत के साथ सत्ता में वापसी के बाद उनके नेतृत्व में भाजपा चुनाव जीतने की मशीन बन गई जिसमें सबसे प्रमुख है 2017 के  उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जिसमें सारे समीकरणों, भविष्यवाणियों और चुनावी रणनीतियों को ध्वस्त करते हुए भाजपा ने अपार जन समर्थन से सरकार बनाई और सपा और बसपा को हाशिए पर ला दिया. 2022 के चुनाव में भी उत्तर प्रदेश में योगी के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनी, जो इस मामले में एक कीर्तिमान है कि आजादी के बाद से कोई भी मुख्यमंत्री 5 साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद पुनः सत्ता में नहीं आ सका था. वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देखते हुए 2024 में मोदी की वापसी के लिए किसी भी भविष्यवाणी की आवश्यकता नहीं है.

 

अधिकांश नेताओं को एक या दो कार्यकाल के बाद जनता किनारे कर देती है लेकिन मोदी की बढ़ती लोकप्रियता को लेकर यह प्रश्न  बहुत स्वाभाविक है कि इतने लंबे समय तक वह  लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर कैसे बने हुए हैं?

 

गुजरात में जब  राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने की कोशिश की जा रही थी, भाजपा ने अपने कद्दावर नेता केशुभाई पटेल को हटा कर नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री बनाया, परिणाम स्वरूप पार्टी के अंदर भी गुटबंदी और अस्थिरता की  कोशिश हुई. इसी बीच गोधरा कांड हो गया जिसमें 59 कारसेवकों को साबरमती ट्रेन की एक बोगी में जिंदा जलाकर मार दिया गया. इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात में दंगा भड़क उठा. मोदी पर विपक्ष और पार्टी के अंदर से भी प्रहार होने लगा. कांग्रेस ने मोदी के राजनीतिक सफर को यहीं समाप्त कर देने के लिए वह सब कुछ किया जो सोचा भी नहीं जा सकता लेकिन सारी बाधाओं और चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना करते हुए मोदी ने न केवल अपना कार्यकाल पूरा किया बल्कि दूसरे कार्यकाल के लिये भारी जीत हासिल की जो राज्य में उनकी स्वीकार्यता और लोकप्रियता का सबसे बड़ा प्रमाण था. वह भाजपा के निर्विवाद नेता बन गए और भाजपा एक के बाद एक सभी चुनाव जीतती चली गई.

 

गुजरात में  मोदी ने उद्योगों और व्यवसायियों की समस्याओं का बहुत बारीकी से अध्ययन किया और उन्हें अधिकाधिक सुविधाएं देते हुए लालफीताशाही पर अंकुश लगाया और सरकारी अवरोध खत्म किए. जिससे राज्य में औद्योगिक और व्यवसायिक गतिविधियों में बहुत तेजी आई. रोजगार के अवसर बढ़े. कई उद्योगपतियों ने दूसरे राज्यों से अपने उद्योगों को गुजरात स्थानांतरित किया. लोगों को टाटा नैनो का उदाहरण आज भी याद होगा. इसके साथ-साथ मोदी ने समाज के कमजोर वर्ग की रोजमर्रा की कठिनाइयों को समझने और सहायता पहुंचाने का काम किया. गुजरात में आए भूकंप से राज्य के समक्ष जो चुनौती खड़ी हुई थी उसका भी मोदी ने डटकर मुकाबला किया. उनकी "मिनिमम गवर्नमेंट मैक्सिमम गवर्नेंस" नीति लोगों को बहुत पसंद आई.

 

प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने गुजरात के  मुख्यमंत्री  के अनुभव का भरपूर स्तेमाल किया और समाज के कमजोर और वर्ग के लोगों को किसी न किसी रूप में सहायता पहुंचाने की पहल की है. उन्होंने ऐसे ऐसे काम किए हैं, जिनके बारे में आजादी के बाद पिछले 70 सालों में किसी ने सोचा भी नहीं था. घर-घर शौचालय, अपना घर, गरीब महिलाओं को रसोई गैस, किसान सम्मान निधि, विधवा पेंशन, वृद्धावस्था पेंशन, आयुष्मान योजना, आदि न जाने कितनी योजनाये हैं जिन्होंने गरीबों के सपने साकार करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. यह लाभार्थी वर्ग मोदी का सबसे बड़ा वोट बैंक है जिसके सहारे मोदी चुनाव दर चुनाव जीते चले आ रहे हैं.

 

मोदी ने सांस्कृतिक चेतना, राष्ट्रीय अस्मिता और गौरव को पुन: स्थापित करने के लिए कई प्रयास किए हैं और विशेष तौर से हिंदू जनमानस के रेगिस्तान में आशाओं की नई किरणें उगाई हैं. धारा 370 समाप्त करने, राम मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करने, संशोधित नागरिकता कानून बनाने जैसे अन्य कई मुद्दों ने भारतीय जनमानस में विश्वास की एक फसल तैयार हो रही है और पिछले कई दशकों में मोदी ऐसे पहले नेता हैं जिन पर जनता आंख बंद करके भरोसा करती है और शायद यही “मोदी है तो मुमकिन है” का प्रमाणिक सत्य  है .

 

अपनी छवि के लिए देश को दांव पर लगाने वाले जवाहरलाल नेहरु की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता कितनी  थी और गुटनिरपेक्ष आंदोलन के बाहर उनकी स्वीकार्यता कितनी थी, इस पर आज कोई चर्चा नहीं करता जबकि विश्व पटल पर अत्यंत लोकप्रिय और देश हित में महाशक्तियों और विकसित राष्ट्रों के साथ दोस्ताना संबंध बनाने और भुनाने वाले मोदी की विदेश यात्राओं पर लोग प्रश्न करते हैं, और भूल जाते हैं कि इसके पहले के प्रधानमंत्री विदेशी दौरों में कक्षा क कमजोर विद्यार्थी की तरह मुँह लटकाकर लिखा हुआ भाषण पढ़कर कर लौट आते थे. आज भारत की विदेश नीति मजबूत और मुखर है. रूस और यूक्रेन के युद्ध के बाद अमेरिका और पश्चिमी देशों सहित अधिकांश वैश्विक शक्तियां यूक्रेन के पक्ष में खड़ी हैं जिन्होंने भारत पर यूक्रेन के पक्ष में बहुत दबाव बनाया लेकिन मोदी नहीं झुके. रूस पर वैश्विक प्रतिबंधों के बावजूद भारत आज रूस  से तेल भी खरीद रहा है और अमेरिका भारत आकर टू प्लस टू की वार्ता भी कर रहा है और पश्चिम के देश मोदी को गले लगा रहे हैं.

 

२. मेरा मानना है कि मोदी की लोकप्रियता में मोदी विरोधियों का भी बहुत बड़ा योगदान है, जिनमें वामपंथी और संप्रदाय विशेष के अतरिक्त सरकारी सहायता से देश की कीमत पर ऐशो आराम की जिंदगी जीने वाले जेबी पत्रकार, गैर सरकारी संगठन, स्वयंभू बुद्धिजीवी, भ्रष्ट नौकरशाह और देश विरोधी ताकतें भी शामिल है. मोदी 8 साल से प्रधानमंत्री हैं लेकिन ये लोग अभी भी यह बात स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं कि मोदी जैसा  साधारण परिवार का हिन्दूवादी व्यक्ति इस देश का प्रधानमंत्री कैसे बन सकता है, जहां गांधी नेहरू परिवार सहित अनेक फाइव स्टार और डिज़ाइनर नेता मौजूद हों. इसलिए ये मोदी की हर बात का विरोध करते हैं, उनकी शिक्षा, संस्कार, और समझ पर प्रश्न खड़े करते हैं. उन्हें रूढ़िवादी, सांप्रदायिक, मौत का सौदागर, हिंदू आतंकवादी, जहर की खेती करने वाला, फेंकू, जुमलेबाज आदि विशेषण से संबोधित करते हैं . मोदी की शिक्षा और डिग्री पर प्रश्न खड़े किए गए लेकिन क्या किसी को मालूम है कि इंदिरा गांधी के पास कौन सी डिग्री थी? राजीव गांधी और संजय गांधी कितना पढ़े लिखे थे? राहुल और प्रियंका की शिक्षा कहां तक हुई? कठपुतली प्रधानमंत्री की डोर अपने हाथ में रखने वाली सोनिया कितना पढ़ी लिखी हैं? मोदी को चायवाला संबोधित करने वालों ने यह कभी नहीं बताया कि सोनिया आरंभिक दिनों में क्या करती थी?

 

कभी-कभी ऐसा लगता है कि कुछ लोगों के पास मोदी विरोध के अलावा कोई काम ही नहीं बचा. राहुल गांधी जैसे राजनेता अपनी पार्टी के अभियान चलाने से ज्यादा मोदी विरोध के अभियान चलाते हैं. उनके पैरों के नीचे से जमीन खिसक चुकी है, और उन्हे पता भी नहीं. अमेठी हार चुके हैं, इसका उन्हें गम नहीं और वायनाड हारने जा रहे हैं, इसकी उन्हें कानो कान खबर नहीं.

 

बात बात पर और हर बात पर मोदी का विरोध करने वालों ने जनता में उनके विरुद्ध प्रतिरोधक कवच (रजिस्टेंस) उत्पन्न कर दिया है जिससे विरोध का प्रभाव उल्टा होता है. जितना मोदी का विरोध किया जाता है उनकी लोकप्रियता उतनी ही बढ़ती जाती है. उनके विरोधी खींझ रहे हैं अब तो उन्होंने भारत के प्रबुद्ध मतदाताओं को भी जोकर, नासमझ, अज्ञानी, अनपढ़ , गाय गोबर वाले मूर्ख आदि बताना शुरू कर दिया है जिसका प्रभाव भी निश्चित ही उल्टा होगा और मोदी की लोकप्रियता और बढ़ेगी.

 

 

 लेकिन मोदी सब कुछ अच्छा और वही कर रहे हैं जो देश में वर्तमान परस्थितियों में होना चाहिए, ऐसा भी नहीं है. कश्मीर के लिए नेहरु को जैसा दोष दिया जाता है, क्या बंगाल में जो हो रहा है, उसका दोष मोदी के सिर नहीं जाएगा? सिखों को  हर संभव संतुष्ट करने के प्रयासों के बाद भी पंजाब में ९० के दशक वाला खेल शुरू हो गया है, क्या मोदी इसके लिए जिम्मेदार नहीं होंगे ?

 

महाराष्ट्र में राजनैतिक नंगनांच व कानून का खुला दुरूपयोग, बंगाल और केरल में हिन्दुओं की राजनैतिक हत्याएं और बढ़ता इस्लामिक आतंक, राजस्थान के औरंगजेबी सन्देश, दक्षिण के राज्यों में बढ़ते इस्लामिक प्रसार , पूर्वोत्तर राज्यों में बढ़ता ईसाईकरण आदि अनेक ऐसे मामले हैं, जिसके कारण धीरे धीरे देश में गृह युद्ध की स्थिति पैदा होती जा रही है, और इसके लिए निश्चित रूप से  मोदी को कटघरे में खड़ा किया जाएगा. समान नागरिकता कानून, मुस्लिमों को अल्पसंख्यक का अनावश्यक दर्जा और मदरसों का  अनापसनाप वित्त पोषण, मंदिर मुक्ति के प्रति उदासीन रवैया, संशोधित नागरिकता कानून को ठंडे बस्ते में डालना जैसे अत्यंत महत्वपूर्ण मसलों पर ढुलमुल रवैया, मोदी के लिए बहुत भारी पड़ेंगा  और अगर भाजपा ने इस दिशा में कोइ ठोस कदम नहीं उठाये  तो केंद्र की सत्ता में उसका सफ़र बहुत लंबा नहीं  होगा और तब बहस होगी कि मोदी अचानक इतने अलोकप्रिय कैसे हो गए?                        

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         -शिव मिश्रा

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