गंगा जमुनी संस्कृति, भाईचारा और हिंदू त्यौहार
कोविड-19 के कारण लॉकडाउन और प्रतिबंधों की लंबी अवधि के बाद रामनवमी के अवसर पर पूरे भारतवर्ष में बहुत हर्षोल्लास का वातावरण था. लंबे समय बाद लोगों को सामूहिक त्यौहार मनाने का मौका मिला था इसलिए बड़े उत्साह से भगवान श्री राम की शोभा यात्रायें निकाली गई. चूंकि भारत में गंगा जमुनी तहजीब और हिंदू मुस्लिम भाईचारे का पुराना इतिहास है, इसलिए उत्तर प्रदेश को छोड़कर कई राज्यों में इन शोभायात्राओं पर फूलों के बजाय पत्थर बरसाए गए. पांच राज्यों राज्यों राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, झारखंड और पश्चिम बंगाल में मुसलमानों की अराजक भीड़ ने शोभा यात्राओं पर पत्थर फेंके, लाठी-डंडों से हमला किया, दंगा फसाद में पेट्रोल बम और धारदार हथियारों का भी इस्तेमाल किया गया। आगजनी और लूटपाट तो होनी ही थी। हिंदू समुदाय के लोगों के घरों दुकानों आदमी में आग लगाई गई. राजस्थान में जहां हिंसा और अराजकता का वीभत्स तांडव हुआ, कांग्रेश की गहलोत सरकार ने कोई भी प्रभावी कार्यवाही नहीं की और दंगों का मास्टरमाइंड आज भी स्वतंत्र घूम रहा है. राजस्थान में तो यह बहुत स्वाभाविक है क्योंकि मुस्लिम तुष्टिकरण के जो बीज गांधी ने बोये थे, नेहरू जीवन पर्यंत जिसकी फसल काटते रहे, कांग्रेस की बाद की सरकारें भी लगातार इसे आगे बढ़ाती रही. आज कांग्रेस समाप्ति के आखिरी दौर में है लेकिन उसने अभी तक अपने इस नीति में कोई बदलाव नहीं किया है। वहीं कई राज्यों में क्षेत्रीय राजनीतिक दलों ने तुष्टिकरण करके ही सत्ता प्राप्त की और सट्टा बनाए रखने के लिए तुष्टिकरण को नए मुकाम पर पहुंचा दिया है। ऐसे दल मुस्लिम लीग से भी दो कदम आगे जाकर सनातन विरोधी कार्य कर रहे हैं। जातियों में विभाजित हिंदू समाज कुछ समझने और करने के बजाय अपनी करनी से अपना ही शिकार कर रहा है।
मुस्लिम लीग की स्थापना के साथ ही हिंदुस्तान में मुसलमानों द्वारा योजनाबद्ध ढंग से बहुसंख्यक हिंदुओं के साथ किसी न किसी तरह उलझने का प्रयास किया जाने लगा जो हिंदू मुस्लिम दंगों की शक्ल लेने लगा था. डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अपनी 'पुस्तक पाकिस्तान या भारत का विभाजन' में लिखा है कि मुसलमानों के दिल और दिमाग में यह बैठा दिया गया था कि अल्लाह की यह धरती केवल मुसलमानों के लिए है, और दूसरे धर्मो के लोगों को उस पर रहने का कोई अधिकार नहीं है. इसलिए जहां किसी और का शासन है वह दारुल हरब है और उन्हें वहां पर इस्लाम का शासन स्थापित करके दारुल इस्लाम बनाना है। हिंदुस्तान उनके लिए दारुल हरब है और जिहाद द्वारा इसे दारुल इस्लाम बनाना है. मोपला और नोआखाली के कुख्यात दंगे और मुस्लिम लीग द्वारा प्रायोजित डायरेक्ट एक्शन कुछ और नहीं जिहाद ही था। खिलाफत आंदोलन ने भारत में मुसलमानों को एकजुट किया और एक नए तरह के ध्रुवीकरण की शुरुआत की। गांधी ने हिंदू मुस्लिम एकता के नाम पर आंख बंद करके खिलाफत आंदोलन का समर्थन किया और भारत में मुस्लिम तुष्टिकरण की नींव रखी। गांधी खुलकर मुस्लिमों के पक्ष में खेल रहे थे यहां तक कि मोपला दंगों के बाद भी गांधी ने मुस्लिम हिंसा का विरोध नहीं किया और इससे दुखी एनी बेसेंट ने दंगो में हिंदू बच्चों, पुरुषों और महिलाओं की निर्मम हत्याओ और हिंदू महिलाओं के साथ अमानुषिक अत्याचारों पर गांधी को एक लंबा चौड़ा मर्मस्पर्शी पत्र भी लिखा लेकिन गांधी नहीं पसीजे और वह अहिंसा का मंत्र सिर्फ हिंदुओं पर ही लागू करते रहे.
ऐसा लगता है कि " अहिंसा परमो धर्म:, धर्म हिंसा तथैव च " के मंत्र को भी विभाजित करके गांधी ने हिंदुओं को "अहिंसा परमो धर्म:," और मुसलमानों को "धर्म हिंसा तथैव च" दिया. गौतम बुद्ध और महावीर ने भारतीयों को अहिंसक बनाने के प्रयास से उन्हें युद्ध से विरत रह कर, दब्बू और भीरु बनाने की नींव डाली थी. गांधी ने हिंदुओं को न केवल अहिंसक बल्कि डरपोक और कायर बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. इसका परिणाम यह हुआ कि जहां कहीं भी मुसलमानों ने दंगा फसाद किया, ऐसी प्रत्येक जगह से हिंदुओं का पलायन हुआ. कश्मीर घाटी सहित ऐसी कोई जगह मुझे याद नहीं आती, जहां हिंदुओं ने पलायन न करके अपने अस्तित्व के लिए जमकर मुकाबला किया हो या कम से कम संघर्ष करने की कोशिश की हो। यह प्रक्रिया आज भी अनवरत जारी है। जहां कहीं भी हिंदू मुस्लिम दंगों की शुरुआत होती है, हिंदू परिवार "यह मकान बिकाऊ है" का बोर्ड लगा कर पलायन कर जाते हैं. राजस्थान, पश्चिम बंगाल और यहां तक कि भाजपा शासित गुजरात और मध्य प्रदेश में भी रामनवमी जुलूसों पर आक्रमण के बाद ऐसा ही कुछ नजारा देखने को मिल रहा है। पश्चिम बंगाल और राजस्थान में रामनवमी के जुलूस पर आक्रमण, दंगा और फसाद आदि समझ में आता है लेकिन भाजपा शासित मध्यप्रदेश और गुजरात में पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था में निकली भगवान राम की शोभा यात्राओं पर आक्रमण कैसे हुआ लेकिन उत्तर प्रदेश में जहां कुछ समय पहले चुनाव के समय ध्रुवीकरण चरम पर था, ऐसा नहीं हुआ? भाजपा को इस पर मंथन अवश्य करना चाहिए ।
अंग्रेजों के समय से आज तक ऐसा ही होता आया है कि हिंदुओं का कोई भी धार्मिक जुलूस निकले और अगर उस शहर कस्बे या गांव में कोई मुस्लिम समुदाय है और फिर हिंदुओं के जुलूस पर पथराव न, हो यह संभव नहीं. यह गांधी के हिन्दू - मुस्लिम भाई-भाई वाला और नेहरू का धर्मनिरपेक्ष वाला भारत है जहां मस्जिद के सामने से कोई बारात नहीं निकल सकती, बैंड बाजा नहीं बज सकता. मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में अगर कोई हिंदू अपने घर में अखंड रामायण करवाना चाहता है तो लाउडस्पीकर नहीं लगा सकता. मुझे तो याद नहीं आता कि हिंदुओं का कोई भी त्यौहार शांति पूर्वक मनाया जा सका हो, जब देश में में कहीं न कहीं पथराव, आगजनी, लूटपाट या दंगा आदि न हुआ हो.
शायद यही भाईचारा है, और यह वही भाईचारा है जिसे गांधी और नेहरू ने भारत को दिया है. एक समुदाय विशेष भाई है और हिंदू चारा हैं. लेकिन ऐसा क्यों ? इसका बहुत सीधा जवाब है "बोया पेड़ बबूल का तो आम कहां से होय". मजहबी आधार पर भारत का विभाजन हुआ और पाकिस्तान बना, जिसके बनने में ही बहुत दंगा फसाद हुआ कि 25 से 30 लाख लोगों की बलि चढ़ गई. मुस्लिमों के लिए जब पाकिस्तान बन गया तो फिर मुस्लिम पाकिस्तान क्यों नहीं गए ? यह यक्ष प्रश्न आज की नई पीढ़ी को हर दिन कचोटता है. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर, सरदार पटेल तथा अन्य नेताओं ने जनसंख्या की अदला-बदली के लिए बहुत प्रयास किया और पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री लियाकत अली इसके लिए तैयार भी हो गए, लेकिन गांधी और नेहरू के षड्यंत्र के आगे सफल नहीं हो सके. अगर विभाजन के बाद, जनसंख्या की पूरी तरह से अदला-बदली हो गई होती तो आज यह दिन नहीं देखना पड़ता.
- सभी भारतीयों के लिए विशेषतया हिंदुओं के लिए सोचने वाली बात यह है कि इस विभाजन से उन्हें क्या मिला ?
- जब दंगा, फसाद और सांप्रदायिक माहौल जो आजादी के पहले था वह आज भी है और यह लगातार बढ़ता जा रहा है, अगर ऐसा ही होना था तो फिर विभाजन क्यों किया गया?
- मुस्लिम को पाकिस्तान के रूप में एक इस्लामिक देश मिल गया लेकिन हिंदुओं के देश को ज्वाइंट प्रॉपर्टी क्यों बना दिया गया? यही बहुत बड़ा षड्यंत्र है, और आज के भारत की सभी समस्याएं इसी षड्यंत्र की देन है.
गांधी- नेहरू ने विभाजन के बाद मुसलमानों को हिंदुस्तान में रोकने के लिए षड्यंत्र किया. डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने अपनी पुस्तक पाकिस्तान या भारत का विभाजन में लिखा है बिना जनसंख्या की अदला-बदली के हिंदुस्तान बनने का कोई मतलब नहीं है क्योंकि पूरे विश्व में मुसलमानों के व्यवहार को देखते हुए अगर थोड़े से मुसलमान भी हिंदुस्तान में बच जाते हैं तो वह हिंदुओं को शांति से नहीं रहने देंगे और इसका सबसे अधिक नुकसान दलित समुदाय को होगा. डॉक्टर अंबेडकर ने जवाहरलाल नेहरू को इस संबंध में एक पत्र भी लिखा, उनकी बातें आज पूरी तरह से सत्य साबित हो रही हैं. नेहरू ने जनसंख्या की अदला बदली पर बेहद हास्यास्पद बयान दिया था. उनका कहना था कि जनसंख्या की अदला बदली करते हुए उनकी (नेहरु की ) पूरी उम्र निकल जाएगी, और कार्य पूरा नहीं हो पाएगा. मुसलमानों के जाने से उद्योग धंधों पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी, देश में भुखमरी फैल जाएगी और हम अपनी जनता को मरता हुआ नहीं देख सकते.
गांधी ने तो यहां तक कहा की भारत से कोई भी मुसलमान पाकिस्तान न जाय बल्कि जो मुसलमान पाकिस्तान चले गए हैं उनको वापस लाया जाएगा. एक अत्यंत हृदय विदारक बात गांधी ने कही कि पाकिस्तान से आने वाले हिंदू शरणार्थियों को भारत न आने दिया जाए, और जो आ गए हैं उन्हें वापस पाकिस्तान भेजा जाएगा. पूर्वी पाकिस्तान से आने वाली हिंदू शरणार्थियों के लिए नेहरू ने कहा था कि उनके लिए लागू की जाए ताकि वहां से अनावश्यक रूप से हिंदू शरणार्थी भारत में प्रवेश न कर सके। गांधी ने नवंबर 1947 में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में एक प्रस्ताव पास करवाया जिसमें कहा गया था कि मुसलमानों को भारत से पाकिस्तान नहीं जाने दिया जाएगा और जो मुसलमान पाकिस्तान चले गए हैं उन्हें वापस लाकर बसाया जाएगा.
नेहरू ने उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत को पत्र लिखकर उत्तर प्रदेश से किसी मुसलमान को पाकिस्तान न जाने देने के आदेश दिए थे। इसके अलाव़ा नेहरू ने ऐसी संवैधानिक व्यवस्था की जिससे मुसलमानों को हिंदुओं से कहीं ज्यादा अधिकार और सुविधाएं प्राप्त हो. आजादी के बाद राजस्थान में हुए दंगे के आरोपों में जब मुसलमान पकड़े गए तो नेहरू ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर कहा कि हमें अपराधियों को पकड़ने में हिंदू और मुसलमानों के बीच संतुलन बनाना चाहिए यानी कि हिंदू और मुसलमान दोनों को बराबर संख्या में गिरफ्तार किया जाना चाहिए, गलती भले ही मुसलमानों की क्यों न हो. तब से लेकर आज तक वही तुष्टीकरण चल रहा है जिसकी की गति बढ़ती जा रही है.
तुष्टीकरण की पराकाष्ठा तब और शर्मशार हो गयी जब सोनिया सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक 2011 संसद में पेश किया. इस बिल को सोनिया गांधी की अगुवाई वाली एक समिति ने तैयार किया था जिसमें सैयद शहाबुद्दीन और तीस्ता सीतलवाड़ जैसे लोग भी थे. इस विधेयक के अनुसार यदि हिन्दू, अल्पसंख्यक वर्ग के विरुद्ध घृणा फैलाने का कार्य करते हैं तो उनके विरुद्ध सख्त कार्यवाही की जाएगी लेकिन इसके उलट यदि अल्पसंख्यक हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा फैलाने का कार्य करते हैं तो उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही का प्रावधान नहीं. सांप्रदायिक हिंसा होने की स्थिति में बहुसंख्यक वर्ग को इसका उत्तरदायी माना जाएगा और सामूहिक जुर्माना लगाया जाएगा. सांप्रदायिक हिंसा की स्थिति में यदि कोई अल्पसंख्यक वर्ग का व्यक्ति बहुसंख्यक वर्ग की महिला के साथ बलात्कार करता है तो यह अपराध की श्रेणी में नहीं माना जाएगा. सोचिये हिन्दुओं के प्रति इससे ज्यादा विद्वेष पूर्ण कार्य और क्या हो सकता है ? दिग्विजय सिंह और असदुद्दीन ओवैसी जैसे लोग जिन्होंने इस बिल का समर्थन किया था आज मध्य प्रदेश सरकार द्वारा की जा रही कार्यवाही की इस आधार पर आलोचना कर रहे हैं कि मुसलमानों पर सामूहिक जुर्माना लगाने जैसा काम किया जा रहा है.
यह इस देश का दुर्भाग्य ही है कि आज भी कांग्रेस सहित लगभग सभी राजनीतिक दल तुष्टिकरण की नीति पर चल रहे हैं. कुछ राजनीतिक दलों का आधार ही मुस्लिम वोट बैंक है जिसमें कुछ एक हिंदू जातियों को जोड़कर सरकार बनाने का गुणा भाग किया जाता है। पिछले 8 सालों से केंद्र में राष्ट्रवादी सरकार होने के बाद भी अल्पसंख्यक की परिभाषा भी नहीं की जा सकी है. दुनिया के किसी भी देश में इस तरह की व्यवस्था नहीं है कि देश की दूसरी सबसे बड़ी आबादी जो देश की संख्या का 25% हो, उसे अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया हो. ज्यादातर प्रगतिशील देशों में देश की आबादी के 1% से भी कम जनसंख्या वाले समुदाय को अल्पसंख्यक होने का दर्जा दिया जाता है लेकिन अपने यहां तो अंधेर है. पारसी समुदाय जो वास्तव में अल्पसंख्यक है, उसके लिए तो सरकार क्या अन्य कोई दल बिल्कुल भी चिंतित नहीं.
आज करदाताओं के एक बड़े हिस्से को अल्पसंख्यक कल्याण के नाम पर एक समुदाय विशेष पर लुटाया जा रहा है. इसके विपरीत देश में लगभग 4 लाख मंदिरों पर सरकार का कब्जा है, जिनकी चढ़ावे की राशि को भी अल्पसंख्यक कल्याण पर खर्च किया जा रहा है. आंध्र प्रदेश में एक प्रसिद्ध मंदिर ट्रस्ट का अध्यक्ष एक गैर हिंदू को बनाया गया है. तमिलनाडु में मंदिरों से प्राप्त चढ़ावे को मदरसों, यतीम खानों और मस्जिदों के रखरखाव पर खर्च किया जा रहा है. मंदिर मुक्ति आंदोलनों के बाद अगर कोई राष्ट्रवादी सरकार भी मंदिरों को मुक्ति नहीं कर सकती, तो हिंदू कहां जाएं ? क्या करें? किस से कहें ? देश में जब गरीब मेधावी हिंदू छात्र आर्थिक तंगहाली के कारण उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं कर पा रहे हैं, वहीं राष्ट्रवादी सरकार मदरसों के आधुनिकीकरण पर अंधाधुंध पैसा खर्च कर रही है और एक हाथ में कुरान और दूसरे हाथ में लैपटॉप देने की बात कर रही है. गोरखनाथ मंदिर में सुरक्षाबलों पर हमला करने वाला आतंकवादी भी आईआईटी मुंबई से केमिकल इंजीनियर है। मुस्लिम बाहुल्य राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अल्पसंख्यक होने का लाभ उन्हें दिया जा रहा है, और देश के लिये इससे ज्यादा दुखद और शर्मनाक कुछ नहीं हो सकता, जहां आर्थिक बदहाली से त्रस्त हिंदू समुदाय अपने लिए अल्पसंख्यक होने का दर्जा मांग रहा हो.
कश्मीर में धारा 370 खत्म होने के बाद भी, आर्थिक संसाधनों को पूरी तरह एक वर्ग विशेष के लिए न्योछावर किया जा रहा है, जहां के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा का नाम कभी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनाए जाने के लिए चर्चा में था. यदि वह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए होते तो आज का उत्तर प्रदेश कैसा होता ? और भाजपा कहाँ होती? मुझे नहीं पता लेकिन मैं इतना कह सकता हूं कि उत्तर प्रदेश का योगी मॉडल पूरे देश में भाजपा के लिए बहुत बड़ा संबल है और योगी पूरे देश के सनातनियों के लिए भाजपा के ब्रांड एंबेसडर हैं। चौथी बार मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बने शिवराज सिंह चौहान भी देर से ही सही आनंतोगत्वा योगी के रास्ते पर चल पड़े हैं. आसाम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा शर्मा प्रशंसा के पात्र हैं जो इस रास्ते पर काफी आगे निकल गए हैं , जिससे ऐसा लगता है कि वह गोपीनाथ बोरदोलोई की तरह ही आसाम को सुरक्षित और संरक्षित करने का महान कार्य कर सकते हैं. मोदी स्वयं इसी रास्ते से चलकर 15 साल तक गुजरात के अपराजेय मुख्यमंत्री रहे और प्रधानमंत्री बने.
भाजपा को अपनी हीन ग्रंथि या आत्मकुंठा से बाहर आकर राष्ट्रहित में हिंदुओं और सनातन संस्कृति को बचाने के लिए तेजी से कदम बढ़ाना चाहिए. उसे डॉ राम मनोहर लोहिया की यह बात याद रखनी चाहिए कि जिंदा कौमें बहुत अधिक इंतजार नहीं करती. भाजपा को यह भी याद रखना चाहिए कि सनातन धर्मी कभी किसी का ऋण अपने ऊपर नहीं रखते, बल्कि उसे ब्याज सहित समय से चुकाते हैं और उसका यह उपकार हमेंशा याद रखते हैं. यह सही है कि धारा 370 हटा कर और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करके बहुत बड़ा काम किया है लेकिन जैसे वर्षा की कुछ बूंदों से रेगिस्तान की प्यास नहीं बुझती, उसी तरह लगभग 1000 वर्षों के अत्याचार से कराहती सनातन संस्कृति का इस तरह के एक दो कार्यों से भला नहीं हो सकता। इसलिए सरकार को दो बिंदुओं पर बहुत तेजी से कार्य करना चाहिए. पहला सनातन संस्कृति पर आक्रमण तुरंत बंद होने चाहिए, ताकि हिंदुओं को यह विश्वास हो सके कि उनका भी कोई देश है और उनकी सुधि लेने वाला भी कोई है. दूसरा सनातन संस्कृति को अक्षुण्ण रखने के लिए तुरंत लंबी अवधि की योजनाएं बनानी चाहिए, और लक्ष्य निर्धारित करने चाहिए.
आजादी के अमृत महोत्सव से सनातन संस्कृति का भला नहीं होने वाला7, आज देश को सनातन संस्कृति के महोत्सव की अत्यंत आवश्यकता है. इस पर भी अवश्य विचार करना चाहिए कि आजादी के 75 वर्ष बाद हिंदुओं का क्या हुआ ? और 100 वर्ष बाद, 2047 में भारत में हिंदुओं का भविष्य क्या होगा ? क्या तब तक हिंदू इस देश में अल्पसंख्यक नहीं हो जाएंगे? या यह देश इस्लामीकरण की राह पर इतना आगे निकल जाएगा, जहां से लाख कोशिशों के बाद भी वापसी संभव नहीं होगी? भाजपा सरकार को यह बात भी कभी नहीं भूलनी चाहिए कि सबका साथ और सबका विकास तो ठीक है, लेकिन सबका विश्वास उसे कभी हासिल नहीं हो सकता, चाहे पूरी भाजपा साष्टांग दंडवत ही क्यों न करने लग जाए? आज की परिस्थितियों में केवल भाजपा ही सनातन संस्कृति की रक्षा कर सकती है, और केवल सनातनी ही भाजपा को सत्ता में बनाए रख सकते हैं. कोई अन्य विकल्प नहीं है.
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शिव मिश्रा (responsetospm@gmail.com)
सही लिखा ।
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