सत्ता का सिंहासन अरविंद केजरीवाल के लिए के लिए एक ऐसा नशा हो गया है, जिसे पाने के लिए वह कुछ भी कर सकते हैं आतंकवादियों से संबंध भी बना सकते हैं और खुद भी आतंकवादी बन सकते हैं. कुछ भी कर सकते हैं. ( ये जानते हुए भी कि आपके पास पढने के लिए समय नहीं होता, मैं विस्तार से लिख रहा हूँ )
अब तो उन्होंने स्वयं भी स्वीकार कर लिया है कि वह एक प्यारे आतंकवादी (स्वीट टेररिस्ट), हैं जिसने अस्पताल बनवाए हैं, स्कूल कॉलेज बनवाए हैं, लोगों की भलाई के लिए मुफ्त में चीजें दी हैं. आदि आदि.
यह सब उन्होंने कुमार विश्वास द्वारा किए गए खुलासे के कई दिन बाद बहुत सोच विचार के बताया लेकिन फिर भी कुमार विश्वास के आरोपों पर उन्होंने कुछ भी नहीं कहा.
शातिर राजनीतिज्ञ की तरह अपने ऊपर लगे आरोपों को ही हथियार बना लिया. कुछ लोग कह सकते हैं कि कुमार विश्वास ने चुनाव के वक्त ही यह सब क्यों बताया तो इसका जवाब कुमार विश्वास ने स्वयं दिया और यूट्यूब पर उनका वीडियो भी उपलब्ध है कि उन्होंने लगभग 2 साल पहले यह घटना बताई थी लेकिन उस समय किसी ने इसका संज्ञान नहीं लिया और अब क्योंकि चुनाव हो रहे हैं लोगों ने इस आरोप को हाथों हाथ ले लिया.
केजरीवाल ने दिल्ली के मतदाताओं को मुफ्त में कई चीजें देने की घोषणा की थी और कुछ दिया भी. वही सब घोषणाएं पंजाब में चुनाव के पहले की.
प्रश्न यह है कि जब आम आदमी समझता है कि यह सब कुछ अच्छा नहीं, देश हित में नहीं, तो फिर केजरीवाल ऐसा क्यों करते हैं ?
इसे समझने के लिए हमें यह जानना जरूरी है यह केजरीवाल पढ़े-लिखे चालाक व्यक्ति हैं और सत्ता के लालची भी लेकिन ऐसा करने वाले वह न तो भारत के पहले व्यक्ति हैं और न हीं विश्व के. अनेक देशों में ऐसा ही कुछ हो चुका है, सत्ता के संघर्ष में कई देश बिखर चुके हैं, लेकिन सत्ता प्राप्त करने वालों ने कभी इसकी चिंता नहीं की. एक ऐसा ही उदाहरण सोवियत रूस का है और वह है लेनिन का ?
रिचर्ड पाइप्स एक अमेरिकन इतिहासकार हैं जिन्होंने रूसी क्रांति पर एक किताब लिखी है जो पूरे विश्व में बहुत प्रसिद्ध है. इस पुस्तक का नाम है "थ्री व्हाईस ऑफ दि रशियन रिवॉल्यूशन" (Three Whys of the Russian Revolution) . इस पुस्तक में लेनिन के बारे में जो कुछ भी बहुत पहले लिखा गया है, वह काफी हद तक अरविंद केजरीवाल से मिलता जुलता है .
मेरे कहने का मतलब बिल्कुल भी नहीं है कि अरविंद केजरीवाल इस किताब को पढ़कर लेनिन की कॉपी कर रहे हैं. इस किताब के पेज संख्या 44 और 45 के संबंधित भाग की फोटो नीचे है जिसके हाई लाइट को ध्यान से पढ़िए
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इसका हिन्दी में मतलब है कि लेनिन को अपने देश की बिल्कुल चिंता नहीं थी वह किसी भी व्यक्ति को कुछ भी देने के लिए तैयार रहता था और इसमें बिल्कुल भी दिमाग नहीं लगाता था कि क्या होगा क्योंकि उसे विश्वास था कि लूट की लूट बड़ी बात नहीं, स्वयं खत्म हो जाएगी और सब कुछ अपने आप समाप्त और सामान्य हो जाएगा .
उसे मलूम था कि देश के अल्पसंख्यक स्वतंत्रता मांग सकते थे, आत्म निर्णय के अधिकार की मांग कर सकते थे, अलग राज्य बनाने की मांग कर सकते थे, इसके लिए वह गारंटी भी देने के लिए तैयार था. इसके पीछे धारणा यह थी ऊपर बैठे लोग इस पर खुद जो करना है करें.
यह सब उसके लिए वरदान सिद्ध हुआ क्योंकि उससे प्रतियोगिता करने वाला कोई राजनेता नहीं था, कर भी नहीं सकता था. अपना उल्लू सीधा करने के लिए वह किसी के भी साथ सांठगांठ करने के लिए तैयार था चाहे वे विदेशी शक्तियां ही क्यों न हों, और देश गुलाम क्यों न हो जाए.
जर्मनी ने फ्रांस और इंग्लैंड के गद्दारों को भी अपने साथ मिलाने के लिए इस तरह की कोशिश की थी.)
केजरीवाल क्या कर सकते हैं क्या नहीं कर सकते हैं, इसका फैसला आप स्वयम कर सकते हैं लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि भारत में शिक्षा का स्तर अभी भी जागरूकता के स्तर पर नहीं पहुंच पाया है और इसलिए न तो लोग ज्यादा पढ़ते / लिखते हैं और न ही चीजों को सही परिपेक्ष में समझने की कोशिश करते हैं.
ऐसा न करने देने के लिए बहुत सारी शक्तियां हर जगह सक्रिय रहती हैं, कोरा पर भी, जो आपके लिखने, पढने और सोचने की दिशा बदल देते हैं . आप चटनी और चाय बनाने, पानी पीने की विधि जानने और आज क्या देखा, क्या नहीं देखा में उलझ जायेंगे और अपना कीमती समय बर्बाद करेंगे . कभी दिल दिमाग लगायेंगे तो कोरा मॉडरेटर बीच में आ जाएगा, क्यों कि कोरा का अपना एजेंडा है.
जब राष्ट्रहित में अपेक्षित एक जैसी विचारधारा रखने वाले शिक्षित लोगों के बीच भी विभाजन होगा, तो देश को विभाजित होने में कितना समय लगेगा?
References- Three Whys of Russian Revolution by Richard Pipes