हिजाब न कभी मुद्दा था और न इस समय है, इस्लामिक राष्ट्रों में भी इस पर इस कदर यह एक बहुत बड़ी अंतराष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है, जो संभवत तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और बहुतायत हिंदुओं को समझ में नहीं आएगा. कर्नाटक उच्च न्यायलय ने हिजाब की अनुमति के लिए 4 मुस्लिम छात्राओं की ओर से दायर एक याचिका विचारार्थ स्वीकार कर ली किन्तु तुरंत कोई राहत देने से इंकार कर दिया और साथ ही निर्णय आने तक किसी भी विद्यालय में हिजाब पर रोक लगा दी है. इससे निराश कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल सर्वोच्च न्यायालय पहुंच गए और उन्होंने उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगाने और इस पर तुरंत सुनवाई की मांग की. सर्वोच्च न्यायालय ने तुरंत सुनवाई से इनकार करते हुए एक स्थानीय मुद्दे को राष्ट्रीय मुद्दा न बनाने का अनुरोध किया.
हिजाब विवाद की शुरुआत भले ही अभी हाल की दिखाई पड़ती हो लेकिन इसकी तैयारी सितंबर २०२१ से की जा रही थी जब पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया की सहयोगी संगठन केंपस फ्रंट ऑफ इंडिया ने कर्नाटक के विद्यालयों में सदस्यता अभियान शुरू किया. ये तथा कथित पीड़ित चारों लड़कियां सितंबर माह से ही केंपस फ्रंट ऑफ इंडिया की सदस्य हैं और ट्विटर पर उनके हैशटैग अभियान का हिस्सा हैं और उसके सभी देश विरोधी ट्वीट को कॉपी पेस्ट करके ट्वीट करती हैं. पीएफआई और सीएफआई दोनों ही शाहीन बाग और उसकेबाद दिल्ली दंगे की तर्ज पर ही हिजाब विवाद को फैलाकर राष्ट्रीय बनाने की कोशिश की है.
अतीत में विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें मिले समर्थन के प्रति आश्वस्त इन संगठनों इन चारों में से एक मुस्लिम लड़की के साथ अल्लाहुअकबर करते हुए वीडियो शूट किया जिसे वायरल किया गया. भगवाधारी युवकों के बारे में छानबीन की जा रही है लेकिन पुलिस का अनुमान है इसमें भी कई लड़के भी फ़िल्मी है. इनका एक निर्देशक इन युवकों को नियंत्रित करता हुआ देखा जा सकता है. हड़बड़ी में शूट किए गए इस वीडियो में फिल्मकार इस लड़की को चप्पल पहनाना और किताबें देना भूल गए और इस वीडियो की असलियत और उसके पीछे छिपी साजिश का पता लगाने में महत्वपूर्ण सूत्र बने.
भारत का इतिहास जानबूझकर ऐसा लिखा गया था जिससे बहुसंख्यक हिंदूओ को वास्तविकता से कभी परिचित न होने दिया जाए और सनातन संस्कृति और हिंदूओं के सर्वमान्य तथ्यों को इस प्रकार गलत ढंग से प्रस्तुत किया जाए ताकि वे कभी न असलियत जान सकें और न हो सके. समाज की इसी बुराई के कारण ही भारत को मुस्लिम आक्रांताओं का गुलाम होना पड़ा और बाद में अंग्रेजों का भी. इन दोनों मामलों में एक बात समान थी कि दोनों ने ही हिंदुओं में फूट डालकर हिंदुओं के माध्यम से ही हिंदुओं पर शासन किया. अन्यथा क्या इतनी विशाल आबादी वाले देश पर कुछ हजार सैनिकों वाले मुस्लिम आक्रांता और केवल ४-५ हजार अंग्रेज अपना शासन स्थापित कर पाते ?
1857 में जब स्वतंत्रता का प्रथम संग्राम हुआ तो भारत के स्वतंत्र होने की संभावना बहुत ज्यादा थी क्योंकि यह सशस्त्र सैन्य विद्रोह के कारण शुरू हुआ था लेकिन हिंदू मुस्लिम विवाद खड़ा हो गया. मुस्लिम नेताओं का मत था की स्वतंत्रता के बाद अगर सकता हिंदुओं के हाथ में जाती है तो मुस्लिमों को क्या मिलेगा अगर संघर्ष के बाद हिंदुओं के अधीन ही रहना है तो अंग्रेजों के अधीन रहना क्या बुरा है. आंदोलन शुरू होने के पहले ही खत्म ना हो जाए इसलिए हिंदू नेताओं ने मुस्लिम नेताओं को मनाने की कोशिश की तो उन्होंने शर्त रख दी कि स्वतंत्रता के बाद दिल्ली का सिंहासन उसी को मिले जिससे अंग्रेजों ने छीना है, यानी मुगलों को. यह भी एक शर्त थी कि आंदोलन का नेतृत्व भी कोई मुस्लिम ही करें.
अंग्रेजों से छुटकारा पाने के लिए हिंदू नेताओं ने समझौता कर लिया. इस प्रकार आंदोलन का नेतृत्व दिल्ली के आखिरी मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर द्वितीय के हाथों में दे दिया गया. उस समय उनकी उम्र 80 वर्ष के लगभग थी और वह अपने पजामें का नाड़ा भी अपने हाथ से नहीं बांध पाते थे. इसलिए आंदोलन की सफलता तो संदिग्ध हो ही गई थी लेकिन इससे भी आगे बढ़कर बहादुर शाह जफर ने अपने स्वार्थ के कारण आंदोलनकारियों के साथ गद्दारी की और आंदोलनकारियों की गतिविधियों की सारी सूचनाएं अंग्रेजों को प्रेषित करने लगे. लाल किला जिस पर उनका मालिकाना हक था, ₹1लाख पर अंग्रेजों को सैनिक छावनी के लिए किराए पर दे दिया.
1885 में अंग्रेजों ने कांग्रेस की स्थापना भारतीयों को लटकाने भटकाने के लिए की थी ताकि स्वतंत्रता चाहने वालों को बातचीत के लिए एक मंच उपलब्ध करा दिया जाए जिससे 1857 जैसा विद्रोह पुनः ना उभर सके. अंग्रेजों ने कांग्रेस में उन्हीं नेताओं को उभरने दिया पर महत्त्व दिया जो उनके काम के थे. जातियों में बटे हिंदू समाज को विभाजित करने के अतिरिक्त अंग्रेजों ने हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच भी खाई बढ़ाने का काम किया. इसका परिणाम यह हुआ कि मुस्लिमों के लिए अलग देश की मांग उठाई गई. खिलाफत आंदोलन में कांग्रेस के समर्थन न देने से गुस्साए एक मुस्लिम नेता जौहर अली (जिनके नाम से आजम खान ने रामपुर में एक निजी विश्वविद्यालय की स्थापना की है) ने अफगानिस्तान के शासक को पत्र लिखा कि वह हिंदुस्तान पर आक्रमण कर दें और हिंदुस्तान के सभी मुस्लिम उनका साथ देंगे.
पाकिस्तान के रूप में अलग देश की मांग स्वीकार हो जाने के बाद भी मुस्लिम संतुष्ट नहीं थे और उस समय मुस्लिम लीग के एक बड़े नेता ने कहा कि पाकिस्तान उनकी आखिरी मांग नहीं है. मुस्लिमों को एक बड़े नेता और शायर अल्लामा इकबाल, जिनकी तराने ज्यादातर भारतीय गुनगुनाते हैं उनका असली गाना इस प्रकार था- "चीन-ओ-अरब हमारा हिन्दोस्ताँ हमारा, मुस्लिम हैं हम वतन है सारा जहाँ हमारा" हालांकि बाद में बहुत दबाव पड़ने पर उन्होंने बदलाव किया लेकिन फिर भी उनके दिल में था वह निकलता जरूर था "हो जाए ग़र शाहे ख़ुरासान का इशारा, सज्दा न करूँ हिन्द की नापाक ज़मीं पर" . इसमें इकबाल को दोष देना बेकार है क्योंकि यह इस्लाम के अनुसार ही है, जिसका पालन करते हुए कई देश इस्लामिक बना दिए गए और इस्लाम की उत्पत्ति के बाद आज पूरी दुनिया में ५७ मुस्लिम देश हैं और दुनियां की दूसरी सबसे बड़ी आबादी मुसलमानों की है.
यह तब तक चलता रहेगा जब तक पूरी पृथ्वी पर दुनिया के सभी देश मुस्लिम शासित नहीं हो जाते. गजवा ए हिंद की परिकल्पना इसी दिशा का एक छोटा सा कदम है. कश्मीर और केरल में प्रयोग किए गए और इन प्रयोगों को पश्चिम बंगाल सहित अन्य राज्यों में दोहराया गया. इस तरह के प्रयोग जहां जहां संभव हैं वहां किए जायेंगे और इनसे उपजी परिस्थितियों का राजनीतिक दोहन और समर्थन करने तथा अपनी राजनैतिक शक्ति बढ़ाने के लिए छोटे बड़े मुस्लिम नेता देश में चारों तरफ घूम रहे हैं. चाहे चुनाव हो, सोशल मीडिया, टीवी या इलेक्ट्रोनिक मीडिया या कुछ और हो, सभी जगह अलग तरह की आवाज बुलंद की जा रही है. सभी राजनीतिक दल वोटों के लालच में इन्हें समर्थन भी दे रहे हैं, भाजपा एकमात्र इसका अपवाद है इसलिए वैश्विक रूप से मोदी और भाजपा के विरुद्ध सुनियोजित अभियान चला कर लांछित भी किया जा रहा है.
पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव में देशभर के मुल्ला और मौलवी भाजपा के विरुद्ध तकरीरे कर रहे थे और उन्हें अपने उद्देश्य में सफलता भी मिली. इस सफलता से उत्साहित होकर ही पांच राज्यों के चुनाव में प्रभाव देखने के उद्देश्य से और कर्नाटक विधानसभा के आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए सांप्रदायिक विवाद खड़ा किया गया है. यह बहुत बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश है जिसके अंतर्गत अन्य देशों में भी भारत की सनातन संस्कृति की सहिष्णुता को अपमानित करने के लिए इस मुद्दे को तूल दिया जा रहा है.
देश में हर छोटे बड़े शहर में प्रदर्शन हो रहे हैं और कांग्रेश, एनसीपी, तृणमूल कांग्रेस सहित लगभग सभी दलों ने हिजाब की मांग का समर्थन किया है और यह दल इन प्रदर्शनों में बढ़-चढ़कर भाग भी ले रहे हैं. एक छोटी सी जगह उडुपी से उठाये गए इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर सफलतापूर्वक प्रसारित कर दिया गया है. यह भविष्य में घटने वाली किसी बड़ी योजना का एक छोटा सा प्रयोग है कि कैसे किसी छोटी सी स्थानीय घटना को व्यापक रूप दिया जा सकता है. नई दवाइयां और सॉफ्टवेयर के प्रयोग ऐसे ही किए जाते हैं. यह अप्रत्यक्ष रूप से देश की न्याय व्यवस्था को भी प्रभावित करने की कोशिश है. भारत सरकार को इस मुद्दे को अत्यंत गंभीरता से लेना चाहिए.
जब देश में हिजाब की मांग को लेकर धरना प्रदर्शन हो रहे हैं, पूरा देश आक्रोशित है, यह उचित समय है कि सरकार को समान नागरिक संहिता कानून लागू करने की दिशा में तुरंत आगे बढ़ना चाहिए. अगर वैश्विक स्तर पर देखा जाए तो इस तरह की घटनाएं हर उस देश में हुई थी, जो आज मुस्लिम देश हैं. वहां भी इस तरह की छोटी-छोटी घटनाओं को बड़ा बनाकर धरना प्रदर्शन और मजहबी एकजुटता बनाने का काम होता रहा है. मजहब को खतरे में बताया जाता रहा है, विक्टिम कार्ड भी खेला जाता रहा है और इसके साथ सरकार पर दबाव बनाकर ज्यादा से ज्यादा अधिकार हासिल करने, संसाधनों पर कब्जा करने और जनसंख्या बढ़ाने का काम भी अनवरत किया जाता रहा है. धीरे-धीरे कितने ही ऐसे देश आज इस्लामिक राष्ट्र बन गए हैं. भारत इस वैश्विक षड्यंत्र का अगला निशाना है.
विभाजन के बाद भारत में लगभग तीन करोड़ मुसलमान और 30 करोड़ हिन्दू थे जो अब बढ़ कर क्रमश: 30 और 100 करोड हो गयी है और अल्पसंख्यकों का अनुपात १०% से बढ़कर ३०% हो गया है. यदि अन्य देशों के उदाहरण ध्यान में रखे जाए तो हिंदू और मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत धीरे-धीरे उस स्तर पर जा रहा है जहां से अन्य देशों में आंतरिक अव्यवस्था फैलाकर मजहबी प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिश होती है. गांव कस्बों और राज्यों पर कब्जा करते हुए पूरे देश पर कब्जा कर लिया जाता है.
भारत में स्थिति अत्यंत दुखद और दुर्भाग्य पूर्ण है. राजनीतिक और अन्य कारणों से हिंदू समाज में विभाजन पहले से और अधिक गहराता जा रहा है. राजनीतिक दल अपने स्वार्थ में अंधे होकर भविष्य में आने वाले बड़े संकट को अनदेखा कर रहे हैं. सभी देशभक्तों, चाहे वह किसी भी धर्म के क्यों न हों, विशेषतय: सनातन धर्मियों को, तुरंत सचेत होने की आवश्यकता है अन्यथा आने वाले संकट को टालना बहुत मुश्किल हो जाएगा.
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