सोमवार, 26 जुलाई 2021

उत्तर प्रदेश में अचानक ब्राह्मण इतने महत्वपूर्ण क्यों हो गए हैं ?

 

सपा, बसपा, कांग्रेस  और भाजपा सभी ब्राह्मणों के पीछे लगे हैं,उत्तर प्रदेश में अचानक ब्राह्मण इतने  महत्वपूर्ण क्यों हो गए हैं ?


कभी उत्तर प्रदेश में संपन्न समझे जाने वाले ब्रह्मण, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में भी अग्रणी भूमिका निभाई और स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भी सत्ता संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, लेकिन आज यह समुदाय आज बेहद तंगहाल है. मुसलमानों को रिझाने और उनपर तमाम निवेश किये जाने तथा वोटों की बहुत महंगी कीमत चुकाने के बाद भी उ.प्र. के सन्दर्भ में एकआश्चर्य जनक तथ्य यह है कि पिछले तीन विधानसभा चुनावों में जिस पार्टी की भी प्रदेश में सरकार बनी है, वह ब्रह्मण वोटों के कारण ही बनी है और सभी सरकारों में सबसे ज्यादा ब्राहमण विधायक रहे हैं , 2007 में बसपा की सरकार में 41 ब्राम्हण विधायक थे, अखिलेश की सरकार में 21 तथा भाजपा की सरकार में 44 ब्राह्मण विधायक हैं.

आज उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आर्थिक स्थिति बेहद खराब है. हम सभी ने कहानियों में पढ़ा है कि “एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था” लेकिन आज स्थिति अत्यंत भयावह है. आज हर गांव, कस्बे और शहर में गरीब ब्राह्मण रहते हैं. एक मोटे अनुमान के अनुसार इस समुदाय के लगभग 80% लोग गरीबी की श्रेणी में आते हैं और 50% लोग गरीबी की रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे हैं. कभी समाज का मार्गदर्शन करने वाले और सनातन धर्म की रक्षा करने वाले ये श्रेष्ठ लोग आज अपनी श्रेष्ठता की रक्षा करने के लिए अपनी गरीबी छुपाने का भरपूर उपक्रम करते रहते हैं. महाभारत युद्ध के बाद जब लोगों का धर्म कर्म और ईश्वर से विश्वास उठ रहा था, तब शतपथ ब्राह्मण नामक ग्रंथ की स्थापना की गई और ब्राह्मणों को यह दायित्व दिया गया कि वह सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपने आप को समर्पित करें और तदनुसार ब्राह्मणों का एक बहुत बड़ा वर्ग इस पुनीत कार्य में लग गया. आज भी बहुत से ऐसे ब्राह्मण परिवार हैं जिनके यहां हल की मूठ पकड़ना, व्यापार और चाकरी आदि वर्जित माना जाता था, उनके लिए केवल एक ही कार्य सौंपा गया था और वह था सनातन धर्म की रक्षा, प्रचार प्रसार, और कर्मकांड. आज इन परिवारों के अधिकतर शिक्षित - अर्ध शिक्षित युवा जीवन यापन के लिए महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली और पंजाब की फैक्ट्रियों में मजदूरी करते हैं या रिक्शा चलाते हैं और महिलायें दूसरों के घरों में झाड़ू, पोंछा और वर्तन धोने का काम करती हैं. लोकलाज के कारण ये युवा इस तरह के कार्य दूसरे राज्यों या बड़े शहरों में जाकर करते हैं, जो केवल सामाजिक श्रेष्ठता ढंकने का ही एक प्रयास है.

उ.प्र की राजनीति में आज ब्राह्मण समुदाय केवल वोट बैंक है और इसलिए ब्राहमणों का महत्त्व इन दिनों उत्तर प्रदेश में बहुत बढ़ गया है. लगभग ६० जिलों में ब्राहमण वोटर 10% से अधिक हैं। जिनमें से 30 जिलों में तो यह संख्या 13 फीसदी से अधिक है। खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ, गाजियाबाद, मथुरा, हाथरस, बुलंदशहर, मुरादाबाद, अलीगढ़, औरैया, सहारनपुर में ब्राहमण वोटरों की संख्या अच्छी खासी है। वहीं पूर्वांचल की बात करें तो अयोध्या, प्रतापगढ़, महाराजगंज, गोरखपुर, जौनपुर, सिद्धार्थनगर, वाराणसी, बस्ती, बलरामपुर, गोंडा, संत कबीर नगर, सोनभद्र, मिर्जापुर, कुशीनगर और देवरिया में ब्राहमण मतदाताओं की मौजूदगी 14 प्रतिशत से भी अधिक है।कुछ विधानसभा क्षेत्रों में ब्राह्मणों की जनसंख्या 20% से भी अधिक है और जो किसी भी उम्मीदवार की जीत हार के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है. वर्तमान विधानसभा में ब्राह्मण विधायकों की संख्या 46 है जिसमें अकेले 44 भाजपा से हैं.

इसलिए बहुत स्वाभाविक है कि सभी पार्टियां ब्राह्मणों को अपनी पार्टी से जोड़ने के लिए प्रयासरत हैं. आइए देखते हैं मुख्य दल ब्राह्मणों को रिझाने के लिए क्या कर रहे हैं?

बहुजन समाज पार्टी -

“तिलक तराजू और तलवार …..” के नारे से उपजी बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने दलितों और सवर्णों के बीच एक बड़ी खाई पैदा कर दी थी, फिर भी उत्तर प्रदेश में बसपा इस स्थिति में कभी नहीं आ पाई कि वह अपने बलबूते सरकार बना पाती और सवर्ण विरोध के कारण वह कांग्रेस और भाजपा से चुनावी गठबंधन करने की स्थिति भी सहज नहीं थी. ले दे कर उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह की ही एक पार्टी थी जिससे समझौता किया जा सकता था लेकिन उस पार्टी का कोर वोटर ही दलितों पर अत्याचार करता था, इसलिए वहां भी बहुत मुश्किल थी.

राजनीति में शायद कुछ भी असंभव नहीं होता और इसलिए अयोध्या में राम मंदिर से बाबरी मस्जिद का अतिक्रमण ढहाये जाने के बाद भाजपा को रोकने या अपना अस्तित्व बचाने के लिए शेर और बकरी ने एक घाट पानी पिया. भाजपा को रोकने की सफलता में दोनों दल इतना खुश हो गए कि एक नारा दिया गया “मिले मुलायम कांशीराम, हवा हो गए जय श्री राम”. विरोधी धरातल पर खड़े सपा बसपा का यह नया रिश्ता भी बहुत दिन नहीं चल सका और गेस्ट हाउस कांड हो गया जिसमें मायावती की अस्मिता ही नहीं, प्राण भी संकट में पड़ गए और यह भी एक संयोग ही कहा जाएगा कि गेस्ट हाउस में मायावती की जान बचाने वाले विधायक स्वर्गीय ब्रह्मदत्त द्विवेदी भी एक ब्राम्हण ही थे.

इसके बाद बसपा ने भाजपा से भी गठबंधन किया लेकिन खुद बैटिंग कर लेने के बाद विकेट समेट लेने की मायावती की आदत के कारण किसी भी दल से उनकी पटरी नहीं मिल पाई.

सौभाग्य, संयोग और सुअवसर से 2007 में दलित - ब्राह्मण की सोशल इंजीनियरिंग के जरिए बसपा ने अपने दम पर उत्तर प्रदेश की सत्ता प्राप्त कर ली. ब्राह्मणों को अपने पक्ष में लामबंद करने का किरदार निभाया था सतीश चंद्र मिश्रा ने जो मायावती के भ्रष्टाचार के मुकदमे लड़ते-लड़ते उनके बेहद करीबी बन गए थे.

मायावती 2007 की अपनी दलित ब्राह्मण की उस सोशल इंजीनियरिंग को दोहराना चाहती हैं, इसलिए हाथी जनेऊ से बंधने के लिए बेकरार है. पिछली बार “हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा विष्णु महेश है” के मन मोहक नारे के बाद भी सत्ता पाने के बाद उन्होंने जनेऊ को हाथी की पूंछ से बांध दिया था, और इसी कारण 2012 में जनेऊ धारी चुपचाप निकल लिए और साइकिल पर बैठ गए.

साइकिल पर बैठने का जनेऊ धारियों का अनुभव और भी ज्यादा खराब रहा. जहां मायावती के शासनकाल में ये जनेऊ धारी एससी - एसटी एक्ट के फर्जी मुकदमों में फंसते रहे,अखिलेश यादव के शासनकाल में दंगों और आतंकवादी वारदातों ने बर्बाद कर दिया. मुस्लिमों के लिए तो दोनों सरकारों ने खूब निवेश किया, कब्रिस्तान तक की चारदीवारियां बनवा दी गई, मदरसों को खूब लाभ पहुंचाया गया लेकिन इन जनेऊ धारियों के लिए क्या किया गया? यह बताने के लिए इन दोनों ही पार्टियों के पास कुछ भी नहीं है. एक पार्टी कहती है कि उसने परशुराम जयंती को सार्वजनिक अवकाश घोषित कर दिया तो दूसरी पार्टी कहती है कि उसने जनेश्वर मिश्र पार्क बनवा दिया. भला ये भी कोई कल्याणकारी योजनाएं हैं, गिनाने के लिए.

बहिनजी ने कहा है कि “तिलक तराजू ….इनको मारो ….” कभी कहा ही नहीं गया. इस नारे की छाया से निकलने क लिए उन्होंने एक कार्यक्रम शुरू किया है जिसका नाम रखा गया है “पंडित जी प्रणाम” , इस कार्यक्रम के अंतर्गत बसपा के कार्यकर्ता सभी 75 जिलों में और सभी विधानसभा क्षेत्रों में जाकर कार्यक्रम आयोजित करेंगे और स्थानीय ब्राह्मणों का सम्मान करेंगे. हर जिले में ब्राह्मण सम्मलेन करने की योजना बनायी है. इसके लिए उन्होंने अपने सबसे विश्वस्त ब्राह्मण चेहरे सतीश चंद्र मिश्रा को कमान सौंपी है, जिन्होंने पिछले बार भी यही सब किया था. भाजपा को जबाब देने के लिए उन्होंने “भाजपा के राम तो बसपा के परुशुराम” नारा भी गढ लिया गया है. अब शायद अल्लाह करेंगे आराम.

उत्तर प्रदेश में राम मंदिर निर्माण भाजपा के लिए यह एक रामबाण हो गया है, और इस लिए बसपा ने भी अपने ब्राह्मण सम्मेलन की शुरुआत अयोध्या से ही की.

समाजवादी पार्टी -

2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनाने में भी ब्राह्मणों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी. यद्यपि सपा में अपराधी छवि के लोगों का टिकट वितरण में बोलबाला रहता आया है, जो लोगों को रुचिकर नहीं लगता फिर भी सपा में 21 विधायक ब्राह्मण समुदाय से चुनकर आए थे.

समाजवादी पार्टी का झुकाव हमेशा से मुस्लिम समुदाय की तरफ रहा है और जब से मुलायम सिंह ने अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलवाई थी जिसमें सैकड़ों की संख्या में कारसेवक हताहत हुए थे और अयोध्या की धरती रक्तरंजित हो गई थी, पार्टी पर मुस्लिम पार्टी होने का ठप्पा लग चुका है और लोगों उन्हें मुल्ला मुलायम तक कहने लगे हैं.

अखिलेश की सरकार में भी पार्टी इस छवि से बाहर नहीं आ सकी और ऐसा लगता था कि मुस्लिम वर्ग को कुछ भी करने की छूट मिली हुई थी. इसलिए अखिलेश यादव के कार्यकाल में, जितने दंगे हुए वह अपने आप में एक रिकॉर्ड है. भ्रष्टाचार की फाइलें अभी भी घूम रही है. उनका पूरा कार्यकाल प्रशासनिक अक्षमता का कार्यकाल कहा जाता है क्योंकि उस समय साढ़े चार मुख्यमंत्री हैं ऐसा प्रचलित था, इनमें मुलायम सिंह यादव , शिवपाल सिंह यादव, रामगोपाल यादव और आजम खान को पूर्ण मुख्यमंत्री और अखिलेश यादव को आधा मुख्यमंत्री कहा जाता था. आजम खान ने रामपुर में जौहर विश्वविद्यालय बनाने के लिए जितना भ्रष्टाचार किया और सरकारी तंत्र का जितना दुरुपयोग किया वह अपने आप में एक मिसाल है. आजम खान की भैंस तक पुलिस ढूंढती थी लेकिन आ आम आदमी पर होने वाले अत्याचार की कोई सुनवाई नहीं थी. इस समय वह अपनी पत्नी और बेटे सहित जेल में हैं. इन सब का कारण अखिलेश यादव का अपरिपक्व और अनुभवहीन होना था .

इसलिए ब्राह्मण समुदाय का अखिलेश सरकार से बहुत जल्दी ही मोहभंग हो गया.

था और समय मिलते ही जनता और खासकर ब्राह्मणों ने अखिलेश को धरातल पर ला दिया.

सत्ता में रहने के दौरान उन्होंने ब्राह्मण समुदाय के लिए कोई काम किया हो ऐसा बताने के लिए उनके पास कुछ नहीं है सिवाय इसके कि उन्होंने जनेश्वर मिश्र के नाम से लखनऊ में एक पार्क का निर्माण करवाया है लेकिन इससे ब्राह्मण समुदाय का क्या भला होगा? यह आसानी से समझा जा सकता है .

बहन जी की हलचल देखते हुए अखिलेश यादव ने भी ब्राह्मणों को लुभाने का पांसा फेंक दिया है और इस संबंध में अपने पार्टी के विधायकों को काम पर लगा दिया है. ऐसा लगता है कि ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने का काम उन्होंने भी मायावती की तरह एक या दो ब्राह्मणों को ठेके पर दे दिया है. इससे क्या लाभ होगा यह तो समय ही बताएगा.

बहिन जी का मूर्ति प्रेम तो जगजाहिर है लेकिन अबकी बार अखिलेश यादव ने इसमें बाजी मार ली है और उन्होंने घोषणा की है कि लखनऊ में भगवान परशुराम की 108 फीट ऊंची मूर्ति लगाई जाएगी और 2022 में उनकी सरकार बनने पर सभी जिलों में परशुराम की मूर्तियां लगाई जाएंगी. बहन जी को यह बात नागवार गुजरी, भला उनके रहते मूर्तियों के मामले में कोइ उनसे बाजी मार ले जाय. उन्होंने इसके तुरंत बाद पत्रकार वार्ता करके कहा कि वह भगवान परशुराम की इससे भी ऊंची मूर्ति लखनऊ में लगाएंगी और अस्पतालों और पार्कों का नामकरण भी उनके नाम पर करेंगी.

कांग्रेस -

कुछ समय से कांग्रेस का पूरा जोर गांधी परिवार को सबसे बड़ा ब्राह्मण साबित करने में है, एक बार गांधी परिवार पूरी तरह से ब्राह्मण साबित हो जाए तो फिर किसी और ब्राह्मण की जरूरत ही नहीं पड़ेगी. इसलिए गांधी परिवार के होनहारों का जोर मंदिर परिक्रमा, गंगा स्नान और शंकराचार्य आदि का आशीर्वाद लेने में ही है. वैसे भी कांग्रेस के पास उत्तर प्रदेश में ले देकर एक ही ब्राह्मण नेता हैं, प्रमोद तिवारी, जिन्हें कांग्रेस ने कभी उचित अहमियत नहीं दी. अब उन्हें उम्र के इस पड़ाव पर कहां इस्तेमाल किया जाए, यह कांग्रेस को समझ में नहीं आ रहा है. एक बार वह उम्र दराज शीला दीक्षित को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित करके फस चुकी है इसलिए दोबारा कोई खतरा मोल नहीं लेना चाहती. अभी तो कांग्रेस चुनावी वैतरणी के लिए किसी गाय स्वरूपी राजनीतिक दल की तलाश में है जिसकी पूंछ पकड़कर शायद कुछ भला हो सके.

भाजपा -

2014 में हुए लोकसभा चुनावों के बाद प्रदेश में जितने भी चुनाव हुए हैं उनमें ब्राह्मण मतों का ध्रुवीकरण भाजपा के पक्ष में होता रहा है और इसमें बहुत बड़ा बदलाव आएगा इसकी संभावना कम ही दिखाई पड़ती है. भाजपा ने अपने सामाजिक समीकरण बैठाते हुए मंत्रिमंडल में एक ब्राह्मण दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया है, यद्यपि दिनेश शर्मा न तो ब्राह्मण समुदाय पर और न ही अपने विभाग के आधार पर कोई प्रभावी छाप छोड़ पाए हैं. उनका उपनाम “शर्मा” भी ऐसा है जिससे उनके ब्राह्मण न होने का भी संदेह भी जनता में बना रहता है. अगर उनका नाम दुबे, तिवारी, मिश्रा चतुर्वेदी, पांडे आदि होता तो लोगों को समझने में आसानी रहती.

विकरू कांड के खलनायक विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद विपक्षी दलों द्वारा सोची-समझी रणनीति के तहत इसे योगी का ब्राह्मणों के विरुद्ध षड्यंत्र बताया गया और प्रचारित किया गया कि योगी सरकार में ब्राह्मणों के खूब एनकाउंटर किए जा रहे हैं और उन पर एससी एसटी एक्ट में सबसे ज्यादा मुकदमे लगाए जा रहे हैं जो कि सच्चाई से परे हैं. अगर ऐसा है भी और सभी मामले वास्तविक हैं तो इसमें क्या बुराई है आखिर कानून सबके लिए बराबर होना चाहिए. क्या अब जातिगत और धार्मिक आधार पर एनकाउंटर किए जाएंगे और मुकदमे दायर किए जाएंगे ?

वर्तमान विधानसभा में भाजपा के 44 ब्राह्मण विधायक हैं जो पिछली तीन सरकारों में सर्वाधिक हैं. आगामी चुनाव के लिए भाजपा की योजना है कि कम से कम 100 ब्राह्मण उम्मीदवारों को टिकट दिया जाए. फिलहाल ब्राह्मणों को भाजपा के पाले में बनाए रखने का दायित्व उप मुख्यमंत्री दिनेश शर्मा के अलावा, रीता बहुगुणा जोशी, श्रीकांत शर्मा और जितिन प्रसाद को सौंपा गया है. जितिन प्रसाद अभी हाल ही में कांग्रेश ओढ़कर भाजपा में शामिल हुए हैं. भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का प्रमुख मंदिरों और हिंदू धर्म गुरुओं के साथ बेहतरीन समन्वय है जिसका फायदा भी उसे ब्राह्मणों को अपने पाले में रखने में होगा .

कुल मिलाकर सभी दलों की कोशिश ब्राह्मणों को लुभाकर सत्ता के संघर्ष में विजयी भव का आशीर्वाद प्राप्त कर सकें, लेकिन ब्राह्मण वर्ग समाज का प्रबुद्ध वर्ग है और वह अनावश्यक लटको झटको से किसी राजनीतिक दल को विजयी भव का आशीर्वाद देगा इसकी संभावना बहुत ही कम है.


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-- शिव मिश्रा

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शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

दीन हीन और मुद्दा विहीन विपक्ष के पास पेगासस स्पाई वेयर

 पेगासस  स्पाई वेयर और विपक्ष का हंगामा  





दिनों दिन भारतीय राजनीति का  बदरंग चेहरा और  विकृत स्वरूप सामने आ रहा है. ज्यादातर राजनीतिक दलों को केवल अपनी चिंता सता रही है, शायद ही किसी को देश की चिंता हो अगर चिंता होती तो क्या देश के राजनीतिक दल जो संविधान  और  देश के प्रति निष्ठावान होने की  शपथ लेते हैं वह  अंतरराष्ट्रीय साजिश का एक हिस्सा बन जाते ?

 संसदीय हंगामा -



संसद के  मानसून अधिवेशन का पहला दिन ही जासूसी कांड के हंगामे की भेंट चढ़ गयाऔर  परंपरा के अनुरूप प्रधानमंत्री अपने नवनियुक्त मंत्रियों का परिचय भी सदन में  नहीं करा सके. हंगामें  का मुख्य कारण था  गार्जियन अखबार में एक  दिन पहले छपी रिपोर्ट जिसमें कहा गया था कि  इजरायली कंपनी एनएसओ के पेगासस सॉफ्टवेयर से भारत में कथित तौर पर 300 से ज्यादा हस्तियों के फोन हैक किए जाने  का संदेह है. वैसे भी सत्र  को हंगामा पूर्ण  करने के लिए विपक्षी राजनीतिक दलों ने पहले कहीं कमर कस ली थी. दावा किया जा रहा है कि जिन लोगों के फोन टैप किए गए उनमें कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर सहित कई पत्रकार भी शामिल हैं।

सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है और रिपोर्ट जारी होने की टाइमिंग को लेकर भी सवाल खड़े किए हैं। इस रिपोर्ट पर चर्चा की जाए अगर हम भारत के विपक्षी राज नेताओं के बयानों पर नजर डालें तो इस स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि रिपोर्ट कहां से आई क्यों आए और इसका उद्देश्य क्या है?

 

राहुल गांधी की जासूसी की खबर से भड़की कांग्रेस ने  कहा- गृहमंत्री अमित शाह को तुरंत  बर्खास्त किया जाए. रणदीप सिंह सूरजेवाला ने कहा कि सरकार ने जासूसी करा कर देशद्रोह किया है. इजरायल के पेगासस सॉफ्टवेयर के जरिए जज, नेताओं आदि की जासूसी कराई जा रही है जो संविधान के मौलिक अधिकारों पर हमला है. इसके बाद तो जैसे विरोध की झड़ी लग गई बहती गंगा में  सपा, बसपा, शिवसेना, तृणमूल कांग्रेस और वामपंथी दल भी कूद पड़े.

इमरान भी हलकान -

कांग्रेश के  मोदी सरकार पर   आरोपों के   बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री  इमरान खान भी उसमें शामिल हो गए और उन्होंने कहा उनका फोन भी भारत सरकार ने टेप  करवा कर जासूसी की है

 सरकार का पक्ष 

भारत सरकार ने कहा है कि सरकार पर कुछ लोगों की जासूसी का आरोप निराधार और सत्य  से परे है. बयान में कहा गया है कि इससे पहले भी इस तरह का दावा किया गया था, जिसमें वाट्सएप के ज़रिए पेगासस के इस्तेमाल की बात कही गई थी. वो रिपोर्ट भी तथ्यों पर आधारित नहीं थी और सभी पार्टियों ने दावों को खारिज किया था. वाट्सएप ने तो सुप्रीम कोर्ट में भी इन आरोपों से इनकार कर दिया था.

 

उस समय  आईटी मंत्री ने इस पर विस्तार से संसद में बयां दिया था कि अनधिकृत तरीके से सरकारी एजेंसी द्वारा किसी तरह की कोई टैपिंग नहीं की गई है. इंटरसेप्शन के लिए सरकारी एजेंसी प्रोटोकॉल के तहत ही काम करती है. टैपिंग का काम किसी बड़ी वजह और राष्ट्रीय सुरक्षा के मद्देनज़र ही किया जाता है. ये खबर भारतीय लोकतंत्र और इसके संस्थानों को बदनाम करने के अनुमानों और अतिश्योक्ति पर आधारित है. सरकार ने अपने जवाब में साफ़ किया है कि छापी गयी रिपोर्ट बोगस है और पूर्वाग्रह से ग्रसित है.

 

क्या है छुपा अजेंडा ? 

यह बात बताना भी  सामयिक  होगा कि मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल में  विपक्ष  बहुत हताश है  और खास तौर से कांग्रेसी  बिल्कुल दीन हीन मुद्रा में आ गई है.  मोदी सरकार ने देश के लिए कुछ बहुत अच्छे कार्य किए हैं लेकिन ऐसा भी नहीं है कि पूरा देश बहुत गदगद  है लेकिन भारत  में  मीडिया  गैर सरकारी संगठन  नौकरशाह  और बुद्धिजीवियों का एक ऐसा बड़ा  वर्ग जो में सरकार के पैसे से  ऐशो  आराम की जिंदगी जीता था, अब उसका जीना हराम हो गया है . इसलिए  स्वाभाविक है कि   इन सरकारजीवियों और परजीवियों  के साथ साथ कांग्रेस  और अन्य  विपक्षी दलकिसी भी तरह मोदी सरकार को घेरने, बदनाम करने और पदच्युत करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है.  ऐसी कई रिपोर्ट सामने आई है जिनसे पता चलता  है कि एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय साजिश मोदी सरकार के विरुद्ध  रची गई है  जिसका  उद्देश्य मोदी सरकार को जितना जल्दी संभव हो चलता करना है.  ऐसी ही एक साजिश के तहत अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को चलता किया गया था और उसके बाद जो भी आंदोलन अमेरिका में दिखाई पड़ रहे थे  वह  स्वत:  शांत हो गए.  ऐसी भी  सूचना है कि इस अंतरराष्ट्रीय साजिश में चीन एक बड़े  खिलाड़ी  के रूप में शामिल है  और पाकिस्तान उसके इशारे पर  उल जलूल  हरकतें कर रहा है . वामपंथी और  इस्लामिक गठजोड़ किसी भी कीमत पर  मोदी को हटाने के लिए पूरी तरह कमर कस चुका है.   इस पूरी मुहिम में कुछ बड़े मीडिया हाउस जुड़े हुए हैं.  अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वाशिंगटन पोस्ट, गार्जियन, न्यूयोर्क टाइम्स  और राष्ट्रीय स्तर पर  भी कई मीडिया हाउस जुड़े हुए हैं.  यह पूरा गठजोड़  इस तरह से काम करता है कि किसी भी मुद्दे  के आधार पर पूरे देश में वातावरण तैयार किया जाता है और उसके लिए ट्विटर, फेसबुक  और  व्हाट्सएप  सहित सोशल मीडिया का भरपूर इस्तेमाल किया जाता है. 

हाल ही में घटित कुछ घटनाएं जिसमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मीडिया सोशल मीडिया,  वामपंथ और इस्लामिक गठजोड़ तथा  राजनीतिक  दल  शामिल हैं. 

  • संशोधित नागरिकता कानून के मुद्दे पर देशव्यापी प्रदर्शन और शाहीन बाग शो को संपूर्ण विपक्ष द्वारा  समर्थन देना

  • ट्रंप की भारत यात्रा के दौरान दिल्ली को दंगों से  दहलाना और  सभी विपक्षी दलों द्वारा दंगों के लिए मोदी सरकार को घेरना 

  • कृषि कानूनों के विरुद्ध  किसान आंदोलन  और सभी विपक्षी दलों द्वारा  समर्थन

  •  इन दोनों ही आंदोलनों के पीछे टूल किट का प्रयोग 

  • सेंट्रल विस्ता प्रोजेक्ट का अंतराष्ट्रीय स्तर  विरोध - वाशिंगटन पोस्ट और गार्जियन में भ्रामक लेख  

  • कोरोना  महामारी के  दौरान  कांग्रेस, आप सहित ज्यादातर विपक्षी दलों द्वारा  बेहद निम्न स्तर  की राजनीति

  •  कोरोना  वैक्सीन पर  नकारात्मकता फैलाकर लोगों को  वैक्सीन  लेने से रोकना  

  • वैक्सीन की कमी पर  केंद्र  सरकार को घेरना

  • ऑक्सीजन तथा स्वास्थ्य संसाधनों की कृत्रिम कमी  पैदा कर या  दिखाकर लोगों की जान माल से खिलवाड़ की कीमत पर मोदी सरकार को बदनाम करने का प्रबंध करना 

  • भारत के श्मशान घाट और गंगा में बहती हुई लाशों  के फोटो अंतरराष्ट्रीय मीडिया में प्रचारित और प्रसारित करना,  बहुत से पुरानी फोटो इस्तेमाल करके सनसनी पैदा करना  

अंतरराष्ट्रीय मीडिया की भूमिका - 

अगर इन सब को ध्यान से देखा जाए तो यह कहीं न कहीं एक टूल किट से अंतरराष्ट्रीय मीडिया वामपंथ इस्लामिक गठजोड़ और भारत के विपक्षी राजनीतिक दलों को आपस में जोड़ता दिखाई पड़ेगा. इस अंतरराष्ट्रीय साजिश में वाशिंगटन पोस्ट, गार्जियन और   न्यूयॉर्क   टाइम्स ने  मीडिया पार्टनर की भूमिका अदा की और कभी-कभी तो चीन के ग्लोबल टाइम्स और इन सभी  अखबारों की  एक ही लाइन होती है. 

 गार्जियन  ने अपने अखबार की हेडलाइंस में राहुल गांधी को मोदी का मुख्य प्रतिद्वंदी बताया है और पहले पन्ने पर राहुल की मोदी के साथ तस्वीर है.   गार्जियन के  एक अंक में राहुल की मुख्य तस्वीर  है और मोदी को उनके पीछे खड़ा  दिखाया गया है.  वहीं दूसरे अंक में  राहुल की तस्वीरों के कोलार्ज   प्रकाशित किए गए हैं और हेडिंग  में लिखा है “भारत में स्पाइवेयर के खुलासे पर विपक्ष ने मोदी पर लगाया देशद्रोह का आरोप”




वाशिंगटन पोस्ट ने अपने 19 जुलाई के अंक में लिखा कि  पेगासस स्पाइवेयर आतंकवाद से लड़ने के लिए सरकारों को बेचा जाता है लेकिन  भारत में इसका इस्तेमाल पत्रकारों और अन्य लोगों को हैक करने के लिए किया  गया है .  इसके मुख्य पृष्ठ पर राहुल और प्रियंका  का रोड शो करते हुए चुनाव की  भीड़ की फोटो दिखाई गई है जिसमें उनकी लोकप्रियता को रेखांकित करने की कोशिश की गई है.  



द वायर’ अपनी हेडलाइंस में  लिखता  है, “लीक डेटा बताता है कि एल्गार परिषद मामले में हद से ज्यादा निगरानी की गई है।” द वायर के अन्य शीर्षक में कहा गया है, “जासूसी वाली सूची में 40 भारतीय पत्रकार हैं, फोरेंसिक जाँच से पेगासस स्पाइवेयर की उपस्थिति की पुष्टि  हुई ।”

 सनसनी फ़ैलाने के लिए रिपोर्ट्स को तोड़मरोड़ के प्रस्तुत किया गया है.  

किसने तैयार की रिपोर्ट ? 

फ्रांस की संस्था फोरबिडेन स्टोरीज ( Forbidden Stories) और एमनेस्टी इंटरनेशनल (Amnesty international) ने मिलकर खुलासा किया है कि इजरायली कंपनी एन एस ओ (NSO) के स्पाइवेयर पेगासस के जरिए दुनिया भर की सरकारें पत्रकारों, कानूनविदों, नेताओं और यहां तक कि नेताओं के रिश्तेदारों की जासूसी करा रही हैं. इस जांच को पेगासस प्रोजेक्ट  का नाम दिया गया है. इस तथाकथित प्रोजेक्ट की जो पहली रिपोर्ट है उसमें यह दावा किया  गया है  कि निगरानी वाली लिस्ट में  विश्व के 50 हजार लोगों के नाम हैं.  पहली लिस्ट  में  40 भारतीय नाम हैं. इस रिपोर्ट की सत्यता  हमेशा संदिग्ध रहेगी  क्योंकि  एक तो इस प्रोजेक्ट के पीछे काम करने वाले लोगों की सत्यनिष्ठा ही संदिग्ध है  और दूसरा  कारण यह है  कि इस तरह के स्पाइवेयर  के डाटा बेस में  जितने  भी नंबर पाए जा सकते हैं, जरूरी नहीं कि उनकी जासूसी की गयी  हो.  बहुत संभव है कि इनमें से अधिकांश नंबर उन फोन  के कांटेक्ट लिस्ट में होंगे   जिन की निगरानी  या जासूसी  की गई  होगी . इसलिए इस रिपोर्ट को जितना सनसनीखेज बनाकर बताया जा रहा है उतनी गंभीरता  नहीं हो सकती है. 

 

इस रिपोर्ट में कितनी सच्चाई है यह अलग विषय है  लेकिन    विदेशी मीडिया में बनी इन हेडलाइंस  से आसानी से समझा जा सकता है कि  यह मीडिया  भारत  में   किस राजनैतिक दल के लिए काम कर रही  हैं.

अब समझने की कोशिश करते हैं कि पेगासस का ये स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर कैसे काम करता है  और  इससे क्या निजता भंग हो सकती है ?

 क्या है  पेगासस सॉफ्टवेर ? 

इजरायल की कंपनी एनएसओ साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में काम करती है। दुनिया में बढ़ते अपराध और आतंकवाद को देखते हुए कंपनी ने इस तरह का सॉफ्टवेयर बनाने पर विचार किया जो अपराधियों को पकड़ने में खुफिया एवं सुरक्षा एजेंसियों की मदद करे। इसे ध्यान में रखते हुए कंपनी ने पेगासस सॉफ्टवेयर तैयार किया। कंपनी अपना यह अप्लिकेशन केवल  सरकारों को बेचती है। किसी निजी व्यक्ति के हाथ में यह सॉफ्टवेयर नहीं आता। कंपनी अपने इस सॉफ्टवेयर के लाइसेंस के लिए काफी  पैसे लेती है। 

यह साफ्टवेयर  भारत में पहली बार 2019 में उस समय चर्चा में आया था जब कई मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के वाट्सएप से डाटा चोरी होने की रिपोर्ट सामने आई थी। उस समय सरकार और स्वयं विपक्षी दलों तथा व्हाट्सएप में इसे गलत बताया था और व्हाट्सएप में तो इस आशय का एक हलफनामा भी सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल किया था.  यह मामला उसी समय खत्म हो गया था.

पहली बार 2016 में संयुक्त अरब अमीरात के मानवाधिकार कार्यकर्ता पर इस्तेमाल के बाद यह सामने आया था। इसने आइफोन की सुरक्षा को भी तोड़ दिया था। बाद में आइफोन इससे निपटने के लिए अपडेट लाया था। 2017 में सामने आया था  कि यह साफ्टवेयर एंड्रायड की सुरक्षा को भी भेद सकता है। यह इकलौता साफ्टवेयर कई जासूसों को मात देने में सक्षम है। इसे इस तरह से डिजाइन किया गया है कि सामने वाले को अपने फोन में इसके होने की भनक भी नहीं लगती।

 इस तरह कार्य करता है स्पाइवेयर 

  • मोबाइल में एक बग के रूप में खुद को इंस्टाल कर लेता है

  • यह मोबाइल की काल और हिस्ट्री को भी डिलीट कर सकता है

  • डाटा चोरी की खबर ना लगे इसके लिए सभी साक्ष्य मिटा देता है

  • केवल वाईफाई पर ही काम करता है, जिससे किसी को पता न लग सके

  • वायस काल और वाट्सएप के जरिये भी मोबाइल पर इंस्टाल हो सकता है

  • एक बार इंस्टाल होने पर मोबाइल पर मौजूद सभी डाटा एक्सेस कर सकता है

इन जानकारियों को  देख सकता है 

  • मैसेज और मेल पढ़ सकता है

  • फोन काल को सुन सकता है

  • कांटेक्ट की जानकारी ले सकता है

  • मोबाइल से स्क्रीनशाट ले सकता है

  • मोबाइल के कैमरा और माइक का इस्तेमाल कर सकता है

  • यूजर के फोन की रियल टाइम लोकेशन का पता लगा सकता है.

ज्यादातर सॉफ्टवेयर  इन जानकारियों को प्राप्त करने की क्षमता रखते हैं . जब भी कभी आप कोई सॉफ्टवेयर डाउनलोड करके इंस्टॉल करते हैं तो वह आपसे इन सूचनाओं को प्राप्त करने की अनुमति मांगता है और आप जल्दबाजी में   अनुमति देते जाते हैं और इस तरह से कई एप्प आपकी यह सभी जानकारी समेट लेते हैं और इसी कारण भारत सरकार ने कई चीनी एप्लीकेशंस को  प्रतिबंधित कर दिया था.   

भारत में   ही नहीं विश्व में ज्यादातर लोग मुफ्त  मिलने वाली चीजों के प्रति बेहद लालची होते हैं, मुफ्त का खाना हो,  शराब हो या सॉफ्टवेयर,   मुफ्त चीजों का मजा ही कुछ और होता है.   ऐसे में  लोग मुफ्त के सॉफ्टवेयर भी धड़ल्ले से डाउनलोड कर इस्तेमाल करते हैं  और तब आप की जानकारी अपने आप इन एप्लीकेशन के पास  जा सकती  है. आपकी इस तरह की जानकारी तो गूगल के पास भी है. 

लेकिन पेगासस खतरनाक इसलिए है   कि यह किसी भी स्मार्टफोन में मिस्ड कॉल या फोन कॉल  के माध्यम से बिना अनुमति के इंस्टॉल हो सकता है और यह सामान्यतः यूजर देख भी नहीं सकता है. 


लेकिन सबसे बड़ी बात यह है  कि ये  स्पाई वेयर केवल स्मार्टफोन में ही  काम कर सकता है बेसिक फोन में नहीं इसलिए आज भी बेसिक फोन   जिन्हें  केवल बात करने और मैसेज प्राप्त करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है ज्यादा सुरक्षित होते हैं. 


किससे साझा की गयी ये रिपोर्ट ?

पेरिस स्थित गैर-लाभकारी  संगठन  'फॉरबिडन स्टोरीज एवं मानवाधिकार समूह 'एमनेस्टी इंटरनेशनल द्वारा लीक हुए आंकड़ों के आधार पर बनाई गई  है जिसे 16 समाचार संगठनों के साथ साझा की गई  है .रिपोर्ट में कहा गया है  कि इजराइल स्थित कंपनी 'एनएसओ ग्रुप के सैन्य दर्जे के  स्पाइवेयर  का इस्तेमाल पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक असंतुष्टों की जासूसी करने के लिए किया जा रहा है। 

वैश्विक मीडिया संघ के सदस्य 'द वाशिंगटन पोस्ट के अनुसार, जिन लोगों को संभावित निगरानी के लिए चुना गया, उनमें पत्रकार, नेता एवं सरकारी अधिकारी, व्यावसायिक अधिकारी,  मानवाधिकार कार्यकर्ता और कई राष्ट्राध्यक्ष शामिल हैं। ये पत्रकार  मुख्यतया   'द एसोसिएटेड प्रेस (एपी), 'रॉयटर, 'सीएनएन, 'द वॉल स्ट्रीट जर्नल, 'ले मोंदे और 'द फाइनेंशियल टाइम्स से  हैं।

 एनएसओ ग्रुप के स्पाइवेयर को मुख्य रूप से पश्चिम एशिया और मैक्सिको में निगरानी के लिए इस्तेमाल किए जाने के आरोप हैं। सऊदी अरब को एनएसओ के ग्राहकों में से एक बताया जाता है। इसके अलावा सूची में फ्रांस, हंगरी, भारत, अजरबैजान, कजाकिस्तान और पाकिस्तान सहित कई देशों के फोन हैं। इस सूची में मैक्सिको के सर्वाधिक फोन नंबर हैं। इसमें मैक्सिको के 15,000 नंबर हैं।

भारत में तथाकथित जासूसी  से प्रभावित लोग 

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी, भाजपा के मंत्रियों अश्विनी वैष्णव और प्रह्लाद सिंह पटेल, पूर्व निर्वाचन आयुक्त अशोक लवासा और चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर उन लोगों में शामिल हैं, जिनके फोन नंबरों को इजराइली स्पाइवेयर के जरिए हैकिंग के लिए सूचीबद्ध किया गया था। 

 पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे तथा तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के सांसद अभिषेक बनर्जी और भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई पर अप्रैल 2019 में यौन उत्पीड़न का आरोप लगाने वाली उच्चतम न्यायालय की कर्मचारी और उसके रिश्तेदारों से जुड़े 11 फोन नंबर हैकरों के निशाने पर थे। 

रिपोर्ट के अनुसार सूची में राजस्थान की मुख्यमंत्री रहते वसुंधरा राजे सिंधिया के निजी सचिव और संजय काचरू का नाम शामिल था, जो 2014 से 2019 के दौरान केन्द्रीय मंत्री के रूप में स्मृति ईरानी के पहले कार्यकाल के दौरान उनके विशेष कार्याधिकारी (ओएसडी) थे। इस सूची में भारतीय जनता पार्टी से जुड़े अन्य जूनियर नेताओं और विश्व हिंदू परिषद के नेता प्रवीण तोगड़िया का फोन नंबर भी शामिल था। 

‘द गार्डियन’ की ओर 18 जुलाई  2021  की  रात जारी इस बहुस्तरीय जांच की पहली किस्त में दावा किया गया है कि 40 भारतीय पत्रकारों सहित दुनियाभर के 180 संवाददाताओं के फोन हैक किए गए। इनमें ‘हिन्दुस्तान टाइम्स’ और ‘मिंट’ के तीन पत्रकारों के अलावा ‘फाइनैंशियल टाइम्स’ की संपादक रौला खलाफ तथा इंडिया टुडे, नेटवर्क-18, द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस, द वॉल स्ट्रीट जर्नल, सीएनएन, द न्यूयॉर्क टाइम्स व ले मॉन्टे के वरिष्ठ संवाददाताओं के फोन शामिल हैं। जांच में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक पूर्व प्रोफेसर और जून 2018 से अक्तूबर 2020 के बीच एल्गार परिषद मामले में गिरफ्तार आठ कार्यकर्ताओं के फोन हैक किए जाने का भी दावा किया गया है।


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा, ''इस तथाकथित रिपोर्ट के लीक होने का समय और फिर संसद में ये व्यवधान, इसे जोड़कर देखने की आवश्यक्ता है। यह एक विघटनकारी वैश्विक संगठन हैं जो भारत की प्रगति को पसंद नहीं करता है। ये अवरोधक भारत में राजनीतिक खिलाड़ी हैं जो नहीं चाहते कि भारत प्रगति करे। भारत के लोग इस घटना और संबंध को समझने में बहुत परिपक्व हैं।' 


इसराइली कंपनी एनएसओ का स्पष्टीकरण 

इजरायली कंपनी एनएसओ ने जांच रिपोर्ट पर सवाल उठाते हुए कहा कि एमनेस्टी इंटरनेशनल और फॉरबिडेन स्टोरीज का डाटा गुमराह  करने वाला  है। यह डाटा उन नंबरों का नहीं हो सकता है, जिनकी सरकारों ने निगरानी की है। इसके अलावा ये लोग एनएसओ के  ग्राहकों की खुफिया निगरानी की गतिविधियों से वाकिफ नहीं है।

 कंपनी ने  इस बात का बिल्कुल भी खुलासा नहीं किया  कि उनका यह सॉफ्टवेयर कैसे काम करता है?  और यह बहुत स्वाभाविक भी है क्योंकि कई बार वैश्विक संगठन  झूठ  रिपोर्ट बना कर न केवल इस तरह के महत्वपूर्ण सॉफ्टवेयर  या वैज्ञानिक कार्य की टोह लेने की कोशिश करते हैं,  बल्कि उस कंपनी को ब्लैकमेल कर पैसा एंठने  का काम भी करते हैं.   

इसमें कोई कोइ दो राय नहीं हो सकती कि इजराइल  साइबर सुरक्षा के सॉफ्टवेयर के मामले में विश्व में अग्रणी है  और  इस क्रम में पेगासस  स्पाइवेयर  काफी अच्छा सॉफ्टवेयर है जिसे  जासूसी के क्षेत्र में अचूक माना जाता है। तकनीक जानकारों का दावा है कि इससे व्हाट्सएप और टेलीग्राम जैसे एप भी सुरक्षित नहीं,  कि यह फोन में मौजूद एंड टू एंड एंक्रिप्टेड चैट को भी पढ़ सकता है। लेकिन इसकी पुष्टि अभी तक नहीं हो सकी है. 

इस तरह की मीडिया रिपोर्ट ने इस सॉफ्टवेयर को विश्व में  सर्वश्रेष्ठ स्पाइवेयर के तौर पर प्रतिष्ठित कर दिया है और मुद्दा विहीन भारतीय विपक्ष को एक मुद्दा दे दिया है. 

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  • शिव मिश्रा 

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शुक्रवार, 16 जुलाई 2021

पश्चिम बंगाल की हिंसा पर एनएचआरसी की रिपोर्ट. अब करेगी केंद्र सरकार ?

 कोलकाता उच्च न्यायालय के निर्देश पर गठित राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की 7 सदस्य टीम ने पश्चिम बंगाल का दौरा किया. दुर्भाग्य से यह टीम, जो हिंसा की जांच करने गई थी, स्वयं हिंसा का शिकार हो गई और जादवपुर में उसके ऊपर हमला किया गया. इनको वापस आना पड़ा और इसके बाद केंद्रीय सुरक्षा बलों के साये में इस टीम ने अपना कार्य प्रारंभ किया. टीम ने 20 दिनों में 311 से अधिक जगहों पर दौरा किया और 50 पेज की अपनी एक रिपोर्ट कोलकाता उच्च न्यायालय को सौंप दी है .




रिपोर्ट के अंश के समाचार पत्रों में प्रकाशित होने के तुरंत बाद ममता बनर्जी ने केंद्र सरकार पर जबरदस्त प्रहार किया और उसे रिपोर्ट लीक होने का जिम्मेदार ठहराया. लेकिन टीम के अध्यक्ष ने बताया कि उन्होंने रिपोर्ट की एक कॉपी राज्य सरकार को भी भेजी थी इसलिए राज्य सरकार का यह कहना उचित नहीं है कि रिपोर्ट टीम ने लीक की है.

50 पन्ने की अपनी रिपोर्ट में टीम ने जिन बड़े अपराधी तत्वों के नाम अपनी रिपोर्ट में लिखे हैं वे ज्यादातर तृणमूल कांग्रेस के बड़े नेता या कार्यकर्ता है.

रिपोर्ट से पता चलता है कि पुलिस ने ज्यादातर मामलों में रिपोर्ट भी दर्ज नहीं की लेकिन जो भी रिपोर्ट दर्ज की गई है उनमें 9300 व्यक्तियों को नामजद किया गया है किंतु पुलिस ने अब तक केवल 1300 लोगों को गिरफ्तार किया है और उनमें से भी 1086 लोगों को थाने से ही जमानत दे दी गई.

रिपोर्ट में लिखा है हिंसा के सभी मामले सत्ताधारी दल ने अपने विरोधियों को सबक सिखाने के लिए जानबूझकर किए.

टीम ने सख्त टिप्पणी करते हुए लिखा है कि पश्चिम बंगाल में कानून का शासन नहीं है बल्कि शासक का शासन है यानी ममता बनर्जी और उनकी तृणमूल कांग्रेस की व्यक्तिगत राज शाही है.

पश्चिम बंगाल में अगर तुरंत हत्याये नहीं रोकी गई तो गणतंत्र की हत्या हो जाएगी

अपनी रिपोर्ट में टीम ने प्रमुख संस्तुति की है कि -

  • जिन गांव में हिंसा के 5 से अधिक मामले आए हैं वहां लोगों में विश्वास बनाए रखने के लिए और लोगों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए केंद्रीय सुरक्षा बल तैनात किए जाएं.

  • हत्या बलात्कार आगजनी लूटपाट के सभी मामले केंद्रीय जांच ब्यूरो को सौंप दे जाएं क्योंकि राज्य पुलिस पर लोगों का भरोसा बिल्कुल भी नहीं बचा है

  • तभी मुकदमों की ट्राई राज्य के बाहर किये जाए जिसके लिए फास्ट ट्रैक कोर्ट का गठन किया जाए ताकि लोगों को त्वरित निर्णय दिए जा सकें और उन्हें पुनर्वास रोजगार तथा आर्थिक सहायता शीघ्रता से उपलब्ध कराई जा सके

  • सर्वोच्च न्यायालय की देखरेख में एसआईटी गठित की जाए जिसमें वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी नियुक्त किए जाएं जो राज्य सरकार के अधिकारियों के दबाव में ना आए.

केंद्र सरकार पश्चिम बंगाल के चुनाव परिणाम आने के बाद से ही बहुत ही रक्षात्मक मुद्रा में है जिससे न केवल भाजपा के कार्यकर्ताओं का बल्कि सामान्य जनमानस का मनोबल भी गिर रहा है. कितने ही ऐसे लोग जिन्होंने तृणमूल कांग्रेस छोड़कर भाजपा ज्वाइन की थी अब सट्टा और आतंक के दबाव में अपना मुंडन करवा कर, दुख प्रकट करके, क्षमा मांग कर वापस तृणमूल कांग्रेस में आ रहे हैं.

सभी बुद्धिजीवियों में यह धारणा थी कि शायद भाजपा यह चाहती है कि उस पर धारा 356 के दुरुपयोग का आरोप ना लगे इसलिए बहुत मजबूत केस पश्चिम बंगाल सरकार के विरुद्ध बना रही है . यह कहते-कहते भी कई महीने बीत गए हैं इस बीच केंद्र सरकार ने अधिकारियों के स्थानांतरण सहित मुख्य सचिव को कारण बताओ नोटिस देकर यह संकेत दिया था कि शायद कोई सख्त कार्यवाही की जाएगी जो पुलिस और नौकरशाहों के लिए भी उदाहरण बन सकेगी. पर अभी तक कुछ नहीं हुआ.

पश्चिम बंगाल की हिंसा को लेकर सर्वोच्च न्यायालय भी उदासीन रहा लेकिन अब जो भी कोलकाता उच्च न्यायालय ने बहुत गंभीर टिप्पणियां की हैं सर्वोच्च न्यायालय ने भी पश्चिम बंगाल की सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं और अब आखिर में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में ममता की निर्ममता को पूरी तरह से उजागर कर दिया है, अब केंद्र सरकार सरकार किस चीज का इंतजार कर रही है ? अब इससे उपयुक्त मौका नहीं आएगा.

लोग भले ही कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाते रहे हो कि उन्होंने धारा 356 का भयंकर दुरुपयोग किया लेकिन क्या करें भाजपा को जो धारा 356 का सदुपयोग भी नहीं कर पा रही है जबकि यह लोगों की जानमाल की रक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है और यह पहली बार है जब लगभग समूचा देश पश्चिम बंगाल में राष्ट्रपति शासन की मांग कर रहा है. अब तो केंद्र सरकार के लिए यही कहा जा सकता है कि

“मत चूको चौहान”

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- शिव मिश्रा

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