योगी आदित्यनाथ द्वारा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभालना प्रदेश के बाहर लोगों के लिए कौतूहल बना हुआ था. मुझे याद आता है कि मुंबई की तरह ही देश के अन्य शहरों में भी व्यक्तिगत बातचीत में लोग मुझसे अक्सर पूछते थे “ और भाई ! क्या है यूपी के हाल”. स्वाभाविक था कि उनके दिल और दिमाग में एक संशय था कि बिना किसी पूर्व प्रशासनिक अनुभव के यह व्यक्ति उत्तर प्रदेश जैसा विशाल प्रदेश, जिसको पिछली सरकारों ने बद से बदहाल बना दिया है, कैसे संभाल पाएगा ? ऐसा सोचने वालों की आशंका निराधार नहीं थी क्योंकि पूर्ण बहुमत की भाजपा सरकार 25 साल बाद बनी थी. इसके पहले 1992 में कल्याण सिंह की पूर्ण बहुमत की सरकार थी जिन्होंने विवादित ढांचा ध्वस्त होने के बाद, त्यागपत्र दे दिया था.
2017 में योगी सरकार से पहले सपा और बसपा की सरकारें मुख्यतः: मुस्लिम वोट बैंक के सहारे बनी सरकारें मानी जाती थी और इसलिए इन सरकारों में तुष्टिकरण अपने चरम पर होता था. इन सरकारों के भ्रष्टाचार की कहानियां आज भी लोगों की जुबान पर हैं. कई मामलों की जांच चल रही है और कई मंत्री और अधिकारी सलाखों के पीछे हैं. नकल, भर्ती परीक्षाओं में धांधली और नियुक्तियों में अनियमितता आम बात थी. कानून व्यवस्था की हालत यह थी कि माफिया उद्योग अपने चरम पर था. पुलिस हमेशा अपने आप को सरकार के हिसाब से ढाल लेती है इसलिए सरकार के हिसाब से ही कार्य करती थी. तुष्टिकरण के कारण इन सरकारों के कार्यकाल मूर्तियों लगाने, हज हाउस बनवाने और कब्रिस्तान के अच्छे रखरखाव के लिए हमेशा याद किए जाते हैं यद्दपि इन्होने अच्छे कार्य भी किये होंगे .
इस परिपेक्ष में उत्तर प्रदेश की जनता की अपेक्षाएं योगी आदित्यनाथ से बिल्कुल अलग और बहुत ज्यादा थीं, जिन्हें पूरा करना उनके लिए बहुत बड़ी चुनौती थी. इस बीच उन लोगों की बेचैनी कुछ और ज्यादा बढ़ गई जो नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने से पहले ही परेशान थे. भारत के यह तथाकथित धर्मनिरपेक्ष, बुद्धिजीवी और महान सामाजिक क्रांतिवीर लगभग हर सार्वजनिक मंच, सोशल मीडिया और टीवी डिबेट में योगी को एक हिंदू अतिवादी और आपराधिक गतिविधियों में लिप्त व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत करने लगे. दुर्भाग्य से इसी समय गोरखपुर मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी के कारण बच्चों की मौत का मामला सुर्खियों में आ गया. योगी द्वारा छोड़ी गई गोरखपुर संसदीय सीट पर भाजपा का प्रत्याशी भी नहीं जीत सका. इस सबसे भाजपा केंद्रीय नेतृत्व भी चिंतित हो उठा. इन परेशानियों के बावजूद योगी अपने कार्य में पूरी लगन और ईमानदारी से डटे रहे. अपनी हिंदुत्ववादी छवि से हिले डुले बिना, विकास की गति को धीमा नहीं होने दिया और अपने काम के केंद्र बिंदु में मानवीय दृष्टिकोण को प्रमुखता दी. भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस नीति, तुरंत निर्णय, उनकी ईमानदार और बेदाग छवि ने लोगों को बहुत प्रभावित किया.
इसका परिणाम यह हुआ कि निकाय चुनाव में भाजपा को जबरदस्त सफलता मिली. 2019 के लोकसभा चुनाव में सपा, बसपा और लोकदल के गठबंधन के बावजूद भाजपा 62 सीटें प्राप्त करने में कामयाब रही और इस तरह योगी ने प्रशासन और संगठन पर अपनी क्षमता की छाप छोड़ी. सरकार के कार्यकाल का तीसरा साल कोविड-19 के बीच गुजरा जो किसी अग्निपरीक्षा से कम नहीं था. दिल्ली सरकार द्वारा सुनियोजित तरीके से श्रमिकों को डीटीसी की बसों में बैठा कर उत्तर प्रदेश की सीमा पर छोड़ देने के कारण स्थिति विकराल हो गई थी लेकिन योगी ने इस समस्या का समुचित समाधान किया और हजारों बसों द्वारा न केवल उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को उनके घर तक पहुंचाया बल्कि बिहार के भी श्रमिकों को बिहार सीमा तक पहुंचाने का कार्य किया. इसके साथ ही कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी प्रियंका वाड्रा की बस स्टंट की राजनीति को भी विफल कर दिया. कोटा में पढ़ रहे प्रदेश के बच्चों को भी सकुशल घर पहुंचाने का सराहनीय कार्य किया गया. बाहर से आए श्रमिकों और कामगारों के लिए ठहरने खाने-पीने और वित्तीय सहायता के यथासंभव उपाय किए गए.
24 करोड़ की जनसंख्या वाले प्रदेश में सरकार के कोरोना प्रबंधन ने लोगों का दिल जीत लिया. उत्तर प्रदेश के कोरोना निपटने के तरीकों की प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी की है. प्रधानमंत्री ने भी कई अवसरों पर इस मामले में योगी की तारीफ की है.
विभिन्न आंदोलनों में सार्वजनिक संपत्ति को हुई क्षति की वसूली के नवोन्मेषी तरीके की सभी जगह सराहना हुई, दिल्ली सहित अन्य राज्य भी इस तरीके पर अमल करने की कोशिश कर रहे हैं और इस वजह से उत्तर प्रदेश जैसे विशाल प्रदेश में संशोधित नागरिकता कानून के नाम पर फैलाये जा रहे उपद्रवों का आंशिक असर हुआ.
योगी की “ठोंक दो” की नीति की पूरे विश्व में चर्चा का विषय बन गई, क्योंकि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष, शांतिदूत और आंदोलन जी की वर्ग ने इसका बहुत दुष्प्रचार किया लेकिन सबसे मजेदार बात यह है कि प्रदेश में और प्रदेश के बाहर उच्च शिक्षित और विद्वान लोगों ने भी व्यक्तिगत बातचीत में इसकी तारीफ की.
इस नीति के कारण ही अपराधियों के हौसले पस्त हुए और कई तो स्वयं ही जेल चले गए. माफियाओं के विरुद्ध चलाये गये अभियान की पूरे भारतवर्ष में सराहना हो रही है और सार्वजनिक भूमि पर कब्जा करके बनाई गई भू माफियाओं की संपत्ति पर पर बुलडोजर चलवा कर जमींदोज कर देना लोगों में सरकार के साहस और प्रदेश के कानून और व्यवस्था के प्रति विश्वास स्थापित करता है. सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इन कार्यों की वजह से योगी को प्रदेश की राजनीति का नायक बना दिया है. आज लोगों की धारणा है कि मोदी थका थका कर निपटा देते हैं और योगी दौड़ा-दौड़ा कर निपटा देते हैं. योगी मोदी ही की तरह सोशल मीडिया के उभरते हुए महानायक हैं और इस कारण लोगों ने मोदी के बाद योगी के प्रधानमंत्री बनने की कामना करनी शुरू कर दी है, यद्यपि यह भाजपा का आंतरिक मामला है और अभी लोकसभा चुनाव भी बहुत दूर हैं और मोदी के पास समय भी है. योगी आज मोदी और अमित शाह के बाद भाजपा के तीसरे सबसे बड़े स्टार प्रचारक हैं और हर राज्य के चुनाव में उनकी बेहद मांग रहती है. यह सब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में इन पिछले 4 सालों में बनी हुई उनकी छवि और लोकप्रियता के कारण ही है. इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि वह देश के श्रेष्ठतम मुख्यमंत्रियों में से एक हैं और कम से कम भाजपा शासित राज्यों के लिए रोल मॉडल है.
उत्तर प्रदेश की राजनीति भी ऐसे काल खंड से गुजर रही है जिसमें लोगों ने पूर्व मुख्यमंत्रियों का अहंकार बहुत नजदीक से देखा है. बसपा प्रमुख मायावती जब मुख्यमंत्री होती हैं तभी वह प्रदेश के किसी सदन की सदस्यता ग्रहण करती है अन्यथा राज्यसभा या लोकसभा में बैठना पसंद करती हैं. सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव भी उन्हीं के पद चिन्हों पर चलते हुए मुख्यमंत्री न रहने पर लोकसभा के सदस्य हैं. इन दोनों लोगों की विशेषता यह है कि वह अपने अलावा किसी को भी मुख्यमंत्री पद के काबिल नहीं समझते और इसलिए बार-बार सिर्फ अपनी सरकार के कार्यकाल का गुणगान करते रहते हैं. राजनीति शतरंज के खेल की तरह होती है और हमेशा सीधी दिशा में नहीं चलती. आज अगर विपक्ष पर निगाह डालें तो ऐसा लगता है कि योगी ने विपक्ष को भी “ठोक दिया है”.
कांग्रेस जिसका कोई खास अस्तित्व प्रदेश में नहीं बचा है और दूर-दूर तक कोई भविष्य भी नजर नहीं आता है लेकिन उसने योगी के विरुद्ध प्रियंका वाड्रा को मुख्यमंत्री का चेहरा बना कर उतार दिया है, जो किसी न किसी स्टंट द्वारा सुर्खियों में बने रहने का अवसर ढूंढती रहती हैं. विशेष बात यह है कि मीडिया में उनकी चर्चा अखिलेश यादव और मायावती से ज्यादा होती है. आसानी से समझा जा सकता है कि अगले चुनाव में योगी के समक्ष विपक्ष कोई बड़ी चुनौती नहीं है.
सरकार की उपलब्धियों में माफियाओं के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही, महिला सुरक्षा, कानून व्यवस्था में सुधार, गौ संरक्षण, उद्योगों और निवेश के अनुकूल वातावरण, शिक्षा और रोजगार में उत्तरोत्तर सुधार, मूलभूत संरचना का तेजी से विकास और अर्थव्यवस्था में गति, अयोध्या, प्रयागराज और वाराणसी में अनेक विश्व स्तरीय आयोजन आदि अनेक कारण हो सकते हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है - अनुभूति (परसेप्शन), यानी लोगों की प्रदेश के बारे में धारणा बदल रही है.
मेरे विचार से यह बहुत बड़ी उपलब्धि है और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है.
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