नवम् दुर्गा : श्री सिद्धिदात्री
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि।
सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिनी॥
श्री दुर्गा का नवम् रूप
श्री सिद्धिदात्री हैं। ये सब प्रकार की सिद्धियों की दाता हैं, इसीलिए ये सिद्धिदात्री कहलाती हैं। नवरात्रि के नवम दिन इनकी पूजा और आराधना
की जाती है।
मां सिद्धिदात्री का
स्वरूप बहुत सौम्य और आकर्षक है. उनकी चार भुजाएं हैं. मां ने अपने एक हाथ में चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और एक हाथ में शंख धारण
किया हुआ है. देवी सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है.
नवरात्रि के नौवें दिन मां
सिद्धिदात्री की
पूजा की जाती है. इस दिन को नवमी भी कहते हैं. मान्यता है
कि मां दुर्गा का यह स्वरूप सभी प्रकार की सिद्धियों को देने वाला है. कहते हैं
कि सिद्धिदात्री की आराधना करने से सभी प्रकार का ज्ञान आसानी से मिल जाता है. साथ
ही उनकी उपासना करने वालों को कभी कोई कष्ट नहीं होता है. नवमी के दिन कन्या पूजन करना पुण्यकारी माना गया है. चैत्र नवरात्र के
अंतिम दिन ही राम नवमी भी मनाई जाती है.
इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने जन्म
लिया था.
कौन हैं मां
सिद्धिदात्री
पौराणिक मान्यताओं के
अनुसार भगवान शिव ने सिद्धिदात्री की कृपा से ही अनेकों सिद्धियां प्राप्त की थीं.
मां की कृपा से ही शिवजी का आधा शरीर देवी का हुआ था. इसी कारण शिव 'अर्द्धनारीश्वर' नाम से प्रसिद्ध हुए. मार्कण्डेय पुराण के
अनुसार अणिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, महिमा, ईशित्व और वाशित्व ये आठ सिद्धियां हैं. मान्यता
है कि अगर भक्त सच्चे मन से मां सिद्धिदात्री की पूजा करें तो ये सभी सिद्धियां
मिल सकती हैं.
मां सिद्धिदात्री
का स्वरूप
मां सिद्धिदात्री का
स्वरूप बहुत सौम्य और आकर्षक है. उनकी चार भुजाएं हैं. मां ने अपने एक हाथ में
चक्र, एक हाथ में गदा, एक हाथ में कमल का फूल और
एक हाथ में शंख धारण किया हुआ है. देवी सिद्धिदात्री का वाहन सिंह है.
मां सिद्धिदात्री
का पसंदीदा रंग और भोग
मान्यता है कि मां
सिद्धिदात्री को लाल और पीला रंग पसंद है. उनका मनपसंद भोग नारियल, खीर, नैवेद्य और पंचामृत हैं.
मां
सिद्धिदात्री की पूजा विधि
- नवरात्रि के नौवें दिन यानी कि नवमी
को सबसे पहले स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
- अब घर के मंदिर में एक चौकी पर कपड़ा
बिछाकर मां की फोटो या प्रतिमा स्थापित करें.
- इसके बाद की प्रतिमा के सामने दीपक
जलाएं.
- अब फूल लेकर हाथ जोड़ें और मां का ध्यान
करें.
- मां को माला पहनाएं, लाल चुनरी चढ़ाएं और श्रृंगार पिटारी अर्पित
करें.
- अब मां को फूल, फूल और नैवेद्य चढ़ाएं.
- अब उनकी आरती उतारें.
- मां को खीर और नारियल का भोग लगाएं.
- नवमी के दिन हवन करना शुभ माना
जाता है.
- इस दिन कन्या पूजन भी किया जाता है.
- अंत में घर के सदस्यों और पास-पड़ोस
में प्रसाद बांटा जाता है.
हवन की विधि
जो लोग रोज हवन करते है वह केवल सिद्धिदात्री मां का हवं करें अन्यथा अंतिम दिन होने के कारण आज सभी नवरूपों को हव्य देनी चाहिए .
हवन से पहले मां सिद्धिदात्री का ध्यान करें
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
कमलस्थितां चतुर्भुजा सिद्धीदात्री यशस्वनीम्॥
स्वर्णावर्णा निर्वाणचक्रस्थितां नवम् दुर्गा त्रिनेत्राम्।
शख, चक्र, गदा, पदम, धरां सिद्धीदात्री भजेम्॥
पटाम्बर, परिधानां मृदुहास्या नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रफुल्ल वदना पल्लवाधरां कातं कपोला पीनपयोधराम्।
कमनीयां लावण्यां श्रीणकटि निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
मां सिद्धिदात्री का स्तोत्र पाठ करें
कंचनाभा शखचक्रगदापद्मधरा मुकुटोज्वलो।
स्मेरमुखी शिवपत्नी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकारं भूषिता।
नलिस्थितां नलनार्क्षी सिद्धीदात्री नमोअस्तुते॥
परमानंदमयी देवी परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति, सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
विश्वकर्ती, विश्वभती, विश्वहर्ती, विश्वप्रीता।
विश्व वार्चिता विश्वातीता सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
भुक्तिमुक्तिकारिणी भक्तकष्टनिवारिणी।
भव सागर तारिणी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
धर्मार्थकाम प्रदायिनी महामोह विनाशिनी।
मोक्षदायिनी सिद्धीदायिनी सिद्धिदात्री नमोअस्तुते॥
हवन कुंड को पवित्र करके पूजा करें. लकड़ी रखकर घी और कर्पूर अर्पण करें. अग्नि देव का आह्वन करें और जब अग्नि प्रज्वलित हो जाए तो निम्न तरीके से हव्य डालें .
सिद्धगन्धर्वयक्षाद्यैरसुरैरमरैरपि। सेव्यमाना सदा भूयात् सिद्धिदा सिद्धिदायिन, नम: स्वाहा ,
इसके बाद मां के ३२ नामों का स्मरण करते हुए नमस्कार करे और हव्य दें
1. ओम ॐ दुर्गा
2. ओम दुर्गतिशमनी नम: स्वाह:
3. ओम
दुर्गाद्विनिवारिणी नम: स्वाह:
4. ओमदुर्गमच्छेदनी नम: स्वाह:
5. ओम दुर्गसाधिनी नम: स्वाह:
6. ओम दुर्गनाशिनी नम: स्वाह:
7. ओम
दुर्गतोद्धारिणी नम: स्वाह:
8. ओम
दुर्गनिहन्त्री नम: स्वाह:
9. ओम दुर्गमापहा नम: स्वाह:
10. ओम दुर्गमज्ञानदा
नम: स्वाह:
11. ओम
दुर्गदैत्यलोकदवानला नम: स्वाह:
12. ओम दुर्गमा नम: स्वाह:
13. ओम दुर्गमालोकानम: स्वाह:
14.ओम दुर्गमात्मस्वरुपिणीनम: स्वाह:
15. ओम दुर्गमार्गप्रदानम: स्वाह:
16. ओम दुर्गम विद्यानम: स्वाह:
17. ओम दुर्गमाश्रितानम: स्वाह:
18. ॐ दुर्गमज्ञान
संस्थानानम: स्वाह:
19. ॐ दुर्गमध्यान
भासिनीनम: स्वाह:
20. ॐ दुर्गमोहानम: स्वाह:
21.ॐ दुर्गमगानम: स्वाह:
22. ॐ दुर्गमार्थस्वरुपिणीनम: स्वाह:
23. ॐ दुर्गमासुर
संहंत्रिनम: स्वाह:
24. ॐ दुर्गमायुध
धारिणीनम: स्वाह:
25.ॐ दुर्गमांगीनम: स्वाह:
26. ॐ दुर्गमतानम: स्वाह:
27.ॐ दुर्गम्यानम: स्वाह:
28. ॐ दुर्गमेश्वरीनम: स्वाह:
29. ॐ दुर्गभीमानम: स्वाह:
30. ॐ दुर्गभामानम: स्वाह:
31. ॐ दुर्गमो नम: स्वाह:
32. ॐ दुर्गोद्धारिणी
नम: स्वाह:
मां सिद्धिदात्री के १८ शक्तियों के याद करते हुए उन्हें नमस्कार कर हव्य दें
- ॐ अणिमा नम: स्वाह:
- ॐ महिमा नम: स्वाह:
- ॐ गरिमा नम: स्वाह:
- ॐ लघिमा नम: स्वाह:
- ॐ प्राप्ति नम: स्वाह:
- ॐ प्राकाम्य नम: स्वाह:
- ॐ ईशित्व नम: स्वाह:
- ॐ वशित्व नम: स्वाह:
- ॐ सर्वकामावसायिता नम: स्वाह:
- ॐ सर्वज्ञत्व नम: स्वाह:
- ॐ दूरश्रवण नम: स्वाह:
- ॐ परकायप्रवेशन नम: स्वाह:
- ॐ वाक्सिद्धि नम: स्वाह:
- ॐ कल्पवृक्षत्व नम: स्वाह:
- ॐ सृष्टि नम: स्वाह:
- ॐ संहारकरणसामर्थ्य नम: स्वाह:
- ॐ अमरत्व नम: स्वाह:
- ॐ सर्वन्यायकत्व नम: स्वाह:
माँ के 108 नाम का जाप करते हुए हव्य दें
1. 1. ॐ सती-नम: स्वाह:
2.
ॐ साध्वी-नम: स्वाह:
3.
ॐ भवप्रीता-नम: स्वाह:
4.
ॐ भवानी-नम: स्वाह:
5.
ॐ भवमोचनी-नम: स्वाह:
6.
ॐ आर्या-नम: स्वाह:
7.
ॐ दुर्गा-नम: स्वाह:
8.
ॐ जया-नम: स्वाह:
9.
ॐ आद्या-नम: स्वाह:
10.
ॐ त्रिनेत्रा-नम: स्वाह:
11.
ॐ शूलधारिणी-नम: स्वाह:
12.
ॐ पिनाकधारिणी-नम: स्वाह:
13.
ॐ चित्रा-नम: स्वाह:
14.
ॐ चंद्रघंटा-नम: स्वाह:
15.
ॐ महातपा-नम: स्वाह:
16.
ॐ मन: नम: स्वाह:
17.
ॐ बुद्धि-नम: स्वाह:
18.
ॐ अहंकारा-नम: स्वाह:
19.
ॐ चित्तरूपा-नम: स्वाह:
20.
ॐ चिता-नम: स्वाह:
21.
ॐ चिति-नम: स्वाह:
22.
ॐ सर्वमंत्रमयी-नम: स्वाह:
23.
ॐ सत्ता-नम: स्वाह:
24.
ॐ सत्यानंदस्वरुपिणी-नम: स्वाह:
25.
ॐ अनंता-नम: स्वाह:
26.
ॐ भाविनी-नम: स्वाह:
27.
ॐ भव्या-नम: स्वाह:
28.
ॐ भाव्या-नम: स्वाह:
29.
ॐ अभव्या-नम: स्वाह:
30.
ॐ सदागति-नम: स्वाह:
31.
ॐ शाम्भवी-नम: स्वाह:
32.
ॐ देवमाता-नम: स्वाह:
33.
ॐ चिंता-नम: स्वाह:
34.
ॐ रत्नप्रिया-नम: स्वाह:
35.
ॐ सर्वविद्या-नम: स्वाह:
36.
ॐ दक्षकन्या-नम: स्वाह:
37.
ॐ दक्षयज्ञविनाशिनी-नम: स्वाह:
38.
ॐ अपर्णा-नम: स्वाह:
39.
ॐ अनेकवर्णा-नम: स्वाह:
40.
ॐ पाटला-नम: स्वाह:
41.
ॐ पाटलावती-नम: स्वाह:
42.
ॐ पट्टाम्बरपरिधाना-नम: स्वाह:
43.
ॐ कलमंजरीरंजिनी-नम: स्वाह:
44.
ॐ अमेयविक्रमा-नम: स्वाह:
45.
ॐ क्रूरा-नम: स्वाह:
46.
ॐ सुन्दरी-नम: स्वाह:
47.
ॐ सुरसुन्दरी-नम: स्वाह:
48.
ॐ वनदुर्गा-नम: स्वाह:
49.
ॐ मातंगी-नम: स्वाह:
50.
ॐ मतंगमुनिपूजिता-नम: स्वाह:
51.
ॐ ब्राह्मी-नम: स्वाह:
52.
ॐ माहेश्वरी-नम: स्वाह:
53.
ॐ एंद्री-नम: स्वाह:
54.
ॐ कौमारी-नम: स्वाह:
55.
ॐ वैष्णवी-नम: स्वाह:
56.
ॐ चामुंडा-नम: स्वाह:
57.
ॐ वाराही-नम: स्वाह:
58.
ॐ लक्ष्मी-नम: स्वाह:
59.
ॐ पुरुषाकृति-नम: स्वाह:
60.
ॐ विमला-नम: स्वाह:
61.
ॐ उत्कर्षिनी-नम: स्वाह:
62.
ॐ ज्ञाना-नम: स्वाह:
63.
ॐ क्रिया-नम: स्वाह:
64.
ॐ नित्या-नम: स्वाह:
65.
ॐ बुद्धिदा-नम: स्वाह:
66.
ॐ बहुला-नम: स्वाह:
67.
ॐ बहुलप्रिया-नम: स्वाह:
68.
ॐ सर्ववाहनवाहना-नम: स्वाह:
69.
ॐ निशुंभशुंभहननी-नम: स्वाह:
70.
ॐ महिषासुरमर्दिनी-नम: स्वाह:
71.
ॐ मधुकैटभहंत्री-नम: स्वाह:
72.
ॐ चंडमुंडविनाशिनी-नम: स्वाह:
73.
ॐ सर्वसुरविनाशा-नम: स्वाह:
74.
ॐ सर्वदानवघातिनी-नम: स्वाह:
75.
ॐ सर्वशास्त्रमयी-नम: स्वाह:
76.
ॐ सत्या-नम: स्वाह:
77.
ॐ सर्वास्त्रधारिनी-नम: स्वाह:
78.
ॐ अनेकशस्त्रहस्ता-नम: स्वाह:
79.
ॐ अनेकास्त्रधारिनी-नम: स्वाह:
80.
ॐ कुमारी-नम: स्वाह:
81.
ॐ एककन्या-नम: स्वाह:
82.
ॐ कैशोरी-नम: स्वाह:
83.
ॐ युवती-नम: स्वाह:
84.
ॐ यति-नम: स्वाह:
85.
ॐ अप्रौढ़ा-नम: स्वाह:
86.
ॐ प्रौढ़ा-नम: स्वाह:
87.
ॐ वृद्धमाता-नम: स्वाह:
88.
ॐ बलप्रदा-नम: स्वाह:
89.
ॐ महोदरी-नम: स्वाह:
90.
ॐ मुक्तकेशी-नम: स्वाह:
91.
ॐ घोररूपा-नम: स्वाह:
92.
ॐ महाबला-नम: स्वाह:
93.
ॐ अग्निज्वाला-नम: स्वाह:
94.
ॐ रौद्रमुखी-नम: स्वाह:
95.
ॐ कालरात्रि-नम: स्वाह:
96.
ॐ तपस्विनी-नम: स्वाह:
97.
ॐ नारायणी-नम: स्वाह:
98.
ॐ भद्रकाली-नम: स्वाह:
99.
ॐ विष्णुमाया-नम: स्वाह:
100.
ॐ जलोदरी-नम: स्वाह:
101.
ॐ शिवदुती-नम: स्वाह:
102.
ॐ कराली-नम: स्वाह:
103.
ॐ अनंता-नम: स्वाह:
104.
ॐ परमेश्वरी-नम: स्वाह:
105.
ॐ कात्यायनी-नम: स्वाह:
106.
ॐ सावित्री-नम: स्वाह:
107.
ॐ प्रत्यक्षा-नम: स्वाह:
108.
ॐ ब्रह्मावादिनी नम: स्वाह:
इस प्रकार निम्न मंत्रों को पढ़ते हुए प्रत्येक मंत्र के बाद स्वाहा बोलें और हवन में हव्य दें
(1. सामूहिक कल्याण के लिए मन्त्र)
देव्या यया ततमिदं
जगदात्मशक्त्या निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूत्र्या।
तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां
भकत्या नता: स्म विदधातु शुभानि सा न: ।। स्वाहा:
2. विश्व के अशुभ तथा भय का विनाश करने के लिए
यस्या: प्रभावमतुलं
भगवाननन्तो ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च। सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय नाशाय
चाशुभभयस्य मतिं करोतु।। स्वाहा:
3. विश्व की रक्षा के लिए
या श्री: स्वयं
सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मी:
पापात्मनां कृतधियां
हृदयेषु बुद्धि:।
श्रद्धा सतां
कुलजनप्रभवस्य लज्जा
तां त्वां नता: स्म
परिपालय देवि विश्वम्॥
4. विश्व के अभ्युदय के लिए
विश्वेश्वरि! त्वं
परिपासि विश्वं
विश्वात्मिका धारयसीह
विश्वम्।
विश्वेशवन्धा भवती
भवन्ति
विश्वाश्चया ये त्वयि
भक्तिनम्राः॥
5. विश्वव्यापी विपत्तियों के नाश के लिए
देवि! प्रपन्नार्ति
हरे! प्रसीद
प्रसीद
मातर्जगतोऽखिलस्य।
प्रसीद विश्वेश्वरि!
पाहि विश्वं
त्वमीश्वरी देवि!
चराऽचरस्य॥2॥
6. विश्व के पाप ताप निवारण के लिए
देवि प्रसीद परिपालय
नोऽरिभीतेर्नित्यं यथासुरवधादधुनैव सद्य:।
पापानि सर्वजगतां
प्रशमं नयाशु उत्पातपाकजनितांश्च महोपसर्गान्॥
7. विपत्ति नाश के लिए
शरणागत दीनार्त परित्राण
परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणी
नमोऽस्तु ते॥
8. विपत्ति नाश और सुख की प्राप्ति के लिए
करोतु सा न:
शुभहेतुरीश्वरी
शुभानि
भद्राण्यभिहन्तु चापद:।
9. भय नाश के लिए
सर्वस्वरूपे सर्वेशे
सर्वशक्ति समन्विते।
भयेभ्याहि नो देवि
दुर्गे देवि नमोऽस्तु ते॥
एतत्ते वदनं सौम्यं
लोचनत्रयभूषितम्।
पातु न: सर्वभीतिभ्य:
कात्यायनि नमोऽस्तु ते॥
ज्वालाकरालमत्युग्रमशेषासुरसूदनम्।
त्रिशूलं पातु नो
भीतेर्भद्रकालि नमोऽस्तु ते॥ ”
10. पापनाश के लिए
“हिनस्ति दैत्यतेजांसि
स्वनेनापूर्य या जगत्।
सा घण्टा पातु नो देवि
पापेभ्योऽन: सुतानिव॥“
11. रोग नाश के लिए
“रोगानशेषानपहंसि
तुष्टा रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान्।
त्वामाश्रितानां न
विपन्नराणां त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति॥”
12. महामारी नाश के लिए
जयन्ती मङ्गला काली
भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा
धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते॥
13. आरोग्य और सौभाग्य की प्राप्ति के लिए
देहि सौभाग्यमारोग्यं
देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि
यशो देहि द्विषो जहि॥
14. सुलक्षणा पत्नी की प्राप्ति के लिए
पत्नीं मनोरमां देहि
मनोवृत्तानुसारिणीम्।
तारिणीं
दुर्गसंसारसागरस्य कुलोद्भवाम्॥
15. बाधा शांति के लिए
“सर्वाबाधाप्रशमनं
त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया
कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥”
16. सर्व विधि अभ्युदय के लिए
ते सम्मता जनपदेषु
धनानि तेषां तेषां यशांसि न च सीदति धर्मवर्ग:।
धन्यास्त एव
निभृतात्मजभृत्यदारा येषां सदाभ्युदयदा भवती प्रसन्ना॥
17. दारिद्र दुखादि नाश के लिए
“दुर्गे स्मृता हरसि
भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता
मतिमतीव शुभां ददासि।
दारिद्र्यदु:खभयहारिणि
का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदाऽऽर्द्रचित्ता॥”
18. रक्षा पाने के लिए
शूलेन पाहि नो देवि
पाहि खड्गेन चाम्बिके।
घण्टास्वनेन न: पाहि
चापज्यानि:स्वनेन च॥
19. समस्त विद्याओं की और समस्त स्त्रियों में मात्र अभाव की प्राप्ति के लिए
“विद्या: समस्तास्तव
देवि भेदा: स्त्रिय: समस्ता: सकला जगत्सु।
त्वयैकया
पूरितमम्बयैतत् का ते स्तुति: स्तव्यपरा परोक्ति :॥”
20. सर्व प्रकार के कल्याण के लिए
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये
शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके
गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”
21. शक्ति प्राप्ति के लिए
सृष्टिस्थितिविनाशानां
शक्ति भूते सनातनि।
गुणाश्रये गुणमये
नारायणि नमोऽस्तु ते॥
22. प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए
प्रणतानां प्रसीद त्वं
देवि विश्वार्तिहारिणि।
त्रैलोक्यवासिनामीडये
लोकानां वरदा भव॥
23. विविध उपद्रवों से बचने के लिए
रक्षांसि
यत्रोग्रविषाश्च नागा यत्रारयो दस्युबलानि यत्र।
दावानलो यत्र
तथाब्धिमध्ये तत्र स्थिता त्वं परिपासि विश्वम्॥
24. बाधा मुक्त होकर धन पुत्र आदि की
प्राप्ति के लिए
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो
धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन
भविष्यति न संशय:॥”
25. भुक्ति मुक्ति की प्राप्ति के लिए
विधेहि देवि कल्याणं
विधेहि परमां श्रियम्।
रुपं देहि जयं देहि
यशो देहि द्विषो जहि॥
26. पापनाश तथा भक्ति की प्राप्ति के
लिए
नतेभ्यः सर्वदा भक्तया
चण्डिके दुरितापहे।
रुपं देहि जयं देहि
यशो देहि द्विषो जहि.
27. स्वर्ग और मोक्ष की प्राप्ति के लिए
सर्व भूता यदा देवी
स्वर्ग मुक्ति प्रदायिनी,
त्वं स्तुता स्तुतये
का व़ा भवन्तु पर्मोक्तय:
28. स्वर्ग और मुक्ति के लिए
सर्वस्य बुद्धि रूपेण जनस्य
ह्रदि संस्थिते,
स्वर्गापवगर्दे देवि
नारायणिनमोस्तुते
29. मोक्ष की प्राप्ति के लिए
त्वं वैष्णवी शक्तिर्नन्त्वीर्या
विश्वस्य बीजं परमासि माया,
सम्मोहितं देवि
समस्तमेतत त्वं वै प्रसन्ना भुवि मुक्ति हेतु:
30. स्वप्न में सिद्धि असिद्धि जाने के लिए
दुर्गे देवि नमस्तुभ्यम
सर्व कामार्थ साधिके
मम सिद्धिम सिद्धिम व़ा
स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय.
मां दुर्गा के मंत्र
इन मंत्रों को पढ़ कर प्रत्येक मंत्र के बाद स्वाह: बोलते हुए हवन कुंड में हव्य दें।
नमो देव्यै महादेव्यै
शिवायै सततं नम:।
नम: प्रकृत्यै भदायै
नियता: प्रणता: स्मताम्।१।
या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मी
रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै ! नमस्तस्यै
! नमस्तस्यै नमो नम:।२।
या देवी सर्वभूतेषु
बुद्धिरूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै! नमस्तस्यै
! नमस्तस्यै नमो नम:।३।
या देवी सर्वभूतेषु मातृ
रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै! नमस्तस्यै!
नमस्तस्यै नमो नम:।४।
जयन्ती मङ्गला काली
भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा
धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तु ते ।5।
देहि सौभाग्यमारोग्यं
देहि मे परमं सुखम्।
रूपं देहि जयं देहि
यशो देहि द्विषो जहि॥६
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये
शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके
गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥”७
सर्वाबाधाविनिर्मुक्तो
धनधान्यसुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन
भविष्यति न संशय:॥”८
शरणागत दीनार्त
परित्राण परायणे।
सर्वस्यार्तिहरे देवि
नारायणी नमोऽस्तु ते॥९
“सर्वाबाधाप्रशमनं
त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि।
एवमेव त्वया
कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्॥१०
इस प्रकार हवन को माँ दुर्गा का नाम लेते हुए अंतिम हवी दें और दुर्गा चालीसा का पाठ करें और / या दुर्गा जी की आरती करें .
दुर्गा चालीसा
नमो नमो दुर्गे सुख करनी।
नमो नमो दुर्गे दुःख हरनी॥
निरंकार है ज्योति तुम्हारी।
तिहूं लोक फैली उजियारी॥
शशि ललाट मुख महाविशाला।
नेत्र लाल भृकुटि विकराला॥
रूप मातु को अधिक सुहावे।
दरश करत जन अति सुख पावे॥
तुम संसार शक्ति लै कीना।
पालन हेतु अन्न धन दीना॥
अन्नपूर्णा हुई जग पाला।
तुम ही आदि सुन्दरी बाला॥
प्रलयकाल सब नाशन हारी।
तुम गौरी शिवशंकर प्यारी॥
शिव योगी तुम्हरे गुण गावें।
ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें॥
रूप सरस्वती को तुम धारा।
दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा॥
धरयो रूप नरसिंह को अम्बा।
परगट भई फाड़कर खम्बा॥
रक्षा करि प्रह्लाद बचायो।
हिरण्याक्ष को स्वर्ग पठायो॥
लक्ष्मी रूप धरो जग माहीं।
श्री नारायण अंग समाहीं॥
क्षीरसिन्धु में करत विलासा।
दयासिन्धु दीजै मन आसा॥
हिंगलाज में तुम्हीं भवानी।
महिमा अमित न जात बखानी॥
मातंगी अरु धूमावति माता।
भुवनेश्वरी बगला सुख दाता॥
श्री भैरव तारा जग तारिणी।
छिन्न भाल भव दुःख निवारिणी॥
केहरि वाहन सोह भवानी।
लांगुर वीर चलत अगवानी॥
कर में खप्पर खड्ग विराजै।
जाको देख काल डर भाजै॥
सोहै अस्त्र और त्रिशूला।
जाते उठत शत्रु हिय शूला॥
नगरकोट में तुम्हीं विराजत।
तिहुंलोक में डंका बाजत॥
शुंभ निशुंभ दानव तुम मारे।
रक्तबीज शंखन संहारे॥
महिषासुर नृप अति अभिमानी।
जेहि अघ भार मही अकुलानी॥
रूप कराल कालिका धारा।
सेन सहित तुम तिहि संहारा॥
परी गाढ़ संतन पर जब जब।
भई सहाय मातु तुम तब तब॥
अमरपुरी अरु बासव लोका।
तब महिमा सब रहें अशोका॥
ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी।
तुम्हें सदा पूजें नर-नारी॥
प्रेम भक्ति से जो यश गावें।
दुःख दारिद्र निकट नहिं आवें॥
ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई।
जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई॥
जोगी सुर मुनि कहत पुकारी।
योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी॥
शंकर आचारज तप कीनो।
काम अरु क्रोध जीति सब लीनो॥
निशिदिन ध्यान धरो शंकर को।
काहु काल नहिं सुमिरो तुमको॥
शक्ति रूप का मरम न पायो।
शक्ति गई तब मन पछितायो॥
शरणागत हुई कीर्ति बखानी।
जय जय जय जगदम्ब भवानी॥
भई प्रसन्न आदि जगदम्बा।
दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा॥
मोको मातु कष्ट अति घेरो।
तुम बिन कौन हरै दुःख मेरो॥
आशा तृष्णा निपट सतावें।
रिपू मुरख मौही डरपावे॥
शत्रु नाश कीजै महारानी।
सुमिरौं इकचित तुम्हें भवानी॥
करो कृपा हे मातु दयाला।
ऋद्धि-सिद्धि दै करहु निहाला।
जब लगि जिऊं दया फल पाऊं ।
तुम्हरो यश मैं सदा सुनाऊं ॥
दुर्गा चालीसा जो कोई गावै।
सब सुख भोग परमपद पावै॥
देवीदास शरण निज जानी।
करहु कृपा जगदम्ब भवानी॥
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मां
दुर्गा जी की आरती
जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा
गौरी ।
तुमको निशिदिन ध्यावत हरि
ब्रह्मा शिवरी ॥ओंम जय अम्बे गौरी
॥
मांग सिंदूर बिराजत टीको
मृगमद को।
उज्ज्वल से दोउ नैना
चंद्रबदन नीको ॥ओंम जय अम्बे गौरी ॥
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर
राजै।
रक्तपुष्प गल माला कंठन
पर साजै ॥ओंम जय अम्बे गौरी ॥
केहरि वाहन राजत खड्ग
खप्परधारी।
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके
दुःखहारी ॥ओंम जय अम्बे गौरी ॥
कानन कुण्डल शोभित
नासाग्रे मोती।
कोटिक चंद्र दिवाकर राजत
समज्योति ॥ओंम जय अम्बे गौरी ॥
शुम्भ निशुम्भ बिडारे
महिषासुर घाती।
धूम्र विलोचन नैना
निशिदिन मदमाती ॥ओंम जय अम्बे गौरी ॥
चौंसठ योगिनि मंगल गावैं
नृत्य करत भैरू।
बाजत ताल मृदंगा अरू बाजत
डमरू ॥ओंम जय अम्बे गौरी ॥
भुजा चार अति शोभित खड्ग
खप्परधारी।
मनवांछित फल पावत सेवत नर
नारी ॥ओंम जय अम्बे गौरी ॥
कंचन थाल विराजत अगर कपूर
बाती।
श्री मालकेतु में राजत
कोटि रतन ज्योति ॥ओंम जय अम्बे गौरी ॥
श्री अम्बेजी की आरती जो
कोई नर गावै।
कहत शिवानंद स्वामी
सुख-सम्पत्ति पावै ॥ओंम जय अम्बे गौरी ॥
आरती (दो )
जगजननी जय !जय!! (माँ !जगजननी जय ! जय !! )
भयहारिणी, भवतारिणी ,भवभामिनि जय ! जय !!
माँ जग जननी जय जय …………
तू ही सत-चित-सुखमय शुद्ध ब्रह्मरूपा ।
सत्य सनातन सुंदर पर – शिव सुर-भूपा ।। माँ जग जननी
जय जय …………
आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी ।
अमल अनंत अगोचर अज आनंदराशि।। माँ जग जननी जय जय …………
अविकारी , अघहारी, अकल , कलाधारी ।
कर्ता विधि , भर्ता हरि , हर सँहारकारी ।। माँ
जग जननी जय जय …………
तू विधिवधू , रमा ,तू उमा , महामाया ।
मूल प्रकृति विद्या तू , तू। जननी ,जाया ।। माँ जग जननी
जय जय …………
राम , कृष्ण तू , सीता , व्रजरानी राधा ।
तू वाञ्छाकल्पद्रुम , हारिणी सब बाधा ।। माँ जग जननी जय जय …………
दश विद्या , नव दुर्गा , नानाशास्त्रकरा ।
अष्टमात्रका ,योगिनी , नव नव रूप धरा ।। माँ
जग जननी जय जय …………
तू परधामनिवासिनि , महाविलासिनी तू ।
तू ही श्मशानविहारिणि , ताण्डवलासिनि तू ।। माँ जग जननी जय जय …………
सुर – मुनि – मोहिनी सौम्या तू शोभा धारा ।
विवसन विकट -सरूपा , प्रलयमयी धारा ।। माँ जग जननी जय जय …………
तू ही स्नेह – सुधामयि, तू अति गरलमना ।
रत्नविभूषित तू ही , तू ही अस्थि- तना ।। माँ जग जननी जय
जय …………
मूलाधारनिवासिनी , इह – पर – सिद्धिप्रदे ।
कालातीता
काली , कमला तू वरदे ।। माँ
जग जननी जय जय …………
शक्ति शक्तिधर
तू ही नित्य अभेदमयी ।
भेदप्रदर्शिनि वाणी विमले ! वेदत्रयी ।। माँ जग जननी जय जय …………
हम अति दीन दुखी मा ! विपत – जाल घेरे ।
हैं कपूत अति कपटी , पर बालक तेरे ।। माँ जग जननी जय जय …………
निज स्वभाववश जननी ! दयादृष्टि कीजै ।
करुणा कर करुणामयि ! चरण – शरण दीजै ।।
माँ जग जननी जय जय , माँ जग जननी जय जय
या देवी सर्वभूतेषु
मां सिद्धिदात्री रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
अर्थ : हे मां! सर्वत्र
विराजमान और मां सिद्धिदात्री के रूप में प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूं । हे मां, मुझे अपनी कृपा का पात्र बनाओ।