खुद मरने की मन्नत मनाते हैं लोग,
हंसते हंसते भी रोते से रहते है लोग .
सूना घर है कोई रहने वाला नहीं ,
छत में रहने को कितने तरसते हैं लोग.
कोई अपना नहीं कोई सपना नहीं,
कितने अपने भी सपने से लगते हैं लोग.
फासले हैं बहुत फिर कितने करीब ,
कितने अपनो से दूरी बनाते हैं लोग .
क्यों ज़नाज़ा गया ? जानते हैं सभी,
फिर भी मरने से कितना डरते हैं लोग.
ऐ सितम अब शिव पर क्या भरोसा करे,
अपनी छाया से अक्सर डरते हैं लोग..
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- शिव प्रकाश मिश्र
मूल कृति जून १९८०
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हंसते हंसते भी रोते से रहते है लोग .
सूना घर है कोई रहने वाला नहीं ,
छत में रहने को कितने तरसते हैं लोग.
कोई अपना नहीं कोई सपना नहीं,
कितने अपने भी सपने से लगते हैं लोग.
फासले हैं बहुत फिर कितने करीब ,
कितने अपनो से दूरी बनाते हैं लोग .
क्यों ज़नाज़ा गया ? जानते हैं सभी,
फिर भी मरने से कितना डरते हैं लोग.
ऐ सितम अब शिव पर क्या भरोसा करे,
अपनी छाया से अक्सर डरते हैं लोग..
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- शिव प्रकाश मिश्र
मूल कृति जून १९८०
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