शनिवार, 11 सितंबर 2010

कैसे.. कैसे.. लोग

खुद मरने की मन्नत मनाते हैं लोग,
हंसते हंसते भी रोते से रहते है लोग .

सूना घर     है   कोई रहने वाला नहीं  ,
छत में रहने को कितने तरसते हैं लोग.

कोई      अपना नहीं कोई     सपना नहीं,
कितने अपने भी सपने से लगते हैं लोग.

फासले हैं   बहुत फिर    कितने    करीब ,
कितने अपनो    से दूरी बनाते   हैं लोग .

क्यों ज़नाज़ा गया ? जानते हैं सभी,
फिर भी मरने से कितना डरते हैं लोग.

ऐ सितम अब शिव पर क्या भरोसा करे,
अपनी छाया से अक्सर डरते हैं लोग..
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             - शिव प्रकाश मिश्र
                मूल कृति जून १९८०
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