जिन्दगी के मोड़ ले आये कहाँ पर,
मै सुबह से शाम तक चलता गया.
कल्पना का इन्द्र धनुषी मधुर उपवन,
कर्मनाशा की लहर को छू गया..
आग सी तपती छुधा की रेत पर,
कामना का बीज कोई बो गया.
आस्था के चाँद सीमित बिदुओं में,
सत्य खुद का ही बबंडर बन गया..
प्रेम के बंधन बंधे है रबर जैसे,
पास होकर दूर कोई कर गया..
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शिव प्रकाश मिश्र
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मै सुबह से शाम तक चलता गया.
कल्पना का इन्द्र धनुषी मधुर उपवन,
कर्मनाशा की लहर को छू गया..
आग सी तपती छुधा की रेत पर,
कामना का बीज कोई बो गया.
आस्था के चाँद सीमित बिदुओं में,
सत्य खुद का ही बबंडर बन गया..
प्रेम के बंधन बंधे है रबर जैसे,
पास होकर दूर कोई कर गया..
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शिव प्रकाश मिश्र
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