मंगलवार, 24 अगस्त 2010

कोई खयालो में क्यों..... नहीं ....होता ....?

आसमां  क्यों नहीं झुकता,
समुंदर क्यों नहीं थमता,
प्रेम का अंकुर पनप कर ,
हिमालय क्यों नहीं होता?



चांदनी मन में खटकती,
हवा तन मन को झुलसती,
कूक कोयल की न भाए,
मेघ सावन में रुलाएं,
कोई भी मौसम यहाँ पर ,
सुहाना क्यों नहीं होता ?



पंथ लम्बा भ्रमित राही,
दर्द बन कर घटा छाई,
उष्ण बालू फटे छाले ,
कौन पीड़ा को संभाले,
कोई भी अपना यहाँ पर,
अपना क्यों नहीं होता ?


नेह के बंधन जटिल है ,
नीद में पंछी बिकल है,
जिंदगी का क्या ठिकाना,
खो गया है आशियाना,
प्रेम का आँचल यहाँ पर,
बसेरा क्यों नहीं होता ?


नींद पलकों में नहीं है ,
ख्वाब है न इंतजार,
मन है व्याकुल तन सुलगता ,
दिल बहकता बार बार,
कोई आकर ख्यालो में,
हमारा क्यों नहीं होता ?


***** शिव प्रकाश मिश्र******

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