इस्लामिक आतंक की चपेट में भारत
भारत पर इस्लामिक आक्रमण सातवीं शताब्दी से शुरू हो गए थे और कालान्तर में मुस्लिम आक्रांता यहाँ अपना साम्राज्य स्थापित करने में सफल हो गए. ईस्ट इंडिया कंपनी के माध्यम से ब्रिटिश शासन के कारण ही भारत पर मुस्लिम आक्रांताओं का शासन समाप्त हुआ था, अन्यथा शायद आज भी मुस्लिम आक्रांताओं का शासन होता या भारत इस्लामिक राष्ट्र बन चुका होता.
भारत इस्लामिक राष्ट्र बनने
से जरूर बचता रहा लेकिन तिल तिल कर इसका क्षरण होता रहा और अखंड भारत के कई
हिस्सों पर इस्लामिक शासन होता गया जो टूटकर भारत से अलग होकर इस्लामिक राष्ट्र बनते
गए. इसके नवीनतम उदाहरण हैं- पाकिस्तान और बांग्लादेश जिनका निर्माण धार्मिक आधार
पर भारत का विभाजन कर के हुआ, लेकिन मुस्लिम भारत से गये नहीं. वे यहीं रहे और
इसलिए रहे कि उन्हें गजवा ए हिन्द के माध्यम से समूचा भारत चाहिए था. मुस्लिम
परस्त नेहरू और गाँधी ने पाकिस्तान बनने में भरपूर सहयोग तो दिया ही, पाकिस्तान न
जाने वाले मुसलमानों की जमकर खातिरदारी भी की. स्वतंत्र भारत का संविधान जानबूझकर ऐसा
बनाया गया जिससे मुस्लिमों को विशेषाधिकार प्राप्त प्रथम श्रेणी का नागरिक बनाया
जा सके और भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने में सहायता करें. संविधान की ड्राफ्ट
समिति के अध्यक्ष यदि अंबेडकर न होते तो शायद भारत का संविधान सीरिया कानून से
भरपूर होता. नेहरू ने जम्मू-कश्मीर, हैदराबाद और जूनागढ़ पाकिस्तान को देने का असफल
प्रयास किया किन्तु जम्मू कश्मीर का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान को देने में सफल हो गए. उन्होंने
वक्फ बोर्ड का कानून बनाया और एक अनपढ़ जिहादी को शिक्षा मंत्री बनाया, जो भारत में
जन्मा भी नहीं था, ताकि भारत की शिक्षा व्यवस्था और इतिहास की सत्यता को ध्वस्त किया
जा सके, तथा जेहाद को निरंतर खाद पानी दिया जा सके. इंदिरा गाँधी ने भारत के
इस्लामीकरण को और धार देते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का गठन किया. बाद की
कांग्रेसी सरकारों ने पूजा स्थल कानून बनाकर सातवीं शताब्दी से 15 अगस्त 1947 के बीच तोड़े गए हिंदू धर्म
स्थलों की यथास्थिति बनाए रखने का कानून बना दिया. अल्पसंख्यक आयोग को संवैधानिक
दर्जा दे दिया तथा वक्फ बोर्ड को असीमित अधिकार दे दिए. आज वक्फ बोर्ड के पास
मुस्लिम आक्रांताओं से भी अधिक शक्ति है जिससे वह बिना कोई युद्ध लड़े भारत की किसी
भी भूमि, भवन और संपत्ति पर कानूनी रूप से कब्जा कर सकता है. समय समय पर कांग्रेसी
सरकारों ने अनेक वेशकीमती
सरकारी संपत्तियां वक्फ बोर्ड को दान भी की. असीमित अधिकारों वाले वक्फ बोर्ड का भू-साम्राज्य
बढ़ता ही जा रहा है, और यदि यही हाल रहा तो कुछ दिनों में यह पूरे भारत को निगल
जायेगा.
भारत को जल्द से जल्द इस्लामिक राष्ट्र बनाने के के हर संभव प्रयास किए
जा रहे हैं. लोकतांत्रिक व्यवस्था में तलवार की नोक पर धर्मांतरणयह संभव नहीं है,
इसलिए लव जिहाद, धोखाधड़ी, सहित विभिन्न तरीके अपनाए जा रहे हैं. दंगा-फसाद, हत्या,
बलात्कार, लूटपाट विभिन्न पैशाचिक वृतियों के हिसात्मक तरीके से अपने ही देश में
हिंदुओं को अपने घर बार छोड़ने के लिए मजबूर किया जा रहा है. बांग्लादेश से लगी
सीमाओं से न केवल रोहिंग्या और बांग्लादेशी ही नहीं, दुनिया भर के घुसपैठियों को रणनैतिक स्थानों पर बसाया जा
रहा है. फलों, सब्जियों और अन्य खाद्य पदार्थों को अपवित्र करके हिंदुओं को बेच कर
हिंदुओं का धर्म भ्रष्ट किया जा रहा है. कश्मीर घाटी और लक्षद्वीप लगभग हिंदू
विहीन हो चुके हैं. इस्लामिक-वामपंथ गठजोड़ की छत्रछाया में केरल का स्वरूप
इस्लामिक राज्य जैसा हो गया है. हिंदुओं पर अत्याचार के मामले में पश्चिम बंगाल, बांग्लादेश
से भी आगे निकल चुका है. तमिलनाडु में सनातन अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा
है. कर्नाटक तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में भी सनातन पर संकट के बादल गहराते जा रहे
हैं. पूरे देश की स्थिति ऐसी होती जा रही है कि जैसे किसी देश को युद्ध में जीतने
के लिए किसी सेना ने रणनैतिक स्थानों पर मोर्चा संभाल लिया हो.
वक्फ बोर्ड कानून में संशोधन के लिए संसद में
प्रस्तुत विधेयक पर मुसलमानों से अधिक हो हल्ला कांग्रेस और उसके गठबंधन साथियों ने
किया और इस कारण विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति को सौंपना पड़ा. जगदंबिका पाल के
नेतृत्व में यह समिति अपना काम भी ठीक से नहीं कर पा रही है. तृणमूल के एक सांसद, कांच
की बोतल तोड़ कर अध्यक्ष के साथ हिंसा पर उतारू हो गए. समिति में कई ऐसे सदस्य हैं जिन्होंने
स्वयं वक्फ बोर्ड की हजारों करोड़ की संपत्तियों पर कब्जा कर रखा है, जिनका
उद्देश्य मुसलमानों द्वारा सरकारी और सार्वजनिक संपत्तियों पर अवैध कब्जा कराके वक्फ
बोर्ड में शामिल कराना है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित कई मुस्लिम संगठनों में बड़ी
संख्या में कर्मचारियों को ऐसी संपत्तियां खोजने में लगाया गया है जिन पर वक्फ
बोर्ड अपना दावा करके जल्द से जल्द कब्ज़ा कर सके. इस प्रक्रिया से पूरे देश में
वक्फ बोर्ड नई नई संपत्तियों पर कब्जा करता जा रहा हैं. वक्फ संशोधन कानून द्वारा जिहादी
खेल पर रोक न लग जाए, इसलिए कानून न बनने देने के लिए संगठित रूप से बड़े आंदोलन की
तैयारी की जा रही है.
2014 के लोकसभा चुनावों से ठीक पहले मनमोहन सरकार
ने दिल्ली की अरबों रुपये की 100 से अधिक संपत्तियाँ गुप चुप तरीके से वक्फ बोर्ड
को सौंप दी थी. कांग्रेस ने केवल दिल्ली में ही नहीं, पूरे देश में स्वतंत्रता के
बाद यही पाप किया है. हाल ही में सिद्धारमैया सरकार ने कर्नाटक के विजयपुरा,
कलबुर्गी, बीदर सहित कई जिलों के किसानों की हजारों एकड़ जमीन को वक्फ संपत्ति बता
कर नोटिस दे दिए. जब भूअभिलेखों में वक्फ बोर्ड का नाम भी अंकित किया जाने लगा, तब
किसानों ने गुहार लगायी और मामला दिल्ली तक पहुँच गया. विडंबना देखिए कि संयुक्त
संसदीय समिति के अध्यक्ष जगदंबिका पाल जब स्थलीय निरीक्षण के लिए कर्नाटक पहुँचे,
तो सीमित का एक भी विपक्षी सदस्य उनके साथ
नहीं गया क्योंकि उन्हें न तो भारत से मतलब है और न ही इसके इस्लामिक बनने से, उन्हें
केवल अपने वोट बैंक की चिंता है.
तमिलनाडु में तिरुचिरापल्ली जिले की तिरुचेंथुरै गांव
में एक ऐसे मंदिर पर वक्फ बोर्ड ने अपना दावा किया है जिसका जीर्णोद्धार 1500 वर्ष
पहले किया गया था और जिसके बारे में कहा जाता है कि वह महाभारत कालीन मंदिर है.
वक्फ बोर्ड ने गांव की समूची कृषि जमीन पर अपना दावा किया हैं और इस प्रकार सभी
ग्रामीणों की जमीन वक्फ बोर्ड की दावेदारी में हैं, जिसे किसान अब बेच भी नहीं पा
रहे क्योंकि विवाद वक्फ ट्राइब्यूनल में है. वक्फ बोर्ड का कहना है कि यह पूरा गांव
तत्कालीन मुस्लिम शासक ने वक्फ कर दिया था. इस आधार पर तो पूरा भारत ही वक्फ
बोर्ड का है. रोज रोज झूठे बहाने बनाने के
बजाय उसे एक बार में ही पूरे हिंदुस्तान पर अपना दावा कर देना चाहिए कि ईस्ट
इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार शुरू करने की अनुमति देने के साथ ही अकबर ने पूरे
भारत को वक्फ कर दिया था. लाल किला तो वक्फ बोर्ड का है ही. संसद भवन पर वह अपना दावा करता है. राष्ट्रपति भवन पर भी कर
देना चाहिए, जिसे खाली करवाकर अरशद मदनी को भारत का खलीफा बना दिया जाना चाहिए और
उनके भतीजे महमूद मदनी को क्राउन प्रिंस. कुछ समय पहले ही इन दोनों ने वक्फ बोर्ड
संशोधन कानून के विरुद्ध दिल्ली में एक जनसभा करके भारत सरकार को चेतावनी दी थी.
धारा 370 खत्म होने के बाद जब जम्मू कश्मीर में चुनाव प्रक्रिया सकुशल संपन्न हो गयी तो पूरा देश राहत की सांस ले ही रहा था कि विधानसभा के पहले ही सत्र में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने धारा 370 की वापसी का प्रस्ताव पास करवा लिया, जिन्होंने भारतीय संविधान के
नाम पर शपथ ली थी. संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार संसद द्वारा पारित किसी कानून और सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ द्वारा दिए गए किसी फैसले के विरुद्ध किसी विधानसभा में कानून बनाना तो दूर, प्रस्ताव भी नहीं लाया जा सकता है. तो फिर उमर अब्दुल्ला के इस कृत्य को क्या कहा जाए. बेहद शर्मनाक यह है कि यह प्रस्ताव भी राज्य के उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी, जो जम्मू की नौशेरा सीट से विधायक हैं, द्वारा पेश किया गया जो हिंदू है और अलगाववाद के भुक्तभोगी भी हैं.ऐसा लगता है कि भारत पूरी तरह से इस्लामिक
आतंकवाद की चपेट में आ गया है और आज राष्ट्र पर खतरा देश के बाहर से नहीं, अंदर से
है. अधिकांश राजनीतिक दल स्वार्थी होकर
राष्ट्रीय एकता और अखंडता के दायित्व से विमुख हो चुके हैं. भारत सरकार भी
बहुत ज्यादा कुछ नहीं कर पा रही है ऐसे में सभी राष्ट्रवादियों का दायित्व है कि
वह इस संकट का मुकाबला करने के लिए एकजुट होकर राष्ट्र रक्षा करने के लिए तत्पर हो
जाएँ अन्यथा यह समझ ले राष्ट्र की आयु बहुत अधिक शेष नहीं है.
~~~~~~~~~~~~~~~~ शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~
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