शनिवार, 25 मई 2024

आरक्षण के घुसपैठिए या घुसपैठियों का आरक्षण


सीमा से घुसपैठ तो होती थी, अब हो रही है आरक्षण में घुसपैठ  जिसे आप नहीं जानते होंगे   


                                           आरक्षण के घुसपैठिए या घुसपैठियों का आरक्षण


कुछ आंबेडकरवादी , कुछ नव बौद्ध और कुछ दिग्भ्रमित दलित व पिछड़े संगठन बहुसंख्यक वाद के विरुद्ध झंडा बुलंद किये हैं. कुछ हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति के पीछे पड़े हैं और रामायण जला रहे हैं. कुछ ब्राह्मणों के पीछे पड़े हैं . उन्हें शह दे रहे हैं पिछड़ों के हितैषी होने का दावा करने वाले स्वार्थी नेता . इधर उनकी आँख का काजल पोंछ ले गए घुसपैठिये और उन्हें पता तक नहीं चला . उनका आरक्षण उनके ही हितैषी नेता मुसलमानों को दे रहे हैं और उन्हें जाति जनगणना के लिए आन्दोलन करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक बड़ा फैसला करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 2010 और उसके बाद जारी किए गए अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रमाण पत्रों को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया है. इस तरह राज्य में जारी किए गए 5 लाख से भी अधिक अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रमाण पत्र रद्द हो गये हैं. न्यायालय ने ममता सरकार पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय की इन जातियों को आरक्षण का लाभ देने का कारण केवल धार्मिक प्रतीत होता है जो संविधान का अपमान है. मुस्लिम समुदाय की जातियों को इतनी बड़ी संख्या में अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करना राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्हें एक साधन की तरह इस्तेमाल करना है.

इससे पूरे देश में आरक्षण को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है और लोकसभा चुनाव के अंतिम दो चरणों के बीच इंडी गठबंधन कटघरे में खड़ा हो गया हैं. राहुल गाँधी द्वारा जातिगत जनगणना करवाने और जनसंख्या के अनुसार उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के बयान की भी हवा निकल गई है. पिछड़ों के मसीहा के रूप में स्थापित होने के लिए प्रयासरत अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं की भी असलियत सामने आ गई है. मुस्लिम तुष्टीकरण के सहारे सत्ता प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल येन केन प्रकारेण मुस्लिम समुदाय को खुश करने की कोशिश करते रहते हैं और इसके लिए कई बार वे समाज और देश विरोधी कार्य करने से भी परहेज नहीं करते. कब्रिस्तान के लिए जमीन बांटने और वक्फ बोर्ड को सरकारी और हिंदू समुदाय की संपत्तियां आवंटित करने से लेकर समुदाय विशेष की अराजकता को भी अनदेखा किया जाता है.

पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार ने 2010 में अध्यादेश जारी करके मुस्लिम समुदाय की 53 जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर उन्हें 7% आरक्षण दे दिया. संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था न होने के कारण मुसलमानों को अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण का लाभ देने के लिए उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर आरक्षण देने का कुचक्र रचा गया. इस तरह राज्य की 87.1 प्रतिशत मुस्लिम आबादी आरक्षण का लाभ मिलने लगा. 2011 में वाम मोर्चा की सरकार सत्ता से बाहर हो गई और आरक्षण का यह अध्यादेश कानून नहीं बन सका. 2012 में सत्ता प्राप्त करने वाली ममता बनर्जीं ने मुस्लिम समुदाय की कुछ और जातियों को शामिल कर लिया जिससे मुस्लिम समुदाय की 77 जातियां आरक्षण के दायरे में आ गयी. यही नहीं ममता बनर्जी ने आरक्षण को 7% से बढ़ाकर 17% कर दिया. इस प्रकार पश्चिम बंगाल की 92% मुस्लिम आबादी को आरक्षण का लाभ मिलने लगा. इससे स्वाभाविक रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले आरक्षण का बड़ा भाग उनसे छीन लिया गया.

ममता बनर्जी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग को दो वर्गों में विभाजित कर दिया, एक वर्ग को 10% आरक्षण का लाभ दिया जिसमें अधिकांश जातियां मुस्लिम समुदाय की है. दूसरे वर्ग को 7% आरक्षण दिया गया जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों जातियां शामिल हैं. अगर दोनों वर्गों को मिल रहे आरक्षण को सम्यक दृष्टि से देखा जाए तो पता चलता है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए निर्धारित 17% आरक्षण में से लगभग 13-14% आरक्षण का लाभ मुस्लिम समुदाय को मिल रहा है. इस पूरे मामले को देखकर कोई कोई भी ये समझ सकता है कि इसका उद्देश्य वोट बैंक के लिए मुस्लिम तुष्टीकरण के अलावा और कुछ नहीं हो सकता. ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी पहली मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने मुस्लिम समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर के पिछले दरवाजे से आरक्षण देने का कार्य किया लेकिन निश्चित रूप से वह देश की पहली ऐसी मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने कहा है कि वह उच्च न्यायालय के इस आदेश को नहीं मानेंगी.

  1. इसके पहले आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने पहला प्रयोग किया जब 1994 में कांग्रेसी मुख्यमंत्री विजय भास्कर रेड्डी ने बड़ी चालाकी से बिना कोटा निर्धारित किए मुसलमानों की कुछ जातियों को सरकारी आदेश से ओबीसी में शामिल कर दिया. इससे हिन्दू ओबीसी वर्ग का लाभ अपने आप कम हो गया. 2004 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी ने मुसलमानों को 5% कोटा निर्धारित करते हुए ओबीसी वर्ग में आरक्षण दे दिया, जिसे उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया क्योंकि इससे आरक्षण की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा पार हो गयी थी. 2005 में आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने फिर एक बार विधानसभा में अधिनियम पारित करके शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मुसलमानों के लिए ओबीसी के अंतर्गत 5% का कोटा निर्धारित कर दिया किन्तु इसे आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने रद्द कर दिया. इसके बाद भी कांग्रेस नहीं रुकी और 2007 में मुसलमानों की 14 श्रेणियों को ओबीसी की मान्यता देते हुए 4% कोटा निर्धारित कर दिया ताकि आरक्षण की 50% की सीमा पार न हो और इसके लिए कानून बना दिया लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगाते हुए सरकार की गंभीर आलोचना की. 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद टीआरएस के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने मुसलमानों के लिए आरक्षण का कोटा बढ़ाते हुए 12% करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया और इसे केंद्र सरकार की अनुमति के लिए भेजा जिसे भाजपा सरकार से अनुमति नहीं मिल सकी.  

कांग्रेस की कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने भी समय समय पर मुसलमानों की अनेक जातियों को बिना कोटा निर्धारित किए ओबीसी वर्ग में शामिल किया, जिसके अंतर्गत उन्हें आज भी आरक्षण प्राप्त हो रहा है. उत्तर प्रदेश और बिहार में में यही काम पिछड़ों के मसीहा कहे जाने वाले मुलायम सिंह और लालू यादव ने किया. इससे हिंदू समुदाय के ओबीसी वर्ग का आरक्षण अपने आप कम हो गया, और उन्हें बहुत नुकशान हुआ. मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग को जो आरक्षण दिया गया है उसका वास्तविक लाभ काफी हद तक मुस्लिम समुदाय को मिल रहा है. हाल में बिहार की बहु प्रचारित जातिगत सर्वे में समूचे मुस्लिम समुदाय को पिछड़े वर्ग में शामिल किया गया था जिसका उद्देश्य भविष्य में इन्हें ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत बिना कोटा निर्धारित किए आरक्षण देने का रहा होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी सभाओं में मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए कांग्रेस पर तीखा हमला कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पिछड़े वर्ग का आरक्षण काटकर धार्मिक आधार पर मुस्लिम समुदाय को देने का कार्य कर रही है. उन्होंने सम्पन्न लोगों का धन छीनकर मुस्लिम घुसपैठियों में बांटने की कांग्रेस की मंशा पर तीखा हमला बोला. इसके जवाब में कांग्रेस ने मोदी पर आरोप लगाया कि वह यदि सत्ता में वापस आयेंगे तो संविधान बदल कर आरक्षण समाप्त कर देंगे लेकिन कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले के बाद पूरा इंडी गठबंधन रक्षात्मक मुद्रा में आ गया है यद्यपि अब चुनाव के केवल दो चरण बाकी हैं लेकिन जनता में संदेश पहुँच गया है कि इंडी गठबंधन के घटक दल अपने अपने राज्यों में मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए कुछ भी कर गुज़रने से संकोच नहीं करते. प्रधानमंत्री द्वारा लगाए गए आरोपों की पुष्टि कांग्रेस के दस्तावेज़ों से भी होती है.

कांग्रेस ने 2004 के अपने घोषणापत्र में लिखा था कि उसने कर्नाटक और केरल में मुसलमानों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में इस आधार पर आरक्षण दिया है कि वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भी मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में इस तरह की सुविधा प्रदान करने के लिए कृत संकल्पित है. 2009 के कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में भी इस वायदे को दोहराया गया है. 2014 के घोषणापत्र में भी कांग्रेस ने लिखा था कि कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के मामले में कई कदम उठाए हैं. सरकार न्यायालय में लंबित इस मामले की प्रभावी ढंग से पैरवी करेगी और सुनिश्चित करेगी कि उचित कानून बनाकर इन नीति को राष्टीय स्तर पर लागू किया जाए. इससे बिलकुल स्पष्ट है कि मुसलमानों को आरक्षण देना कांग्रेस की सोंची समझी नीति है, जिस पर दशकों से काम किया जा रहा है.

कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय ने भाजपा को एक बड़ा राजनैतिक हथियार दे दिया है और चुनाव के बीच ही भाजपा द्वारा लगाए जा रहे मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप की पुष्टि भी न्यायालय द्वारा कर दी गई है. यद्यपि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि इन जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर जो लोग सरकारी नौकरियों में आ गए हैं उन्हें निकाला नहीं जाएगा लेकिन हिंदू अन्य पिछड़ा वर्ग के विरुद्ध किए गए ममता सरकार के इस षडयंत्र से कितनी नौकरियां उनके हाथ से फिसल गई, इसका पता लगाया जाना अत्यंत आवश्यक है. पश्चिम बंगाल ही नहीं, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक तेलंगाना आंध्र प्रदेश और केरल सहित सभी राज्यों में विस्तृत जांच की अत्यंत आवश्यकता है कि हिन्दू अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ की गई धोखाधड़ी में उनका कितना नुकसान हो चुका है.

केंद्र सरकार द्वारा प्रभावी कानून बनाकर ये सुनिश्चित किया जाना अत्यंत आवश्यक है कि बिना संसद की अनुमति के राज्य सरकारे अपने प्रदेश में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग में शामिल जातियों में फेरबदल न कर सके. इसके साथ ही अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़े वर्ग को भी अपने अधिकारों की रक्षा के लिये सजग होने की आवश्यकता है ताकि उन्हें मिलने वाला लाभ मुस्लिम तुष्टीकरण की भेंट न चढ़ जाए. उन्हें अल्पसंख्यकों के साथ किसी राजनैतिक गठबन्धन के झांसे में भी नहीं आना चाहिए वरना सबकुछ लुटा के समझ में आया तो फिर बचने का कोई रास्ता नहीं बचेगा.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~``

शनिवार, 18 मई 2024

सीएए में मिलने लगी नागरिकता

 ममता गरजती रहीं, कांग्रेस बरसती रही, ओवैसी धमकाते रहे, लेकिन सीएए में मिलने लगी नागरिकता ...

2024 के लोकसभा चुनावों की गहमागहमी के बीच संशोधित नागरिकता कानून के अंतर्गत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ना का शिकार होकर आये गैर मुस्लिम शरणार्थियों को भारतीय नागरिकता मिलनी शुरू हो गई है. ये ऐतिहासिक दिन कहा जाएगा जब केंद्रीय गृह सचिव ने 14 ऐसे शरणार्थियों को भारत की नागरिकता का प्रमाण-पत्र सौंपकर औपचारिक रूप से नागरिकता देने की शुरुआत की. 286 लोगों को ईमेल के माध्यम से नागरिकता प्रमाण पत्र भेज दिए गए हैं. पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए ये सभी गैर मुस्लिम शरणार्थी दशकों से भारत में नरकीय जीवन जी रहे थे. उन्हें सामान्य नागरिक अधिकार नहीं थे, कानूनन किसी भी सरकारी सहायता के पात्र नहीं थे. इसलिए ये भारतीय नागरिकता की बाट जोह रहे थे. समाज से अलग थलग ये सभी झुग्गी झोपड़ियों में रह कर अमानवीय जीवन व्यतीत कर रहे थे. इसके विपरीत बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों के लिए फर्जी कागजात तैयार हो जाते हैं. उन्हें देश के विभिन्न क्षेत्रों में योजनाबद्ध तरीके से बसा दिया जाता है, वोट देने का अधिकार भी मिल जाता है और इसलिये वोटबैंक का हिस्सा बन जाते हैं. फिर हर राजनीतिक दल उन्हें सिर आँखों पर बैठा लेता है. भारत में यह सबसे बड़ा अंतर है मुस्लिम घुसपैठियों और गैर मुस्लिम शरणार्थियों के बीच.

2019 में जब संशोधित नागरिकता कानून संसद में पास हुआ तो पूरे देश में मुस्लिमों द्वारा आंदोलन शुरू किए गए, जिन्हें सभी राजनैतिक दलों का समर्थन मिला. इस कानून को भेदभावपूर्ण करार दिया गया क्योंकि इसके अंतर्गत मुस्लिमों को नागरिकता देने का प्रावधान नहीं है जिसका बहुत स्पष्ट कारण है कि जिन पड़ोसी देशों अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांगलादेश से आए गैर मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने का प्रावधान है, वे सभी देश मुस्लिम देश है और मुस्लिम देश में कोई मुस्लिम धार्मिक प्रताड़ना का शिकार नहीं हो सकता. ये तीनों मुस्लिम देश कभी अविभाजित भारत का हिस्सा थे और विभाजन के बाद अपरिहार्य कारणों से वहां से हिंदू, बौद्ध, पारसी और क्रिश्चियन भारत नहीं आ सके थे, इसलिए भारत सरकार का ये नैतिक दायित्व भी था कि उन्हें भारत में नागरिकता दी जाए, जिसका वायदा कभी जवाहर लाल नेहरू ने किया लेकिन मुस्लिम तुष्टीकरण में वह इस वादे को भूल गए.

भारत का विभाजन धार्मिक आधार पर हुआ था, जिसमें मुस्लिमों के लिए अलग राष्ट्र पाकिस्तान बना था. स्वाभाविक रूप से दूसरा राष्ट्र हिंदुओं के लिए था लेकिन गाँधी और नेहरू की मुस्लिम परस्त विचारधारा के कारण भारतीय क्षेत्र से सभी मुस्लिम पाकिस्तान नहीं गए. मुस्लिम तुष्टीकरण के कारण ही देश को धर्मनिरपेक्षता का जामा पहना दिया गया. यद्यपि भारत और पाकिस्तान सरकारों के बीच जनसंख्या की अदला बदली के लिए नेहरू लिआकत समझौता हुआ था. पाकिस्तान से बड़ी संख्या में गैर मुस्लिमों की संपत्तियों पर कब्जा करके उन्हें भागने पर विवश कर दिया गया लेकिन भारत में धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मुसलमानों को सरकारी सुरक्षा और संरक्षण के अंतर्गत सुखमय जीवन व्यतीत करने के लिए हिंदुओं से कहीं ज्यादा अवसर प्रदान किये गये. नेहरू गाँधी के निमंत्रण पर पाकिस्तान से भी बड़ी संख्या में मुस्लिम भारत में बसने के लिए आ गए. सरकारी भेदभाव का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पाकिस्तान से आए हिंदू शरणार्थी तो छत की तलाश में मारे मारे घूमते रहे. जहाँ कहीं उन्होंने खाली पड़ी मस्ज़िदों में शरण ली थी, वहाँ से भी गाँधी के आदेश पर कंपकपाती सर्दी की रातों में पुलिस ने उन्हें जबरन विस्थापित कर दिया. इसके विपरीत पाकिस्तान से आए मुस्लिमों को मौलाना आजाद ने अपने तथा अन्य सरकारी बंगलों में तंबू लगाकर बसाने का कार्य किया तथा उनके खाने पीने की बेहतरीन व्यवस्था की. जिसके लिए उन्हें नेहरू और गाँधी की खूब प्रशंसा भी मिली. हिंदू शरणार्थी गाँधी का ध्यान आकृष्ट करने के लिए बिड़ला भवन के आगे प्रदर्शन करते रहे किंतु उन्हें लाठियां खाने की अतिरिक्त कुछ नहीं मिला.

देश के विभाजन के समय भारत में लगभग 3.5 करोड़ मुसलमान थे, जो आज घुसपैठियों को मिलाकर गैर सरकारी अनुमान के अनुसार 27 करोड़ हो चुके हैं. हाल ही में प्रधानमंत्री के सलाहकार परिषद की एक रिपोर्ट के अनुसार 2015 तक मुसलमानों की आबादी कुल जनसंख्या में 43% से ज्यादा बढ़ चुकी थी जबकि हिंदुओं की आबादी 8% घट गई थी. 2021 की जनगणना कोविड महामारी के कारण नहीं की जा सकी है लेकिन जब भी यह जनगणना होगी, कुल जनसंख्या में हिंदुओं की हिस्सेदारी 70% प्रतिशत से काफी कम हो जाने की आशंका है, जो विभाजन के समय 84% से अधिक थी. इसके विपरीत मुसलमानों की हिस्सेदारी 20% से अधिक हो जाने की संभावना है, जो विभाजन के समय लगभग 9% थी. मुस्लिम जनसंख्या विस्फोट चिंता का कारण है क्योंकि विश्व का इतिहास साक्षी है जहाँ कहीं मुस्लिमों की जनसंख्या असामान्य रूप से बढ़ी है उस राष्ट्र का इस्लामीकरण अवश्य हुआ है. भारत में तो पहली शताब्दी से ही गज़वा-ए-हिंद की धार्मिक अवधारणा के कारण मुस्लिम आक्रांताओं ने आक्रमण किये और भारत के इस्लामीकरण का प्रयास किया लेकिन ये सपना आज भी अधूरा है. इस्लामिक शिक्षा के विवादास्पद केंद्र दारुल उलूम देवबंद ने गजवा-ए-हिन्द (भारत को आक्रमण करके इस्लामिक राष्ट्र बनाने) को मान्यता देने वाला फतवा जारी किया है. ये फतवा उनकी अधकारिक वेबसाईट पर उपलब्ध है. इसमें गजवा ए हिन्द को इस्लामिक दृष्टिकोण से वैध बताते हुए महिमामंडित किया गया है, जिसे स्वयं महमूद मदनी ने उचित ठहराया है. देवबंद के इसी मदरसे ने पाकिस्तान की मांग को अनुचित करार देते हुए विभाजन का विरोध किया था लेकिन इसका कारण भारत भक्ति नहीं था. वास्तव में देवबंदी भारत के एक टुकड़े के रूप में इस्लामिक पाकिस्तान नहीं, पूरे भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाना चाहते थे. उनका तर्क था की जनसंख्या बढ़ाकर अगले 50 वर्षों में पूरा भारत अपने आप मुस्लिम राष्ट्र बन जाएगा. अगर भारत का विभाजन नहीं हुआ होता तो आज देश की जनसंख्या लगभग 175 करोड़ होती, जिसमें पाकिस्तान के 20 करोड़, बांग्लादेश के 15 करोड़ मिलाकर भारत में मुसलमानों की जनसंख्या लगभग 65 करोड़ होती. देश की जनसंख्या में हिंदू 50% और मुस्लिम 40% होते. शेष10% में अन्य सभी धार्मिक समुदाय होते. स्थिति कितनी भयावह होती, सामान्य जन मानस के लिए उसकी कल्पना करना भी मुश्किल है.

संशोधित नागरिकता कानून का विरोध धार्मिक और राजनैतिक मुस्लिम नेताओं द्वारा सरकार पर दबाव बनाने के लिए किया गया ताकि नागरिकता के लिए मुस्लिमों को भी शामिल किया जाय ताकि अवैध बांग्लादेशी और रोहिंग्या घुसपैठियों को कानूनन भारतीय नागरिकता उपलब्ध कराई जा सके. मुस्लिम जनसंख्या बढ़ाना भी गज़वा-ए हिंद योजना की टूलकिट का एक कार्य बिंदु है. पश्चिम के अनेक देश जिन्होंने कभी मानवीय आधार पर मुसलमानों को अपने यहाँ शरण दी थी, गृहयुद्ध का सामना कर रहे हैं. कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए यदि अगले कुछ वर्षों में यूरोप के कई छोटे देश इस्लामिक राष्ट्र बन जाए.

वैसे तो संशोधित नागरिकता कानून 2019 में संसद से पास हो गया था लेकिन कांग्रेस सहित सभी राजनैतिक दलों और मुस्लिम समुदाय के विरोध के कारण यह ठंडे बस्ते में पड़ा रहा और लगभग 4 साल बाद इस वर्ष मार्च में अधिसूचित किया जा सका. इसके बाद भी ममता बनर्जी जैसे राजनेताओं ने किसी भी कीमत पर इसे लागू ना होने देने कसम खाई थी. इंडी गठबंधन के ज्यादातर घटक दल इस कानून में मुस्लिमों को भी शामिल करवाना चाहते हैं, इसीलिए वे सभी वर्तमान कानून का विरोध कर रहे हैं.

वर्तमान संशोधित नागरिकता कानून धार्मिक अल्पसंख्यकों हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाई को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है लेकिन यह बहुत आसान नहीं है क्योंकि इसमें 31 दिसंबर 2014 से पहले आए शरणार्थी ही नागरिकता पा सकते हैं. इसके बाद में आए शरणार्थियों को अभी कितना इंतजार करना पड़ेगा कहा नहीं जा सकता. आजादी के समय नेहरू ने इन देशों में रह रहे गैर मुस्लिमों के लिए नागरिकता देने सहित बड़े बड़े वादे किए थे जिन्हें वे स्वयं तो भूले ही, बाद की सारी कांग्रेस सरकारे भी भूल गई. आजादी के 75 साल बाद नेहरू का यह वादा मोदी सरकार ने पूरा किया है, वह भी कांग्रेस के विरोध के बाद. इसलिए इसे छोटी उपलब्धि नहीं कहा जा सकता.

नागरिकता प्रमाण पत्र देने की शुरुआत पर गैर मुस्लिम शरणार्थियों और अवैध घुसपैठियों के बीच का अंतर स्पष्ट रूप से दिल्ली के उस झोपड़ पट्टी क्षेत्र में देखा जा सकता था जहाँ देश भक्ति के गाने गाए जा रहे थे और भारत माता की जय के नारे लगाए जा रहे थे. शरणार्थी खुशी से झूम रहे थे जैसे उनके जीवन की कोई बड़ी मनोकामना पूरी हो गई है. धार्मिक प्रताड़ना के शिकार इन सभी शरणार्थियों के लिए अगर कहा जाए कि भारतीय नागरिक के रूप में उनका पुनर्जन्म हुआ है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी.

भारत सरकार ने शरणार्थियों को नागरिकता देने के लिए ऑनलाइन पोर्टल की व्यवस्था की है. देश के सभी जिलों के वरिष्ठ डाक अधीक्षकों की अध्यक्षता में जिला स्तरीय समितियां गठित की गई है जो दस्तावेजों का सत्यापन करेंगी और आवेदकों को भारत के प्रति निष्ठा की शपथ दिलाएंगी. तत्पश्चात राज्य स्तर पर निदेशक जनगणना की अध्यक्षता में गठित समिति आवेदनों पर विचार करेगी और नागरिकता प्रमाण पत्र जारी करेगी. नागरिकता प्रमाण पत्र मिलने के बाद ही ये सभी सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकेंगे, स्वतंत्र रूप से कहीं भी आ जा सकेंगे और सबसे बड़ी बात, मतदान कर सकेंगे.

हम सभी को नागरिकता पाने के लिए ऐसे सभी शरणार्थियों की यथासंभव सहायता अवश्य करनी चाहिए ताकि वे सामान्य भारतीय नागरिक की तरह अपना जीवन शुरू कर सके.

~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~

गुरुवार, 9 मई 2024

भगवान श्री परशुराम

                                                                 भगवान श्री परशुराम




भगवान श्री परशुराम का जन्मोत्सव वैशाख शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, जिसे अक्षय तृतीया भी कहा जाता है, जो इस बार  10 मई 2024 दिन शुक्रवार को है । उनका जन्म सतयुग और त्रेता के संधिकाल में वैशाख शुक्ल तृतीया ( अक्षय तृतीया) के दिन-रात्रि के प्रथम प्रहर प्रदोष काल में पुनर्वसु नक्षत्र में रात्रि के प्रथम प्रहर में 6 उच्च के ग्रहों से युक्त मिथुन राशि पर राहु के स्थित रहते माता रेणुका के गर्भ से भृगु ऋषि कुल में हुआ था. ऋचीक-सत्यवती के पुत्र जमदग्नि और  जमदग्नि-रेणुका के पुत्र परशुराम थे। ऋचीक की पत्नी सत्यवती राजा गाधि (प्रसेनजित) की पुत्री और विश्वमित्र (ऋषि विश्वामित्र) की बहिन थी। भृगुक्षेत्र के शोधकर्ताओं  के अनुसार परशुराम का जन्म वर्तमान बलिया के खैराडीह में हुआ था। एक अन्य मत के अनुसार मध्यप्रदेश के इंदौर के पास स्थित महू से कुछ ही दूरी पर स्थित जानापाव की पहाड़ी पर उनका जन्म हुआ था। तीसरी मान्यता अनुसार छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में घने जंगलों के बीच स्थित कलचा गांव में उनका जन्म हुआ था। एक अन्य मान्यता अनुसार उत्तर प्रदेश में शाहजहांपुर के जलालाबाद में  जहाँ जमदग्नि आश्रम है, को परशुराम की जन्मस्थली कहा जाता है।

भगवान परशुराम विष्णु के छठे अवतार हैंऔर इन्हें कई विद्वान विष्णु और शिव का संयुक्त आवेशावतार भी  मानते हैं। इनके अवतार का मुख्य उद्देश्य पृथ्वी से पाप और बुराइयों का नाश करना था। सर्वशक्तिमान विश्वात्मा भगवान् श्रीहरि ने भृगुवंशियों में अवतार ग्रहण करके पृथ्वी के भारभूत राजाओं को दंडित कर पृथ्वी पर सत्यदया तथा शांति युक्त कल्याणमय धर्म की स्थापना की। महर्षि परशुराम सात चिरंजीवियों में से एक हैं. 

अश्वत्थामा बलिर्व्यासो हनूमांश्च विभीषण:। कृप: परशुरामश्च सप्तएतै चिरजीविन:॥ सप्तैतान् संस्मरेन्नित्यं मार्कण्डेयमथाष्टमम्। जीवेद्वर्षशतं सोपि सर्वव्याधिविवर्जित।।

भगवान परशुराम संपूर्ण हिन्दू समाज के आदर्श हैं और चिरंजीवी हैं जो युगों युगों तक हिन्दू समाज का मार्ग दर्शन करते रहेंगे। वे राम के पहले भी थे और बाद में भी. ये  रामकाल (त्रेता)  में भी थे और कृष्ण काल (द्वापर) में भी। उन्होंने ही भगवान श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया था। पौराणिक मान्यता है वे महेंद्र गिरि पर्वत पर तपस्या कर रहे हैं और कल्प के अंत तक धरती पर ही तपस्यारत रहेंगे. वे कलिकाल के अंत में फिर प्रकट  होंगे। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया था। भगवान परशुराम ने सामाजिक न्याय तथा समानता की स्थापना के उद्देश्य से समाज के शोषित तथा पीड़ित वर्ग के अधिकारों की रक्षा के लिए शस्त्र उठाया। धर्म की स्थापना के लिए भगवान परशुराम प्रत्येक युग के किसी न किसी कालखंड में अवश्य प्रकट होते रहेंगे। कल्कि पुराण के अनुसार ये भगवान विष्णु के दसवें अवतार कल्कि के गुरु होंगे और उन्हें युद्ध की शिक्षा देंगे और भगवान शिव की तपस्या करके उनसे दिव्यास्त्र प्राप्त करने का निर्देश देंगे। परशुराम नाम दो शब्दों से मिलकर बना है ‘परशु’ अर्थात कुल्हाड़ी और ‘राम’जिसका शाब्दिक अर्थ हैकुल्हाड़ी के साथ राम। विष्णु पुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम थापरन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान कियातो उनका नाम परशुराम हो गया।

एक बार की बात हैउनकी माता रेणुका गंगा नदी के तट पर पूजा के लिए जल लेने गईं थीं जहाँ वह गंधर्वराज चित्रसेन को अप्सराओं के साथ विहार और मनोरंजन करते देख मंत्रमुग्ध हो गईं और उन्हें आश्रम पहुँचने में  देर हो गई। ऋषि जमदग्नि ने अपनी दिव्य दृष्टि से माता रेणुका के देरी से आने का कारण पता लगा लिया। देर से आने के लिए देवी रेणुका की अनुचित मनोवृत्ति जान  ऋषिश्रेष्ठ ने परीक्षा लेने की ठानी और सभी पुत्रों को बुलाकर माता का वध करने का आदेश दे दिया। चार पुत्र एक एक कर  माँ के प्यार के वशीभूत हो  पिता की आज्ञा का पालन करने से इंकार करते रहे और ऋषि जमदग्नि के कोप से  पत्थर बनते रहे । जब परशुराम जी की बारी आई तो उन्होंने पिता की आज्ञा का पालन कर माँ का सिर धड़ से अलग कर दिया। इस पर ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र परशुराम से बहुत प्रसन्न हुए और मनचाहा वर मांगने के लिए कहा। परशुराम जी ने वरदान स्वरूप अपने सभी भाइयों और माता को पुनर्जीवित करने को कहा। ऋषि जमदग्नि अपने पुत्र के कर्तव्यपरायणता से इतने प्रसन्न थे कि उन्होंने उनकी इच्छा पूरी कर पत्नी रेणुका सहित चारों पुत्रों को जीवित कर दिया। इस कहानी का भाव है कि उन्होंने अपने ज्ञान द्वारा अपनी माता के चित्त से अनुचित मनोवृत्ति दूर की  जो उनके पिता की नाराजगी का कारण थी और जिसे उनके भाई नहीं कर सके थे बल्कि किम्कर्तव्य विमूढ़ हो गए थे. परशुराम जी ने अपने पिता के मन से अपनी माता और भाइयों के प्रति  नाराजगी को दूर कर पारिवारिक रिश्तों को पुनर्जीवित कर दिया.   

एक बार  हैहय  वंश का अधिपति सहस्त्रार्जुन वन में आखेट करते हुए ऋषि जमदग्नि के आश्रम जा पहुँचा। वह वहाँ मिले आदर सत्कार से बहुत प्रफुल्लित हुआ।  जब उसे पता चला कि इन सब का कारण कामधेनु गाय है तो वह कामधेनु को बलपूर्वक ऋषि जमदग्नि के आश्रम से छीनकर ले गया। जब परशुराम जी को इस बात का पता चला तो उन्होंने सहस्त्रार्जुन का वध करके कामधेनु वापस लाकर पिता को सौंप दी. तत्पश्चात सहस्त्रार्जुन के पुत्रों ने प्रतिशोधवश परशुराम जी की अनुपस्थिति में उनके पिता जमदाग्नि की हत्या कर दी। व्यथित परशुराम जी ने प्रतिज्ञा की और उन सभी राजाओं का विनाश कर दिया जो इस तरह के पाप कर्मो में लिप्त थे। एक भ्रान्ति है कि उन्होंने २१ बार पृथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया. इसे गलत सन्दर्भ में प्रस्तुत किया जाता है. अगर उन्होंने पहली बार ही प्रथ्वी को क्षत्रिय विहीन कर दिया था तो दोबारा क्यों करना पडा. और उन्होंने एसा 21 बार किया, इससे स्वयंसिद्ध  है कि उन्होंने क्षत्रियों का नहीं उन दुष्ट राजाओं का विनाश किया जो प्रजा पर भांति भांति के अत्याचार करते थे. ऐसा उन्होंने 21 बार अभियान चलाकर किया.

आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त करने के साथ ही परशुराम जी को महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ।  उन्होंने  कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें त्रैलोक्य विजय कवचस्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। वे योगवेद और नीति के साथ ब्रह्मास्त्र समेत विभिन्न दिव्यास्त्रों के संचालन में भी वे पारंगत थे। त्रैतायुग से द्वापर युग तक परशुराम के लाखों शिष्य थे। महाभारतकाल के वीर योद्धाओं भीष्मद्रोणाचार्य और कर्ण को अस्त्र-शस्त्रों की शिक्षा देने वाले भी महर्षि परशुराम थे.  उन्होंने एकादश छन्दयुक्त "शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र" लिखा था।

सतयुग में जब एक बार गणेशजी ने परशुराम को शिव दर्शन से रोका तोरुष्ट परशुराम ने उन पर परशु प्रहार कर दियाजिससे गणेश का एक दांत टूट गया और वे एकदंत कहलाए। सीता स्वयंवर में उन्होंने  श्रीराम का अभिनंदन किया। द्वापर में उन्होंने कौरव-सभा में कृष्ण का समर्थन किया. उन्होंने ही श्रीकृष्ण को सुदर्शन चक्र दिया था। असत्य वचन के दंड स्वरूप कर्ण को सारी विद्या विस्मृत हो जाने का श्राप दिया था। कुछ लोगों द्वारा भ्रान्ति फैलाई गयी है कि उन्होंने केवल ब्राह्मणों को ही सैन्यशिक्षा दी जो पूरी  तरह से गलत है क्योंकि इनके शिष्यों में भीष्म और कर्ण जैसे गैर ब्राह्मण भी रहे हैं।

भारत के अधिकांश ग्राम और उनकी व्यवस्था उन्हीं के द्वारा बनाई गयी। पौराणिक कथा के अनुसार परशुराम ने तीर चला कर गुजरात से लेकर केरल तक समुद्र को पीछे धकेलते हुए भूमि निकाली और इसी कारण कोंकणगोवा और केरल के निर्माण का श्रेय भगवान परशुराम को जाता है। वे पशु-पक्षियों की भाषा समझते थे और उनसे बातें करते थे। कई खूँख्वार हिंसक पशु भी उनके स्पर्श मात्र से ही उनके मित्र बन जाते थे। वे चाहते थे कि यह सारी सृष्टि पशु पक्षियोंवृक्षोंफल फूल औए समूची प्रकृति के लिए जीवन्त रहे।

वे एक ब्राह्मण के रूप में जन्में अवश्य थे लेकिन कर्म से एक क्षत्रिय थे। उन्हें भार्गव के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने अश्वमेघ महायज्ञ किया और सप्तद्वीप युक्त पृथ्वी महर्षि कश्यप को दान कर दी। केवल इतना ही नहींउन्होंने देवराज इन्द्र के समक्ष अपने शस्त्र त्याग दिये और सागर द्वारा उच्छिष्ट भूभाग महेन्द्र पर्वत पर आश्रम बनाकर रहने लगे। भगवान परशुराम शस्त्र विद्या के श्रेष्ठ जानकार थे। वे केरल की मार्शल आर्ट कलरीपायट्टु और उत्तरी शैली वदक्कन कलरी के संस्थापक आचार्य एवं आदि गुरु हैं। ये इतनी घातक शैली है कि इसे अंग्रेजो ने प्रतिबंधित कर दिया था.  कोंकण, केरल और गोवा में इस कला के अनेक गुरुकुल आज भी हैं।  

भगवान परशुराम जी के महान पराक्रम से अधर्मी थर-थर कांपते थे। आज भारत में वैदिक धर्म और सनतान संस्कृति की पुनर्स्थापना और अधर्म के नाश के लिए हमें भगवान परशुराम के आदर्शों पर चलना होगा।  उनके जन्मोत्सव पर हम सभी को उनके मार्ग पर चलकर सनातन धर्म और संस्कृति  की रक्षा करने का वचन लेना चाहिए

         ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~ शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~