शनिवार, 25 मई 2024

आरक्षण के घुसपैठिए या घुसपैठियों का आरक्षण


सीमा से घुसपैठ तो होती थी, अब हो रही है आरक्षण में घुसपैठ  जिसे आप नहीं जानते होंगे   


                                           आरक्षण के घुसपैठिए या घुसपैठियों का आरक्षण


कुछ आंबेडकरवादी , कुछ नव बौद्ध और कुछ दिग्भ्रमित दलित व पिछड़े संगठन बहुसंख्यक वाद के विरुद्ध झंडा बुलंद किये हैं. कुछ हिन्दू धर्म और सनातन संस्कृति के पीछे पड़े हैं और रामायण जला रहे हैं. कुछ ब्राह्मणों के पीछे पड़े हैं . उन्हें शह दे रहे हैं पिछड़ों के हितैषी होने का दावा करने वाले स्वार्थी नेता . इधर उनकी आँख का काजल पोंछ ले गए घुसपैठिये और उन्हें पता तक नहीं चला . उनका आरक्षण उनके ही हितैषी नेता मुसलमानों को दे रहे हैं और उन्हें जाति जनगणना के लिए आन्दोलन करने के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक बड़ा फैसला करते हुए पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा 2010 और उसके बाद जारी किए गए अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रमाण पत्रों को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया है. इस तरह राज्य में जारी किए गए 5 लाख से भी अधिक अन्य पिछड़ा वर्ग के प्रमाण पत्र रद्द हो गये हैं. न्यायालय ने ममता सरकार पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि मुस्लिम समुदाय की इन जातियों को आरक्षण का लाभ देने का कारण केवल धार्मिक प्रतीत होता है जो संविधान का अपमान है. मुस्लिम समुदाय की जातियों को इतनी बड़ी संख्या में अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करना राजनीतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्हें एक साधन की तरह इस्तेमाल करना है.

इससे पूरे देश में आरक्षण को लेकर एक नई बहस छिड़ गई है और लोकसभा चुनाव के अंतिम दो चरणों के बीच इंडी गठबंधन कटघरे में खड़ा हो गया हैं. राहुल गाँधी द्वारा जातिगत जनगणना करवाने और जनसंख्या के अनुसार उनकी भागीदारी सुनिश्चित करने के बयान की भी हवा निकल गई है. पिछड़ों के मसीहा के रूप में स्थापित होने के लिए प्रयासरत अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव जैसे नेताओं की भी असलियत सामने आ गई है. मुस्लिम तुष्टीकरण के सहारे सत्ता प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल येन केन प्रकारेण मुस्लिम समुदाय को खुश करने की कोशिश करते रहते हैं और इसके लिए कई बार वे समाज और देश विरोधी कार्य करने से भी परहेज नहीं करते. कब्रिस्तान के लिए जमीन बांटने और वक्फ बोर्ड को सरकारी और हिंदू समुदाय की संपत्तियां आवंटित करने से लेकर समुदाय विशेष की अराजकता को भी अनदेखा किया जाता है.

पश्चिम बंगाल में वाम मोर्चा सरकार ने 2010 में अध्यादेश जारी करके मुस्लिम समुदाय की 53 जातियों को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर उन्हें 7% आरक्षण दे दिया. संविधान में धर्म के आधार पर आरक्षण की व्यवस्था न होने के कारण मुसलमानों को अप्रत्यक्ष रूप से आरक्षण का लाभ देने के लिए उन्हें अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर आरक्षण देने का कुचक्र रचा गया. इस तरह राज्य की 87.1 प्रतिशत मुस्लिम आबादी आरक्षण का लाभ मिलने लगा. 2011 में वाम मोर्चा की सरकार सत्ता से बाहर हो गई और आरक्षण का यह अध्यादेश कानून नहीं बन सका. 2012 में सत्ता प्राप्त करने वाली ममता बनर्जीं ने मुस्लिम समुदाय की कुछ और जातियों को शामिल कर लिया जिससे मुस्लिम समुदाय की 77 जातियां आरक्षण के दायरे में आ गयी. यही नहीं ममता बनर्जी ने आरक्षण को 7% से बढ़ाकर 17% कर दिया. इस प्रकार पश्चिम बंगाल की 92% मुस्लिम आबादी को आरक्षण का लाभ मिलने लगा. इससे स्वाभाविक रूप से अन्य पिछड़ा वर्ग को मिलने वाले आरक्षण का बड़ा भाग उनसे छीन लिया गया.

ममता बनर्जी सरकार ने अन्य पिछड़ा वर्ग को दो वर्गों में विभाजित कर दिया, एक वर्ग को 10% आरक्षण का लाभ दिया जिसमें अधिकांश जातियां मुस्लिम समुदाय की है. दूसरे वर्ग को 7% आरक्षण दिया गया जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों जातियां शामिल हैं. अगर दोनों वर्गों को मिल रहे आरक्षण को सम्यक दृष्टि से देखा जाए तो पता चलता है कि अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए निर्धारित 17% आरक्षण में से लगभग 13-14% आरक्षण का लाभ मुस्लिम समुदाय को मिल रहा है. इस पूरे मामले को देखकर कोई कोई भी ये समझ सकता है कि इसका उद्देश्य वोट बैंक के लिए मुस्लिम तुष्टीकरण के अलावा और कुछ नहीं हो सकता. ऐसा नहीं है कि ममता बनर्जी पहली मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने मुस्लिम समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल कर के पिछले दरवाजे से आरक्षण देने का कार्य किया लेकिन निश्चित रूप से वह देश की पहली ऐसी मुख्यमंत्री हैं जिन्होंने कहा है कि वह उच्च न्यायालय के इस आदेश को नहीं मानेंगी.

  1. इसके पहले आंध्र प्रदेश में कांग्रेस ने पहला प्रयोग किया जब 1994 में कांग्रेसी मुख्यमंत्री विजय भास्कर रेड्डी ने बड़ी चालाकी से बिना कोटा निर्धारित किए मुसलमानों की कुछ जातियों को सरकारी आदेश से ओबीसी में शामिल कर दिया. इससे हिन्दू ओबीसी वर्ग का लाभ अपने आप कम हो गया. 2004 में कांग्रेस के मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी ने मुसलमानों को 5% कोटा निर्धारित करते हुए ओबीसी वर्ग में आरक्षण दे दिया, जिसे उच्च न्यायालय ने रद्द कर दिया क्योंकि इससे आरक्षण की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित 50% की सीमा पार हो गयी थी. 2005 में आंध्र प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने फिर एक बार विधानसभा में अधिनियम पारित करके शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में मुसलमानों के लिए ओबीसी के अंतर्गत 5% का कोटा निर्धारित कर दिया किन्तु इसे आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के पांच न्यायाधीशों की खंडपीठ ने रद्द कर दिया. इसके बाद भी कांग्रेस नहीं रुकी और 2007 में मुसलमानों की 14 श्रेणियों को ओबीसी की मान्यता देते हुए 4% कोटा निर्धारित कर दिया ताकि आरक्षण की 50% की सीमा पार न हो और इसके लिए कानून बना दिया लेकिन सर्वोच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगाते हुए सरकार की गंभीर आलोचना की. 2014 में तेलंगाना के गठन के बाद टीआरएस के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने मुसलमानों के लिए आरक्षण का कोटा बढ़ाते हुए 12% करने का प्रस्ताव विधानसभा में पारित किया और इसे केंद्र सरकार की अनुमति के लिए भेजा जिसे भाजपा सरकार से अनुमति नहीं मिल सकी.  

कांग्रेस की कर्नाटक, केरल और आंध्र प्रदेश की सरकारों ने भी समय समय पर मुसलमानों की अनेक जातियों को बिना कोटा निर्धारित किए ओबीसी वर्ग में शामिल किया, जिसके अंतर्गत उन्हें आज भी आरक्षण प्राप्त हो रहा है. उत्तर प्रदेश और बिहार में में यही काम पिछड़ों के मसीहा कहे जाने वाले मुलायम सिंह और लालू यादव ने किया. इससे हिंदू समुदाय के ओबीसी वर्ग का आरक्षण अपने आप कम हो गया, और उन्हें बहुत नुकशान हुआ. मंडल कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग को जो आरक्षण दिया गया है उसका वास्तविक लाभ काफी हद तक मुस्लिम समुदाय को मिल रहा है. हाल में बिहार की बहु प्रचारित जातिगत सर्वे में समूचे मुस्लिम समुदाय को पिछड़े वर्ग में शामिल किया गया था जिसका उद्देश्य भविष्य में इन्हें ओबीसी श्रेणी के अंतर्गत बिना कोटा निर्धारित किए आरक्षण देने का रहा होगा.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चुनावी सभाओं में मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए कांग्रेस पर तीखा हमला कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि कांग्रेस पिछड़े वर्ग का आरक्षण काटकर धार्मिक आधार पर मुस्लिम समुदाय को देने का कार्य कर रही है. उन्होंने सम्पन्न लोगों का धन छीनकर मुस्लिम घुसपैठियों में बांटने की कांग्रेस की मंशा पर तीखा हमला बोला. इसके जवाब में कांग्रेस ने मोदी पर आरोप लगाया कि वह यदि सत्ता में वापस आयेंगे तो संविधान बदल कर आरक्षण समाप्त कर देंगे लेकिन कलकत्ता उच्च न्यायालय के फैसले के बाद पूरा इंडी गठबंधन रक्षात्मक मुद्रा में आ गया है यद्यपि अब चुनाव के केवल दो चरण बाकी हैं लेकिन जनता में संदेश पहुँच गया है कि इंडी गठबंधन के घटक दल अपने अपने राज्यों में मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए कुछ भी कर गुज़रने से संकोच नहीं करते. प्रधानमंत्री द्वारा लगाए गए आरोपों की पुष्टि कांग्रेस के दस्तावेज़ों से भी होती है.

कांग्रेस ने 2004 के अपने घोषणापत्र में लिखा था कि उसने कर्नाटक और केरल में मुसलमानों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में इस आधार पर आरक्षण दिया है कि वे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हैं. कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर भी मुसलमानों और अन्य अल्पसंख्यकों को शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में इस तरह की सुविधा प्रदान करने के लिए कृत संकल्पित है. 2009 के कांग्रेस के चुनाव घोषणापत्र में भी इस वायदे को दोहराया गया है. 2014 के घोषणापत्र में भी कांग्रेस ने लिखा था कि कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण देने के मामले में कई कदम उठाए हैं. सरकार न्यायालय में लंबित इस मामले की प्रभावी ढंग से पैरवी करेगी और सुनिश्चित करेगी कि उचित कानून बनाकर इन नीति को राष्टीय स्तर पर लागू किया जाए. इससे बिलकुल स्पष्ट है कि मुसलमानों को आरक्षण देना कांग्रेस की सोंची समझी नीति है, जिस पर दशकों से काम किया जा रहा है.

कलकत्ता उच्च न्यायालय के निर्णय ने भाजपा को एक बड़ा राजनैतिक हथियार दे दिया है और चुनाव के बीच ही भाजपा द्वारा लगाए जा रहे मुस्लिम तुष्टीकरण के आरोप की पुष्टि भी न्यायालय द्वारा कर दी गई है. यद्यपि उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि इन जाति प्रमाण पत्रों के आधार पर जो लोग सरकारी नौकरियों में आ गए हैं उन्हें निकाला नहीं जाएगा लेकिन हिंदू अन्य पिछड़ा वर्ग के विरुद्ध किए गए ममता सरकार के इस षडयंत्र से कितनी नौकरियां उनके हाथ से फिसल गई, इसका पता लगाया जाना अत्यंत आवश्यक है. पश्चिम बंगाल ही नहीं, उत्तर प्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, कर्नाटक तेलंगाना आंध्र प्रदेश और केरल सहित सभी राज्यों में विस्तृत जांच की अत्यंत आवश्यकता है कि हिन्दू अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ की गई धोखाधड़ी में उनका कितना नुकसान हो चुका है.

केंद्र सरकार द्वारा प्रभावी कानून बनाकर ये सुनिश्चित किया जाना अत्यंत आवश्यक है कि बिना संसद की अनुमति के राज्य सरकारे अपने प्रदेश में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग में शामिल जातियों में फेरबदल न कर सके. इसके साथ ही अनुसूचित जाति जनजाति और पिछड़े वर्ग को भी अपने अधिकारों की रक्षा के लिये सजग होने की आवश्यकता है ताकि उन्हें मिलने वाला लाभ मुस्लिम तुष्टीकरण की भेंट न चढ़ जाए. उन्हें अल्पसंख्यकों के साथ किसी राजनैतिक गठबन्धन के झांसे में भी नहीं आना चाहिए वरना सबकुछ लुटा के समझ में आया तो फिर बचने का कोई रास्ता नहीं बचेगा.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~``

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