रविवार, 8 जनवरी 2023

कब रुकेगा हिन्दू नरसंहार

 

कब रुकेगा हिन्दू नरसंहार



जम्मू कश्मीर में रजौरी के पास डांगरी गांव में 4 हिंदुओं की हत्या के बाद दूसरे दिन भी घर के बाहर फिट की गई आईईडी द्वारा विस्फोट किया गया जिसमें 2 बच्चों की मृत्यु हुई और अनेक घायल हुए. आतंकवादियों ने घरों में आधार कार्ड देख कर और यह सुनिश्चित करके कि वे  हिंदू हैं, उनकी हत्या की. हिंदुओं को लक्ष्य करके की जा रही हत्याएं काफी समय से हो रही हैं. स्कूल शिक्षिका, बैंक मैनेजर, राज्य कर्मचारियों सहित अनेक हिंदुओं की हत्याये की जा चुकी हैं. राज्य के हिंदू भयाक्रांत हैं और उन्होंने खुलकर कहना शुरू कर दिया  है कि 1990 का दौर फिर शुरू हो गया है. इसके पहले भी कई कर्मचारियों की हत्याएं हो चुकी हैं और इसके बाद सरकार ने प्रतिक्रिया स्वरूप हिंदू कर्मचारियों को जम्मू संभाग में स्थानांतरित करना शुरू कर दिया, जो किसी भी हालत में समस्या का समाधान नहीं हो सकता.

आश्चर्य की बात है कि जब केंद्र सरकार पूरी दुनिया को यह संदेश देने की कोशिश कर रही है कि घाटी में सब कुछ सामान्य हो चुका है और घाटी में कश्मीरी पंडितों की वापसी की जा रही है, ऐसे में एक बार फिर हिन्दुओं का पलायन शुरू हो जाना यह रेखांकित करता है कि सरकार शायद समस्या की जड़ पर प्रहार करने से कतरा रही है अन्यथा कश्मीरी पंडितों और अन्य विस्थापित हिंदुओं द्वारा दिए गए सुझाव पर सरकार अवश्य ध्यान देती.

इसे विडंबना ही कहा जाएगा कि मुस्लिम बाहुल्य कश्मीर में आज भी मुसलमानों को अल्पसंख्यकों की सारी सुविधाएं दी जा रही हैं और हिंदू आबादी को समस्याओं का बंधक बनाकर रखा गया है. सरकार से हताश होकर ही पहले भी हिंदू आबादी  ने घाटी से पलायन किया था और अब पलायन की आग जम्मू तक आ पहुंची है. वैसे तो आजादी के समय ही तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने इस राज्य को व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर एक चरमपंथी पाकिस्तान समर्थक के हवाले कर दिया था जिसने पाकिस्तान की सहायता से जम्मू कश्मीर को स्वतंत्र राष्ट्र बनाने की भी कोशिश की और पाकिस्तान के साथ मिलाने की भी. जिसकी दूसरी और तीसरी पीढ़ी ने भी उसी कार्य को आगे बढ़ाया और भारत सरकार के तमाम संसाधनों पर ऐशो आराम की जिंदगी जीते हुए कभी भी हृदय से अपने आप को भारतीय स्वीकार नहीं किया. धारा 370 खत्म होने के बाद उनके वित्तीय स्रोतों पर कुछ असर जरूर पड़ा लेकिन भारत सरकार से की गई लूट उनकी कई पीढ़ियों के लिए पर्याप्त है. आज ये बयान दे रहे हैं कि हत्यायें तब तक नहीं रुकेगी जब तक कश्मीर के साथ इंसाफ नहीं होता. हाल में हुए हिंदू नरसंहार को भी उन्होंने देश में फैलाये जा रहे मुस्लिम विरोधी नफरत के माहौल का परिणाम बताया. यह अलग बात है कि 1990 में जब घाटी में हिंदूओं का वीभत्स नरसंहार हुआ था और जिसके बाद बड़े पैमाने पर हिंदुओं का पलायन हुआ, उस समय वह राज्य के मुख्यमंत्री थे. उस समय केंद्र में भाजपा की सरकार भी नहीं थी तो नफरत का माहौल भी नहीं रहा होगा. पीडीपी अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने भी घाटी में हो रही हत्याओं का कारण पूरे देश में मुस्लिमों के विरुद्ध बनाए जा रहे माहौल को बताया. 

जम्मू कश्मीर में हिन्दू के विरुद्ध आतंकवाद को मुस्लिम नेताओं द्वारा   प्रायः कुछ भटके हुए मुस्लिम युवकों की कार्यवाही बताया जाता है और साथ में यह भी जोड़ दिया जाता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता. दुर्भाग्य से उनके इस झूठे कथन को ज्यादातर राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिलता है. इस तरह से समस्या के कारणों को बड़ी आसानी से दबा दिया जाता है. जम्मू कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने  बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में  लगभग इसी स्वर में कहा कि "ये सच है कि कुछ कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाते हुए हमले हुए हैं मगर कुछ और लोगों पर भी हुए हैं और आतंकवादी हमलों को किसी धर्म के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. उन्होंने यह भी कहा कि अगर देखेंगे तो कश्मीरी मुसलमानों की भी जान गई है और वह संख्या ज़्यादा ही होगी कम नहीं. दूसरी बात ये कि यहाँ सड़कों पर 125-150 निर्दोष लोग मारे जाते थे, यहाँ पिछले तीन सालों में एक भी व्यक्ति सुरक्षा बलों की गोलियों से नहीं मारा गया है. ये सामान्य बात नहीं है." उनके इस वक्त विषय सरकार की मन: स्थिति  समझी जा सकती है.  इस तरह के मन, वचन और आधे अधूरे प्रयासों से हिंदुओं का नरसंहार कभी रुकेगा, इसकी कल्पना करना मुश्किल है. 

अतीत में आतंकवाद के खिलाफ संघर्ष में राज्य की ग्राम रक्षा समितियों ( वीडीजी) ने बहुत अच्छा कार्य किया था और इस कारण आतंकी वारदातों पर काफी हद तक रोक लगी थी. इस योजना के अंतर्गत समितियों के सदस्यों को हथियार उपलब्ध कराए गए थे. कुछ समय पहले ही रजौरी में इन समितियों के विरोध के बाद भी जिला प्रशासन ने उनके हथियार वापस ले लिये थे जिसकी जांच तो आवश्यक है ही, साथ ही ग्राम रक्षा समितियों को अधिक से अधिक हथियार तुरंत उपलब्ध कराए जाने चाहिए जिससे ग्रामीणों में न केवल सुरक्षा की भावना कर कर सके बल्कि लोग आतंकवादियों के विरुद्ध खड़े हो सके.

धारा 370 खत्म करने के बाद जब जम्मू कश्मीर का विभाजन दो केंद्र शासित प्रदेशों में किया गया था तब भी मेरा  मत था कि कश्मीर और जम्मू को भी दो अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश बना देने चाहिए थे ताकि घाटी में हो रहे आतंकवाद और नरसंहार की आग से कम से कम जम्मू को बचाया जा सके. जम्मू के लोगों को  राज्य के डीलिमिटेशन से भी काफी उम्मीदें थी कि शायद  जम्मू संभाग में विधानसभा सीटों की संख्या बढ़ जाएगी या फिर  पाक अधिकृत कश्मीर के लिए खाली 23 विधानसभा सीटों को जम्मू संभाग में जोड़ दिया जाएगा. जिससे राज्य की सत्ता में जम्मू की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी और राज्य अलगाववाद तथा पाकिस्तान समर्थक राजनीतिक धंधेबाजों  के चंगुल से निकल सकेगा. केंद्र सरकार ने न केवल एक सुनहरा अवसर खो दिया बल्कि जम्मू के राष्ट्रवादियों को भी निराश किया.

जम्मू में सरकारी भूमि और तवी नदी के रिवर बेड पर बांग्लादेशियों और रोहिंग्या घुसपैठियों को अनधिकृत किंतु योजनाबद्ध ढंग से, खासतौर से सैन्य प्रतिष्ठानों के आसपास बसाये जाने को भी सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया है. यह सब अनायास नहीं हुआ यह एक बड़े षड्यंत्र का छोटा सा हिस्सा है जिसके द्वारा जम्मू का भी जनसांख्यिकी बदले जाने का प्रयास किया गया है.

छद्म धर्मनिरपेक्षता की बीमारी से ग्रस्त ज्यादातर लोग यह दावा करते हैं कि आतंकवादी सांप्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने की कोशिश करते हैं लेकिन  इस प्रश्न का उत्तर जानते हुए भी देने से कतराते हैं कि आखिरकार इन आतंकवादियों का उद्देश्य क्या है? और इन्हें स्थानीय मुस्लिम राजनेताओं का संरक्षण और देश  के अन्य मुस्लिम राजनेताओं व धर्म गुरुओं का समर्थन क्यों हासिल होता है? इसका स्पष्ट उत्तर है - गजवा ए हिंद, जिसके द्वारा केवल  भारत ही नहीं बल्कि पूरे हिमालय क्षेत्र का इस्लामीकरण करना है ताकि इसके बाद पूरी दुनिया पर इस्लामिक शासन के सपने को साकार किया जा सके.

आजादी के समय मुस्लिमों का एक वर्ग भारत विभाजन द्वारा एक अलग देश की मांग कर रहा था जबकि दूसरा वर्ग चाहता था कि वह भारत में रहकर ही जिहाद के माध्यम से गजवा ए हिंद की संकल्पना को साकार कर सकें. भारत विभाजन में देवबंद और अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका थी, जो आज भी किसी ने किसी तरह से गजवा ए हिंद का केंद्र बिंदु बने हुए हैं, और सरकार असहाय है. इस्लामिक ठेकेदार अरब देशों का मानना है कि बिना गजवा ए हिंद  के पूरी दुनिया पर इस्लाम का शासन संभव नहीं है क्योंकि उनके पास पैसा तो है लेकिन पानी और उर्वरक भूमि नहीं है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के इस्लामीकरण से ही प्राप्त हो सकती है और इससे प्राप्त प्राकृतिक संसाधनों और धर्मान्तरित हुए मानव संसाधनों को आतंकवाद की विभीषिका में झोंक कर इस्लामिक विश्व विजय का सपना साकार किया जा सकता है.  कुछ हिंदुओं सहित भारतीय मुसलमानों के एक बड़े वर्ग का इस परियोजना को समर्थन प्राप्त है. "सबका साथ और सबका विश्वास" की धुन में केंद्र सरकार भी इस कड़वी सच्चाई को अनदेखा कर रही है. आजादी के बाद इन 75 सालों में भारत की जनसंख्यकी किस तरह से बदली है और पूरे भारत में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण किस तरह हुआ है, यह भारत के उन सभी राष्ट्र वादियों के लिए जो भारत की प्राचीन सनातन संस्कृति को बचाना चाहते हैं, एक गंभीर चेतावनी है. 

जम्मू कश्मीर के केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के कारण राज्य कर्मचारी, केंद्र शासित प्रदेशों के कैडर में शामिल हो गए हैं लेकिन सरकार ने व्यापक रूप से राज्य कर्मचारियों को अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में स्थानांतरित नहीं किया है. राज्य का पुलिस विभाग भी  उसमें से एक है, जिसमें अलगाववाद के प्रति हमदर्दी रखने और उन्हें समर्थन करने वालों की बड़ी संख्या है, जिसकी संदिग्ध भूमिका भी कई घटनाओं के लिए जिम्मेदार होती है. अन्य विभागों में भी ऐसी ही स्थिति है. इसलिए केंद्र सरकार को  अधिक से अधिक कर्मचारियों का अनिवार्य रूप से अन्य केंद्र शासित प्रदेशों में  स्थानांतरण किया जाना चाहिए. राज्य में खासतौर से घाटी में, पूर्व सैनिकों की बस्तियां बसाने का कार्य किया जाना चाहिए और उन्हें हथियार उपलब्ध कराए जाने चाहिए. 

केंद्र सरकार को कम से कम जम्मू कश्मीर में खुले मन से कार्य करके पूरे भारत में लोगों को संदेश देना चाहिए कि वह पृथ्वी पर जन्मी  देश की इस प्राचीन सभ्यता को बचाने के लिए कृत संकल्प है. सरकार द्वारा जम्मू-कश्मीर में सनातन संस्कृति को बचाने के प्रयास और उनकी सफलता ही भारत में इस संस्कृति के भविष्य का निर्धारण करेंगे, यह बात मोदी जी को अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए.

-     शिव मिश्रा (https://www.youtube.com/@hamhindustanee123)    



   

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