भारत का विकृत इतिहास
भारत का इतिहास इतना तोड़ मरोड़ कर
पेश किया गया है कि सच्चाई को लगभग छिपा देने का प्रयास हुआ है और यह बात किसी से
छिपी नहीं है. दिल्ली में वीर बाल दिवस
के अवसर पर आयोजित एक समारोह में प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने इस बात को एक बार
फिर दोहराया कि भारत में इतिहास के रूप में हमें षड्यंत्र पूर्वक गढ़ा गया विमर्श
पढ़ाया गया है. भारतीय संस्कृति की महान उपलब्धियों को छुपाया गया और राष्ट्रीय नायकों के अनुकरणीय और प्रेरणादायक योगदान को अनदेखा किया
गया और आक्रान्ताओं को महिमामंडित किया गया. हिंदू और राष्ट्र विरोधी शक्तियों ने
यह सब जानबूझकर इसलिए किया ताकि हिंदू समाज कभी भी अपनी संस्कृति, धर्म, पूर्वजों की महान विरासत और उल्लेखनीय उपलब्धियों पर गौरवान्वित न हो
सके.
वीर बाल दिवस, जिसका आयोजन गुरु
गोविंद सिंह के दो साहिब जादों के प्रेरणादायक बलिदान को स्मरण करने और भावी
पीढ़ियों को उनके अदम्य साहस, और धर्म के प्रति समर्पण की भावना से
प्रेरणा प्राप्त करने के लिए आयोजित किया गया है,
स्वयं एक ऐसा उदाहरण है जिसे स्वतंत्रता के 75 साल बाद गैर कांग्रेसी
सरकार के समय सार्वजनिक किया जा सका. इतने बड़े बलिदान और अदम्य साहस की कहानी को
न तो इतिहास में सम्मानजनक जगह मिल सकी और ना ही सरकार ने अपने स्तर
से कभी भावी पीढ़ियों को इससे प्रेरणा लेने के लिए पाठ्यक्रमों में शामिल किया.
क्रूर और बहसी मुगल शासक औरंगजेब ने
हिंदुओं और सनातन संस्कृति में विश्वास करने वाले लोगों का जितना धार्मिक और
सामाजिक उत्पीड़न किया, ऐसा उदाहरण संसार में कहीं नहीं
मिलता. क्रूर हत्यारे औरंगजेब ने सबक सिखाने के उद्देश्य गुरु गोविंद सिंह के दो
पुत्रों जोरावर सिंह और फतेह सिंह, जिनकी उम्र 6
और 9 वर्ष थी, को इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए डराया और उनके
इनकार करने पर उन्हें दीवाल में जिंदा चुनवा दिया. इतनी छोटी उम्र में जान देकर भी
धर्म परिवर्तन से इंकार करने का साहस, निडरता और
निर्भीकता, भावी पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय उदाहरण है जिसे जानबूझकर अनदेखा किया
गया. आज सरकार की अनदेखी और सामाजिक पतन का यह स्तर आ
गया है कि 1
किलो चावल, 2 किलो गेहूं, के लिए भी धर्म परिवर्तन हो जाता है. आज लव जिहाद राष्ट्रव्यापी अभियान बन चुका
है.
इतिहास में झूठे विमर्श
गढ़े जाने का
कारण राष्ट्रीय जन मानस में विशेषतया हिंदुओं में हीन भावना उत्पन्न करना
है, ताकि वे कभी स्वाभिमान से अपना सिर ऊंचा न कर सकें और उन्हें हमेशा इस
बात का मानसिक तनाव रहे कि उन पर मुस्लिमों और अंग्रेजों ने शासन किया था क्योंकि
वे कमतर हैं. यह सनातन राष्ट्र अपनी गुलामी की मानसिकता से
बाहर आकर विश्व को यह कभी न बता सके कि वे
इस पृथ्वी पर सबसे पुरानी सभ्यता हैं, तथा सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और
वैज्ञानिक धरातल पर वे विश्व में सर्वश्रेष्ठ थे, इसलिए
विश्व गुरु थे. ज्ञान और विज्ञान की जिस पराकाष्ठा को इस सभ्यता ने हजारों वर्ष
पहले पार कर लिया था, संपूर्ण विश्व को उसकी जानकारी कई हजार वर्ष बाद तक नहीं हो
पाई थी. यह वही संस्कृति है, नालंदा में जिसके ज्ञान के भण्डार को
अनपढ़, जाहिल और जंगली मुस्लिम आक्रांताओं ने आग
के हवाले किया
था और दुर्लभ ज्ञान-विज्ञान की पुस्तकों को जलने में 6 से 7 माह लग गए थे.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर वामपंथ
इस्लामिक गठजोड़ की दुरभि संधि में शामिल होकर तथाकथित चाचा ने भारत
की शिक्षा व्यवस्था, इतिहास और राष्ट्रीय गौरव को मौलाना
आजाद के हवाले कर दिया था, जिन्होंने कुछ वामपंथी इतिहासकारों
को खरीद कर वह सब कुछ लिखवा डाला जो मुस्लिम जगत को चाहिए था. इन गुलाम
इतिहासकारों ने अकबर को महान, औरंगजेब को धर्मनिरपेक्ष और बाबर को
लोकप्रिय शासक बना दिया. महाराणा प्रताप, शिवाजी जैसे
वीरों को लुटेरा बना दिया. चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह और
राजगुरु जैसे क्रांतिकारी वीरों को आतंकवादी बना दिया. ये केवल कुछ
उदाहरण है, भारत का पूरा इतिहास इस तरह के मनगढ़ंत झूठ का
पुलिंदा है. अगर स्वतंत्र इतिहासकारों की अत्यंत
सीमित संख्या में पुस्तकें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध न होती, तो शायद हमें
अपने पूर्वजों के बारे में भी सच मालूम नहीं होता.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इतिहास की इस विकृति विसंगति के बारे में कई बार देश को सावधान किया है. गृहमंत्री अमित शाह और कई केंद्रीय मंत्री भी हमेशा यही बातें दोहराते रहते हैं. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साधारण प्रचारक से लेकर सरसंघचालक तक और उनकी सभी अनुषांगिक संगठन के पदाधिकारी प्रायः इतिहास में लिखे गए झूठ के बारे में बताते हैं. यह बहुत अच्छी बात है. सोशल मीडिया के इस युग में जनता बहुत जागरूक है और उन सभी से पूरी तरह सहमत भी है. जागरूक होता हिंदू जनमानस स्वत: स्फूर्ति से इतिहास की वास्तविक स्थिति का आदान प्रदान कर रहा है. छोटी कक्षाओं से स्नातकोत्तर की पाठ्य पुस्तकों में आज भी वही गलत इतिहास पढ़ाया जा रहा है. एनसीईआरटी और विश्वविद्यालयों की पुस्तकों में भी झूठ और मनगढ़ंत बातें आज भी बेरोकटोक चल रही हैं. स्वतंत्रता के 75 साल बाद देश के नौनिहाल झूठा और मनगढ़ंत इतिहास पढ़ रहे हैं और आत्मसात कर रहे हैं. यही इनका सच बन जाता है. ऐसी भावी पीढ़ियों से देश क्या अपेक्षा कर सकता है.
प्रधानमंत्री मोदी की यह बात अत्यंत
हृदयस्पर्शी है कि झूठे और गढे गए विमर्श को बदले जाने की आवश्यकता है. पूरा देश
उनकी बात से सहमत हैं लेकिन यह कार्य करेगा कौन? यह कार्य किसी व्यक्ति
द्वारा नहीं सरकार द्वारा किया जाना है.
इतिहास को परिमार्जित करना वर्तमान सरकार का उत्तरदायित्व ही नहीं, नैतिक धर्म भी
है. भाजपा और उनके अनुषांगिक संगठन दशकों से इतिहास की इन विसंगतियों की तरफ जनता
का ध्यान आकर्षित करते रहे हैं. अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण
आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी जैसे दिग्गज भाजपाई नेताओं ने संसद में इस मुद्दे पर
अनेक बार अत्यंत प्रभावशाली ढंग से अपनी बातें रखीं. यह सब तब की बातें हैं जब
भाजपा विपक्ष में थी. आज पिछले 8 वर्षों से केंद्र में
भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार है, लेकिन भाजपा के
नेता आज भी उसी तरह से बात कर रहे हैं जैसे तब करते थे जब वह विपक्ष में थे. विश्व का इतिहास गवाह है कि 8 वर्ष का समय कम नहीं होता. इतने समय में
कई देशों ने अपना इतिहास परमार्जित कर डाला, राष्ट्रीय
अस्मिता पर कलंक के धब्बों को धो डाला, और जरूरत पड़ने
पर संविधान भी बदल डाला और राष्ट्रहित के विरुद्ध काम करने
वालों को समझा डाला.
ऐसा नहीं है कि इतिहास को कुरूपित और
विकृत करने का कार्य सिर्फ भारत में किया गया. ऐसा हर उस देश में हुआ जो पराधीन था, लेकिन
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद इन देशों ने जो काम सबसे पहले किया वह था अपनी
सांस्कृतिक विरासत को पुनर्स्थापित करना, इतिहास को
परिमार्जित करना और गुलामी के कलंक धोना. दुर्भाग्य से भारत में स्वतंत्रता के बाद
परतंत्रता की निशानियां और गुलामी के कलंक हटाना तो दूर की बात तत्कालीन सरकारों
ने भारत के इतिहास को और अधिक विकृत और कलंकित करने का कार्य
किया.
परतंत्रता की त्रासदी के जख्म, आक्रांताओं की क्रूर और भयावह
कार्यवाही के अवशेष, देश के मूल निवासियों पर किए गए
अत्याचारों की दर्द भरी दास्तान और उसके प्रमाण यहां
वहां हर जगह पूरे देश में बिखरे पड़े हैं. पिछली सरकारों
ने तो इन्हें सुरक्षित रखने के पुख्ता उपाय किए और भविष्य में भी इन्हें सजा सवांर
कर रखने के लिए कानून बनाकर राष्ट्र के मूल निवासियों के पैर में बेड़ियां डाल दी.
आज विश्व की इस प्राचीनतम सभ्यता के मूल निवासियों को यह अधिकार भी नहीं है कि वह
अपने ऊपर की गई ज्यादितियों का प्रतिकार कर सकें, दासता के
कलंकित कार्यों का परिष्कार कर सकें और गुलामी के प्रतीक हटाकर स्वतंत्रता
का एहसास कर सकें.
यह दुखद है कि
पिछले 8 वर्षों
में केंद्र सरकार ने इतिहास की इन विसंगतियों, झूठे विमर्श, सनातन संस्कृति
और हिंदू धर्म को कलंकित करने वाले मनगढ़ंत कहानियों,
राष्ट्रीय
नायकों और महान विभूतियों की अनदेखी को न्यायोचित सुधारने की दिशा में कोई ठोस कदम
नहीं उठाया है. केवल शिक्षा मंत्रियों को बदलने और शिक्षा नीति में बदलाव
प्रस्तावित करने से ही इतिहास परिमार्जित नहीं हो जाया करता. जब स्मृति ईरानी
शिक्षा मंत्री थी तब थोड़ा कार्य शुरू जरूर हुआ था लेकिन
दबाव में उनका मंत्रालय बदल गया और उसके बाद निशंक, जावड़ेकर और
धर्मेंद्र प्रधान के कार्यकाल में इस संबंध में कोई प्रगति हुई हो ऐसा नहीं लगता.
क्या भारतीय इतिहास की इन विसंगतियों
को अफगानिस्तान का तालिबान या पाकिस्तान ठीक करेगा? या भारत के उस वर्ग,
जो आक्रांताओं को अपना पूर्वज मानता
है, से अपेक्षा की जा सकती है कि वह आगे आकर इतिहास का भूल सुधार करेगा?
भारत के
विकृत और
विसंगतियों भरे इतिहास का समय-समय पर उलाहना देना अगर भाजपा के लिए केवल एक नारा
है, तब तो कुछ नहीं हो सकता, लेकिन यदि भाजपा गंभीर है तो उसे
तत्काल इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने चाहिए क्योंकि भारत में राष्ट्रीय जन जागरण
का अभियान आज जिस चरम पर है, यह काम मुश्किल
नहीं है लेकिन इसमें अड़चन है भाजपा में इच्छाशक्ति की कमी.
अब तो 2024 के
लोकसभा चुनाव की दुंदुभी बज चुकी है, अगर अभी भी
इसकी शुरुआत नहीं हो सकी तो मानना चाहिए कि इसकी शुरुआत कभी नहीं होगी और यह कार्य
भी कभी पूर्ण नहीं होगा, विशेषकर तब जब भाजपा पर “सबका विश्वास” प्राप्त करने का
दबाव या सनक सवार हो गई हो.
~~~~~~~~~~~~~~~शिव
मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~