नीतीश
कुमार अत्यंत महत्वाकांक्षी व्यक्ति हैं, इसमें
किसी को कोई संदेह नहीं है लेकिन यह बात बहुत कम लोग जानते हैं कि उनकी
महत्वाकांक्षा को पर भी भारतीय जनता पार्टी ने ही लगाए हैं. चूंकि भाजपा बिहार में अपना प्रसारर करना चाहती थी और उसे एक
विश्वसनीय साथी की तलाश थी, जो उसे जेडी यू और नीतीश में दिखाई पड़ रहा था किंतु यह
वह समय था जब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दल जो एक वर्ग विशेष के फोटो की लालसा में तुष्टिकरण
की राजनीति करते थे और इसलिए भाजपा को सांप्रदायिक कहकर लांछित भी करते थे और अछूत
समझते थे. इसलिए भाजपा ने 1990 से जेडीयू से गठबंधन कर रखा था और बिहार में भाजपा
की भूमिका एक छोटे भाई की थी.
जिस समय केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व
में भाजपा सरकार बनी थी उसमें नीतीश कुमार कैबिनेट मंत्री थे लेकिन साल 2000 में
हुए चुनाव में भाजपा जेडीयू गठबंधन बिहार में सबसे बड़ा गठबंधन बन गया लेकिन बहुमत
से काफी दूर था. राज्यपाल ने सरकार बनाने के लिए गठबंधन को आमंत्रित किया. अटल जी
इस तरह की सरकार नहीं बनाना चाहते थे लेकिन नीतीश कुमार को संतुष्ट करने के लिए उन्होंने हाँ कर दी. नीतीश
कुमार ने मुख्यमंत्री पद की शपथ तो ले ली लेकिन बहुमत का जुगाड़ नहीं कर पाए और
इसलिए उन्हें 7 दिन के अंदर इस्तीफा देना पड़ा. 2005 में हुए चुनाव में भाजपा
जेडीयू गठबंधन ने जबरदस्त सफलता हासिल की और नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने और यह
क्रम 2010 में भी दोहराया गया.
केंद्र
में गठबंधन की सरकार बनने से नीतीश कुमार के मन में प्रधानमंत्री बनने का सपना
पलने लगा था और यह सपना तब कुलांचे भरने लगा जब भाजपा के ही कुछ लोगों ने उन्हें
प्रधानमंत्री मेटीरीअल कहना शुरू कर दिया. उन्हें लगता था की कभी ऐसा दिन आ सकता
है जब भाजपा बहुमत से थोड़ी सी दूर रह जाए और दूसरी पार्टियां किसी धर्मनिरपेक्ष
चेहरे के नाम पर समर्थन देने का वायदा करें उस समय नीतीश का धर्मनिरपेक्ष और
सुशासन बाबू का चेहरा उन्हें प्रधानमंत्री के पद पर पहुंचा सकता है. उन्हें गंभीर
मानसिक आघात तब लगा जब 2013 में भाजपा ने प्रधानमंत्री के चेहरे के लिए गुजरात के
तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को चुना. इसके तुरंत बाद नीतीश कुमार मैं भाजपा
से अपना नाता तोड़ लिया और आश्चर्यजनक रूप से अपनी धुर विरोधी आरजेडी, जिसके 10 साल
के शासन को नीतीश जंगलराज कहते थे, के साथ गठबंधन करके सरकार बना ली और लालू के
पुत्र तेजस्वी यादव उपमुख्यमंत्री बन गए. नीतीश का आकलन था कि यदि भाजपा को बहुमत मिल गया
तो उनकी कोई भूमिका नहीं रह जाएगी और यह
नहीं मिलता है तो नीतीश को एक वर्ग विशेष के वोटों से बिहार में हाथ धोना पड़ेगा
क्योंकि नरेंद्र मोदी पर गुजरात दंगों के दाग चस्पां करने की कोशिश की गई थी.
2014
के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार
बना ली और बिहार में भाजपा का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा. 2015 में हुए विधानसभा के
चुनाव में नीतीश लालू के गठबंधन ने जबरदस्त सफलता हासिल की और दोबारा सरकार बनाने
में कामयाब रहे लेकिन कुछ दिनों बाद ही नीतीश को फिर लगने लगा की आरजेडी के साथ
सरकार बनाकर उनकी छवि को नुकसान हो रहा है जो उनके प्रधानमंत्री बनने के रास्ते
में रोड़ा बन सकता है इसलिए उन्होंने भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी जो उनके बेहद करीबी दोस्त थे,
के माध्यम से भाजपा नेतृत्व से संपर्क किया और भाजपा के साथ सरकार बना ली. दुबारा
भाजपा के साथ आने के बाद लोगों को विश्वास हो गया था कि कोई भी धीर गंभीर व्यक्ति
अब दोबारा नाता नहीं तोड़ देगा. इसलिए 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा ने
पहले से ही घोषणा कर दी थी कि किसी भी दल की सीटें कुछ भी रहे मुख्यमंत्री नीतीश
ही बनेंगे और भाजपा ने यह वायदा तब भी निभाया जब नीतीश को विधानसभा में केवल 43
सीटें मिलीं और भाजपा को 77 सीटें मिलीं. नीतीश का आत्मविश्वास धरातल पर आ गया और
उन्हें तब और भी खराब लगा जब उनकी इच्छा के विपरीत भाजपा ने विधानसभा अध्यक्ष का
पद अपने पास रखा, दो उप मुख्यमंत्री बनाए और भाजपा का मंत्री भी अपने
सामाजिक समीकरणों को ध्यान में रखकर बनाए. भाजपा ने सुशील मोदी को उपमुख्यमंत्री
ना बनाकर नीतीश को पहले ही एक झटका दे दिया था और राज्यसभा भेजकर बिहार की सक्रिय राजनीति
से भी अलग कर दिया जिससे नीतीश बहुत परेशान हो गए.
नीतीश
चाहते थे कि केंद्र सरकार में जेडीयू कोटे के दो कैबिनेट मंत्री रखे जाएं लेकिन
भाजपा ने केवल एक पर हाँ की और इसलिए लंबे समय तक जेडीयू का प्रतिनिधित्व नहीं हो
सका. बताना नीतीश के बेहद करीबी और जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह
केप्रयासों से जेडीयू केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हुआ और आरसीपी सिंह एकमात्र
मंत्री बने. बताओ इस बीच आरसीपी सिंह की भाजपा नेताओं से बहुत नजदीकी संबंध बन गए जिससे
भी नीतीश बहुत परेशान थे और उनको लग रहा था कि महाराष्ट्र की तरह आरसीपी सिंह को
इस्तेमाल करके भाजपा नीतीश कुमार को अलग थलग कर देगी. नीतीश ने आरसीपी सिंह का
राज्यसभा का कार्यकाल नहीं बढ़ाया और इससे उनका मंत्री पद स्वतः समाप्त हो गया जिससे
आरसीपी सिंह और नीतीश कुमार के बीच दूरियां बढ़ गई. भागन वीर के मामले में जब बिहार
में प्रदर्शन हुए तो नीतीश ने उन्हें रोकने का कोई प्रयास नहीं किया इसलिए बिहार
में सार्वजनिक संपत्ति या खासतौर से रेलवे संपत्तियों को जितना नुकसान पहुंचाया
गया उतना किसी भी राज्य में नहीं किया गया. यही नहीं राज्य में भाजपा के कई
कार्यालयों को आग के हवाले कर दिया गया लेकिन नीतीश खामोश रहे. नीतीश उसी समय
आरजेडी के साथ महागठबंधन में शामिल होना चाहते थे लेकिन भाजपा चाहते थे कि
राष्ट्रपति का चुनाव होने तक किसी भी तरह नीतीश को अपने पाले में रखा जाए और वे
ऐसा करने में कामयाब रही.
नीतीश
कुमार की नाराजगी फिर भी दूर नहीं हुई और वह केंद्र सरकार से बुलावे के बाद भी
उसके कई समारोहों से दूर रहे. भाजपा से नजदीकी को लेकर ही जेडीयू ने अपने
राष्ट्रीय प्रवक्ता अजय आलोक को भी पार्टी से निष्कासित कर दिया पार्टी के कुछ
नेताओं द्वारा आरसीपी सिंह पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए गए और उनसे स्पष्टीकरण
मांगा गया जिसपर जवाब देने की बजाय उन्होंने पार्टी से इस्तीफा दे दिया और पार्टी
पर गंभीर आरोप लगाए. यही से ऐसा मोड़ आ गया जिसपर नीतीश कुमार ने भाजपा से अलग हो
जाना ही बेहतर समझा और इसलिए राज्य में माहौल एकदम से गर्म हो गया है और अगले
अड़तालीस घंटों में नीतीश कुमार आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बना सकते
हैं.
मैंने 19 जून को यूट्यूब पर एक वीडियो अपलोड किया था जिसमें यह भविष्यवाणी की थी कि नीतीश कुमार पलटी मारने वाले हैं.
आरजेडी
सुप्रीमो लालू यादव ने नीतीश कुमार को पलटू राम का नाम एकदम सही दिया था क्योंकि
वह बीजेपी से पलटी मार कर आरजेडी के साथ आए और फिर आरजेडी से पलटी मार कर बीजेपी
के साथ गए और अब बीजेपी से फिर पलटी मार कर आरजेडी के साथ जा रहे हैं. .
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