धर्मांतरण ही राष्ट्रान्तरण है - भारत
में हो रहा है भितरघात
दुनिया में कोई भी धर्मान्तरण स्वेच्छा से नहीं होता है फिर
भी सनातन धर्म लंबे समय से धर्मांतरण का
दंश झेल रहा है. इसकी शुरुआत जैन धर्म और बौद्ध धर्म के उद्भव के साथी शुरू हो गई
थी और सिख पंथ का निर्माण तो खुद सनातन सहयोग से किया गया था. इन तीनों संप्रदायों को सनातन धर्म ने अपने दार्शनिक स्वरूप के रूपों में स्वयं अंगीकार किया और इसलिए संविधान में भी इन्हें सनातन का ही एक अंग माना जाता है.
सनातन धर्म पर मतान्तरण का दबाव मुस्लिम आक्रांताओं के भारत पर आक्रमण के साथ ही हो गया था. तब इन्होंने भारत
के मंदिरों और पूजा स्थलों पर लूट के इरादे से आक्रमण किए थे और मजहबी उन्माद में
न केवल मंदिरों को नुकसान पहुंचाया था बल्कि लाखों सनातनियों का खून
भी बहाया
था. अकूत धन दौलत के साथ ये लुटेरे
अनगिनत लड़कियों और महिलाओं को भी जबरन उठाकर अपने साथ ले गए थे और इनके साथ जो अमानवीय
अत्याचार किये गए उनकी कल्पना करना भी मुश्किल है. एक मजहब है जिसमें ये माले गनीमत कहा जाता है और आपस में बाँट लिया
जाता है और इसे जायज भी माना जाता है .
मजहब काफिरों / मूर्तिपूजकों को क़त्ल करने पर शाबासी के रूप में गाजी की उपाधि देता है, दूसरे धर्म के पूजा स्थलों को तोड़कर उन पर मस्जिदें खडी कर देना पुण्य का काम माना
जाता है . जब इन मुस्लिम आक्रमणकारियों ने भारत में अपना
साम्राज्य स्थापित किया तो लाखो हिन्दुओं को
तलवार की धार पर या लालच देकर
इस्लाम स्वीकार करवाया. अंग्रेजों के शासन काल में ईसाई मिशनरियों ने भी बड़े
पैमाने पर धर्मान्तरण करवाया. इन्होने
धर्मांतरण के लिए छल कपट का सहारा लिया जिसमें जादू टोने से लोगों की
बीमारी का इलाज करने, आर्थिक सहायता
पहुंचाने, बच्चों को शिक्षा देने के नाम पर बहला फुसला कर मतांतरित
किया गया.
आजादी के बाद
नया संविधान लागू होने के बाद तो
मतान्तरण का खेल संस्थागत रूप से
शुरू हो गया. ऐसा लगता है कि संविधान के
धर्मनिरपेक्ष होने का सबसे ज्यादा फायदा धर्मांतरण कराने वाले लोगों को ही हुआ या शायद इसी उद्देश्य से संविधान को धर्मनिरपेक्ष
बनाया गया. हिंदू और मुस्लिम के सांप्रदायिक आधार पर देश का विभाजन होने के बाद यदि एक देश
मुस्लिम बना था तो स्वाभाविक रूप से दूसरे देश को हिंदू देश होना चाहिए था लेकिन जवाहरलाल
नेहरू ने महात्मा गांधी की सहमति से हिंदुओं के इस देश को साजिशन धर्म निरपेक्ष बना दिया. आजादी के बाद हिन्दू
अपने ही देश में द्वितीय श्रेणी के नागरिक
बनते चले गए. हिन्दुओं ने जिन्हें अपने घर
में आसरा दिया, वे आज हिन्दुओं को उनके अपने
घर से ही विस्थापित कर रहे हैं. संप्रदायिक
तुष्टिकरण की राजनीति ने इस देश को हिन्दुओ से छीन लिया. शुरुआती दौर में
कांग्रेस ने तुष्टिकरण की जमीन पर वोटों
की फसल काटी लेकिन बाद में अनेक क्षेत्रीय दल भी यह फसल काटने लगे . आज
भाजपा को छोड़कर सभी दल मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति भी करते हैं और इन वोटों की प्रतिस्पर्धा में कुछ भी कर सकते हैं. देश के
संसाधनों का बड़ा हिस्सा मुस्लिमो और क्रिस्चियन पर खर्च किया जाता है.
तुष्टिकरण की नीति ने पूरे देश में धर्मांतरण को नई गति प्रदान की. जो
कार्य मुस्लिम आक्रांता तलवार के जोर पर नहीं कर सके उसे गांधी - नेहरू ने बेहद
आसान बना दिया. आज सनातन धर्म पर अपना अस्तित्व बचाने का जितना विकट संकट है, उतना पहले कभी नहीं
रहा. आज अनेक मुस्लिम और क्रिश्चियन संगठन
पूरे समय केवल धर्मांतरण के लिए ही कार्यरत हैं. विदेशी सहायता पर चलने वाले
अनगिनत गैर सरकारी संगठन भी इस दिशा में कार्य कर रहे हैं. धर्मांतरण के लिए पैसा
पानी की तरह बहाया जा रहा है इसका नतीजा
यह है कि आज भारत में 10 से भी अधिक राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों
में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं. कुछ राज्यों में हालात चिंताजनक स्थिति में
पहुंच चुके हैं, जहाँ हिन्दू या तो पलायन कर रहे हैं या फिर धर्मान्तरित हो रहे
हैं. आज इस हिन्दू देश में हिन्दू होना
शर्म और भेदभाव का पर्याय बन गया है. एक अनुमान के अनुसार अगले पचास साल में
इस देश में घोषित तौर पर हिन्दुओं का रहना
मुश्किल हो जाएगा.
दुर्भाग्य से पिछले 7 वर्ष के मोदी
सरकार के कार्यकाल में भी धर्मांतरण रोकने के लिए कोई केंद्रीय कानून नहीं बनाया
जा सका
है, जिससे मामला पूरी
तरह से राज्यों के ऊपर निर्भर है. यद्यपि
धर्मांतरण रोकने के लिए पिछले कुछ वर्षों में भाजपा शासित राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और
हिमाचल आदि में कानून बनाए गए हैं और
धर्मांतरण रोकने के प्रयास किए गए हैं लेकिन फिर भी इसमें पूरी तरह सफलता नहीं मिल
पाई है . उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के कार्यकाल में धर्मांतरण रोकने की दिशा
में उल्लेखनीय कदम उठाए गए हैं और धर्मांतरण में शामिल कई सक्रिय गिरोहों के एक देशव्यापी बड़े रैकेट का भंडाफोड़ किया गया है, लेकिन प्रदेश में धर्मांतरण की जड़ें इतनी गहरी है कि इन पर
एकदम से रोक लगाना बहुत मुश्किल है. जिस प्रदेश में इफ्तिखारउद्दीन जैसे वरिष्ठ आईएएस अधिकारी
कमिश्नर रहते हुए अपने सरकारी आवास पर, सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करते हुए लंबे
समय से धर्मांतरण का कार्य करते रहें हों, उस प्रदेश में
मामले की गंभीरता का सहज अंदाजा लगाया जा सकता है. ऐसा लगता है कि जैसे
पिछली सरकारों ने इस तरफ बिल्कुल आंख बंद कर रखी थी.
मतान्तरण
की बढ़ती घटनाओं के परिपेक्ष में कर्नाटक की भाजपा सरकार
ने धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून का मसौदा विधानसभा में पेश किया है जिसका
सभी विपक्षी दलों खासतौर से कांग्रेस नें जमकर विरोध किया है. कर्नाटक कांग्रेश के अध्यक्ष
डीके शिवकुमार ने बिल का विरोध करते हुए
इसकी प्रति सदन में फाड़ कर फेंक दी. इससे यह परिलक्षित होता है कि भारत में
विभिन्न राजनैतिक दलों का खासतौर से कांग्रेस का रवैया देश की सांस्कृतिक विरासत
बचाने में बिलकुल भी नहीं है.
कोविड-19 का संक्रमण काल और उसमें किया गया लॉक डाउन का
धर्मांतरण करवाने वालों ने भरपूर उपयोग किया . दिल्ली में तबलीगी जमात और
उस की कारगुजारियाँ कोरोना संक्रमण काल में ही पूरे देश के सामने आईं. मानवता को
शर्मसार करने वाला नोएडा में मूक-बधिर विद्यालय के छात्रों का धर्मांतरण इसी समय
किया गया. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉक्टर जयलाल के अपने पेशे को शर्मशार करते हुए कई वीडियो सामने आए
जिसमें वह क्रिस्चियन मिशनरियों की मीटिंग में कहते पाए गए हैं कि कोरोनाकाल का धर्मांतरण के लिए भरपूर उपयोग किया जाना चाहिए.
पंजाब के किसान कृषि कानूनों के विरुद्ध आंदोलन
में व्यस्त रहें और दिल्ली घेर कर बैठे
रहे और राज्य में क्रिश्चियन मिशनरी धर्मांतरण का काम युद्ध स्तर पर चलाते रहे. आज
पंजाब में धर्मांतरण अपने चरम पर है, गुरुग्राम में एक
गुरूद्वारे का उपयोग नमाज पढने के लिए उपयोग किया जाना भी सामान्य घटना नहीं है. अब जाकर
सिख और अन्य सामाजिक संगठनों की
आँख खुली है और इसके विरुद्ध आवाज उठाई है लेकिन पिछले कुछ समय
से हिन्दुओं और सिखों को आमने सामने करने की कोशिशे परवान चढ़ रही हैं. पंजाब
में बेअदबी के मामले अनायास नहीं सोची समझी रणनीति है.
धर्मांतरण में लगे इस्लामिक और क्रिस्चियन
संगठनों में एक चीज में समानता है कि इन दोनों का लक्ष्य हिंदू समाज के कमजोर तबकों खासतौर से से अनुसूचित जाति, जनजाति, पिछड़े और आदिवासी
वर्ग के लोगों को अपने जाल में फंसाना है. कई क्रिश्चियन संगठनों ने हिंदू धर्म के
भोले भाले लोगों को लुभाने के लिए हिंदू धर्म से मिलती-जुलती किताबें छापी हैं
जैसे एक किताब का नाम है "श्री यीशु नारायण व्रत कथा, पूजन विधान, 101 नामावली, आरती सहित- मूल संस्कृत एवं हिंदी अनुवाद". हिंदुओं को धोखा
देने के लिए इन्होंने मसीही मंदिर के नाम से चर्च भी स्थापित कर रखे हैं. यीशु के
मस्तक पर चंदन लगी फोटो के पोस्टर बनाए जाते हैं, कई पोस्टर में यीशु के
चार हाथ दिखाए जाते हैं और उन्हें शेषनाग के फनों के नीचे भगवान विष्णु की तरह
बैठा हुआ दिखाया जाता है. यीशु के लिए परमेश्वर शब्द का इस्तेमाल किया जाता है और
उनकी फोटो में उनके सिर को मध्य में रखकर कई देवी-देवताओं के सिर ऐसे लगाये जाते
हैं जैसे कि भगवान् विष्णु का विश्वरूप हों . मिशनरी कार्यकर्ता परंपरागत भारतीय
मालाओं में क्रॉस डालकर हिंदुओं को पहना रहे हैं. हिंदुओं को लुभाने के लिए भारतीय
पद्धति से हवन और पूजा विधि भी कर्मकांड का हिस्सा बना रहे हैं. मिशनरी
कार्यकर्ता सन्यासियों की तरह ही भगवा
वस्त्र पहनते हैं और जरूरत पड़ने पर मारपीट
भी करते हैं, जिस का आरोप
हिंदूवादी संगठनॉ के कार्यकर्ताओं के सिर
मढ दिया जाता है.
धर्मान्तरण को लेकर एक कठोर क़ानून की आवश्यकता
देश को लम्बे समय से है. 1951 में हिंदू आबादी ८५%थी
जो २०२१ में ७२ % के लगभग रह जाने की
आशंका है किन्तु इसके विरुद्ध मुस्लिम आबादी १९५१ में ८% से २०२१ में २५% से भी
अधिक हो जाने की संभावना है. पड़ोसी देशों
पकिस्तान, अफगानिस्तान और बँगला
देश में हिंदुओंकी आबादी समाप्ति की ओर है. भारत में जनसंख्या का घनत्व बदलकर
राष्ट्र का मूल स्वरूप बदलने का कुत्सित प्रयास किया जा रहा है. इसके लिए ज्यादा
संताने उत्पन्न करने के अलावा, मुस्लिम घुसपैठियों को अवैध रूप से बसाना और अधिक
से अधिक धर्मान्तरण करवाना मुख्य रणनीति
का हिस्सा है, लेकिन विभिन्न राजनैतिक दल और कुछ हिन्दू उन्ही के साथ खड़े
हैं.
पहले ही बहुत देर हो चुकी है अब
जनसंख्या नियंत्रण, सामान नागरिक संहिता एवं धर्मान्तरण को लेकर सख्त केन्द्रीय कानून की तुरंत आवश्यकता है और भारत को हिन्दू राष्ट्र घोषित
करने की आवश्यकता है. हमें यह याद रखना चाहिए कि धर्मांतरण केवल
उपासना पद्धति का रूपांतरण नहीं बल्कि
राष्ट्र का रूपांतरण भी होता है. सनातन धर्म
की सांस्कृतिक विरासत के अस्तित्व को बचाने की गंभीर चुनौती आज देश के
समक्ष है और शायद सनातन धर्म अपने अस्तित्व की रक्षा की आख़िरी लड़ाई लड़ रहा है. अगर
आज भी हम नहीं जागे तो फिर सनातन संस्कृति की रक्षा करना बेहद कठिन हो जाएगा और
अगले पचास साल में इस देश का कुछ हिस्सा इस्लामिक और कुछ क्रिश्चियन होना
अवश्यम्भावी लगता है.
- - - शिव मिश्रा
(
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( लेखक सेवा निवृत्त
उच्चाधिकारी और समसामयिक विषयों के विशेषज्ञ हैं )
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