( यह लेख परिवर्धित रूप में हिन्दी साप्ताहिक माधव भूमि के ५ जून के अंक में प्रकाशित हुआ है )
मोदी सरकार के 7 वर्ष पूरे होने पर जहां सरकार ने अपनी पीठ थपथपाई, वही कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने सरकार को कटघरे में खड़ा किया और यह बहुत स्वाभाविक भी है. किन्तु दलगत राजनीति से अलग सरकार के इन 7 वर्षों के कार्यकाल को देशहित और जनहित के दृष्टिकोण से देखने और सरकार की उपलब्धियों और विफलताओं का सम्यक विश्लेषण करना नितांत आवश्यक है ताकि है पता चल सके कि-
देश ने इस अवधि में क्या खोया और क्या पाया ?
देशवासियों की कौन सी आकांक्षाएं पूरी हुई और कौन सी अभी भी प्रतीक्षित है ?
इस कारण जनता में सरकार के प्रति क्या धारणा बन रही है ?
उपलब्धियां :
अगर हम सरकार की उपलब्धियों की चर्चा करें तो मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि जनता के बीच आज भी धारा 370 का हटना ही है, और उसी से जुड़ी उपलब्धि है जम्मू कश्मीर का विभाजन करके 2 केंद्र शासित प्रदेश बनाना और धारा 35 A हटाना. इससे मोदी मोदी की छवि में तो इजाफा हुआ ही देश ने अमित शाह को भी सरदार पटेल की तरह सिर माथे उठा लिया. जो पिछले 70 साल में नहीं हो सका वह मोदी के कार्यकाल में हो गया. राम मंदिर का निर्माण मोदी के कार्यकाल की दूसरी सबसे बड़ी उपलब्धि है जिसने सरकार की छवि को गांव और गली तक बहुत मजबूत कर दिया, यद्यपि यह सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय था और इसमें मोदी सरकार की भूमिका बहुत सीमित थी, फिर भी जिस तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तमाम विरोधी स्वरों के बाद भी अयोध्या में राम मंदिर का शिलान्यास किया और मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के प्रति श्रद्धा प्रकट की, जिसने पूरे हिंदू जनमानस में मोदी की हिंदूवादी छवि को और अधिक मजबूत किया. स्वाभाविक था कि लोगों की उनसे अपेक्षाएं और भी बढ़ गई. अब लोगों के मन में काशी और मथुरा की आकांक्षा कुलांचे भर रही है.
पाकिस्तान के अंदर घुस कर की गई बालाकोट सर्जिकल स्ट्राइक ने भारतीय जनमानस में मोदी के अदम्य साहस को बहुत गहराई में अंकित कर दिया. विपक्षी दलों द्वारा इस पर सवाल उठाए जाने से लोगों में न केवल नाराजगी हुई बल्कि वह बहुत मजबूती से मोदी के साथ खड़े हो गए. गलवान घाटी में चीनी सेना के समक्ष भारत के पराक्रम में लोगों ने मोदी की इसी मजबूत इरादों वाली छवि के ही दर्शन किए . कांग्रेस और विपक्षी दलों द्वारा फैलाई गई अफवाहों ने भी आश्चर्यजनक रूप से मोदी को ही मजबूत किया.
मुसलमानों की तीन तलाक प्रथा को भी खत्म करने के लिए मोदी के साहसिक कदम की सर्वत्र सराहना हुई जिससे लोगों को शाहबानो मामले में कांग्रेस का आत्मसमर्पण बरबस याद आ गया और बिना कुछ किए ही कांग्रेस को लाचार और बेबस बना दिया वहीं मोदी और मजबूत होकर उभरे .
वैसे तो मोदी सरकार ने अनेक कल्याणकारी योजनाएं चलाई लेकिन जिसने सबसे अधिक महिलाओं विशेष कर ग्रामीण क्षेत्रों की, को प्रभावित किया, वह है उज्जवला योजना और जिसने सबसे अधिक किसानों को प्रभावित किया वह है किसान सम्मान योजना . देश हित में अगर देखा जाए तो आयुष्मान योजना संभवत: विश्व की सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना है जिससे भारत की बहुत बड़ी जनसंख्या को लाभ होगा यद्यपि इस योजना का अधिकतम लाभ मिलना बाकी है जिसके लिए केंद्र सरकार को और अधिक प्रयास करना होगा.
वित्तीय क्षेत्र में भी सरकार ने बहुत मजबूती से कई कदम उठाए जो भविष्य में देश के आर्थिक विकास में अत्यधिक सहायता पहुंचाएंगे. इनमें सबसे बड़ा कार्य है एक देश एक कर प्रणाली जिसे जीएसटी के नाम से जानते हैं. इतने बड़े देश में इस तरह की परियोजना की शुरुआत करना हमेशा मुश्किल होता है इसलिए शुरुआती दौर में इससे बहुत समस्याएं आई और उत्पादों पर करो की ऊंची दरों ने, इस प्रणाली को बदनाम करने के लिए कांग्रेस और विपक्षी दलों का ही सहायता की और राहुल गांधी ने तो इसे गब्बर सिंह टैक्स की संज्ञा दी थी. यह प्रणाली अब व्यवस्थित हो चुकी है और इसके वांछित परिणाम आने शुरू हो गए हैं आने वाले कुछ वर्षों में इससे देश में आर्थिक विकास की वृद्धि में अत्यधिक सहायता मिलेगी. जहां दुनिया के बहुत से देश अभी भी इस तरह की कर प्रणाली लागू करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, स्व. अरुण जेटली प्रयासों और नरेंद्र मोदी के परियोजना क्रियान्वयन क्षमता ने भारत जैसे विशाल देश में इसे काफी कम समय में लागू कर दिखाया .
जनधन खातों ने आजादी के बाद पहली बार कमजोर वर्ग को बैंकिंग व्यवस्था से जोड़ने का काम किया और इस कारण ही उनके खातों में सीधे सहायता राशि भेजने का काम संभव हो सका और इस व्यवस्था ने काफी हद तक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया और सरकारी संसाधनों की बचत भी की. वित्तीय क्षेत्र में एक और ऐतिहासिक कानून दिवाला एवं शोधन कानून 2016 ( इन्सॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड) बनने से बैंकों में फंसे हुए बड़े कर्ज़ों की वसूली में अत्यधिक सहायता मिलेगी, और भविष्य में होने वाले एनपीए में कमी भी आएगी.
मोदी सरकार के कार्यकाल में एक बहुप्रतीक्षित कानून बना जिसके विरुद्ध कोई हो हल्ला भी नहीं हुआ और वह हैं श्रम कानून जो बहुत शांति पूर्वक लागू भी हो गया. इसके विपरीत नए कृषि कानून जिनका पुरजोर विरोध किया जा रहा है. अगर यह कृषि कानूनों लागू हो पाए तो देश के अधिकतर किसानों का बहुत फायदा होगा और अगले 5 वर्षों में में उनकी आर्थिक स्थिति में अत्यधिक सुधार देखने को मिलेंगे. दुर्भाग्य से इन कानूनों का आढ़तियों और बिचौलियों द्वारा विरोध किया जा रहा है जिसे राजनीतिक समर्थन भी प्राप्त है इसके साथ ही इस पूरे आंदोलन को कुछ विकसित देशों द्वारा भी धार दी जा रही है क्योंकि उन्हें डर है कि इन कृषि कानूनों के कारण भविष्य में भारत खाद्यान्न का बहुत बड़ा निर्यातक बन सकता है जिससे उनके हित प्रभावित होंगे.
एक अन्य परियोजना है जिसका पूरी सरकार की उपलब्धियों में बहुत कम उल्लेख होता है वह है ग्रामीण विद्युतीकरण जिसके द्वारा भारत के प्रत्येक गांव में बिजली पहुंच चुकी है. 70 वर्ष बाद ही सही लेकिन यह भारत जैसे विशाल देश की बहुत बड़ी उपलब्धि है. राष्ट्रीय राजमार्ग के निर्माण में भी मोदी सरकार ने अत्यंत प्रशंसनीय कार्य किया है और निर्माण की गति आजादी के बाद अब तक की सर्वश्रेष्ठ गति है जिसके लिए नितिन गडकरी को श्रेय दिया जाना आवश्यक है.
एक अन्य अत्यंत महत्वपूर्ण किंतु बहु प्रतीक्षित मुद्दा “वन रैंक वन पेंशन” जो देश के सीमा प्रहरियों से सीधे जुड़ा था, शांति पूर्वक सुलझा लिया गया. सरकार की एक अन्य अब तक की उपलब्धि है भ्रष्टाचार रहित सरकार, जो पिछले 10 वर्षों की सरकार के बिलकुल उलट है जब हर दिन कोई न कोई घोटाला सामने आया था और अखबारों की सुर्खियां बना था.
विफलताएं :
अब बात करते हैं उन क्षेत्रों की जहां या तो सरकार को वांछित सफलता नहीं मिली या सरकार कुछ भी करने में विफल रही.
इसमें सर्वाधिक चर्चा कोरोना की दूसरी लहर में केंद्र सरकार की कोरोना प्रबंधन को लेकर है. इसमें कुछ तो सच्चाई भी है लेकिन ज्यादातर राज्य सरकारों की विफलता का बोझ भी मोदी सरकार के कंधे पर आ गया है जिसे टूल किट की नई संस्कृति ने मोदी की छवि खराब करने के साथ साथ देश की छवि भी खराब करने में भी कोई संकोच नहीं किया. सोशल मीडिया के निरंकुश प्लेटफार्म, विदेशी मीडिया और इंटरनेट मीडिया के अन्य साधनों ने जो कई देशों की राजनीति में भी सीधा दखल देते हैं, ने भी बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया .
यह जानते हुए भी कि यह जो कुछ भी प्रचारित किया जा रहा है, सही नहीं है, इसका दोष निश्चित रूप से मोदी सरकार को ही देना उचित होगा क्योंकि मोदी के इस कार्यकाल में सूचना प्रसारण मंत्रालय और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के निष्पादन बेहद निराशाजनक हैं. आए दिन कभी फिल्मों में, कभी ओटीटी प्लेटफॉर्म पर, कभी सोशल मीडिया पर तो कभी सार्वजनिक मंच पर, देश और हिंदुओं के विरुद्ध विष वामन होता रहता है लेकिन यह दोनों ही मंत्रालय इस दिशा में कुछ भी नहीं कर सके और यह मोदी सरकार की सबसे बड़ी विफलता भी है.
अगर इन दोनों मंत्रालयों के कार्य में तुरंत सुधार नहीं हुआ या इन मंत्रियों को नहीं बदला गया तो 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव और 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को इसकी बहुत भारी कीमत चुकानी पड़ेगी. 2004 के आम चुनाव के पहले बाजपेयी सरकार के एक मंत्री के सहारे कांग्रेस के राजीव शुक्ला ने दूरदर्शन पर सोनिया गांधी का बहुत मार्मिक साक्षात्कार प्रस्तुत किया था और इसके बाद अटल बिहारी वाजपेई की शाइनिंग इंडिया ध्वस्त हो गई थी. कुछ प्रतिशत मतों ने कई लोकसभा की अनेक सीटों को प्रभावित किया था, जिसे करण कांग्रेस बहुमत न पाते हुए भी सत्ता की दहलीज के पास पहुंच गई और भाजपा सत्ता से बहुत दूर हो गई. कुछ भाजपाइयों में कांग्रेस से तार जोड़े रखने की यह संस्कृति आज भी देखने को मिल रही है.
मोदी सरकार ने नक्सल और माओवादियों के विरुद्ध कोई मजबूत अभियान नहीं चलाया और आज भी इसके कारण बड़ी संख्या में जवान मौत के घाट उतारे जा रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र सरकार को बार-बार ललकारती रही हैं, और कई बार तो स्थिति यह हो गई है जिससे प्रधानमंत्री पद की गरिमा को भी आंच आई लेकिन सरकार ने पश्चिम बंगाल सरकार के विरुद्ध कोई भी सख्त कार्यवाही नहीं की यहां तक कि चुनाव के पहले भी राष्ट्रपति शासन लगाना जरूरी नहीं समझा. चुनावी रैलियों में प्रधानमंत्री सहित भाजपा के स्टार प्रचारकों ने जनता का बहुत उत्साहवर्धन किया था और जनता ने उनका भरपूर साथ दिया. केंद्र सरकार ने अर्धसैनिक बलों द्वारा पोलिंग बूथों की सुरक्षा तो की लेकिन जनता को घर से निकलने के लिए न तो सुरक्षा मिली और न ही भय रहित वातावरण और इस कारण भाजपा जीती हुई बाजी हार गई और इससे भी अधिक दुर्भाग्यपूर्ण यह रहा कि जिन लोगों ने भाजपा का साथ दिया भाजपा उन्हें सुरक्षा प्रदान करने में भी नाकाम रही . अपने ही देश में पश्चिम बंगाल के लोग शरणार्थी बनकर असम में रह रहे हैं. पश्चिम बंगाल में हिंसा, जघन्य हत्या, बलात्कार, आगजनी और लूटपाट ने देश के बंटवारे की याद ताजा कर दी. अनेक लोग भाजपा का साथ देकर पछता रहे हैं, जिसके कारण भाजपा “पुनः मूषक: भव” की इस स्थिति में आ गई है . अगर दोबारा चुनाव हो जाए तो भाजपा को विधानसभा की अपनी पुरानी 3 सीटें भी जीतना मुश्किल हो सकता है.
जनता का एक बेहद कौतूहल वाला प्रश्न है कि क्या कारण है कि शाहीन बाग और किसान आंदोलन के साथ इतनी नरमी बरती गई ? अब तो पानी सिर के ऊपर से गुजर गया है. 26 जनवरी के दिन लाल किले पर तिरंगे का अपमान किया गया, जो गणतंत्र दिवस पर पूरे गणतंत्र और लोकतंत्र का अपमान है. सरकार की क्या मजबूरी है, जनता नहीं समझ पा रही? आज भारत में बच्चा-बच्चा जानता है कि देश का इतिहास झूठ का पुलिंदा है, इसमें सनातन संस्कृति और राष्ट्र को नीचा दिखाने की कोई भी कसर बाकी नहीं छोड़ी गई है लेकिन इतिहास सही करने की दिशा में सरकार एक इंच भी आगे नहीं बढ़ सकी. हिंदूवादी नेताओं से सामान्य हिंदू जनमानस यह अपेक्षा रखता है कि सत्ता में आने मंदिरों को सरकारी चंगुल से मुक्त किया जाएगा लेकिन सरकार ने यहां भी अब तक तो बहुत निराश किया है.
मोदी ने अपने पहले उद्घोष वाक्य “सबका साथ, सबका विकास” में अब “सबका विश्वास” भी जोड़ दिया है. सबके विश्वास के चक्कर में मोदी को जिनका विश्वास मिल रहा था कहीं उनका भी विश्वास न खो दें?
अगर ऐसा हुआ तो यह केवल भाजपा का नहीं राष्ट्र के रूप में भारत का भी बहुत बड़ा नुकसान होगा. हम सभी ने देखा कि 2004 में वाजपेयी सरकार की पराजय के बाद 10 वर्षों का समय केवल भाजपा के लिए ही नहीं वरन पूरे राष्ट्र के लिए एक संकट का समय रहा. परत दर परत भ्रष्टाचार होता रहा, राष्ट्र की अस्मिता और अखंडता के साथ खिलवाड़ होता रहा, भगवा आतंकवाद गढ़ा जाता रहा, बहुसंख्यकों की कीमत पर अल्पसंख्यकों का तुष्टिकरण किया जाता रहा और देश के संसाधनों पर उनका प्रथम अधिकार सिद्ध किया जाता रहा.
सरकार को इस दिशा में त्वरित कदम उठाने की आवश्यकता है, अन्यथा बहुत देर हो जाएगी
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- शिव मिश्रा
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