हिमालय
में ट्रेकिंग : फूलों की घाटी (TREKKING TO HIMALAYAS - VALLEY
OF FLOWERS)
महाराष्ट्र की शैहाद्री पर्वत श्रखलाओं की कुछ चुनिन्दा पहाडियों में ट्रेकिंग का अभ्यास करने के बाद भारतीय स्टेट बैंक वैश्विक सूचना प्रौद्योगिकी केंद्र मुंबई की हमारी ४० सदस्यीय टीम श्री ऍम महापात्रा उप प्रबंध निदेशक एवं मुख्य सूचना अधिकारी के नेर्तत्व में हिमालय में ट्रेकिंग के लिए फूलों की घाटी उत्तराखंड के लिए रवाना हुई.
पहला दिन – मुम्बई से रुद्रप्रयाग
मुम्बई से
देहरादून (१३८० किमी) पहुँचने के बाद एअरपोर्ट से
सीधे रुद्रप्रयाग के लिए गाडियों निकल पड़े
. ये दूरी लगभग 160 किमी है जो ५-६
घंटे पूरी होती है. पूरा रास्ता हरियाली से ओतप्रोत है और पहाड़ो और घाटियों के
द्रश्य बेहद मनोरम हैं. अनगिनत झरने मन मोह लेते हैं. रूद्र प्रयाग में रात्रि विश्राम हेतु रुकते हैं .
दूसरा दिन – रुद्रप्रयाग से घांघरिया
रुद्रप्रयाग से सीधे जोशी मठ के लिए रवाना हो गए . रास्ते
में चाय पान के बाद गोविन्द्घाट और फिर वहा से शुरू हुई ट्रैकिंग. जो यात्रा का
आख़िरी पड़ाव जिसे कार से पूरा किया जा सकता है. गोविन्दघाट से ४ किमी ऊपर एक गाव है जहाँ से ९-१० किमी की चढ़ाई
के बाद घाघरिया पहुँचना था . ये चढ़ाई लगातार चलती हुयी ३०४९ मीटर की ऊंचाई पर
स्थिति घाघरिया पहुंचती है. हेमकुंड
जाने वाले श्रद्धालु भी यहाँ पहुँच कर रुकते हैं. देहरादून से शुरू हुई ये यात्रा निरंतर मनोरम पहाडियों और घाटियों से होकर गुजरती है और बहुत ही
चित्ताकर्षक दृश्यों और प्रकृति का सुंदर चित्रण करती हैं. ये देव भूमि है और इसे
ऐसा चित्ताकर्षक होना ही चाहिए. कई जगह भूस्खलन प्रभावित, बहुत खतरनाक रास्तो से
गुजरना पड़ा शायद इनमे से बहुत से मानव
निर्मित है और प्रकृति का अंधाधुन्ध दोहन
और दुरुपयोग रेखांकित करते हैं. हमारी टीम ने अनेक जगहों पर रूक कर फोटोग्राफी की.
वैसे तो दुनिया में बहुत ऊचे ऊचे पर्वत है लेकिन हिमालय जैसा महान और देव तुल्य
कोई भी नहीं कहीं भी नहीं .
घाघरिया जाने के
लिए ९ किमी लम्बा ट्रेकिंग का रास्ता बहुत
मुश्किल नहीं पर बहुत ज्यादा और लगातार
चढ़ाई वाला है जो थकान देता है और लगातार
ऑक्सीजन के कम होते लेवल से जल्दी साँस फूलने लगती है . रास्ते के द्रश्य बहुत
अच्छे और फोटोजेनिक है जिनसे थकान दूर हो
जाती हैं .
तीसरा दिन – घांघरिया से फूलों की घाटी और वापस घांघरिया
घघरिया से सुबह
६ बजे हमलोग फूलों की घाटी के लिए चल पड़े. बेहद खतरनाक चढ़ाई और छोटे बड़े उखड़े पड़े
पत्थरों से मिल कर बना रास्ता ४ किमी
लम्बा है. इस पर सामान्य रूप से चलना दूभर है. हर कदम बहुत सोच समझ कर बढ़ाना होता है
और हर कदम पर ध्यान केन्द्रित करना होता है अन्यथा जरा सी असावधानी से सैकड़ो / हजारो फीट
नीचे गहराई में जा सकते है. पिछली आपदा के समय जो रास्ता था वह तहस नहस हो चुका था
इसलिए एक नया रास्ता निकाला गया है जिसमे
पत्थर बहुत नुकीले और ठीक से जमे नहीं है और बहुत सीधी चढ़ाई है कई जगह ७० से ८०
डिग्री तक. इसलिए चलना बहुत थकान देता है.
अनंतोगत्वा हम
फूलों की घाटी में सफलता पूर्वक पहुँच गए. लगभग १०००० फीट ऊंचाई पर हिमालय की गोद
में ८७-८८ वर्ग किमी मे फ़ैली इस घाटी को १९८२ में राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा दिया गया
है. यूनस्को ने इसे विश्व धरोहर घोषित कर रखा है. वास्तव में यहाँ आकर दिव्यता का अहसास होता है ये देव भूमि का नंदन कानन
है. चारो ओर सुंदर फूल, पत्ते, पर्वत की बर्फ से सजी चोटियाँ, निर्झर गिरते झरने, पास
से गुजरते बादल और मलायागिरी से मंद मंद
आती सुगन्धित हवाये . इतना प्राकृतिक सौंदर्य कि पलक झपकाने की सुधि बुध नहीं, चित्त शांत और मन स्थिर हो जाता है .
शायद इसीलिये तपस्या के लिए ऋषि मुनि ऐसी ही जगहों का चयन करते रहें होंगे. इस
घाटी में हम केवल ३ किमी लम्बी और लगभग १/२ किमी चौड़ी घाटी में घूम सकते हैं .
ऐसा माना जाता है हनुमान जी संजीवनी बूटी लेने
इसी घाटी में आये थे। चमौली जिले
में एक ऐसा भी गाँव बताया जाता है जहाँ के लोग आज भी हनुमान जी के बारे में बात
करना या उनकी फोटो देखना तक पसंद नहीं करते. क्योंकि उनके अनुसार हनुमान जी की
संजीवनी के चक्कर में अन्य जडी बूटियों का
बहुत नुकसान हुआ. स्थानीय निवासी इसे
परियों और किन्नरों का देश समझने के कारण यहाँ आने से कतराते थे. रामायण
और अन्य ग्रंथो में नंदन कानन के रूप में इस घाटी का उल्लेख किया गया है . इस घाटी
का पता सबसे पहले ब्रिटिश पर्वतारोही फ्रैंक एस स्मिथ और उनके साथी आर एल होल्डसवर्थ ने लगाया था. इसकी खूबसूरती से प्रभावित
होकर स्मिथ ने 1937 में आकर इस घाटी में काम किया और, 1938 में “वैली ऑफ फ्लॉवर्स” नाम से एक किताब लिखी. फूलों की ये घाटी
चारो ओर बर्फ से ढके पर्वतों से घिरी
है. फूलों की 500 से भी अधिक
प्रजातियां यहाँ पाई जाती हैं जिन्हें विभिन्न उपचारों में औषधियों के रूप में
प्रयोग किया जाता है. अनगिनत जडी बूटियों का भंडार यहाँ है . पूरे विश्व में इस
तरह सुंदर और उपयोगी की कोई अन्य जगह नहीं है यहाँ तक कि स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया
सहित सभी देशों की प्राक्रतिक सुन्दरता इस के आगे कुछ
भी नहीं है . टीम में स्टेट बैंक के बरिष्ठ अधिकारियो, जो विश्व के कई देशों में
कम कर चुके और अनेक देशों की यात्रा कर चुके है, का स्पष्ट मानना है कि विश्व में
इससे सुंदर कोई जगह नहीं है. और यहाँ आना ..... वास्तव में बहुत ही रोमांचक अनुभव
है. अगर आपकी किस्मत अच्छी है तो आपको काले हिमालयन भालू, कस्तूरी हिरण और
तितलियों व् पक्षियों की दुर्लभ प्रजातियां भी देखने को मिल सकती हैं . हमने तितलियाँ और पक्षी तो देखे लेकिन भालू, तेंदुए और कस्तूरी
हिरन देखने को नहीं मिले. भोजपत्र के वृक्ष रास्ते में आपको मिलेंगे जिन का प्राचीन समय में लिखने हेतु प्रयोग होता था.
नवम्बर से मई माह के मध्य घाटी सामान्यतः हिमाच्छादित रहती है।
जुलाई एवं अगस्त माह के दौरान एल्पाइन सहित बहुत से फूल खिलते हैं. हैं। हमारी
गाइड ने बताया कि यहाँ पाये जाने वाले फूलों में एनीमोन, जर्मेनियम, मार्श, गेंदा, प्रिभुला, पोटेन्टिला, जिउम, तारक, लिलियम, हिमालयी नीला पोस्त, बछनाग, डेलफिनियम, रानुनकुलस, कोरिडालिस, इन्डुला, सौसुरिया, कम्पानुला, पेडिक्युलरिस, मोरिना, इम्पेटिनस, बिस्टोरटा, लिगुलारिया, अनाफलिस, सैक्सिफागा, लोबिलिया, थर्मोपसिस, ट्रौलियस, एक्युलेगिया, कोडोनोपसिस, डैक्टाइलोरहिज्म, साइप्रिपेडियम, स्ट्राबेरी एवं रोडोडियोड्रान आदि प्रमुख हैं। प्रत्येक मौसम में यहाँ अलग तरह के
फूल खिलते है पर सबसे अच्छा मौसम जुलाई से सितम्बर का होता है.
हम तय समय के अनुसार फूलों की घाटी से वापस चल दिए और घांघरिया आ
गए. शाम को इको डेवलपमेंट कमिटी भ्युन्दर द्वारा घाटी में किये जा रहे स्वच्छता सफाई
और जागरूकता अभियान और सॉलिड वेस्ट
मैनेजमेंट पर किये गए प्रस्तुतीकरण देखे.
ये गैरसरकारी संगठन घाटी के पर्यावरण संरक्षण में बहुत अच्छा कार्य कर रही है .
चौथा दिन – घांघरिया से औली गाँव
चौथे दिन सुबह हमलोग घांघरिया से वापस गोविन्दघाट के लिए चल पड़े . लगभग तीन
घंटे की ट्रेकिंग के बाद हमलोग वापस गोविन्दघाट पहुँच गए. वहां हमारी
गाड़िया खडी थी. गोविन्द् घाट से
हमलोग जोशी मठ पहुंचे और भगवान बद्री
विशाल के दशनो के लिए पहुँच गए . मंदिर के कुंड के गर्म पानी में नहाने से सारी
थकान दूर हो गयी. दर्शन और पूजन के बाद हमलोग सीमा के अंतिम गाँव माना पहुंचे जहाँ जहाँ गणेश गुफा , व्यास पीठ के
आलावा भीम पुल स्थिति है जो बेहद आकर्षक है . कहते है जब पांडव स्वर्ग जा रहे थे रास्ते
में भागीरथ नदी थी जिसे पार करने के लिए
भीम ने एक शिला नदी के ऊपर डाल दी जिसे भीम पुल कहते हैं . यहाँ मोहक झरना है और
बेहतरीन दृश्य. और भारत की सीमा की आखिरी
चाय की दुकान . वहां से हमलोग औली गाँव में एक रिसोर्ट में ठहरने के लिए चल पड़े. औली से नंदा देवी चोटी के आलावा चारो तरफ पर्वत
श्रंखलाये दिखाई देती है. प्रकति की बहुत ही
मनमोहक छटाये बिखरी है चारोतरफ.
पांचवा दिन – धुली गाँव से ऋषिकेश
औली में रात्रि विश्राम के बाद सुबह हमलोग ऋषिकेश के लिए चल पड़े और
उद्देश्य ये कि परमार्थ आश्रम की आरती देख सकें जो प्राय: ६:३० बजे होती है. पूरे रास्ते
मनमोहक घाटियों और वादियों का आनन्द उठाते हुए और कई जगह भूस्खलन और उसके कारण लगे
जाम के कारणों को समझते हुए आगे बढ़ते रहे. मै कई बार पर्वतो की यात्रा पर गया हूँ और
हर बार कुछ नया पाता हूँ. रास्तों पर चलते हुए पिछली यात्रा में मैंने एक कविता
लिखी थी वह याद आ गयी
रिश्ते प्यार के,
और रस्ते पहाड़ के ,
आसान तो बिल्कुल नही होते,
कभी धूप, कभी छाव ,
कभी आंधी, कभी
तूफान,
तो कभी साफ आसमान नहीं होते
।
थोड़ी सी बेचैनी से
सैलाब उमड़ पड़ते है अक्सर,
आंखे भी निचोड़ी जाय,
तो कभी आँसू
नहीं होते ,
(पूरी कविता पढने के लिए नीचे
दिया लिक क्लिक करें) h
https://shivemishra1.blogspot.in/2013/10/blog-post_2895.html
छठवां दिन – ऋषकेश में योग और वापसी
अभियान के छठवें दिन हमारा दिन ऋषिकेश के एक प्रतिष्ठित योगाश्रम
में योग शिक्षा से शुरू हुआ . हमने ध्यान,योग, और शारीरिक और मानसिक स्वस्थ रहने के
विभिन्न आयाम सीखे. गंगा स्नान के बाद हम
लोग मुंबई आने के लिए एअरपोर्ट चल दिए.
कुछ फोटो -----
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