कन्नड़ के लब्ध प्रतिष्ठित लेखक श्री यूं आर
अनंतमूर्ति ने ये कह कर सब को सन्न कर
दिया कि यदि श्री नरेन्द्र मोदी हिंदुस्तान के प्रधान मंत्री बन जाते हैं तो वह
देश छोड़ देंगे. भाजपा का इस पर नाराज होना स्वाभाविक है पर अन्य दलों ने इसे मोदी
के विरुद्ध एक और हथियार के रूप में स्तेमाल किया . अमर्त्यसेन के बाद वह दूसरे
बड़े लेखक है जिन्होंने मोदी के खिलाफ इतनी सख्त टिप्पडी की है .
माना जाता है कि लेखक, कलाकार और लोकतंत्र
समर्थक हमेशा जनता की आवाज होते हैं और जनता की आवाज लोक तंत्र में निहित होती है.
ये कैसे लेखक है जो जनता की आवाज के साथ नहीं हैं ?
यूं आर अनंतमूर्ति ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता हैं और उन्हें कई
साहित्यिक पुरस्कार भी मिल चुके है . मूलत: समाजवादी अनंतमूर्ति कांग्रेस के टिकट पर
चुनाव लड़ चुके है और कर्नाटक विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में मतदान की
अपील कर चुके हैं . इसमें कुछ भी हर्ज़ नहीं आखिर लोकतान्त्रिक देश में प्रत्येक
नागरिक राजनैतिक प्रक्रिया का हिस्सा होता है . वह किसी न किसी दल को मत देगा और
किसी न किसी दल के साथ उसकी सहानुभूति हो सकती है . वह किसी न किसी दल का हिस्सा
भी हो सकता है . लेकिन क्या हम इतने असहनशील और अलोकतांत्रिक हो जायेंगे कि अगर ऐसा
दल सत्ता में आ जायेगा जिसको हम पसंद नहीं करते तो हम देश छोड़ देंगे . ऐसा कहना और
ऐसा करना अधिसंख्य जनता का विरोध करना है और उनकी भावनाओ का असम्मान करना है और ये
घोर अलोकतांत्रिक है .
ऐसा माने जाने के कोई कारण नहीं हैं कि श्री
अनंतमूर्ति इतने अलोकतांत्रिक हो सकते हैं . मेरा मानना है कि शायद उन्होंने
मुहाबरे के तौर पर ऐसा कहा होगा जिसका मतलब अपने परिचितों और शुभचिंतकों से ये
कहना होगा कि उन्हें चाहिए कि वे श्री नरेन्द्र मोदी का भरसक विरोध करें और
सुनिश्चित करे कि वे प्रधान मंत्री न बन पायें . फिर भी श्री अनंतमूर्ति को चाहिए
कि वे स्थिति स्पष्ट करे ताकि लोकतंत्र की गरिमा बनी रहे.
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शिव प्रकाश मिश्र
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