दुनिया
मे बहुत से काम मुश्किल है और
बहुत सी चीजे प्राप्त करना मुश्किल है। जीवन मे कुछ चीजे व कुछ स्टैंडर्ड सदैव बनाए
रखना और भी मुश्किल है। ऐसी ही एक चीज है ईमानदारी जिसे बनाए रखना बहुत ही मुश्किल
है (हिंदुस्तान मे )। ईमानदार लोगो की संख्या बहुत ही कम होती जा रही है और ये
तेजी से घटती जा रही है । बहुत संभव है की निकट भविष्य मे ये प्रजाति विलुप्त हो
जाय ।
ईमानदारी
का दर्द मै अच्छी तरह समझता हूँ और आप मे
से ज़्यादातर लोग भी समझते होंगे। सार्वजनिक जीवन मे ऐसे लोग हमेशा तलवार की धार पर
चल रहे होते है। जाहिर है ऐसे व्यक्तियों का स्वयं और उनके परिवार का जीवन हमेशा
खतरों से भरा हुआ होता है। ईमानदारी सिर्फ रिश्वत खोर न होने से नही बनती बल्कि
इसका व्यापक क्षेत्र है। जिसमे नियम,कानून
और पूर्ण निष्ठा के साथ अपने कर्तव्यो का निर्वहन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है । आज के
परिस्थितयो मे ईमानदार व्यक्ति सिर्फ जनता
के कुछ लोगो का ही कोप भाजन नहीं बनते बरन कभी कभी अपने परिवार के लोगो की नाराजगी
का शिकार भी होते है। ऐसे व्यक्ति जिंनका
परिवार भी उनके साथ होता है और समाज के कुछ लोग भी उनके साथ होते है ,चट्टान
की तरह अडिग रहते है और लगातार पूरी निष्ठा से अपना कर्तव्य पालन करते रहते है । हमेशा
छोटे छोटे सम्बल लंबे संघर्ष की ऊर्जा प्रदान करते रहते है ।
संघर्ष
मे ईमानदार व्यक्तियों के टूट जाने की भी सदा से लंबी फेहरिस्त होती आई है जिन्हे आम लोग ढ़ोंगी
या छुपा रुस्तम कह कर अफसोस करते है और भूल जाते है। जब इन व्यक्तियों को सम्बल की
जरूरत थी उस समय शायद कोई भी नैतिक समर्थन
मे खड़ा होने को तैयार नही था ।
पैसा,पद
और प्रतिष्ठा का लालच कैसा वातावरण तैयार कर रहा है इसकी बानगी आप पूरे देश मे
कहीं भी देख सकते है। ऐसे लोगों की संख्या
बहुत है जिन्होने जीवन मे कभी रिश्वत नही
ली लेकिन ऐसे लोग की संख्या बहुत कम है जिन्होने कभी रिश्वत नही दी। आज की परस्थितियों
मे मजबूरी बस दी जाने वाली रिश्वत की ज़्यादातर
लोगों ने आदत बना ली है। बल्कि कई बार कुछ चर्चित विभागो मे बिना कुछ दिये कम हो जाने
पर बहुत आश्चर्य होता है । सार्वजनिक जीवन मे कई ईमानदार अधिकारियों के साथ हास्यपाद
स्थिति भी आती है जब जिसका काम हो जाता है बिना मांगे ही रिश्वत देने का प्रस्ताव करता है जैसे काम कराने वाला पूरे
सिस्टम से भली भाँति परिचित ही नही अभ्यस्त भी है । कहीं पूरी दबंगई से निजी हित मे
ऐसे काम करवाने के प्रयास किए जाते है जो या तो विधि सम्मत नही होते या फिर जिनसे संस्था,
सरकार या समाज का भारी नुकसान होना तय होता है। संघर्ष या फिर सुलह सफाई या हिस्सेदारी
जैसे बीच के रास्ते निकल आते है और फिर भ्रष्टाचार की अविरल धारा शुरू हो जाती है।
चूंकि दबंगई को राजनैतिक सरंक्षण प्राप्त होता है इसलिए जो संघर्ष करते है समान्यतया
निपटा दिये जाते है। जो हिस्सेदार हो जाते है,
राजदार होते है और राज करते है। हद तो तब हो जाती है जब विभागों के ऐसे भ्रष्ट तत्व
स्वयं भ्रष्टाचार और कमाई का रास्ता सुझाते
है। देश, समाज से उन्हे क्या मतलब
उनका जहां तो अलग है और सारे जहां से अच्छा होता है । ऐसी स्थितिया ये रेखांकित करती
है की हमारे समाज मे इस अवमूल्यन का स्तर क्या है,
उसकी कितनी पैठ है और स्वीकार्यता कितनी बढ़ गई है ।
कुछ
समय से तो लाज शर्म का पर्दा भी उठ रहा है। कितने ही वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी छोटे
मोटे किन्तु चलते पुर्जा नेताओं के सार्वजनिक रूप से पैर छूते है। उनका ये बेशर्म अंदाज़
अनायास नही, सर्वसाधारण के लिए उनके नापाक
गठजोड़ की प्रेस विज्ञप्ति के अलावा कुछ नही होता । ऐसे अधिकारियों का चाहे वह गलत सही
कुछ भी करें कभी कुछ नही विगड्ता किन्तु ईमानदारी और देश सेवा के जुनून मे बहुत लोगो
का बहुत कुछ हो सकता है और हो रहा है।
जरा सोचिए ...... क्या हो रहा है ?
हमारा समाज कहाँ जा रहा है ? और हम कहाँ खड़े है
? हमारी क्या भूमिका होनी चाहिए ?
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- शिव प्रकाश मिश्रा
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प्रशासनिक अधिकारियों को नेताओं के नेतृत्व में क्या-क्या झेलना पड़ता है। ईमानदारी की सजा दुर्गाशक्ति नागपाल के रुप में मिलती है। और बेईमानों को गिननेवाली उंगलियां शायद हिन्दुस्तान में कट गईं हैं।
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