कांग्रेस अध्यक्ष : कौन जीता,खड्गे
या गांधी परिवार?
आखिरकार कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए लंबे समय से चल रहे उहापोह ओर उठापटक
का पटाक्षेप हो गया और मल्लिकार्जुन खड़गे के रूप में कांग्रेस को एक नया अध्यक्ष
मिल गया जिसके लिए निर्वाचन की औपचारिकता भी पूरी की गई लेकिन यह सब कुछ पूर्व
निर्धारित योजना के अनुसार ही हुआ इसलिए खड़गे जीते या शशि थरूर हारे, कहना बिल्कुल
बेमानी और अर्धसत्य है. पूर्ण सत्य यह है की यह गाँधी परिवार की जीत है और सोनिया
गाँधी की जीत है, अध्यक्ष खड़गे हैं या कोई और होता वह पूरी तरह से गाँधी परिवार की
कठपुतली के रूप में कार्य करेगा और उसकी इच्छा के विपरीत कुछ भी करने की न तो उसमें
सामर्थ्य है और न हिम्मत. सीताराम केशरी के कार्यकाल को याद करते हुए मल्लिकार्जुन
खड़गे समय समय पर स्वयं सहमें सहमें रहेंगे. इसलिए गैर गाँधी अध्यक्ष बन जाने के
बाद भी कांग्रेस में संगठनात्मक या नीतिगत कोई आशातीत परिवर्तन हो सकेगा इसकी
उम्मीद नहीं की जानी चाहिए.
2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की जबरदस्त हार की जिम्मेदारी लेते
हुए राहुल गाँधी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था और उन्होंने अच्छा व्यक्ति की
थी कि अब कांग्रेस का अध्यक्ष कोई बाहर का व्यक्ति बनें लेकिन लंबे समय तक इस पर
फैसला नहीं किया जा सका. सोनिया गाँधी कांग्रेस अध्यक्ष का पद किसी बाहरी व्यक्ति
को देने की इच्छुक नहीं थी इसलिए कांग्रेस वर्किंग कमेटी की इच्छा को ढाल बनाकर वह
स्वयं कार्यकारी अध्यक्ष बन गई और लंबे समय से अध्यक्ष पद के चुनाव इस आशा से टाल
दिए गए थे कि इस बीच राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनने के लिए मनाया जा सके. इस बीच
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने जिन्हें जी 23 की संज्ञा दी गई थी, सोनिया गाँधी को
सार्वजनिक रूप से पत्र लिखकर कांग्रेस में तात्कालिक सुधार की आवश्यकता पर बल दिया
जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष पद परिवार से बाहर किसी व्यक्ति को दिया जाना भी एक बड़ा
मुद्दा था. सोनिया गाँधी पुत्रमोह के कारण लंबे समय तक असमंजस में रही और कपिल
सिब्बल गुलाम, नबी आजाद जैसे बड़े नेता भी पार्टी छोड़ते चले गए.
कई प्रदेश कांग्रेस समितियों ने प्रस्ताव पारित कर राहुल गाँधी से
अनुरोध किया कि वह कांग्रेस के अध्यक्ष पद स्वीकार करें, इससे राहुल गाँधी अध्यक्ष
भले ही न बने हो लेकिन गाँधी परिवार के प्रति पार्टी में निष्ठा और निर्भरता का
आकलन जरूर हो गया. इसके बाद मधु सूदन मिस्त्री, जो गाँधी परिवार के बेहद करीबी हैं,
को चुनाव अधिकारी बनाकर अध्यक्ष पद के
निर्वाचन की अधिसूचना जारी कर दी गई. जिसतरह से अध्यक्ष के निर्वाचन मंडल के लिए
डेलीगेट बनाए इस पार्टी के ही कई बड़े नेताओं ने सवालिया निशान लगाए. गाँधी परिवार
किसी ऐसे व्यक्ति की खोज में था जिसकी गाँधी परिवार के प्रति निष्ठा संदेह से परे
हो. इससे यह संदेश चला गया की अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ने वाला कोई भी व्यक्ति
गाँधी परिवार के बिना अनुमति के चुनाव नहीं लड़ सकता है. इसीलिए शशि थरूर ने भी
चुनाव लड़ने के लिए सोनिया गाँधी से अनुमति मांगी और उन्हें अनुमति दे दी गई.
सोनिया गाँधी ने राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को परिवार के
प्रति उनकी निष्ठा के आधार पर अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ने का मन बनाया जिसे गाँधी परिवार और अशोक गहलोत दोनों ने ही
सार्वजनिक कर दिया, किंतु राजस्थान में मुख्यमंत्री पद को लेकर हुए घमासान ने
कांग्रेस और गाँधी परिवार की इज्जत तार तार कर दी. गहलोत अध्यक्ष तो बनना चाहते थे
लेकिन मुख्यमंत्री का पद नहीं छोड़ना चाहते थे. सोनिया से बातचीत के बाद वह
मुख्यमंत्री पद छोड़ने के लिए तैयार हो गए लेकिन वह गाँधी परिवार के सचिन पायलट को
मुख्यमंत्री बनाए जाने की फैसले से सहमत नहीं थे और इसलिए उन्होंने बगावत कर दी. कांग्रेस
के ज्यादातर विधायक गहलोत खेमे में थे जिन्होंने सामूहिक इस्तीफा देकर कांग्रेस
हाई कमान पर दबाव बनाया. सोनिया के अनुरोध के बाद भी गहलोत ने विधायको को समझाने
बुझाने का प्रयास नहीं किया. गहलोत के ऐन
वक्त पर यू टर्न के कारण गाँधी परिवार ने अध्यक्ष पद के लिए किसी अन्य व्यक्ति को
चुनाव लड़ाने का फैसला किया और शीघ्रता से कई नामों पर विचार किया गया लेकिन विडंबना देखिए
कि गाँधी परिवार अंबिका सोनी, केसी वेणुगोपाल और मल्लिकार्जुन खडगे के अलावा किसी
अन्य नाम पर विचार भी नहीं कर सका और अंतिम रूप से मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम
नामांकन की तिथि से कुछ समय पहले ही किया गया.
इस पूरी प्रक्रिया से दो बातें पूरी तरह से स्पष्ट हो गई कि एक तो शशि
थरूर गाँधी परिवार के विश्वास पात्र नहीं है
दूसरा कि बिना गाँधी परिवार के अशिर्वाद
के कोई भी व्यक्ति अध्यक्ष नहीं बन सकता. गाँधी परिवार के संकेत के बाद प्रदेश
कांग्रेस समितियों ने खड़गे के पक्ष में माहौल बनाना शुरू कर दिया जिसका परिणाम यह
हुआ कि उन्हें के कुल 10,000 मतों में से 7897 मत मिले जबकि शशि थरूर को
1072 मत मिले. गाँधी परिवार का प्रभाव इस बात से ही समझा जा सकता है कि तुलनात्मक
रूप से खड़गे की अपेक्षा शशि थरूर पार्टी में कहीं ज्यादा लोकप्रिय और स्वीकार्य
नेता है. चुनाव के बीच ही शशि थरूर ने चुनाव प्रक्रिया पर प्रश्न चिन्ह लगाते
हुए कहा था कि प्रादेशिक कांग्रेस समितियाँ खड्गे को गांधी परिवार का आधिकारिक उम्मीदवार
बता रहीं हैं और इस तरह पक्षपात होने की संभावना है. कई प्रदेशों में शशि थरूर को
पोलिंग एजेंट भी नहीं मिल पाए थे. शशि
थरूर के चुनाव प्रतिनिधि सलमान सोज ने मतदान में धांधली का आरोप लगाया और चुनाव
अधिकारी मधुसूदम मिस्त्री को लिखित आपत्ति दर्ज कराई. इस सबके बीच काफी नाटकीय
घटनाक्रम में कांग्रेस की अध्यक्ष का
चुनाव सम्पन्न हो गया और करीब 24 साल बाद कांग्रेस पार्टी की कमान गैर-गांधी
परिवार के मल्लिकार्जुन खड़गे के हाथ में आ गई है. ८० वर्ष की उम्र के इस पड़ाव पर सीताराम
केसरी का भूत सपने में भी खड्गे को डराता रहेगा और वह चाहते हुए गांधी परिवार की
चाहत से अलग कुछ कर पाने का साहस नहीं जुटा पायेगे.
यद्दपि खड्गे
अनुसूचित जाति से हैं और कर्णाटक से हैं
और हो सकता है कि इसका कुछ लाभ कर्णाटक
चुनाव में कांग्रेस को मिले लेकिन उत्तर भारत और महाराष्ट्र में इसका अधिक असर
पड़ने की संभावना नहीं है. इसलिए राष्ट्रीय स्तर पर इसका कोई फायदा कांग्रेस को
नहीं मिलेगा. इसके उलट उनके बौद्ध धर्मावलम्बी होने और हिन्दू धर्म के विरुद्ध अक्सर बयान देने और हिन्दी
भाषा पर अच्छी पकड़ न होने के कारण खड्गे कांग्रेस का लगातार कुछ न कुछ नुकशान करते
रहेंगे लेकिन गांधी परिवार ने चुनावी फायदे से ज्यादा परिवारिक निष्ठा को महत्त्व
दिया. पारिवारिक वफादारी के कारण ही
लोकसभा और राज्य सभा में कांग्रेस नेता का पद भी क्रमश: अधीर रंजन चौधरी और खड्गे
को दिया गया था और यह बताने की आवश्यकता नही इससे कांग्रेस ने क्या खोया और क्या
पाया.
कांग्रेस
अध्यक्ष के चुनाव और राहुल की भारत जोड़ो यात्रा के कारण हिमाचल और गुजरात में कांग्रेस अपना चुनाव
प्रचार भी शुरू नहीं कर सकी है. जहाँ कई नेता राहुल की इस पदयात्रा को बड़ी उपलब्धि
के रूप में प्रचारित कर रहें हैं वही पार्टी
के शुभचिंतकों ने राहुल से यात्रा बीच में रोक कर गुजरात और हिमांचल
चुनावों में प्रचार करने का अनुरोध किया पर शायद कांग्रेस ने इन दोनों राज्यों में
हारने के पकी इरादे के साथ पूरी तैयारी कर ली हैं. इसे भांप कर दोनों राज्यों में
बड़ी संख्या में नेता कांग्रेस छोड़कर भाजपा
में शामिल हो गए हैं. बचा खुचा काम आम आदमी पार्टी कर रही है जो कांग्रेस के वोटों
में बड़ी संख्या में सेंध लगा कर कांग्रेस की बुरी हार सुनिश्चित कर देगी. इसलिए नए
कांग्रेस अध्यक्ष का प्रथम स्वागत गुजरात
और हिमाचल की हार से होगा. अब जब मल्लिकार्जुन खड्गे 'बकरीद
में बच गए हैं तो मुहर्रम में जरूर नाचेंगे”.
किसी
गैर गांधी के कांग्रेस का अध्यक्ष बन जाने से राहुल और कांग्रेस को तात्कालिक
भावनात्मक राहत भले ही मिल जाए इससे पार्टी का भला हो पायेगा इसमें संदेह हैं. शशि थरूर को गांधी परिवार की इच्छा
के विरुद्ध लगभग २०% मत मिलना भे गांधी परिवार के लिए बहुत बड़ा सन्देश है कि पार्टी लम्बे समय तक गांधी परिवार
की पिछलग्गू बने नहीं रह सक्ती है है.
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शिव मिश्रा
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शिव मिश्रा