क्या इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए बाबर की मजार पर श्रद्धांजलि देने अफगानिस्तान गयी थीं, ऐसा करने के पीछे क्या कारण हो सकता है?
कुछ साल पहले कुंवर नटवर सिंह की एक किताब प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक था वन लाइफ इज नॉट इनफ (One Life is Not Enough) [1] , इसमें इस घटना का जिक्र किया गया है.
नटवर सिंह भारतीय विदेश सेवा के 1953 बैच के अधिकारी थे और वह चीन, ब्रिटेन, अमेरिका सहित कई देशों में नियुक्त रह चुके थे।वह कुछ ऐसे लोगों में शामिल हैं जिन्होंने नेहरू गांधी परिवार की लगभग हर पीढ़ी के साथ काम किया था। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और यहां तक कि राहुल और प्रियंका के साथ भी काम किया था । 1984 में उन्होंने सेवा से त्यागपत्र देकर कांग्रेस के टिकट पर संसदीय चुनाव में हिस्सा लिया था।
स्वाभाविक है कि उनकी लिखी किसी भी बात पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है। विशेष बात यह कि जब उनकी किताब प्रकाशित होने जा रही थी उस समय सोनिया गांधी ने प्रियंका को भेजकर और खुद उनके घर जाकर इस किताब में कई संभावित तथ्यों को प्रभावित या न छापने की कोशिश की थी। इस में वह कितना सफल रही यह तो नहीं मालूम लेकिन फिर भी इस किताब में कुछ ऐसे तथ्य नेहरू गांधी परिवार के संबंध में बताए गए हैं जो शायद देश को अन्यथा मालूम नहीं हो सकते थे।
नटवर सिंह के अनुसार अगस्त 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी ने राजीव और सोनिया के साथ काबुल का संक्षिप्त दौरा किया और कारण था खान अब्दुल गफ्फार खान से मिलना। एक दिन श्रीमती गांधी ने घूमने की इच्छा व्यक्त की और उन्हें अपने साथ आने को कहा। काबुल के बाहर कुछ पेड़ों से घिरी एक जीर्ण-शीर्ण इमारत दिखाई दी जिसका नाम था बाग-ए-बाबर , श्रीमती गांधी प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाते हुए कब्र पर गयी जो उनके तय कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था। कब्र पर पहुंचकर श्रीमती गांधी काफी देर तक सिर झुकाए खड़ी रही। उनसे कहा कि वह इतिहास की यादें ताजा कर रही थी। नटवर सिंह ने उनसे कहा कि भारत की महारानी के साथ बाबर को श्रद्धांजलि देना उनके लिए भी एक बड़ा सम्मान था.
इस किताब का वह अंश जिसमें इस घटना का जिक्र है -
- "One afternoon, Mrs Gandhi had some free time and decided to go for a drive, along with me. A few miles outside Kabul she saw a dilapidated building surrounded by a few trees, and asked the Afghan security officer what it was. Bagh-e-Babur, he told us, and Mrs Gandhi decided to drive up to it. The protocol department went into a tizzy as no security arrangements had been made. Regardless, we headed towards Babur’s grave. She stood at the grave with her head slightly lowered and I behind her. She said to me, ‘I have had my brush with history.’ I told her I had had two. ‘What do you mean?’she asked. I said that paying homage to Babur in the company of the Empress of India was a great honour."
ऐसा करने के पीछे क्या कारण हो सकता है ?
श्रीमती गांधी की यह काबुल यात्रा किसी द्विपक्षीय आधार पर आयोजित नहीं की गई थी. इसका कारण यह बताया गया था कि श्रीमती गांधी गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान से मिलना चाहती हैं और अपने साथ राजीव गांधी और सोनिया गांधी को भी ले गई थी. इसे ऐसा लगता है कि उन्होंने बाबर की कब्र पर श्रद्धांजलि अर्पित करने का इरादा बहुत पहले से ही कर लिया था और यह यात्रा सिर्फ इस कार्य के लिए ही पर आयोजित की गई थी. श्रीमती गांधी का उद्देश्य अगर भारत में मुस्लिम मतों को प्रभावित करना होता तो श्रद्धांजलि की इस खबर को भारत में फैला दिया गया होता लेकिन ऐसा नहीं किया गया इस बात को एक रहस्य ही रखा गया. इससे लगता है कि श्रीमती गांधी का बाबर की कब्र पर जाना और श्रद्धांजलि अर्पित करने का उद्देश्य नितांत व्यक्तिगत और उनके दिल का मामला था. और यह कुछ ऐसा था जिसे वह राजीव गांधी और सोनिया गांधी को भी बता देना चाहती थी. क्या श्रीमती गांधी बाबर को अपना पूर्वज मानती थी ?
इसे समझने के लिए एक छोटी सी और घटना का उदाहरण देना अत्यंत आवश्यक है.
- 1984 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद राजीव गांधी ने पहली बार 15 अगस्त 1985 को जब देश को संबोधित किया तो उन्होने भी कहा कि "वह भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते हैं जहां वह अब से ढाई सौ- तीन सौ साल पहले भारत था"
- ढाई सौ 300 साल पहले भारत में औरंगजेब का शासन था. औरंगजेब के शासनकाल में ऐसा अच्छा क्या था जिसने राजीव गांधी को इतना प्रभावित किया कि वह भारत को पुनः उसी युग में ले जाना चाहते थे ?
एक अन्य किताब है जो के एन राव लिखी है,[2] जिसमें मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, कमला नेहरू, इंदिरा, फिरोज खान, राजीव और संजय तथा अन्य समकालीन पात्रों का विस्तार से वर्णन किया है. के एन राव जवाहरलाल नेहरू के साथ काम करने वाले एक प्रशासनिक अधिकारी थे और उनकी रूचि ज्योतिष शास्त्र में बहुत अधिक थी इसलिए उन्होंने मोतीलाल नेहरू के बाद सभी की कुंडली बनाने के उद्देश्य से उनका सटीक जीवन वृतांत दिया है.
- जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू के बारे में विकीपीडिया में लिखा हुआ है कि उनका जन्म उनके पिता गंगाधर नेहरू की मृत्यु के बाद हुआ था. न्यू परिवार कई पीढ़ियों से दिल्ली में रह रहा था और गंगाधर नेहरू दिल्ली में पुलिस कोतवाल थे जब 1857 में स्वाधीनता संग्राम का संघर्ष शुरू हुआ तो आगरा में आकर बस गए. [3]
- बाद में मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद चले गए. लेकिन एम के सिंह ने अपनी इनसाइक्लोपीडिया ऑफ वार ऑफ़ इंडियन इंडिपेंडेंस मैं काफी विस्तार से इस बारे में बताया है.
- दिल्ली पुलिस की वेबसाइट में अंग्रेजों और मुगलकालीन के पुलिस अधिकारियों की सूची में किसी गंगाधर नेहरु का नाम दिल्ली के कोतवाल के रूप में नहीं मिलता . इसके विपरीत 1857 मैं दिल्ली के कोतवाली गयासुद्दीन गाजी थे, जो मुगल थे और जो दिल्ली पर अंग्रेजों के आक्रमण के समय दिल्ली छोड़ कर चले गए थे और छद्म नाम से रहने लगे थे, क्योंकि अंग्रेजों की सेना मुगलों को खोज खोज कर मौत के घाट उतार रही थी.
- कई स्वतंत्र इतिहासकारों ने अपनी खोज में गंगाधर नेहरू और गयासुद्दीन गाजी को एक ही व्यक्ति बताया है. एम के सिंह ने भी इसी तरफ इशारा किया है.
- हिंदुस्तान टाइम्स में 9 जुलाई 2015 को छपी एक रिपोर्ट में इस पर विभिन्न दृष्टिकोण से विस्तार से चर्चा की गई है.[4]
- एक सेवानिवृत्त आई ए एस अधिकारी डॉ वी एस गोपाल कृष्णन की खोज सर्वाधिक उपयुक्त लगती है, जिसे नीचे दिए गए लिंक से पढ़ा जा सकता है. [5]
अब अगर इन रिपोर्ट की कड़ियों को जोड़ा जाए तो ऐसा लगता है कि नेहरू परिवार के पूर्वज मुगल हो सकते हैं, लेकिन इस पूरे मामले पर इतनी धूल पड़ गयी है या डाल दी गई है, जिसके कारण तश्वीर कभी साफ़ नहीं हो पायेगी .
इंदिरा गांधी का बाबर की कब्र पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करना शायद इस संदेह को और अधिक पुख्ता करता है कि इंदिरा गांधी और नेहरु परिवार के पूर्वज मुग़ल थे .
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