रविवार, 21 फ़रवरी 2021

क्या इंदिरा गांधी ने बाबर की मजार पर श्रद्धांजलि दी थी ? क्या कारण हो सकता है?

 क्या इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए बाबर की मजार पर श्रद्धांजलि देने अफगानिस्तान गयी थीं, ऐसा करने के पीछे क्या कारण हो सकता है?



मुझे लगता है कि इस तरह के संवेदनशील उत्तर के साथ कुछ प्रमाण देना अत्यंत आवश्यक है। इसलिए मैं संक्षेप में प्रमाण के साथ उत्तर देने का प्रयास करता हूं।

कुछ साल पहले कुंवर नटवर सिंह की एक किताब प्रकाशित हुई थी जिसका शीर्षक था वन लाइफ इज नॉट इनफ (One Life is Not Enough) [1] , इसमें इस घटना का जिक्र किया गया है.

नटवर सिंह भारतीय विदेश सेवा के 1953 बैच के अधिकारी थे और वह चीन, ब्रिटेन, अमेरिका सहित कई देशों में नियुक्त रह चुके थे।वह कुछ ऐसे लोगों में शामिल हैं जिन्होंने नेहरू गांधी परिवार की लगभग हर पीढ़ी के साथ काम किया था। उन्होंने जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और यहां तक कि राहुल और प्रियंका के साथ भी काम किया था । 1984 में उन्होंने सेवा से त्यागपत्र देकर कांग्रेस के टिकट पर संसदीय चुनाव में हिस्सा लिया था।

स्वाभाविक है कि उनकी लिखी किसी भी बात पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जा सकता है। विशेष बात यह कि जब उनकी किताब प्रकाशित होने जा रही थी उस समय सोनिया गांधी ने प्रियंका को भेजकर और खुद उनके घर जाकर इस किताब में कई संभावित तथ्यों को प्रभावित या न छापने की कोशिश की थी। इस में वह कितना सफल रही यह तो नहीं मालूम लेकिन फिर भी इस किताब में कुछ ऐसे तथ्य नेहरू गांधी परिवार के संबंध में बताए गए हैं जो शायद देश को अन्यथा मालूम नहीं हो सकते थे।

नटवर सिंह के अनुसार अगस्त 1969 में तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती गांधी ने राजीव और सोनिया के साथ काबुल का संक्षिप्त दौरा किया और कारण था खान अब्दुल गफ्फार खान से मिलना। एक दिन श्रीमती गांधी ने घूमने की इच्छा व्यक्त की और उन्हें अपने साथ आने को कहा। काबुल के बाहर कुछ पेड़ों से घिरी एक जीर्ण-शीर्ण इमारत दिखाई दी जिसका नाम था बाग-ए-बाबर , श्रीमती गांधी प्रोटोकॉल की धज्जियां उड़ाते हुए कब्र पर गयी जो उनके तय कार्यक्रम का हिस्सा नहीं था। कब्र पर पहुंचकर श्रीमती गांधी काफी देर तक सिर झुकाए खड़ी रही। उनसे कहा कि वह इतिहास की यादें ताजा कर रही थी। नटवर सिंह ने उनसे कहा कि भारत की महारानी के साथ बाबर को श्रद्धांजलि देना उनके लिए भी एक बड़ा सम्मान था.

इस किताब का वह अंश जिसमें इस घटना का जिक्र है -

  1. "One afternoon, Mrs Gandhi had some free time and decided to go for a drive, along with me. A few miles outside Kabul she saw a dilapidated building surrounded by a few trees, and asked the Afghan security officer what it was. Bagh-e-Babur, he told us, and Mrs Gandhi decided to drive up to it. The protocol department went into a tizzy as no security arrangements had been made. Regardless, we headed towards Babur’s grave. She stood at the grave with her head slightly lowered and I behind her. She said to me, ‘I have had my brush with history.’ I told her I had had two. ‘What do you mean?’she asked. I said that paying homage to Babur in the company of the Empress of India was a great honour."  

ऐसा करने के पीछे क्या कारण हो सकता है ?

श्रीमती गांधी की यह काबुल यात्रा किसी द्विपक्षीय आधार पर आयोजित नहीं की गई थी. इसका कारण यह बताया गया था कि श्रीमती गांधी गांधी खान अब्दुल गफ्फार खान से मिलना चाहती हैं और अपने साथ राजीव गांधी और सोनिया गांधी को भी ले गई थी. इसे ऐसा लगता है कि उन्होंने बाबर की कब्र पर श्रद्धांजलि अर्पित करने का इरादा बहुत पहले से ही कर लिया था और यह यात्रा सिर्फ इस कार्य के लिए ही पर आयोजित की गई थी. श्रीमती गांधी का उद्देश्य अगर भारत में मुस्लिम मतों को प्रभावित करना होता तो श्रद्धांजलि की इस खबर को भारत में फैला दिया गया होता लेकिन ऐसा नहीं किया गया इस बात को एक रहस्य ही रखा गया. इससे लगता है कि श्रीमती गांधी का बाबर की कब्र पर जाना और श्रद्धांजलि अर्पित करने का उद्देश्य नितांत व्यक्तिगत और उनके दिल का मामला था. और यह कुछ ऐसा था जिसे वह राजीव गांधी और सोनिया गांधी को भी बता देना चाहती थी. क्या श्रीमती गांधी बाबर को अपना पूर्वज मानती थी ?

इसे समझने के लिए एक छोटी सी और घटना का उदाहरण देना अत्यंत आवश्यक है.

  • 1984 में प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने के बाद राजीव गांधी ने पहली बार 15 अगस्त 1985 को जब देश को संबोधित किया तो उन्होने भी कहा कि "वह भारत को नई ऊंचाइयों पर ले जाना चाहते हैं जहां वह अब से ढाई सौ- तीन सौ साल पहले भारत था"
    • ढाई सौ 300 साल पहले भारत में औरंगजेब का शासन था. औरंगजेब के शासनकाल में ऐसा अच्छा क्या था जिसने राजीव गांधी को इतना प्रभावित किया कि वह भारत को पुनः उसी युग में ले जाना चाहते थे ?

एक अन्य किताब है जो के एन राव लिखी है,[2] जिसमें मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, कमला नेहरू, इंदिरा, फिरोज खान, राजीव और संजय तथा अन्य समकालीन पात्रों का विस्तार से वर्णन किया है. के एन राव जवाहरलाल नेहरू के साथ काम करने वाले एक प्रशासनिक अधिकारी थे और उनकी रूचि ज्योतिष शास्त्र में बहुत अधिक थी इसलिए उन्होंने मोतीलाल नेहरू के बाद सभी की कुंडली बनाने के उद्देश्य से उनका सटीक जीवन वृतांत दिया है.

  • जवाहरलाल नेहरू के पिता मोतीलाल नेहरू के बारे में विकीपीडिया में लिखा हुआ है कि उनका जन्म उनके पिता गंगाधर नेहरू की मृत्यु के बाद हुआ था. न्यू परिवार कई पीढ़ियों से दिल्ली में रह रहा था और गंगाधर नेहरू दिल्ली में पुलिस कोतवाल थे जब 1857 में स्वाधीनता संग्राम का संघर्ष शुरू हुआ तो आगरा में आकर बस गए. [3]
  • बाद में मोतीलाल नेहरू इलाहाबाद चले गए. लेकिन एम के सिंह ने अपनी इनसाइक्लोपीडिया ऑफ वार ऑफ़ इंडियन इंडिपेंडेंस मैं काफी विस्तार से इस बारे में बताया है.
  • दिल्ली पुलिस की वेबसाइट में अंग्रेजों और मुगलकालीन के पुलिस अधिकारियों की सूची में किसी गंगाधर नेहरु का नाम दिल्ली के कोतवाल के रूप में नहीं मिलता . इसके विपरीत 1857 मैं दिल्ली के कोतवाली गयासुद्दीन गाजी थे, जो मुगल थे और जो दिल्ली पर अंग्रेजों के आक्रमण के समय दिल्ली छोड़ कर चले गए थे और छद्म नाम से रहने लगे थे, क्योंकि अंग्रेजों की सेना मुगलों को खोज खोज कर मौत के घाट उतार रही थी.
  • कई स्वतंत्र इतिहासकारों ने अपनी खोज में गंगाधर नेहरू और गयासुद्दीन गाजी को एक ही व्यक्ति बताया है. एम के सिंह ने भी इसी तरफ इशारा किया है.
  • हिंदुस्तान टाइम्स में 9 जुलाई 2015 को छपी एक रिपोर्ट में इस पर विभिन्न दृष्टिकोण से विस्तार से चर्चा की गई है.[4]
  • एक सेवानिवृत्त आई ए एस अधिकारी डॉ वी एस गोपाल कृष्णन की खोज सर्वाधिक उपयुक्त लगती है, जिसे नीचे दिए गए लिंक से पढ़ा जा सकता है. [5]

अब अगर इन रिपोर्ट की कड़ियों को जोड़ा जाए तो ऐसा लगता है कि नेहरू परिवार के पूर्वज मुगल हो सकते हैं, लेकिन इस पूरे मामले पर इतनी धूल पड़ गयी है या डाल दी गई है, जिसके कारण तश्वीर कभी साफ़ नहीं हो पायेगी .

इंदिरा गांधी का बाबर की कब्र पर जाकर श्रद्धांजलि अर्पित करना शायद इस संदेह को और अधिक पुख्ता करता है कि इंदिरा गांधी और नेहरु परिवार के पूर्वज मुग़ल थे .

फुटनोट


गुरुवार, 11 फ़रवरी 2021

भारत अपने विरोधी देश कनाडा को कोरोना वैक्सीन क्यों दे रहा है ?

 



दिल तो मेरा भी कह रहा है कि कनाडा को वैक्सीन नहीं देना चाहिए लेकिन दिमाग कह रहा है दे देना चाहिए , क्योंकि कूटनीति में और विदेश नीति में दिल से नहीं दिमाग से काम लेना चाहिए.

और ….. मोदी जी ने ही किया है.

आज कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन करो ना वैक्सीन देने का अनुरोध किया . जिसे प्रधानमंत्री ने यह जानते हुए भी कि भारत में चल रहे तथाकथित किसान आंदोलन में न केवल कनाडा में बसे खालिस्तान समर्थकों ने बल्कि स्वयं जस्टिन ट्रूडो और उनके मंत्रियों ने इस आंदोलन में आग में घी डालने का काम किया था, स्वीकार कर लिया. मोदी जी ने स्वयं ट्वीट कर इसकी जानकारी दी.

श्री नरेंद्र मोदी की वैक्सीन डिप्लोमेसी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत सौहार्द अर्जित किया है . वर्तमान परिस्थितियों में जब चीन कोरोना संक्रमण के आरोपों से घिरा हुआ है, और उसकी वैक्सीन भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फेल साबित हो गई है, भारत का मानवीय आधार पर सह्रदयता दिखाना न केवल भारत के लिए बेहतर छवि निर्माण करेगा बल्कि दवा और वैक्सीन उद्योग को नई ऊंचाइयों पर स्थापित करेगा.

कनाडा रक्षात्मक मुद्रा में पहले ही आ चुका है, वैक्सीन की इस कूटनीति से खालिस्तानियों पर भी अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बन गया है .

किसान आन्दोलन में मिलने वाले विदेशी फंड्स की जांच चल रही है जिसमें काफी पैसा कनाडा से आया है. कनाडा के जाँच में सहयोग करने मात्र से कुछ तथाकथित किसान नेता मुहं छिपाते फिरेंगे .

शनिवार, 6 फ़रवरी 2021

क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता के विश्वास के साथ खतरनाक खेल खेल रहें हैं?

 उग्र किसान आंदोलन से प्रभावित हुए बिना और लोक लुभावन रहित 2021 का बजट देखकर क्या आपको लगता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जनता द्वारा दिए गए विश्वास के साथ खतरनाक खेल खेल रहें हैं?



भारत में ऐसे बहुत कम लोग हुए हैं जिन्हें जनता का अपार विश्वास प्राप्त होता है, नरेंद्र मोदी उन गिने चुने लोगों में से एक हैं. जनता उनका भरपूर विश्वास करती है और उसे हमेशा यह विश्वास रहता है कि मोदी जो करेंगे अच्छा ही करेंगे और जो देश व जनता के हित में होगा.

जनता का यह अगाध विश्वास मोदी की ईमानदार छवि के कारण है. यह विश्वास ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़ी जमा पूंजी है, जिसका वह भरपूर उपयोग करते हैं, बिना किसी संकोच और बिना किसी दबाव के.

इसीलिए राजनैतिक षड्यंत्र, धरना प्रदर्शन, अपने प्रति नफरत के भाव आदि, उन्हें प्रभावित नहीं करते और वह देश हित में आर्थिक और सामाजिक सुधारों के बड़े से बड़े कदम उठाने से नहीं हिचकते हैं.

  • उनके इस साहसिक कार्यों के पीछे केवल और केवल जनता का असीम विश्वास है लेकिन एक सबसे बड़ी बात है कि मोदी को अच्छी तरह से मालूम है की जनता उनके इस तरह के कार्यों को पसंद करेगी इसलिए विपरीत परिस्थितियों में भी वह अपने मार्ग से नहीं डिगते.
  • सामान्य राजनीतिक नेता इतने साहसिक और जोखिम भरे कदम नहीं उठाते क्योंकि उन्हें हमेशा डर बना रहता है कि वह जनता का विश्वास न खो दें, उनकी लोकप्रियता कम न हो जाए और वह चुनाव न हार जायें .
  • इसके विपरीत मोदी के कार्यों से हमेशा ऐसा लगता है कि उन्हें जैसे चुनाव की कभी चिंता ही नहीं रही और इसलिए उन्होंने नोटबंदी और जीएसटी जैसे साहसिक कदम उठाए जिसके उपरांत विपक्षी पार्टियों सहित कई बुद्धिजीवी भी यह सोचते थे कि 2019 चुनाव में दोबारा सत्ता में नहीं आ पाएंगे. किंतु जनता ने उनमें पहले से कहीं ज्यादा विश्वास जताया और मोदी ज्यादा सीटें पाकर और ज्यादा मजबूत होकर सत्ता में वापस आ गए.
  • ऐसा लगता है कि जितना जनता मोदी पर भरोसा करती है उससे कहीं ज्यादा मोदी जनता पर भरोसा करते हैं कि वह उनके हर कदम का समर्थन करेगी अन्यथा ऐसे समय जब अंतराष्ट्रीय साजिश द्वारा प्रायोजित उग्र किसान आंदोलन चल रहा हो, वह अपना दिन प्रतिदिन का काम सामान्य ढंग से कर रहे हैं, और उन्होंने बिना दबाव में आये, ठीक वैसा ही बजट प्रस्तुत किया, जैसा कि वर्तमान परिस्थितियों में देश को आवश्यकता थी.
  • यह बजट भी कम साहसिक नहीं है, इसमें न तो कोई लोकलुभावन घोषणा है और न ही उन्होंने अपने सबसे बड़े वोट बैंक मध्यम वर्ग को कोई खास रियायत दी है. मजे की बात यह है कि बजट आने के बाद सभी ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है जो इस बात का संकेत है कि प्रधानमंत्री मोदी में जनता का विश्वास दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है, और उसी अनुपात में विपक्षी दलों और नेताओं पर जनता का विश्वास घटता जा रहा है. यह सुखद आश्चर्य है और इसका कारण है कि जनता और मोदी एक दूसरे को बहुत अच्छे ढंग से समझते हैं.
  • इससे पहले केवल जवाहरलाल नेहरू के साथ ऐसा था कि सत्ता में आने के बाद भी उनकी लोकप्रियता कम नहीं हुई थी लेकिन उनके बाद के सभी प्रधान मंत्रियों ने सत्ता में आने के बाद अपनी लोकप्रियता खोई थी.
  • नरेन्द्र मोदी न केवल इसके अपवाद हैं बल्कि उन्होंने एक बड़ी लाइन खींच दी हैं, जिसके आगे सारा विपक्ष एक साथ जुड़ने के बाद भी बौना लगता है.

इसलिए मोदी जनता के विश्वास की पूंजी को जनता के हित में पूरे आत्म विश्वास के साथ, बड़ी दरियादिली से निवेश ( इन्वेस्टमेंट ) कर रहें हैं .

यही राजनीति का खतरनाक खेल है जो केवल मोदी ही खेल सकते हैं. आज के दिन दूसरा कोई नेता दूर दूर तक इस खेल में नजर नहीं आता .

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