मद्रास उच्च न्यायलय के न्यायाधीश जी आर स्वामीनाथन पर महाभियोग || न्यायपालिका नहीं, सनातन पर प्रहार || भारतीय राजनीतिज्ञ इस्लामपंथियों के जिहादी गुलाम??
विदेशों में यदि कहा जाए कि हिंदुस्तान में हिंदू खतरे में हैं, हिंदुत्व खतरे में है, तो शायद लोग इसे मज़ाक समझें। लेकिन हिंदुस्तान में रहने वाला हर जागरूक हिंदू अच्छी तरह जानता है कि भारत में वह दूसरे दर्जे का नहीं, बल्कि सातवें–आठवें दर्जे का नागरिक है, जिसके विरुद्ध कहीं भी, कभी भी, कोई भी, कुछ भी कर सकता है।
तमिलनाडु के मदुरै जिले के थिरुपरांकुंदरम की पहाड़ी पर दीप प्रज्वलन की परंपरा वर्षों से चली आ रही है, परंतु इस बार स्थानीय प्रशासन ने इसे रोक दिया। हिंदुओं की याचिका पर उच्च न्यायालय ने “कार्तिगई दीपम” के अंतर्गत प्राचीन पत्थर स्तंभ पर दीप जलाने की अनुमति दे दी। इससे नाराज़ सनातन-विरोधियों ने मानसिक संतुलन खो दिया और न्यायाधीश के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। कारण स्पष्ट है — कैसे कोई न्यायाधीश वोट-बैंक की कीमत पर हिंदुओं के पक्ष में फैसला दे सकता है?
संविधान की धज्जियाँ उड़ाते हुए तमिलनाडु सरकार ने न्यायालय के आदेश का अनुपालन नहीं किया। उच्च न्यायालय द्वारा केंद्रीय सुरक्षा बलों के संरक्षण में दीप जलाने का आदेश देने के बाद भी स्थानीय प्रशासन ने क्षेत्र में धारा 144 लागू कर किसी भी श्रद्धालु को मंदिर परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया। केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि मदुरै पुलिस आयुक्त ने 200 से अधिक पुलिसकर्मियों के साथ उनकी टुकड़ी को अदालत के आदेश का पालन करने से रोका था। राज्य सरकार ने किसी भी कीमत पर दीप-प्रज्वलन की परंपरा पूरी नहीं होने दी।
निर्णय देने वाले न्यायाधीश जी. आर. स्वामीनाथन के विरुद्ध डीएमके सरकार ही नहीं, बल्कि विपक्ष के हर छोटे-बड़े नेता विषवमन कर रहे हैं। यह न्यायपालिका को डराने और भविष्य के लिए चेतावनी देने जैसा है। भारत के न्यायिक इतिहास में अवमानना की यह एक दुर्लभ घटना है। राज्य सरकार ने संविधान का गंभीर उल्लंघन किया है और ऐसी सरकार को राष्ट्रपति द्वारा तुरंत बर्खास्त कर देना चाहिए, लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार तमिलनाडु में आगामी विधानसभा चुनाव को देखते हुए ऐसा जोखिम नहीं उठाएगी।
इस बीच, तमिलनाडु की सत्ताधारी डीएमके ने कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, टीएमसी, शिवसेना (उद्धव), राष्ट्रवादी कांग्रेस (शरद पवार), एआईएमआईएम, इंडियन मुस्लिम लीग तथा अन्य विपक्षी दलों के साथ मिलकर न्यायाधीश जी. आर. स्वामीनाथन के विरुद्ध 120 सांसदों के हस्ताक्षरयुक्त महाभियोग प्रस्ताव को लोकसभा अध्यक्ष को सौंप दिया। प्रस्ताव सौंपते समय प्रियंका वाड्रा, अखिलेश यादव, टी. आर. बालू, कनिमोझी तथा अन्य नेता उपस्थित थे।
हालाँकि भाजपा का संसद के दोनों सदनों में बहुमत होने के कारण यह प्रस्ताव आगे नहीं बढ़ पाएगा, परंतु यदि इसी समय कांग्रेस सत्ता में होती तो न केवल महाभियोग पारित हो जाता, बल्कि यह संदेश भी दे दिया जाता कि हिंदू आस्था को महत्व देने वालों की खैर नहीं।
भारत पर धर्मांध इस्लामिक आक्रांताओं के हजारों आक्रमण और सैकड़ों वर्ष का शासन भी जो नहीं कर सका, उसे आज इस देश की राजनीति स्वयं कर रही है। गजवा-ए-हिंद के माध्यम से भारत को इस्लामी राष्ट्र बनाने का जो सपना कट्टरपंथियों ने देखा था, उसे आज के स्वार्थी राजनीतिज्ञ पूरे करने में लगे हुए हैं — केवल मुस्लिम वोटों के लिए, जिनके सहारे वे सत्ता पाकर राजसी सुख भोग सकें। दुर्भाग्य की बात यह है कि इनमें अधिकांश हिंदू ही हैं, जिन्हें अपने पूर्वजों, अपनी संस्कृति और सभ्यता के प्रति कोई सम्मान नहीं। किसी भी सभ्य समाज में इतनी बड़ी चारित्रिक गिरावट की कल्पना करना भी कठिन है।
अभी बंगाल के मुर्शिदाबाद और तेलंगाना के हैदराबाद में बाबरी मस्जिद के निर्माण की घोषणा और सरकारी संरक्षण में हुए शिलान्यास की आग ठंडी भी नहीं हुई थी कि तमिलनाडु की डीएमके सरकार मुस्लिम तुष्टिकरण में पीछे न रहने के लिए सीधे न्यायपालिका से भिड़ गई, और इसी कारण न्यायाधीश स्वामीनाथन का नाम मंदिर-दरगाह विवाद में सुर्खियों में आ गया। इस समय विपक्षी दलों में मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी साबित होने की होड़ चल रही है। कांग्रेस तो बाकायदा कह चुकी है — “कांग्रेस मतलब मुसलमान और मुसलमान मतलब कांग्रेस।” इससे आसानी से समझा जा सकता है कि भारत की राजनीति देश को कहाँ ले जा रही है।
जहाँ तक विवाद का प्रश्न है — तिरुप्परनकुंद्रम, भगवान मुरुगन (कार्तिकेय) के छह प्रमुख धामों में से एक है। तमिल माह ‘कार्तिगई’ के दौरान पहाड़ी पर दीप जलाने की परंपरा अत्यंत प्राचीन है। उसी पहाड़ी के समीप एक दरगाह भी है, जिसके कारण विवाद ने संवेदनशील रूप ले लिया। यद्यपि मुस्लिम समुदाय को यहाँ दीप जलाने पर कोई आपत्ति नहीं, लेकिन राज्य सरकार मानो उन्हें स्वयं बता रही हो — “आपको मालूम नहीं, पर आपको दिक्कत है।”
यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि आज भारत में हिंदुओं को अपनी आस्था और अनुष्ठानों के लिए न्यायिक हस्तक्षेप की आवश्यकता पड़ती है, और न्यायिक निर्णय आने के बाद भी हिंदू अपनी ही ज़मीन पर अपने आराध्य का शांतिपूर्ण अनुष्ठान नहीं कर सकते। यह कैसा संविधान है, जो देश की मूल संस्कृति और धर्म को सुरक्षा नहीं दे सकता? हिंदू-विरोध की हठधर्मिता के चलते दीप-प्रज्वलन की तिथि निकल चुकी है।
क्या किसी अन्य धार्मिक समुदाय से यह कहा जा सकता है कि —
रोज़ा अगले महीने रखो, मुहर्रम का जुलूस एक सप्ताह बाद निकालो, क्रिसमस जनवरी में मनाओ?
लेकिन हिंदुओं से यह कहा जा सकता है कि —
दुर्गा पंडाल की अनुमति नहीं मिलेगी, जुमे के दिन मूर्ति-विसर्जन नहीं कर सकते, दिवाली में पटाखे नहीं चला सकते, होली में रंग नहीं खेल सकते, कांवड़ यात्रा में डीजे नहीं बजा सकते, रामनवमी का जुलूस नहीं निकाल सकते, गणेश उत्सव में लाउडस्पीकर नहीं लगा सकते, डांडिया पंडाल में किसी विधर्मी को रोक नहीं सकते, मस्जिद के सामने से बारात नहीं निकाल सकते, और लव जिहाद, थूक जिहाद, भूमि जिहाद पर आवाज़ नहीं उठा सकते।
कार्यपालिका, न्यायपालिका, गैर-सरकारी संगठन, सिविल सोसाइटी, धर्मनिरपेक्षतावादी, सुधारवादी, वामपंथी, चरमपंथी, नरमपंथी, बौद्धिक वर्ग तथा केंद्र-राज्य सरकारें — सभी के निशाने पर हमेशा हिंदू ही होता है। लेकिन क्यों ?
जहाँ तक न्यायाधीश स्वामीनाथन का प्रश्न है — प्रथम दृष्टि में उनका किसी ओर झुकाव नहीं दिखता। उन्होंने प्रदेश भाजपा अध्यक्ष अन्नामलाई के विरुद्ध हेट-स्पीच का निर्णय सुनाया था। उनके कई फैसले मुस्लिम समुदाय के पक्ष में भी गए हैं। वे अपनी स्पष्ट टिप्पणियों और त्वरित निर्णयों के लिए जाने जाते हैं। हाल ही में उन्होंने अपने निष्पादन आँकड़े जारी किए थे, जिनके अनुसार उन्होंने 7 वर्षों में लगभग 65,000 मुकदमों का निपटारा किया — जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। यह न्यायिक उत्तरदायित्व का उत्कृष्ट उदाहरण है।
वास्तव में यह महाभियोग किसी न्यायाधीश के विरुद्ध नहीं, बल्कि सनातन धर्म पर सीधा आक्रमण है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम. के. स्टालिन और उनका परिवार सनातन के विरुद्ध लंबे समय से कार्य कर रहा है। स्टालिन ने सनातन को “डेंगू और मलेरिया” बताया था और उसे जड़ से समाप्त करने का संकल्प लिया था।
यह प्रसन्नता का विषय है कि अनेक सेवानिवृत्त न्यायाधीश, वकील और बौद्धिक वर्ग न्यायाधीश जी. आर. स्वामीनाथन के समर्थन में खड़े हो गए हैं। अन्यथा विपक्ष जिस प्रकार अपने स्वार्थ के चलते संवैधानिक संस्थाओं पर आक्रमण कर रहा है, उससे भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में पड़ गई है।
समय की माँग है कि सभी सनातनी जाति-भाषा से ऊपर उठकर आपसी एकता स्थापित करें, अन्यथा बहुसंख्यक होकर भी अपने उत्पीड़न के लिए वे स्वयं उत्तरदायी होंगे। जो समुदाय अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा नहीं कर सकते, उनकी रक्षा कोई नहीं करता और कर भी नहीं सकता.
~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~