सोमवार, 8 मार्च 2021

पश्चिम बंगाल चुनाव इस बार इतने महत्त्व पूर्ण क्यों हो गए हैं ?

 



पश्चिम बंगाल के स्थिति दिन प्रतिदिन  बहुत ख़राब होती जा रही है , ऐसा लगता है कि सत्ता के लालच में राजनैतिक दल देश के इस भूभाग को कश्मीर बनाने में गुरेज नहीं कर रहे हैं. देखिये एक संक्षिप्त विश्लेषण.


  बंगाल 12 वीं शताब्दी तक भारत ही नहीं दुनिया में  समृद्धि शाली राज्यों में गिना जाता था. यह राज्य जितना आर्थिक रूप से समृद्ध था उतना ही कला संस्कृति और प्रगतिशील सोच में भी समृद्ध था. कहा जाता था कि बंगाल जो आज सोचता है पूरी दुनिया उसे कल सोच पाएगी. उस समय बौद्ध धर्म के प्रभुत्व वाले इस शांतिप्रिय  राज्य में 1204 में मोहम्मद बख्तियार खिलजी ने आक्रमण किया और  चूंकि  हिंदू राजा आपस में ही एक दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते थे, इस आक्रमण  का सभी ने सामूहिक  सामना नहीं किया और परिणाम स्वरूप बंगाल मुस्लिम आक्रांताओं के कब्जे में आ गया. बख्तियार खिलजी ने न केवल अपना साम्राज्य स्थापित किया बल्कि   तलवार की नोक पर बड़ी संख्या में धर्मांतरण करवाया  जिसके कारण बंगाल मुस्लिम बाहुल्य राज्य हो गया. 

लगभग 550 वर्षों तक गुलाम रहने के बाद भी कोई  हिंदू राजा या हिंदू वीर सेनानी राज्य को आक्रांताओं  के चंगुल से मुक्त नहीं करा सका. 1757 में प्लासी की लड़ाई द्वारा  ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया.  सत्ता  की डोर एक आक्रांता से दूसरे आक्रांता को स्थानांतरित हो गई. मुस्लिम आंदोलनकारियों के दबाव में अंग्रेजी सत्ता ने  1905 में बंगाल का विभाजन किया और  मुस्लिम बाहुल्य आबादी वाले भाग  को पूर्वी बंगाल  का नाम दिया गया व दूसरे का नाम दिया गया पश्चिम बंगाल.  राष्ट्रवादी हिंदुओं केअत्यधिक विरोध के कारण 1911 में विभाजन तो रद्द कर दिया गया लेकिन प्रशासनिक विभाजन बना रहा. 1947 में भारत के विभाजन के समय इसी  आधार पर  मुस्लिम बाहुल्य  पूर्वी बंगाल को पाकिस्तान को दे दिया गया जो   पूर्वी पाकिस्तान बना  और बाद में  आज के बंगला देश के नाम से एक और इस्लामिक देश भारत के पड़ोस में बन  गया.  जैसा कि अवश्यंभावी था, बांग्लादेश के इस्लामीकरण के बाद  हिंदुओं के विरुद्ध भयानक अत्याचार किए गए जिनका उल्लेख  बंगलादेशी  लेखिका तसलीमा नसरीन ने अपनी किताब " लज्जा " में किया है . पढ़कर आपके रोंगटे काँप जायेंगे. हिन्दू महिलाओं और बच्चियों  को उनके घरों से उठा लिया जाता था. उनके के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और यहां तक कि हिन्दू  पुरुषों के गुप्तांग  भी काटे  गए. तसलीमा नसरीन के खिलाफ कट्टरपंथी आंदोलित हो गए और उनके खिलाफ फतवे जारी किये गए. उनकी किताब प्रतिबंधित कर दी गयी  और उन्हें बांग्लादेश से निकाल दिया गया. उन्हें भागकर कोलकाता में शरण लेनी पडी लेकिन कट्टरपंथियों के दबाव में  कांग्रेस शासन में  कोलकाता  भी छोड़ना पडा और उनकी किताब भारत में भी प्रतिबंधित कर दी  गयी.       


बंगाल का दुर्भाग्य देखिए कि मुस्लिम आक्रांताओ  के आक्रमण और 550 के मुस्लिम शासन और लगभग 200 वर्षों की अंग्रेजी शासन की बाद भी बंगाल में जो राष्ट्रवाद की भावना की मशाल जलती रही, उसे  स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद बुझाने के हर संभव प्रयास किए जाने लगे. इसके पीछे पाकिस्तान और विदेशी शक्तियों के साथ साथ  देश के स्वार्थी और लालची राजनीतिक नेताओं ने  राष्ट्रवाद और नैतिकता  को तिलांजलि देकर सत्ता प्राप्ति के लिए तुष्टीकरण की आड़ में एक और बंटवारे को निमंत्रण दे डाला . 


पाकिस्तान के  पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो ने अपनी किताब "द मिथ ऑफ इंडियन इंडिपेंडेंस" में  लिखा है कि विभाजन के समय पाकिस्तान ने पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के रूप में जो दो हिस्से  लिए थे , उनका रणनीतिक महत्व है. पूर्वी  पाकिस्तान से पश्चिम बंगाल में अवैध घुसपैठ करा कर पश्चिम बंगाल की जनसंख्या में असंतुलन पैदा करना है और कालांतर में इस राज्य को पूर्वी  पाकिस्तान में मिलाना था . इसी तरह पश्चिमी पाकिस्तान में समूचे जम्मू कश्मीर को मिलाने की योजना  शामिल है.  इसलिए "हंस के लिए पाकिस्तान लड़के  लेंगे हिंदुस्तान" की पृष्ठभूमि आज भी जिंदा है, लेकिन यह हिंदुस्तान का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि बिना खड़क बिना ढाल, ठेके पर आजादी दिलाने वाली कांग्रेस ने इस ओर  पूरी तरह से आंख बंद कर ली जिसका परिणाम आज देश के सामने है. 


कांग्रेस  ने  अपने शासनकाल में तुष्टिकरण की सारी सीमाएं लांग दी और बांग्लादेश से आने वाले अवैध घुसपैठियों को वोट  बैंक बनाकर  पश्चिम बंगाल और असम के सीमांत जिलों में लगातार आश्रय देते रहे जिसके कारण असम और पश्चिम बंगाल के कई जिलों में जनसंख्या का घनत्व बदल गया और स्थानीय निवासी अपनी पहचान के लिए छटपटाने लगे. आसाम मे अवैध घुसपैठियों  के विरुद्ध आंदोलन होने लगा जिसके कारण पश्चिम बंगाल  बांग्लादेशी अवैध घुसपैठियों का सबसे बड़ा केंद्र  बन गया. आज बांग्लादेश की सीमा से लगे हुए अनेक  जिले मुस्लिम बाहुल्य जिले हो गए  हैं और इनका प्रभाव १००  से अधिक विधानसभा सीटों पर स्पष्ट रूप से देखा जा सकता  है. 


कांग्रेश के बाद सत्ता में आए वामपंथियों ने तो और दो कदम आगे जाकर खुलकर इन अवैध बांग्लादेशियों का साथ दिया. 90 के दशक में जब महाराष्ट्र की पुलिस मुंबई से अवैध बांग्लादेशियों को पकड़कर उन्हें बांग्लादेशी सीमा पर छोड़ने जा रही थी तो हावड़ा  रेलवे स्टेशन पर वामपंथी नेताओं ने  महाराष्ट्र पुलिस को घेर लिया और  हंगामा किया.  पुलिस के कब्जे से सभी घुसपैठियों को वामपंथी छुड़ा ले गए.  सोचिये इन अवैध घुसपैठियों के लिए और क्या  क्या नहीं किया होगा . 


आज भी  पश्चिम बंगाल में भाजपा के अलावा सभी दल मुस्लिम वोट बैंक के सहारे ही  चुनावी  वैतरणी पार करने की कोशिश कर रहे हैं.  संवैधानिक  आढ़ में भारत  की छद्म धर्मनिरपेक्षता की विडंबना देखिए की फुरफुरा  शरीफ के जिहादी मौलवी अब्बास सिद्दीकी जिन्होंने कोविड-19 के संक्रमण काल में जुमे की नमाज के बाद दुआ मांगी थी कि इससे भारत में  50 करोड लोग ( हिन्दू )  मर जाएं, विधानसभा के चुनाव में भाग लेने के लिए इंडियन सेक्युलर  फ्रंट बनाया है, और सभी राजनीतिक दल  गठबंधन करने के लिए उसके पीछे पड़े रहे. जहां ममता बनर्जी ने  करोड़ों  रुपयों की सहायता फुरफुरा  शरीफ दरगाह को देकर इस  जिहादी मौलबी को अपने पक्ष में करने की कोशिश की लेकिन सीट बंटवारे को लेकर बात नहीं बन सकी वहीं  कांग्रेस और वामपंथियों ने घुटने टेक कर इस साम्प्रादायिक उन्मादी और देश विरोधी मौलबी से समझौता कर लिया. यह  धर्मनिरपेक्ष भारत की  घिनौनी और बेहद  खतरनाक तस्वीर है, और यही तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों की कड़वी सच्चाई भी  है. कांग्रेश ने भारत विभाजन के तुरंत बाद ही मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन कर लिया था और वामपंथियों के हवाले पूरी शिक्षा व्यबस्था और इतिहास लेखन का कार्य सौंप दिया था जिसके कारण आर्य बाहरी आक्रमणकारी  बना दिए गए, अकबर व औरंगजेब महान  बना दिए  गए और  शिवाजी और महाराणा प्रताप को   लुटेरा और आतंकवादी बना दिया गया.  ताजमहल भारत की पहिचान बन गया और अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम अपना अस्तित्व प्रमाणित  करने के लिए अदालतों के चक्कर लगाते रहे.  


पश्चिम बंगाल के इन चुनावों में एक और बेहद महत्वपूर्ण घटनाक्रम होने जा रहा है और वह है भारत के स्वयंभू धर्मनिरपेक्ष,  एआईएमआईएम यानी आल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुस्लिमीन  (जिसका अर्थ है मुस्लिमों के लिए समर्पित संगठन) के  मुखिया, और हैदराबाद के रजाकार  संगठन से गहरा संबंध रखने वाले और जिन्ना के रास्ते पर  चलकर हिंदुस्तान में मुस्लिम क्रांति लाने वाले असदुद्दीन ओवैसी का प्रवेश. ओवैसी ने भी फुरफुरा  शरीफ के इसी शांतिदूत से समझौता करने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं बन सकी. जाहिर है ओवैसी भी  अब सिर्फ मुस्लिमों का वोट पाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाएंगे. ऐसा पहली बार हुआ है कि किसी राज्य के चुनाव में 3 बड़े राजनीतिक दल या गठबंधन मुस्लिम वोटों के लिए आपस में लड़ेंगे.  कितनी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है जो केवल भारत में ही संभव है  कि 30% मुस्लिम मतों के लिए तुष्टिकरण की सारी सीमाएं पार कर दी जाती है किंतु 70% हिंदुओं की भावनाओं को पूरी तरह  अनदेखा कर दिया जाता है.  दुर्गा विसर्जन की तिथियों और मुहूर्त  को दरकिनार कर मुहर्रम जुलूस के कारण  रोक  दिया जाता है, जय श्रीराम के नारे का विरोध किया जाता है, मस्जिदों के इमामों  और अजान लगाने वालों के लिए वेतन और भत्ते की व्यवस्था की जाती है, मस्जिदों, मदरसों, दरगाहों आदि पर करदाताओं के पैसे की बर्षात कर दी  जाती है जिसके कारण पूरे राज्य में गली कूंचों में  मदरसों और मस्जिदों की बाढ़ आ जाती है, उनकी गतिविधियों को पूरी तरह  नजरअंदाज किया जाता है, बांग्लादेश के अवैध घुसपैठियों और रोहिंग्याओं का तहे दिल से स्वागत किया जाता है. सीमांत जिलों से हिंदुओं का पलायन शुरू हो चुका है. यह सब  शुभ संकेत नहीं है और पश्चिम बंगाल में कश्मीर जैसे हालत होने में बहुत कम समय बाकी है. 


ऐसे में किसी ऐसी सरकार की अत्यंत आवश्यकता है जो न केवल तुष्टिकरण रोके बल्कि तेजी से परिवर्तित हो रहे जनसंख्या घनत्व को रोके ताकि न  केवल पश्चिम बंगाल के वर्तमान स्वरूप को बनाए रखा जा सके बल्कि भारत की एकता और अखंडता को सुनिश्चित किया जा सके. मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि  वर्तमान परिस्थितियों में भाजपा के अतिरिक्त यह कार्य कोई भी राजनैतिक दल  नहीं कर सकता है. 


भाजपा  के वरिष्ठ नेताओं  विशेषतय: भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह, और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन मुद्दों को  बखूबी रेखांकित किया है जिसका लोगों पर बहुत तेजी से असर हुआ है. यही कारण है कि भाजपा की राजनीतिक जमीन में निरंतर सुधार हो रहां  हैं.  पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में राज्य में भाजपा के पक्ष में तेजी से हवा चल रही है और तृणमूल के  कई नेता और ममता बनर्जी के निकट सहयोगी भाजपा में शामिल हो रहे हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बिग्रेड ग्राउंड में हुई रैली में जितना जन सैलाब उमड अगर यह राज्य के लोगों की आकांक्षा का प्रतीक है तो परिवर्तन संभव है.  किसी जमाने के डिस्को डांसर और बॉलीवुड के सुपरस्टार मिथुन चक्रवर्ती ने भाजपा का झंडा  फहराते  हुए फिल्म अंदाज में उपस्थित जनसमूह को परिवर्तन का सीधा सीधा संकेत दे दिया. प्रधानमंत्री की यह रैली प्रदेश में हुई अब तक की सबसे विशाल  रैली थी, जिससे विपक्षी खेमे में चिंता व्याप्त हो गई है.


इससे पहले यहां उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने  भी जय श्री राम के उद्घोष के साथ उत्तर प्रदेश की कानून और व्यवस्था के समक्ष नतमस्तक होते अपराधियों की बानगी प्रस्तुत की जिसे प्रदेश की शांत प्रिय जनता में  नई आशा का संचार  हुआ.  लोगों को मालूम हुआ कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में एक सन्यासी की सादगी और दृढ़ संकल्प ने न केवल उच्च स्तर पर व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया है बल्कि अपराधियों और माफियाओं के हौसले पस्त  कर दिए हैं. उत्तर प्रदेश में योगी राज में माफियाओं और भ्रष्टाचारियों के विरुद्ध जितनी कड़ी कार्यवाही हुई है उतनी आजादी के बाद किसी भी सरकार में नहीं हुई है. आर्थिक विकास के मामले में भी प्रदेश ने  छलांग लगाते हुए नया कीर्तिमान स्थापित किया है. भाजपा शासित  प्रदेश का उत्तर प्रदेश मॉडल पश्चिम बंगाल के लोगों में आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. 



पश्चिम बंगाल में इस बार अगर सत्ता परिवर्तन नहीं होता है तो संभवत मुस्लिम तुष्टिकरण के  नए आयाम गढे  जाएंगे और जिसके परिणाम स्वरूप स्थितियां और भयावह होती जाएंगी जो आगे चलकर निश्चित रूप से भारत की एकता और अखंडता के लिए गंभीर चुनौती बनेगी. इसलिए सभी राष्ट्रवादी लोगों को चाहिए कि इन चुनावों को "अभी नहीं तो कभी नहीं" के रूप में किसी दल की सरकार बनाने के लिए नहीं अपितु भारत की  एकता और अखण्डता अक्षुण्ण बनाये  रखने के लिए अपना योगदान देना चाहिए . 

****************************************************************************

- शिव मिश्रा 

स्वतन्त्र लेखक और  चिन्तक 

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~




1 टिप्पणी:

सर्वोच्च न्यायालय ने यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन ऐक्ट 2004 को असंवैधानिक करार देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के 22 मार्च 2024 के फैसले पर लगाई रोक

हाल के वर्षों में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कुछ निर्णय चर्चा में रहे जिनमें न्यायिक सर्वोच्चता के साथ साथ न्यायिक अतिसक्रियता भी परलक्...