शरद पूर्णिमा का पौराणिक, धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्त्व |
चांदनी में खीर रखने का कारण | जानिये कौमुदी महोत्सव |
चंद्रमा का हमारे जीवन में बहुत अधिक वैज्ञानिक महत्व है,
और यह पृथ्वी पर रहने वाले हर मनुष्य और प्राणी को प्रभावित करता
है. इसकी चुम्बकीय आकर्षण शक्ति का पानी पर बहुत प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण समुद्र में ज्वार भाटा आता है. हमारे शरीर
में दो तिहाई से अधिक पानी होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति भी चन्द्रमा से
प्रभावित होता है. चंद्रमा के दुष्प्रभाव के कारण कुछ लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त
या पागल हो सकते हैं, जिसे चाँदमारा कहा
जाता है. ग्रीक भाषा में इस भारतीय विधा को समझ कर लुनेटिक शब्द बना, जो लूनर यानी
चन्द्रमा से बना है. पूर्णचंद्र की रात में इस तरह के व्यक्ति अत्यधिक परेशान और
उद्वेलित रहते हैं.
वैसे तो
प्रत्येक मास की पूर्णमासी अपने आप में विशिष्ट होती है लेकिन शरद पूर्णिमा का
विशेष महत्व है क्योंकि इस तिथि के बाद ही शरद ऋतु का आगमन होता है. वर्षा ऋतु के
बाद यह पहली पूर्णिमा होती है, इसलिए वातावरण में प्रदूषण का स्तर न्यूनतम होता है.
इस दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे अधिक नजदीक होता है, इसलिए पूर्णचंद्र की किरणें (चांदनी ) अपने साथ
ब्रह्मांड से जो अमृत लेकर आती है, उसका रास्ते में क्षरण बहुत कम होता है और यह पृथ्वी की सतह पर गिरता है.
ज्योतिष गणना के
अनुसार संपूर्ण वर्ष में आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है। 16 कलाओं
से युक्त चंद्रमा से निकले ऊर्जावान प्रकाश को चांदनी कहते हैं जो समस्त रूपों
वाली बताई गई है। चूंकि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है, यह अपेक्षाकृत अधिक बड़ा दिखाई देता है। इसलिए
इस दिन की चांदनी वर्ष भर में सबसे अधिक चमकीली होती है.
हिंदू धर्म में
चंद्रमा की सोलह कलाओं का विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण को भी 16 कलाओं से युक्त माना जाता था। चंद्रमा सोलह कलाओं से
युक्त है, जिसका अर्थ है कि चंद्रमा अपने 16 विशेष गुणों से युक्त होता है और उस दिन उसके प्रकाश में भी 16 खूबियाँ होती हैं । ये 16 कलाएं चंद्रमा की विभिन्न
अवस्थाओं और गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जैसे अमृत, मनदा (विचार),
पुष्प (सौंदर्य), पुष्टि (स्वास्थ्य), तुष्टि( इच्छापूर्ति), ध्रुति (विद्या), शाशनी (तेज), चंद्रिका (शांति), कांति (कीर्ति), ज्योत्सना (प्रकाश), श्री (धन), प्रीति (प्रेम), अंगदा
(स्थायित्व), पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता) और पूर्णामृत
(सुख)। शरद पूर्णिमा की रात चंद्रदेव अपनी
इन सोलह कलाओं की अमृतवर्षा से धरतीवासियों को आरोग्य व उत्तम स्वास्थ्य का वरदान
देते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस दिन चन्द्रमा की रोशनी में नहाने से मनुष्य में
भी ये 16 कलाएं आने की संभावना बढ़ जाती है। शास्त्रों के
अनुसार, लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की इन
अमृतमयी किरणों को अपनी नाभि पर ग्रहण कर पुनर्योवन की शक्ति प्राप्त करता था।
ऐसी मान्यता है
कि इस दिन भू लोक पर लक्ष्मी जी घर घर विचरण करती हैं, जो जागता रहता है उस पर उनकी विशेष कृपा होती है।
इसलिए शरद पूर्णिमा को हर्ष और उल्लास के साथ त्यौहार के रूप में मनाने की पौराणिक
परंपरा रही है.
शरद पूर्णिमा की खीर का आरोग्य से
संबंध है.
शरद पूर्णिमा की
चांदनी में औषधीय गुण होते हैं। कहा जाता है कि माता लक्ष्मी को दूध, मिष्ठान और चावल बहुत पसंद है और खीर में इन तीनों चीजों का ही मिश्रण होता है
इसलिए इस दिन खीर का विशेष महत्व है. शरद पूर्णिमा की रात्रि में आकाश के नीचे रखी
जाने वाली खीर में अमृत का समावेश हो जाता है, जिसे खाने से
शरीर नीरोग होता है और पित्त का प्रकोप कम हो जाता है। यदि आंखों की रोशनी कम हो
गई है तो इस पवित्र खीर का सेवन करने से आंखों की रोशनी में सुधार हो जाता है। शरद
पूर्णिमा की खीर को खाने से हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है। साथ
ही श्वास संबंधी बीमारी भी दूर हो जाती है। पवित्र खीर के सेवन से चर्म रोग भी ठीक
हो जाता है। वाणी के दोष भी दूर होते हैं. खीर की जो सामग्री है दूध चावल और चीनी
तीनों ही चंद्रमा से जुड़ी हुई वस्तुएं हैं जिसके सेवन से स्वास्थ्य लाभ तो होता ही
है, कुंडली का चंद्र दोष निवारण भी होता है. वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात
दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है।
चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखने का वैज्ञानिक कारण
एक अध्ययन के
अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के
कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। अध्ययन के
अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक
मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और
आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले
आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।
शोध के अनुसार
खीर को चांदी के पात्र में बनाना सर्वोत्तम होता है क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता
अधिक होती है जिससे विषाणु दूर रहते हैं। इस खीर में हल्दी या किसी अन्य पदार्थ का मिश्रण
क्योंकि इससे चांदनी के औषधीय तत्व नष्ट हो सकते हैं. इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को
कम से कम 30 मिनट तक शरद
पूर्णिमा की चांदनी का स्नान करना चाहिए।
धार्मिक मान्यताये
माँ लक्ष्मी
अपने वाहन के साथ भ्रमण करते शरद पूर्णिमा की रात्रि में एरावत हाथी अपने वाहन के साथ बैठती हैं. उनकी विशेष कृपा हम पर उस रात्रि में बरसती है.
शरद पूर्णिमा वाली रात्रि को महाशक्ति की
रात्रि होती है और तीन देवियों की महापूजा होती है - महाकाली, मां सरस्वती और
महालक्ष्मी.
शरद पूर्णिमा के आश्चर्यजनक तथ्य
पद्म पुराण के
अनुसार माता लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय ब्रह्मकमल पुष्प साल में सिर्फ एक बार इसी
अवसर पर खिलता है। द्वापर युग में माता लक्ष्मी ने इसी दिन श्री राधा के रूप में
अवतार लिया था।
कौमुदी महोत्सव
अशविन महीने की
शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि जिसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है को रास पूर्णिमा या कौमुदी पूर्णिमा भी कहा जाता है.
इसलिए शरद पूर्णिमा के पर्व को कौमुदी उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है. इस
उत्सव को कला, समृद्धि, शिक्षा, संसार विषयक कार्यों, सौंदर्य,
रति क्रियाओं हेतु मनाया जाता है. इसी समय
प्रकृति में शरद ऋतु का नवीन रुप दिखाई पड़ता है. कौमुदी महोत्सव भारत का प्राचीनतम उत्सव है जो राष्ट्र की
पारंपरिक सांस्कृतिक चेतना का प्रमाण है. यह सर्वसमृद्ध, सुविख्यात,
भारतीय कला, कौशल व प्रकृति के प्रेम का
महापर्व होता है.
कौमुदी पर्व एक
तरफ ऋतु परिवर्तन तो दूसरी तरफ बौद्धिक विकास और विभिन्न प्रकार की कलाओं में
निपुणता प्राप्त करने के संकेत भी प्रस्तुत करता है. इसे मानव सुशिक्षित व नम्र हो
जीवन जीने की भिन्न-भिन्न कलाओं में दक्षता प्राप्त करता है. जीवन के अन्तिम
लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है. इस पर्व को ऋतुराज के नाम से भी
संबोधित किया जा सकता है. क्योंकि इस दौरान भी प्रक्रति का रंग अपने चरम को छूता
दिखाई देता है. इस उत्सव के दौरान पेड़-पौधों में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे फूल भी
खिल उठते हैं. खेतों मे फसलों का अलग रंग दिखाई पड़ता है. मंद-मंद बहती ठंडी हवा
ओर व खिली हुई चांदनी सभी का मन मोह लेती है. इस समय प्रकृति का मनमोहक अंदाज
दिखाई पड़ता है जो प्रत्येक व्यक्ति को मनमुग्ध कर नयी चेतनाका संचार करता है.
प्रकृतिक सौंदर्य के कारण ही इसे ऋतुराज भी कहा जाता है.
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