अनुराग कश्यप की फिल्म उड़ता पंजाब गहरे
विवादों में आ गई है और यह पता चलने के बाद कि इस फिल्म को बनाने में आम आदमी
पार्टी ने आर्थिक मदद की है हड़कंप मच
गया है. मजेदार बात यह है की आम आदमी
पार्टी के नेता अरविंद केजरीवाल फिल्म के पक्ष में खुलकर उतरे लेकिन यह तथ्य सामने आने के बाद वह परिद्रश्य
से एकदम गायब हो गए और अब आम आदमी पार्टी
का कोई भी नेता खुलकर इस फिल्म के समर्थन में नहीं आ रहा.
मेरे एक मित्र जो फिल्मी पत्रकार हैं ने बताया
कि विवादों में आने वाली अनुराग कश्यप की यह पहली फिल्म नहीं है. इससे पहले 2003 में उनके द्वारा बनाई गई फिल्म “पांच” आज तक सिनेमाघरों का मुहं नहीं देख पाई है क्योंकि उस फिल्म में भी ड्रग्स, हिंसा जैसे
कई पहलू थे जिन्हें सेंसर बोर्ड ने अनुमति देने लायक नहीं समझा. इसके बाद 1993 के मुम्बई दंगों पर आधारित एक फिल्म “ब्लैक
फ्राइडे” भी विवादों में आई और अनुराग
कश्यप द्वारा 2 साल तक कोर्ट में मुकदमा लड़ने और तमाम परिवर्तनों के बाद फिल्म को सेंसर बोर्ड की
अनुमति मिली.
पहले से ही तैयार बैठे अनुराग कश्यप हैं ने सिने
जगत के कई लोगों को अपने साथ खड़ा किया है और वह प्रत्यक्ष रूप से फिल्म सेंसर बोर्ड और
अप्रत्यक्ष रूप से केंद्र सरकार और पंजाब सरकार के खिलाफ आ जायेंगे ये योजना वद्ध ढंग से होगा.
जो लोग अनुराग कश्यप के साथ खड़े हैं उनमें से काफी बड़ी संख्या में वह लोग हैं
जिन्होंने फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया में गजेंद्र सिंह की नियुक्ति
का विरोध किया था. जब भी कभी सेंसर बोर्ड
किसी फिल्म में परिवर्तन करने की सलाह देता है या द्रश्यों को काटता है तो यह निर्माताओं को काफी नागवार गुजरता है क्योंकि ये ऐसे अंश होते हैं जो फिल्म के लिए पैसे कमाने का
बहुत बड़ा स्रोत होते हैं.
कश्यप में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है
क्योंकि उन्होंने अपनी इस फिल्म को रिलीज करने के लिए 17 जून का समय निश्चित कर रखा था जो अब मुश्किल लगता है. अच्छा हो यदि कोर्ट के बजाए फिल्म सेंसर बोर्ड और फिल्म बनाने
वाले लोग आपस में बैठकर यह फैसला करें और उसके बाद फिल्म बनाने वाले लोग अगर इससे
सहमत नहीं है तो उसके विरुद्ध अपील में जा सकते हैं, जो एक अच्छा कदम होगा. बहुत
से फिल्म निर्माता अपनी फिल्मों में सेंसर
बोर्ड द्वारा दिए गए सुझाव पर बहुत बड़े विवाद
खड़ा करते हैं इसका एक कारण फिल्म को
अपेक्षित पब्लिसिटी दिलाना होता है. अगर वास्तव में निर्माता अपने विषय वस्तु के
लिए इतना कमिटेड है और वह चाहते हैं कि उनके विषय वस्तु देश के लोग देखें तो
उन्हें अपनी ऐसी सभी फिल्मों को इंटरनेट पर रिलीज कर देना चाहिए.
अभी हाल में एक फिल्म
“ मोहल्ला अस्सी घाट” गाली गलौज के अत्यधिक प्रयोग के कारण फिल्म सेंसर बोर्ड ने
इसे अप्रूव नहीं किया और यह फिल्म आज तक रिलीज नहीं हो सकी. बाद में निर्माताओं ने
इस फिल्म को इंटरनेट पर रिलीज कर दिया मैंने इस फिल्म को सिर्फ विवादों में आने के
कारण देखा और पाया कि अगर इस फिल्म से
गालियां हटा दी जाए तो यह एक बेहतरीन फिल्म है. लेकिन आज इसे आप फूहड़ और
भद्दी गलियों के कारण अपनी पत्नी के साथ भी सहज रूप से नहीं देख सकते. मोहल्ला अस्सी में सनी देओल और एक से एक जाने माने कलाकार हैं
जिनकी एक्टिंग बहुत ही बेहतरीन है लेकिन
क्या कारण है उन्होंने भी भी गाली गलौज
डायलॉग के रूप में इस्तेमाल की ? यहाँ तक कि भगवान शंकर के मुहं से भी गली दिलवा दी . ये
फिल्म राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पुरूस्कार
जीत सकती थी जिससे वंचित रह गयी.
इस तरह की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए कि ऐसी
फिल्मे आँख बंद कर पास होनी चाहिए .
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उड़ता पंजाब..
जवाब देंहटाएंदेखा तो नहीं
पर सर्च करूँगा यू ट्यूब पर
सादर
हम तो देख ही सकते हैं इसलिए देखते हैं ऊंट किस करवट बैठता है
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया बाते कहीं है आपने। आपस में मिल बैठ सोच-समझ ले तो ऐसी नौबत ही न आये। लेकिन कौन समझाए