नरेंद्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री बन कर जवाहर लाल नेहरू के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली किन्तु वह ऐसे प्रधानमंत्री हैं जो कई मामलों में नेहरू से भी बहुत आगे है. प्रधानमंत्री बनने के पहले वह गुजरात में तीन बार मुख्यमंत्री भी रह चुकें हैं. इसमें कोई संदेह नहीं कि भाजपा को उनकी बदौलत ही 2014 में केंद्र में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने का सुअवसर मिला. 2019 में 303 सांसदों के साथ पहले से ज्यादा बहुमत पाकर सरकार बनाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है. उनके कार्यकाल में ही भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बनी. 2024 में भी किसी को कोई संदेह नहीं था मोदी के नेतृत्व में भाजपा अकेले दम पर बहुमत प्राप्त नहीं कर सकेगी. प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में अबकी बार चार सौ के पार का नारा देकर विपक्ष में घबराहट उत्पन्न कर दी. मनोवैज्ञानिक रूप से चुनाव हार चुके विपक्ष ने भी ये मान लिया था कि आएगा तो मोदी ही, लेकिन सात चरणों के लंबे, उबाऊ और प्रतिकूल मौसम में हुए चुनाव ने भाजपा का रथ रोक दिया. वह अकेले अपने दम पर बहुमत का आवश्यक 272 का आंकड़ा भी पार नहीं कर सकी, यद्दपि वह राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सहयोगियों के साथ बहुमत पाकर सरकार बनाने में सफल हो गयी.
देश के लिए चिंतित मोदी और भाजपा समर्थक समेत अनेक चिंतक इन विचारों में उलझे हैं कि क्या मोदी अपने बाद भाजपा को पुरानी स्थिति में वापस भेज देना चाहते हैं.
मोदी इतिहास में अपने को युग पुरुष सिद्ध करने या अपने को अतुलनीय बनाने के लिए भाजपा का अहित करेंगे, यह मानने का कोई कारण नहीं है इसलिए इसे स्वीकार्य भी नहीं किया जा सकता है लेकिन, मोदी की जो छवि है, उसकी बराबरी कर सके ऐसा कोई भी नेता भाजपा में दिखाई नहीं पड़ता. उनका कोई उत्तराधिकारी भी दिखाई नहीं पड़ता. सरकार और पार्टी में मोदी का निर्णय ही अंतिम निर्णय होता है. गृहमंत्री अमित शाह के अलावा अन्य कोई नेता उनके बहुत करीब है, ऐसा प्रथम द्रष्टया लगता नहीं. इसलिए प्रायः पार्टी के अंदर से लेकर विपक्ष तक चर्चा शुरू हो जाती है कि केवल दो व्यक्ति ही भाजपा और सरकार को चला रहे हैं. पार्टी के सभी मुख्यमंत्रियों और नेताओं का अपने प्रधानमंत्री को यशस्वी बताना और सभी उपलब्धियों का श्रेय देना अच्छा तो है लेकिन ये बहुत असामान्य लगता है और उनके अन्दर की घबराहट को रेखांकित करता है. 2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरयाणा और पश्चिम बंगाल में अपना पिछला प्रदर्शन नहीं दोहरा सकी. इन राज्यों में सीटों की संख्या में इतनी अधिक गिरावट आई कि उसे ओडिशा, तेलंगाना आंध्र प्रदेश में मिली उत्कृष्ट सफलता भी पूरा नहीं कर सकी. 240 सांसदों तक सिमटी भाजपा सरकार बनाने के लिए सहयोगी दलों पर निर्भर हो गई. ऐसे में वर्तमान कार्यकाल में मोदी से किसी क्रांतिकारी परिवर्तन वाले कानून यथा समान नागरिक संहिता, जनसंख्या नियंत्रण, वक्फ बोर्ड, पूजा स्थल कानून, घुसपैठियों की निकासी, नागरिको का राष्ट्रीय रजिस्टर आदि की अपेक्षा करना बेमानी होगी.
- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का निजी जीवन बहुत ही संघर्षपूर्ण रहा और शायद इसलिए वह समाजसेवा की भावना से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े. संघ में भी उन्होंने समर्पण और कर्तव्यपरायणता का उदाहरण प्रस्तुत किया. संघ से भाजपा के संगठन में आकर भी अपनी उपयोगिता सिद्ध की. यह उनकी संगठनात्मक क्षमता का ही प्रमाण है कि उन्हें बिना किसी पूर्व अनुभव या विधायक बने सीधे गुजरात का मुख्यमंत्री बना दिया गया. मुख्यमंत्री रहते हुए उन्होंने अनेक विकासपूरक योजनाएं चलाई. पूरे देश में विकास के इस स्वरूप को गुजरात मॉडल नाम दिया गया. एक दुर्भाग्यपूर्ण मानव निर्मित सांप्रदायिक घटना घटी जिसमे अयोध्या में रामलला के दर्शन करके लौटे 59 श्रद्धालुओं को गोधरा स्टेशन के पास रेल की बोगी में आग लगा कर जिंदा जला दिया गया. इसकी प्रतिक्रिया में गुजरात में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे जिसमे मुसलमानों के साथ साथ बड़ी संख्या में हिंदू भी मारे गए लेकिन यह विमर्श बनाने की कोशिश की गई कि गुजरात में मुसलमानों का नरसंहार किया गया है. तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले विपक्ष द्वारा मोदी को दोषी ठहराया जाने लगा. प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने भी मोदी को राजधर्म पालन करने की सलाह दी. इसके बाद पार्टी के अंदर उन्हें पद से हटाए जाने की मुहिम तेज हो गई. हिंदू जनमत के दबाव में उन्हें पद से नहीं हटाया जा सका. यहीं से उनकी हिंदूवादी छवि का निर्माण हुआ. अपनी इसी छवि के कारण कालान्तर में वह पार्टी के प्रधानमंत्री चेहरा बनाए गए. कट्टर हिंदूवादी छवि और अच्छे दिन आने की आश में हिंदुओं ने एक मुस्त वोट देकर, मोदी के नाम पर पूर्ण बहुमत की सरकार बनवाई.
प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने कट्टर हिंदूवादी छवि से निकलने का प्रयास शुरू कर दिया. “सबका साथ सबका विकास” तक ठीक रहा लेकिन जैसे ही इसमें सब का विश्वास जुड़ा, हिंदुओं के प्रति उनका व्योहार उदासीन होता गया. भाजपा नेताओं के साथ एक समस्या है कि जैसे जैसे उनका कद बढ़ता है, वह लोकप्रिय और इतिहास पुरुष बनने के लिए धर्मनिरपेक्षता की राह पर निकल पड़ते हैं और हिंदुओं का उसी तरह अनदेखा करते हैं जैसे कांग्रेस करती है. अटल जी के बारे में कहा जाता है कि वह कांग्रेसियों से भी बड़े नेहरूवियन थे. मोदी भी उसी राह पर चल पड़े ओर मुस्लिम देशों के राष्ट्रीय सम्मान और पुरस्कार मिलने के बाद तो उन्होंने बहाबी, सूफी और पसमांदा सम्मेलन आयोजित करने शुरू कर दिए. मदरसों के छात्रों के एक हाथ में कुरान और दूसरे में लैपटॉप देने के प्रयास में उन्होंने जितना बजटीय आवंटन किया, उतना स्वतंत्र भारत के किसी भी प्रधानमंत्री ने नहीं किया. उन्हें भ्रम था कि मुसलमान उन्हें वोट देंगे जो लोकसभा के इन चुनाव में संभवता दूर हो गया होगा.
धारा 370 हटाने, अयोध्या में राम मंदिर बनाने में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष भूमिका निभाने, संशोधित नागरिकता कानून बनाने, देश को आतंकवादी घटनाओं से मुक्त करने जैसे अनेक साहसिक कार्य मोदी सरकार ने किये जिसके लिए हर राष्ट्रवादी उनकी प्रशंसा करते नहीं थकता, लेकिन शायद मोदी और भाजपा हिन्दुओं के इतने बड़े समर्थन की थाती संभाल नहीं सके. अधिकांश राष्ट्रवादी व्यक्ति निजी लाभ की अपेक्षा राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हैं लेकिन अगर हिन्दू हितों को अनदेखा करके तुष्टीकरण के लिए सनातन और राष्ट्रविरोधी समुदाय पर राष्ट्रीय संसाधनों की बर्बादी पर यह वर्ग मोदी या भाजपा के साथ खड़ा नहीं रह सकता. इन चुनावों में यही देखने को मिला.
दो कार्यकाल का 10 वर्ष का समय देश और समाज के लिए जोखिम पूर्ण साहसिक कार्य करने के लिए कम नहीं होता लेकिन वह हिंदू समुदाय की पीड़ा भी भूल गए और उनको दिए गए आश्वासन भी. गज़वा-ए-हिंद का खतरा दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है लेकिन वह विकास की ढफली बजाते हुए 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र बनाने का सपना बेच रहे हैं. पीएफआई 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की योजना पर तेजी काम कर रहा है. पता नहीं 2047 तक भारत विकसित राष्ट्र बनेगा या विकसित इस्लामिक राष्ट्र. कोई नहीं जानता कि बिहार में फुलवारी शरीफ में एनआईए के छापेमारी में इस षड्यंत्र के जो दस्तावेज बरामद हुए थे, उस जांच का क्या हुआ. देवबंद का दारुलउलूम गज़वा-ए-हिंद के फतवे को अपनी अधिकारिक वेबसाइट पर प्रकाशित करके इसे धार्मिक कृत्य बता रहा है. राष्ट्रान्तरण का बड़ा ख़तरा सामने है लेकिन मोदी सरकार केवल विकास की बात करती रही.
देश की एकता एवं अखंडता अक्षुण रखने और भ्रष्टाचार उन्मूलन के कार्य का देश की जनता भरपूर समर्थन करती है और यह राजनैतिक रूप से भाजपा के हित में भी है लेकिन सरकार गाँधी परिवार पर मेहरबान है क्यों है किसी को नहीं मालूम. नेशनल हेराल्ड और यंग इंडिया के जिस मामले में राहुल और सोनिया जमानत पर चल रहे हैं, इतने वर्षों बाद भी वह लंबित क्यों है. अगस्ता-वेस्टलैंड मामले में भी कोई कार्रवाई नहीं हुई जबकि मोदी की प्रशंसक इटली की प्रधानमंत्री जॉर्जिया मेलोनी स्वयं सारे दस्तावेज उपलब्ध कराने को तैयार हैं. लालू यादव के रूप में एक सजायाफ्ता कैदी पैरोल पर जेल से बाहर आकर राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न हैं. पिछले कई वर्षों से पश्चिम बंगाल में राजनीतिक हिंसा हो रही है, हर चुनाव के बाद यह सामान्य बात हो गयी है. भाजपा कार्यकर्ताओं के साथ शर्मनाक व्यवहार हुआ, उन्हें पलायन के लिए मजबूर होना पड़ा लेकिन केंद्र सरकार मूक दर्शक बनी रही. केरल और तमिलनाडु में सनातन धर्म और सनातन संस्कृति को समाप्त करने के लिए राज्य सरकारे दमनकारी कार्य प्रयोजित कर रही है लेकिन कथित हिंदूवादी सरकार मौन रही.
उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में भाजपा, संघ का भी साथ नहीं जुटा पाई. काशी में प्रधानमंत्री की जीत का अंतर बेहद कम हो गया. संगठन और सरकार में समन्वय के अभाव, गुटबाजी और भितरघात ने भाजपा की शक्ति को क्षीण कर दिया है. लोग कयास लगाने को विवस हैं कि क्या यह मोदी के जाने का संकेत है या भाजपा को “पुन: मूषक:” बनने का.
मोदी जानबूझकर भाजपा का नुकसान करेंगे इसकी संभावना नहीं है. विपक्ष के भ्रम फ़ैलाने की कोशिशों पर भाजपा को ही नहीं सभी हिन्दुओं को भी अत्यंत सावधान रहने की आवश्यकता है.