दुनिया में कुछ लोग ऐसे होते हैं जो कोई भी निर्णय नहीं कर पाते हैं, न अपने लिए और न किसी और के लिए. कुछ कहने के लिए, कुछ करने के लिए उन्हें हमेशा सहारे और सलाहकार की आवश्यकता होती है लेकिन वे सलाह भी नहीं मानते जब उन्हें कोई जिम्मेदारी उठाने की सलाह दी जाती है, हालांकि वे होते बेहद महत्वाकांक्षा हैं. स्कूल से लेकर उनके रोजाना पहनने वाले कपड़ों का चुनाव उनके माता पिता या कोई दूसरे लोग करते हैं. उनके माँ बाप ही उन्हें स्कूल को सौंपने जाते हैं. ऐसे लोग ऐसा कोई काम नहीं करते जिसमें मस्तिष्क का इस्तेमाल करना होता है इसलिए उनका पूरा जीवन स्वछन्द ओर बिंदास होता है.
राहुल गाँधी भी कुछ कुछ इसी तरह के व्यक्ति हैं. यूपीए के शासनकाल में जब मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने राहुल गाँधी को मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया, ताकि वह कुछ अनुभव प्राप्त कर सके और सोनिया गाँधी से भी इस संबंध में बात की. सोनिया गाँधी की बात तो राहुल सुनते नहीं इसलिए उन्होंने सीधे राहुल से ही बात करने की सलाह मनमोहन सिंह को दी. मनमोहन सिंह ने राहुल से कहा लेकिन जब कोई जवाब नहीं मिला तो उन्होंने सोचा शायद राहुल प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं तो उन्होंने राहुल को प्रधानमंत्री बनने ओर स्वयं उनके नीचे काम करने का प्रस्ताव दिया लेकिन राहुल गाँधी हिम्मत नहीं जुटा सके.
राहुल को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया गया लेकिन वह खुश नहीं थे. जैसे ही पार्टी चुनाव में हारी उन्होंने नैतिक आधार पर अध्यक्ष पद छोड़ दिया क्योंकि उत्तरदायित्व का बोझ वह नहीं उठा सकते. वह थाईलैंड सहित कई देशों की यात्रा करते रहते हैं लेकिन शादी करने की हिम्मत नहीं जुटा सके क्योंकि जिम्मेदारी से बहुत घबराते हैं. बावजूद इसके राहुल को मोदी का प्रधानमंत्री बनना रास नहीं आया, और उन्हें लगने लगा कि उनसे अच्छे प्रधानमंत्री तो वह स्वयं बन सकते हैं, ठीक उसी तरह जैसे अखिलेश यादव को, योगी का मुख्यमंत्री बनना बर्दाश्त नहीं हो पाया.
राहुल ने वायनाड और रायबरेली दो जगह से चुनाव लड़ा और दोनों जगह जीत गए लेकिन अब कौन सी सीट छोड़नी है इसका निर्णय नहीं कर पा रहे हैं. सलाहकार दिन रात काम पर जुटे हुए हैं कि कौन सी सीट छोड़ना राहुल के लिए ज्यादा उपयुक्त होगा. तदनुसार राहुल गाँधी निर्णय करेंगे.
नेता विपक्ष बनना बेहद जिम्मेदारी का काम है. जब सदन चलेगा तो हमेशा उन्हें उपस्थित भी रहना होगा और विभिन्न विषयों पर बिना तैयारी या पर्ची के बोलना भी पड़ेगा जो राहुल के बस का काम नहीं लगता. यद्यपि कांग्रेस कार्यसमिति ने सर्वसम्मति से उनसे विपक्ष का नेता बनने का अनुरोध किया है. संभवत: इसके द्वारा राहुल की छवि निखारने का प्रयास किया गया है जबकि ये सभी कांग्रेसियों को मालूम है कि राहुल गाँधी शायद ही कोई जिम्मेदारी संभालने के लिए तैयार होंगे.
इन परिस्थितियों में ऐसा लगता नहीं है कि राहुल गाँधी नेता विपक्ष का पद संभालेंगे और इसी में उनकी , कांग्रेस की और देश की भलाई है .
हो सकता है कि उनके मन मस्तिष्क में यह बात भी कही गहराई से बैठ गई हो कि वह तो प्रधानमंत्री मैटेरियल है और वह सीधे प्रधानमंत्री ही बनेंगे जैसे उनके नाना जवाहरलाल नेहरू और उनके पिता राजीव गाँधी बने थे.
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