मेरा स्वयं का एक अनुभव है जिसका उल्लेख करना आवश्यक है. मैं कुछ समय पहले किसी काम से कोलकाता गया था. जिस दिन वापसी की फ्लाइट थी उसके एक दिन पहले ही मेरा काम खत्म हो गया था. मेरे मन में आया कि इस समय का उपयोग गंगासागर जाने के लिए करू.
अगले दिन बहुत सुबह मैं सुंदरबन के काकदीप में जेटी के निकट पहुंच गया जहां से फेरी ( छोटा पानी का जहाज) सागर दीप जाने के लिए चलती है . मैं जल्दी पहुंचने के उद्देश्य इतनी सुबह आ गया था लेकिन बड़ा आश्चर्य हुआ कि 9:30 बजे के पहले कोई फेरी नहीं जायेगी और अभी 2 घंटे बाकी थे. मैंने देखा कि जेटी के आसपास सूखी जमीन थी, दूर-दूर तक पानी का नामोनिशान नहीं था. मुझे संदेह हुआ तो मैंने जाकर बुकिंग काउंटर से पूछा कि शिप कहां से जाएगा ? उसने आश्वस्त किया यहीं से जाएगा जब मैंने पूछा कि यहां तो दूर-दूर तक पानी नहीं है तो उसने कहा आप इंतजार करिए 2 घंटे बाद यहां पानी आ जाएगा. 2 घंटे बाद सचमुच जेटी के आस पास पानी ही पानी था और इसका कारण था ज्वार भाटा. फेरी आ गयी और सभी यात्रियों को लेकर सागर द्वीप में कचुबेरी जेटी के लिए चल पड़ी.
यहां महत्वपूर्ण यह है कि यहां पानी आना ज्वार भाटा पर निर्भर करता है और ज्वार भाटा आने का कारण चंद्रमा होता है जिसका समय चंद्रमा की स्थिति पर निर्भर करता है इसलिए यहां से फेरी जाने का समय भी चंद्रमा की स्थिति के अनुसार बदलता रहता है.
भारतीय ज्योतिष शास्त्र के अनुसार मनुष्य के मन मस्तिष्क में उठने वाले विचार और समुद्र में उठने वाली लहरों का कारण चंद्रमा का प्रभाव होता है. आइये समझते हैं कि अमावस्या और पूर्णिमा के दिन लोगों का व्यवहार कैसे प्रभावित हो जाता है?
भारतीय ज्योतिष शास्त्र का आधार है कि पृथ्वी और मानव जीवन पर ब्रह्मांड के विभिन्न ग्रहों का प्रभाव पड़ता है और विभिन्न जीव जंतुओं और प्रकृति पर इन ग्रहों का प्रभाव अलग-अलग पड़ता है, जिसके कारण उनमें भिन्न-भिन्न तरह की विशेषताएं या विकार विकसित / उत्पन्न हो सकते हैं. चंद्रमा सभी ग्रहों में पृथ्वी के सबसे नजदीक है और वास्तव में यह पृथ्वी का ही प्राकृतिक उपग्रह है, इसलिए पृथ्वी पर प्रकृति और मानव सहित सभी जीव जंतुओं पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ता है.
भारत में प्राचीन काल प्रचलित अमावस्या और पूर्णिमा की तिथियां पृथ्वी पर चंद्रमा की दृष्टि स्थिति के अनुसार है. जहाँ अमावस्या पूर्ण अंधेरी रात होती है वहीं पूर्णिमा पूर्ण चंद्रमा की रात होती है.
पौराणिक भारतीय ग्रंथों के अनुसार इसे जल गृह कहा जाता है . स्थापित वैज्ञानिक तथ्यों और आविष्कारों के आधार पर यह सिद्ध हो चुका है कि चंद्रमा की गुरुत्वाकर्षण या अन्य कोई शक्ति पृथ्वी के पानी को अपनी ओर खींचती है जिसके कारण समुद्र में ज्वार भाटा आते हैं. चूंकि मनुष्य के शरीर में 60% से अधिक पानी होता है इसलिए स्वाभाविक रूप से प्रत्येक मनुष्य भी चंद्रमा से प्रभावित होता है और इसका सबसे अधिक प्रभाव मनुष्य के मन और मस्तिष्क पर होता है.
चूंकि चन्द्रमा, पृथ्वी की एक परिक्रमा लगभग 27 दिन और 8 घंटे में पूरी करता है और इतने ही समय में अपने अक्ष पर एक घूर्णन करता है। इस अवधि में हम पृथ्वी से चंद्रमा कलाएं रोज बढ़ते क्रम में देखते हैं जो पूर्णिमा के दिन पूर्ण चंद्र हो जाता है और फिर घटते क्रम में देखते हैं और अमावस्या को यह विलुप्त हो जाता है. इसलिए प्रत्येक दिन चन्द्रमा के प्रभाव अलग-अलग होते हैं .
भारतीय ऋषियों और मनीषियों को वैदिक काल से ही ब्रह्मांड के ग्रहों की जानकारी थी. चंद्रमा के पृथ्वी पर प्रभाव के बारे में बहुत विस्तार से अध्ययन किया जा गया था जिसे इस बात से समझा जा सकता कि भारतीय ज्योतिष के अनुसार भविष्यफल व्यक्ति के जन्म के समय की चंद्र राशि के आधार पर ही निकाले जाते हैं। ज्ञातव्य है कि किसी व्यक्ति के जन्म के समय चंद्रमा जिस राशि में स्थित होते हैं, वह राशि उस व्यक्ति की चंद्र राशि कहलाती है।
चूंकि चंद्रमा का निर्माण पृथ्वी से ही हुआ है, ऐसा माना जाता है कि चन्द्रमा का पृथ्वी से बेटे और मां जैसा रिश्ता है. जैसे बच्चे को देख कर मां के दिल में हलचल होने लगती है, वैसे ही चन्द्रमा को देख कर पृथ्वी पर हलचल होने लगती है. चंद्रमा को सुख स्थान का और माता का कारक माना जाता है इसलिए चन्दा भारत में बच्चों के मामा कहलाते हैं .
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चन्द्रमा मन का अधिष्ठाता होता है इसलिए मन की कल्पनाशीलता चन्द्रमा की स्थिति से प्रभावित होती है। अनगिनत भारतीय दार्शनिक, कवि और लेखक चन्द्रमा से प्रभावित होकर अपनी लेखनी को चरम पर पहुंचा चुके हैं, जिसमें उन्होंने चंद्रमा चांदनी आदि का उल्लेख किया है
वैसे तो चंद्रमा से पृथ्वी और उसके जीवों और पर पड़ने वाले प्रभाव अनगिनत हैं लेकिन कुछ प्रमुख, जिनमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण से काफी अनुसंधान हो चुका है, इस प्रकार हैं
जिन व्यक्तियों में चंद्रमा का अत्यधिक दुष्प्रभाव हो जाता है, उनका दिमाग विकृति हो जाता है और ऐसे मनुष्यों को भारत में पागल कहा जाता है.
इस तरह के मनुष्यों के लिए इंग्लिश शब्द है लुनेटिक (Lunatic), जो ग्रीक भाषा में लूनर ( Lunar) से बना हुआ है, जिसका अर्थ होता है चांद या चंद्रमा. इसलिए ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में लुनेटिक का अर्थ दिया गया है “चांद मारा” अर्थात जिसकी चांद या चंद्रमा ने यह गति कर दी. इंग्लिश का यह Lunatic शब्द अंग्रेजी में किये जाने वाले सभी कानूनी और अन्य सामान्य दस्तावेजों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस्तेमाल किया जाता है.
विश्व में कई पागल खानों और मानसिक रोगियों के अस्पतालों में अनुसंधान किया गया और यह पाया गया की पूर्णिमा की रात में सभी मानसिक रोगी और पागल मरीज बहुत ज्यादा असामान्य व्यवहार करते हैं और बहुत अशांत हो जाते हैं.
इसलिए सभी पागल खानों में पूर्णिमा की रात को विशेष सावधानी बरतने के निर्देश हैं.
कांगो सहित अफ्रीका के कई देशों में एक विशेष प्रजाति के बंदर पूर्णिमा की रात को बहुत अजीब अजीब आवाजें निकालते हैं, ऐसा लगता है कि ये इस रात बहुत व्याकुल हो जाते हैं.
प्रत्येक दिसंबर की चांदनी रात में विशेष रूप से पूर्णिमा की रात में ऑस्ट्रेलिया के तट पर कोरल पृथ्वी पर पर सबसे बड़े पैमाने पर प्रजनन करते हैं।
शोधकर्ताओं ने पाया है कि इस दिन चांदनी के स्तर एक प्रमुख भूमिका निभाता हैं. यह घटना हमेशा पूर्णिमा पर होती है।
अफ्रीका के शेर पूर्णिमा की रात को शिकार नहीं करते. इसका कारण यह है कि शायद वे पूर्णिमा की रात भोजन नहीं करते, लेकिन सबसे ज्यादा सनसनीखेज बात यह है की पूर्णिमा के तुरंत बाद पढ़ने वाले दिन में वह मनुष्यों पर सबसे ज्यादा आक्रमण करते हैं इसलिए इस दिन सभी लायन सफारी में विशेष सावधानी बरती जाती है .
चांदनी की किरणें बिच्छू में नीली चमक देती है इससे वे अमावस्या के दौरान बहुत अधिक सक्रिय होते हैं.
बिल्लियाँ और कुत्ते भी पूर्णिमा के दिन असामान्य रूप से सक्रिय हो जाते हैं और इस कारण कुत्ते और बिल्ली सबसे अधिक पूर्णिमा के दिन घायल होते हैं।
भारत में पाए जाने वाला एक पक्षी चकोर चाँद को एकटक देखता रहता है. ऐसा माना जाता है कि चकोर चाँद के इस स्वरूप को बहुत प्यार करता है इसलिए ऐसा चाँद के आकर्षण के कारण करता है.
संसार के जितने भी ऊष्ण प्रदेश हैं, वहां को लोगों को पूर्णिमा की रात में खुली चांदनी में सोने पर विचित्र स्वप्न दिखाई देते हैं।
भारतीय ज्योतिष के अनुसार मानव जीवन पर पड़ने वाले अन्य प्रभाव :
जन्म कुंडली में जिनका चंद्रमा निर्बल रहता है, वे प्राय: शीतजनित रोगों से पीड़ित रहते हैं।
रक्त प्रवाह और हृदय इसके अधिकृत क्षेत्र हैं, किंतु अन्य ग्रह के साथ अशुभ युति होने पर ही यह रक्तचाप, हृदय रोग की संभावना बनाता है।
मूत्र संबंधी रोग, दिमागी खराबी, हाईपर टेंशन, हार्ट अटैक भी चन्द्रमा से संबंधित रोग है.
चन्द्रमा पश्चिम दिशा का स्वामी माना जाता है। चंद्रमा कर्क राशि में उच्च का एवं वृश्चिक राशि में नीच का माना जाता है। चंद्रमा उच्च राशि का होने पर मिष्ठान्न भोजी और अलंकार प्रिय बनाता है तथा इनके प्राप्त होने के योग भी बनाता है। मूल त्रिकोणी होने पर यह धनी और सुखी भी करता है। चंद्रमा नीच राशिगत होने पर धर्म, बुद्धि का ह्रास करता है तथा दुरात्मा व दुखी बनाता है।
शुक्र ग्रही होने पर यह माता के स्नेह और सुख से वंचित करता है।
चन्द्रमा का आकर्षण पृथ्वी पर भूकंप, समुद्री आंधियां, तूफानी हवाएं, अति वर्षा, भूस्खलन आदि लाता हैं।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें