शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

उच्चतम न्यायलय के निर्णय होते हैं तुष्टिकरण से प्रेरित

 

सर्वोच्च अन्याय :: उच्चतम न्यायलय के अधिकांश निर्णय होते हैं देश और हिन्दू हितों के विरुद्ध || तुष्टिकरण की बीमारी से ग्रसित है न्याय पालिका || क्या है इस बीमारी इलाज


उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की उस सिफारिश पर रोक लगा दी है जिसमें राज्यों से गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया है। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मुस्लिम संगठन जमियत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सहित सभी राज्यों की कार्यवाही पर रोक लगा दी है. न्यायलय ने केंद्र सरकार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि जब तक मदरसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते, तब तक उन्हें दी जाने वाली आर्थिक सहायता बंद कर देना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार मदरसों का पूरा ध्यान केवल धार्मिक शिक्षा पर ही रहता है, जिससे बच्चों को जरूरी शिक्षा नहीं मिल पाती और वे बाकी बच्चों पिछड़ जाते है. मदरसे, बच्चों के अधिकारों को लेकर सजग नही हैं. वे न तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं और न ही उन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार कई मदरसों में बड़ी संख्या में हिंदू बच्चों को भी दाखिल किया जा रहा है और उन्हें भी इस्लामिक शिक्षा दी जा रही है, जो पूर्णतया गलत है. इसलिए आयोग ने राज्यों को सुझाव दिया था कि गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया जाए. प्रथम दृष्टया एनसीपीसीआर के सुझाव पूरी तरह उचित हैं लेकिन जमीयत उलेमा ए हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने याचिका में कहा कि संविधान में अनुच्छेद 25, 26 और अनुच्छेद 30(1) के अंतर्गत देश के अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की गयी है, इसलिए एनसीपीसीआर के सुझाव तथा त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश की सरकारों द्वारा संभावित कार्रवाई असंवैधानिक है.

एनसीपीसीआर का सुझाव केवल गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के लिए है लेकिन आतंकवादियों की पैरवी करने वाले और भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की गज़वा-ए-हिंद योजना को फतवे के रूप में अपने मदरसे “देवबंद दारुल उलूम” की वेबसाइट पर डालने वाले अरशद मदनी तथा हलाल सर्टिफिकेशन का कारोबार करने वाले उनके संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने इसके विरुद्ध याचिका दायर की थी जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को सुने बिना तुरत फुरत रोक लगाने का फैसला दे दिया. उच्चतम न्यायालय ने जमीयत उलेमा ए हिंद को उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के अलावा अन्य राज्यों के मुकदमें में भी पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी. गंभीर चिंतन की बात यह है कि मदरसों में ऐसा क्या पढ़ाया जाता है जो सरकारी स्कूलों में नहीं नहीं पढ़ाया जाता और कैसे मदरसा शिक्षा सरकारी स्कूलों से बेहतर है. क्या मदरसे देश विरोधी हिन्दू विरोधी शिक्षा देने के लिए भी स्वतन्त्र हैं. बेहद आश्चर्य की बात है कि राष्ट्रीय हित के अनेक मामलों को ठंडे बस्ते में डालने वाले सर्वोच्च न्यायालय ने जमीयत उलेमा ए हिंद की दलीलें स्वीकार कर राष्ट्रीय हितों को दांव पर लगा दिया और केंद्र और राज्य सरकार को सुने बिना हड़बड़ी में रोक लगा दी. राम मंदिर फैसले के बयान पर छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों की आलोचनाओं से घिरे मुख्य न्यायाधीश ने दबाव में आकर यह फैसला दिया होगा, यह मानना उचित नहीं होगा, फिर भी इस फैसले की सराहना नहीं की जा सकती.

कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने यात्रा मार्ग में पड़ने वाले सभी होटलों, ढाबों और दुकानदारों को अपनी पहचान उजागर करने का आदेश दिया था, जिस पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाते हुए कहा था कि किसी को भी अपनी पहचान उजागर करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. श्रावण का पूरा महा समाप्त हो गया, कांवड़ यात्रा समाप्त हो गयी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय को इतने महत्वपूर्ण मामले पर सुनवाई का मौका नहीं मिल पाया जबकि खाने पीने की वस्तुओं को अपवित्र कर बेचने के हजारों मामले सामने आ रहे हैं. इसके तुरंत बाद एक विपरीत फैसला आया. मुंबई के एक विद्यालय द्वारा हिजाब और बुर्के पर प्रतिबंध लगाते हुए केवल स्कूल यूनिफॉर्म पहनने का आदेश दिया था, जिसपर न्यायालय ने रोक लगाते हुए कहा कि किसी को उसकी धार्मिक पहचान छिपाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. क्या यह विरोधभास मात्र संयोग है.

कुछ समय पहले हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर कब्जा जमाये घुसपैठियों से जब जमीन खाली करवाई जा रही थी तो भी सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश दे दिया था जिसकी सुनवाई अब तक नहीं हो सकी है. यानी उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद अब सरकारी जमीन पर स्थायी रूप से अनाधिकृत और गैरकानूनी कब्जा बना रहेगा, यही सन्देश है. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की सरकारी जमीन पर कब्जा करके अनाधिकृत रूप से किए गए निर्माण पर बुलडोजर कार्रवाई पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहकर रोक लगाई है कि वह पूरे देश के लिए एक सामान नियम बनाएगा. पता नहीं वह दिन कभी आएगा भी या नहीं लेकिन इससे अधिकृत कब्जा करने वालों के हौसले बुलंद हैं. ऐसे अनेक मामले हैं जिनमे सर्वोच्च न्यायालय का फैसले, उसके प्रति निष्ठा और सर्वोच्च सम्मान रखने वालों को भी कतई उचित नहीं लगते. देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए उठाए जाने वाले कदमों के प्रति सर्वोच्च न्यायालय की असंवेदनशीलता से लगता है कि न्याय की देवी की आँखों से पट्टी हटाकर न्यायाधीशों ने अपनी आँखों पर बांध ली है. आज राष्ट्रविरोधी, उन्मादी और जेहादी शक्तियां संविधान और सर्वोच्च न्यायलय को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में गज़वा ए हिंद द्वारा भारत का राष्ट्रांतरण लगभग निश्चित होता जा रहा है. इन परस्थितियों में सर्वोच्च न्यायालय के प्रति लोगों में नाराज़गी बढ़ती जा रही है, जिसका कारण है राष्ट्र की एकता अखंडता से जुड़े हुए मामलों में भी देश के विरुद्ध फैसला देना.

भारत में कई राष्ट्रविरोधी संस्थाएँ और व्यक्ति है जो विश्व की सबसे प्राचीन सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म के विरुद्ध काम करते हैं. देवबंद के दारुल उलूम का बहुत स्पष्ट उद्देश्य है गज़वा ए हिंद के माध्यम से भारत का इस्लामीकरण करना और इसे वे छिपाते भी नहीं है. उनकी वेबसाइट पर गज़वा ए हिंद करने के लिए फतवा डाला गया है, जिसका विरोध होने पर अरशद मदनी ने कहा कि यह उनका धार्मिक कृत्य हैं जिसकी स्वतंत्रता संविधान ने उन्हें दी है. इसलिए वह गज़वा ए हिंद यानी भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के कार्य को धार्मिक कृत्य मानते है जो पूरी तरह से उचित, कानूनी और संवैधानिक है. इस धार्मिक कृत्य से उन्हें कोई नहीं रोक सकता. इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेना तो छोड़िए, जो याचिकाएं भी दायर हुई उनको भी कोई महत्त्व नहीं दिया गया.

1991 में बना पूजा स्थल कानून, 15 अगस्त 1947 यानी 45 वर्ष पहले स्वतंत्रता प्राप्ति के दिन से लागू किया. उसके पहले देश पर अंग्रेजों का और मुस्लिम आक्रान्ताओं का शासन रहा था. 7वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच भारत के लाखों मंदिरों, गुरुद्वारों, बौद्ध और जैन धार्मिक स्थलों को तोड़ा गया, जिनका पुनर्निर्माण स्वतंत्रता के बाद किया जाना था लेकिन इस कानून से हिंदू सिख, बौद्ध और जैनों को न्यायालय जाने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया. इस प्रकार यह कानून सातवीं शताब्दी से लागू कर दिया गया. सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में कई कानूनों को निरस्त किया लेकिन पूजा स्थल कानून का संज्ञान नहीं लिया जो प्रथम दृष्टया असंवैधानिक, अनैतिक और गैरमुस्लिमो के मौलिक अधिकारों का हनन है. देश में ऐसी धारणा बन गई है कि प्रायः सर्वोच्च न्यायालय वर्ग विशेष से संबंधित मामलों में न केवल त्वरित सुनवाई करता है बल्कि उनके पक्ष में फैसला देने से भी नहीं हिचकता है. आतंकवादी मामले को रात में 12:00 बजे सुनना, तीस्ता सीतलवाड़ जैसे घोर सांप्रदायिक को जमानत देने के लिए एक ही दिन एक के बाद एक कई बेंच बनाकर देर रात्रि तक जमानत सुनिश्चित करना, ज्ञानवापी मामले में अनावश्यक दखलंदाजी कर निचली अदालतों को मामले को ठंडे बस्ते में डालने का संकेत देना, रेखांकित करता है कि सर्वोच्च न्यायालय कब, कहाँ और कैसा न्याय करता है.

एक विशेष चयन प्रक्रिया से आने वाले न्यायाधीशों की हिंदुओं के प्रति बेरुखी तो समझी जा सकती है लेकिन देश की एकता और अखंडता के प्रति बेरुखी राष्ट्र के विनाश का कारण बन सकती है. बांग्लादेश में सबने देखा जहाँ सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से जबरन त्यागपत्र लिया गया. पाकिस्तान में भी स्थिति ऐसी है. केवल भारत ही ऐसा देश है, जहाँ अभी भी जनता में पंच परमेश्वर के प्रति बेहद सम्मान है, जिसे न्यायाधीश अपना संवैधानिक अधिकार समझने की भूल कर रहे हैं. शायद इसी कारण वे वास्तविकता समझने में असमर्थ हैं और देश के प्रति अपने कर्तव्यों से विमुख हैं.

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2024

महर्षि बाल्मीकि – आदि कवि

 



महर्षि बाल्मीकि – आदि कवि

वाल्मीकि जी को उनकी विद्वता और तप के कारण महर्षि की पदवी प्राप्त हुई थी। उन्होंने हिंदू धर्म के सबसे अहम महाकाव्यों में से एक रामायण की रचना की थी। साथ ही उन्हें संस्कृत का आदि कवि अर्थात संस्कृत भाषा के प्रथम कवि के रूप में भी जाना जाता है।

उनसे जुड़ी कुछ प्रचलित कथाएं

महर्षि वाल्मीकि को मुख्य तौर से रामायण महाकाव्य के रचयिता के रूप में जाना जाता है। यह महाकाव्य संस्कृत में लिखा गया है जो हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है। आश्विम माह की पूर्णिमा तिथि को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है।

कैसे पड़ा वाल्मीकि नाम

पौराणिक कथा के अनुसार, पहले वाल्मीकि का नाम रत्नाकर हुआ करता था। वह एक डाकू थे और वन में आए लोगों को लूट कर उसी से अपने परिवार पालन-पोषण करते थे। तब एक बार उन्होंने वन में आए नारद मुनि को लूटने का प्रयास किया। लेकिन नारद जी द्वारा दी गई शिक्षा से उनका हृदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने अपने पापा की क्षमा याचना करने के लिए कठोर तपस्या की। वह तपस्या में इतने अधिक लीन हो गए कि उनके पूरे शरीर पर चींटियों ने बाँबी बना ली, इसी वजह से उनका वाल्मीकि पड़ा।

इस तरह की रामायण की रचना

रामायण महाकाव्य की रचना से संबंधित भी एक कथा मिलती है, जिसे अनुसार, ब्रह्मा जी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। कथा के अनुसार, क्रौंच पक्षी की हत्या करने वाले एक शिकारी को वाल्मीकि जी ने श्राप दे दिया, लेकिन इस दौरान अचानक उनके मुख से एक श्लोक की रचना हो गई।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥

(अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।)

तब ब्रह्मा जी ने प्रकट हुए और कहने लगे कि मेरी प्रेरणा से ही आपके मुख से ऐसी वाणी निकली है। अतः आप श्लोक के रूप में ही भगवान श्रीराम के संपूर्ण  चरित्र की रचना करें। इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की थी।

महर्षि वाल्मीकि, हिन्दू धर्म के श्रेष्ठ गुरु और रामायण के रचयिता थे. उनसे जुड़ी कुछ खास बातेंः 

1. वाल्मीकि जी को आदि कवि भी कहा जाता है. संस्कृत साहित्य के प्रथम कवि महर्षि वाल्मीकि हैं।

2. वाल्मीकि जी का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर हुआ था.

3. बचपन में ही उनका पालन-पोषण भील समाज में हुआ था.

4. उनका नाम रत्नाकर था और वे परिवार के पालन-पोषण के लिए लूट-पाट करते थे.

आदि कवि उनका दूसरा नाम है।

·       अपने प्रारंभिक वर्षों में, महर्षि वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाने वाले एक राजमार्ग डकैत थे, जो लोगों को मारने के बाद उन्हें लूटते थे।

  • चेन्नई के तिरुवनमियूर में महर्षि वाल्मीकि मंदिर 1300 साल से अधिक पुराना माना जाता है।
  • वाल्मीकि मंदिर एक अन्य प्रमुख मंदिर की देखरेख में है जिसे मारुंडेश्वर मंदिर कहा जाता है जिसका निर्माण चोल शासनकाल के दौरान किया गया था। मान्यताओं के अनुसार, ऋषि वाल्मीकि ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए मारुंडेश्वर मंदिर का दौरा किया, जिसके बाद इस क्षेत्र का नाम थिरुवाल्मिकियूर रखा गया, जो धीरे-धीरे थिरुवनमियूर में बदल गया।
  • महर्षि वाल्मीकि ने एक बार प्रेम में डूबे एक पक्षी जोड़े को देखा। उसी समय एक शिकारी ने तीर से एक पक्षी को नीचे गिरा दिया और पक्षी तुरंत मर गया। इस घटना ने महर्षि को आक्रामक बना दिया और पीड़ा में, महर्षि वाल्मीकि एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसे संस्कृत में पहला श्लोक माना जाता है।

 मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥

 (अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।)

  • विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार, वाल्मीकि भगवान का एक रूप है।
  • भगवान राम के पुत्र कुश और लव उनके पहले शिष्य थे जिन्हें उन्होंने रामायण की शिक्षा दी थी।

उल्टा नाम जपत जग जाना, बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना. 

वाल्मीकि जी राम नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे.  तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिए कहा और मरा रटते ही यही राम हो गया. निरंतर जाप करते-करते हुए वाल्मीकि जी ऋषि वाल्मीकि बन गए.

वाल्मीकि जयंती महान लेखक और ऋषि महर्षि वाल्मीकि की जयंती के रूप में मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि महान हिंदू महाकाव्य रामायण के रचयिता होने के साथ-साथ संस्कृत साहित्य के पहले कवि भी हैं. रामायण जो भगवान राम की कहानी कहती है, संस्कृत में लिखी गई थी और इसमें 24,000 छंद हैं जो सात ‘कांडों’ (कैंटोस) में विभाजित हैं।

महर्षि वाल्मीकि कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि अपने वनवास के दौरान भगवान राम से मिले थे। भगवान राम द्वारा सीता को अयोध्या का राज्य छोड़ने के लिए कहने के बाद, उन्होंने उन्हें बचाया और उन्हें आश्रय प्रदान किया। उन्होंने अपने आश्रम में जुड़वां बच्चों लव और कुश को जन्म दिया। महान ऋषि उनके शिक्षक बन गए जब वे छोटे थे, उन्हें रामायण पढ़ा रहे थे.

एक अन्य लोकप्रिय मान्यता यह है कि वाल्मीकि अपने प्रारंभिक वर्षों में रत्नाकर नामक एक राजमार्ग डाकू थे। उनका जन्म प्राचीन भारत में गंगा के तट पर प्रचेतस नाम के एक ऋषि के यहाँ हुआ था। रत्नाकर उनका जन्म नाम था। एक बच्चे के रूप में, वह जंगलों में खो गया और एक शिकारी द्वारा पाया गया, जिसने उसे अपने बेटे के रूप में पाला। वह अपने पालक पिता की तरह एक शिकारी के रूप में बड़ा हुआ, लेकिन उसने एक डाकू बनकर अपनी आजीविका का भी पूरक बनाया। वह अंततः महर्षि नारद से मिले और उन्हें लूटने का प्रयास किया। वह नारद मुनि से मिलने तक लोगों को लूटता और हत्या करता था, जिसने उसे भगवान राम का भक्त बना दिया।

वर्षों के ध्यान के बाद, एक दिव्य आवाज ने उनकी तपस्या को सफल घोषित किया और वाल्मीकि नाम दिया, जो चींटी-पहाड़ियों से पैदा हुए थे। संस्कृत साहित्य के प्रथम कवि होने के कारण बाद में उन्हें आदि कवि के नाम से जाना गया। तब से, हिंदू भक्त उनके कार्यों, विशेष रूप से महान महाकाव्य रामायण का पाठ करते हैं।


महर्षि वाल्मीकि के जीवन के ये हैं 5 सूत्र

1. तुम जो पाप करते हो, इसका फल तुम्हें ही भोगना होगा। तब उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।

2. उन्होनें कहा कि हमें अपने कर्म अच्छे करते रहना चाहिए। किसी भी तरह का व्यभिचार और पाप से हमेशा बचना चाहिए।

3.  उन्होनें यह भी कहा कि हमें अपनें हौसले को कठिन परिस्थितियों में कभी भी नही गिराना चाहिए। 

4. हमारे साथ कोई भी विपरीत  परिस्थिति हो अपनी बुद्धि और विवेक से काम करना चाहिए। 

5. वाल्मीकि ने श्रीराम के जीवन पर आधारित पवित्र संस्कृत महाकाव्य रामायण लिखीजो इनकी कालजयी कृति है। हमें भी अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहिए। 

क्यों मनाई जाती है वाल्मीकि जयंती?

वाल्मीकि जयंती महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है, जो जिन्हें भारतीय पौराणिक साहित्य में रामायण के रचनाकार के रूप में जाना जाता है।

वाल्मीकि ने रामायण की रचना की, जो न केवल हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, बल्कि भारतीय संस्कृति और साहित्य का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी रचनाएं जीवन के मूल्य, धर्म, और नैतिकता का पालन करने की प्रेरणा देती हैं। इसी प्रकार भारतीय समाज में सांस्कृतिक और धार्मिक जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसे मनाने से वाल्मीकि की शिक्षाओं और उनके जीवन के आदर्शों को सराहा जा सकता है। समानता और परिवर्तन का प्रतीक वाल्मीकि की कहानी, जो एक डाकू से महर्षि बनने की है, आज भी समाज में बदलाव और सुधार की प्रेरणा देती है।

यह संदेश देती है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों और प्रयासों से अपनी पहचान और स्थिति बदल सकता है। यह पर्व विभिन्न जातियों और धर्मों के बीच एकता का प्रतीक है और इसे सभी सामाजिक वर्गों द्वारा मनाया जाता है, जिससे एकजुटता की भावना बढ़ती है। इस प्रकार, वाल्मीकि जयंती एक प्रेरणा देने वाला पर्व है, जो न केवल महर्षि वाल्मीकि की महिमा को बढ़ाता है, बल्कि उनके द्वारा प्रस्तुत मूल्यों और शिक्षाओं पर भी प्रकाश डालता है।

महर्षि वाल्मीकि जयंती तिथि   

हिंदू तिथि के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि को पड़ता है, यानी अश्विन महीने की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में सितंबर-अक्टूबर से मेल खाती है।

शरद पूर्णिमा का पौराणिक, धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्त्व

 

शरद पूर्णिमा का पौराणिक, धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्त्व | चांदनी में खीर रखने का कारण | जानिये कौमुदी महोत्सव |

 



चंद्रमा का हमारे जीवन में बहुत अधिक वैज्ञानिक महत्व है, और यह पृथ्वी पर रहने वाले हर मनुष्य और प्राणी को प्रभावित करता है. इसकी चुम्बकीय आकर्षण शक्ति का पानी पर बहुत प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण समुद्र में ज्वार भाटा आता है. हमारे शरीर में दो तिहाई से अधिक पानी होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति भी चन्द्रमा से प्रभावित होता है. चंद्रमा के दुष्प्रभाव के कारण कुछ लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त या पागल  हो सकते हैं, जिसे चाँदमारा कहा जाता है. ग्रीक भाषा में इस भारतीय विधा को समझ कर लुनेटिक शब्द बना, जो लूनर यानी चन्द्रमा से बना है. पूर्णचंद्र की रात में इस तरह के व्यक्ति अत्यधिक परेशान और उद्वेलित रहते हैं.

वैसे तो प्रत्येक मास की पूर्णमासी अपने आप में विशिष्ट होती है लेकिन शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है क्योंकि इस तिथि के बाद ही शरद ऋतु का आगमन होता है. वर्षा ऋतु के बाद यह पहली पूर्णिमा होती है, इसलिए वातावरण में प्रदूषण का स्तर न्यूनतम होता है. इस दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे अधिक नजदीक होता है,  इसलिए पूर्णचंद्र की किरणें (चांदनी ) अपने साथ ब्रह्मांड से जो अमृत लेकर आती है, उसका रास्ते में क्षरण बहुत कम होता है और यह पृथ्वी की सतह पर गिरता है.

ज्योतिष गणना के अनुसार संपूर्ण वर्ष में आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है। 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा से निकले ऊर्जावान प्रकाश को चांदनी कहते हैं जो समस्त रूपों वाली बताई गई है। चूंकि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है,  यह अपेक्षाकृत अधिक बड़ा दिखाई देता है। इसलिए इस दिन की चांदनी वर्ष भर में सबसे अधिक चमकीली होती है.

हिंदू धर्म में चंद्रमा की सोलह कलाओं का विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण को भी 16 कलाओं से युक्त माना जाता था। चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त है, जिसका अर्थ है कि चंद्रमा अपने 16 विशेष गुणों से युक्त होता है और उस दिन उसके प्रकाश में भी 16 खूबियाँ होती हैं । ये 16 कलाएं चंद्रमा की विभिन्न अवस्थाओं और गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जैसे  अमृत, मनदा (विचार), पुष्प (सौंदर्य), पुष्टि (स्वास्थ्य), तुष्टि( इच्छापूर्ति), ध्रुति (विद्या), शाशनी (तेज), चंद्रिका (शांति), कांति (कीर्ति), ज्योत्सना (प्रकाश), श्री (धन), प्रीति (प्रेम), अंगदा (स्थायित्व), पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता) और पूर्णामृत (सुख)। शरद पूर्णिमा की  रात चंद्रदेव अपनी इन सोलह कलाओं की अमृतवर्षा से धरतीवासियों को आरोग्य व उत्तम स्वास्थ्य का वरदान देते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस दिन चन्द्रमा की रोशनी में नहाने से मनुष्य में भी ये 16 कलाएं आने की संभावना बढ़ जाती है। शास्त्रों के अनुसार, लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की इन अमृतमयी किरणों को अपनी नाभि पर ग्रहण कर पुनर्योवन की शक्ति प्राप्त करता था।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भू लोक पर लक्ष्मी जी घर घर विचरण करती हैं, जो जागता रहता है उस पर उनकी विशेष कृपा होती है। इसलिए शरद पूर्णिमा को हर्ष और उल्लास के साथ त्यौहार के रूप में मनाने की पौराणिक परंपरा रही है.

शरद पूर्णिमा की खीर का आरोग्‍य से संबंध है.  

शरद पूर्णिमा की चांदनी  में औषधीय गुण होते  हैं। कहा जाता है कि माता लक्ष्मी को दूध, मिष्ठान और चावल बहुत पसंद है और  खीर में इन तीनों चीजों का ही मिश्रण होता है इसलिए इस दिन खीर का विशेष महत्व है. शरद पूर्णिमा की रात्रि में आकाश के नीचे रखी जाने वाली खीर में अमृत का समावेश हो जाता है, जिसे खाने से शरीर नीरोग होता है और पित्त का प्रकोप कम हो जाता है। यदि आंखों की रोशनी कम हो गई है तो इस पवित्र खीर का सेवन करने से आंखों की रोशनी में सुधार हो जाता है। शरद पूर्णिमा की खीर को खाने से हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है। साथ ही श्वास संबंधी बीमारी भी दूर हो जाती है। पवित्र खीर के सेवन से चर्म रोग भी ठीक हो जाता है। वाणी के दोष भी दूर होते हैं. खीर की जो सामग्री है दूध चावल और चीनी तीनों ही चंद्रमा से जुड़ी हुई वस्तुएं हैं जिसके सेवन से स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है, कुंडली का चंद्र दोष निवारण भी होता है. वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है।

चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखने का वैज्ञानिक कारण

एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना सर्वोत्तम होता है क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है जिससे विषाणु दूर रहते हैं।  इस खीर में हल्दी या किसी अन्य पदार्थ का मिश्रण क्योंकि इससे चांदनी के औषधीय तत्व नष्ट हो सकते हैं. इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा की चांदनी का स्नान करना चाहिए।

धार्मिक मान्यताये  

माँ लक्ष्मी अपने वाहन के साथ भ्रमण करते शरद पूर्णिमा की रात्रि में एरावत  हाथी अपने वाहन के साथ बैठती हैं.  उनकी विशेष कृपा हम पर उस रात्रि में बरसती है. शरद पूर्णिमा वाली रात्रि को  महाशक्ति की रात्रि होती है और तीन देवियों की महापूजा होती है - महाकाली, मां सरस्वती और महालक्ष्मी.

शरद पूर्णिमा के आश्चर्यजनक तथ्य 

पद्म पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय ब्रह्मकमल पुष्प साल में सिर्फ एक बार इसी अवसर पर खिलता है। द्वापर युग में माता लक्ष्मी ने इसी दिन श्री राधा के रूप में अवतार लिया था।

कौमुदी महोत्सव

अशविन महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि जिसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है को  रास पूर्णिमा या कौमुदी पूर्णिमा भी कहा जाता है. इसलिए शरद पूर्णिमा के पर्व को कौमुदी उत्‍सव के रूप में भी मनाया जाता है. इस उत्सव को कला, समृद्धि, शिक्षा, संसार विषयक कार्यों, सौंदर्य, रति क्रियाओं हेतु मनाया जाता है. इसी समय प्रकृति में शरद ऋतु का नवीन रुप दिखाई पड़ता है. कौमुदी महोत्सव  भारत का प्राचीनतम उत्सव है जो राष्ट्र की पारंपरिक सांस्कृतिक चेतना का प्रमाण है. यह सर्वसमृद्ध, सुविख्यात, भारतीय कला, कौशल व प्रकृति के प्रेम का महापर्व होता है.

कौमुदी पर्व एक तरफ ऋतु परिवर्तन तो दूसरी तरफ बौद्धिक विकास और विभिन्न प्रकार की कलाओं में निपुणता प्राप्त करने के संकेत भी प्रस्तुत करता है. इसे मानव सुशिक्षित व नम्र हो जीवन जीने की भिन्न-भिन्न कलाओं में दक्षता प्राप्त करता है. जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है. इस पर्व को ऋतुराज के नाम से भी संबोधित किया जा सकता है. क्योंकि इस दौरान भी प्रक्रति का रंग अपने चरम को छूता दिखाई देता है. इस उत्सव के दौरान पेड़-पौधों में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे फूल भी खिल उठते हैं. खेतों मे फसलों का अलग रंग दिखाई पड़ता है. मंद-मंद बहती ठंडी हवा ओर व खिली हुई चांदनी सभी का मन मोह लेती है. इस समय प्रकृति का मनमोहक अंदाज दिखाई पड़ता है जो प्रत्येक व्यक्ति को मनमुग्ध कर नयी चेतनाका संचार करता है. प्रकृतिक सौंदर्य के कारण ही इसे ऋतुराज भी कहा जाता है.

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शुक्रवार, 11 अक्तूबर 2024

राहुल की जलेबी मोदी ने खाई

 


राहुल की जलेबी मोदी ने कैसे खाई | "बटेंगे तो कटेंगे" ने कैसे हरियाणा का अंतर्मन झंझोड़ दिया |    हिन्दू पुनर्जागरण के इस कालखंड में हिन्दू विरोधी राजनैतिक दल क्या अस्तित्व बचा पाएंगे


जम्मू-कश्मीर और हरियाणा विधानसभा के चुनाव परिणाम सामने हैं. जहाँ जम्मू कश्मीर के चुनाव परिणाम आशानुकूल ही रहे वहीं हरियाणा विधानसभा के चुनावों ने सभी को चौंका दिया. कांग्रेस ने बड़े यत्न पूर्वक ऐसा विमर्श खड़ा किया था जिससे लगने लगा था कि हरियाणा में उसकी सरकार बनने जा रही है. राहुल गाँधी लिख कर दे रहे थे कि कांग्रेस की सुनामी चल रही है, और कांग्रेस भारी बहुमत से सरकार बनाएगी. उन्होंने कहा कि उन्होंने मोदी का जादू समाप्त कर दिया है, जनता में अब उनके प्रति कोई आकर्षण नहीं बचा और उनकी लोकप्रियता पूरी तरह खत्म हो चुकी है. अन्य राज्यों की तरह यहाँ भी कांग्रेस ने मुफ्त रेवड़ियां बांटने की घोषणाओं की झड़ी लगा दी. मतदाताओं को 100 वर्ग मीटर के प्लॉट से लेकर आसमान से तारे तोड़ लाने के जुमले उछाले गए, जिसके वित्तीय प्रबंधन के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया. इसी चक्कर में हिमाचल सरकार पूरी तरह से कंगाल हो चुकी है और उसके पास राज्य कर्मचारियों को वेतन और सेवानिवृत्त राज्यकर्मियों को पेंशन देने के लिए धन नहीं है. आर्थिक संकट से जूझ रही हिमाचल सरकार ने संसाधन जुटाने के लिए घरों में बने शौचालय पर प्रति सीट ₹25 प्रति माह टैक्‍स लगा दिया, जिसका व्यापक विरोध हुआ और मजबूरन इसे वापस लेना पड़ा. हिमाचल सरकार के भयंकर वित्तीय संकट का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जहाँ महिलाओं को सम्मान और सुरक्षा के साथ साथ स्वास्थ्य और स्वच्छता सुनिश्चित करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री शौचालय योजना के अंतर्गत प्रत्येक घर में शौचालय का निर्माण कराया जा रहा है, उस पर कांग्रेस सरकार टैक्स लगा रही है. हिमाचल सरकार की खस्ता वित्तीय हालत का असर हरियाणा के चुनाव पर पड़ा और जनता ने कांग्रेस द्वारा किए गए वायदों पर विश्वास नहीं किया.

सबसे आश्चर्यजनक बात ये रही कि एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां भी कांग्रेस और उसके देशी-विदेशी प्रचार तंत्र के भ्रामक विमर्श का शिकार हो गईं. लगभग सभी एग्जिट पोल में कांग्रेस को भारी बहुमत की सरकार बनाते हुए दिखाया गया था. यद्यपि एग्ज़िट पोल एजेंसियां पहली बार गलत साबित नहीं हुई है, इसके पहले वे छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के अलावा लोकसभा में भाजपा को 400 सीटें देकर यह सिद्ध कर चुकी है कि उनके निष्कर्ष भी विमर्श का शिकार हो सकते हैं. सूत्रों की मानें तो कांग्रेस ने इन राज्यों के चुनावों में मतदाताओं को मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय विमर्श बनाने वाली एजेंसियों का भी सहारा लिया था. उन्ही के परामर्श पर राहुल गाँधी चुनावों के बीच ही अमेरिका यात्रा पर गए जहाँ वे अनेक भारत विरोधी इस्लामिक कट्टरपंथी तथा वामपंथी संगठनों के प्रतिनिधियों से मिले और विवादास्पद बयानबाजी की. योजना के अनुसार उनकी यात्रा के पल पल की चर्चा भारतीय मीडिया में करवाई जाती रही. अमेरिका में ही राहुल गाँधी ने अपने बौद्धिक, आध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक गुरु सत्यनारायण गंगाराम विश्वकर्मा उर्फ सैम पित्रोदा से पप्पू न होने का प्रमाणपत्र ले लिया और अपनी पीठ थपथपाते हुए कहा कि उन्होंने रामायण, महाभारत, गीता सहित अनेक हिंदू धर्मग्रंथों का अध्ययन किया है, और वह सच्चे हिंदू हैं लेकिन उन्होंने हिंदू और सनातन धर्म के विरुद्ध हर संभव विष वमन किया. वापस आने पर हरियाणा और जम्मू कश्मीर की चुनावी सभाओं में अपना भाषण अदानी, अंबानी और मोदी के प्रति नफरत की आग उगलने तक ही सीमित रखा. संसद में जहाँ वह हलवा खाने वालों की जाति पूछ रहे थे, वहीं उन्होंने हरियाणा में जलेबी की फैक्टरी लगाने तथा उसमें हजारों लोगों को रोजगार देने और जलेबी निर्यात करने का एक नया किन्तु अजीबो गरीब विचार सामने रखा. लोगों को याद आ गया जब उनके पिता राजीव गाँधी खेतों में शक्कर बोने की बात करते थे. यहीं से लोगों में यह धारणा पुनः बलवती हो गई कि राहुल गाँधी के पप्पूपन में कोई बदलाव नहीं आया है, लेकिन कांग्रेस के मीडिया विभाग ने राहुल गाँधी की मूर्खतापूर्ण बात को सही ठहराने में पूरी शक्ति लगा दी और चुनाव की बात तो एकदम किनारे रख दी. एक झूठ को छिपाने के लिए, झूठ का अंबार खड़ा कर दिया गया. यही कांग्रेस की सबसे बड़ी समस्या है कि वह देश से अधिक गाँधी परिवार के प्रति वफादार है.

लगातार जातिगत जनगणना की रट लगाने वाले राहुल हरियाणा चुनाव में पूरी तरह से हुड्डा परिवार पर आश्रित थे और उन्होंने अप्रत्यक्ष रूप से भूपेंद्र सिंह हुड्डा को मुख्यमंत्री भी घोषित कर दिया था. हुड्डा के पिछले शासनकाल की याद करके राज्य के लोग चिंतित हो उठे और उन्होंने कांग्रेस से किनारा कर लिया और भाजपा के पीछे एकजुट हो गए. योगी आदित्यनाथ के “बटेंगे तो कटेंगे” नारे ने हिंदुओं के मन मस्तिष्क को झकझोर दिया और उन्होंने जाति-पांत से ऊपर उठकर कांग्रेस के चंगुल में न फंसने और भारतीय जनता पार्टी को वोट देने का निर्णय कर लिया. कुमारी सैलजा की उपेक्षा ने दलितों में भी नकारात्मक संदेश दिया, रही सही कसर दीपेन्द्र हुडा के मंच पर एक दलित महिला के साथ अभद्र व्यवहार के वीडियो के वायरल होने ने पूरी कर दी. कुछ विशिष्ट लोगों को केंद्र में रखकर गढ़े गए जय जवान, जय किसान, और जय पहलवान के नारे ने भी कांग्रेस की कोई सहायता नहीं की उल्टे पहलवान आंदोलन में कांग्रेस की संदेहास्पद भूमिका सार्वजनिक हो गई. चुनाव परिणाम आए तो कांग्रेसी गुब्बारे की हवा निकल गई. भाजपा 48 सीटें सरकार बनाने जा रही है और कांग्रेस 36 सीटों पर सिमटकर प्रमुख विपक्षी दल बन गई है, लेकिन भाजपा और कांग्रेस दोनों को ही पिछली बार की तुलना में क्रमशः 4 और 8 सीटों का फायदा हुआ है. चुनाव बाद के विश्लेषणों से स्पष्ट है कि जहाँ मोदी ने हरियाणा में सिर्फ चार जनसभाएं कर के चुनाव की दिशा बदल दी, वहीं राहुल गाँधी ने जहाँ जहाँ रैली की, कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया. कांग्रेस ने ईवीएम पर बेतुके प्रश्न उठा कर अपनी स्थिति को हास्यास्पद बना लिया है. पवन खेड़ा ने कहा कि ईवीएम में जहाँ बैटरी 90% से अधिक चार्ज थी, वहाँ कांग्रेस हार गई लेकिन जहाँ बैटरी 60 से 70% चार्ज थी, वहाँ कांग्रेस जीत गई. उन्होंने चुनाव परिणाम स्वीकार करने से इनकार कर दिया.

उत्तर प्रदेश में जली भाजपा ने हरियाणा में फूंक फूंक कर कदम रखा. उसनें अनुभव किया कि लोकसभा चुनाव में टिकट वितरण तथा अन्य कारणों से कार्यकर्ता नाराज थे और वे घर से नहीं निकले थे. हरियाणा में भाजपा ने टिकट वितरण से लेकर मतदान केंद्रों तक का अत्यंत कुशल प्रबंधन किया और उसके कार्यकर्ता जी जान से चुनाव में जुटे. इसके विपरीत इंडी गठबंधन में कांग्रेस ने सहयोगी समाजवादी और आम आदमी पार्टी को पूरी तरह से नज़रअन्दाज़ कर दिया, जिस कारण वे सभी अलग अलग चुनाव लड़ें. यद्यपि वे एक भी सीट नहीं जीत सके लेकिन उन्होंने कांग्रेस को कई सीटों पर हराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

कांग्रेस और राहुल गाँधी अपने कार्यकर्ताओं से ज्यादा भरोसा भारत विरोधी वामपंथी और इस्लामिक गठबंधन के षड्यंत्रकारियों पर करते हैं. अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए उनके सहयोग से ही गाँधी परिवार हिंदुओं में जातिगत विभेद बढ़ाकर वर्ग संघर्ष उत्पन्न करने तथा भारतीय अर्थव्यवस्था को छिन्न भिन्न करने का कार्य कर रहा है. हाल में अदानी ग्रुप पर हमला करते हुए सुनियोजित रूप से भारतीय शेयर बाज़ार को ध्वस्त करने के प्रयास किए गए, जिसका ज्यादा प्रभाव इसलिए नहीं पड़ा क्योंकि वर्तमान समय में भारत की अर्थव्यवस्था काफी मजबूत और स्थिर है, तथा विदेशी मुद्रा का पर्याप्त भण्डार है. भारत में पूंजी खाता की पूर्ण परिवर्तनीयता न होना भी कई मामलों में सुरक्षा का काम करता है.

हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति पर प्रहार करना राहुल गाँधी के स्वभाव का अहम हिस्सा बन गया है. हरियाणा में एक जनसभा में उन्होंने अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह को नाचगाना समारोह बताया था. एक अन्य जनसभा में वह अजान की आवाज सुनकर न केवल स्वयं चुप हो गए बल्कि मुँह पर अंगुली रखते हुए भीड़ को चुप रहने का संकेत किया. एक धर्म के प्रति इतना सम्मान और हिन्दू धर्म का बार बार अपमान, अब हिन्दू इसका मतलब समझने लगे हैं. इसलिए योगी आदित्यनाथ की “बटेंगे तो कटेंगे” जैसी सीधी और सपाट बातें उनके अंतर्मन को झकझोर देती हैं. कांग्रेस निसंदेह मुसलमानों की पार्टी है, पर जब हिंदू मुँह मोड़ लेंगे तो वह सत्ता में कभी नहीं आ पाएगी. मोहन दास करमचंद गाँधी और कांग्रेस ने देश के लिए क्या किया, यह सब जान गए हैं, इसलिए अब यह बड़ा मुद्दा नहीं है लेकिन गाँधी परिवार ने देश के लिए क्या किया और क्या कर रहा है, यह वर्तमान में बहुत बड़ा मुद्दा है. हरियाणा तो बस एक शुरुआत है, उसके बाद महाराष्ट्र है, दूसरे राज्य हैं और फिर 2029 में लोकसभा के चुनाव हैं. सब जगह कांग्रेस की अधोगति अवश्यंभावी हो गयी है.

हिन्दू पुनर्जागरण के इस कालखंड में बहुसंख्यक हिंदुओं की उपेक्षा करके कोई भी राजनीतिक दल अपना अस्तित्व बचा पाएगा इसकी संभावना समाप्त होती जा रही है. अगर हिंदू ही, हिंदुओं की उपेक्षा करने वाले तथा मुस्लिम तुष्टिकरण में आकंठ डूबे राजनैतिक दलों का अस्तित्व बचाकर सत्ता में पहुंचाते हैं, तो हिंदुओं का अस्तित्व बचे रहने की संभावना समाप्त हो जाएगी. सभी हिंदुओं को जाति पाति से ऊपर उठकर इस पर गंभीरता से चिंतन और मनन करना चाहिए. संकीर्ण जातिगत स्वार्थ के कारण ही समाज का पतन हुआ है, और इसे यदि रोका नहीं गया, तो ना जाति बचेगी और न समाज बचेगा.

शनिवार, 5 अक्तूबर 2024

न लेबनान ने भारत से सीखा, न भारत लेबनान से सीख रहा

 

न लेबनान ने भारत से सीखा, न भारत लेबनान से सीख रहा | "कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी" कहने वाले खुद मिटेंगे और देश को भी मिटा देंगे


लेबनान को भारत से जो सीखना चाहिए था, उसने नहीं सीखा. परिणाम स्वरूप ईसाइयों का भयानक नरसंहार हुआ और देश पर जिहादियों ने कब्जा जमा लिया. एक ईसाई बाहुल्य राष्ट्र, मुस्लिम बहुल राष्ट्र बन कर सदा सर्वदा के लिए अशांत के दलदल में फंस गया. लंबे समय तक तुर्की के खलीफा के आधीन ऑटोमन साम्राज्य का हिस्सा रहा ये क्षेत्र, प्रथम विश्व युद्ध में मित्र सेनाओं की विजय के बाद फ्रांस के अधीन आ गया. 1920 में फ्रांस ने लेबनान की सीमाओं को पुनर्निर्धारित किया, जिसके बाद ही आधुनिक लेबनान की नींव पड़ सकी. 1943 में फ्रांसीसियों ने लेबनान को आजादी दे दी. जाते जाते फ्रांसीसियों ने लेबनान की 1932 की अंतिम अधिकारिक जनगणना, जिसमें ईसाई लगभग 60%, सुन्नी 20% और शिया 18% थे, के आधार पर तय कर दिया था कि देश का राष्ट्रपति ईसाई, प्रधानमंत्री सुन्नी और संसद का स्पीकर शिया होगा ताकि लेबनान को जेहाद द्वारा इस्लामिक राष्ट्र बनाना संभव न हो सके.

आजादी मिलने के बाद लेबनान में मुस्लिम घुसपैठियों की बाढ़ आ गई. 1947 में इजराइल की स्थापना के पश्चात तो यह देश फिलिस्तीनी शरणार्थियों का गढ़ बना गया. बाद में फिलिस्तीनी शरणार्थी शिविर आतंकवादियों के अड्डे बन गए. फ़िलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन (पीएलओ) ने तो यहाँ अपना मुख्यालय स्थापित कर लिया था. आज इसके बड़े भूभाग पर ईरान समर्थित आतंकवादी संगठन हिज़्बुल्ला का कब्जा है, जिसका प्रमुख उद्देश्य लेबनान से ईसाइयों को और इजराइल से यहूदियों को खदेड़कर इस्लाम का परचम लहराना है. गाजा में इजराइल के विरुद्ध एक और आतंकवादी संगठन “हमास” ने मोर्चा खोल रखा है. आसानी से समझा जा सकता है कि लेबनान और फ़िलिस्तीन क्षेत्र में गैर मुस्लिमों की क्या स्थिति होगी. संयुक्त राष्ट्रसंघ के एक सर्वेक्षण के अनुसार वर्तमान में लेबनान में ईसाईयों की आबादी घटकर लगभग 25% रह गई है और मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ कर लगभग 75% हो गयी है.

आजादी के बाद लेबनान की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय प्रगति हुई और इसे मिडिल ईस्ट का स्विट्जरलैंड कहा जाने लगा, जो विदेशी निवेशको और सैलानियों के साथ साथ खेलकूद, तैराकी, पीने-पिलाने और मौज मस्ती करने वालों के लिए पसंदीदा जगह बन गया. आर्थिक विकास के साथ साथ इस्लामिक जिहाद का पहिया भी बड़ी तेजी के साथ घूमता रहा, जिस पर ध्यान नहीं दिया गया. मिस्र, सीरिया और इराक की राजनीतिक अस्थिरता के कारण इन इन देशों के मुस्लिम व्यापारी लेबनान में बसने लगे, जिनके साथ अवैध मुस्लिम अप्रवासियों की भीड़ भी आने लगी. छोटे से इस देश में आज कितने आतंकवादी संगठन काम कर रहे हैं इसका आकलन करना मुश्किल है. एक क्विदंती के अनुसार जिस जगह जीसस क्राइस्ट ने अपना पहला चमत्कार दिखाया था, वहाँ अब आतंकी संगठन हिज़्बुल्लाह अपना करिश्मा कर रहा है.

फ्रांस ने लेबनान को आजादी देते समय जनसंख्या के अनुसार सरकार में पदों का निर्धारण किया था लेकिन मुस्लिमों को लगता था कि फ्रांस ने मुस्लिमों के साथ अन्याय किया है, इसलिए सरकार में उनकी हिस्सेदारी बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या के हिसाब से बढ़ाई जानी चाहिए. राजनैतिक वातावरण कुछ कुछ ऐसा ही था जैसा आजकल भारत में है. ईसाई समुदाय में एकता नहीं थी और राजनेता धर्मनिरपेक्ष दिखाई पड़ने के लिए भारत की तरह मुस्लिम तुष्टीकरण का सहारा लेने लगे. शुरू में संसद में ईसाई सांसदों की संख्या जनसंख्या के अनुपात में 60% होती थी किन्तु तुष्टीकरण के कारण अनेक संविधान संशोधन किये गए जिसके परिणामस्वरूप ईसाई और मुस्लिम सांसदों की संख्या लगभग बराबर होने लगी और सरकार में मुस्लिम हावी हो गए. 1975 आते आते लेबनान में गृह युद्ध शुरू हो गया. उस समय वहीं 29 उग्रवादी संगठनों के लगभग 2 लाख लड़ाके गृह युद्ध में शामिल थे. पहले साल 10 हजार से ज्यादा लोग मारे गए और 40 हजार घायल हुए, और इसके बाद के सालों में क्या हुआ सब कुछ इतिहास बन गया. लेबनान बुरी तरह अशांत हो गया और 15 वर्षों तक गृहयुद्ध की आग में जलता रहा. संपन्न ईसाईयों ने भाग कर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों में शरण ले ली. जान बचाने के लिए बड़ी संख्या में ईसाईयों ने दीन की दावत कबूल कर ली और मुसलमान बन गए. इस तरह लेबनान मुस्लिम बाहुल्य राष्ट्र बन गया और ईसाई अपने ही देश में अल्पसंख्यक होकर अत्यंत दयनीय अवस्था में पहुँच गए.

भारत में इस्लामिक आक्रांताओं का इतिहास पूरी दुनिया के लिए अकल्पनीय उदाहरण है, जहाँ नरपिशाचों ने विश्व की प्राचीनतम सभ्यता के धर्मस्थलों को तोड़ा, उन पर मस्जिदें खड़ी की, तलवार के ज़ोर पर धर्मांतरण करवाया, लाखों महिलाओं और बच्चों के साथ दुष्कर्म किया, और उन्हें गुलाम बनाया. भारत ऐसा राष्ट्र है, जहाँ 10 करोड़ से भी अधिक हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों का नरसंहार हुआ है. ये पृथ्वी पर मानव सभ्यता का सबसे बड़ा नरसंहार है, जो शायद हिंदुओं, बौद्धों और जैनियों को भी याद भी नहीं होगा. 1947 में स्वतंत्र होने तक भारत में विभाजन के अतरिक्त और क्या क्या हुआ, पूरी दुनिया के लिए इस्लामिक भाई-चारे की हकीकत है, लेकिन लेबनान ने भारत से कुछ नहीं सीखा और वही ग़लतियाँ कीं जो भारत में हुईं थी. अवैध मुस्लिम घुसपैठियों और शरणार्थियों को बिना रोक टोक आने दिया गया, एकता की कमी के शिकार ईसाइयों के राजनैतिक नेतृत्व ने गाँधी और नेहरू की तरह मुस्लिम तुष्टिकरण किया, खुद के लिए अहिंसा किन्तु उपद्रवियों को हिंसा करने की छूट दी, वामपंथियों पर विश्वास किया और उन्हें शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में दखलंदाजी का अवसर दिया, उनका विश्वासघात करना स्वाभाविक था. इस सब का परिणाम हुआ कि धार्मिक जनसंख्या का बदलता घनत्व नजरंदाज कर दिया गया. विश्व के सारे इस्लामिक देशों का इतिहास साक्षी है कि जहाँ जहाँ धार्मिक संरचना बदली, सब के सब इस्लामिक राष्ट्र बन गये.

भारत को इजराइल और लेबनान दोनों की चुनौतियों पर गंभीर चिंतन कर सीख लेने की आवश्यकता है. लेबनान पहले ईसाई बाहुल्य देश हुआ करता था जहाँ संवैधानिक तौर पर ईसाइयों के लिए संसद में 60% स्थानों का आरक्षण था, ताकि ईसाई बाहुल्य देश में सत्ता का नियंत्रण ईसाइयों के हाथ में रहे और राष्ट्रांतरण की संभावना न बन सके लेकिन राजनेताओं की तुष्टीकरण की नीतियों ने “जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी उतनी हिस्सेदारी” के नाम पर संविधान संशोधनों द्वारा इस व्यवस्था को समाप्त कर दिया. जब संसद ने मुस्लिम प्रतिनिधियों की संख्या ज्यादा हो गई तो वही हुआ जो आज पूरा विश्व देख रहा है, लेबनान के ईसाई आज शरणार्थी बनकर अमेरिका और पश्चिमी देशों में भटक रहे हैं, जो बच गए हैं वह अपने देश में ही कब तक सुरक्षित रहेंगे कहना मुश्किल है.

हाल के घटनाक्रम में सऊदी अरब ने फलीस्तीन के समर्थन में कोई पोस्टर निकालना या प्रार्थना करना प्रतिबंधित कर दिया है. इजराइल द्वारा हमास और हिज़्बुल्ला के विरुद्ध कार्रवाई करने पर अधिकांश इस्लामिक देश खामोश हैं और ईरान के इजराइल पर आक्रमण के बाद सऊदी अरब, यूनाइटेड अरब अमीरात, जॉर्डन, इराक आदि इस्लामिक राष्ट्र तो अमेरिका के साथ खड़े हैं, जबकि बांग्लादेश में हिंदू नरसंहार पर चुप रहने वाले भारत के मुसलमान, इजराइल के विरोध में बेचैन हैं. हिज़्बुल्ला कमांडर हसन नसरुल्ला की मौत पर किये गए प्रदर्शनों मे राजनीतिक हस्तियां और मुस्लिम धर्मगुरु भी शामिल हुए. इसके पहले आतंकी संगठन हमास पर इजरायल की कार्रवाई के विरोध में भी प्रदर्शन किए गए थे और फलस्तीन के झंडे लहराए गए थे. भारत माता की जय या भारत की जय से परहेज करने वाले ओवैसी ने तो संसद में शपथ लेते समय ही जय फ़िलिस्तीन का नारा लगाया था. यक्ष प्रश्न है कि भारत के मुसलमानों का इतना असामान्य व्यवहार क्यों है? इसका उत्तर 1919 में भारतीय मुसलमानों द्वारा तुर्की के खलीफा को अपदस्थ किए जाने के विरोध में शुरू किए गए खलीफ़त आंदोलन से मिल सकता है. गाँधी ने इसे भरपूर समर्थन दिया था और हिंदुओं को भ्रमित करने के लिए इसका नाम खिलाफत आंदोलन कर दिया था ताकि ये स्वतंत्रता आंदोलन की तरह दिखाई पड़े. इस आंदोलन का उद्देश्य प्रथमदृष्टया किसी बड़े उद्देश्य (देश का विभाजन) की प्राप्ति के लिए मुस्लिमों को एकजुट करने और शक्ति प्रदर्शन द्वारा गैर मुस्लिमों को भयभीत करना था. खलीफत आंदोलन के तत्वावधान में देशभर में दंगे हुए. सबसे वीभत्स नरसंहार मोपला में हुआ, जिसे मुस्लिम तुष्टीकरण के धृतराष्ट्र बन चुके गाँधी और गांधारी बन चुकी कांग्रेस ने पूरी तरह अनदेखा कर दिया था.

“कुछ बात है कि हस्ती, मिटती नहीं हमारी” भारत में ऐसा कहने वालों को सच का सामना करना चाहिए कि अफगानिस्तान, पाकिस्तान, बांग्लादेश, भूटान बर्मा थाईलैंड श्रीलंका, जावा, सुमात्रा, इंडोनेशिया आदि भारत से ही निकलकर बने हैं. भारत के नौ राज्यों जम्मू कश्मीर, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर, मेघालय, अरुणाचल, पंजाब, लक्ष्यद्वीप और लद्दाख में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुकें हैं. पूरे भारत में 100 से भी अधिक जिलों में हिंदू अल्पसंख्यक हो चुके हैं. पीएफआई ने 2047 तक भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की घोषणा कर रखी है. ऐसे में कब तक हस्ती बचेगी, कहना मुश्किल नहीं है.

लेबनान ने भारत से भले ही कुछ न सीखा हो, लेकिन आज भारत को लेबनान से अवश्य सबक लेना चाहिये अन्यथा भारत का राष्ट्रांतरण रोकना किसी के बस में नहीं रह जाएगा.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~