यदि आपको पता चले कि न्यूटन ने 1687 ईस्वी में जिन गति के नियमों को अपनी खोज के रूप में बताया था, उन्हें भारत से चोरी किया था, तो आपको कैसा लगेगा? लेकिन ये कड़वी सच्चाई है कि गुरुत्वाकर्षण और गति के जिन नियमों से न्यूटन विश्व प्रसिद्ध हुए उनकी खोज ऋषि कणाद ने ईसा से 600 वर्ष पूर्व यानी न्यूटन के जन्म से लगभग 2400 वर्ष पूर्व कर दी थी. इनका विस्तृत वर्णन ऋषि कणाद ने अपनी पुस्तक वैशेषिका (वैशेषिक दर्शन ) में किया है. इस पुस्तक में पदार्थ के भौतिक और रासायनिक गुणों से संबंधित सिद्धांत और सूत्र लिखे हैं, जो उस समय शेष दुनिया के लिए अजूबा थे.
न्यूटन के गति के नियम, का प्रथम नियम है कि प्रत्येक पिण्ड तब तक अपनी विरामावस्था में अथवा सरल रेखा में एक समान गति की अवस्था में रहता है जब तक कोई बाह्य बल उसे अन्यथा व्यवहार करने हेतु विवश नहीं करता। इसे जड़त्व का नियम भी कहा जाता है। दूसरा सिद्धांत है कि किसी पिण्ड के संवेग परिवर्तन की दर आरोपित बल के समानुपाती होती है तथा बल की दिशा में कार्यान्वित होती है। तीसरा नियम है कि प्रत्येक क्रिया की समान एवं विपरीत दिशा में प्रतिक्रिया होती है।
महर्षि कणाद लिखते हैं “वेग: निमित विशेषात कर्मणो जायते. वेगो पञ्चसु द्रव्येषु निमित्त-विशेषापेक्षात् कर्मणो जायते नियतदिक् क्रिया प्रबंध हेतु:, स्पर्शवद् द्रव्यसंयोग विशेष विरोधी क्वचित् कारण गुण पूर्ण क्रमेणोत्पद्यते” इसका हिन्दी अनुवाद है कि वेग या गति द्रव्यों (ठोस, तरल, गैसीय) पर निमित्त व विशेष कर्म के कारण उत्पन्न होता है तथा नियमित दिशा में क्रिया होने के कारण संयोग विशेष से नष्ट होता है या उत्पन्न होता है।
यदि इसे विभाजित करें तो न्यूटन के गति के तीनों नियम स्पष्टता प्राप्त होते हैं १. कर्मणो जायते निमित्त विशेषात वेग: २. वेग निमित्तापेक्षात् कर्मणो जायते नियत्दिक् क्रिया प्रबंध हेतु. ३.वेग: संयोग विशेषाविरोधी. इससे स्पष्ट होता है कि न्यूटन ने ऋषि कणाद के सिद्धांतों को ही नकल करके अपनी खोज के रूप में प्रचारित किया और अकृतघ्नता की उस सीमा को भी लांघ दिया जहाँ पर भारत या ऋषि कणाद का नाम लेना भी उचित नहीं समझा.
गुरुत्वाकर्षण का वर्णन भी ऋषि कणाद ने अपनी पुस्तक वैशेषिका (वैशेषिक दर्शन ) में विस्तार से किया है, जिसके आधार पर सुप्रसिद्ध गणितज्ञ भास्कराचार्य ने 'सिद्धांतशिरोमणि' ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि 'पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं'। पश्चिमी देशों की तरह भारत में भी आज भी ये पढ़ाया जाता है कि 1687 से पहले जमीन पर कभी सेव गिरा नहीं या कभी किसी ने सेव को जमीन पर गिरते हुए तब तक नहीं देखा जब तक कि न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत प्रतिपादित नहीं कर दिया. इसमें कोई संदेह नहीं कि न्यूटन ने खोज तो की, लेकिन ऋषि कणाद के वैशेषिक दर्शन से जिसके लिए वह प्रशंशा के पात्र हैं. अमेरिकन जनरल ऑफ इंजीनीरिंग रिसर्च के वॉल्यूम 9 और इशू 7 में भारतीय वैज्ञानिक का एक शोध पत्र प्रकाशित हुआ है जिसमें गति के नियमों को न्यूटन से पहले ऋषि कणाद द्वारा प्रतिपादित बताया गया है.
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के डॉ. जॉर्ज घेवरघीस जोसेफ का कहना है कि 'केरल स्कूल' ने लगभग 1350 ई. में 'अनंत श्रृंखला' – जो कैलकुलस के बुनियादी घटकों में से एक है, की पहचान की थी जिसका श्रेय गलत तरीके से आइजैक न्यूटन और गॉटफ्राइड लिबनिट्ज़ को दिया जाता है जिसे कथित रूप से इन महानुभावों ने सत्रहवीं शताब्दी के अंत में प्रतिपादित किया था. डॉ. जॉर्ज घेवरघीस जोसेफ के शोध पत्र को मैनचेस्टर विश्वविद्यालय ने स्वीकार करके अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित भी किया है.
इसी तरह परमाणु की खोज का श्रेय डाल्टन को दिया जाता है, जिन्होंने कथित रूप से 1803 में इसकी खोज की थी. महर्षि कणाद ने जॉन डाल्टन से लगभग 2400 वर्ष पूर्व ही पदार्थ की रचना सम्बन्धी सिद्धान्त लिख दिया था। उन्होंने न केवल परमाणुओं को तत्वों की ऐसी लघुतम अविभाज्य इकाई माना जिनमें इस तत्व के समस्त गुण उपस्थित होते हैं अपितु उसको ‘परमाणु’ नाम भी दिया तथा यह भी कहा कि परमाणु कभी स्वतंत्र नहीं रह सकते। परमाणु सिद्धान्त' का विस्तृत वर्णन उनकी पुस्तक वैशेषिका में किया गया जिसे हम वैशेषिक सूत्र या वैशेषिक दर्शन के नाम से भी जानते हैं.
अब यह बात सर्व विदित हो चुकी है कि अंग्रेजों ने भारत पर शासन करने के दौरान केवल दौलत ही नहीं लूटी बल्कि प्राचीन सनातन ज्ञान पर भी डाका डाला. हम सभी यही जानते हैं कि अंग्रेजों ने भारत के इतिहास को इसलिए परिवर्तित और प्रदुषित किया ताकि वे भारतीयों के मन मस्तिष्क में हीन ग्रंथि उत्पन्न कर सके ताकि वे अंग्रेजों को श्रेष्ठ समझे और इससे अंग्रेज लंबे समय तक भारत पर शासन कर सके, लेकिन इसके अलावा एक कारण यह भी था कि वे किसी को संदेह नहीं होने देना चाहते थे कि वे भारत से प्राचीन ज्ञान और ऋषि मुनियों द्वारा किए गए वैज्ञानिक आविष्कारों की चोरी कर रहे थे जिसे वह पूरी दुनिया को अपने द्वारा अविष्कृत बता रहे थे.
ऐसे अनगिनत मामले है. हम सभी ने जो पढ़ा है और जो हमारे मन मस्तिष्क में बैठ गया है कि भारत में ही नहीं पूरे विश्व में गणित और विज्ञान की शिक्षा का सूत्रपात अंग्रेजों ने ही किया है। यूरोपियन नेहरूवियन और वामपंथी इतिहासकारों और शिक्षाविदों द्वारा बनाई गई व्यवस्था में अंग्रेजों के इस मानवीय उपकार को कृतज्ञतापूर्वक स्मरण करा कर, हमें यह एहसास कराया जाता है कि यदि अंग्रेज भारत में नहीं आते तो भारतवासी आज भी पाषाण युग में जी रहे होते.
- ये बात बिलकुल सही है कि सभी आधुनिक तकनीकी अनुसंधान यूरोप और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों में ही हुए हैं लेकिन एक सत्य यह भी है कि यूरोप के ये सारे अनुसंधान भारत पर ब्रिटेन के अधिपत्य स्थापित होने के बाद ही हुए और इनमें ज्यादातर पिछले तीन चार सौ वर्षों में ही हुए. जब अंग्रेजों ने भारत में अपना शासन स्थापित किया, उस समय ब्रिटेन की साक्षरता दर लगभग 40% थी जिसके विपरीत भारत में साक्षरता की दर लगभग 97% थी. ब्रिटेन न तो तकनीकी दृष्टि से बहुत उन्नत शील था और न ही कोई विकास पूरक परियोजनाएं थी. बैलगाड़ी और घोड़ागाड़ी थे लेकिन चलने योग्य सड़कें भी नहीं थीं, मुलायम और आकर्षक सूती और रेशमी वस्त्र नहीं थे. वास्तुशिल्प, भवन शैली, स्वास्थ और रोग प्रतिरोधक और रोग निवारण की जानकारी भी नहीं थी. गणित और विज्ञान में भी वह अच्छे नहीं थे. इसलिए यह प्रश्न उठना बहुत स्वाभाविक है कि अचानक ऐसा क्या हुआ कि भारत में अंग्रेजी सत्ता स्थापित होने के बाद न केवल धन संपदा उनके पास आ गई बल्कि वैज्ञानिक अविष्कारों की बाढ़ आ गई. जिन्हें दस्तकारी और शिल्पकारी नहीं आती थी, जो कपड़े तक ठीक से नहीं बुन सकते थे, वे हवाई जहाज बनाने लगे. जिन्हें गिनती भी नहीं आती थी, उन्होंने कैल्कुलस जैसे क्लिष्टतम गणना का आविष्कार कर लिया. जिन्हें सर्दी-जुकाम, ज्वर, जैसे रोगों का उपचार नहीं पता था, उन्होंने एलोपथिक चिकित्सा प्रणाली विकसित कर ली.
हम सभी जानते हैं कि यूरोप का एक हजार वर्ष का इतिहास अंधकार युग माना जाता है, जो 14वीं शताब्दी तक रहा. एक मार्को पोलो और उसके सहयोगी चीन और भारत की यात्रा करके लौटते हैं. उसकी यात्रा वृत्तांत से पूरे यूरोप में तहलका मच जाता है और यहीं से यूरोप का पुनर्जागरण होता है, ज्ञान-विज्ञान प्रारंभ होता है। यूरोपीयों को ज्ञान विज्ञान और नयी जानकारियां पाने का नशा होता है. यही चाहत उन्हें ईस्ट इंडिया कंपनी के रूप में भारत खींच लाती है और भारत में सत्ता स्थापित करने को प्रेरित करती है. सुनियोजित रूप से भारत से लूटने योग्य सब कुछ लूट लिया जाता है धन, धन्य, सम्पदा, ज्ञान और विज्ञान.
भारतीयों को अपने ही ज्ञान विज्ञान से विरत कर दिया जाता है. केवल धन संपत्ति से ही नहीं, मानसिक रूप से भी दिवालिया बना दिया जाता है. हिन्दू इतना गिर जाए कि फिर कभी उठ न सके और सनातन संस्कृति की रक्षा हेतु प्रतिकार भी न कर सके, इसके लिए गांधी, नेहरु, जिन्ना और न जाने किस किस को तैनात कर दिया जाता है.
हम में से आज भी अधिकाँश लोग गिरे हुए हैं, कुछ उठने का प्रयास कर रहे हैं और बहुत कम लोग ही उठ सके हैं. आवश्यकता है कि सभी जगें, सभी उठे और सभी मिलकर प्रयास करें, अपनी जड़ें में पहुँचने का और अपना खोया राष्ट्रीय गौरव प्राप्त करने का. तभी इस देश का, हिन्दू और सनातन संस्कृति का भला हो सकेगा.
~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
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