मेंरे विचार से वैक्सीन लगवाना ज्यादा महत्वपूर्ण है इसलिए जो भी मिल रही है उसको तुरंत लगवा ले. दोनों ही अच्छी हैं और दोनों के ही सफल क्लीनिकल ट्रायल के बाद ही मंजूरी दी गई है.
दूसरी बात यह है कि भारत में कोविड-19 का टीकाकरण कोविन ऐप द्वारा नियंत्रित किया गया है, अगर आप स्वयं रजिस्ट्रेशन करते हैं तो आपको यह विकल्प उपलब्ध नहीं होता है कि आप कौन सी वैक्सीन लगवाना चाहते हैं. रजिस्ट्रेशन करते समय आपको अस्पताल और उपलब्ध स्लॉट ही दिखाई पड़ते हैं और एक अस्पताल में एक ही तरह की वैक्सीन उपलब्ध कराई गई है. इसलिए आपको कौन सी वैक्सीन मिलेगी यह पूरी तरह से आपकी इच्छा पर निर्भर नहीं करता है.
फिर भी अगर आप पहले से ही तय कर चुके हैं कि कौन सी वैक्सीन लगवानी है तो फिर आपको पता करना पड़ेगा कि कौन सा अस्पताल कौन सी वैक्सीन लगा रहा है और तदनुसार आपको रजिस्ट्रेशन करते समय अस्पताल का विकल्प चुनना होगा या अपना आईडी प्रूफ लेकर सीधे अस्पताल पहुंचना होगा.
कोवीशील्ड वैक्सीन को पहले अनुमति दी गई थी क्योंकि इसका क्लीनिकल ट्रायल पहले पूरा हो गया था. को वैक्सीन को बाद में अनुमति दी गई थी इसलिए उसका उत्पादन भी देर से शुरू हुआ. इसलिए ज्यादातर अस्पतालों में कोवीशील्ड वैक्सीन लगाई जा रही है. को वैक्सीन को जब सरकार ने अनुमति दी थी तो इसका अंतिम चरण का ट्रायल चल रहा था लेकिन सीमित संख्या में पूरे के किए गए ट्रायल के आधार पर इसे अनुमति दे दी गई.
कई राजनीतिक दलों और स्वयंसेवी संगठनों ने सरकार के इस कदम का जबरदस्त विरोध किया और लोगों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने के लिए सरकार को जमकर कोसा . सरकार को घेरने के चक्कर में इन स्वार्थी तत्वों ने भारत बायोटेक की को-वैक्सीन को भी कटघरे में खड़ा कर दिया और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी मार्केटिंग को अत्यधिक क्षति पहुंचाई. विरोध करने वालों के अपने निहित स्वार्थ थे. कोई चीन की, तो कोई रूस की स्पूतनिक, तो कोई मनपसंद अमेरिका की कंपनी को इस क्षेत्र में लाना चाहता था. कोई बड़ी बात नहीं यदि कुछ स्वार्थी तत्व सिरम इंस्टीट्यूट पुणे को फायदा पहुंचाने के उद्देश्य ऐसा कर रहे हो.
स्वार्थ में अंधे होकर कुछ लोगों ने इसे बीजेपी वैक्सीन का नाम भी दे दिया.
आइए समझते हैं क्या अंतर है दोनों वैक्सीन में
- Covaxin एक इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है यानी इसे मृत कोरोना वायरस से बनाया गया है। इसके लिए भारत बायोटेक ने पुणे के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ वायरलॉजी में आइसोलेट किए गए कोरोना वायरस के एक सैम्पल का इस्तेमाल किया। जब यह वैक्सीन लगाई जाती है तो इम्युन सेल्स मृत वायरस को पहचान लेती हैं और उसके खिलाफ ऐंटीबॉडीज बनाने लगती हैं। वैक्सीन की दो डोज चार हफ्तों के अंतराल पर दी जाती है और इसे 2 डिग्री सेल्सियस से 8 डिग्री सेल्सियस के बीच स्टोर किया जाता है।
- Covishield को ऑक्सफर्ड यूनिवर्सिटी और अस्त्राजेनका ने मिलकर विकसित किया है। इसे भारत में सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया तैयार कर रही है। यह वैक्सीन आम सर्दी-जुकाम वाले वायरस के एक कमजोर रूप से बनाई गई है। इस वायरस को परिवर्तित करके कोरोना वायरस जैसा दिखने वाला बनाया गया है। जब वैक्सीन लगती है तो वह इम्युन सिस्टम को कोरोना वायरस के संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार करती है। यह वैक्सीन शुरुआत में दो डोज में चार हफ्तों के अंतराल में लगाई जा रही थी लेकिन बाद में इस अवधि को बदलकर 6 से 12 हफ्ते कर दिया गया हैं क्योंकि कंपनी के मुताबिक अगर बूस्टर डोज 6 हफ्तों के बाद लगाई जाती है तो इसका प्रभाव बढ़ जाता है. इसे भी 2 डिग्री से 8 डिग्री के बीच स्टोर किया जा सकता है।
प्रभावशीलता -
- 4 सप्ताह के अंतराल पर बूस्टर डोज लेने के बाद Covaxin ने 81% क्लिनिकल एफेकसी दिखाई है। यह वैक्सीन ट्रायल के दौरान सेफ पाई गई थी और किसी वालंटियर में सीरियस साइड इफेक्ट्स देखने को नहीं मिले थे।
- 12 सप्ताह के अंतराल पर बूस्टर डोज लेने के बाद ऑक्सफर्ड-अस्त्राजेनेका के इंटरनैशनल ट्रायल में वैक्सीन 90% तक असरदार पाई गई। वैक्सीन किसी तरह के अस्वीकार्य साइड इफेक्ट्स पैदा नहीं करती।
निष्कर्ष :-
- दोनों वैक्सीन के बनाने की प्रक्रिया बिल्कुल अलग है इसलिए दोनों की तुलना करना उचित नहीं है.
- हां एक बात अवश्य है कि को-वैक्सीन की दूसरी डोज जिसे बूस्टर डोज कहा जाता है 28 दिन बाद लगाई जाती है लेकिन कोवीशील्ड में इसे 6 से 12 हफ्ते के बाद लगाए जाने का परामर्श दिया जाता है.
- इसलिए को वैक्सीन की साइकिल 1 महीने में पूरी हो जाती है जबकि को भी सील के लिए 3 महीने का समय चाहिए.
- चूंकि बूस्टर या दूसरी डोज लगने के 2 सप्ताह बाद बाद वैक्सीन का सुरक्षा कवच कार्य करना शुरू कर देता है.
- इसलिए को वैक्सीन लेने वाले व्यक्ति 6 हफ्ते बाद और कोवीशील्ड लेने वाले व्यक्ति 8 से 14 हफ्ते बाद सुरक्षित होते हैं.
- इसलिए समय सीमा के अनुसार को वैक्सीन जल्दी सुरक्षित करना शुरू कर देती है.
मुझे अगर विकल्प मिलता तो मैं को वैक्सीन ही लगव़ाता लेकिन उपलब्धता के आधार पर मुझे कोवीशील्ड ही मिली .
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