मंगलवार, 18 फ़रवरी 2020

शाहीन बाग़ का झूठ : और झूठ के पीछे का सच

सबसे बड़ा झूठ
शाहीन बाग का का सबसे बड़ा झूठ है कि यह धरना, प्रदर्शन, आंदोलन संशोधित नागरिक कानून और एनआरसी के विरुद्ध है और यह मुस्लिम महिलाओं द्वारा स्वत: स्फूर्त संचालित है. इसका जेएनयू जामिया और एएमयू से कोई लेना देना नहीं है.आम आदमी पार्टी और कांग्रेस का इससे दूर दूर का कोई रिश्ता नही।
शाहीन बाग का केवल झूठ जानने से स्थित स्पष्ट नहीं होती इसलिए ये भी जानिए कि इसका सच क्या है ?

शाहीन बाग का सच
शाहीन बाग का सच यह है कि इसका एकमात्र उदेश्य आम आदमी पार्टी को चुनाव में जीत सुनिश्चित करना था और इसकी पूरी योजना का खाका अरिन्द केजरीवाल को रणनीतिक सलाह देने वाले प्रशान्त किशोर ने बनाया था और इसका सञ्चालन फिरोजशाह कोटला रोड पर आप के वॉर रूम से किया जा रहा था . कांग्रेस भी मुश्लिम वोट मिलने की खुशफहमी का शिकार हुयी जबकि इसका उद्देश्य उसका वोट बैंक भी लूट कर आम आदमी पार्टी को देना था. सब कुछ बहुत योजना वद्ध तरीके से हुआ. शायद इतिहास में पहलीवार हिन्दुओं का ध्रुवीकरण रोकते हुए ,जमकर मुश्लिम धुर्वीकरण किया गया। वास्तव में ये एक नायाब प्रयोग था। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का ये कहना कि ये संयोग नही प्रयोग है अक्षरसः सत्य है। आप के सभी मुस्लिम उम्मीदवार रिकार्ड मतो से जीते। उन्हें प्राप्त मतों का प्रतिशत 76% तक गया । ये अपने आप मे एक रिकॉर्ड है ।जो भी हो इस नए प्रयोग से आम आदमी पार्टी की चुनाव में शानदार जीत हुई और शाहीन बाग़ आन्दोलन की “हैप्पी इंडिंग” भी . भ्रष्टाचार के विरुद्ध जनआंदोलन से उपजी एक पार्टी ने मुफ्त खोरी या/और रिश्वत खोरी का बहुत ही ईमानदारी से उपयोग किया और संविधान और लोकतंत्र की कमजोर कड़ियों को जोड़ कर , सामाजिक ताने बाने को तोड़कर , हिंदुस्तान की आत्मा को रौंदते हुए , देश की बिषम परस्थितयों को अपने फायदे के लिए निचोड़ लिया । ये अभिनव प्रयोग है ऐसा तो कभी कांग्रेस भी नही कर सकी जिसने अमेरिका की एक एजेंसी को चुनाव सलाहकार के रूप में लगा रखा था।

(आम आदमी पार्टी की जीत के बाद शाहींन बाग़ उजड़ गया)

शाहींन बाग की प्रष्ठभूमि
राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर पहले भारतीय जनता पार्टी के लिए काम करते थे । 2014 में लोकसभा चुनाव में भाजपा की विजय के बाद और मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रशांत किशोर की सीधे-सीधे राजनीति में आकर कौशल दिखाने की लालसा जागृत हो गई । सूत्रों के अनुसार उन्होंने अपनी इस इच्छा को अमित शाह के सामने प्रकट किया और अनुरोध किया कि उन्हें भाजपा में पार्टी संगठन में कोई बड़ा पद दिया जाए । भारतीय जनता पार्टी कैडर वाली पार्टी है और प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति ,मुख्यमंत्री ,राज्यपाल समेत कई बड़े नेता, कार्यकर्ता से यहां तक पहुंचे हैं .पार्टी में वैसे चाहे जितनी कमियां हो लेकिन एक बहुत अच्छी चीज है कि बाहर से आए हुए नेताओं को संगठन में किसी बड़े पद पर नहीं बैठाया जाता है ।पार्टी बाहर से आए नेताओं को विधानसभा, लोकसभा का टिकट तो दे सकती है उन्हें विधान परिषद और राज्यसभा भेज सकती है लेकिन संगठन में महत्वपूर्ण पद पर नहीं बैठा सकती . कहा जाता है कि श्री प्रशांत किशोर की मांग पूरी नहीं हो सकी लेकिन अमित शाह के कहने पर उन्हें जेडीयू में न केवल शामिल किया गया बल्कि उपाध्यक्ष भी बना दिया गया । प्रशांत किशोर को इससे बहुत कुछ हासिल नहीं हुआ और उनकी फर्म विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के लिए कार्य करती रही । इस बीच भारतीय जनता पार्टी से उनके रिश्ते बिगड़ते रहे ।हाल ही में इसकी पराकाष्ठा तब हो गई जब उन्होंने पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को लोक सभा और विधानसभा चुनाव के लिए अपनी फर्म का रणनीतिक सलाह हेतु अनुबंध कर लिया । लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर के अथक प्रयासों के बावजूद भी भारतीय जनता पार्टी पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को सीधी टक्कर देकर 42 में से 18 सीटें जीतने में भी सफल रही । इसबीच अरविंद केजरीवाल ने भी प्रशांत किशोर को दिल्ली विधान सभा चुनाव हेतु अनुबंधित कर लिया। प्रशांत किशोर ने पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल के लिए संशोधित नागरिकता कानून और एनआरसी को जीत का थीम बना कर योजना बनाई. इस बीच CAA और NRC को लेकर प्रशान्त किशोर के सम्बन्ध भाजपा से इतने ख़राब हो गये कि अमित शाह की सिफारिस पर जेडीयू में लिए गए प्रशांत किशोर को अमित शाह की नाराजगी के बाद ही बाहर का रास्ता दिखाया गया .

(जीत की खुशी- प्रशांत किशोर और केजरीवाल )

जहां पश्चिम बंगाल में स्वयं ममता बनर्जी संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में सड़कों पर है, वही दिल्ली में केजरीवाल को इस मुहिम से दूर रखते हुए शाहीन बाग को बहुत सोच समझ कर आन्दोलन का केंन्द्र बनाया गया । लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सभी सातों सीटों पर जीतने वाली भाजपा को हर विधानसभा क्षेत्र में मुस्लिम महिलाओं ने जमकर वोट किए थे । जिसके पीछे तीन तलाक और हलाला खत्म करने की खुशी थी। इसलिए जानबूझकर शाहीन बाग में महिलाओं को आगे किया गया ताकि इन मुस्लिम महिलाओं को भाजपा को वोट देने से रोका जा सके और इस तरह मुस्लिमों को एकजुट करके एकमुश्त वोट आप को दिलवाया जा सके । परोक्ष रूप से आम आदमी पार्टी ने खासतौर से उसके मुस्लिम नेताओं और कुछ मुस्लिम संगठनों ने शाहीन बाग को वित्त पोषित किया । प्रदर्शनकारियों के लिए बहुत ही अच्छे खाने-पीने के इंतजाम किए गए ताकि उनको लंबे समय तक रोका जा सके । प्रदर्शनकारियों में बड़ी संख्या में दिहाड़ी मजदूर और अल्प आय वर्ग के लोग थे । कहा तो यह भी जाता है कि उन्हें प्रतिदिन के हिसाब से भुगतान किया जा रहा है . इसका नतीजा यह हुआ कि शाहीन बाग में आगे महिलाएं और पीछे एक बहुत बड़ा तंत्र या षड्यंत्र था ।आम आदमी पार्टी की जीत पर शाहीन बाग में जमकर उल्लास मनाया गया लोग एक दूसरे से गले मिले और बिरयानी बांटी गई । धीरे-धीरे कम प्रदर्शन कारी और भी कम होने लगे हैं और वित्त पोषक भी दूर हो रहे हैं . अब शाहीन बाग का आंदोलन अपने आप खत्म हो रहा है क्योंकि उद्देश्य पूरा हो चुका है। जे एन यू, जामिया, और ए एम यू भी अब शांत हो जाएंगे । पूरे घटना क्रम में कांग्रेस एक "आत्मघाती दल" के रूप में उभरा है। उन्हें भाजपा के न जीत पाने या कांग्रेस द्वारा भाजपा को रोक देने की बेहद खुशी है। राहुल, प्रियंका और सोनिया सब बेहद खुश हैं । उन्हें इस बात का जरा भी गुमान नही कि उन्होंने स्वयं कांग्रेस में आत्मघाती टाइम बंम लगा दिया है । अगर स्थिति यही रही तो कांग्रेस स्वयं कांग्रेस मुक्त भारत का सपना साकार कर देगी। कांग्रेस वहीं जीत सकती है जहां वह भाजपा के मुख्य मुकाबले में है जैसा मप्र , छत्तीसगढ़ और राजस्थान में हुआ। जहाँ कहीं भी कांग्रेस ने किसी तीसरे दल को भाजपा के सामने खड़ा कर दिया वहां कांग्रेस फिर कभी खड़ी नही हो पाई। यदि दिल्ली में कांग्रेस और आप के संयुक्त वोट प्रतिशत का औसत निकालें तो भाजपा से 8% से भी ज्यादा कम हैं । इसका मतलब ये है कि कांग्रेस अगर ठीक से चुनाव लड़ती तो भाजपा जीत जाती। ये भी निष्चित है कि कभी आप हारेगी तो जीतने वाली भाजपा होगी। कांग्रेस तो दिल्ली से सदा सर्वदा के लिए विदा हो गई।

कह सकते हैं कि शाहीन बाग आंदोलन का मुख्य मकसद मुस्लिम पुरुष और महिला वोटों को एकजुट करके आम आदमी पार्टी के खाते में डालना था ताकि अरविंद केजरीवाल की जीत सुनिश्चित की जा सके . इसमें कांग्रेस ने भी बहुत सहयोग किया । एक तरफ मणिशंकर अय्यर, शशि थरूर, दिग्विजय सिंह और सलमान खुर्शीद जैसे फायर ब्रांड नेताओं ने जहरीला माहौल बनाया और उन्हें भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध खड़ा किया दूसरी तरफ कांग्रेस की युवा बिग्रेड राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पूर्वी उत्तर प्रदेश तक और शाहीन बाग से इंडिया गेट व जंतर मंतर तक कानून व्यवस्था को तार-तार करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । जेएनयू, जामिया और एएमयू भी रह रह कर रंग बदलते रहे और केंद्र सरकार को उलझाने का काम करते रहे . इतनी बड़ी पटकथा के लेखक को नमन करना चाहिये , हम लोगों को नही , कम से कम राजनीतिक लोगों को .
**************** शिव मिश्रा *****************
फुट नोट : सूचना श्रोत 

बुधवार, 12 फ़रवरी 2020

क्या आम आदमी की उपेक्षा भाजपा की हार का कारण बना

भाजपा की हार तो हुई ही नही क्योकि वह सत्ता में नही थी। हारता वही है जो पहले जीता हो। हां भाजपा जीत नही सकी या आप को हरा नहीं सकी। ये दिनरात चिल्लाने वाले इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का स्टेटमेंट है जहां पढ़े लिखे समझदार पत्रकारों की संख्या लगातार घटती जा रही हैं। दिल्ली में भाजपा पिछले 25 सालों से सत्ता से बाहर है किंतु लगातार जीतने का भरपूर प्रयास कर रही है। आप के पहले यानी 7 साल पहले तक कांग्रेस की सरकार थी जो लगातार 15 वर्षों तक रही , और कांग्रेस भी मैदान में है सिर्फ उपस्थिति दर्ज करने के लिये ।
अब विश्लेषण करते हैं भाजपा के जीत ना पाने के कारणों का जो मुख्यतः निम्न है
दिल्ली की जनता मतदान करने के मामले में शायद काफी परिपक्व है किस चुनाव में किसे वोट देना है इसकी कला शायद देश में सबसे अधिक दिल्ली की जनता को आती है इसलिए 6 सालों में हुए दो लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली की सभी 7 सीटों पर विजय प्राप्त की और यही नहीं नगर निगम के चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने विजय श्री प्राप्त की लेकिन पिछले 7 सालों में विधानसभा के हुए 3 चुनाव में भारतीय जनता पार्टी जीत नहीं सकी । आम आदमी पार्टी की सरकार से पहले शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेसी सरकार 15 सालों से थी ।
अरविंद केजरीवाल अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधीआंदोलन से उभरे हुए बेहद सधे और शातिर किस्म के व्यक्ति हैं वह जहां कहीं भी रहते हैं उन्होंने अपने वर्चस्व को कायम करने के लिए वह सब कुछ करते हैं जो किया जा सकता है और संभव हो सकता है । नाटकीयता उनके रग रग में रची बसी है । उन्हें अच्छी तरह से समझ में आ गया है की हिंदुस्तान की जनता भ्रष्टाचार विरोध की बात तो करती है लेकिन दूसरों का . लेकिन असल में भ्रष्टाचार उसे पसंद है अगर वह अपने हित में हो । दिल्ली में केजरीवाल ने यही किया । 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त, 20000 लीटर तक पानी मुफ्त, मेट्रो में महिलाओं के लिए यात्रा मुफ्त, हवा में प्रदूषण बढ़ने पर मास्क मुफ़्त। यानी दिल्ली मुफ्त की संस्कृति का शहर बन रहा है और इसे अब आसानी से बदलना संभव नहीं लगता इसलिए सभी राजनीतिक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा इसी बात की होगी की कौन कितनी मुफ्त की रेवड़ी बांट सकता है? मुफ्त की इस स्पर्धा में आम आदमी पार्टी दिल्ली की नंबर एक पार्टी है इसलिए उसे हर वर्ग में वोट दिया। गरीब और अमीर हिंदू और मुसलमान सभी ने वोट किया। संशोधित नागरिक कानून और एनआरसी के आंदोलन और शाहीन बाग के कारण मुसलमानों के वोट का भाजपा के विरुद्ध एकतरफा ध्रुवीकरण हो चुका था । इसे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण नहीं कहा जा सकता क्योकि अगर मुस्लिम तुष्टिकरण या मुस्लिम ध्रुवीकरण होता है तो इसका चोला धर्मनिपेक्ष होता है . मुस्लिम वोट उसी दल को मिलने थे जो भाजपा को हराने की क्षमता रखता हो इसलिए स्वाभाविक रूप से यह वोट आम आदमी पार्टी को मिले और उसने शानदार सफलता प्राप्त की। कांग्रेश पहले ही अपनी वसीयत आप के नाम लिख चुकी है इसलिए उसके नेता भाजपा की हार का जश्न मना रहे हैं .
भारतीय जनता पार्टी एक कैडर वाली पार्टी है जो आज की तारीख में भी सबसे ज्यादा अनुशासित और सक्रिय कार्यकर्ताओं वाली पार्टी है और ज्यादातर देशभक्ति के कार्य करती है इसलिए स्वाभाविक रूप से मुसलमान उसे अपना दुश्मन नंबर एक मानते हैं । 2019 के लोकसभा चुनाव में मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक और हलाला कानून बनाने के कारण मोदी भाई जान को बढ़-चढ़कर वोट किया । इससे मुस्लिम वोट बैंक बट गया और यह मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति करने वाले दलों की हार का कारण भी बना । विभिन्न मुस्लिम संगठन राजनीतिक दल और राजनीत को रणनीतिक दिशा देने वाले कई लोग इसका विश्लेषण कर रहे थे अंत में कुछ सालों से भाजपा के दुश्मन बने प्रशांत किशोर ने एक रणनीति बनाई जिसके अंतर्गत मुस्लिम महिलाओं को भारतीय जनता पार्टी को वोट देने से रोकना था और वह रणनीति संशोधित नागरिक कानून के विरोध में महिलाओं को सामने लाना । शाहीन बाग इसका ज्वलंत उदाहरण है शाहीन बाग में और चाहे कुछ भी किया हो लेकिन उसने मुस्लिम वोट बैंक को एकजुट कर दिया और यह दिल्ली के चुनाव से पता चलता है । आम आदमी पार्टी के पांचों मुसलमान उम्मीदवार भारी अंतर से जीते और उसके एक उम्मीदवार अमानतुल्लाह खान जिसने हिंदुओं और मुस्लिमों में खाई बढ़ाने के लिए बहुत ही जहरीले भाषण दिए और अल्लाह के नाम पर हिंदुस्तान को फतह करने की बात की, ने ७१००० मतों से जीते और रिकॉर्ड बनाया जबकि दिल्ली के विकास पुरुष अरविन्द केजरीवाल केवल २१००० मतों से जीत सके । शिक्षा के क्षेत्र में तथाकथित क्रांति लाने वाले मनीष शिशोदिया बमुश्किल हारते हारते बचे . क्या अमनातुल्लाह खान इन दोनों से बड़े नेता हैं ? क्या अब भी कहा जायेगा कि “बर्मा नहीं निकल जायेंगे, ३५ करोड़ हैं हलख में अटक जायेंगे” का कोई प्रभाव नहीं पडा . अब भी कहा जायेगा कि दिल्ली में शाहीन बाग़ का प्रभाव नहीं पड़ा? यह सब भारत के भविष्य के लिए अच्छा संकेत नहीं है. हिंदुस्तान को गाली देकर, हिंदुओं को गाली देकर ,देश के विरोध में भाषण देकर, हिंदुत्व से आजादी का नारा लगाकर अगर कोई व्यक्ति चुनाव में रिकॉर्ड जीत हासिल कर सकता है तो हिंदुस्तान को हिंदुओं को, हिंदुत्व को और ज्यादा गाली खाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए . लेकिन आश्चर्यजनक चीज है इस सब पर मुफ्त की संस्कृत भारी पड़ी और लोगों ने इसे नजरअंदाज करते हुए अपने फायदे के लिए आम आदमी पार्टी को वोट दिया ।
ये भी सही है कि भाजपा की जीत न हो पाने का कारण मिडल वलास लोगों की उपेक्षा करना भी हैं। सबसे ज्वलंत उदाहरण है केंद्र का बजट जहां आयकर छूट में ऐसी बाजीगरी की गई हैं कि कोई समझ नही पा रहा कि मिडल क्लास के बूते सरकार बनाने वाली भाजपा ऐसा भी कर सकती है? दरअसल भाजपा की जब भी सरकार बनती है वह इतनी मेहनत करके अर्थव्यवस्था को दीवानगी की हद तक जाकर मजबूत करती है और ऐसे कड़े कदम उठाती है कि सबसे पहले उसके कार्यकर्ता नाराज होते हैं फिर मिडल क्लास और फिर मतदाता । सरकार चली जाती है और मजबूत की गई अर्थव्यबस्था का फायदा नई सरकार उठती है और जमकर ऋण माफी और दूसरी सब्सिडी वाली योजनाए चलाती है।२००४ में अटल सरकार जाने के बाद कांग्रेस ने यही किया. भाजपा को इससे सबक लेना चाहिए कि जब वोए मिलेंगे तभी जीतेंगे और जब जीतेंगे तभी देश की रक्षा कर सकेंगे. लेकिन ये भी सही है कि क्या ये मोदी सब अपने फायदे के लिए कर रहें हैं ? नहीं वह हमारे लिए और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए कर रहे हैं , उन्होंने अभी तक जो किया आज़ादी के बाद कोई भी नहीं कर सका …कोई भी नहीं ! लेकिन हम प्याज की कीमतें देखते हैं , पेट्रोल के दाम देखते हैं , मुफ्त में २०० यूनिट बिजली देखते हैं और २०००० लीटर मुफ्त पानी में अपना वोट बहा देते हैं .
यही है जीत न पाने या हार जाने का असली कारण। लेकिन याद रहे ये मोदी या भाजपा की नहीं हम सबकी शर्म नाक हार है. हमने उन पीढ़ियों को भी हरा दिया हैं, जिन्होंने अभी जन्म भी नहीं लिया है . पता नहीं वे किस रंग के झंडे वाले देश में जन्म लेंगी .

मंगलवार, 11 फ़रवरी 2020

भाजपा की हार के लिए क्या मनोज तिवारी बलि का बकरा होंगे ?

ये बहस अभी सिर्फ मीडिया में है और विशेषतया टीवी पर। भाजपा की तो अभी आधाकारिक तौर पर मीटिंग होनी है जिसमे इस पर चर्चा होगी। जहां जहां तक मैं भारतीय जनता पार्टी को समझता हूं यह इस तरह की पार्टी नहीं है जिसने किसी व्यक्ति को बलि का बकरा बनाया जाए और वैसे भी भारतीय जनता पार्टी में सभी को मालूम है की मनोज तिवारी खाटी राजनीतिक व्यक्ति नहीं है । यद्यपि प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते उनकी जिम्मेदारी बनती है कि वह हर निर्वाचन क्षेत्र में ऊपर से लेकर नीचे तक अपने कार्यकर्ताओं को सक्रिय करते और अब सरकार की कमियां लोगों को बताते । जमीनी स्तर पर जब कार्य होता है तो उसके परिणाम निश्चित रूप से अलग होते हैं। दिल्ली का मामला पूरी तरह से अलग है। यहां कीअति संवेदनशीलता नीचे से लेकर ऊपर तक प्रधानमंत्री तक सभी को मालूम थी और इसलिए स्वयं अमित शाह गली मोहल्लों में घूमे । रोड शो किए । कार्यकर्ताओं में जोश पैदा किया और कई रैलियां भी की। प्रधानमंत्री ने भी तीन रैलियां दिल्ली में की और मतदाताओं में जागरूकता लाने का प्रयास किया। नए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी बहुत प्रयास किए। दिल्ली के सभी सांसद और विधायक भी काम में जुटे रहे और जैसा माहौल दिल्ली में दिख रहा था उ ससे ऐसा लग रहा था कि परिणाम भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में झुक गया है लेकिन अपेक्षित परिणाम नहीं आए।
भारतीय जनता पार्टी एक केडर वाली पार्टी है । इस तरह के दल सभी चुनाव को बहुत गंभीरता से लेते हैं और अपनी जुझारू प्रवृत्ति का परिचय देते हैं और यह अंतिम समय तक हथियार नहीं डालते हैं। इसलिए अगर हम दिल्ली चुनाव की पूरी गतिविधियों पर नजर डालें तो पाते हैं कि भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली का चुनाव बहुत ही अच्छे ढंग से लड़ा और वास्तव में आम आदमी पार्टी को बहुत ही संशय में डाल दिया था और उसकी वजह से चुनाव के तुरंत बाद आम आदमी पार्टी ने ईवीएम मशीनों पर प्रश्न उठाने शुरू कर दिए थे इसे स्पष्ट है कि आम आदमी पार्टी भी अंदर तक डर गई थी कि हो सकता है इस चुनाव में कुछ उल्टा हो जाए। लेकिन अब जैसा कि स्पष्ट है और विभिन्न पत्रकारों से बातचीत में पता चलता है कि भारतीय जनता पार्टी के जो कार्यकर्ता थे उनको बहुत समय से निर्वाचन क्षेत्रों में गली मोहल्लों में सक्रिय नहीं किया जा सका ।प्रधानमंत्री ने स्वयं बहुत से ऐसे कार्य दिल्ली भारतीय जनता पार्टी को सौपें थे जिन्हें समय बद्ध ढंग से किया जाना था वह नहीं हो पाए। इसका थोड़ा दुष्प्रभाव पड़ा है लेकिन फिर भी मुझे नहीं लगता कि भारतीय जनता पार्टी का कोई भी नेता मनोज तिवारी को बलि का बकरा बनायेगा ।यह सिर्फ मीडिया में अटकलें हैं और खासतौर से आम आदमी पार्टी के नेता टीवी बहस के दौरान इस तरह की बातें उठा रहे हैं कि इस तरह की हार की जिम्मेदारी किसी न किसी व्यक्ति को लेनी चाहिए। तकनीकी आधार पर कहा जाए तो यह भारतीय जनता पार्टी की हार नहीं है । इसको कहा जा सकता है कि भारतीय जनता पार्टी तमाम प्रयासों के बावजूद दिल्ली चुनाव जीत नहीं सकी और केजरीवाल का किला ध्वस्त नहीं कर सकी। इस मिशन में भाजपा न जाने बहुत देर से क्यो आई? लेकिन अपने वोटर्स को बांधने में कामयाब रही। फिर भी जीत न पाने की जिम्मेदारी नींचे से लेकर प्रधानमंत्री तक की हैं।

भाजपा का जीत से दूर रहने का एक कारण एक वर्ग विशेष की टैक्टिकल वोटिंग को भी जाता है जिसमे कांग्रेस का बिना लड़े आत्म समर्पण करना भी शामिल हैं। कांग्रेस बहुत खुश है कि उसने भाजपा को रोक दिया यानी हमारा चाहे सर्वनाश हो जाय लेकिन पड़ोसी का कुछ नुकसान जरूर होना चाहिए। अब कौन कहेगा कि शाहीन बाग मुद्दा नहीं था?
इन चुनाव से एक बात स्पष्ट है कि दिल्ली के मतदाता बहुत ही परिपक्व है और उन्हें किस चुनाव में किसको वोट देना है इसकी कला मालूम है। पिछले 6 सालों में दो बार लोकसभा के चुनाव हुए और दोनों ही चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने दिल्ली की सारी सीटें जीती और यहां तक नगर निगम के चुनाव में भी भारतीय जनता पार्टी ने विजय हासिल की लेकिन दिल्ली राज्य के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी पिछले 6 चुनावों से यानी पिछले 25 सालों से सरकार से बाहर है। इस पर भाजपा को गंभीरता से विचार करना होगा। अगर मुफ्त बांटने से बोत मिलते हैं तो कोई भी पीछे क्यो रहे ? आखिर उसकी जेब से क्या जाएगा ?
दूसरी सबसे बड़ी बात दिल्ली चुनाव से जो उभरती है वह यह है कि भारतीय मतदाता मुफ्त में मिली हुई चीजों का बहुत आदर करते हैं ( मैं लालच शब्द स्तेमाल नही करना चाहता क्योंकि इससे मतदाताओं का अनादर होगा) और मुफ्त सौगात देने वालों और तात्कालिक लाभ देने बालों को सत्ता सौंपने से भी नहीं हिचकते हैं और इस सब के आगे देश हित के मुद्दे, राष्ट्रहित के मुद्दे , कौमी मुद्दे, सांप्रदायिक मुद्दे सभी गौण हो जाते हैं। आप के पांचों मुस्लिम उम्मीदवारों की विजय ने तुष्टिकरण के नए द्वार खोल दिये है । अमानुल्लाह खान जिन्होंने बेहद निम्न स्तर के साम्प्रदायिक और गैर जिम्मेदार बयान देकर न केवल हिन्दू मुस्लिम खाई को और चौड़ा किया और पूरे देश मे साम्प्रदायिक आग लगाने की पूरी कोशिश की , उन्होंने जीत का रिकॉर्ड बनाया । धन्य है मुफ्तखोरी की संस्कृति जो सब कुछ बर्दास्त कर लंगर वाली लाइन में लग गई। अब समझना मुश्किल नही है कि कोई देश एक हजार साल तक गुलाम कैसे राह सकता हैं।
लगता है भाजपा मुफ्त में हार गई।

मंगलवार, 4 फ़रवरी 2020

सियासी पारा : दिल्ली २०२०

दिल्ली के विधानसभा चुनाव बहुत ही रहस्य और रोमांच से भरे हुए हैं। एक महीने पहले की स्थिति केजरीवाल के तरफ झुकी हुई थी और उसका सबसे बड़ा कारण बिजली और पानी के बिलों में रियायत था । स्पष्ट है कि इसमें विकास की गाथा या भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन जैसा कुछ भी नहीं है। वास्तव में अन्ना आंदोलन से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत करने वाले केजरीवाल सिर्फ इस आधार पर दिल्ली के मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुंचे कि वे पारदर्शिता लाएंगे और भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फेंक देंगे लेकिन ऐसा कुछ भी हुआ नहीं। उनके कई मंत्रियों को भ्रष्टाचार के कारण इस्तीफा देना पड़ा । उनके एक बहुत नजदीकी रिश्तेदार को केंद्रीय जांच ब्यूरो ने भ्रष्टाचार के आरोप में गिरफ्तार किया है केजरीवाल सरकार ने निर्माण का ठेका दिया था। उनके निजी सचिव के ऑफिस और आवास पर छापे मारे गए उसमें भी काफी आपत्तिजनक चीजें निकली । इन सबसे कम से कम एक बात तो साफ है कि जिस बुनियाद पर केजरीवाल ने राजनीतिक पार्टी बनाई थी और जिस तरह की नई राजनीति जिसमें सुचिता , पारदर्शिता और ईमानदारी हो, कम से कम वह तो परवान नहीं चढ़ सकी । ऑटो रिक्शा , साइकिल और मारुति 800 का प्रयोग करने वाले केजरीवाल की अब पूरी जीवन शैली ही बदल गई है । परिवारवाद की राजनीति का विरोध करने वाले केजरीवाल का पूरा परिवार उनकी राजनीतिक यात्रा का सारथी बन रहा है ।एक से एक ईमानदार मेधावी तेजस्वी संघर्षशील और अन्ना आंदोलन में कंधे से कंधा मिलाकर उनका साथ देने वाले साथियों को उन्होंने बेहद बेआबरू करके पार्टी से निकाल दिया । अब उनके पास सिर्फ हां करने वालों की एक टीम है और इसलिए वह अपनी पार्टी के निर्विवाद नेता है । उनके शासनकाल की एकमात्र उपलब्धि है 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त और कुछ सीमा तक पानी मुफ्त। यह कैसी अबधारणा उन्होंने विकसि त की ? हालांकि आज के युग में जबकि हम सभी कुछ न कुछ हद तक मुफतखोरी पसंद करने लगे हैं, बेईमानी का कुछ न कुछ अंश हम सबके अंदर विद्यमान हो चुका है , शायद केजरीवाल के पक्ष में हवा बनने का सबसे बड़ा कारण मुफ्त खोरी ही था।

लेकिन शाहिनबाग आंदोलन ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव की दिशा बदल दी। दरअसल संशोधित नागरिकता कानून के विरोध को एक ऐसा भावनात्मक मुद्दा बनाया गया कि जेएनयू से जामिया तक और एएमयू से जादवपुर तक पूरा मकड़जाल चलाया गया और इस सबके केंद्र में शाहीन बाग को प्रयोगशाला के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है जहां पर 24 घंटे प्रदर्शनकारी जमे हुए हैं । इन मुस्लिम प्रदर्शनकारियों में अधिकांश बुजुर्ग महिलाएं शामिल हैं और उनको भी एक रणनीतिक योजना के तहत शामिल किया गया है क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में मुस्लिम महिलाओं ने ट्रिपल तलाक और हलाला खत्म होने के परिपेक्ष में बहुत जोर शोर से मोदी को वोट किया था। इससे थोक में पड़ने वाले मुस्लिम वोट बैंक में कमजोरी आ गई थी और इस वोट बैंक को पुनः संगठित करने के लिए और इन मुस्लिम वोटर्स को भाजपा से दूर करने के लिए उसी महिलाओं को संशोधित नागरिकता कानून के विरोध का हथियार बनाया गया।शाहीन बाग और उसके आसपास के इलाकों में रहने वाले लोगों की जिंदगी दूभर होती जा रही है । बच्चों की स्कूल पहुंचने में समस्याएं हैं बीमार लोगों को एंबुलेंस पहुंचने ने समस्याएं हैं और जो लोग नौकरी और उद्योग धंधे के सिलसिले में बाहर जाते हैं उनके घंटों ट्रैफिक में बर्बाद होते हैं । शाहीन बाग में जश्न का माहौल है खाने-पीने उठने बैठने सोने का पूरा इंतजाम किया गया है और प्रदर्शनकारी बहुत ही खुश हैं उनके खान-पान का खास ध्यान रखा कर जा रहा है लेकिन सवाल है यह सब कैसे हो रहा है? इनका प्रायोजक कौन है ?और इसका फायदा किसको होने वाला है? शाहीन बाग प्रदर्शन के प्रायोजकों को उम्मीद थी कि इतने बड़े जमावड़े के बाद दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार कोई सख्त कदम उठाएगी प्रदर्शनकारियों पर आंसू गैस पानी की बौछार छोड़ेगी जरूरत पड़ी तो लाठीचार्ज हवाई फायर भी करेगी और तब इस पूरे आंदोलन का फायदा चुनाव में मिलेगा और भाजपा और केंद्र सरकार को हिटलर शाही नादिर शाह आदि जुमलों से नवाजा जाएगा और जनता में एक मैसेज दिया जाएगा कि सरकार का एजेंडा हिंदू मुस्लिम भाईचारे को खत्म करना , समाज में विरोधाभास पैदा करना और देश में अशांति पैदा करना है । इसका तत्कालिक फायदा चुनाव में आप या कांग्रेश को हो सकता था । कांग्रेसियों हांसिए पर है, ऐसा लगता है कि शीला दीक्षित के 15 साल के शासन के बाद और अब उनकी मृत्यु के बाद दिल्ली में कांग्रेस भी मृत्यु शैया पर आ गई है और जो चुनाव कांग्रेस लड़ रही है वह एक दिखावा है क्योंकि एक राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते उसे चुनाव लड़ना है ।इस समय मुकाबला सिर्फ और सिर्फ आप और भाजपा के बीच में है और शाहीन बाग से उठे तूफान का मंजर चुनाव की रूप रेखा तय करेगी। भाजपा की ताबड़तोड़ रैलियों ने और संशोधित नागरिकता कानून पर तमाम स्पष्टीकरण के बाद और कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं जैसे मणिशंकर अय्यर, सलमान खुर्शीद, दिग्विजय सिंह और शशि थरूर आदि के विष बिमन कारी बयानों के परिपेक्ष में दिल्ली की जनता को यह समझ में आ गया है कि शाहीन बाग एक नई प्रयोगशाला है और इस प्रयोगशाला का अंतिम निष्कर्ष देश के लिए बहुत भयानक हो सकता है । हैदराबाद के सांसद सहित कई मुस्लिम नेताओं के बयान आ रहे हैं कि अगर संशोधित नागरिकता कानून वापस नहीं हुआ तो देश की परिस्थितियां 1947 में पहुंच जाएंगी। यह सब आम हिंदुस्तानी को सोचने के लिए मजबूर करता है कि कौन क्या कर रहा है? कौन क्या चाहता है? दिल्ली वासियों को समझ में आ गया है कि उन्हें बिजली और पानी के बिल में थोड़ी रियायत के बाहर निकलना होगा और ऐसा नहीं है कि अगर भारतीय जनता पार्टी की सरकार आएगी तो सब्सिडी बंद हो जाएंगी क्योंकि एक बार जो रियायत शुरू हो जाती है उसे खत्म करना मुश्किल होता है । इसलिए सरकार कोई भी आएगी पानी और बिजली की छूट अनवरत जारी रहेगी। इसलिए धीरे-धीरे अब दिल्ली की जनता लालच से मुक्त हो रही है और माहौल भाजपा के पक्ष में बनता जा रहा है अकाली दल के नेताओं, हरियाणा के नेताओं और बिहार के मुख्य मंत्री और जनता दल यूनाइटेड के नीतीश कुमार ने दिल्ली में रैलियां की। उनके बहुत ही सकारात्मक परिणाम आने की संभावना है और प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह की ताबड़तोड़ रैली और उसमें संशोधित नागरिक संहिता के विरुद्ध होने वाले प्रदर्शनों के परिपेक्ष में न झुकने के संकेत देना बहुत ही सकारात्मक रहा है।

अब दिल्ली की हवा बदल रही है आप और केजरीवाल के लिए मुकाबला आसान नहीं रहा और कोई आश्चर्य की बात नहीं कि अगर भारतीय जनता पार्टी बड़े बहुमत के साथ दिल्ली में सरकार बनाएं।

दिल्ली में हाल ही में प्रमुख नेताओं द्वारा की गई जनसभाएं:
प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने कड़कड़डूमा में एक विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि शाहीन बाग एक संयोग नहीं , एक प्रयोग है और देश के लिए इसके दूरगामी परिणाम भयंकर और खतरनाक हो सकते हैं। दिल्ली को अराजकता के मोड़ पर नहीं छोड़ा जा सकता।
उ. प्र . के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कई जनसभाएं दिल्ली में की हैं . उन्होंने कहा- पाकिस्तान के मंत्री अरविंद केजरीवाल के समर्थन में बयान क्यों दे रहे हैं, क्योंकि वे अच्छी तरह जानते हैं कि केवल केजरीवाल ही हैं जो शाहीन बाग में प्रदर्शनकारियों को मुफ्त में बिरयानी खिला सकते हैं।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने विश्वास नगर में पार्टी उम्मीदवार के समर्थन में जनसभा की। इस दौरान उन्होंने यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा लगाए गए आरोपों का जवाब दिया। उन्होंने कहा कि योगी आदित्यनाथ हमें आकर बताएंगे कि दिल्ली में स्कूल और अस्पताल खराब हैं।
केजरीवाल ने कहा कि योगी को पहले गोरखपुर और यूपी की चिंता करनी चाहिए। गोरखपुर के अस्पतालों की क्या स्थिति है इसे सारी जनता जानती है। केजरीवाल ने कहा कि योगी पहले अपने स्कूल और अस्पताल संभालें।
प्रशांत किशोर की छुट्टी होते ही बीजेपी और जेडीयू में कुछ मीठा हो जाए का माहौल है. दिल्ली के चुनाव में पहली बार बीजेपी ने जेडीयू के साथ गठबंधन किया है. नीतीश कुमार की पार्टी के लिए 2 सीटें छोड़ी गई हैं. गठबंधन में रामविलास पासवान की पार्टी को भी एक सीट दी गई है. दिल्ली में बिहार और उ.प्र. के लोग बड़ी संख्या में हैं .
दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रचार के दौरान गृह मंत्री अमित शाह और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुराड़ी में एक साथ मंच साझा किया। इस दौरान दोनों ने अरविंद केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा। अमित शाह ने कहा कि झूठ बोलने में केजरीवाल पहले नंबर पर हैं।
अमित शाह ने कहा, 'कई बार राज्य सरकारों के बीच विभिन्न विकास कार्यों को लेकर स्पर्धा होती है, लेकिन कहीं पर भी दिल्ली सरकार का पहला नंबर नहीं आया। अगर झूठ बोलने की कहीं स्पर्धा हो जाए, तो उसमें केजरीवाल जी का पहला नंबर आएगा।'
वैसे तो दिल्ली में कांग्रेस मृतप्राय है लेकिन राष्ट्रीय पार्टी होने के नाते चुनाव तो लड़ना ही है. लड़ना कम झगड़ना ज्यादा है . चुनावी प्रचार को धार देने के लिए आखिरी सप्ताह में ताकत झोंकने की रणनीति बनाई है. गांधी परिवार अगले दो दिन दिल्ली चुनाव प्रचार के लिए उतर रहा है. सोनिया गांधी एक रैली को संबोधित करेंगी तो राहुल-प्रियंका संयुक्त रूप से चार रैलियां करेंगे. इसके जरिए कांग्रेस ने जातीय और क्षेत्रीय समीकरण को साधने का प्लान बनाया है.

दिल्ली का माहौल पल-पल बदल रहा है. हर पल कुछ नया हो रहा है. चुनावी के सियासी पारे का केंद्र बिंदु अभी भी शाहीन बाग है . अब यह देखना बाकी है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने अल्पसंख्यकों के 20% वोट पाने के लिए शाहीन बाग़ पर जो इतना बड़ा दांव लगाया है, कहीं उससे बहुसंख्यकों के 80% वोटों को एकजुट होने का मौका तो नहीं दे दिया है ? अगर ये 80% वोट एकजुट होते हैं, तो स्वाभाविक रूप से इनका बड़ा भाग भारतीय जनता पार्टी के पास ही जाएगा . ऐसे में भारतीय जनता पार्टी के विजय रथ को दिल्ली में रोक पाना, आम आदमी पार्टी और कांग्रेस दोनों के लिए मुश्किल ही नहीं असंभव होगा. 

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