शनिवार, 27 जुलाई 2013

गरीबी की सीमा .... रेखा

आजकल एक बहस चल पड़ी है गरीबी की रेखा की । वास्तव मे इसकी वजह है योजना आयोग द्वारा घोषित गरीबी की नई परिभाषा की । इसके अनुसार यदि ग्रामीण क्षेत्र मे किसी व्यक्ति की आय रु 27.20  और शहरी क्षेत्र मे 33.30 रुपये प्रतिदिन से अधिक होगी तो उसे गरीब नही माना जाएगा । लोग इसके खिलाफ आंदोलित है । उन्हे लगता है कि ये गरीबों के साथ भद्दा मज़ाक है और गरीबी के आंकड़ो के साथ फ़्राड है। एक राजनैतिक दल के प्रवक्ताओ ने कहा कि वे 5 रुपये और 12 रुपये मे क्रमश: दिल्ली और मुंबई मे भर पेट खाना खा सकते है । एक सज्जन ने कहा कि हाँ खाना तो 1 रुपये मे भी खाया जा सकता है और 100 रुपये मे भी नहीं खाया जा सकता है क्योकि ये इस पर निर्भर करता है कि क्या खाया जा रहा है और कहाँ खाया जा रहा है। इन वक्तव्यों को जिस किसी ने सुना दंग रह गया और लगभग सभी  ने बड़ी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की । ऐसा लगता है कि ये क्र्रूर मज़ाक है और लोगो के घाओं पर नमक छिड़कने जैसा है ।  ये मज़ाक मे कहा गया था या जानबूझ कर पर  लोगो के दिलो मे गहराई तक चोट कर गया । हो सकता है कि कहने वालों के दिमाग मे डालर बसा हो लेकिन इतना जरूर है कि ऐसे लोग आम जनता से पूरी तरह कटे हुये है उन्हे वास्तविकता का बिल्कुल ज्ञान नही है । स्वाभाविक है ऐसे लोग जनता का कितना भला कर सकते है, आसानी से समझा जा सकता है ।   

क्या है गरीबी की रेखा ?

पूरे विश्व मे कई प्रणालिया प्रचलित है जिनसे  गरीबी का निर्धारण किया जाता है ।  इसका उद्देश्य ये होता है कि गरीबी की रेखा के नीचे रहने वाले लोगो को कल्याण कारी योजनाओ द्वारा सहायता पहुंचाई जा सके ताकि ऐसे परिवार स्वालम्बी बन सके । प्रत्येक देश के लिए आर्थिक आधार पर गरीबी की रेखा अलग अलग हो सकती  है। अमेरिका के गरीब, भारत के गरीबों से बहुत अमीर होंगे क्योकि अमेरिका मे गरीबी का पैमाना हिंदुस्तान से पूर्णतया भिन्न है ।  

कैसे निर्धारित होती है गरीबी की रेखा ?

          अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गरीबी रेखा निर्धारण के मूलत: 2 माडल है, पहला प्रत्यक्ष और दूसरा अप्रत्यक्ष। 
प्रत्यक्ष माडल मे जीवन से सीधे जुड़े हुये तीन क्षेत्रो का ध्यान रखा गया है ये है स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर । इन तीनों मे कुल 10 सूचकांक है जिन्हे नीचे के चित्र मे दिखाया गया है ।        


इस माडल मे इस बात का ध्यान रखा गया है कि प्रत्येक व्यक्ति और परिवार को जीवन के  इन तीन मूलभूत क्षेत्रो मे न्यूनतम सुविधाये उपलब्ध हो । अत: इन क्षेत्रो  मे किए जाने वाला खर्च गरीबी रेखा का आधार होता है । इन तीनों क्षेत्रो मे किसी  मे भी कमी परिवार को गरीबी की रेखा के नीचे ले जा सकती है। यह माडल अमर्त्यसेन की अवधारणा के बिल्कुल नजदीक है।    
          अप्रत्यक्ष माडल मे सिर्फ व्यक्ति या परिवार की आय का ध्यान रखा जाता है और ये कल्पना की जाती है कि अमुक आय मे प्रत्यक्ष माडल के सभी न्यूनतम सूचकांक स्वत:  पूरे हो जाएंगे । ये माडल गणना मे आसानी और मनमाफिक न्यूनतम आय घोषित किए जा सकने के कारण सभी विकाशशील देशो मे सरकारो के लिए बेहद लोकप्रिय हैं । सरकारे न्यूनतम आय घटा कर ये दावा करती है कि उनके शासनकाल मे गरीबी मे कमी आयी है । ऐसा करने का दूसरा सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि सरकार द्वारा प्रायोजित गरीबी उन्मूलन के कार्यक्रमों मे आने वाला खर्च कम हो जाता है क्योकि बहुत से लोग न्यूनतम घोषित आय के आधार पर इन योजनाओ मे पात्र नही रह जाते है । एक बड़ी विडम्बना की स्थिति तब खड़ी हो जाती है जब लोग गरीबी की रेखा के नीचे होने का प्रमाण प्राप्त करने के लिए संघर्ष करते है । स्पष्ट है कि इस तरह के मानक गरीबी के नहीं भुखमरी के मानको के ज्यादा करीब  होते है ।  
               तेंदुलकर कमेटी के अनुसार ग्रामीण भारत  मे 816 रुपये प्रति व्यक्ति और शहरी क्षेत्र मे 1000 प्रति व्यक्ति मासिक आय को गरीबी की रेखा से ऊपर माना गया है । यानी की 5 व्यक्तियों के परिवार मे ग्रामीण क्षेत्र मे 4080 रुपये और शहरी क्षेत्र मे 5000 रुपये की आय वाले परिवार गरीबी के रेखा के नीचे नहीं होंगे ।  इससे गरीबो की संख्या 2011-12 मे रेकॉर्ड 22% पर आ गई । ये 2010-11 मे 29.80% तथा 2004-05 मे  37.2% थी । इसके साथ गरीबो की संख्या 26.93 करोड़ रह गयी है जिसमे 21.63 करोड़ गाँव मे है। बिहार और उड़ीसा जहां गरीबों की संख्या मे सर्वाधिक कमी आई है आश्चर्य चकित है कि ये चमत्कार कैसे हो गया ।
          इस तरह आंकड़ो की बाजीगरी से गरीबी मे तो कमी नहीं आएगी अलबत्ता मानव मूल्यों की विश्वसनीयता मे कमी जरूर आएगी ।
प्राचीन समय से हिंदुस्तान मे मंदिरो और धर्मशालाओं मे प्रसाद बांटने की परंपरा रही है । इसका उद्देश्य भुखमरी की रेखा के नीचे के लोगो को जीने लायक भोजन उपलब्ध कराना था ताकि कोई भूख से मरे नहीं। जो लोग वैष्णो देवी धाम की यात्रा पर गए होंगे उन्होने टी सीरीज़ के गुलशन कुमार का लंगर अवश्य देखा होगा जो चौबीसों घंटे चलता था । झांसी मे मैंने देखा कि साईं बाबा के मंदिर मे न जाने कबसे लगातार लंगर चलाया जा रहा है ये दान के पैसे से चलता है अगर आप इसमे एक दिन का लंगर चलना चाहे तो इसमे सम्भवता: कई महीने लगेंगे क्योकि दान दाताओ ने अग्रिम बुकिंग करा रखी है। इस तरह लखनऊ के संकट मोचन मंदिर तथा लगभग हर बड़े शहर मे इस तरह की कोई न कोई धर्मार्थ व्यबस्था है। हर बड़े गुरु द्वारे मे तो लंगर की अनूठी परंपरा है। किन्तु ये धर्मार्थ और परमार्थ भूख मिटाने के उपाय है गरीबी के रेखा से ऊपर उठाने के नहीं । गरीबी मिटाने के लिए इस देश को व्यापक अर्थो मे कार्य योजना की आवश्यकता है।        
  
************  शिव प्रकाश मिश्रा **************    

बुधवार, 24 जुलाई 2013

देश की शर्मिंदगी

ये देश कहाँ जा रहा है ? वर्तमान राजनीति इस देश को कितना शर्मिंदा करेगी ? आज के दिन कोई इसकी भविष्यवाणी नहीं कर सकता  । इस देश के लोकतन्त्र के मंदिर कहे जाने वाले संसद के लगभग 65 सदस्यों ने अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा को पत्र लिख कर निवेदन किया है कि गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी को अमेरिकी बीजा न दिया जाय । इस चौंकाने वाली कार्यवाही ने समूचे देश को बहुत शर्मिंदा किया है । क्या घरेलू राजनीति का विरोधाभास या राजनैतिक विरोध अब अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लड़ा जाएगा और दूसरे देशों से अपने राजनैतिक विरोधियों को सबक सिखाने के लिए कहा जाएगा ? क्या भारतीय राजनीति का चेहरा इतना विकृत हो चुका है कि राजनैतिक हिसाब चुकाने के लिए के लिए देश के स्वाभिमान और सम्मान को भी दांव पर लगा दिया जाएगा ?
          अमेरिका का वीज़ा किसी भारतीय के लिए क्या मायने रखता है ? क्या अमेरिका स्वर्ग है जहां जाने के लिए हर कोई लालायित होगा ? या जहां जाए वगैर किसी को मोक्ष नहीं मिल सकता ? या उसका अस्तित्व ही नही होगा ? अपनी पहचान नही होगी ? क्या अमेरिका कोई अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय है कि जिसे वह वीज़ा नहीं देगा उसे अपराधी माना जाएगा ?
          जहां तक नरेंद्र मोदी का सवाल है वह संवैधानिक विधि व्यवस्था के अंतर्गत जनता द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री है, जो एक संवैधानिक पद है, और उन्हे यदि कोई देश वीज़ा से इंकार करता है तो ये भारत की संप्रभुता का अपमान है । यह संतोष की बात है कि भारत सरकार ने अमरीकी प्रशासन से इस पर अपना विरोध दर्ज कराया है । पर संसद के दोनों सदनो के लगभग 65 सदस्यों ने अपनी इस कार्यवाही से ये साबित कर दिया है कि उन्हे भारत के संविधान की, जिसके प्रति उन्होने निष्ठा की शपथ ली है, समुचित जानकारी नहीं है या श्रद्धा नहीं है । ये तो अच्छा हुआ कि श्री सीताराम यचूरी ने साफ कर दिया कि उन्होने किसी ऐसे पत्र पर हस्ताक्षर नही किए है और उनके हस्ताक्षर फर्जी है । निश्चित तौर पर यहाँ कानून को अपनी काम करना चाहिए ।         
          किसी भी स्वाभिमानी व्यक्ति को अमेरिकी वीज़ा के लिए इन परस्थितयों मे प्रयास भी नहीं करना चाहिए । इसलिए नरेंद्र मोदी को चाहिए कि वह स्वयं घोषणा करे कि अमेरिकी वीज़ा की उन्हे कोई दरकार नहीं है । उनके दल के अध्यक्ष को भी अमेरिका यात्रा के दौरान इस तरह की मांग से बचना चाहिए था।   *******         

रविवार, 14 जुलाई 2013

हिमालय से भी ऊंचा और राजनीति से भी नीचा

उत्तराखंड मे प्रकृति के रौद्र रूप ने जो विनाश लीला की है उसकी कल्पना करना भी संभव नहीं है । कितने लोग प्रभावित हुए और कितने लोग मारे गए इसकी सही जानकारी उपलब्ध नही है । उत्तराखंड विधान सभाध्यक्ष के अनुसार मरने वालों की संख्या 10 हजार से भी अधिक है किसी ने कहा ये संख्या इससे भी अधिक है। रुद्र प्रयाग व केदारनाथ गए जिले के अधिकारियों ने इस संख्या को बहुत अधिक होने का अनुमान बताया।  किन्तु प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा है कि मरने वालों की सही संख्या का कभी पता नहीं चल सकेगा । शायद सबसे विश्वसनीय और सही बात यही है । प्रकृति के इस तांडव से चमत्कारिक रूप से बच कर आए प्रत्यक्ष दर्शियों और बचाव अभियान मे शामिल लोगो खासतौर से सैन्यकर्मियों से हुई बातचीत से घटना की  विकरालता और बीभत्सता का अंदाजा लगाया जा सकता है। निसंदेह यह इस सदी की सबसे बड़ी मानवीय और प्राकृतिक आपदाओं मे से एक है।
    16 जून की रात और 17 जून 2013 को सुबह हुए इस हादसे के बाद बचाव अभियान शुरू होने मे कतिपय कारणों से काफी समय लगा। एक कारण तो है दुर्गम पहाड़ी इलाको की भौगोलिक संरचना, संचार माध्यम और संपर्क मार्गों का कटना। दूसरा सबसे बड़ा कारण है इस तरह की आपदाओं से निपटने की कोई अच्छी  तैयारी न होना । तीसरा कारण है विभिन्न एजेंसियों मे तात्कालिक बेहतर तालमेल न होना । कहने की आवश्यकता नहीं कि अगर बचाव अभियान जल्दी और नियोजित तरीके से शुरू हुआ होता तो और भी बहुतों की जान बचायी जा सकती थी । लेकिन जैसी हमारी राजनैतिक व्यबस्था है, और जैसी हमारे देश की अवस्था है, उसमे गंभीर और दूरगामी मसलो पर गंभीरता न होना आश्चर्य जनक नहीं, अवश्यंभावी है । इसलिए इस तरह की विभीषिकाओं से पूरी सक्षमता और तैयारियों से निपटने, जान माल के होने वाले नुकशान  को न्यूनतम करने और तुरन्त अधारभूत ढांचा खड़ा कर पुनर्वास करने की क्षमता हम कब तक विकसित कर पाएंगे, कहा नहीं जा सकता।   
    उत्तराखंड त्रासदी मे सेना और इंडो तिब्बत बोर्डर पुलिस के जवानो ने बहुत ही बहदुरी, जवांजी और कर्तव्य परायणता से लोगो का बचाव किया। घायलो, बुजुर्ग व्यक्तियों और बच्चों को अपनी पीठ, कंधे पर बैठा कर निकाला । एक घटना का जिक्र आवश्यक है, लकड़ी और रस्सियों के एक अस्थायी पुल पर, जिसमे तख्ते कम होने के कारण बड़े बड़े रिक्त स्थान थे और जिससे होकर निकलने पर पानी मे गिर जाने का खतरा था, कई जवान पंक्ति बद्ध होकर पेट के बल लेट गए और उनकी पीठ पर पैर रखते हुए आपदा मे फंसे हुए लोग निकले । ये दृश्य जो भी देखता वह यह जरूर कहता कि ये देश के सच्चे सपूत हैं । इनको देख कर मन मे श्रद्धा उत्पन्न होती है । ऐसे एक नहीं अनेक वाकये है जहां इन जवानो ने अपनी जान की बाजी लगा कर मुशीबत मे फंसे लोगो को निकाला । धन्य है ऐसे जवान और ऐसी सेना । ऐसे बहुत से और लोग है जो स्वयं इस आपदा मे फंसे थे फिर भी उन्होने तमाम अजनबियों की जान अपनी जान जोखिम मे डाल कर बचाई। ये सभी इस देवभूमि मे देवदूत के रूप मे थे । इनकी इंसानियत, पराक्रम, लगन और साहस ने इनका कद हिमालय से भी ऊंचा कर दिया है ।
    केदारनाथ धाम मे जो बादल फटे वो पानी के नहीं, कहर और मुशीबतो के बादल थे। जिसके साथ दुखों के पहाड़ भी टूट टूट कर गिर रहे थे। नदियां ऐसे उफन पड़ी जैसे अपना आक्रोश व्यक्त करने के लिए, मानो प्रकृति अपने खिलाफ किए गए मानवीय अन्याय और शोषण का भरपूर बदला लेना चाह रही थी । जीवन मे एक एक पैसा जोड़ कर जुटाये गए गृहस्थी के सामान जल-प्रवाह मे बह गए और अटूट मेहनत से बनाए  भवन ताश के पत्तों की तरह ढह गए । हर ओर मौत और विनाश का भयंकर तांडव हुआ । तबाही के इस मंजर मे जो भी सैलाव के सामने पड़ा नष्ट हो गया । इनमे स्थानीय लोग और दूसरे प्रदेशों से आए श्रद्धालु दोनों थे । लाशों के ढेर मे दबे रहकर जब कोई जिंदा बच गया तो उसे अपनी ज़िंदगी पर विश्वास ही नहीं हुआ। शायद इसे ही कहते है ज़िंदगी और मौत के बीच का बहुत छोटा फासला । जो बचे थे या जो बच सकते थे उन्हे बचा लिया गया है और इसीके साथ बचाव अभियान समाप्त कर दिया गया है । मृतको के बारे मे एक अधिकारी का बयान “ जहां जिंदा लोगों की गिनती नही वहाँ लाशों की गिनती कौन करेगा ” सत्य किन्तु हैरान करने वाला था । बहुत लाशों का सामूहिक दाह संस्कार कर दिया गया है लेकिन दुर्भाग्य से अभी भी बहुत ऐसे है जिनकी लाशे निकाली नही जा सकी है क्योंकि ये मलबे के ढेर मे दबी है और मलबा हटाने के लिए वैज्ञानिकों से परामर्श किया जाएगा । लेकिन आज भी हजारो लोग अपनों के आने का इंतजार कर रहे है। बहुत सी माँए जिनके बेटे केदारनाथ धाम  रोजी रोटी या  अपनी पढ़ायी के लिए कमाई करने गए थे, उनके वापस आने का इंतजार कर रही है। बहुत सी पत्नियाँ अपने पतियों का, बच्चे अपने माता पिता या भाई बहिनों का इंतजार कर रहे हैं । बहुत से लोग तशवीरें हाथ मे लिए देहरादून, हरिद्वार या ऋषिकेश मे घूम घूम कर अपनों को ढूड रहे हैं और इस बात का जबाब भी कि ऐसे कैसे इस आपदा को यों ही गुजर जाने दिया गया ? पता नहीं उनका इंतजार कब खत्म होगा ? होगा भी या नहीं।
    इस आपदा मे एक काम बहुत अच्छी तरह से हुआ और वह है राजनैतिक रोटियाँ सेंकने का । कई दलों ने राहत सामिग्री से भरे ट्रकों को झंडी दिखा कर रवाना किया जैसे ये आपदा मे नही बल्कि देशाटन के लिए जा रहें हों । ऐसे कई ट्रक डीजल न होने से कई दिन रास्ते  मे ही खड़े रहे और कई ट्रको की खाद्य समिग्री तो पहुँचते पहुँचते खराब हो गई थी ।  काफी समिग्री बांटने मे हुयी देरी के कारण पड़े पड़े खराब हो गई थी। भला हो स्वयं सेवी संगठनों का जिन्होने सबसे पहले जो कुछ भी उनसे हो सका पहुंचाया। गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी भी प्रभावित इलाको के दौरे पर पहुंचे। उनके हेलेकोप्टर को प्रभावित इलाकों मे  उतरने नही दिया गया तो उन्होने हवाई सर्वेक्षण ही किया । मोदी जाएँ और चर्चा न हो, सियासत न हो, हो ही नही सकता । 18 हजार गुजरातियों को बचाने की मीडिया मे खबर आने के बाद तो तूफान खड़ा हो गया । उन्हे तरह तरह की उपाधियों से विभूषित किया गया । लेकिन इसका प्रभाव ये हुआ कि लगभग हर बड़े दल के नेताओं ने हवाई सर्वेक्षण किए और हर दल मे अपने अपने प्रदेश के लोगो के ले जाने की होड लग गई । हरिद्वार और देहरादून मे बसो की भीड़ हो गई । चूंकि मोदी ने चार्टड हवाई जहाज से भी देहरादून से अहमदाबाद तक ले जाने की अपने प्रदेश के प्रभावितों के लिए व्यवस्था की थी, कई दल इस अभियान मे कूद पड़े और अपने अपने प्रदेश वासियो के लिए हवाई जहाज की व्यवस्था कर ली । कई दलों के शीर्ष नेता देहरादून हवाई अड्डे पर यात्रियों को  अपने अपने जहाज मे बैठाने के लिए झगड़ते देखे गए जैसा कि आमतौर पर टैंपो चालको के बीच सवारिया भरने को लेकर होता है । कई सियासी दल आपसी वाक्युद्ध मे इतना उलझे कि सभी समाचार पत्रो और टीवी पर छा गए और जो समय और जगह  आपदा प्रबंधन पर विश्लेषण के लिए उपयोग होता, सूचनाए देने के लिए स्तेमाल होता, बलात छिन गया। इससे बचाव अभियान प्रभावित नही हुआ होगा, नही माना जा सकता । बहुत से लोग इस बात का जबाब भी ढूड रहे है कि  राजनीति का निम्नतम स्तर क्या हो सकता है ?
प्रकृति की इस महाविनाश लीला के बीच मानवीय समवेदनाओं की कसौटी पर एक और कृत्य इंसानियत को कलंकित कर गया। खबर है कि कुछ लोगो ने अस्सीम संकट की इस घड़ी मे घायलो को लूटा । महिलाओ से  अभद्रता की, उनके गहने जेवर लूट लिए और उनकी इज्जत पर हमला किया। कुछ घायल जिन्हे सहायता की सख्त जरूरत थी, इस छीना झपटी मे बच नही सके । लाशो से अंगूठिया और बालिया निकालने के लिए इन दानवीय लुटेरों ने उनके कान और अंगुलियाँ काट ली । ऐसे कई लोगो को सेना के जवानो ने स्वर्ण आभूषणो और बहुत नकदी के साथ पकड़ा। मानवीय मूल्यो की इतनी गिरावट ओफ ! शायद ये अपने अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गयी है, राजनीति से भी नीचे ।
    सही अर्थों मे राहत और बचाव का कार्य अभी खत्म नहीं हुआ है। उजड़े हुए लोगो को बसाना, उन्हे जीविकोपार्जन मे सक्षम बनाना, बहुत चुनौती पूर्ण कार्य है। बहुत से बच्चे अनाथ हो गए है उन्हे पढ़ाना, लिखाना और समाज की मुख्यधारा मे शामिल करना, बहुत बड़ा लक्ष्य है । लेकिन इसे सभी को मिलकर पूरा करना है । केवल सरकारें इस कार्य को पूरा नहीं कर सकती । इसमे सभी के सहयोग की आवश्यकता है । आइये हम सब मिलकर इस कार्य मे सहयोग करें, पुनीत कार्य समझ कर नहीं बल्कि अपनी ज़िम्मेदारी समझ कर ॥****॥    
- शिव प्रकाश मिश्रा  
 

शनिवार, 13 जुलाई 2013

कुत्ते की मौत पर युद्ध


किसी इंसान के मौत पर युद्ध हो सकता है और कुत्ते की मौत पर भी । लेकिन अगर कुत्ते की मौत काल्पनिक हो तो भी युद्ध हो सकता है, ये आप पहले बार देख रहे होंगे । दरअसल नरेंद्र मोदी ने लंदन की एक पत्रिका को दिये इंटरव्यू मे ये कहा की अगर आप गाड़ी मे पीछे बैठे हों और आपकी गाड़ी से कोई कुत्ते का पिल्ला कुचल जाए तो भी दुख होता है।
    मोदी का इशारा शायद यह है की गैर इरादतन, अनजाने मे बिना उनकी किसी प्रत्यक्ष  गलती के गुजरात दंगों मे मारे गए लोगो की मौत का उन्हे दुख है। कहा तो ये भी जाता है की चीटी के मरने का भी दुख होता है। अच्छा होता की इस तरह के उदाहरण से वे बचते। तब शायद उनके विरोधी इंटरव्यू की किसी और बात का बतंगड़ बना देते जैसा की उनके हिन्दू राष्ट्रवाद के बयान को लेकर मचाया जा रहा है। मुझे लगता है की उनके फालोवेर्स मे विरोधी दल के भी काफी नेता है जो उनकी हर बात और हर गतिविधि  को बड़े ध्यान से देखते है और अपने दल के अनुकूल तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते है । इसमे उनके वोट  बैंक का तुष्टीकरण सदैव छिपा रहता है। इसका सीधा लाभ भारतीय जनता पार्टी को ये हो रहा है कि मोदी की हर बात मीडिया मे बड़े ज़ोर शोर से छा जाती है और विरोधी नेताओं की कुंठा इस तरह सामने आती है कि उनकी बौद्धिकता और स्वभावगत असलियत जनता के सामने आ जाती है । लेकिन इससे दो समुदायों के बीच की खाई और चौड़ी होती जा रही है । शायद यही ये नेता चाहते हैं क्योकि इससे वोट बैंक का ध्रुवीकरण होगा और एक समुदाय विशेष के वोट थोक मे उसे मिलेंगे। अगर मोदी चाहें भी तो सीधे अफसोस भी जाहिर नहीं कर सकते क्योकि तब तथाकथित धर्म निरपेक्ष दल इसे उनकी दंगों की स्वीकारोक्ति के रूप मे प्रचारित करेंगे ।
मुस्लिम समुदाय को भी ये सोचना होगा कि उनका हित कहाँ और कैसे होगा और उन दल और नेताओं से दूर रहना होगा जो उन्हे सिर्फ वोट बैंक बनाए रखना चाहते हैं ।       
 
शिव प्रकाश मिश्रा 
 
      

शुक्रवार, 5 जुलाई 2013

सूचना एवं संचार तकनीकी के जरिए ग्रामीण सशक्तिकरण एवं वित्तीय समावेशन




(श्री एस पी मिश्रा द्वारा इंस्टीट्यूशन ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड टेलीकामनीकेशन इंजीनियर्स द्वारा आयोजित राष्ट्रीय  संगोष्ठी मे दिये गए भाषण का हिन्दी रूपान्तर अंग्रेजी की मूल प्रति  http://lucknowcentral.blogspot.in पर उपलब्ध)

शुरू में मैं आयोजकों को इस राष्ट्रीय संगोष्ठी मे मुझे आमंत्रित करने हेतु धन्यवाद देना चाहूंगा ।  मैंने  बैंकिंग डोमेन से "वित्तीय समावेशन"  विषय का चयन किया है जिसकी सफलता मुख्य रूप से सूचना एवं संचार तकनीकी पर निर्भर है.  मेरा स्पष्ट मत है कि वित्तीय समावेशन का डिजिटल  समावेशन से सीधा समानुपातिक रिश्ता है ।


वित्तीय समावेशन

वित्तीय समावेशन समाज के अल्प आय वर्ग के वर्गों के लिए सस्ती कीमत पर बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाओं का  वितरण है.
 वित्तीय समावेशन क्यों ?
 
सार्वजनिक वस्तुओं और सेवाओं की निर्बाध  उबलब्धता  खुले  और कुशल समाज की एक अनिवार्य शर्त     है.चूंकि बैंकिंग सेवाएं सार्वजनिक वस्तुओं और जीवन की अनिवार्य आवश्यकता की प्रकृति में होती हैं बिना किसी भेदभाव के पूरी आबादी को बैंकिंग और भुगतान सेवाओं की उपलब्धता इस सार्वजनिक नीति    का मुख्य उद्देश्य है.

यह राष्ट्र की मुख्य धारा में समाज के अंतिम व्यक्ति को लाने में मदद करेगी .

लगातार 9% (लगभग) सकल घरेलू उत्पाद की विकास दर को बनाए रखने के औपचारिक वित्तीय प्रणाली में बैंकिंग रहित  और बैंकिंग जनसंख्या के नीचे के एक बड़े वर्ग के  आत्मसात की आवश्यकता है.

अब तक बैंकों तक न आने वाली  बचत प्राप्त करना, परिसंपत्ति निर्माण करना  और क्रेडिट प्रावधान के माध्यम से उत्पादक क्षमता बढ़ाना
 
वित्तीय समावेशन 'समावेशी विकास' के लिए एक पूर्व अपेक्षित शर्त है, ये प्रमुख सरकारी एजेंडा है ।

क्यों वित्तीय बहिष्कार हुआ?

बैंकिंग कवरेज से आज भी आबादी का एक बड़ा हिस्सा वंचित है विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में शाखा नेटवर्क की अपर्याप्तता के कारण
 
31.03.2012 के अनुसार भारत में सभी बैंकों के शाखा नेटवर्क निम्नवत है । 


सभी वाणिज्यिक  बैंक
173
जिनमे अनुसूचित बैंक  *
169
*ग्रामीण बैंक
82
गैर अनुसूचित बैंक
4
 
बैंक की शाखाओं का नेटवर्क (31.03.212)
 

यह देखा जा सकता है कि ग्रामीण क्षेत्रों में 70% आबादी के लिए, शाखाओं की हिस्सेदारी केवल 37% है।  देश में 6 लाख गांवों में से केवल  5% गांवो मे बैंक शाखा है और 296 देश में बैंकिंग जिलों के तहत कर रहे हैं.
कौन बाहर रखा गया है ?

       सीमांत किसान
       भूमिहीन किसान / मजदूर
       मौखिक पट्टेदार
       स्वरोजगारी
       शहरी स्लम डेवलपर्स
       प्रवासी
       सामाजिक बहिष्कृत समूह
       वरिष्ठ नागरिक
       महिलाएँ
       और लगभग सभी गरीब ग्रामीण

वित्तीय बहिष्कार के परिणाम
परिणाम सेवाओं की प्रकृति और अन उपलब्धता की सीमा के आधार पर भिन्न हो सकते हैं. यह छोटे व्यवसाय के उपयोग की कमी की वजह बन सकता है, यात्रा मे वृद्धि , अपराध की घटनाओं मे वृद्धि , सामान्य निवेश में गिरावट, ऋण मिलने मे परेशानिया  या अत्यधिक दरों पर अनौपचारिक स्रोतों से ऋण और बेरोजगारी मे वृद्धि आदि भी इसके परिणाम ओ सकते हैं।  छोटे उद्योग धंधो को काफी नुकसान हो सकता है क्यों कि वे  पूंजी के अभाव मे  मध्यम वर्ग और उच्च आय वाले उपभोक्ताओं तक नहीं पहुँच सकेगे । उच्च कैश हैंडलिंग लागत, पैसे के प्रेषण में देरी आदि भी इसका कारण है . मेरी  व्यक्तिगत सोच है कि वित्तीय बहिष्कार, सामाजिक बहिष्कार मे परिणित हो  सकता है.
 
स्वतंत्रता के बाद वित्तीय समावेशन हेतु किए गए उपाय
सहकारी आंदोलन
भारतीय स्टेट बैंक की स्थापना
 बैंकों का  राष्ट्रीयकरण
लीड बैंक योजना
ग्रामीण बैंक
सेवा क्षेत्र दृष्टिकोण
स्वयं सहायता समूह

लेकिन फिर भी हम असफल रहे ! क्यों?
-प्रौद्योगिकी की  अनुपस्थिति
-पहुंच और कवरेज की  अनुपस्थिति
-उपयुक्त डिलिवरी तंत्र की कमी
-एक बिजनेस मॉडल न होना

क्या किया जाना चाहिए?
अधिक से अधिक शाखाएं ग्रामीण क्षेत्रों में खोले जाने की आवश्यकता है. लेकिन यह  बैंक शाखाओं के खुलने मे आपरेशन की उच्च लागत और कम राजस्व की प्राप्ति  के कारण  अनार्थिक और अलाभकारी  है. यह जरूरी है कि ऐसे मॉडल विकसित किए जाएँ जिससे बैंकिंग सुविधाएं न्यूनतम निवेश के साथ सस्ती कीमत पर बैंक रहित  क्षेत्रों में प्रदान की जा सके ।  
लगभग सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक जो वित्तीय समावेशन परियोजना के मुख्य हितधारक हैं वह चूंकि सी बी एस (कोर बैंकिंग सोल्यूशंस) पर हैं, जो कोई भी मॉडल अपनाया जाए, कनेक्टिविटी और प्रौद्योगिकी चुनौती बनी हुई है।

वित्तीय समावेश को संबोधित करने के लिए 3 मॉडल मूल रूप से कर रहे हैं.
(I)              शाखा मॉडल

भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों के अनुसार, बैंकों  को बैंक रहित जिलो मे 5000 से अधिक और अन्य जिलों में 10000  से अधिक जनसंख्या वाले गांवों में सामान्य ईंट और मोर्टार शाखाएं खोलना  आवश्यक हैं. बहुत  अंदरूनी हिस्सों में ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी लीज लाइने  उपलब्ध नहीं हैं और इसलिए वीसेट, कोई और  कम कीमत की प्रभावी मजबूत वैकल्पिक प्रणाली विकसित होने तक,  शाखाएं खोलने के लिए एकमात्र विकल्प है. शुरुआत में राजस्व की तुलना में परिचालन लागत अधिक होती है और इसलिए शाखा विस्तार एक समस्या है।

(2) यूएसबी(अल्ट्रा स्माल ब्रांच )  मॉडल

जहां सामान्य शाखा व्यवहार्य नहीं है, वहाँ  बैंक अत्यंत  लघु शाखाओं को (यूएसबी) खोल सकते हैं। बुनियादी ढांचे के मामले मे वस्तुता ये सामान्य शाखाये हैं  लेकिन  लेनदेन की मात्रा और प्रकार पर कुछ प्रतिबंधों और कार्य दिवसों में कुछ छूट और  इन शाखाओं मे  कर्मचारियों की संख्या के दृष्टि कोण से प्रभावी  लागत को  कम किया जा सकता है ।
 
       (3) व्यापार प्रदाता मॉडल

भारतीय रिजर्व बैंक के व्यवसाय शिक्षक (बिजनेस फेसिल्टेटर ) और व्यापार संवाददाता की नियुक्ति की अनुमति दी है. बीएफ क्षेत्र में भ्रमण  करता है और किसान क्रेडिट कार्ड, जमा आदि, खातों के खोलने के लिए कारोबार यानी आवेदन जुटाने का कम करता है जबकि व्यापार प्रदाता  स्थानीय लोगों को बुनियादी बैंकिंग सेवाएं प्रदान करता है. ये व्यापार प्रदाता  स्वाभाविक रूप से प्रणाली और प्रौद्योगिकी के अनुसार  दो अलग अलग प्रकार के होते हैं पहली  व्यक्ति या एनजीओ की तरह की एक इकाई, दूसरी कारपोरेट, फर्म, एनबीएफसी आदि हो सकते  है.

(1)कॉर्पोरेट व्यापार प्रदाता  
इन व्यापार  प्रदाताओ ने  सेवा और निपटान के लिए बैंकों के साथ टाई अप किया है. वे उप बीसी की नियुक्ति या उनकी ओर से ग्राहक सेवा केंद्र  (कस्टमर सर्विस सेंटर  या सी एस पी ) बनाते हैं . वे उप बीसी या सीएसपी के कार्य या आचरण के लिए बैंक के प्रति उत्तरदायी हैं। ये  बैंक से  दावा मुआवजा कमीशन प्राप्त करते हैं  और उप बीसी और सीएसपी के साथ  पारिश्रमिक शेयर करते हैं । यह  मॉडल  सामान्य रूप से मोबाइल फोन के उपयोग पर आधारित है और इसलिए लागत बहुत कम आती  है. लेकिन फिर भी ऐसे बहुत गाँव हैं जहां मोबाइल की कनेक्टिविटी भी उपलब्ध नहीं है।
       मोबाइल आधारित मॉडल दो प्रकार के होते हैं ~ कार्ड आधारित और कार्ड रहित

- कार्ड आधारित:
इस मॉडल के तहत विशेष उद्देश्य से  बनाया गया एक मोबाइल जिसमे  एक कैमरा और जीपीआरएस की सुविधा होती है प्रयोग किया जाता है।  अन्य उपकरणो  मे ब्लूटूथ के माध्यम से मोबाइल फोन के साथ जुड़ा एक बॉयोमीट्रिक डिवाइस और मुद्रण प्राप्तियों के लिए एक पोर्टेबल छोटा  प्रिंटर होता है. खाता खोलने  के लिए आवेदन फार्म भरा जाता है और ग्राहक के अंगूठे का निशान उस पर लगवाया जाता  है. सीएसपी फार्म की तस्वीर खीचता है  और जीपीआरएस के माध्यम से बी सी  के सर्वर मे  भेजता है।  अंत में जाँच के बाद, फार्म की  हार्ड कॉपी सीएसपी द्वारा सम्बद्ध शाखा को सत्यापन के लिए भेजी  जाती  है।  सत्यापन के बाद डेटा, कार्ड जारी करने के लिए भेजा जाता है. कार्ड मिलने के बाद ग्राहक लेनदेन के लिए अपनी सुविधा के अनुसार सीएसपी से संपर्क करता है। कार्ड का डेटा मोबाइल द्वारा पढ़ा जाता है  और उसके बाद ग्राहक द्वारा बायोमेट्रिक डिवाइस के माध्यम से  लेन - देन को प्रमाणित किया जाता है।  एक मुद्रित रसीद उत्पन्न होती है जिसे  ग्राहक को दिया जाता है.

 
                 














कार्ड रहित

-इसमे  बिक्री के प्वाइंट (पीओएस) मशीन तथा स्मार्ट कार्ड की लागत से बचा जाता है और इस  रूप में यह मॉडल लागत के हिसाब से किफ़ायती  है
- पीसी कियोस्क के बुनियादी ढांचे और उंगलियों के निशान लेने वाले  उपकरण की लागत से बचा जा सकता है .
-त्वरित और अद्यतन,  ग्राहक  मोबाइल का उपयोग करते हुए सीएसपी द्वारा  यूएसएसडी आधारित संदेश द्वारा समर्थित, वास्तविक समय लेनदेन.
Ø तीन स्तर की सुरक्षा यानी ग्राहक के मोबाइल नंबर, एक बार प्रयोग करने योग्य पिन किताब और
  ग्राहक खुद के द्वारा बनाई गई PIN में पर्याप्त सुरक्षा

Ø ग्राहक किसी भी स्थान सीमा के बिना किसी भी सीएसपी पर कारोबार कर  सकता है.  ग्राहक  सीएसपी से बातचीत करता है और  संबंधित बैंकिंग लेनदेन  की सुविधा का उपयोग  करता है .

व्यक्तिगत व्यबसाय प्रदाता

इस मॉडल मे कोई व्यक्ति बैंक के साथ अनुबंध करता है इसमे लेनदेन की सुरक्षा सुनिश्चित करने के अलावा कनेक्टिविटी और निपटान के लिए बैंक स्तर पर कुछ तंत्र की आवश्यकता होती है, जैसे एसबीआई ने इस उद्देश्य  के लिए बहुत बढ़िया तंत्र तैयार किया है और  मजबूत प्रणाली विकसित की है । इस हेतु बिशेष  सर्वर लगाया गया है और  URL आधारित पहुँच प्रदान की गई  हैं।  जिसमे  व्यक्तिगत व्यबसाय प्रदाता  के लिए एक आईडी, पासवर्ड  और बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण की आवश्यकता है।  ग्राहक के भी  सभी प्रकार के लेनदेन लिए बॉयोमीट्रिक प्रमाणीकरण की आवश्यकता होती है. व्यबसाय प्रदाता  व्यक्ति पर नकद लेंन  देन पर दैनिक सीमा  के अलावा नकद लेनदेन की  अंतर दिन सीमा भी निर्धारित की जाती है
 
 

"वित्तीय समावेशन" में महत्वपूर्ण सफलता कारक क्या हैं?
-शाखा रहित बैंकिंग मॉडल के उपयोग के माध्यम से बैंको की लागत मे कमी ।
-अंतिम छोर तक  कनेक्टिविटी प्रदान करने के लिए सही सक्षम सूचना और संचार प्रौद्योगिकी का चुनाव  
 -व्यबस्था से आर्थिक लाभ
-वित्तीय समावेशन के सभी 4 स्तम्भ  यथा बचत, ऋण, मुद्रा प्रेषण और माइक्रो इंश्योरेंस, माइक्रो एसआईपी एवं  माइक्रो पेंशन:

राष्ट्रीय प्रतिबद्धता
सार्वभौमिक वित्तीय समावेशन की दिशा कदम उठाना  एक राष्ट्रीय प्रतिबद्धता के साथ ही हमारे देश के लिए एक सार्वजनिक नीति की प्राथमिकता है सभी छ: लाख  गांवों को बैंकिंग सेवाओं तक पहुंचाने  के परम लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, वित्तीय समावेशन  बैंकों के लिए एक व्यवहार्य लाभप्रद व्यवसाय प्रस्ताव बनाया जाना  है. यह हो सके इसके लिए  डिलीवरी मॉडल इतनी  सावधानी से तैयार किया जाना चाहिए कि  यह एक  लागत केंद्रित मॉडल से राजस्व उत्पन्न करने वाले मॉडल मे परिवर्तित हो सके  यह ग्राहको को उनके दरवाजे पर गुणवत्ता बैंकिंग सेवाये उपलब्ध करने  के साथ  बैंकों के लिए  व्यापार के अवसर उत्पन्न करने में मदद करे
 
यह तभी स्थायी हो सकेगी जब  बैंकिंग सेवाओं के वितरण मे कम से कम, निम्नलिखित चार उत्पाद शामिल हों
एक बचत व ओवरड्राफ्ट खाता
एक प्रेषण उत्पाद, इलेक्ट्रॉनिक लाभ हस्तांतरण (EBT) और अन्य प्रेषण के लिए
एक शुद्ध बचत उत्पाद, आदर्शता  एक आवर्ती जमा योजना
उद्यमी क्रेडिट ~एक किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) या एक सामान्य क्रेडिट कार्ड (जीसीसी) के रूप में

डिजिटल समावेशन और वित्तीय समावेशन साथ साथ चलना चाहिए
ब्रॉडबैंड 21 वीं सदी के लिए ऊर्जा  है. जमीनी स्तर पर नवीन आविष्कारों के लिए यदि बैंडविड्थ दिया जाता है, तो वे  लाखों अभिनव खोजे  लागू करने के लिए तैयार हैं. ग्रामीण भारत मे  मुख्य रूप से आवाज संचार के लिए मोबाइल टेलीफोनी की काफी अच्छा कवरेज है, वहीं इंटरनेट / ब्रॉडबैंड सेवाओं के  प्रभाव अभी आने बाकी हैं  3 जी / 4 जी निर्णायक  हो सकते है यदि इनकी कीमत अनुकूल हो क्योकि ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में बड़ी आबादी में  इंटरनेट तक पहुँचने की इच्छा है और उनमें से कुछ  सार्वजनिक कियोस्क / साझा प्रणाली के माध्यम से इसका उपयोग भी कर रहे हैं। तथापि  ग्रामीण भारत, अभी भी सस्ती कीमत पर गहन इंटरनेट प्रवेश के लिए इंतजार कर रहा है।  इस पृष्ठ भूमि मे  सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (आईसीटी) को  ग्रामीण भारत में सामाजिक - आर्थिक विकास मे उत्प्रेरक  की भूमिका निभाना है  जहां अभी तक  स्वास्थ्य शिक्षा और वित्तीय सेवाओं में बुनियादी सुविधाओं का अभाव है।
 
निष्कर्ष

मोबाइल टेलीफोनी के तेज विकास ने ग्रामीण भारत मे संपर्क बढ़ाया है और इसने  ग्रामीण भारत के सामाजिक - आर्थिक मुख्यधारा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।  फिर भी  तेज ब्रॉडबैंड के माध्यम से इंटरनेट की  गहन पैठ ही केवल समग्र विकास सुनिश्चित करेगी  जो सस्ती कीमत पर डिजिटल और वित्तीय समावेशन के लिए आवश्यक है. ज्यादातर लोगों की गलत धारणा के विपरीत ग्रामीण भारत मे विशाल अप्रयुक्त क्षमता है . वित्तीय समावेश और डिजिटल समावेशन इस  तरह से समान है कि एक मे उपयोग और दूसरे मे जागरूकता शामिल है । वित्तीय समावेशन बहुत महत्वपूर्ण है, यह एक वैश्विक मुद्दा है, और दोनो पर जोर विभिन्न देशो मे  भिन्न होता है. बड़े पैमाने पर बुनियादी सुविधाओं के साथ विकसित देशों के लिए, वित्तीय उत्पादों / सेवाओं के लिए उपयोग चिंता की बात नहीं है. उनके लिए यह एक वित्तीय साक्षरता का मुद्दा  अधिक है. भारत जैसे विकासशील देशों में  देश बुनियादी ढांचा   एक बडी  चुनौती है . देश की जनसंख्या इंगित करती है कि  ग्रामीण जनसंख्या मे 50 प्रतिशत आबादी 25 वर्ष से कम लोगो की है इसलिए  बढ़ रही साक्षरता दर के सा ब्रॉडबैंड और प्रौद्योगिकी आधारित उत्पादों की  मांग में निरंतर तेजी आती रहेगी ।  
 मुझे यकीन है कि दूरसंचार की संपर्क क्रांति वित्तीय समावेशन सहित  समग्र ग्रामीण विकास में परिवर्तित होगी लेकिन डिजिटल समावेशन  ग्रामीण सशक्तिकरण की कुंजी है।

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                                                शिव प्रकाश मिश्रा
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