सनातन शंखनाद
ॐ नमो हिन्दु देशाय, नमो भारत संस्कृते। नमो धर्माय देवाय, मानवीय हितकारिणे ।।
मंगलवार, 5 अगस्त 2025
सोमवार, 4 अगस्त 2025
आखिर कौन है मालेगांव बम विस्फोट का दोषी?
कांग्रेस के भगवा आतंकवाद का कारण केवल मुस्लिम-तुष्टिकरण है, या हिन्दुओं के प्रति उनकी बेइंतिहा घृणा || राहुल गाँधी हिन्दू, हिंदुत्व और सनातन धर्म से इतनी नफरत क्यों करते हैं? || आखिर कौन है मालेगांव बम विस्फोट का दोषी?
मालेगांव बम विस्फोट के सभी आरोपियों को न्यायालय ने दोष मुक्त घोषित कर दिया है. 29 सितंबर 2008 को महाराष्ट्र के मालेगांव में हुए बम विस्फोट में 6 लोगों की मृत्यु हो गई थी और लगभग 95 लोग घायल हो गए थे. यह विस्फोट रमजान के महीने में नवरात्र की पूर्व संध्या पर हुआ था, इसलिए यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं था कि इसका उद्देश्य सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ना था। महाराष्ट्र की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने मुस्लिम तुष्टिकरण को ध्यान में रखते हुए जांच एटीएस को सौंप कर इस्लामी आतंकवाद के समानांतर भगवा आतंकवाद की थ्योरी गढ़ी। साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर, कर्नल प्रसाद पुरोहित, रिटायर्ड मेजर रमेश उपाध्याय, अजय राहिरकर, सुधाकर द्विवेदी उर्फ स्वामीअमृतानंद देव तीर्थ, सुधाकर चतुर्वेदी, समीर कुलकर्णी को गिरफ्तार करके पुलिस द्वारा भयानक यातनाएं दी गई ताकि वह कांग्रेस सरकार के मनमाफिक हिंदू आतंकवाद की थ्योरी को सही साबित कर दें। गिरफ्तार लोगों की सूची देखें तो इनमें संत, हिंदू संगठन के नेता और सेना में कार्यरत अधिकारी शामिल थे। कांग्रेस हिंदुओं के साथ-साथ भारतीय सेना को भी लांछित करके संदेह के घेरे में खड़ा करना चाहती थी लेकिन न्यायालय के फैसले ने भगवा आतंकवाद की कांग्रेस प्रायोजित थ्योरी को ध्वस्त कर दिया।
न्यायालय फैसला मामले के मनगढ़ंत होने की पुष्टि करता है। लेफ्टिनेंट कर्नल पुरोहित के आवास पर विस्फोटकों के भंडारण या संयोजन का कोई भी सबूत नहीं है, फिर भी उनको आरोपी बनाया गया। अभिनव भारत संगठन की कथित भूमिका का भी कोई साक्ष्य नहीं है. यह हैरान करने वाला है कि पुलिस की जांच टीम ने पंचनामा तक ठीक से नहीं किया और घटनास्थल का विवरण भी दर्ज नहीं किया।17 वर्षों बाद आये इस फैसले से न केवल सभी सातों आरोपी साक्ष्यों के अभाव में बरी हुए बल्कि महाराष्ट्र एटीएस भी कटघरे में खडी हो गयी. न्यायलय के अनुसार आरोपियों को जानबूझकर फसाया गया था. कर्नल पुरोहित और साध्वी प्रज्ञा लगभग 9 वर्षों तक जेल में रहे। उन्हें अमानवीय यात्राएं दी गई. कर्नल पुरोहित के नाखून निकाले गए और बाल नोच नोच कर निकाले गए. बिजली का करंट लगाया गया। साध्वी प्रज्ञा को पुरुष पुलिस कर्मियों ने यातनाएं दी, अश्लील गालियां देते हुए पिटाई की और दुष्कर्म करने की धमकी दी। इन दोनों पर योगी आदित्यनाथ सहित भाजप और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पदाधिकारियो के नाम लेने का दबाव बनाया गया लेकिन राष्ट्रवाद से ओतप्रोत इन लोगों ने किसी भी व्यक्ति का नाम नहीं लिया. 2020 में अर्णव गोस्वामी को दिए एक इंटरव्यू में साध्वी प्रज्ञा सिंह ने अपने ऊपर हुई ज्यादतियों का विस्तार से वर्णन किया था, जिसे सुनकर लोगों के आंसू निकल आए थे। कांग्रेस को बहुत नागवार लगा और कांग्रेस समर्थित उद्धव सरकार ने झूठे आरोपों में अर्नब गोस्वामी को गिरफ्तार कर आतंकवादियों की तरह व्यवहार किया।
महाराष्ट्र एटीएस के एक सेवानिवृत्त अधिकारी महबूब मुजावर ने खुलासा किया है कि एटीएस के मुखिया और बाद में मुंबई के पुलिस आयुक्त बनाये गए परमवीर सिंह ने उस समय उन्हें आदेश दिया था कि वह राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत को गिरफ्तार कर लायें. इसके लिए बहुत दबाव बनाया गया, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था। इस कारण झूठे आरोप में उन्हें गिरफ्तार कर निलंबित कर दिया गया. गैरकानूनी आदेशों का पालन न करने और झूठी कहानी बनाकर आरएसएस प्रमुख को गिरफ्तार न करने के कारण उनका पूरा कैरिअर बर्बाद कर दिया गया। इस रहस्योद्घाटन की सत्यता और गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि यह अधिकारी मुसलमान हैं.
पुलिस की पूरी कार्रवाई से स्पष्ट है कि तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने संविधान को ताक पर रखकर सत्ता का दुरुपयोग करते हुए, योजना बद्ध तरीके से भगवा आतंकवाद का झूठा सिद्धांत प्रतिपादित करने की कोशिश की. यही नहीं मालेगांव बम विस्फोट को समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट से जोड़ने की कोशिश की जिसका उद्देश्य मुस्लिम तुष्टिकरण को मजबूत करने के साथ पाकिस्तान को भी खुश करना था क्योंकि समझौता एक्सप्रेस में जिन लोगों की मृत्यु हुई थी वे सभी मुहाजिर थे. अगर इस बात का खुलासा होता कि समझौता एक्सप्रेस में बम धमाका करने वाले आतंकवादी पाकिस्तानी मुस्लिम थे तो पाकिस्तान में दंगों की स्थिति बन जाती और कम से कम कराची में हालात बेकाबू हो जाते. समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट अंतर्राष्ट्रीय मामला बना, ऐसे में मालेगांव बम विस्फोट में हिंदुओं को आरोपित बनाकर उन्हें समझौता एक्सप्रेस मामले से जोड़ना अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदू आतंकवाद को प्रचारित करना कांग्रेस का अभीष्ट उद्देश्य था. राहुल गांधी ने अमेरिकी प्रशासन से यह कहा भी था कि भारत में सिमी से भी अधिक खतरनाक हिंदू आतंकवाद है.
इसे कांग्रेस की मुस्लिम तुष्टिकरण कहें या हिंदुओं के प्रति उनकी घृणा, जिसके कारण वह आतंकवादी घटनाओं में हिंदूवादी नेताओं और संगठनों को फंसाना चाहती थी। इसके पहले भी मालेगांव में 2006 में एक मस्जिद में विस्फोट हुआ था जिसमें 45 लोगों की मृत्यु हो गई थी और 100 से अधिक लोग घायल हुए थे। कांग्रेस सरकार ने इस विस्फोट के लिए बजरंग दल को जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की लेकिन लश्कर-ए-तैयबा नामक एक संगठन ने स्वयं इसकी जिम्मेदारी स्वीकार की और कांग्रेस की योजना पर पानी फिर गया। अहमदाबाद में खुफिया विभाग की सूचना पर एटीएस के साथ मुठभेड़ में इशरत जहां और उसके तीन आतंकी साथी मारे गए थे । केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मुस्लिम संगठनों द्वारा सीबीआई जांच करवाने की मांग को खुफिया रिपोर्ट के आधार पर खारिज कर दिया था. बाद में केंद्रीय गृहमंत्री पी चिदंबरम के निर्देश पर हालकनामा बदल दिया गया और सीबीआई जांच का आदेश भी दे दिया गया क्योंकि कांग्रेस गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस मामले में फंसाना चाहती थी। अजमेर शरीफ में हुए बम विस्फोट के मामले में कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत को भी फसाने की पूरी तैयारी कर ली थी। धमाके के आरोपियों का मजिस्ट्रेट के सामने बयान दर्ज हो गया था, जिसमें उन्होंने स्वीकार किया था कि धमाके की योजना बनाने के लिए हुई बैठक में मोहन भागवत और इंद्रेश कुमार शामिल थे। 2007 को समझौता एक्सप्रैस ब्लास्ट के मामले में दो पाकिस्तानी आतंकी पकड़े गए थे, इनमें से एक ने अपना अपराध स्वीकार भी कर लिया था लेकिन पुलिस ने सिर्फ 14 दिन में जांच पूरी करके अदालत से उसे बरी करने की अपील की और उसे छोड़ दिया गया। एक बड़ी राजनीतिक साजिश के अंतर्गत स्वामी असीमा नन्द को गिरफ्तार कर लिया गया. इस सबका उद्देश्य हिन्दू आतंकवाद को स्थापित करके इस्लामिक आतंकवाद को राहत प्रदान करना था.
मालेगांव घटना के बाद कांग्रेसी खुलकर हिंदू आतंकवाद का आरोप लगाने लगे थे। राहुल गांधी के निर्देश पर मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हिंदू आतंकवाद पर अनर्गल प्रलाप करते रहे हैं। 26 नवंबर 2008 में मुंबई पर पाकिस्तानी आतंकियों के हमले में 170 से अधिक लोगों की घटना स्थल पर ही मौत हो गई थी और 1000 से अधिक लोग घायल हो गए थे। इस हमले को हिंदू आतंकवाद के रूप में दिखाए जाने की योजना बनाई गई थी. इसे महज संयोग नहीं कहा जा सकता कि साध्वी प्रज्ञा की गिरफ्तारी के एक महीने के भीतर 26 नवंबर को मुंबई में आतंकी हमला करने पाकिस्तान से आए लश्कर-ए-तैयबा के 10 आतंकियों ने हाथ पर कलावा बंधा रखा था। यदि आतंकी अजमल कसाब जिंदा नहीं पकड़ा जाता तो इस हमले को भी हिंदू आतंकवाद की कहानी से जोड़ दिए जाने की पूरी योजना कांग्रेस ने बना रखी थी. कसाब के गिरफ्तार होने और पाकिस्तानी साबित हो जाने के बाद भी मुम्बई हमले के पीछे आरएसएस और इजरायल खुफिया एजेंसी की साजिश होने की बात फैलाई गयी. इस पर एक किताब भी लिखी गई, जिसका विमोचन कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने किया ।
मुम्बई हमले के समय दिग्विजय सिंह ने कहा था कि शहीद होने के ठीक पहले महाराष्ट्र एटीएस चीफ हेमंत करकरे ने उन्हें फोन कर बताया था कि इस घटना का संबंध भी हिंदू आतंकवाद से है। पी चिदंबरम जो उस समय गृहमंत्री थे ने सदन में भी हिंदू आतंकवाद शब्द का इस्तेमाल किया था। उनके बाद गृहमंत्री बने सुशील कुमार शिंदे ने तो यहाँ तक कहा था कि भाजपा और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ हिन्दू आतंकवादियों के ट्रेनिंग कैंप चलाते हैं। इस तरह पाक प्रयोजित आतंकवाद को बेहद हल्का कर दिया था।
महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण,जो लंबे समय तक केंद्र में मंत्री भी रह चूके हैं, ने मालेगांव फैसला आने के बाद कहा कि लोग इसे भगवा आतंकवाद ना कहें, इसे हिंदू आतंकवाद या सनातन आतंकवाद कहना ज्यादा उचित होगा। हिन्दू आतंकवाद पर बढ़ चढ़कर हिस्सा लेने वाले राहुल गाँधी ने मालेगांव फैसला आने के बाद इस पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया और कहा कि इस समय देश के सामने और भी महत्वपूर्ण विषय है, लेकिन उनके निर्देश पर पार्टी के प्रवक्ता ऊल जलूल बयान देकर हिंदू समुदाय के घावों पर नमक छिड़क रहे हैं।
न्यायलय का फैसला आने के बाद महाराष्ट्र सरकार और केंद्र सरकार को चाहिए वे सभी जो भगवा आतंक बनाने के षड़यंत्र में शामिल, पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी जिन्होंने निर्दोष लोगो को फंसाया और फंसाने का षडयंत्र रचा उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही करे. आवश्यकतानुसार जांच एजेंसी का गठन कर सभी मामलो के षड्यंत्र की एकीकृत जांच की जाय और राजनेताओं समेत सभी के विरुद्ध त्वरित कार्यवाही की जाय. आवश्यकता इस बात की भी है कि असली अपराधी कौन हैं और उन्हें क्यों बचाया गया ? दोषियों को सजा अवश्य मिलनी चाहिए.
~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~
मंगलवार, 22 जुलाई 2025
शनिवार, 19 जुलाई 2025
कांवड़ यात्रा पर आतंकी हमला ?
कांवड़ यात्रा पर आतंकी हमला ?
हिंदुओं की इस भूमि पर हिंदुओं का ही जीना दूभर हो जाए और वे अपने पर्व त्यौहार भी श्रद्धा और भक्ति के साथ शांति पूर्वक न मना सकें, इससे बड़ा दुर्भाग्य हिंदुओं का और इस देश का, नहीं हो सकता. हिन्दुओं की कोई भी धार्मिक शोभायात्रा ऐसी ही नहीं होती जिसमें व्यवधान न डाला जाता हो. अगर शोभा यात्रा के रास्ते में कोई मस्जिद पड़ रही हो तो इस बात की संभावना बहुत ज्यादा है कि उसमें व्यवधान डालने की पहले से ही तैयारी कर ली जाती है. कभी कभी डीजे की तेज आवाज, तो कभी किसी अन्य झूठे कारणों से पत्थरबाजी और सांप्रदायिक संघर्ष शुरू कर दिया जाता है. सबसे दुखद स्थिति यह होती है कि सभी राजनैतिक दल मुस्लिम कट्टरपंथियों के साथ मिलकर हिंदुओं को कटघरे में खड़ा कर देते हैं. सनातन धर्म पर लांछन लगाए जाते हैं और मानसिक रूप से हिंदुओं को इतना प्रताड़ित करने की कोशिश की जाती है कि अगली बार से वे इस तरह की शोभा यात्रियों का हिस्सा न बने. पश्चिम बंगाल केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों में तो हिंदू तीज त्योहारों की शोभा यात्रायें सुरक्षित रूप से निकालना असंभव है. पहले तो राज्य सरकारे ही उस पर प्रतिबंध लगा देती हैं और अगर उच्च न्यायालय के आदेश के बाद शोभा यात्राएं निकलती भी है तो उन पर सुनियोजित रूप से हमले किए जाना सामान्य बात हो गई है. इस सब का दूरगामी परिणाम यह हुआ कि चूंकि इन राज्यों में सनातन धर्म को नष्ट करने के जेहादी प्रयासों को सरकारी संरक्षण प्राप्त हो जाता है, इसलिए अधिकांश हिंदू सार्वजनिक रूप से मनाए जाने वाले आयोजनों से विमुख होता जा रहा है. पाकिस्तान और बांग्लादेश के सभी प्रमुख हिंदू मंदिरों को नष्ट कर दिया गया है. पाक अधिकृत कश्मीर की शारदा पीठ पूरी तरह से नष्ट कर दी गई है. जम्मू-कश्मीर में भी स्थिति बहुत अलग नहीं है. साल में एक बार पड़ने वाली अमरनाथ यात्रा तमाम सरकारी प्रयासों के बाद भी डर के माहौल में ही संपन्न होती है. यही हाल वैष्णो देवी यात्रा का भी है. कुछ अंतराल पर कोई न कोई घटना घटती रहती है जो हिंदू तीर्थयात्रियों को मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है और सुरक्षा कारणों से बड़ी संख्या में लोग इन तीर्थयात्रियों में चाहते हुए भी नहीं जाते यद्दपि ये यात्राये मुसलमानों की रोजी रोटी से जुडी हैं.
पिछले कुछ वर्षों से कांवड़यात्रा मुस्लिम कट्टरपंथियों के निशाने पर है. कांवड़ यात्रियों की श्रद्धा-भक्ति में शारीरिक तथा मानसिक स्वच्छता, शुद्ध और सात्विक भोजन, संयमित, नशामुक्त एवं ब्रह्मचर्य पालन का विशेष महत्त्व है. कांवड़ यात्रा मार्ग पर पड़ने वाले कई भोजनालय, ढाबे और खाद्य पदार्थों की दुकानें मुस्लिम समुदाय के लोग छद्म हिन्दू नाम, और देवी देवताओं के नाम से खोलते हैं. अतीत में ऐसी शिकायतें मिलती रही है कि कि छद्म नाम के इन भोजनालयों के भोजन और खाद्य पदार्थों में मल, मूत्र और थूंक मिलाकर कांवड़ियों की श्रद्धा और भक्ति के साथ खिलवाड़ किया जाता है. मुस्लिम तुष्टीकरण में लिप्त सरकारों ने इन शिकायतों पर कभी कोई संज्ञान नहीं लिया जिससे ऐसे हिंदू विरोधी अराजक तत्वों का मनोबल बढ़ता रहा. इस समस्या के समाधान के लिए पिछले वर्ष उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने कांवड़ यात्रा मार्ग में पड़ने वाले दुकानदारों के लिए दिशा निर्देश जारी किए थे जिसके अंतर्गत प्रत्येक दुकानदार को अपना नाम तथा मोबाइल नंबर स्पष्ट रूप से प्रदर्शित किया जाना था लेकिन मुस्लिम कट्टरपंथियों, जो हिंदुओं से व्यापार करके फायदा तो कमाना चाहते हैं लेकिन धोखा जिहाद से धर्म भी भ्रष्ट करना चाहते हैं, को ये रास नहीं आया. इसलिए कट्टरपंथी मुल्लाओं, मौलानाओं के माध्यम से विरोध किया गया, जिससे राजनीतिक दल इनके साथ खड़े हो गए. देश तथा हिन्दू विरोधियों एवं आतंकवादियों के लिए मुफ्त वकालत करने वाले कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कुख्यात वकील सर्वोच्च न्यायालय पहुँच गए और सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने पिछले ट्रैक रिकॉर्ड को बनाए रखते हुए हिंदुओं की श्रद्धा भक्ति और धार्मिकता को नजरंदाज करते हुए उत्तर प्रदेश सरकार के फैसले पर उस समय तक के लिए रोक लगा दी जब तक इस मामले में अंतिम फैसला नहीं आ जाता और अंतिम फ़ैसला ठंडे बस्ते में है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पहचान उजागर करने के लिए विवश नहीं किया जा सकता. इसके कुछ दिन बाद ही मुंबई उच्च न्यायालय ने मुंबई के एक नामी स्कूल द्वारा छात्राओं के हिजाब और बुर्का पहनकर आने पर लगाए गए प्रतिबंध को अनुचित और गैरकानूनी घोषित करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पहचान छिपाने के लिए विवश नहीं किया जा सकता. इसका सीधा मतलब है कि अगर मामला मुस्लिम समुदाय का है तो किसी न किसी तरह न्यायोचित ठहरा कर फैसला मुस्लिम समुदाय के पक्ष में ही जाएगा.
इस बार भी उत्तर प्रदेश सरकार ने लगभग वैसे ही दिशानिर्देश जारी किए हैं लेकिन पुलिस या सम्बंधित विभागों द्वारा अभी तक सतर्कता जांच शुरू नहीं की गई है. एक योगाश्रम के स्वामी यशवीर महाराज ने देखा कि दिल्ली देहरादून राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित एक भोजनालय का नाम “पंडित जी वैष्णो भोजनालय” है लेकिन ढाबे पर लगे बारकोड को स्कैन करने से पता चला कि इसका मालिक सनुव्वर नाम का एक मुस्लिम है और उसके कर्मचारी भी मुस्लिम हैं, जिन्होंने अपना आधार कार्ड दिखाने से मना कर दिया. एक मुस्लिम कर्मचारी ने बताया कि उसका नाम तज्ज्मुल है लेकिन ढाबा मालिक ने नाम बदल कर गोपाल रख दिया और उसके हाथ में कड़ा पहना दिया गया था ताकि वह हिन्दू दिखाई पड़े. उसे कलावा भी पहनने को कहा गया था. स्पष्ट है कि एक मुस्लिम द्वारा अपने ढाबे का नाम पंडित जी वैष्णव भोजनालय रखना कांवड़ियों और अन्य हिदुओं को आकर्षित करने का व्यापारिक प्रयास तो है लेकिन यह सीधे तौर पर ग्राहकों के साथ धोखाधड़ी का मामला है, हिन्दुओं की धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाने वाला भी है. ऐसे में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मालिको और कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के निर्देशों की सार्थकता स्वयं सिद्ध हो जाती है और सर्वोच्च न्यायलय के स्थगन आदेश पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है.
धोखाधड़ी का यह मामला सामने आने के बाद मुस्लिम तुष्टीकरण में डूबे राजनीतिक दल हाय तौबा करने लगे. राहुल की कांग्रेस और अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी में प्रतियोगिता हो गई कि हिंदुओं और सनातन धर्म को कौन अधिक लांछित और अपमानित कर सकता है. जहाँ समाजवादी पार्टी के एक मुस्लिम संसद ने स्वामी यशवीर को आतंकवादी बताते हुए उनकी तुलना पहलगाम में धर्म पूंछ कर हत्या करने वाले आतंकवादियों से की, वहीं दिग्विजय सिंह ने कांवड़ यात्राः को मुस्लिम समुदाय को आतंकित और प्रताड़ित करने का जरिया बताया. उत्तर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष ने कांवड़ यात्रा और उप्र सरकार के दिशा निर्देशों को मुस्लिम विरोधी और ध्रुवीकरण का भाजपा का एजेंडा बताया. कांग्रेस और सपा के नेता मीडिया में खुले तौर मुस्लिम समुदाय का पक्ष लेते हुए कुतर्क गढ़ रहे हैं और सनातन धर्म को अपमानित कर रहे हैं. कांवड़ यात्रा 11 जुलाई से शुरू होनी है इसलिए इस बात की भी संभावना है कि यह मामला फिर सर्वोच्च न्यायालय पहुंचेगा और सर्वोच्च न्यायालय एक बार फिर समुदाय विशेष के पक्ष में निर्णय देकर अपनी धर्मनिरपेक्षता और न्यायप्रियता को सर्वश्रेष्ठ ठहराने में पीछे नहीं हटेगा.
राजनैतिक और न्यायिक कुतर्कों के परिपेक्ष में देखा जाए तो मुसलमान हालाल उत्पादों के प्रयोग को धार्मिक अधिकार मानते हैं, चाहे वह मांस हो या अन्य सामान. भारत में मांस से लेकर आटा दाल, चावल, कपड़े, गहने, सौंदर्य प्रसाधन के सामान हलाल मिलने लगे है. अब तो हलाल फ्लैट, विला और मकान भी बनने लगे है. इसका सीधा मतलब भारत में मुस्लिमो के लिए अलग इस्लामिक अर्थव्यवस्था बनाना है. जिसका उद्देश्य छल, कपट, जोर-जबरदस्ती, कानूनी और संवैधानिक जामा पहनाकर हलाल उत्पाद अन्य धार्मिक समुदायों पर थोपना और मुसलमानों को धार्मिक स्वतंत्रता के नाम पर अन्य धार्मिक समुदायों द्वारा बनाये हुए गैर हलाल उत्पादों को खरीदने से रोकना है.
इस तरह की षड्यंत्रकारी नीति का उद्देश्य दूसरे धार्मिक समुदायों को व्यापारिक रूप से बहिष्कृत कर आर्थिक रूप से कमजोर करना है. इससे सबसे अधिक प्रभावित गरीब तबके के लोग होते हैं. कुछ दशक पहले तक भारतीय वर्ण व्यवस्था रोजगार पूरक थी जिसके हर क्षेत्र में विशेषज्ञ थे, लोहार, बढ़ई, मोची, माली, तेली, कुम्हार, कंहार, निषाद, हलवाई, बनिया, काछी (शब्जी वाला), कुंजड़ा (फलवाला), नाई आदि. आज इन सभी क्षेत्रों से मुस्लिम समुदाय ने हिन्दुओं को बाहर कर दिया है. मुस्लिमों ने भारत के इन आधारभूत व्यवसायों पर एकाधिकार कर लिया है. इन कामो से बेदखल होकर हिन्दू अब जाति प्रमाणपत्र लेकर सरकारी नौकरी के लालच में आजीवन बेरोजगार बने रहते हैं. एक मात्र बचे छोटे छोटे ढाबों और भोजनालयों के व्यवसाय पर भी अब मुसलमानों द्वारा कब्जा किया जा रहा है. मुम्बई से अहमदाबाद और दिल्ली से जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग पर हिन्दू देवी दवताओं के नाम से, मुस्लिम समुदाय के लोग ढाबे चला रहे हैं. हरद्वार और ऋषिकेश में अनेक मुस्लिम फर्जी हिन्दू नामों से होटल, ढाबे और पूजा प्रसाद आदि की दुकाने चला रहे हैं. कांवड़ के समय तो मामला केवल सुर्ख़ियों में आता है. अनेक ऐसे मामले सामने आये हैं , जिनके विडियो सोशल मीडिया में उपलब्ध हैं, जिसमें मुस्लिम मल मूत्र और थूंक मिला कर खाद्य पदार्थ हिन्दुओं को बेंचते पाए गए. हिन्दू सहित भला किसी भी अन्य व्यक्ति को ऐसे अशुद्ध और प्रदूषित खाद्य पदार्थ खरीदने के लिए मजबूर कैसे किया जा सकता है.
~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~
गजवा ए हिन्द अब आपके दरवाजे पर
झांगुर बाबा का अनोखा लव जिहाद जहाँ हिन्दू लड़कियों की लगती थी बोली || सभी का इल्म शामिल है गज़वा-ए-हिंद में
झांगुर बाबा उर्फ जलालुद्दीन को उप्र एटीएस द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद कई बड़े खुलासे हो रहे हैं, लेकिन सारांश है, “विदेशों से मिली भारी भरकम धनराशि का उपयोग करके हिंदू युवतियों का धर्मांतरण करना”, जिसका उद्देश्य है भारत को जल्द से जल्द इस्लामिक राष्ट्र बनाना. भारत में रहने वाले अधिकांश मुसलमानों का सपना भी यही है, भले ही कुछ लोग भाईचारा, गंगा जमुनी तहज़ीब और देश के स्वतंत्रता आंदोलन में मुसलमानों की भूमिका का बखान करके अपने अपराध को ढकने का प्रयास करें, जिसके लिए कुख्यात अंतर्राष्ट्रीय जुमले बनाए गए हैं, जिनका उपयोग भारत के अलावा उन सभी देशों में किया जा रहा है जिन्हें निकट भविष्य में इस्लामिक राष्ट्र बनाए जाने की योजना है. इनमे अमेरिका के कुछ राज्यों सहित यूरोप के कई देश शामिल है. इनका उपयोग उन देशों में भी किया गया था जो आज इस्लामिक राष्ट्र हैं. उदाहरण के लिए, “चंद भटके लोगों के कारण पूरी मुस्लिम कौम को बदनाम नहीं किया जाना चाहिए”, “इस्लाम शांति और भाई चारे का संदेश देता है”, “आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता”, “दूसरे धर्मस्थलों को तोड़कर मस्जिद नहीं बनाई जाती”, “जबरन धर्मांतरण की इस्लाम में मनाही है” आदि.
भारत की पवित्र देवभूमि को गज़वा-ए-हिंद के माध्यम से इस्लामिक राष्ट्र बनाने की योजना इस्लाम के उदय होने के ठीक बाद ही बन गई थी. इस कारण भारत पर अनेक इस्लामिक आक्रान्ताओं द्वारा आक्रमण किए गए और सल्तनत भी कायम की गई लेकिन अथक कोशिशों के बाद भी भारत को इस्लामिक राष्ट्र नहीं बनाया जा सका. कुछ हद तक इसका श्रेय अंग्रेजों को भी जाता है, जिन्होंने सभी इस्लामिक शासकों को अपने आधीन कर लिया था. गज़वा ए हिंद की योजना पर पानी फिर जाने के कारण भारत के मुसलमानों ने मुस्लिम देशों, कट्टरपंथियों और जिहादियों के सहयोग से अंग्रेजी शासन में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करके हिंदुओं के विरुद्ध भयानक रक्तपात शुरू कर दिया था और इसका उपयोग जबरन धर्मांतरण के लिए भी किया गया था. गाँधी, नेहरू सहित कांग्रेस के कई नेता देश के लिए अभिशाप बन गए जिन्होंने मुस्लिम तुष्टीकरण के आगे नतमस्तक होते हुए धर्म के आधार पर देश का बंटवारा स्वीकार किया और पाकिस्तान बना कर गज़वा-ए-हिंद की योजना को सफल करने में भरपूर सहयोग किया. देश के विभाजन के बाद सत्ता पर काबिज नेहरू ने मुस्लिम तुष्टिकरण के माध्यम से आजीवन गज़वा-ए-हिंद के लिए ही काम किया. जिसे उनकी पीढ़ियों ने भी, न केवल आगे बढ़ाया, बल्कि देश में ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि आज हर राजनीतिक दल मुस्लिम तुष्टिकरण की कोई भी सीमा लांघने को तैयार हैं. इसी कारण अनेक झांगुर बाबा किसी न किसी भी देश में पूरे देश में सक्रिय हैं.
आसपास के गांवों में साइकिल पर फेरी लगाकर अंगूठी और नग बेचने वाला जलालुद्दीन चार पांच साल के अंदर ही सैकड़ों करोड़ का मालिक बन गया, ये धर्मांतरण में लगे दूसरे मुस्लिमों के लिए अनुकरणीय तो हो सकता है लेकिन इसका यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं लगाया जाना चाहिए कि वह पैसा कमाने के लिए यह सब कर रहा था. सामान्य मुस्लिम की तरह उसके लिए यह धार्मिक दायित्व और जिहाद का कार्य था. वह तब भी यही करता था, जब वह बेहद गरीब था और फेरी लगाता था. उसे अच्छी तरह मालूम है कि सूफी और आलिया का अशिक्षित और अभावग्रस्त लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ता है. भारत में इस्लामिक साम्राज्य बनाने और बड़े पैमाने पर धर्मांतरण करने में सूफियों और औलियाओं की बहुत बड़ी भूमिका रही है. इसलिए वह पीर बाबा बनकर संतान पाने, शराब छुड़ाने, गरीबी दूर करने आदि के लिए दुआएं करके लोगों में इस्लाम के प्रति आकर्षण उत्पन्न करने लगा. भारत में अधिकांश दरगाहें, मदरसे, जलसे, उर्स आदि काफी लंबे समय से धर्मांतरण के लिए उपयोग किए जाते हैं. जलालूद्दीन ने मुंबई की हाजी अली दरगाह से जुड़कर धर्मांतरण के लिए धन उपलब्ध कराने वाले अरब देशों के कट्टरपंथियों और जेहादियों से संपर्क बनाए और भारत में विशेषकर पूर्वी उत्तर प्रदेश में धर्मांतरण के लिए अपना खुद का नेटवर्क तैयार कर लिया. उसकी धन सम्पत्तियों, आलीशान कोठियों, और विलासितापूर्ण जीवन का विस्तार से चर्चा मीडिया में हो रही है, लेकिन यह धर्मान्तरण का उत्प्रेरक है ताकि अशिक्षित और गरीब परिवारों की भोली भाली हिंदू नवयुवतियों को आसानी से आकर्षित करके धर्मांतरित किया जा सके. सिंधी दंपति नीतू और नवीन धर्मांतरित होकर नसरीन और जमालुद्दीन बनकर धर्मांतरण व्यवसाय में लग गए और लगातार दुबई जाकर विदेशी आकाओं से संपर्क बनाते रहे.
नेपाल की सीमा से लगे उत्तर प्रदेश और बिहार के जिले हमेशा से मुस्लिम कट्टरपंथियों और जिहादियों के पसंदीदा स्थान रहे हैं, जहाँ से आतंकवादियों को भी हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाती है. यहाँ अवैध मदरसों, मसजिदों और दरगाहों की भरमार है. आतंकवादी इन स्थानों का प्रयोग न केवल ठहरने के लिए बल्कि पुलिस की पकड़ से बचने के लिए नेपाल भागने के लिए भी करते रहे हैं. इन मदरसों, दरगाहों आदि के लिए बड़ी मात्रा में विदेशों से फंडिंग होती है. प्रदेश में मुस्लिम तुष्टिकरण करने वाले दलों की सरकारों के समय जिहादी यहाँ पूरी निडरता से धर्मांतरण सहित अन्य देश विरोधी कार्य बिना रोक टोक के करते रहे हैं. इन पर अब भी पूरी तरह से रोक नहीं लगाई जा सकी है.
झांगुर बाबा उर्फ जलालूद्दीन के यहाँ मुस्लिम लड़कों को हिंदू नामों से हिंदू लड़कियों को प्रेमजाल में फंसाने का प्रशिक्षण दिया जाता था. निकाह के लिए इन लड़कियों को धर्मांतरण के लिए विवश किया जाता था. हिंदू लड़कियों को प्रेम जाल में फंसाकर धर्मांतरण कराने के लिए लड़कियों के जातिवार रेट इस तरह निश्चित किये थे, ब्राह्मण 15-16 लाख, पिछड़ी जाति 10-12 लाख, दलित 8-10 लाख, जिन्हें मुस्लिम लडको को पुरूस्कार के रूप में दिया जाता था. इससे इस गिरोह के सूत्र भारत के एक कुख्यात मदरसा तथा अरब के बड़े षड्यंत्रकारियों से जुड़े होने की संभावना है, क्योंकि इनका मानना है कि भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने में ब्राह्मण सबसे बड़ी बाधा है. इसलिए लंबे समय से ब्राह्मण इनके निशाने पर हैं. विदेशी फंडिंग के सहारे हिंदुओं में जातिगत विभेद उभारने तथा दलितों एवं पिछड़ों को सवर्ण जातियों, विशेषकर ब्राह्मणों के विरुद्ध खड़ा करने का कार्य किया जा रहा हैं. दलितों और पिछड़ों के प्रमुख नेताओं को बड़े पैमाने पर धन दिया जाता है और उनके माध्यम से जाति - वर्ग संघर्ष उत्पन्न करने की कोशिश की जाती है. पीएफआई से बरामद जिन दस्तावेजों का एनआईए ने खुलासा किया है, उनके अनुसार पिछड़े दलित और मुसलमानों( पीडीए) को संगठित कर गज़वा-ए-हिंद में शामिल करना है. इस्लामिक राष्ट्र बनने के बाद धर्मान्तरित न होने वाले दलितों और पिछड़ों के साथ वही करना है, जो पाकिस्तान और बांग्लादेश में किया गया. इस मामले का खुलासा भी एक दलित युवती द्वारा ही किया गया, जिस पर दलित, पिछड़े और पीडीए सभी मौन हैं.
जिहादी जलालूद्दीन से संबंधित 40 बैंक खातों में 106 करोड़ की विदेशी फंडिंग का पता चला है. हैरान करने वाली बात है कि सभी बैंको में अत्याधुनिक एएमएल-सीएफटी (एंटी मनी लांड्रिंग-कमबैटिंग फाइनैंस टू टेरोरिज्म) प्रणाली लागू होने के बाद भी केंद्र सरकार की एफआईयू (फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट) इसे क्यों नहीं पकड़ सकी. बलरामपुर जिले के एक छोटे से गांव मधुपुर में फेरी लगाने वाला एक गरीब मुसलमान कई एकड़ जमीन पर करोड़ों रुपए लागत की एक कोठी का निर्माण करवाता रहा और स्थानीय अभिसूचना इकाई सोती रही. जिला प्रशासन को इसकी खबर भी नहीं लगी. उसी कोठी में सैंकड़ों हिंदू युवतियों का धर्मांतरण और निकाह किया जाता रहा.
ब्रिटेन के ग्रूमिंग गैंग की तरह उत्तर प्रदेश के फूलपुर जिले में एक नाबालिग दलित युवती को केरल ले जाकर जबरन धर्मांतरण कराने और आतंकी बनाने की कोशिश की गई. प्रयागराज पुलिस की जांच में सामने आया है कि दलित युवती को पड़ोस में रहने वाली मुस्लिम महिला बहला फुसलाकर अपने एक मुस्लिम दोस्त के साथ दिल्ली और उसके बाद केरल ले गई. त्रिशूर में उसका जबरन धर्मांतरण कराया गया और उसके बाद आत्मघाती दस्ते में शामिल करने के लिए ट्रेनिंग दी जाने लगी. उसे अफगानिस्तान भेजा जाना था जहाँ उसे आईएसआईएस खुरासन में शामिल करा कर आतंकवादियों की सेक्स स्लेव बनाया जाना था. किसी तरह लड़की ने अपनी माँ को फ़ोन किया, और फिर उत्तर प्रदेश पुलिस उसे बरामद कर वापस ले आयी. इस मामले की गहनता से जांच की जा रही है.
इस तरह के मामले जहाँ हिंदू परिवारों में उचित संस्कार न दिया जाना रेखांकित करते हैं वहीं प्रखंड हिंदू संगठनों की सक्रिय भूमिका की आवश्यकता पर भी बल देते हैं. हिंदू एकता का अभाव, राजनैतिक स्वार्थ बस जातिगत को बढ़ावा दिया जाना और धर्म से विमुखता भी बहुत बड़ा कारण है. सरकार को धर्मांतरण विरोधी सख्त कानून बनाकर इस समस्या के समाधान के लिए गंभीरता से कार्य करना चाहिए. विश्व में शायद भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहाँ अल्पसंख्यक समुदाय बहुसंख्यक समुदाय का धर्म परिवर्तन कराते हैं अन्यथा पाकिस्तान और बांग्लादेश में हिंदुओं का क्या हुआ सबको मालूम है.
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एनसीईआरटी की पुस्तकों में ही नहीं, इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक
||साप्ताहिक समीक्षा || भारत का बदलता इतिहास || क्यों एक अनपढ़ विदेशी मूल के व्यक्ति को स्वतन्त्र भारत का शिक्षा मंत्री बनाया गया || एनसीईआरटी की पुस्तकों में ही नहीं, इतिहास का पुनर्लेखन आवश्यक
जो देश और सभ्यता अपना इतिहास नहीं संभाल सकती, वह न तो अपना वर्तमान सुव्यवस्थित कर सकती है और न ही अपना भविष्य सुरक्षित कर सकती है. भारत में तो साथ यही होता आया है और यही इस देश की सभी समस्याओं की जड़ है. भारत सरकार ने हाल में एनसीईआरटी की इतिहास की पुस्तकों में मामूली सा बदलाव किया है, जिसके पक्ष-विपक्ष में तर्कों और कुतर्कों के साथ बहस छिड़ गई है.
भारत पर अनेक विदेशी आक्रांताओं के आक्रमण हुए लेकिन सातवीं शताब्दी के बाद इस्लामिक आक्रांताओं ने राष्ट्र की सभ्यता और संस्कृति को नष्ट करने का वीभत्स कार्य जितनी निर्दयता, बहशीपन और अकल्पनीय क्रूरता से किया, वैसा उदाहरण विश्व में कहीं नहीं मिलता. किसी भी राष्ट्र का इससे बड़ा दुर्भाग्य और कुछ नहीं हो सकता, जिसके शासकों ने आक्रांताओं के कुकृत्यों और अत्याचारों को न केवल ढकने का काम किया हो बल्कि उनके भयानक अत्याचारों को महिमा मंडित कर अपनी ही सभ्यता और संस्कृति को कलंकित करने का काम किया हो. भारत में स्वतंत्रता के बाद जब अपने अतीत के गौरवमयी इतिहास को अपनी भावी पीढ़ियों के समक्ष रखकर उन्हें राष्ट्र के पुनर्निर्माण के लिए दृढ़ संकल्पित करने का समय था, बजाय इसके उसे विकृत रूप में प्रस्तुत करके अपने बच्चों तथा युवाओं को अपने जड़ों से विमुख करने का कार्य किया गया. आश्चर्यजनक है कि ऐसा करने वाले कोई और नहीं कथित स्वतंत्रता सेनानी और राष्ट्र शिल्पी के रूप में विभूषित किए जाने वाले लोग हैं, जो ठेके पर भारत को स्वतंत्रता दिलाने वाला राजनैतिक दल से सम्बंधित है.
प्रश्न बहुत स्वाभाविक है कि आखिर मोदी सरकार ने अपने 11 वर्ष के शासन के उपरान्त ये बदलाव क्यों शुरू किये जब उनका बहुमत भी नहीं है, और सरकार चंद्रबाबू नायडू और नीतीश कुमार के समर्थन से बनी है. 11 वर्ष का समय शैक्षणिक, ऐतिहासिक और आर्थिक परिवर्तन के लिए पर्याप्त समय होता है. इतने समय के बाद इन परिवर्तनों की झलक सामाजिक परिवर्तन के रूप में दिखाई पड़ जानी चाहिए थी. दुर्भाग्य से मोदी सरकार ने सत्ता में आने के तुरंत बाद विरूपित और प्रदुषित इतिहास को सुधारने कार्य नहीं किया, जो सनातन संस्कृति को कलंकित कर भावी पीढ़ियों को गौरवमयी अतीत से विमुख करने के लिए बनाया गया था. 2014 में सत्ता में आने के बाद तत्कालीन शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी ने इस दिशा में कार्य शुरू किया लेकिन विपक्ष और विमर्शकारी शक्तियों ने विरोध शुरू किया और सरकार ने न केवल स्मृति ईरानी को ऐसा करने से रोका बल्कि विरोधियो को शांत करने के लिए उनका मंत्रालय भी बदल दिया. इसके बाद बने शिक्षा मंत्रियों प्रकाश जावडे़कर और रमेश पोखरियाल को मंत्री पद गंवाकर राजनैतिक रूप से हाशिए पर भेज दिया गया. हो सकता है कि इसका कारण भी शिक्षा में आवश्यक बदलाव की दिशा में बढ़ने के प्रयास रह हो. वर्तमान शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान प्रधानमंत्री मोदी के करीबी हैं और सरकार तथा भाजपा की रीतिनीति से भली भांति परिचित हैं, इसलिए उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में ऐसा कोई क्रांतिकारी बदलाव किया हो, किसी को पता नहीं है. वह शिक्षा के अलावा अन्य सभी मुद्दों पर खुलकर बात करते हैं. कई बार कुछ न करना, कुछ करने से बेहतर होता है.
सोशल मीडिया की कृपा से जागरूक हुए भारतीय जनमानस को अब यह मालूम है कि जो इतिहास विद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता है, वह इतिहास है ही नहीं. इतिहास के नाम पर भावी पीढि़यों को गुमराह करने के लिए जो इतिहास लिखा गया था उसका उद्देश्य झूठी और काल्पनिक बातों को जोड़कर सांस्कृतिक राष्ट्रवाद समाप्त करना था. स्वतंत्रता के बाद किसी भी राष्ट्र के लिए राष्ट्रीय स्वाभिमान का पुनर्जागरण अत्यंत महत्वपूर्ण होता है और इसके लिए शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन करना आवश्यक होता है ताकि भावी पीढ़ियों को उनके गौरवमयी संस्कृति तथा इतिहास की सच्चाई से परिचित कराया जा सके चाहे कितनी ही कड़वी क्यों न हो. सैकड़ों साल की गुलामी के बाद स्वतंत्र हुए भारत के पहले शिक्षा मंत्री का कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण था. शैक्षणिक क्षेत्र में किये जाने वाले कार्य, राष्ट्र के भविष्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण थे. जवाहर लाल नेहरू ने प्रधानमंत्री बनने के बाद मौलाना अबुल कलाम आजाद को भारत का पहला शिक्षा मंत्री बनाया, जो न तो शिक्षित थे और न ही भारतीय सभ्यता और संस्कृति से परिचित थे. उनका तो जन्म भी भारत में नहीं मक्का में हुआ था. उनका पूरा नाम अबुल कलाम गुलाम मुहियुद्दीन था और उनके पिता मौलवी खैरुद्दीन एक इस्लामी विद्वान थे, जो इस्लाम का प्रचार करने के लिए भारत आकर कोलकाता में बस गए थे। मौलाना आज़ाद ने घर पर ही पारंपरिक इस्लामी शिक्षा प्राप्त की थी. ऐसा व्यक्ति भारतीय शिक्षा मंत्री के रूप में जो कर सकता था, उसने वही किया.
इतिहास लेखन का कार्य ऐसे व्यक्तियों को सौंपा गया जो हिंदू और हिंदुत्व से घृणा करते थे तथा उसे कलंकित और लांछित करने के लिए जाने जाते थे. रोमिला थापर, इरफान हबीब और डीएन झा जैसे हिंदू हिंदुत्व और राष्ट्र विरोधियो को इतिहास लिखने का कार्य सौंप दिया गया. इनमें से तीनों को संस्कृति नहीं आती थी. रोमिला थापर और डीएन झा को संस्कृत के आलावा अरबी फारसी उर्दू का भी ज्ञान नहीं था. हिंदू विरोधी और वामपंथी मानसिकता के इन लोगों ने मिलकर प्राचीन भारतीय इतिहास से लेकर मध्ययुगीन और आधुनिक भारत का इतिहास लिख डाला. ऐसे में जो होना था वही हुआ. आर्यों को भारत पर आक्रमणकारी और बाहरी बताया गया ताकि कोई मुस्लिम आक्रांताओं पर अंगुली न उठा सके. इसके लिए सिंधु घाटी सभ्यता की वास्तविकता को विरूपित करके प्रमाण के रूप में इस्तेमाल किया गया. सिकंदर को महान बताते हुए, “जो जीता वही सिकंदर” का विमर्श बनाते हुए, विजेता भी बना दिया गया. चंद्रशेखर आज़ाद, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव जैसे क्रांतिकारियों को अतिवादी / आतंकवादी बताया गया. छत्रपति शिवाजी महाराज और महाराणा प्रताप जैसे महान राष्ट्र सपूतों को डाकुओं के रूप में प्रस्तुत किया गया लेकिन अकबर को महान बना दिया गया. गजनवी के सोमनाथ पर किये गए आक्रमणों को इस्लामिक जिहाद के बजाय धन दौलत की लूट के लिए साधारण डकैतियां बताया गया. इस्लामिक आक्रांताओं और मुगलों द्वारा किये गए हिंदू नरसंहार को छिपाने का कार्य किया गया.
भारत विश्व का एकमात्र ऐसा देश है जहाँ आक्रान्ताओं द्वारा लगभग 10 करोड़ हिंदुओं का नरसंहार किया गया, जिसका वर्णन पश्चिमी देशों के इतिहास में तो मिलता है लेकिन भारतीय इतिहास में इसकी कोई चर्चा तक नहीं है. इस्लामिक आक्रांताओं ने अनेक महत्वपूर्ण हिंदू, जैन और बौद्ध मंदिरों को नेस्तनाबूद करके उन पर मस्ज़िदों का निर्माण करवाया लेकिन भारतीय इतिहास से यह पूरी तरह गायब हैं. बाबर, अकबर और औरंगजेब सहित सभी मुगल और मुस्लिम शासकों को महिमामंडित करने के लिए उनके द्वारा किए गए अत्याचारों और अमानवीय कृत्यों पर पर्दा डालने का काम किया गया. जोधा बाई जैसे काल्पनिक चरित्रों का निर्माण किया गया और अकबर को महान बना दिया गया. जजिया कर और उसको वसूल करने के अपमानजनक तौर तरीकों को छुपा दिया गया. औरंगजेब जैसे क्रूर और कट्टरपंथी इस्लामिक शासक, जिसने अनेक महत्वपूर्ण हिंदू मंदिरों को करवाकर मस्जिद बनवाई थी, द्वारा कई मंदिरों को दान देना और पुनरुद्धार करना लिखा गया. स्वतंत्रता संग्राम के अनेक महान सपूतों को इतिहास से पूरी तरह गायब कर दिया गया. सनातन धर्म और संस्कृति की रक्षा करने की बात करने वाले सभी महापुरुषों का किसी न किसी रूप में चरित्र हनन किया गया और उन्हें खलनायक के रूप में प्रस्तुत किया गया.
जवाहरलाल नेहरू इस्लाम के विचारधारा के बहुत नजदीक थे और विदेशी आक्रांताओं की तरह सनातन धर्म और संस्कृति को मिटाने पर तुले थे. इसलिए उन्होंने मौलाना अबुल कलाम आज़ाद जैसे इस्लामिक कट्टरपंथी को जीवन पर्यंत शिक्षा मंत्री बनाए रखा और उसके बाद हुमांयू कबीर जैसे व्यक्तियों को शिक्षा मंत्री बनाकर सनातन विरोधी शैक्षणिक वातावरण बनाए रखने का कार्य किया. नूर उल हसन जैसे व्यक्तियों को शिक्षा मंत्री बनाकर कांग्रेस की दूसरी सरकारों ने भी इस परंपरा को बनाए रखा.
मोदी सरकार ने एनसीईआरटी की किताबों में जो परिवर्तन किए हैं वह पेड़ की पत्तियों पर पानी डालने जैसा है. भारतीय इतिहास को सत्य के नजदीक ले जाने के लिए व्यापक परिवर्तन की आवश्यकता है जिसके लिए पूरे इतिहास की समीक्षा और पुनर्लेखन की आवश्यकता है. पूर्ण बहुमत होते हुए पिछले दो कार्यकालों में मोदी सरकार इस दिशा में कार्य करने के लिए साहस नहीं जुटा सकी तो फिर अब बैसाखियों के सहारे टिकी सरकार में छोटे मोटे परिवर्तनों पर प्रश्न तो उठेंगे ही. जो हुआ वह पूरी तरह उचित तो है, लेकिन जो किया गया वह बहुत कम है.
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शनिवार, 28 जून 2025
लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है
संविधान हत्या दिवस || लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है || क्या मोदी सरकार के कार्यकाल में भी अघोषित आपातकाल लगा है
आपातकाल के 50 वर्ष पूरे हो चुके हैं लेकिन लोगों के मन और मस्तिष्क से इस अवधि की भयावह यादें अभी भी मिटी नहीं है. 25 जून 1975 को राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने बिना मंत्रिमंडल की सिफारिश के केवल इंदिरा गाँधी के कहने पर आपातकाल घोषित कर दी थी. संविधान ताक पर रख कर सभी नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. लोकतंत्र समाप्त हो गया था. स्वतंत्र भारत का यह सबसे अलोकतांत्रिक, काला और वीभत्स कालखंड था. कोई भी सभ्य भारतीय कभी भी इसे नहीं भूल सकता और भूलना भी नहीं चाहिए. इसलिए मोदी सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष 25 जून को संविधान हत्या दिवस मनाने का निर्णय लिया गया जो सर्वथा उचित है.
आपात काल की सबसे बड़ी बात यह थी कि यह देश पर आए किसी खतरे का सामना करने के लिए नहीं बल्कि यह इंदिरा गाँधी के अपने व्यक्तिगत स्वार्थ के कारण लगाया गया था. चुनाव स्थगित हो गए थे और सामान्य नागरिक अधिकार समाप्त कर दिए गए थे. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता समाप्त कर दी गई थी और पूरी तरह से सरकार की मनमानी चल रही थी. प्रेस पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगा दिया गया था. इसमें मीसा (आंतरिक सुरक्षा कानून) लागू कर दिया गया था, जिसमें किसी को भी बिना कोई कारण बताए जेल में डाला जा रहा था. जयप्रकाश नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, मोरारजी देसाई जैसे विपक्षी नेताओं को जेलों में बंद कर दिया गया था. इंदिरा गाँधी ने अपने सभी राजनैतिक विरोधियो और विरोध की आशंका वाले लोगो को जेल में ठूंस दिया था.
इंदिरा गाँधी द्वारा देश पर आपातकाल थोपने का असली कारण यह था कि प्रयागराज उच्च न्यायालय ने उन्हें चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया था और उनको छह वर्षों तक चुनाव लड़ने के अयोग्य तथा कोई भी सरकारी पद संभालने पर भी प्रतिबंध लगा दिया था. उच्च न्यायालय के इस आदेश को नकारते हुए उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और 24 जून 1975 को सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालय के आदेश में आंशिक बदलाव करते हुए उन्हें पद पर बने रहने की अनुमति प्रदान कर दी थी. इस पर प्रतिक्रिया देते हुए जयप्रकाश नारायण ने घोषणा कर दी कि जब तक इंदिरा गाँधी इस्तीफा नहीं देंगी रोज़ उनके विरुद्ध पूरे देश में प्रदर्शन आयोजित किये जायेंगे लेकिन अगले ही दिन 26 जून 1975 को उन्होंने देश पर आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी. चुनाव में धांधली का मामला उस चुनाव से संबंधित था जिसमें उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी राजनारायण को पराजित किया था लेकिन राजनारायण ने प्रयागराज उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी कि इंदिरा गाँधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर चुनाव जीता है. चार साल बाद आए इस फैसले ने श्रीमती गाँधी का चुनाव रद्द कर दिया था. इंदिरा गाँधी के समर्थन में पूरी तरह आई कांग्रेस पार्टी ने उनके नेतृत्व को देश के लिए अपरिहार्य बताते हुए आपातकाल का समर्थन किया था.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगा दिया गया था क्योंकि इंदिरा गाँधी का मानना था यह संगठन विपक्षी नेताओं का करीबी है और अपने मजबूत संगठनात्मक आधार के कारण वह सरकार के विरुद्ध विरोध प्रदर्शन कर सकता है. हजारों स्वयंसेवकों को जेल में ठूंस दिया गया था. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जो उस समय आरएसएस के प्रचारक थे, वेश बदलकर संगठन की गतिविधियों लगे रहे थे. पूरा देश सदमे में था. उनकी आवाज उठानेवाला विपक्ष जेल में बंद था और प्रेस पर पूर्ण प्रतिबंध था. डीएमके की सरकार के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम करुणानिधि ने आपातकाल की आलोचना करते हुए इसे तानाशाही की शुरुआत बताया था, इस कारण 31 जनवरी 1976 को उनकी सरकार बर्खास्त कर दी गई. उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया था. तमिलनाडु के वर्तमान मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को भी मद्रास केंद्रीय कारागार में यातनाओं का का सामना करना पड़ा था, यह अलग बात है कि वह आज कांग्रेस के साथ खड़े हैं. सबसे अधिक परेशानियाँ समाज के गरीब और कमजोर तबके को हुई थी जिनकी रोज़ी रोटी भी छिन गई थी और उन पर ज्यादतियां भी की गई थी. संजय गाँधी आपातकाल के शक्ति केंद्र थे और उनके निर्देश पर लाखों पुरुषों की नसबंदी कर दी गई थी. बिना वजह लोगों को जेल में डाल दिया गया था. दिल्ली के तुर्कमान गेट जैसी घटनाएं देश के अन्य भागों में भी खूब हुई थी.
प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने संविधान की हत्या बताते हुए तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा थोपे गए आपातकाल को भारत के लोकतांत्रिक इतिहास का काला अध्याय बताते हुए कहा कि कोई भी भारतीय कभी नहीं भूल सकता कि किस तरह हमारे संविधान की भावना का उल्लंघन किया गया था, संसद की आवाज दबाई गई थी और अदालतों को नियंत्रित करने का प्रयास किया गया था। 42वां संविधान संशोधन उनके काले कारनामों का एक प्रमुख उदाहरण है। लोग जेल में, देश डर में और परिवार सत्ता में, आपातकाल का यही सारांश है. 21 महीने चले आपातकाल में 4 बार संविधान संशोधन किया गया और 48 नए अध्यादेश लाए गए. 30 वें संशोधन में आपातकाल को अदालत में चुनौती देने का अधिकार भी छीन लिया गया था जबकि 42 वें संशोधन में मौलिक अधिकार कमजोर कर दिए गए और न्यायपालिका की शक्ति भी सीमित कर दी गई थी.
आज कांग्रेस के नेता भले ही यह कहते घूमें कि पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार के कार्यकाल में देश में अघोषित आपात स्थिति है लेकिन उनका यह कहना सत्ता से बाहर रहने की पीड़ा और देश को गुमराह करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है. अगर अघोषित आपात स्थिति होती तो राहुल गाँधी जिस भाषा में प्रधानमंत्री को प्राय: अपमानित करते हैं, चुनाव आयोग संवैधानिक संस्थाओं पर प्रश्नचिन्ह लगाते हैं, संभव नहीं हो पाता. अघोषित आपात स्थिति रहते हुए भी शाहीनबाग और किसान आंदोलन, जिन्होंने अरबों रुपए की राष्ट्रीय क्षति पहुंचाई, कैसे लंबे समय तक चलाये जा सके. कैसे नूपुर शर्मा को घर में कैद होकर बैठना पड़ा, कैसे ममता बेनर्जी के पश्चिम बंगाल में हिंदू नरसंहार का खुला खेल खेला गया, कैसे तमिलनाडु में मुख्यमंत्री स्टालिन और उनके उप मुख्यमंत्री पुत्र सनातन को डेंगू और मलेरिया बता सके. कैसे संसद से अयोग्य ठहराए गए राहुल गाँधी सर्वोच्च न्यायालय से राहत पा सके. कैसे सर्वोच्च न्यायलय धारा 370 हटाने और वक्फ संशोधन कानून पर सुनवाई कर सका.
राहुल गाँधी भले ही संविधान की कॉपी हाथ में लेकर घूमे और भाजपा सरकार पर संविधान और लोकतंत्र की हत्या का आरोप लगाएं लेकिन यह एक निर्विवादित तथ्य है कि विपक्षी दलों द्वारा शासित राज्यों में छोटी छोटी बातों पर कार्टूनिस्ट, यूट्यूबर, पत्रकार और प्रदर्शनकारी गिरफ्तार हो जाते हैं. पश्चिम बंगाल, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिल नाडु इसके ज्वलंत उदाहरण है. मोदी सरकार द्वारा आपातकाल लगाए जाने वाले दिन को संविधान हत्या दिवस के रूप में घोषित किया जाना अत्यंत सार्थक और भावनात्मक है क्योंकि संविधान तभी मरता है जब नागरिको के मूल अधिकार छीन लिए जाते हैं, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली जाती है, प्रेस की स्वतंत्रता छीन ली जाती है, न्यायालयों का अपमान किया जाता है और मनचाहा फैसला लेने के लिए उन पर दबाव बनाया जाता है.
यदि इस आधार पर स्वतंत्र भारत के अब तक के कालखंड का विश्लेषण किया जाए तो हम पाते हैं कि गाँधी परिवार के पांच सदस्यों ने अपने तानाशाही व्योहार से किसी न किसी रूप में संविधान की हत्या की है. जवाहर लाल नेहरू ने पहला संविधान संशोधन करके अनेक पुस्तकों, फ़िल्मों आदि पर प्रतिबंध लगा दिया था तथा अनेक इतिहासकारों, लेखको, पत्रकारों और समाजसेवियों को जेल में डाल दिया था. इंदिरा गाँधी ने उच्च न्यायालय के फैसले की अवमानना करते हुए विरोध की आवाज दबाने के लिए आपातकाल की घोषणा कर दी थी. उन्होंने अपने सभी राजनीतिक विरोधियो और विरोध करने वाले सामान्य नागरिको को जेल में ठूंस दिया था. नागरिको के मूल अधिकार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन ली गई थी. समाचार पत्र बिना सरकार की अनुमति के कुछ भी छाप नहीं सकते थे. सही अर्थों में देश में कोई भी इंदिरा गाँधी और उनकी सरकार का विरोध नहीं कर सकता था. राजीव गाँधी ने शाहबानो मामले में सर्वोच्च न्यायालय का अपमान करते हुए कानून बना कर उसके फैसले को पलट दिया था. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्रित्व काल में परोक्ष रूप से सत्ता संभाल रही सोनिया गाँधी ने शाह आयोग द्वारा आपातकाल की ज्यादतियों के लिए दोषी पाए गए और किसी भी संवैधानिक पद के लिए आयोग्य घोषित किए गए नवीन चावला को मुख्य चुनाव आयुक्त नियुक्त किया था. सोनिया गाँधी के निर्देश पर चुनाव धांधलियों का विरोध करने पर हजारों प्रदर्शनकारियों को देशद्रोह के आरोप में जेल में डाल दिया गया था. राहुल गाँधी ने मंत्रिमंडल द्वारा पारित बिल को सार्वजनिक रूप से फाड़ दिया था. आज भी वह संविधान की कॉपी लहराते हुए वह संवैधानिक संस्थाओं पर हमला करते हैं और उनका अपमान भी करते हैं. मानहानि के मामले में 2 साल की सजा पाए और संसद द्वारा सदस्यता के लिए अयोग्य घोषित किए गए राहुल गाँधी ने दबाव बनाकर ही अपनी सदस्यता बहाल करायी, यह भी किसी से छिपा नहीं है.
संविधान की रक्षा की जा सके और इस देश को पुन: अपातकाल न देखना पड़े, इसके लिए हम सभी को प्रयासरत रहना चाहिए और संविधान में तभी संशोधन होने चाहिए जब यह राष्ट्रीय हित में हो क्योंकि संविधान से भी बड़ा राष्ट्र होता है और हमें राष्ट्र को बचाने और मजबूत करने की आवश्यकता है.
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ऑपरेशन सिन्दूर || पाकिस्तान, टर्की, और अजर्वैजान तथा भारतीय विपक्ष की समानताएं और संभावनाएं || "बायकाट टर्की" कितना जरूरी ? 2...
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भारतीय अर्थव्यवस्था का हलाल कर्नाटक में एक वर्ग विशेष द्वारा शिक्षण संस्थाओं में हिजाब पहनने के मामले को अनावश्यक तूल दिए जाने क...
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सर्वोच्च अन्याय :: उच्चतम न्यायलय के अधिकांश निर्णय होते हैं देश और हिन्दू हितों के विरुद्ध || तुष्टिकरण की बीमारी से ग्रसित है न्याय पालि...