बुधवार, 20 नवंबर 2024

Shabarmati Report reopens Godhara Incident | Persons below 35 years must...

Shabarmati Report reopens Godhara Incident | Persons below 35 years must watch It


साबरमती रिपोर्ट - गोधर कांड पर हिन्दुओं की आँखे खोलने का प्रयास 

साबरमती रिपोर्ट नाम से एक डॉक्यूमेंटरी रिलीज हुई है और यह फिल्म सिनेमाघरों में है। इस फ़िल्म के माध्यम से आज की युवा पीढ़ी को गोधरा कांड की सच्चाई मालूम पड़ सकेगी और अन्य लोगों को भी गोधरा कांड की यादें ताजा हो जाएंगे

यह स्वाभाविक है कि साबरमती रिपोर्ट फ़िल्म के बाद गोधरा कांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है लेकिन विपक्षी राजनीतिक पार्टियां इस पर चर्चा से बच रही हैं। ये राजनीतिक पार्टियां नहीं चाहती है की इस पर चर्चा हो क्यों? क्योंकि अगर इस पर चर्चा होगी और जो सच इस फ़िल्म के माध्यम से सामने आया है उसके कारण कांग्रेस पार्टी कठघरे में खड़ी होगी और कांग्रेस के नेतृत्व में बनी यूपीए सरकार के सारे घटक दल भी कटघरे में आयेंगे।

हमारी पीढ़ी के लोगों को तो अच्छे ढंग से याद है की 2002 में गोधरा में क्या हुआ था लेकिन आज की पीढ़ी के वे लोग  जिन की उम्र 35  वर्ष से कम है उसे शायद इसके बारे में बहुत अधिक पता भी नहीं होगा। इसलिए पूरे मामले की एक शुभम बताना आवश्यक होगया।  27 फरवरी 2002 को सुबह साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन को गोधरा स्टेशन के पास रोका गया ओर मुसलमानों की उग्र भीड़ ने इस ट्रेन के कोच नंबर s 6 में आग लगा दी और  59 श्रद्धालुओं को जिंदा जलाकर मार दिया गया। इस कोच में श्रद्धालु राम भक्त थे जो अयोध्या से वापस आ रहे थे जहाँ भगवान श्री राम के मंदिर को आक्रांता बाबर द्वारा तोड़ कर उस पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करा दिया गया था। मुस्लिमों द्वारा  यह बर्बरतापूर्ण कृत्य इसलिए किया गया था की ये सभी श्रद्धालु राम जन्मभूमि पर निर्मित श्री राम के अस्थायी मंदिर में दर्शन करके आ रहे थे । इस घृणित और अमानवीय कृत्य में 25 महिलाएं और 20  बच्चों सहित 59 लोगों की मौके पर ही मृत्यु हो गई थी. अनेक लोग गंभीर रूप से जल गए थे और कई ऐसे लोग थे है जो इस कार्रवाई को देख कर अपना दिमागी संतुलन खो बैठे थे.

 साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन ने जैसे ही गोधरा स्टेशन से निकलकर रफ्तार पकड़ी, आपातकालीन ब्रेक लगाकर  मुस्लिम बहुल इलाके में इसे रोक लिया गया. 2000 से अधिक नर पिशाचों की भीड़ ने इस ट्रेन पर पथराव किया और पेट्रोल डालकर एस 6 कोच में आग लगा दी तथा अन्य चार बोगियों को भी क्षतिग्रस्त कर दिया. इस ट्रेन में 1700 से अधिक श्रद्धालु अयोध्या से वापस आ रहे थे इसलिए इन सभी को जलाकर मार देने की योजना थी लेकिन एक कोच को आग के हवाले करके वह 59 श्रद्धालुओं को ज़िंदा जलाकर मारने में सफल हो गए.  वे कौन लोग थे जिन्होंने ट्रेन पर पथराव किया? वे कौन लोग थे जिन्होंने पेट्रोल डालकर ट्रेन में आग लगायी? देश को ये जानने का अधिकार उस समय भी था और आज भी है लेकिन यह जानना तो दूर, इस  आगजनी में मृतकों के नाम उजागर नहीं किए गए. लेकिन इस पर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दल और मानवतावादी बात नहीं  करते, क्योंकि मरने वाले हिंदू थे और हिंदुओं की जान की इस देश में कोई कीमत नहीं. सोचिए अगर इनकी जगह ट्रेन में जलकर मरने वाले लोग मुसलमान होते तो क्या प्रतिक्रिया होती और कांग्रेस एवं इन धर्मनिरपेक्षता और मानवतावादियों का विमर्श क्या होता, समझना मुश्किल नहीं है.

इस राक्षसी कार्य की प्रतिक्रिया स्वरूप गोधरा में दंगे भड़क उठे जिसमे लगभग 700 मुसलमान और 350 से अधिक हिंदू हताहत हुए लेकिन विमर्स बनाने वाले लोगों ने, जिसमें राजनीतिक पार्टियां और भारत का वामपंथी इस्लामिस्ट मीडिया भी शामिल था,  इस पर पर्दा डालने की कोशिश की, कि साबरमती एक्सप्रेस में क्या हुआ किन्तु  इस जघन्य घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप  भड़के दंगों को बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करने और हिंदुओं को आक्रमणकारी और मुसलमानों को विक्टिम सिद्ध करने में जुट गई.

6 मार्च 2002 को गुजरात सरकार द्वारा ट्रेन में आग के कारणों तथा उसके बाद भड़के दंगों की जांच के लिए एक आयोग का गठन किया गया था जिसकी अध्यक्षता गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश केजी शाह थे. कांग्रेस ने न्यायमूर्ति शाह की राज्य के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी से नजदीकी पड़ने का आरोप लगाया और आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया. इस कारण इस आयोग का पुनर्गठन किया गया और सर्वोच्च न्यायालय के  न्यायाधीश जी टी नानावती को इस आयोग का अध्यक्ष बना दिया गया इसलिए इस आयोग को नानावती शाह आयोग के रूप में जाना जाता है. आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि साबरमती एक्सप्रेस के एस 6 कोच को पूर्व नियोजित षड्यंत्र के अंतर्गत आग लगाई गई.

गोधरा दंगों के कारण ही समूचे हिंदू समुदाय, भाजपा, गुजरात सरकार और विशेषकर तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट किया गया और पूरी दुनिया में बदनाम भी किया गया. मोदी को अमेरिका का वीजा न मिले इसलिए भारत के कथित बुद्धिजीवियों और मानवाधिकारवादियों ने अमेरिका को ज्ञापन भी भेजे. 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए की सरकार बनने के बाद मुस्लिम तुष्टीकरण को धार देने के उद्देश्य से मोदी को जेल भेजने के लिए जाल बिछाया जाने लगा.  साबरमती ट्रेन में जिंदा जलाकर मार डाले गए 59 श्रद्धालुओं की मौत को दुर्घटना सिद्ध करने के लिए तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव ने रेलवे सेफ्टी एक्ट के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बेनर्जी की अध्यक्षता में बेनर्जी आयोग का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट में कार सेवकों द्वारा कोच के अंदर खाना बनाने के कारण आग लगना बता कर इसे दुर्घटना सिद्ध करने की कोशिश की. आप समझ सकते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का भी स्तर क्या हो सकता है.

कांग्रेस ने तीस्ता सीतलवाड़ नाम की एक कट्टरपंथी मुस्लिम महिला को आगे किया गया. उसके सब रंग नाम के एनजीओ को विदेशों से करोडो रुपये की फंडिंग मिली जिससे उसने भाजपा और नरेंद्र मोदी के विरुद्ध बहुत बड़ा विमर्श खड़ा किया. गुजरात के कट्टरपंथी मुस्लिम नेता अहमद पटेल ने भाजपा और मोदी के विरुद्ध षड्यंत्रकारी विमर्श के द्वारा मोदी है फिर और अमित शाह को फंसाने की इसके लिए उन्होंने एक आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट को मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया. कांग्रेस, वामपंथियों, मुस्लिम चरमपंथियों और अर्बन नक्सलियों के लगातार षड्यंत्र के कारण कई पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी तथा भाजपा नेताओं को जेल में भी रहना पड़ा. तीस्ता सीतलवाड़ जैसे चरमपंथियों तथा मीडिया के विमर्श कार्यों को तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा समय समय पर सम्मानित किया गया. तीस्ता सीतलवाड को भाजपा और मोदी के विरुद्ध सांप्रदायिक षड़यंत्रों और विमर्शों की लंबी श्रृंखला के उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया गया. तीस्ता सीतलवाड की विघटनकारी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देने के लिए सोनिया गाँधी के नेतृत्व वाली नेशनल एडवाइजरी काउंसिल का सदस्य भी बनाया गया. हिंदुओं का दमन करने के लिए सांप्रदायिक हिंसा बिल ड्राफ्ट करने वाली समिति में भी उन्हें शामिल किया गया.

अनन्तोगत्वा सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुजरात दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया और उसकी रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गुजरात दंगों के मामले में क्लीनचिट दी गई. लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में राष्ट्र की विघटनकारी शक्तियों ने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हो रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को लांछित करने के लिए बीबीसी के माध्यम से गुजरात दंगों पर झूठ और षड्यंत्रकारी विमर्श आधारित एक डॉक्यूमेंट्री का निर्माण कराया गया, जिसे केंद्र सरकार को प्रतिबंधित करना पड़ा. फिर भी कांग्रेस द्वारा राष्ट्र विरोधी शक्तियां के माध्यम से इस फ़िल्म का प्रदर्शन करवाया गया. इस डॉक्यूमेंट्री में साबरमती ट्रेन में कारसेवकों को जिंदा जलाकर मार देने की घटना की असलियत नहीं है.

विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी पाया, जिसमें  11 को फांसी, 20 को उम्रकैद की सजा सुनाई।  63 अन्य पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण बरी कर दिया. अरशद मदनी और महमूद मदनी का देवबंदी गिरोह इन सजायाफ्ता अपराधियों के मामले सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रहा है, जो शुरू से ही गोधरा मामले को मुसलमानों के विरुद्ध विमर्श के रूप में प्रचारित प्रसारित करता रहा है. धन की इस गिरोह के पास कमी नहीं है क्योंकि हलाल सर्टिफिकेशन और सरकारी अनुदान से निचोड़ा गया हिंदुओं का पैसा हिंदुओं के विरुद्ध ही इस्तेमाल किया जा रहा है.

फ़िल्म रिलीज होने के बाद भी वामपंथ-इस्लामिक और विमर्शवादी मीडिया चुप हैं और इस फ़िल्म को इग्नोर कर रहा है लेकिन देश चुप नहीं रह सकता खासतौर से राष्ट्रवादी चुप नहीं रह सकते. आज की युवा पीढ़ी को इसे अवश्य देखना चाहिए और समझना चाहिए कि हिंदू बाहुल्य इस देश में हिंदुओं के साथ कितना भेदभाव किया जाता है. यह समझ उनके भविष्य, अस्तित्व और सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है. अधिकांश राजनीतिक दल मुस्लिमों के थोक वोट बैंक के सौदागर हैं और इसलिए हिंदुओं के वास्तविक मुद्दों को भी अनदेखा करते हैं. बात अगर मुसलमानों की हो तो हिंदुओं की जान की भी कोई कीमत नहीं.

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~


शनिवार, 16 नवंबर 2024

बटेंगे तो कटेंगे : कांग्रेस चुनाव जीतना चाहती है लेंकिन उलेमा हिन्दुस्तान जीतना चाहते हैं

 

बटेंगे तो कटेंगे ? लेकिन क्यों और कैसे ? यह कहना सांप्रदायिक है या फिर यह हिन्दू एकता का नारा है ?


राजनीति में बटेंगे तो सांप्रदायिकता से कटेंगे, स्पष्ट दिखाई पड़ रहा है महाराष्ट्र चुनाव में  जहाँ कांग्रेस चुनाव जीतना चाहती है लेंकिन ... ...वे हिन्दुस्तान जीतना चाहते हैं 


लगभग 100 साल बाद भारत में वैसा ही वातावरण बनाया जा रहा है जैसा 1920 में जिन्ना की मुस्लिम संगठनों ने तैयार किया था. तुर्की के खलीफा की पद से हटाए जाने के विरोध में भारत में शुरू किये गए खलीफ़त आंदोलन को गाँधी और कांग्रेस ने समर्थन दिया था, जिसने मुस्लिम कट्टरपंथ को चरम पर पहुंचा कर देश में विभाजन की नींव तैयार कर दी थी. हिंदुओं की आँखों में धूल झोंकने के लिए गाँधी ने बड़ी चालाकी से इस आंदोलन का नाम खलीफ़त से खिलाफत आंदोलन कर दिया था. गाँधी और कांग्रेस के प्रश्रय में जिन्ना ने 1929 में मुसलमानों के लिए 14 सूत्रीय मांगें रखी, जिन का समर्थन गाँधी और कांग्रेस ने किया था, जिससे मुस्लिम कट्टरपंथियों के हौसले बुलंद हुए और यही हिन्दुओं के वीभत्स नरसंहार तथा देश के विभाजन का आधार बना. महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव में लगभग वैसा ही वातावरण बनता जा रहा है. आखिल भारतीय मुस्लिम उलेमा बोर्ड ने जिन्ना के नक्शेकदम पर चलते हुए 17 सूत्री मांगपत्र कांग्रेस को सौंपा है, जैसे कांग्रेस ने बिना समय गंवाए स्वीकार कर लिया है. 1929 और 2024 में केवल इतना अंतर है की अब कांग्रेस के साथ उसके इंडी गठबंधन के सभी सहयोगी भी शामिल है जिनमे शरद पवार के साथ साथ हिंदू हृदयसम्राट बाला साहब ठाकरे के उत्तराधिकारी उद्धव बाल ठाकरे भी शामिल है.

जिन्ना और ऑल इंडिया मुस्लिम उलेमा बोर्ड की मांगों में बहुत समानता है. 1929 का जिन्ना का प्रस्ताव भारत में मुस्लिम हितों की रक्षा के लिए एक अलग मुस्लिम राष्ट्र की मांग का पहला कदम माना जाता है, वहीं ऑल इंडिया उलेमा काउंसिल की मांगों में भी उसी की झलक देखी जा सकती है। कांग्रेस और शरद पवार द्वारा सभी शर्तों को स्वीकार करने के बाद मुस्लिम उलेमा बोर्ड ने कांग्रेस और महाअघाड़ी गठबंधन को चुनाव में समर्थन का ऐलान कर दिया है और सभी मुसलमानों को महा अघाड़ी के उम्मीदवारों को वोट देने का फतवा जारी कर दिया है.

उलेमा बोर्ड ने कांग्रेस को समर्थन देने के लिए जो 17 शर्तें रखी हैं उनमें 1- राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर प्रतिबंध, 2- शिक्षा और नौकरियों में मुस्लिमों को 10% आरक्षण, 3- वक्फ बिल का विरोध, 4- महाराष्ट्र वक्फ मंडल के विकास के लिए 1000 करोड़ रुपये का फंड, 5- 2012 से 2024 तक के दंगों के मामलों में बंद मुसलमान कैदियों की रिहाई, 6-मौलाना सलमान अजहरी की रिहाई, 7- मस्जिदों के इमामों और मौलवियों को15 हजार रुपये सरकारी वेतन, 8- मुस्लिम युवाओं को पुलिस भर्ती में प्राथमिकता, 9- रामगिरी महाराज और नितेश राणे पर सख्त कार्रवाई, 10- उलेमा बोर्ड के मौलवियों और इमामों को सरकारी समितियों में शामिल करना, 11- महाराष्ट्र वक्फ बोर्ड में 500 कर्मचारियों की नियुक्ति,12- वक्फ में केवल मुसलमान युवकों की भर्ती,13- चुनाव मे 50 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट,14- वक्फ बोर्ड की संपत्तियों से अतिक्रमण हटाने हेतु सख्त कानून,15- पैगंबर मोहम्मद साहब के खिलाफ बोलने पर प्रतिबन्ध, 16- राज्य के 48 जिलों में मस्जिदों, कब्रिस्तानों और दरगाहों की जब्त जमीनों की वापसी,17- उलेमा बोर्ड को 48 जिलों में संसाधन उपलब्ध कराना.

मुस्लिम उलेमा बोर्ड की शर्तों के पीछे छिपी विभाजनकारी मानसिकता को आसानी से समझा जा सकता है और इन शर्तों को स्वीकार करने की कांग्रेस की मानसिकता को भी हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए क्योंकि जो कांग्रेस मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए भारत का विभाजन कर सकती है, वह कांग्रेस शेष भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने में संकोच नहीं करेगी. कांग्रेस का वर्तमान नेतृत्व पूरी तरह से मुस्लिम कट्टर पंथियों के प्रभाव में है. जवाहर लाल नेहरू से लेकर राहुल गाँधी तक, इस परिवार का मुस्लिम प्रेम जगजाहिर है. नेहरू परिवार अपनी को भारत से अधिक मुगलों के नजदीक समझता है. नेहरू और इंदिरा गाँधी की कार्यशैली हमेशा हिंदू विरोधी और मुस्लिम रही जिससे उन्होंने किसी तरह की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी कि उनका मुस्लिम प्रेम देश प्रेम पर भारी पड़ता आया है. संविधान में मुसलमानों के लिए विशेष प्रावधान तथा हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति को नष्ट करने के प्रयास इस शंका का समर्थन करते हैं कि नेहरू भारत का जल्द से जल्द इस्लामिक बनाना चाहते थे.

राहुल गाँधी ने तो कई मौकों पर यह कहने से भी गुरेज नहीं किया है कि कांग्रेस मुस्लिमों की पार्टी है. उनका वायनाड से चुनाव लड़ना और मुसलिम लीग तथा अन्य मुस्लिम संगठनों सहित जमीयत उलेमा ए हिंद का समर्थन लेना केवल एक संकेत है. वायनाड उपचुनाव में राहुल गाँधी की जगह प्रियंका वाड्रा को उम्मीदवार बनाना भी गाँधी परिवार का मुस्लिम लीग और मुस्लिम संगठनों के साथ गहरे संबंधों को उजागर करता है इसकी बानगी चुनाव प्रचार में देखी जा सकती है. जो व्यक्ति अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा को नाच गाने का समारोह बताता है और मस्जिद से अजान की आवाज आने पर अपना भाषण बंद कर देता हो और संकेतों से जनता को भी चुप खड़े रहने की अपील करता हो, उससे हिंदू क्या अपेक्षा कर सकते हैं. यद्यपि वह हिंदुओं को मूर्ख बनाने के लिए कभी कभी कभी मंदिर जाने का नाटक करता है, और स्वयं को दत्तात्रेय गोत्र का ब्राह्मण बताता है. कोई भी औसत बुद्धि और विवेक का व्यक्ति समझ सकता है कि जब उनके पिता, दादा और परदादा हिंदू नहीं थे तो वह ब्राह्मण कैसे हो गए, और उन्हें दत्तात्रेय गोत्र कहाँ से मिला. अमेरिका और ब्रिटेन में राहुल गाँधी की सभाओं का आयोजन कट्टरपंथी मुस्लिम संगठनों द्वारा किया जाता रहा है, जिनमें से कई का संबंध आतंकवादी संगठनों से भी मिलता है. नेहरू से लेकर राहुल तक गाँधी परिवार का कोई भी ऐसा सदस्य नहीं है जो अफगानिस्तान में बाबर की मजार पर सजदा करने ना गया हो. ढाका से प्रकाशित ब्लिटज वीकली ने राहुल गाँधी और उनके परिवार पर जो सनसनीखेज खुलासे किए हैं उसे स्वयं कांग्रेसी भी हैरान हैं. जो परिवार हिंदुओं का वोट लेने के लिए, इतना बड़ा छलावा करता हो, उस पर विश्वास कैसे किया जा सकता है, आज इस प्रश्न पर सभी हिंदुओं को बहुत गंभीरता से विचार करना चाहिए.

हरियाणा विस चुनाव में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भारत में मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा किए गए हिंदू नरसंहार के परिपेक्ष्य में एक नारा दिया था “बटोगे तो कटोगे” जिसने हिंदुओं के मन मस्तिष्क में गहरा प्रभाव डाला. वास्तव में इस छोटे से नारे में सातवीं शताब्दी से लेकर औरंगजेब के शासनकाल तक भारत में हिंदुओं के भयानक नरसंहार की कहानी छुपी है. मुस्लिम आक्रांताओं द्वारा भारत भूमि पर लगभग 10 करोड़ हिंदुओं का वीभत्स नरसंहार किया गया, जो पृथ्वी पर मानव सभ्यता के इतिहास का सबसे बड़ा नरसंहार है, जिसका कारण भी हिंदुओं में एकता का अभाव था. इतना हो जाने के बाद भी हिंदू नहीं चेते उन्हें न तो अपनी सुरक्षा के प्रति सजगता और सतर्कता उत्पन्न हो सकी और न हीं नरसंहार करनेवाले मुस्लिम आक्रांताओं को अपना पूर्वज कह कर गुणगान करने वालों के प्रति शत्रु भाव उत्पन्न हो सका. पता नहीं यह हिंदू धर्म और सनातन संस्कृति सहिष्णुता है या हिंदुओं की स्वयं को नष्ट करने की प्रबल आकांक्षा.

पिछले लोकसभा चुनाव में विमर्श आधारित सांप्रदायिक ध्रुवीकरण अपने चरम पर पहुँच गया था जिसका आभास प्रधानमंत्री मोदी को हुआ लेकिन बहुत देर से. पिछले 10 साल की पूर्ण बहुमत वाली अपनी सरकार के कार्यकाल में वह इसे भांप नहीं सके. इसलिए कट्टरपंथियों और गज़वा ए हिंद के प्रवर्तकों के विरुद्ध जो सख्त कदम उठाए जाने चाहिए थे वह नहीं उठाए गए. देर से ही सही न केवल भाजपा वरन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी इसका अहसास हो गया है. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भी योगी के इस नारे का न केवल समर्थन किया बल्कि उसे प्रचारित और प्रसारित भी किया. आज महाराष्ट्र और झारखंड के चुनाव में इसकी गूंज सुनाई पड़ रही है. इसका असर तो चुनाव परिणामों के बाद ही दिखाई पड़ेगा लेकिन इतना निश्चित है कि हिंदू अभी भी सचेत नहीं हुआ तो ना तो हिंदू बचेगा और ना ही हिंदुस्तान.

~~~~~~~~~~शिव मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2024

उच्चतम न्यायलय के निर्णय होते हैं तुष्टिकरण से प्रेरित

 

सर्वोच्च अन्याय :: उच्चतम न्यायलय के अधिकांश निर्णय होते हैं देश और हिन्दू हितों के विरुद्ध || तुष्टिकरण की बीमारी से ग्रसित है न्याय पालिका || क्या है इस बीमारी इलाज


उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) की उस सिफारिश पर रोक लगा दी है जिसमें राज्यों से गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित करने का अनुरोध किया गया है। प्रधान न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला एवं न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने मुस्लिम संगठन जमियत उलेमा-ए-हिंद की याचिका पर उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सहित सभी राज्यों की कार्यवाही पर रोक लगा दी है. न्यायलय ने केंद्र सरकार, सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने हाल ही में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि जब तक मदरसे शिक्षा के अधिकार अधिनियम का अनुपालन नहीं करते, तब तक उन्हें दी जाने वाली आर्थिक सहायता बंद कर देना चाहिए। रिपोर्ट के अनुसार मदरसों का पूरा ध्यान केवल धार्मिक शिक्षा पर ही रहता है, जिससे बच्चों को जरूरी शिक्षा नहीं मिल पाती और वे बाकी बच्चों पिछड़ जाते है. मदरसे, बच्चों के अधिकारों को लेकर सजग नही हैं. वे न तो गुणवत्तापूर्ण शिक्षा दे रहे हैं और न ही उन्हें मुख्यधारा में लाने का प्रयास कर रहे हैं. रिपोर्ट के अनुसार कई मदरसों में बड़ी संख्या में हिंदू बच्चों को भी दाखिल किया जा रहा है और उन्हें भी इस्लामिक शिक्षा दी जा रही है, जो पूर्णतया गलत है. इसलिए आयोग ने राज्यों को सुझाव दिया था कि गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के छात्रों को सरकारी स्कूलों में स्थानांतरित कर दिया जाए. प्रथम दृष्टया एनसीपीसीआर के सुझाव पूरी तरह उचित हैं लेकिन जमीयत उलेमा ए हिन्द के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने याचिका में कहा कि संविधान में अनुच्छेद 25, 26 और अनुच्छेद 30(1) के अंतर्गत देश के अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की गयी है, इसलिए एनसीपीसीआर के सुझाव तथा त्रिपुरा और उत्तर प्रदेश की सरकारों द्वारा संभावित कार्रवाई असंवैधानिक है.

एनसीपीसीआर का सुझाव केवल गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के लिए है लेकिन आतंकवादियों की पैरवी करने वाले और भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की गज़वा-ए-हिंद योजना को फतवे के रूप में अपने मदरसे “देवबंद दारुल उलूम” की वेबसाइट पर डालने वाले अरशद मदनी तथा हलाल सर्टिफिकेशन का कारोबार करने वाले उनके संगठन जमीयत उलेमा ए हिंद ने इसके विरुद्ध याचिका दायर की थी जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को सुने बिना तुरत फुरत रोक लगाने का फैसला दे दिया. उच्चतम न्यायालय ने जमीयत उलेमा ए हिंद को उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा के अलावा अन्य राज्यों के मुकदमें में भी पक्षकार बनाने की अनुमति दे दी. गंभीर चिंतन की बात यह है कि मदरसों में ऐसा क्या पढ़ाया जाता है जो सरकारी स्कूलों में नहीं नहीं पढ़ाया जाता और कैसे मदरसा शिक्षा सरकारी स्कूलों से बेहतर है. क्या मदरसे देश विरोधी हिन्दू विरोधी शिक्षा देने के लिए भी स्वतन्त्र हैं. बेहद आश्चर्य की बात है कि राष्ट्रीय हित के अनेक मामलों को ठंडे बस्ते में डालने वाले सर्वोच्च न्यायालय ने जमीयत उलेमा ए हिंद की दलीलें स्वीकार कर राष्ट्रीय हितों को दांव पर लगा दिया और केंद्र और राज्य सरकार को सुने बिना हड़बड़ी में रोक लगा दी. राम मंदिर फैसले के बयान पर छद्म धर्मनिरपेक्षतावादियों की आलोचनाओं से घिरे मुख्य न्यायाधीश ने दबाव में आकर यह फैसला दिया होगा, यह मानना उचित नहीं होगा, फिर भी इस फैसले की सराहना नहीं की जा सकती.

कांवड़ यात्रा के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार ने यात्रा मार्ग में पड़ने वाले सभी होटलों, ढाबों और दुकानदारों को अपनी पहचान उजागर करने का आदेश दिया था, जिस पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने रोक लगाते हुए कहा था कि किसी को भी अपनी पहचान उजागर करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. श्रावण का पूरा महा समाप्त हो गया, कांवड़ यात्रा समाप्त हो गयी, लेकिन सर्वोच्च न्यायालय को इतने महत्वपूर्ण मामले पर सुनवाई का मौका नहीं मिल पाया जबकि खाने पीने की वस्तुओं को अपवित्र कर बेचने के हजारों मामले सामने आ रहे हैं. इसके तुरंत बाद एक विपरीत फैसला आया. मुंबई के एक विद्यालय द्वारा हिजाब और बुर्के पर प्रतिबंध लगाते हुए केवल स्कूल यूनिफॉर्म पहनने का आदेश दिया था, जिसपर न्यायालय ने रोक लगाते हुए कहा कि किसी को उसकी धार्मिक पहचान छिपाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. क्या यह विरोधभास मात्र संयोग है.

कुछ समय पहले हल्द्वानी में रेलवे की जमीन पर कब्जा जमाये घुसपैठियों से जब जमीन खाली करवाई जा रही थी तो भी सर्वोच्च न्यायालय ने स्थगन आदेश दे दिया था जिसकी सुनवाई अब तक नहीं हो सकी है. यानी उच्चतम न्यायालय के निर्देश के बाद अब सरकारी जमीन पर स्थायी रूप से अनाधिकृत और गैरकानूनी कब्जा बना रहेगा, यही सन्देश है. उत्तर प्रदेश में योगी सरकार की सरकारी जमीन पर कब्जा करके अनाधिकृत रूप से किए गए निर्माण पर बुलडोजर कार्रवाई पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने यह कहकर रोक लगाई है कि वह पूरे देश के लिए एक सामान नियम बनाएगा. पता नहीं वह दिन कभी आएगा भी या नहीं लेकिन इससे अधिकृत कब्जा करने वालों के हौसले बुलंद हैं. ऐसे अनेक मामले हैं जिनमे सर्वोच्च न्यायालय का फैसले, उसके प्रति निष्ठा और सर्वोच्च सम्मान रखने वालों को भी कतई उचित नहीं लगते. देश की एकता और अखंडता की रक्षा के लिए उठाए जाने वाले कदमों के प्रति सर्वोच्च न्यायालय की असंवेदनशीलता से लगता है कि न्याय की देवी की आँखों से पट्टी हटाकर न्यायाधीशों ने अपनी आँखों पर बांध ली है. आज राष्ट्रविरोधी, उन्मादी और जेहादी शक्तियां संविधान और सर्वोच्च न्यायलय को ढाल की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसे में गज़वा ए हिंद द्वारा भारत का राष्ट्रांतरण लगभग निश्चित होता जा रहा है. इन परस्थितियों में सर्वोच्च न्यायालय के प्रति लोगों में नाराज़गी बढ़ती जा रही है, जिसका कारण है राष्ट्र की एकता अखंडता से जुड़े हुए मामलों में भी देश के विरुद्ध फैसला देना.

भारत में कई राष्ट्रविरोधी संस्थाएँ और व्यक्ति है जो विश्व की सबसे प्राचीन सनातन संस्कृति और हिंदू धर्म के विरुद्ध काम करते हैं. देवबंद के दारुल उलूम का बहुत स्पष्ट उद्देश्य है गज़वा ए हिंद के माध्यम से भारत का इस्लामीकरण करना और इसे वे छिपाते भी नहीं है. उनकी वेबसाइट पर गज़वा ए हिंद करने के लिए फतवा डाला गया है, जिसका विरोध होने पर अरशद मदनी ने कहा कि यह उनका धार्मिक कृत्य हैं जिसकी स्वतंत्रता संविधान ने उन्हें दी है. इसलिए वह गज़वा ए हिंद यानी भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने के कार्य को धार्मिक कृत्य मानते है जो पूरी तरह से उचित, कानूनी और संवैधानिक है. इस धार्मिक कृत्य से उन्हें कोई नहीं रोक सकता. इस पर सर्वोच्च न्यायालय ने स्वतः संज्ञान लेना तो छोड़िए, जो याचिकाएं भी दायर हुई उनको भी कोई महत्त्व नहीं दिया गया.

1991 में बना पूजा स्थल कानून, 15 अगस्त 1947 यानी 45 वर्ष पहले स्वतंत्रता प्राप्ति के दिन से लागू किया. उसके पहले देश पर अंग्रेजों का और मुस्लिम आक्रान्ताओं का शासन रहा था. 7वीं से 17 वीं शताब्दी के बीच भारत के लाखों मंदिरों, गुरुद्वारों, बौद्ध और जैन धार्मिक स्थलों को तोड़ा गया, जिनका पुनर्निर्माण स्वतंत्रता के बाद किया जाना था लेकिन इस कानून से हिंदू सिख, बौद्ध और जैनों को न्यायालय जाने के अधिकार से भी वंचित कर दिया गया. इस प्रकार यह कानून सातवीं शताब्दी से लागू कर दिया गया. सर्वोच्च न्यायालय ने हाल में कई कानूनों को निरस्त किया लेकिन पूजा स्थल कानून का संज्ञान नहीं लिया जो प्रथम दृष्टया असंवैधानिक, अनैतिक और गैरमुस्लिमो के मौलिक अधिकारों का हनन है. देश में ऐसी धारणा बन गई है कि प्रायः सर्वोच्च न्यायालय वर्ग विशेष से संबंधित मामलों में न केवल त्वरित सुनवाई करता है बल्कि उनके पक्ष में फैसला देने से भी नहीं हिचकता है. आतंकवादी मामले को रात में 12:00 बजे सुनना, तीस्ता सीतलवाड़ जैसे घोर सांप्रदायिक को जमानत देने के लिए एक ही दिन एक के बाद एक कई बेंच बनाकर देर रात्रि तक जमानत सुनिश्चित करना, ज्ञानवापी मामले में अनावश्यक दखलंदाजी कर निचली अदालतों को मामले को ठंडे बस्ते में डालने का संकेत देना, रेखांकित करता है कि सर्वोच्च न्यायालय कब, कहाँ और कैसा न्याय करता है.

एक विशेष चयन प्रक्रिया से आने वाले न्यायाधीशों की हिंदुओं के प्रति बेरुखी तो समझी जा सकती है लेकिन देश की एकता और अखंडता के प्रति बेरुखी राष्ट्र के विनाश का कारण बन सकती है. बांग्लादेश में सबने देखा जहाँ सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों से जबरन त्यागपत्र लिया गया. पाकिस्तान में भी स्थिति ऐसी है. केवल भारत ही ऐसा देश है, जहाँ अभी भी जनता में पंच परमेश्वर के प्रति बेहद सम्मान है, जिसे न्यायाधीश अपना संवैधानिक अधिकार समझने की भूल कर रहे हैं. शायद इसी कारण वे वास्तविकता समझने में असमर्थ हैं और देश के प्रति अपने कर्तव्यों से विमुख हैं.

गुरुवार, 17 अक्तूबर 2024

महर्षि बाल्मीकि – आदि कवि

 



महर्षि बाल्मीकि – आदि कवि

वाल्मीकि जी को उनकी विद्वता और तप के कारण महर्षि की पदवी प्राप्त हुई थी। उन्होंने हिंदू धर्म के सबसे अहम महाकाव्यों में से एक रामायण की रचना की थी। साथ ही उन्हें संस्कृत का आदि कवि अर्थात संस्कृत भाषा के प्रथम कवि के रूप में भी जाना जाता है।

उनसे जुड़ी कुछ प्रचलित कथाएं

महर्षि वाल्मीकि को मुख्य तौर से रामायण महाकाव्य के रचयिता के रूप में जाना जाता है। यह महाकाव्य संस्कृत में लिखा गया है जो हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथों में से एक है। आश्विम माह की पूर्णिमा तिथि को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है।

कैसे पड़ा वाल्मीकि नाम

पौराणिक कथा के अनुसार, पहले वाल्मीकि का नाम रत्नाकर हुआ करता था। वह एक डाकू थे और वन में आए लोगों को लूट कर उसी से अपने परिवार पालन-पोषण करते थे। तब एक बार उन्होंने वन में आए नारद मुनि को लूटने का प्रयास किया। लेकिन नारद जी द्वारा दी गई शिक्षा से उनका हृदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने अपने पापा की क्षमा याचना करने के लिए कठोर तपस्या की। वह तपस्या में इतने अधिक लीन हो गए कि उनके पूरे शरीर पर चींटियों ने बाँबी बना ली, इसी वजह से उनका वाल्मीकि पड़ा।

इस तरह की रामायण की रचना

रामायण महाकाव्य की रचना से संबंधित भी एक कथा मिलती है, जिसे अनुसार, ब्रह्मा जी के कहने पर महर्षि वाल्मीकि ने रामायण की रचना की थी। कथा के अनुसार, क्रौंच पक्षी की हत्या करने वाले एक शिकारी को वाल्मीकि जी ने श्राप दे दिया, लेकिन इस दौरान अचानक उनके मुख से एक श्लोक की रचना हो गई।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥

(अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।)

तब ब्रह्मा जी ने प्रकट हुए और कहने लगे कि मेरी प्रेरणा से ही आपके मुख से ऐसी वाणी निकली है। अतः आप श्लोक के रूप में ही भगवान श्रीराम के संपूर्ण  चरित्र की रचना करें। इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि ने रामायण महाकाव्य की रचना की थी।

महर्षि वाल्मीकि, हिन्दू धर्म के श्रेष्ठ गुरु और रामायण के रचयिता थे. उनसे जुड़ी कुछ खास बातेंः 

1. वाल्मीकि जी को आदि कवि भी कहा जाता है. संस्कृत साहित्य के प्रथम कवि महर्षि वाल्मीकि हैं।

2. वाल्मीकि जी का जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के घर हुआ था.

3. बचपन में ही उनका पालन-पोषण भील समाज में हुआ था.

4. उनका नाम रत्नाकर था और वे परिवार के पालन-पोषण के लिए लूट-पाट करते थे.

आदि कवि उनका दूसरा नाम है।

·       अपने प्रारंभिक वर्षों में, महर्षि वाल्मीकि रत्नाकर के नाम से जाने जाने वाले एक राजमार्ग डकैत थे, जो लोगों को मारने के बाद उन्हें लूटते थे।

  • चेन्नई के तिरुवनमियूर में महर्षि वाल्मीकि मंदिर 1300 साल से अधिक पुराना माना जाता है।
  • वाल्मीकि मंदिर एक अन्य प्रमुख मंदिर की देखरेख में है जिसे मारुंडेश्वर मंदिर कहा जाता है जिसका निर्माण चोल शासनकाल के दौरान किया गया था। मान्यताओं के अनुसार, ऋषि वाल्मीकि ने भगवान शिव की पूजा करने के लिए मारुंडेश्वर मंदिर का दौरा किया, जिसके बाद इस क्षेत्र का नाम थिरुवाल्मिकियूर रखा गया, जो धीरे-धीरे थिरुवनमियूर में बदल गया।
  • महर्षि वाल्मीकि ने एक बार प्रेम में डूबे एक पक्षी जोड़े को देखा। उसी समय एक शिकारी ने तीर से एक पक्षी को नीचे गिरा दिया और पक्षी तुरंत मर गया। इस घटना ने महर्षि को आक्रामक बना दिया और पीड़ा में, महर्षि वाल्मीकि एक श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसे संस्कृत में पहला श्लोक माना जाता है।

 मा निषाद प्रतिष्ठां त्वंगमः शाश्वतीः समाः। यत्क्रौंचमिथुनादेकं वधीः काममोहितम्॥

 (अर्थ : हे दुष्ट, तुमने प्रेम मे मग्न क्रौंच पक्षी को मारा है। जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पायेगी और तुझे भी वियोग झेलना पड़ेगा।)

  • विष्णुधर्मोत्तर पुराण के अनुसार, वाल्मीकि भगवान का एक रूप है।
  • भगवान राम के पुत्र कुश और लव उनके पहले शिष्य थे जिन्हें उन्होंने रामायण की शिक्षा दी थी।

उल्टा नाम जपत जग जाना, बाल्मीकि भए ब्रह्म समाना. 

वाल्मीकि जी राम नाम का उच्चारण नहीं कर पाते थे.  तब नारद जी ने विचार करके उनसे मरा-मरा जपने के लिए कहा और मरा रटते ही यही राम हो गया. निरंतर जाप करते-करते हुए वाल्मीकि जी ऋषि वाल्मीकि बन गए.

वाल्मीकि जयंती महान लेखक और ऋषि महर्षि वाल्मीकि की जयंती के रूप में मनाई जाती है। महर्षि वाल्मीकि महान हिंदू महाकाव्य रामायण के रचयिता होने के साथ-साथ संस्कृत साहित्य के पहले कवि भी हैं. रामायण जो भगवान राम की कहानी कहती है, संस्कृत में लिखी गई थी और इसमें 24,000 छंद हैं जो सात ‘कांडों’ (कैंटोस) में विभाजित हैं।

महर्षि वाल्मीकि कथा

पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि अपने वनवास के दौरान भगवान राम से मिले थे। भगवान राम द्वारा सीता को अयोध्या का राज्य छोड़ने के लिए कहने के बाद, उन्होंने उन्हें बचाया और उन्हें आश्रय प्रदान किया। उन्होंने अपने आश्रम में जुड़वां बच्चों लव और कुश को जन्म दिया। महान ऋषि उनके शिक्षक बन गए जब वे छोटे थे, उन्हें रामायण पढ़ा रहे थे.

एक अन्य लोकप्रिय मान्यता यह है कि वाल्मीकि अपने प्रारंभिक वर्षों में रत्नाकर नामक एक राजमार्ग डाकू थे। उनका जन्म प्राचीन भारत में गंगा के तट पर प्रचेतस नाम के एक ऋषि के यहाँ हुआ था। रत्नाकर उनका जन्म नाम था। एक बच्चे के रूप में, वह जंगलों में खो गया और एक शिकारी द्वारा पाया गया, जिसने उसे अपने बेटे के रूप में पाला। वह अपने पालक पिता की तरह एक शिकारी के रूप में बड़ा हुआ, लेकिन उसने एक डाकू बनकर अपनी आजीविका का भी पूरक बनाया। वह अंततः महर्षि नारद से मिले और उन्हें लूटने का प्रयास किया। वह नारद मुनि से मिलने तक लोगों को लूटता और हत्या करता था, जिसने उसे भगवान राम का भक्त बना दिया।

वर्षों के ध्यान के बाद, एक दिव्य आवाज ने उनकी तपस्या को सफल घोषित किया और वाल्मीकि नाम दिया, जो चींटी-पहाड़ियों से पैदा हुए थे। संस्कृत साहित्य के प्रथम कवि होने के कारण बाद में उन्हें आदि कवि के नाम से जाना गया। तब से, हिंदू भक्त उनके कार्यों, विशेष रूप से महान महाकाव्य रामायण का पाठ करते हैं।


महर्षि वाल्मीकि के जीवन के ये हैं 5 सूत्र

1. तुम जो पाप करते हो, इसका फल तुम्हें ही भोगना होगा। तब उन्हें दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई।

2. उन्होनें कहा कि हमें अपने कर्म अच्छे करते रहना चाहिए। किसी भी तरह का व्यभिचार और पाप से हमेशा बचना चाहिए।

3.  उन्होनें यह भी कहा कि हमें अपनें हौसले को कठिन परिस्थितियों में कभी भी नही गिराना चाहिए। 

4. हमारे साथ कोई भी विपरीत  परिस्थिति हो अपनी बुद्धि और विवेक से काम करना चाहिए। 

5. वाल्मीकि ने श्रीराम के जीवन पर आधारित पवित्र संस्कृत महाकाव्य रामायण लिखीजो इनकी कालजयी कृति है। हमें भी अपने जीवन में कुछ ऐसा करना चाहिए। 

क्यों मनाई जाती है वाल्मीकि जयंती?

वाल्मीकि जयंती महर्षि वाल्मीकि के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है, जो जिन्हें भारतीय पौराणिक साहित्य में रामायण के रचनाकार के रूप में जाना जाता है।

वाल्मीकि ने रामायण की रचना की, जो न केवल हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, बल्कि भारतीय संस्कृति और साहित्य का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। उनकी रचनाएं जीवन के मूल्य, धर्म, और नैतिकता का पालन करने की प्रेरणा देती हैं। इसी प्रकार भारतीय समाज में सांस्कृतिक और धार्मिक जागरूकता बढ़ाने के लिए किया जाता है। इसे मनाने से वाल्मीकि की शिक्षाओं और उनके जीवन के आदर्शों को सराहा जा सकता है। समानता और परिवर्तन का प्रतीक वाल्मीकि की कहानी, जो एक डाकू से महर्षि बनने की है, आज भी समाज में बदलाव और सुधार की प्रेरणा देती है।

यह संदेश देती है कि कोई भी व्यक्ति अपने कर्मों और प्रयासों से अपनी पहचान और स्थिति बदल सकता है। यह पर्व विभिन्न जातियों और धर्मों के बीच एकता का प्रतीक है और इसे सभी सामाजिक वर्गों द्वारा मनाया जाता है, जिससे एकजुटता की भावना बढ़ती है। इस प्रकार, वाल्मीकि जयंती एक प्रेरणा देने वाला पर्व है, जो न केवल महर्षि वाल्मीकि की महिमा को बढ़ाता है, बल्कि उनके द्वारा प्रस्तुत मूल्यों और शिक्षाओं पर भी प्रकाश डालता है।

महर्षि वाल्मीकि जयंती तिथि   

हिंदू तिथि के अनुसार, महर्षि वाल्मीकि का जन्मदिन आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि को पड़ता है, यानी अश्विन महीने की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर में सितंबर-अक्टूबर से मेल खाती है।

शरद पूर्णिमा का पौराणिक, धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्त्व

 

शरद पूर्णिमा का पौराणिक, धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक महत्त्व | चांदनी में खीर रखने का कारण | जानिये कौमुदी महोत्सव |

 



चंद्रमा का हमारे जीवन में बहुत अधिक वैज्ञानिक महत्व है, और यह पृथ्वी पर रहने वाले हर मनुष्य और प्राणी को प्रभावित करता है. इसकी चुम्बकीय आकर्षण शक्ति का पानी पर बहुत प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण समुद्र में ज्वार भाटा आता है. हमारे शरीर में दो तिहाई से अधिक पानी होता है इसलिए प्रत्येक व्यक्ति भी चन्द्रमा से प्रभावित होता है. चंद्रमा के दुष्प्रभाव के कारण कुछ लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त या पागल  हो सकते हैं, जिसे चाँदमारा कहा जाता है. ग्रीक भाषा में इस भारतीय विधा को समझ कर लुनेटिक शब्द बना, जो लूनर यानी चन्द्रमा से बना है. पूर्णचंद्र की रात में इस तरह के व्यक्ति अत्यधिक परेशान और उद्वेलित रहते हैं.

वैसे तो प्रत्येक मास की पूर्णमासी अपने आप में विशिष्ट होती है लेकिन शरद पूर्णिमा का विशेष महत्व है क्योंकि इस तिथि के बाद ही शरद ऋतु का आगमन होता है. वर्षा ऋतु के बाद यह पहली पूर्णिमा होती है, इसलिए वातावरण में प्रदूषण का स्तर न्यूनतम होता है. इस दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे अधिक नजदीक होता है,  इसलिए पूर्णचंद्र की किरणें (चांदनी ) अपने साथ ब्रह्मांड से जो अमृत लेकर आती है, उसका रास्ते में क्षरण बहुत कम होता है और यह पृथ्वी की सतह पर गिरता है.

ज्योतिष गणना के अनुसार संपूर्ण वर्ष में आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा के दिन ही चंद्रमा 16 कलाओं से युक्त होता है। 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा से निकले ऊर्जावान प्रकाश को चांदनी कहते हैं जो समस्त रूपों वाली बताई गई है। चूंकि इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है,  यह अपेक्षाकृत अधिक बड़ा दिखाई देता है। इसलिए इस दिन की चांदनी वर्ष भर में सबसे अधिक चमकीली होती है.

हिंदू धर्म में चंद्रमा की सोलह कलाओं का विशेष महत्व है। श्रीकृष्ण को भी 16 कलाओं से युक्त माना जाता था। चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त है, जिसका अर्थ है कि चंद्रमा अपने 16 विशेष गुणों से युक्त होता है और उस दिन उसके प्रकाश में भी 16 खूबियाँ होती हैं । ये 16 कलाएं चंद्रमा की विभिन्न अवस्थाओं और गुणों का प्रतिनिधित्व करती हैं, जैसे  अमृत, मनदा (विचार), पुष्प (सौंदर्य), पुष्टि (स्वास्थ्य), तुष्टि( इच्छापूर्ति), ध्रुति (विद्या), शाशनी (तेज), चंद्रिका (शांति), कांति (कीर्ति), ज्योत्सना (प्रकाश), श्री (धन), प्रीति (प्रेम), अंगदा (स्थायित्व), पूर्ण (पूर्णता अर्थात कर्मशीलता) और पूर्णामृत (सुख)। शरद पूर्णिमा की  रात चंद्रदेव अपनी इन सोलह कलाओं की अमृतवर्षा से धरतीवासियों को आरोग्य व उत्तम स्वास्थ्य का वरदान देते हैं। इसलिए कहा जाता है कि इस दिन चन्द्रमा की रोशनी में नहाने से मनुष्य में भी ये 16 कलाएं आने की संभावना बढ़ जाती है। शास्त्रों के अनुसार, लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात चंद्रमा की इन अमृतमयी किरणों को अपनी नाभि पर ग्रहण कर पुनर्योवन की शक्ति प्राप्त करता था।

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भू लोक पर लक्ष्मी जी घर घर विचरण करती हैं, जो जागता रहता है उस पर उनकी विशेष कृपा होती है। इसलिए शरद पूर्णिमा को हर्ष और उल्लास के साथ त्यौहार के रूप में मनाने की पौराणिक परंपरा रही है.

शरद पूर्णिमा की खीर का आरोग्‍य से संबंध है.  

शरद पूर्णिमा की चांदनी  में औषधीय गुण होते  हैं। कहा जाता है कि माता लक्ष्मी को दूध, मिष्ठान और चावल बहुत पसंद है और  खीर में इन तीनों चीजों का ही मिश्रण होता है इसलिए इस दिन खीर का विशेष महत्व है. शरद पूर्णिमा की रात्रि में आकाश के नीचे रखी जाने वाली खीर में अमृत का समावेश हो जाता है, जिसे खाने से शरीर नीरोग होता है और पित्त का प्रकोप कम हो जाता है। यदि आंखों की रोशनी कम हो गई है तो इस पवित्र खीर का सेवन करने से आंखों की रोशनी में सुधार हो जाता है। शरद पूर्णिमा की खीर को खाने से हृदय संबंधी बीमारियों का खतरा भी कम हो जाता है। साथ ही श्वास संबंधी बीमारी भी दूर हो जाती है। पवित्र खीर के सेवन से चर्म रोग भी ठीक हो जाता है। वाणी के दोष भी दूर होते हैं. खीर की जो सामग्री है दूध चावल और चीनी तीनों ही चंद्रमा से जुड़ी हुई वस्तुएं हैं जिसके सेवन से स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है, कुंडली का चंद्र दोष निवारण भी होता है. वर्ष में एक बार शरद पूर्णिमा की रात दमा रोगियों के लिए वरदान बनकर आती है।

चंद्रमा की रोशनी में खीर को रखने का वैज्ञानिक कारण

एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक होती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। अध्ययन के अनुसार दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

शोध के अनुसार खीर को चांदी के पात्र में बनाना सर्वोत्तम होता है क्योंकि चांदी में प्रतिरोधकता अधिक होती है जिससे विषाणु दूर रहते हैं।  इस खीर में हल्दी या किसी अन्य पदार्थ का मिश्रण क्योंकि इससे चांदनी के औषधीय तत्व नष्ट हो सकते हैं. इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को कम से कम 30 मिनट तक शरद पूर्णिमा की चांदनी का स्नान करना चाहिए।

धार्मिक मान्यताये  

माँ लक्ष्मी अपने वाहन के साथ भ्रमण करते शरद पूर्णिमा की रात्रि में एरावत  हाथी अपने वाहन के साथ बैठती हैं.  उनकी विशेष कृपा हम पर उस रात्रि में बरसती है. शरद पूर्णिमा वाली रात्रि को  महाशक्ति की रात्रि होती है और तीन देवियों की महापूजा होती है - महाकाली, मां सरस्वती और महालक्ष्मी.

शरद पूर्णिमा के आश्चर्यजनक तथ्य 

पद्म पुराण के अनुसार माता लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय ब्रह्मकमल पुष्प साल में सिर्फ एक बार इसी अवसर पर खिलता है। द्वापर युग में माता लक्ष्मी ने इसी दिन श्री राधा के रूप में अवतार लिया था।

कौमुदी महोत्सव

अशविन महीने की शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि जिसे शरद पूर्णिमा के नाम से जाना जाता है को  रास पूर्णिमा या कौमुदी पूर्णिमा भी कहा जाता है. इसलिए शरद पूर्णिमा के पर्व को कौमुदी उत्‍सव के रूप में भी मनाया जाता है. इस उत्सव को कला, समृद्धि, शिक्षा, संसार विषयक कार्यों, सौंदर्य, रति क्रियाओं हेतु मनाया जाता है. इसी समय प्रकृति में शरद ऋतु का नवीन रुप दिखाई पड़ता है. कौमुदी महोत्सव  भारत का प्राचीनतम उत्सव है जो राष्ट्र की पारंपरिक सांस्कृतिक चेतना का प्रमाण है. यह सर्वसमृद्ध, सुविख्यात, भारतीय कला, कौशल व प्रकृति के प्रेम का महापर्व होता है.

कौमुदी पर्व एक तरफ ऋतु परिवर्तन तो दूसरी तरफ बौद्धिक विकास और विभिन्न प्रकार की कलाओं में निपुणता प्राप्त करने के संकेत भी प्रस्तुत करता है. इसे मानव सुशिक्षित व नम्र हो जीवन जीने की भिन्न-भिन्न कलाओं में दक्षता प्राप्त करता है. जीवन के अन्तिम लक्ष्य मोक्ष को भी सहज ही प्राप्त कर लेता है. इस पर्व को ऋतुराज के नाम से भी संबोधित किया जा सकता है. क्योंकि इस दौरान भी प्रक्रति का रंग अपने चरम को छूता दिखाई देता है. इस उत्सव के दौरान पेड़-पौधों में अनेक प्रकार के रंग-बिरंगे फूल भी खिल उठते हैं. खेतों मे फसलों का अलग रंग दिखाई पड़ता है. मंद-मंद बहती ठंडी हवा ओर व खिली हुई चांदनी सभी का मन मोह लेती है. इस समय प्रकृति का मनमोहक अंदाज दिखाई पड़ता है जो प्रत्येक व्यक्ति को मनमुग्ध कर नयी चेतनाका संचार करता है. प्रकृतिक सौंदर्य के कारण ही इसे ऋतुराज भी कहा जाता है.

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