साबरमती रिपोर्ट - गोधर कांड पर हिन्दुओं की आँखे खोलने का प्रयास
साबरमती रिपोर्ट
नाम से एक डॉक्यूमेंटरी रिलीज हुई है और यह फिल्म सिनेमाघरों में है। इस फ़िल्म के
माध्यम से आज की युवा पीढ़ी को गोधरा कांड की सच्चाई मालूम पड़ सकेगी और अन्य लोगों
को भी गोधरा कांड की यादें ताजा हो जाएंगे
यह स्वाभाविक है
कि साबरमती रिपोर्ट फ़िल्म के बाद गोधरा कांड एक बार फिर सुर्खियों में आ गया है
लेकिन विपक्षी राजनीतिक पार्टियां इस पर चर्चा से बच रही हैं। ये राजनीतिक
पार्टियां नहीं चाहती है की इस पर चर्चा हो क्यों? क्योंकि अगर इस पर चर्चा होगी और जो सच इस फ़िल्म के माध्यम से सामने आया
है उसके कारण कांग्रेस पार्टी कठघरे में खड़ी होगी और कांग्रेस के नेतृत्व में बनी
यूपीए सरकार के सारे घटक दल भी कटघरे में आयेंगे।
हमारी पीढ़ी के
लोगों को तो अच्छे ढंग से याद है की 2002 में गोधरा में क्या हुआ था लेकिन आज की
पीढ़ी के वे लोग जिन की उम्र 35 वर्ष से कम है उसे शायद इसके बारे में बहुत
अधिक पता भी नहीं होगा। इसलिए पूरे मामले की एक शुभम बताना आवश्यक होगया। 27 फरवरी 2002 को सुबह साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन
को गोधरा स्टेशन के पास रोका गया ओर मुसलमानों की उग्र भीड़ ने इस ट्रेन के कोच
नंबर s 6 में आग लगा दी और 59 श्रद्धालुओं को जिंदा जलाकर मार दिया गया।
इस कोच में श्रद्धालु राम भक्त थे जो अयोध्या से वापस आ रहे थे जहाँ भगवान श्री
राम के मंदिर को आक्रांता बाबर द्वारा तोड़ कर उस पर बाबरी मस्जिद का निर्माण करा
दिया गया था। मुस्लिमों द्वारा यह
बर्बरतापूर्ण कृत्य इसलिए किया गया था की ये सभी श्रद्धालु राम जन्मभूमि पर
निर्मित श्री राम के अस्थायी मंदिर में दर्शन करके आ रहे थे । इस घृणित और अमानवीय
कृत्य में 25 महिलाएं और 20 बच्चों सहित
59 लोगों की मौके पर ही मृत्यु हो गई थी. अनेक लोग गंभीर रूप से जल गए थे और कई
ऐसे लोग थे है जो इस कार्रवाई को देख कर अपना दिमागी संतुलन खो बैठे थे.
साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन ने जैसे ही गोधरा
स्टेशन से निकलकर रफ्तार पकड़ी, आपातकालीन ब्रेक लगाकर मुस्लिम
बहुल इलाके में इसे रोक लिया गया. 2000 से अधिक नर पिशाचों की भीड़ ने इस ट्रेन पर
पथराव किया और पेट्रोल डालकर एस 6 कोच में आग लगा दी तथा अन्य चार बोगियों को भी
क्षतिग्रस्त कर दिया. इस ट्रेन में 1700 से अधिक श्रद्धालु अयोध्या से वापस आ रहे
थे इसलिए इन सभी को जलाकर मार देने की योजना थी लेकिन एक कोच को आग के हवाले करके
वह 59 श्रद्धालुओं को ज़िंदा जलाकर मारने में सफल हो गए. वे कौन लोग थे जिन्होंने ट्रेन पर पथराव किया?
वे कौन लोग थे जिन्होंने पेट्रोल डालकर ट्रेन में आग लगायी? देश को ये जानने का अधिकार उस समय भी था और आज भी है लेकिन यह जानना तो
दूर, इस आगजनी में
मृतकों के नाम उजागर नहीं किए गए. लेकिन इस पर तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनैतिक दल
और मानवतावादी बात नहीं करते, क्योंकि मरने वाले हिंदू थे और हिंदुओं की जान की इस देश में कोई कीमत
नहीं. सोचिए अगर इनकी जगह ट्रेन में जलकर मरने वाले लोग मुसलमान होते तो क्या
प्रतिक्रिया होती और कांग्रेस एवं इन धर्मनिरपेक्षता और मानवतावादियों का विमर्श
क्या होता, समझना मुश्किल नहीं है.
इस राक्षसी
कार्य की प्रतिक्रिया स्वरूप गोधरा में दंगे भड़क उठे जिसमे लगभग 700 मुसलमान और
350 से अधिक हिंदू हताहत हुए लेकिन विमर्स बनाने वाले लोगों ने, जिसमें राजनीतिक पार्टियां और भारत का वामपंथी
इस्लामिस्ट मीडिया भी शामिल था, इस पर पर्दा डालने की कोशिश की, कि साबरमती
एक्सप्रेस में क्या हुआ किन्तु इस जघन्य
घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप भड़के दंगों को
बढ़ा चढ़ाकर प्रस्तुत करने और हिंदुओं को आक्रमणकारी और मुसलमानों को विक्टिम सिद्ध
करने में जुट गई.
6 मार्च 2002 को
गुजरात सरकार द्वारा ट्रेन में आग के कारणों तथा उसके बाद भड़के दंगों की जांच के
लिए एक आयोग का गठन किया गया था जिसकी अध्यक्षता गुजरात उच्च न्यायालय के
न्यायाधीश केजी शाह थे. कांग्रेस ने न्यायमूर्ति शाह की राज्य के मुख्यमंत्री
नरेंद्र मोदी से नजदीकी पड़ने का आरोप लगाया और आयोग की निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह
लगा दिया. इस कारण इस आयोग का पुनर्गठन किया गया और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जी टी नानावती को इस आयोग का अध्यक्ष
बना दिया गया इसलिए इस आयोग को नानावती शाह आयोग के रूप में जाना जाता है. आयोग ने
अपनी रिपोर्ट में कहा कि साबरमती एक्सप्रेस के एस 6 कोच को पूर्व नियोजित षड्यंत्र
के अंतर्गत आग लगाई गई.
गोधरा दंगों के
कारण ही समूचे हिंदू समुदाय, भाजपा, गुजरात सरकार और विशेषकर तत्कालीन
मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट किया गया और पूरी दुनिया में बदनाम भी किया
गया. मोदी को अमेरिका का वीजा न मिले इसलिए भारत के कथित बुद्धिजीवियों और
मानवाधिकारवादियों ने अमेरिका को ज्ञापन भी भेजे. 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व
में यूपीए की सरकार बनने के बाद मुस्लिम तुष्टीकरण को धार देने के उद्देश्य से
मोदी को जेल भेजने के लिए जाल बिछाया जाने लगा. साबरमती ट्रेन में जिंदा जलाकर मार डाले गए 59
श्रद्धालुओं की मौत को दुर्घटना सिद्ध करने के लिए तत्कालीन रेलमंत्री लालू प्रसाद
यादव ने रेलवे सेफ्टी एक्ट के अंतर्गत सर्वोच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश बेनर्जी
की अध्यक्षता में बेनर्जी आयोग का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट में कार सेवकों
द्वारा कोच के अंदर खाना बनाने के कारण आग लगना बता कर इसे दुर्घटना सिद्ध करने की
कोशिश की. आप समझ सकते हैं कि सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों का भी स्तर क्या
हो सकता है.
कांग्रेस ने
तीस्ता सीतलवाड़ नाम की एक कट्टरपंथी मुस्लिम महिला को आगे किया गया. उसके सब रंग
नाम के एनजीओ को विदेशों से करोडो रुपये की फंडिंग मिली जिससे उसने भाजपा और
नरेंद्र मोदी के विरुद्ध बहुत बड़ा विमर्श खड़ा किया. गुजरात के कट्टरपंथी मुस्लिम
नेता अहमद पटेल ने भाजपा और मोदी के विरुद्ध षड्यंत्रकारी विमर्श के द्वारा मोदी
है फिर और अमित शाह को फंसाने की इसके लिए उन्होंने एक आईपीएस अधिकारी संजीव भट्ट
को मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया मोहरे के रूप में इस्तेमाल किया. कांग्रेस, वामपंथियों, मुस्लिम चरमपंथियों
और अर्बन नक्सलियों के लगातार षड्यंत्र के कारण कई पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी तथा
भाजपा नेताओं को जेल में भी रहना पड़ा. तीस्ता सीतलवाड़ जैसे चरमपंथियों तथा मीडिया
के विमर्श कार्यों को तत्कालीन कांग्रेस सरकार द्वारा समय समय पर सम्मानित किया
गया. तीस्ता सीतलवाड को भाजपा और मोदी के विरुद्ध सांप्रदायिक षड़यंत्रों और
विमर्शों की लंबी श्रृंखला के उल्लेखनीय योगदान के लिए पद्मश्री से सम्मानित किया
गया. तीस्ता सीतलवाड की विघटनकारी प्रवृत्ति को प्रोत्साहन देने के लिए सोनिया
गाँधी के नेतृत्व वाली नेशनल एडवाइजरी काउंसिल का सदस्य भी बनाया गया. हिंदुओं का
दमन करने के लिए सांप्रदायिक हिंसा बिल ड्राफ्ट करने वाली समिति में भी उन्हें
शामिल किया गया.
अनन्तोगत्वा
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा गुजरात दंगों की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया और
उसकी रिपोर्ट के आधार पर तत्कालीन मुख्यमंत्री और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र
मोदी को गुजरात दंगों के मामले में क्लीनचिट दी गई. लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व में
राष्ट्र की विघटनकारी शक्तियों ने हार नहीं मानी और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर
लोकप्रिय हो रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छवि को लांछित करने के लिए बीबीसी
के माध्यम से गुजरात दंगों पर झूठ और षड्यंत्रकारी विमर्श आधारित एक डॉक्यूमेंट्री
का निर्माण कराया गया, जिसे केंद्र सरकार को
प्रतिबंधित करना पड़ा. फिर भी कांग्रेस द्वारा राष्ट्र विरोधी शक्तियां के माध्यम
से इस फ़िल्म का प्रदर्शन करवाया गया. इस डॉक्यूमेंट्री में साबरमती ट्रेन में
कारसेवकों को जिंदा जलाकर मार देने की घटना की असलियत नहीं है.
विशेष अदालत ने गोधरा कांड में 31 लोगों को दोषी
पाया, जिसमें 11 को फांसी, 20 को उम्रकैद
की सजा सुनाई। 63 अन्य पर्याप्त साक्ष्य न होने के कारण बरी कर
दिया. अरशद मदनी और महमूद मदनी का देवबंदी गिरोह इन सजायाफ्ता अपराधियों के मामले
सर्वोच्च न्यायालय में लड़ रहा है, जो शुरू से ही गोधरा मामले को मुसलमानों के
विरुद्ध विमर्श के रूप में प्रचारित प्रसारित करता रहा है. धन की इस गिरोह के पास
कमी नहीं है क्योंकि हलाल सर्टिफिकेशन और सरकारी अनुदान से निचोड़ा गया हिंदुओं का
पैसा हिंदुओं के विरुद्ध ही इस्तेमाल किया जा रहा है.
फ़िल्म रिलीज
होने के बाद भी वामपंथ-इस्लामिक और विमर्शवादी मीडिया चुप हैं और इस फ़िल्म को
इग्नोर कर रहा है लेकिन देश चुप नहीं रह सकता खासतौर से राष्ट्रवादी चुप नहीं रह
सकते. आज की युवा पीढ़ी को इसे अवश्य देखना चाहिए और समझना चाहिए कि हिंदू बाहुल्य
इस देश में हिंदुओं के साथ कितना भेदभाव किया जाता है. यह समझ उनके भविष्य, अस्तित्व
और सुरक्षा के लिए अत्यंत आवश्यक है. अधिकांश राजनीतिक दल मुस्लिमों के थोक वोट
बैंक के सौदागर हैं और इसलिए हिंदुओं के वास्तविक मुद्दों को भी अनदेखा करते हैं.
बात अगर मुसलमानों की हो तो हिंदुओं की जान की भी कोई कीमत नहीं.
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मिश्रा ~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~