महाराष्ट्र ने दिखाया रास्ता : नहीं बंटेंगे और जुड़े रहेंगे तो जीतेंगे भी और कटेंगे भी नहीं.
हरियाणा के चुनाव में जब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने “बंटेंगे तो कटेंगे” और “एक रहेंगे तो नेक रहेंगे” का नारा दिया था तो कथित धर्मनिरपेक्षतावादी और हिंदुओं को जातियों में बांटने वाले लोग तिलमिला गए थे, क्योंकि यह बात अटपटी जरूर लेकिन अक्षरस: सत्य है. इन लोगों ने योगी को कठघरे में खड़ा करने के साथ साथ चुनाव आयोग से शिकायत भी की कि यह नारा विभाजनकारी सांप्रदायिकता को बढ़ावा देगा.
महाराष्ट्र के चुनाव में योगी के इस नारे को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत का समर्थन मिला. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस नारे को अपना लिया और इस नारे को नई तरह से प्रस्तुत किया कि “एक रहेंगे तो सेफ रहेंगे”, और इसके बाद तो अमित शाह से लेकर देवेन्द्र फड़णवीस तक सभी ने योगी के बांटेंगे तो कटेंगे नारे को दोहराया. इस नारे का प्रभाव सामान्य जन मानस तक गया ओर विपक्षी महाअघाड़ी गठबंधन को इस बात का पूरा विश्वास था कि मुसलमान तो एकजुट होकर वोट करते हैं लेकिन हिंदू कभी एक नहीं हो सकते और ना ही एक एकजुट होकर वोट कर सकते हैं. महाअघाड़ी के सभी घटक दलों में इस नारे का पुरज़ोर विरोध किया और कहा कि महाराष्ट्र में ये नहीं चल सकता है. बीजेपी की महायुती गठबंधन के घटक अजीत पवार ने भी इस नारे को अनुचित बताया. और तो और महाराष्ट्र बीजेपी के एक बड़े नेता रहे गोपीनाथ गुंडे की बेटी पंकजा मुंडे ने भी इस नारे से अपने को असंबद्ध कर लिया. उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री केशव मौर्या ने भी इस नारे से अपने को अलग कर लिया.
लेकिन ! महाराष्ट्र में तो इस नारे ने सभी राजनीतिक पंडितों को गलत साबित करते हुए चुनावी सफलता के अब तक के सारे कीर्तिमान ध्वस्त करते हुए भाजपा गठबंधन को 235 सीटें जिसमें भाजपा को 136, शिवसेना को 57, और एनसीपी अजित पवार को 41 सीटें मिलती दिख रही है. एक लंबे अरसे बाद महाराष्ट्र में तीन चौथाई बहुमत की सरकार बनेगी.
राहुल गाँधी, शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने मुसलमानों की शरण में पहुँच गए. कांग्रेस और महाआघाडी ने उनकी 17 सूत्री मांगों को राष्ट्रीय हित दरकिनार करते हुए स्वीकार कर लिया था कि इसके सहारे वे चुनावी वैतरणी पार कर लेंगे. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और ऑल इंडिया उलेमा बोर्ड ने उनके पक्ष में फतवे भी जारी कर दिए लेकिन फतवों की फजीहत उड़ गई. उद्धव ठाकरे की शिवसेना 21, कांग्रेस 17 और शरद पवार की एनसीपी 9 सीट पर सिमटने वाली है. इसमें कोई भी अपनी इज्जत बचाने में सफल नहीं हो सका. सबसे अधिक अपमान शरद पवार का हुआ है जिन्होंने उम्र के आखिरी पड़ाव पर भी देश हित से समझौता किया राष्ट्र की एकता और अखंडता से समझौता किया लेकिन जनता ने उनके मुँह पर कालिख पोत दी. अब तो वह सम्मान सहित संन्यास भी नहीं ले पाएंगे.
- वैसे तो यही परिस्थितियां झारखंड में भी थी लेकिन वहाँ का राजनैतिक वातावरण थोड़ा अलग हैं जिसमें राष्ट्रवाद प्रमुख मुद्दा नहीं बन पाया उस पर हम लोग अलग से चर्चा करेंगे.
लेकिन बटेंगे तो कटेंगे आज का यथार्थ है .
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