ये बात बिलकुल सत्य है कि कांग्रेस का बहुत योगदान है क्योंकि अगर कांग्रेस न होती तो राम मंदिर के लिए आजादी के बाद संघर्ष की जरूरत ही नहीं पड़ती.
कांग्रेस ये तब कह रही है जब अयोध्या में भगवान श्रीराम का भव्य मंदिर 22 जनवरी 2024 को प्रधानमंत्री द्वारा प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूरी तरह से तैयार हो रहा है. पूरे विश्व की निगाहें अयोध्या की तरफ लगी हैं.पूरा देश राममय है, हर जगह राम की चर्चा है इसके बीच में एक वर्ग ऐसा भी है जो राम मंदिर बनने और प्राण प्रतिष्ठा के आयोजन से खुश नहीं है, कुछ सांप्रदायिकता के कारण, तो कुछ तुष्टिकरण के कारण. आयोजन का सबसे मुखर विरोध कांग्रेस कर रही है. इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं क्योंकि यह गाँधी नेहरु परिवार का प्राकृतिक गुण हैं. उनका विरोध कुछ कुछ नेहरू जैसा है, जो अपने नाम के आगे पंडित लगाने के बाद भी घोर हिंदू विरोधी थे और जीवन पर्यंत सनातन धर्म और संस्कृति को नष्ट करने का कार्य करते रहे. नेहरु का रुख हिन्दुओं के प्रति कैसा था, अयोध्या मामले पर उनके पत्रों से समझा जा सकता है, जो नेहरु वांग्मय में दिए गए हैं.
22/23 दिसंबर 1949 के मध्य की रात्रि राम जन्मस्थान पर रामलला के प्रकट होने की घटना से नेहरू बहुत नाराज थे. उनकी प्रतिक्रिया वैसी थी जैसे किसी इस्लामिक राष्ट्र में गैर इस्लामिक कार्य हो गया हो. धार्मिक आधार पर देश के विभाजन के बाद हिंदुओं के इस देश में आक्रान्ताओं द्वारा नष्ट किए गए या कब्जा किए गए धार्मिक स्थलों के लिए कानून बनाकर न केवल उनकी पूर्व स्थिति बहाल की जा सकती थी बल्कि राष्ट्रीय स्वाभिमान की पुनर्स्थापना की जा सकती थी. वह मुस्लिम तुष्टीकरण की बैसाखी से देश पर राज करने के बजाय 80% जनसंख्या के दिलों पर राज़ कर सकते थे, लेकिन नेहरू ने मुस्लिम तुष्टीकरण का रास्ता क्यों चुना, ये कोई नहीं जानता ! या बताना नहीं चाहता ! रामलला के प्रकट होने का समाचार सुनकर दूर दराज के लोग सीधे अयोध्या चले आ रहे थे और हजारों लोगों का जमावड़ा लग गया. जिला प्रशासन के लिए कानून और व्यवस्था बनाए रखने की बड़ी चुनौती थी. जिला कांग्रेस अध्यक्ष अक्षय ब्रह्मचारी के नेतृत्व में स्थानीय कांग्रेस कार्यकर्ता धरना प्रदर्शन और आमरण अनशन कर जिला प्रशासन पर मूर्तियां हटाने का दबाव बना रहे थे.
नेहरू ने प्रदेश के मुख्यमंत्री पंत से बात की और तुरंत मूर्तियां हटवाने का निर्देश दिया. ठोस कार्रवाई होती न देख नेहरू ने सीधे फैज़ाबाद के जिलाधिकारी केकेके नायर से फ़ोन पर बात करके तुरंत गर्भगृह से मूर्तियां हटवाने और 22 दिसंबर 1949 से पहले के स्थिति बहाल करने का निर्देश दिया. जिलाधिकारी नायर ने बताया कि जन्मभूमि पर हजारों की संख्या में लोगों का जमावड़ा है ऐसे में मूर्तियाँ हटाना बहुत मुश्किल है. मुख्यमंत्री पंत ने भी ऐसा करने के लिए कहा. बढ़ते राजनीतिक दबाव का मुकाबला करने के लिए जिलाधिकारी ने 25 दिसंबर 1949 को ज़ाब्ता फौजदारी की धारा 145 के अंतर्गत जन्मभूमि परिसर को कुर्क कर लिया और फैज़ाबाद नगर पालिका के तत्कालीन अध्यक्ष बाबू प्रियादत्त राम को रिसीवर नियुक्त कर दिया और उन्हें रामलला की विधिवत पूजा अर्चना का उत्तरदायित्व भी सौंपा. उन्होंने पूजा अर्चना की जो विधि अपनाई वहीं आज तक चली आ रही है. गुस्से में आगबबूला नेहरू ने गोविंद बल्लभ पंत से फ़ोन पर लंबी बात की. पंत ने नेहरू को समझाया कि स्थितियां बहुत खराब हैं. मूर्तियां हटाने का प्रयत्न किया गया तो भीड़ नियंत्रित करना कठिन होगा.
क्रोधित नेहरू ने 29 दिसंबर 1949 को पंत को एक टेलीग्राम भेजा
‘‘मैं अयोध्या के घटनाक्रम से चिंतित हूं. मैं उम्मीद करता हूं कि आप जल्दी से जल्दी इस मामले में खुद दखल देंगे.वहां खतरनाक उदाहरण पेश किए जा रहे हैं. जिनके बुरे परिणाम होंगे.’’
मुख्यमंत्री पंत ने प्रदेश के मुख्य सचिव के माध्यम से जिलाधिकारी को लिखित आदेश दिया कि मूर्तियों को तुरंत गर्भगृह से बाहर रख दिया जाए और इसके लिए जितना भी बल प्रयोग करना पड़े करें. जिलाधिकारी ने बल प्रयोग करने से साफ इनकार करते हुए कहा कि ऐसा करने से जनाक्रोश होगा और बड़ी संख्या में लोग हताहत हो जाएंगे जो प्रशासनिक और राजनीतिक रूप से बिल्कुल भी उचित नहीं होगा.
7 जनवरी 1950 को नेहरू ने गवर्नर जनरल चक्रवर्ती राजगोपालाचारी को पत्र लिखा
‘‘मैंने पिछली रात पंत जी को अयोध्या के बारे में लिखा और यह पत्र एक आदमी के हाथ से लखनऊ भेजा. बाद में पंडित जी ने मुझे फोन किया. उन्होंने कहा कि वह बहुत चिंतित हैं और वह खुद इस मामले को देख रहे हैं. वह कार्यवाही करना चाहते हैं, लेकिन वह चाहते थे कि कोई प्रतिष्ठित हिंदू पूरे मामले को अयोध्या के लोगों को समझा दे. मैंने उनको आपके पत्र के बारे में बता दिया, जो आपने मुझे सुबह भेजा है.”
इसके बाद राम जन्मभूमि के मामले में 16 जनवरी 1950 को फैज़ाबाद के सिविल जज की अदालत में मुकदमा दायर हो गया और मामला न्यायिक विचाराधीन हो गया.
5 फरवरी 1950 को नेहरू ने फिर पंत को पत्र लिखा:
‘‘मुझे बहुत खुशी होगी, अगर आप मुझे अयोध्या के हालात के बारे में सूचना देते रहें. आप जानते ही हैं कि इस मामले से पूरे भारत और खासकर कश्मीर में जो असर पैदा होगा, उसको लेकर मैं बहुत चिंतित हूं. मैंने आपको सुझाव दिया था कि अगर जरूरत पड़े तो मैं अयोध्या चला जाऊंगा. अगर आपको लगता है कि मुझे जाना चाहिए तो मैं तारीख तय करूं. हालांकि मैं बुरी तरह व्यस्त हूं.’’
पंतजी ने 9 फरवरी 1950 को जवाब दिया कि अयोध्या के हालात में कोई उल्लेखनीय बदलाव नहीं है. अगर समय उपयुक्त होता तो मैंने खुद ही आपसे अयोध्या आने का आग्रह किया होता.’’
5 मार्च 1950 को नेहरू ने हरिजन पत्रिका के संपादक केजी मशरूवाला को पत्र लिखा:
“मेरे प्यारे किशोरी भाई, 4 मार्च के आपके पत्र के लिए धन्यवाद. .....आपने अयोध्या की मस्जिद का जिक्र किया. यह वाकया दो या तीन महीने पहले हुआ और मैं इसको लेकर बहुत बुरी तरह चिंतित हूं. संयुक्त प्रांत सरकार ने इस मामले में बड़े-बड़े दावे किए, लेकिन असल में किया बहुत कम. फैजाबाद के जिला अधिकारी ने दुर्व्यवहार किया और इस घटना को होने से रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया. यह सही नहीं है कि बाबा राघवदास ने यह शुरू किया, लेकिन यह सच है कि यह सब होने के बाद उन्होंने इसे अपनी सहमति दे दी. यूपी में कई कांग्रेसियों और पंत ने इस घटना की कई मौकों पर निंदा की, लेकिन वह कोई फैसलाकुन कार्रवाई करने से बचते रहे. संभवत: वह ऐसा बड़े पैमाने पर दंगे फैलने के डर से कर रहे हैं. मैं इससे बुरी तरह अशांत हूं. मैंने बार-बार पंडित जी का ध्यान इस तरफ खींचा है. मैं इस बारे में बिल्कुल आश्वस्त हूं कि अगर हमने अपनी तरफ से उचित व्यवहार किया होता तो पाकिस्तान से निपटना आसान हो गया होता. जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो आज बहुत से कांग्रेसी भी सांप्रदायिक हो गए हैं और इसकी प्रतिक्रिया भारत में मुसलमानों के प्रति उनके व्यवहार में दिखती है.”
नेहरू ने एक और पत्र 5 मार्च 1950 को पंत को लिखा जिसे फैज़ाबाद जिला प्रशासन को भेजा गया जिसमें उन्होंने गर्भगृह से मूर्तियां तुरंत हटाने का आदेश दिया था. जिलाधिकारी नायर ने सीधे प्रधानमंत्री से मिले निर्देशों पर कार्य करने में असमर्थता व्यक्त की. मुख्य सचिव को भेजे पत्र में नायर ने लिखा कि अगर सरकार किसी भी कीमत पर मूर्तियां हटाने का फैसला करती है तो उससे पहले उन्हें पद से हटा दिया जाए क्योंकि मूर्तियां हटाने के लिए बल प्रयोग करने के कारण बड़ी संख्या में लोगों की जानें जा सकती हैं. इस पृष्ठभूमि में नेहरू ने पंत को एक और पत्र भेजा जिसमें उन्होंने लिखा, जिलाधिकारी आदेशों की अवहेलना कर रहे हैं. वे अयोध्या जाने के लिए तैयार हैं, लेकिन मुख्यमंत्री पंत, जो स्वयं रामभक्तों के आक्रोश के कारण अयोध्या नहीं जा सके थे, ने उन्हें ऐसा करने से मना कर दिया क्योंकि इससे कानून और व्यवस्था की स्थिति और बिगड़ जाने का खतरा था.
17 अप्रैल 1950 नेहरू ने फिर पंत को पत्र लिखा
“यूपी में हाल ही में हुई घटनाओं ने मुझे बुरी तरह दुखी किया है. मैं लंबे समय से महसूस कर रहा हूं कि सांप्रदायिकता के लिहाज से यूपी का माहौल बुरी तरह बिगड़ता जा रहा है. मस्जिद और मंदिर के मामले में जो कुछ भी अयोध्या में हुआ और होटल के मामले में फैजाबाद में जो हुआ, वह बहुत बुरा है. लेकिन सबसे बुरी बात यह है कि यह सब चीजें हुईं और हमारे अपने लोगों की मंजूरी सी हुईं और वे लगातार यह काम कर रहे हैं. मुझे जो रिपोर्ट मिल रही हैं वह बताती हैं कि भले ही कोई बड़ी घटना न हो रही हो, लेकिन सामान्य माहौल वहां के असली हालात को बताता है. एक दिन एक मुसलमान एक शहर में सड़क पर चला जा रहा था, उसको तमाचा मारा गया और कहा गया कि पाकिस्तान चले जाओ या फिर उसको थप्पड़ मारा जाता है या उसकी दाढ़ी खींची जाती है. गलियों में मुसलमान औरतों पर भद्दी टिप्पणियां की जा रही हैं और उन पर ‘पाकिस्तान जाओ’ जैसे फिकरे कसे जा रहे हैं. हो सकता है कि यह काम कुछ ही लोग कर रहे हों, लेकिन यह बात तो है ही कि हमने एक ऐसे वातावरण का फैलना बर्दाश्त किया, जिसमें इस तरह की चीजें हो रही हैं.”
18 मई 1950 को नेहरू ने बिधान चंद्र रॉय को पत्र लिखा:
”16 मई के आपके पत्र के लिए धन्यवाद. .....”अयोध्या में बाबर द्वारा बनाई गई एक पुरानी मस्जिद पर वहां के पंडा और सनातनी लोगों के नेतृत्व वाली भीड़ ने कब्जा कर लिया. मैं बड़े दुख के साथ कहता हूं कि यूपी सरकार ने हालात से निपटने में बहुत कमजोरी दिखाई. आपने गौर किया होगा कि यूपी से बड़े पैमाने पर मुसलमानों का पलायन हुआ है. यूपी, दिल्ली और राजस्थान के कुछ हिस्सों से तकरीबन एक लाख मुसलमान पश्चिमी पाकिस्तान गए हैं. यूपी में घटनाओं की शक्ल में ज्यादा कुछ नहीं हुआ, जो कुछ हुआ वह मार्च में होली के दौरान हुआ. लेकिन इसके बावजूद पलायन हो रहा है और इस बात में कोई शक नहीं है कि यूपी के कई जिलों में मुसलमानों पर जबरदस्त दबाव है और उनके मन में असुरक्षा की भावना बैठ गई है. इससे कोई भी समझ सकता है कि पूर्वी बंगाल के हिंदुओं पर कितना दबाव बढ़ गया होगा.’’
9 जुलाई 1950 को नेहरू ने प्रदेश के गृह मंत्री लाल बहादुर शास्त्री को पत्र लिखा
“अक्षय ब्रह्मचारी (फैजाबाद जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष) ने अयोध्या में जो हुआ विस्तार से मुझे बताया. जैसा कि आप जानते हैं कि अयोध्या में बाबरी मस्जिद का मामला हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण मुद्दा है. यह ऐसा मुद्दा है जो हमारी संपूर्ण नीति और प्रतिष्ठा पर गहराई से बुरा असर डाल रहा है, लेकिन इसके अलावा मुझे ऐसा लगता है कि अयोध्या में हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं. इस बात का पूरा अंदेशा है कि इस तरह की समस्याएं मथुरा और दूसरे स्थानों पर फैल जाएंगी. मुझे सबसे ज्यादा तकलीफ इस बात से हो रही है कि हमारा कांग्रेस संगठन इस मामले में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहा है और राघवदास और विशंभर दयाल त्रिपाठी जैसे कई कद्दावर कांग्रेसी नेता उस तरह का प्रोपोगंडा चला रहे हैं, जिसे हम सिर्फ सांप्रदायिक कह सकते हैं और जो कांग्रेस की नीति के खिलाफ है. मुझे बताया गया कि अयोध्या में मुसलमानों को दफनाया जाना तकरीबन नामुमकिन हो गया है. अहमद अली नाम के किसी व्यक्ति की पत्नी का मामला मेरे सामने आया है, इसमें बताया गया कि किस तरह मैयत को एक कब्रिस्तान से दूसरे कब्रिस्तान ले जाना पड़ा और अंततः दफनाने के लिए शव को अयोध्या से बाहर भेजना पड़ा. बड़ी संख्या में मुसलमानों की कब्र खोदी गई हैं. मुझे डर है कि हम फिर किसी तबाही की तरफ बढ़ रहे हैं”
आप अंदाजा लगा सकते हैं कि नेहरु का कितना बडा योगदान है. उनकी चलती तो वहां पांच वक्त की अजान बड़े बड़े लाउडस्पीकर लगा कर दी जा रही होती और राम मंदिर होता या नहीं होता कहा नहीं जा सकता और अगर होता भी तो कहाँ होता कुछ पता नहीं.
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले से राम मंदिर का मामला तो सुलझ गया लेकिन नेहरू की मुस्लिम तुष्टीकरण ने हिंदुस्तान को जैसा उलझाया है उससे निकलना आसान नहीं.
( नेहरु के सभी पत्र नेहरु वांग्मय से उद्धृत किये गए हैं)
~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~
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