शनिवार, 19 मार्च 2022

चुनावी चक्रव्यूह भेदकर अपराजेय महारथी बने योगी

 

चुनावी  चक्रव्यूह भेदकर अपराजेय महारथी बने योगी

 


उत्तर प्रदेश में 37 सालों के बाद योगी आदित्यनाथ ने ने ऐसा कीर्तिमान स्थापित किया है कि जब कोई निवर्तमान मुख्यमंत्री 5 साल का अपना कार्यकाल पूरा करके लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री बनने जा रहा है. भाजपा की  दो तिहाई बहुमत के साथ  सत्ता में वापसी,  और 2014 के बाद प्रदेश के सभी चुनाव में पताका फहराना भी अपने आप में बहुत बड़ा कीर्तिमान है. इसमें कोई संदेह नहीं कि इसका श्रेय भाजपा की चुनावी टीम को जाता है जिसने अथक प्रयास किए लेकिन फिर भी इस जीत के पीछे मुख्यतय:  योगी सरकार का सुशासन और मोदी सरकार की कल्याणकारी  योजनाएं रहीं जिन्हें योगी ने अपने सुशासन के माध्यम से बड़ी सुगमता और ईमानदारी  से लाभार्थियों तक पहुंचा दिया. कोरोना संकट के समय जब मोदी और योगी प्रदेश के 15 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन पहुंचा कर अपने राजनीतिक  जमीन बना रहे थे तब ज्यादातर विपक्ष के नेता ट्विटर योद्धा बनकर केवल हवा बना कर जातीय और सांप्रदायिक चक्रव्यूह रच रहे थे, लेकिन लाभार्थियों का एक बड़ा  वर्ग जातीय समीकरण और सांप्रदायिक  गोलबंदी को ध्वस्त करते हुए मोदी-योगी के साथ मजबूती से खड़ा हो गया.

योगी आदित्यनाथ  के दृढ़ निश्चयी और कड़े फैसलों  ने प्रदेश की कानून व्यवस्था को उस मुकाम पर पहुंचा दिया जिसके लिए जनता दशकों से इंतजार कर रही थी. यद्यपि विपक्ष ने उनकी  "ठोक दो" की नीति का जमकर विरोध किया और उन्हें बुलडोजर बाबा की उपाधि भी दी लेकिन जब अपराधी गले में तख्तियां लटका कर स्वयं थाने पहुंचकर जेल भेजने की प्रार्थना करने लगे तो शायद जनता को यह बहुत अच्छा लगा और इसकी चर्चा पूरे  भारत में ही नहीं विश्व के कई अन्य  देशों में भी हुई. विकरू  कांड के अपराधी विकास दुबे के एनकाउंटर के बाद तो विपक्ष ने योगी के विरुद्ध एक सुनियोजित अभियान चलाया और उन्हें ब्राह्मण विरोधी बताया. सपा और बसपा दोनों ने ही पूरे प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलन आयोजित किये और भगवान परशुराम की मूर्तियां स्थापित करने के साथ यह भ्रम फैलाने की कोशिश की योगी आदित्यनाथ ब्राह्मण विरोधी हैं.

यह योगी आदित्यनाथ का सख्त प्रशासन ही था कि संशोधित नागरिकता कानून के विरोध में हो रहे आंदोलनकारियों के निशाने पर रहे  उत्तर प्रदेश में आंदोलनों का कोई ख़ास  असर नहीं हो पाया और जिसने  भी सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की उससे वसूली की कार्यवाही की गई, तथा फरार अपराधियों के पोस्टर शहर के मुख्य चौराहों पर लगाए गए. यह सब ऐसे असाधारण कार्य हैं जिन्हें पूरे देश में उदाहरण के तौर पर लिया जाता है. प्रदेश के बड़े बड़े माफिया और अपराधी जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गए जो पिछली सरकारों के समय अति महत्वपूर्ण हुआ करते थे और   जिलाधिकारी और वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक जैसे जिले के वरिष्ठ अधिकारी जेल में उनके साथ बैडमिंटन खेलते थे. आसानी से समझा जा सकता है कि प्रदेश में कितना कानून का, और कितना माफिया का राज था. माफियाओं और अपराधियों पर शिकंजा कसने के कारण ही यह संभव हो सका कि योगी कार्यकाल में प्रदेश में एक भी दंगा नहीं हुआ जबकि पिछली अखिलेश सरकार में लगभग ७०० दंगे  हुए थे. भू माफियाओं के कब्जे पर बुलडोजर चला कर  सरकारी जमीन मुक्त कराई गई और उन पर गरीबों के लिए मकान बनाए गए. जनता को यह कार्य कितना पसंद आया कि उसने योगी को बुलडोजर बाबा का एक नाम भी दे दिया. 

जनता की स्वीकार्यता के बाद भी पूर्वाग्रह से ग्रस्त विपक्ष और अनेक देश विरोधी ताकतों ने योगी के विरुद्ध नए-नए विमर्श गढ़ने  का कार्य किया, उन्हें हिंदू मिलिटेंट मोंक, भगवा आतंकी, और ढोंगी बाबा तक कहा गया.  न्यूयॉर्क टाइम्स, वॉशिंगटन पोस्ट, बीबीसी आदि में  उनके विरुद्व विद्वेष पूर्ण लेख लिखे गए. पाकिस्तान के समाचार पत्रों और टीवी चैनलों पर  उनके विरुद्ध जहर उगला जाता रहा. वामपंथ और इस्लामिक गठजोड़ से सम्बद्ध एक बहुत बड़ा वर्ग  भारत में भी है, जो उनके नाम से चिढ़ता है, और  उनके विरुद्ध लगातार दुष्प्रचार करता रहता है. इन सभी ने योगी  की छवि एक मुस्लिम विरोधी रूढ़िवादी और कट्टरपंथी हिंदू की बनाने में कोई कोर कसर नहीं छोडी. वह रूढ़िवादी तो बिल्कुल भी नहीं यह इससे भी साबित होता  है कि वह कई बार नोएडा गए जिसके बारे में कहा जाता है कि जो मुख्यमंत्री नोएडा जाता है, उसकी कुर्सी चली जाती है और इस कारण मायावती और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहते हुए कभी नोएडा नहीं गए थे .

देश में अभी तक  धर्मनिरपेक्षता का मतलब हिंदू विरोध और मुस्लिम तुष्टिकरण होता था, लेकिन योगी आदित्यनाथ ने कभी यह कहने में संकोच नहीं किया कि वह हिंदू है और हिंदुत्व ही उनकी सांस्कृतिक पहचान है. हिंदुस्तान के उन राजनेताओं को , जो टोपी पहनने और टोपी पहनाने में माहिर हैं,  यह रास नहीं आता था और  ये  योगी के  विरुद्ध हमेशा जहर उगलने का काम करते थे  कि धर्मनिरपेक्ष भारत में  संप्रदायिक आचरण  स्वीकार्य  नहीं है.  ऐसे नेताओं ने जिन्ना और हिजाब प्रकरणसे  इन चुनावों में से सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की भरपूर कोशिश की लेकिन  हिंदुओं के वोट भी हासिल करने के लिए अपने आप को धार्मिक हिंदू साबित करने के लिए माथे पर चंदन लगाकर, रामनामी भगवा दुपट्टा ओढ़ कर मंदिरों में दर्शन करते हुए फोटो खिंचवाना नहीं भूले  . इस तरह योगी ने उत्तर प्रदेश के चुनाव में राजनीतिक  विमर्श की दिशा ही  बदल दी और इन चुनावों से यह साबित भी हो गया कि चाहे कितना ही मुस्लिम तुष्टिकरण क्यों न किया जाए,  केवल मुस्लिम ट्रंप कार्ड के सहारे  चुनाव नहीं जीते जा सकते.

यद्यपि योगी सरकार को विकास के कार्य करने के लिए केवल दो से ढाई वर्ष का समय ही मिला क्योंकि बाकी समय कोरोना की जंग लड़ते ही बीता जो जनसंख्या यह हिसाब से देश के सबसे बड़े प्रदेश के लिए बेहद चुनौतीपूर्ण था लेकिन इससे निपटने के तौर-तरीकों के लिए योगी सरकार को जहां विश्व स्वास्थ्य संगठन की सराहना मिली वहीं विपक्ष और देश विरोधी ताकतों नें गंगा में बहती लाशों, श्मशान घाट की तस्वीरों के माध्यम से पूरे विश्व में योगी और मोदी की ही नहीं बल्कि पूरे भारत की छवि धूमिल करने का कुत्सित प्रयास किया. कुछ नेताओं ने तो स्वदेशी वैक्सीन को भाजपा की वैक्सीन बताकर बहिष्कार करने का आह्वान किया.

योगी सरकार का बीते 5 वर्ष का कार्यकाल पिछली  सरकारों  की तुलना में इसलिए भी उल्लेखनीय है कि मंत्रिमंडल  स्तर पर भ्रष्टाचार का कोई भी आरोप नहीं लगाया जा सका है. आज  जब  ईमानदारी का तमगा लेकर घूमने वाले देश के कई मुख्य मंत्रियों और पूर्व मुख्य मंत्रियों की भ्रष्टाचार की कहानियां चौक चौराहों पर चर्चा का विषय हों,  योगी आदित्यनाथ का 5 वर्षों का बेदाग कार्यकाल अपने आप में एक बहुत बड़ा उदाहरण है.

अपराधियों और अराजक तत्व के विरुद्ध जितनी सख्त कार्यवाही योगी आदित्यनाथ ने की, उतनी कल्याण सिंह के अलावा शायद ही किसी मुख्यमंत्री ने की हो. सरकारी भूमि पर अवैध कब्जा करके खड़ी की गई आलीशान इमारतें भी बुलडोजर बाबा ने धराशाई कर दी और उन पर गरीबों के लिए मकान बनाए गए. राज्य में लड़कियों और महिलाओं ने अपने आप को सुरक्षित महसूस किया जिसके लिए उनके मन में योगी के प्रति बहुत सम्मान हैं. दूरदराज की ग्रामीण महिलाएं चुनाव प्रचार के लिए जाने वाले लोगों से कहती थी वे मोदी का नमक ( राशन के साथ मिलने वाला नमक) और योगी द्वारा दी गई सुरक्षा का प्रतिदान अवश्य करेंगी.

2017 में भाजपा ने जब योगी को मुख्यमंत्री बनाया तो राजनीतिक पंडितों ने नए-नए विमर्श गढ़े धर्मनिरपेक्ष देश में एक कट्टर हिंदू (योगी) जनता पर जबरदस्ती थोप दिया गया है और जनता इसे बर्दाश्त नहीं करेगी. 2022 का चुनाव इस मामले में बिल्कुल स्पष्ट है. भाजपा ने योगी को मुख्यमंत्री के रूप में पहले से ही घोषित कर दिया था और अब जब जनता ने अपार समर्थन से उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया है तो इस बात की पुष्टि हो गई है जनता को उनका और राजनीति का यही रूप पसंद है. इससे आगामी चुनाव अभियानों की दिशा बदल जाएगी.

इन चुनावों में जिन्ना और हिजाब के माध्यम से हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण करने की जबरदस्त कोशिश की गई जिसके परिणाम स्वरूप सपा को मुस्लिम समुदाय के लगभग शत प्रतिशत वोट मिले. यही कारण है कि हैदराबादी भाईजान कोई करिश्मा नहीं कर सके और बसपा धराशाई हो गई. जो लोग समझते थे कि एमवाई ( मुस्लिम - यादव) फैक्टर से चुनाव बहुत आसानी से जीता जा सकता है, उन्हें  भाजपा ने अपने एमवाई  ( मोदी- योगी) फैक्टर से इसे धराशाई कर दिया.

मेरा व्यक्तिगत मत है उत्तर प्रदेश के इन चुनावों से राजनीतिक दलों की धारणा बदलेगी और वे मुस्लिम वोटों को ट्रंप कार्ड की तरह इस्तेमाल करना बंद करेंगे और इससे तुष्टिकरण की राजनीति पर लगाम लगेगी. उत्तर प्रदेश में जब तक तुष्टिकरण का प्रयोग होता रहेगा योगी अपराजेय योद्धा बने रहेंगे.

-    - - शिव मिश्रा







 

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