उत्तर प्रदेश का प्रस्तावित जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण) विधेयक, 2021- लक्ष्य से भटकता कानून
क्या प्रस्तावित जनसंख्या विधेयक अपना लक्ष्य प्राप्त का सकेगा ?
भारत में जनसंख्या विस्फोट को देखते हुए एक अत्यंत प्रभावी जनसंख्या नियंत्रण कानून की आवश्यकता है जिससे आर्थिक विकास की गति तेज हो सके और लोगों के जीवन स्तर में अपेक्षित सुधार लाया जा सके. अभी स्थिति यह है कि देश में जितने संसाधन उत्पन्न किए जाते हैं, वह बढ़ती जनसंख्या के कारण पर्याप्त नहीं हो पाते हैं और इस कारण देश में अपेक्षित विकास नहीं हो पा रहा है.
जनसंख्या वृद्धि कुपोषण से लेकर शिक्षा और रोजगार सभी को प्रभावित कर रही है. इसलिए उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य के लिए जिसकी जनसंख्या विश्व के 4 देशों चीन, भारत अमेरिका और इंडोनेशिया को छोड़कर सभी देशों से ज्यादा है, जनसंख्या नियंत्रण कानून की अत्यंत आवश्यकता है, इसमें कोई संदेह नहीं बल्कि इसे बहुत पहले प्रदेश में लागू किया जाना चाहिए था.
भारत में जनसंख्या की समस्या :
जनसंख्या नियंत्रण की नीति बनाते समय देश के समक्ष जनसंख्या चुनौती को भी ध्यान में रखना अनिवार्य है जिससे नियंत्रण, स्थिरीकरण के साथ साथ विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच संतुलन भी बना रहे.
यह कोई छिपी बात नहीं की आजादी के बाद से हिंदुओं की तुलना में मुस्लिमों की जनसंख्या में बहुत तीव्र गति से वृद्धि हो रही है. इसका सबसे बड़ा कारण है कि इस समुदाय द्वारा धार्मिक आधार पर परिवार नियोजन न अपनाया जाना, यद्यपि पढ़े-लिखे मुस्लिम परिवारों में काफी हद तक परिवार नियोजित किए जा रहे हैं.
मुस्लिम जनसंख्या की तेजी से वृद्धि होना केवल भारत की नहीं बल्कि विश्व के अनेक देशों की समस्या है. कई देश ऐसे हैं जहां जनसांख्यिकी इस तरह से बदल गई है, जहां पहले तरह तरह की समस्याएं उत्पन्न हुई और फिर वहां के मूल निवासियों का जीना दूभर हो गया. इसके बाद कई देश इस्लामिक देश बन गए. दूसरे मत के लोगों का या तो धर्मांतरण हो गया या पलायन हो गया. इस सब के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक सुनियोजित साजिश काम करती रहती है जिसके लिए कई मुस्लिम देश धन उपलब्ध कराते हैं.
भारत में भी इस तरह की समस्या आजादी के बाद से ही देखी जा रही है कम से कम आठ ऐसे राज्य हैं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हो गए हैं और ऐसे राज्यों में अलगाववाद एक नासूर बन गया है . जम्मू कश्मीर इसका एक ज्वलंत उदाहरण है, जहां से कश्मीरी पंडितों का नरसंहार किया गया और उन्हें घाटी छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया गया. अपने ही देश में यह कश्मीरी पंडित दशकों से शरणार्थी जीवन व्यतीत कर रहे हैं.
पश्चिम बंगाल में बांग्लादेश से लगे सीमावर्ती जिलों में जनसंख्या घनत्व तेजी से बदल गया है और कई जगह मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत 90% तक पहुंच गया है. पिछले चुनाव में पूरे देश ने देखा कि तुष्टिकरण की छत्रछाया में पूरे पश्चिम बंगाल में हिंसा का भयंकर तांडव हुआ. हत्या, लूटपाट और बलात्कार की इतनी घटनाएं हुई कि लोगों को बरबस देश के विभाजन के समय हुई घटनाओं की यादें ताजा हो गई. पश्चिम बंगाल के लाखों लोगों ने जान बचाने के लिए अन्य राज्यों में शरण ली. अगर दूसरी राज्यों में भागने का अवसर उपलब्ध नहीं होता तो इन हिंदू शरणार्थियों के पास मरने या धर्म बदलने के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं होता.
भारत में इस समय मुस्लिम आबादी बढ़ाने के लिए एक साथ कई मोर्चों पर काम किया जा रहा है और इसमें घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों शक्तियां काम कर रही हैं और उन्होंने पूरे भारत में अपना जाल बिछा रखा है. इनमें धर्मांतरण, लव जिहाद, अवैध घुसपैठ करा कर बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को पूरे भारतवर्ष में योजनाबद्ध तरीके से बसाना, रणनीतिक स्थानों से हिंदू समुदाय का पलायन करवाना और परिवार नियोजन न अपना कर ज्यादा से ज्यादा जनसंख्या बढ़ाना शामिल है.
उक्त परिपेक्ष में अगर हम उत्तर प्रदेश के प्रस्तावित जनसंख्या (नियंत्रण, स्थिरीकरण और कल्याण) विधेयक, 2021का विश्लेषण करें तो उसमें कुछ गंभीर खामियां नजर आती हैं.
क्या है प्रस्तावित कानून ?
उत्तर प्रदेश सरकार के कर्मचारियों के लिए प्रोत्साहन
उत्तर प्रदेश सरकार के कर्मचारी जो स्वैच्छिक रूप से परिवार नियोजन का पालन करने के लिए नसबंदी कराएंगे उनके लिए निम्न प्रोत्साहन की व्यवस्था है
2 अतिरिक्त वेतन वृद्धि
भूखंड या मकान खरीदने हेतु अनुदान
मकान खरीदने के लिए बहुत कम ब्याज दर पर पर सॉफ्ट लोन
पानी, बिजली, गृह कर और जलकर में रियायत
एक साल का पूर्ण वेतन पर मातृत्व या पितृत्व अवकाश
नियोक्ता द्वारा एनपीएस में 3% ज्यादा अंशदान
मुफ्त स्वास्थ्य सुविधाएं और पति या पत्नी को बीमा कवर तथा
अन्य सुविधाएं और लाभ जैसा कि सरकार द्वारा समय-समय पर निर्धारित किया जाए
एक संतान होने पर सभी शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में वरीयता
ऐसी संतान को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता
स्नातक तक मुफ्त सुविधा
लड़कियों हेतु उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति
सामान्य जनता को मिलने वाले लाभ
मकान खरीदने के लिए बहुत कम ब्याज दर पर पर सॉफ्ट लोन
पानी, बिजली, गृह कर और जलकर में रियायत
संतानों के लिए स्नातक तक मुफ्त सुविधा
लड़कियों हेतु उच्च शिक्षा के लिए छात्रवृत्ति
गरीबी की रेखा से नीचे रहने वाले दंपति के लिए यदि वह एक बच्चे के बाद नसबंदी करा लेते हैं तो एकल बालिका संतान पर ₹100000 तथा एकल बालक संतान पर ₹80000 की प्रोत्साहन राशि
हतोत्साहन या दंडात्मक प्रावधान :
दो से ज्यादा संतानों के होने पर सरकार द्वारा प्रायोजित कल्याणकारी योजनाओं से वंचित किया जाएगा
राशन कार्ड की सीमा 4 लोगों तक ही निर्धारित होगी
स्थानीय निकाय के चुनाव में प्रत्याशी बनने पर प्रतिबंध
दो से अधिक संतान होने पर सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन नहीं कर सकेंगे
सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों और सरकारी कर्मचारियों को एक्ट लागू होने के 1 साल के अंदर एक अंडरटेकिंग देनी होगी कि वह 2 बच्चों के नियम का पालन करेंगे.
नियम तोड़ने पर सरकारी नौकरियों में प्रोन्नति नहीं मिलेगी
किसी तरह का अनुदान या सरकारी रियायत से वंचित किया जाएगा
दो संतान होने के बाद भी दंपति तीसरे बच्चे को गोद ले सकेंगे जिसमें नियम बाधा नहीं बनेगा.
दोनों संतानों में से किसी एक के डिसेबिलिटी होने पर तीसरी संतान होने पर नियम लागू नहीं होगा.
दो संतानों में से अगर किसी की मृत्यु हो जाती है तो ही तीसरी संतान के लिए यह नियम लागू नहीं होगा.
कानून लागू होने के 1 साल के अंदर अगर तीसरी संतान होती है तो यह नियम लागू नहीं होगा
सबसे अधिक आपत्तिजनक व्यवस्था बहु पत्नी और बहु पति विवाह के मामलों में की गई है, जिसमें पर्सनल ला के आधार पर बहु पत्नी और बहु पति के लिए काफी उदार व्यवस्था की गई है .
प्रस्तावित कानून के आपत्तिजनक प्रावधान
सबसे अधिक आपत्तिजनक व्यवस्था बहु विवाह के मामलों में की गई है जिसमें सेक्शन १९ में व्यवस्था है कि यदि किसी व्यक्ति ने, जो पर्सनल धार्मिक कानून के अंतर्गत एक से अधिक विवाह कर सकता है, एक से अधिक विवाह किए हैं और सभी पत्नियों के मिला कर उसके दो से अधिक बच्चे हैं तो वह व्यक्ति तो इस कानून के अनुसार सुविधाओं से वंचित होगा लेकिन उस व्यक्ति की पत्नियां अलग अलग रूप से यदि उनमें से प्रत्येक के पास अधिकतम दो या जुड़वा संतानों की स्थिति में अधिकतम तीन संतानों तक उन्हें और उनकी संतानों को किसी लाभ से वंचित नहीं किया जाएगा.
इस तरह से यदि किसी मुस्लिम व्यक्ति ने चार शादियां की हैं और उसकी चारों पत्नियों से 8 या जुड़वा संतान होने की विशेष परिस्थितियों में 12 बच्चे हैं, तो वह स्वयं तो कानून के उल्लंघन का दोषी समझा जाएगा और तदनुसार वह सरकारी लाभ से वंचित रहेगा लेकिन उसकी चारों पत्नियां और बच्चे सरकारी लाभ से वंचित नहीं होगे और न ही उनके विरुद्ध अन्य कोई कार्यवाही होगी. इसका अर्थ यह हुआ एक मुस्लिम व्यक्ति को चार पत्नियों के साथ अगर पत्नी अलग-अलग दो या तीन संतान जैसा भी हो का नियम मानती है तो उस परिवार पर कोई भी असर नहीं आएगा और उसे राज्य की योजनाओं का लाभ यथावत मिलता रहेगा उसके राशन कार्ड में भी कटौती नहीं की जाएगी.
धारा 19 में यह भी व्यवस्था है कि यदि कोई सरकारी कर्मचारी / जनता से कोई व्यक्ति पर्सनल ला के अंतर्गत दूसरी, तीसरी, या चौथी शादी करता है तो भी उस पर दंडनीय प्रावधान लागू नहीं होंगे.
एक और हास्यप्रद व्यवस्था बहुपति विवाह के संदर्भ में की गई है उसमें भी यदि किसी पत्नी जिसके कई पति हैं और सभी पतियों से उसके दो से अधिक संतान हैं तो पत्नी स्वयं तो इस नियम के उल्लंघन की जिम्मेदार ठहरायी जाएगी और उसे सुविधाओं से वंचित किया जाएगा लेकिन यदि प्रत्येक पति के यदि दो से अधिक बच्चे नहीं है जुड़वा संतान के मामले में तीन से अधिक बच्चे नहीं है तो वह इस नियम का उल्लंघन करने वाला नहीं माना जाएगा और उसे तथा उसकी संतानों को सुविधाओं से वंचित नहीं किया जाएगा. इसमें हास्यास्पद यह है कि एक पत्नी से उत्पन्न होने वाली सभी संतानों में यह कैसे तय किया जाएगा कौन संतान किस पति की है और किस पति से कितनी संताने हैं?
अच्छा तो यह होता यदि यह व्यवस्था की जाती कि इस कानून के लागू होने के बाद यदि कोई स्त्री दूसरी, तीसरी या चौथी पत्नी के रूप में किसी व्यक्ति से शादी करती है तो वह इस कानून के उल्लंघन की दोषी मानी जाएगी और तब उसेऔर उसकी संतानों को सरकारी लाभ से वंचित किया जाएगा.
यही व्यवस्था बहुपति विवाह में भी लागू की जा सकती है.
राज्य सरकार के कर्मचारियों को कानून लागू होने के 1 साल के अंदर एक अंडरटेकिंग देनी होगी कि वह इस कानून का पालन करेंगे. 1 साल की व्यवस्था करने का मतलब है उन्हें एक और संतान के लिए अनुमति दे देना.
जब सर्वोच्च न्यायालय समान नागरिक संहिता लागू करने के लिए केंद्र सरकार को अनुस्मारक दे रहा है और हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने मीणा समुदाय के एक तलाक के मामले में व्यवस्था दी है कि अलग-अलग समुदाय के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं नहीं हो सकती और केंद्र सरकार को निर्णय की कॉपी भेजते हुए समान नागरिक संहिता जल्द से जल्द लागू करने की सलाह दी है. ऐसे समय में धार्मिक आधार पर पर्सनल लॉ के अनुसार छूट देकर कोई नया कानून बनाना तर्कसंगत और प्रगतिशील कदम नहीं लगता.
प्रस्तावित कानून की धारा 5 के अंतर्गत एकल संतान पर प्रोत्साहन देना उचित प्रतीत नहीं होता. इससे भारत में हिंदू समुदाय में नकारात्मक वृद्धि दर होने की संभावना है, जिससे विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच जनसंख्या असंतुलन पैदा हो जाएगा, जो भारत जैसे देश के लिए अत्यंत खतरनाक साबित होगा.
चीन ने कई दशक पहले इस तरह की नीति बनाई थी जिसे शीघ्र ही बदल कर दो संतान में कर दिया गया था और हाल ही में चीन ने तीन संतान की अनुमति दे दी है.
हिंदू समुदाय में पढ़े लिखे लोग और खास तौर से नौकरी पेशे से जुड़े लोग पहले ही परिवार नियोजन अपनाते चले आ रहे हैं. राज्य सरकार की कर्मचारियों के रूप में मिलने वाले प्रोत्साहन से उन्हें फायदा तो जरूर होगा लेकिन सामान्य जनता में प्रोत्साहन के लालच में यदि दो संतान की नीति लागू हो जाती है तो विभिन्न धर्मावलंबियों के बीच जनसंख्या असंतुलन पैदा हो जाएगा. इससे सबसे अधिक नुकसान हिंदू समुदाय को होगा.
समग्र रूप से देखें तो उत्तर प्रदेश का प्रस्तावित जनसंख्या विधेयक ज्यादातर हिंदू समुदाय को ही प्रभावित करेगा और ऐसे में जबकि मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या बहुत तेजी से बढ़ रही है, उन्हें पर्सनल ला के आधार पर न केवल परिवार नियोजन से राहत देना बल्कि बहु विवाह को भी अप्रत्यक्ष रूप से अनुमति प्रदान करना होगा. यदि इनका समस्याओं का निदान मिल जाता है तो यह कानून अच्छा शाबित हो सकता है .
अगर हम धार्मिक आधार पर जनसंख्या असंतुलन की बात छोड़ भी दें तो भी ऐसा लगता है कि प्रस्तावित जनसंख्या नियंत्रण कानून केवल राज्य सरकार के कर्मचारियों पर निर्भर है, और वह भी प्रोत्साहन और हतोत्साहित करने के माध्यम से, जिसमे मुसलमानों तथा अन्य धर्मावलंबियों की संख्या कम है, और उन्हें बहु पत्नी के रूप में पर्सनल ला के आधार पर काफी छूट दे दी गई है, जिसे प्रस्तावित कानून केवल हिंदू कर्मचारियों पर ही प्रभावी ढंग से लागू हो सकेगा जो अभी भी सामान्यतया परिवार नियोजन का पालन करते हैं.
राशन कार्ड तथा अन्य छोटे-मोटे प्रोत्साहनों के माध्यम से सामान्य जनता पर इसका व्यापक प्रभाव पड़ेगा ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता. पूरे भारत में भ्रष्टाचार की ऐसी लीला है कि अवैध घुसपैठिए राशन कार्ड, आधार कार्ड और पासपोर्ट बड़े आसानी से बनवा लेते हैं वहां राशन कार्ड में यूनिट कम करने की योजना प्रभावी ढंग से काम करेगी इसकी संभावना भी संदिग्ध है.
सरकार को अन्य कठोर कदमों पर विचार करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि जनसंख्या कानून सभी धार्मिक समूह पर समान रूप से लागू किया जाए. सबसे बड़ी बात केंद्र सरकार को चाहिए कि बंगला देश सीमा को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करे जहाँ से पैसे देकर घुसपैठ करना आज भी बेहद आसान बना हुआ है. नेपाल सीमा से घुपैठ करने में तो कोई रोक टोक ही नहीं है.
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- शिव मिश्रा
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