मंगलवार, 29 जून 2021

जम्मू कश्मीर के नेताओं के साथ प्रधानमंत्री की बैठक के क्या निहातार्थ है ? सरकार को क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

 कश्मीरी नेताओं के साथ प्रधानमंत्री की बैठक  के  संदेश और दूरगामी परिणाम

 


कश्यप ऋषि के नाम से बनी कश्मीर घाटी जिसमें  हजारों वर्ष पुरानी सनातन संस्कृति के साथ कश्मीर के मूल निवासी  कश्मीरी पंडितों की लगभग 6000 साल पुरानी सामाजिक, साहित्यिक, और दार्शनिक  संस्कृति समाहित है, जो   आज अपने अस्तित्व के लिए  संघर्ष के अंतिम पड़ाव पर है  और शायद  कुछ वर्षों  बाद उनका संघर्ष  स्वत: समाप्त हो जाएगा और कम से कम कश्मीर के  लिए कश्मीरी पंडित एक इतिहास बन जाने के कगार पर हैं. 


 कैसे नासूर बनी कश्मीर समस्या ? 

आज देश का बच्चा-बच्चा  जानता  है कि कश्मीर की समस्या  जवाहरलाल नेहरू की गलत नीतियों की वजह से हुई. १९४६ में  कश्मीर के राजा द्वारा उन्हें  गिरफ्तार किये जाने को वे व्यतिगत दुश्मनी मानते मानते शेख अब्दुल्ला के जिगरी दोस्त बन गए  और अंग्रेजों  के बुने जाल  में फस गए. भारत विभाजन के ठीक 2 महीने बाद पाकिस्तान द्वारा जम्मू कश्मीर पर आक्रमण और एक बड़े भूभाग पर कब्जा कर पाने के पीछे  भारत सरकार द्वारा समय पर सैन्य सहायता न  पहुंचाना मुख्य कारण और समस्या की जड़  है. सरकार ने सेनाओं को भी खुली छूट नहीं दी थी कि वह पाकिस्तान के कब्जे वाले इलाके को वापस हासिल कर सकें. देश हित के विपरीत  तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड माउंटबेटन की सलाह पर नेहरु  संयुक्त राष्ट्र संघ गए और युद्ध विराम के साथ यथास्थिति स्वीकार कर ली.  नेहरू द्वारा शेख अब्दुल्ला को  व्यक्तिगत संबंधों के आधार पर अत्यधिक  महत्व देने  के कारण ही धारा 370 और 35 A  को संविधान में जोड़ा  गया.  प्रारंभ में इसको अस्थाई कहा गया लेकिन  नेहरु स्वयं १९६४ में  अपनी मृत्यु  तक प्रधान मंत्री रहे लेकिन इसे नहीं हटा सके. 5 अगस्त 2019 के पहले कोई भी सरकार इसे हटाने का साहस नहीं जुटा सकी, इस ऐतिहासिक भूल सुधारने   के लिये  मोदी सरकार प्रशंसा की पात्र है. 


1971 के बांग्लादेश युद्ध में भारत की सम्मानजनक विजय के बाद जब पाकिस्तान के हौसले पस्त हो गए थे और शेख अब्दुल्ला को भी समझ में आ गया था  कि अब उनका एजेंडा खत्म हो गया है. उसी समय शेख अब्दुल्ला और इंदिरा गांधी के एक समझौते ने शेख अब्दुल्ला को न केवल नया राजनीतिक जीवन  दे दिया बल्कि  कश्मीर की समस्या को बेहद  जटिल बना दिया.  शेख अब्दुल्ला को मुख्यमंत्री बनाने के लिए जम्मू कश्मीर के कांग्रेसी मुख्यमंत्री   मीर  कासिम ने  अपनी सीट से और मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. उनकी छोड़ी सीट से विजयी  होकर आए नेशनल कांफ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्लाह को  कांग्रेस पार्टी के संसदीय दल का  नेता बनाकर मुख्यमंत्री बना दिया गया.   भारत के लोक तांत्रिक इतहास में ये  अपने तरह की अनोखी घटना है और मेरे विचार से देश को आज की स्थिति  के लिए नेहरु की भूल के साथ इसे महां भूल कहना अनुचित नहीं होगा. हो सकता है इसके पीछे धारणा इंदिरा की यह धारणा रही हो  कि शेख  अब्दुल्ला को  सत्ता का सुख देकर  उन्हें भारत के प्रति वफादार बनाया जा सकता है और कश्मीर की समस्या का निदान किया जा सकता है, जो  इंदिरा गांधी की यह भयंकर भूल  घर में जहरीला सांप पालने से भी ज्यादा खतरनाक साबित हुई. 


 5 अगस्त 2019 को धारा 370 और 35A  हटने से  पूरे भारतवर्ष ने   गर्व का अनुभव किया. गृहमंत्री अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में जो वक्तव्य दिए,उससे  जम्मू कश्मीर की समस्या के समाधान  हेतु आशा की एक नई  किरण जगी. जम्मू कश्मीर को दो  केंद्र शासित प्रदेशों में बांटने को भी   संपूर्ण  भारत ने  बेहद पसंद किया . इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जितनी तारीफ की जाए कम है. यह कार्य मोदी के दूसरे कार्यकाल की सबसे महत्वपूर्ण  उपलब्धि  के रूप में  जाना जाता है.  यद्यपि  लगभग 2 साल के   बाद भी  विस्थापित कश्मीरी पंडितों के लिए सरकार द्वारा ठोस रूप से  कुछ भी नहीं किया जा सका है और दुर्भाग्य से  जम्मू कश्मीर पर आयोजित इस बैठक में भी कश्मीरी पंडितों के किसी भी प्रतिनिधि को आमंत्रित नहीं किया गया, जिससे पूरे  देश  में लोग सशंकित हो उठे हैं और यह सवाल कर रहे हैं कि क्या केंद्र की मोदी सरकार  ने एक बार फिर  घाटी के इन  कुख्यात नेताओं को सत्ता सौंपने का मन बना लिया है?


कश्मीरी पंडितों को विश्वास  में ले सरकार

जम्मू कश्मीर  के संबंध में  केंद्र सरकार द्वारा  लिए जाने वाले   किसी भी निर्णय में  जम्मू के निवासियों और कश्मीरी पंडितों को विश्वास में  लिया जाना अत्यंत आवश्यक है. विस्थापित कश्मीरी पंडित  दशकों से  अपने ही देश में  शरणार्थी का जीवन व्यतीत करते हुए विभिन्न  यातनाएँ  सह  रहे हैं, सरकार को उनके घावों पर मरकाम लगाने में भी उतना ध्यान देना चाहिए जितना कश्मीर के विकास का अन्यथा उन लोगों के विकाश का क्या अर्थ जिन्होने कश्मीर और कश्मीरी पंडितों का विनाश किया.  उनका सबसे बड़ा दर्द है कि कि केंद्र की किसी भी सरकार ने   कश्मीरी पंडितों के नरसंहार को  नरसंहार  की संज्ञा नहीं दी है  और इसलिए  कश्मीर के मामले को संयुक्त राष्ट्र ने भी प्रमुखता से नहीं लिया  और इसे मानव अधिकार  के उल्लंघन का मामला भी नहीं माना जबकि अल्गाववादी और आतंकवादी अपने मानव अधिकार का मुद्दा बनाये रहते हैं जिसे पूरा विश्व सहजता से लेता है और इससे भारत के विरुद्ध अनावश्यक दुष्प्रचार होता है .


धारा 370 हटाने  के पश्चात  कश्मीर में स्थानीय निकाय के चुनाव  सफलता पूर्वक  कराए  जा चुके हैं और इन चुनावों में घाटी के सभी राजनीतिक दल एक साथ मिलकर चुनाव लड़ने के बाद भी बहुमत हासिल नहीं कर सके.  इससे संकेत साफ़ हैं कि  यह घाटी में माहौल  धीरे-धीरे सामान्य हो रहा है और लोग विकास की मुख्यधारा से जुड़ने के  लिए आतुर हैं  और इन कुख्यात राजनीतिक दलों से छुटकारा भी  पाना चाहते हैं. इसलिए भारत सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए कि ऐसी बैठकों के माध्यम से अलगाव वादियों और भारत विरोधी तत्वों का पुनर्वास  होने का पाप न हो .


राजनैतिक दलों  पर पैनी नजर जरूरी

गुपकार गठबंधन  धारा 370 बहाली  की  मांग  भले ही  करें लेकिन   आम  कश्मीरी नागरिक के लिए  इसका  कोई मतलब नहीं है.  धारा 370 का होना शायद जम्मू कश्मीर के अलगाववादी तत्व, स्वार्थी राजनीतिक दलों के अलावा अगर किसी को सबसे ज्यादा फायदेमंद था तो वह था पाकिस्तान,  जो लगातार अलगाववाद को बढ़ावा दे रहा है  और इसके लिए प्रशिक्षित आतंकवादियों को घाटी में भेजकर अस्थिरता उत्पन्न करता रहता है .   वास्तव में  कश्मीर की समस्या को  सिर्फ अलगाववाद कहना उचित नहीं होगा. कश्मीर  मामलों  और रक्षा   विशेषज्ञों  के अनुसार यह पाकिस्तान  और अन्य   इस्लामिक देशों द्वारा समर्थित  गजवा ए हिंद और हिमालय का इस्लामीकरण  परियोजनाओ का  एक हिस्सा है,  जिसका उद्देश्य  भारत की सनातन सभ्यता को नष्ट कर इसके सम्पूर्ण  भूभाग को कब्जाना है और जिसके लिए  भारत का संविधान, कानून और कुछ बिके हुए हिन्दू भरपूर सहायता कर रहें हैं.  इस उद्देश्य के  लिए जम्मू कश्मीर  को पूरी तरह से  मुस्लिम बाहुल्य  राज्य  बनाकर  भारत से पृथक करना और उसके बाद अन्य राज्यों पर रणनीतिक तौर पर  कब्जा करना शामिल है. अगर जम्मू कश्मीर भारत के हाथ से फिसलता है या लचर सरकारी व्यवस्था का शिकार होता है तो   इस  षड्यंत्र के अनुसार  दिल्ली भी दूर नहीं रह जाएगी भले ही  प्रधानमंत्री मोदी  दिल की दूरी और दिल्ली की दूरी   कम करने की बात  करते रहें, भले ही उनका वक्तव्य  कश्मीर के व्यापक  विकास के लिए हो.


इसलिए धारा 370 हटाने का विरोध सबसे अधिक विरोध अलगाववादी  और ऐसे स्वार्थी तत्वों / राजनीतिक दलों द्वारा ही किया गया जो आजादी के बाद से लगातार जम्मू कश्मीर की सत्ता पर काबिज है और भारत के वित्तीय शोषण से ही भारत के विरुद्ध युद्ध चला रहे हैं. हमें यह बात नहीं भूलने चाहिए  कि  कश्मीर घाटी के इन  राजनीतिक दलों ने  इस बड़े मिशन को कामयाब करने के लिए  किसी ने किसी तरह सत्ता में  बने रहने का  विकल्प  चुना है ताकि इन्हें वित्तीय संसाधन उपलब्ध होते रहें और कानून की छत्रछाया में अलगाववाद के लिए अधिकाधिक  सहयोग और समर्थन करते रहें.  मेरा मत है कश्मीर में इन लोगो के पास जितना अधिक  पैसा जाएगा उतना अधिक अलगाववाद बढेगा.


बैठक की उपलब्धियां  

धारा 370 हटाने के लगभग 2 वर्ष बाद  जम्मू कश्मीर के इन नेताओं को वार्ता के लिए दिल्ली बुलाया जाना और उनका बिना किसी विवादित बयान के शामिल होना, राज्य में लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करने की दिशा में एक सकारात्मक  कदम होगा या नहीं यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना जरूर है कि  इससे अंतरराष्ट्रीय जगत को  समुचित संदेश जाएगा कि जम्मू कश्मीर में भारत ने जो कुछ भी किया उसका उद्देश्य  सकारात्मक है.  इस बीच  मीडिया के एक वर्ग में  यह भी कयास लगाया गया है कि शायद  यह बैठक  अमेरिका और सऊदी अरब के दबाव में आयोजित  की जा रही है. जो भी हो इससे पाकिस्तान को तो  उचित संदेश मिला ही  है और पाक अधिकृत कश्मीर के लोगों को भी उचित संदेश मिल गया है, जहाँ के लोगों को   लग रहा है कि भारतीय कश्मीर में विकास  के कार्यों को प्राथमिकता देकर लोकतंत्र मजबूत किया जा रहा है,  जबकि पाकिस्तान के कब्जे वाली कश्मीर में हालात बद से बदतर हैं और  पाक अधिकृत कश्मीर का एक बड़ा हिस्सा चीन को सौंप दिया गया है और एक भाग को पुन: बेचने   की तैयारी हो रही है, जिसमें वहां के स्थानीय निवासियों के अधिकार  बुरी तरह प्रभावित होंगे. पता नहीं भारत सरकार इस मुद्दे पर मौन क्यों धारण किये रहती है ? अगर वह पाक अधिकृत कश्मीर को अपना समझती है तो तो इस तरह की गतिविधियों का विरोध क्यों नहीं करती ?


बैठक से परिसीमिन के कार्य को लगभग सभी दलों का मौन समर्थन हासिल हो गया है, जो सरकार की उपलब्धि है  लेकिन परिसीमन का उद्देश्य तभी पूरा हो सकता है जब यह चुनाव प्रक्रिया को मजबूत बनाये तथा  जम्मू  संभाग में विधान सभा सीटों की संख्या बढाकर  हिन्दू आबादी के साथ न्याय करे .  सरकार को पाक अधिकृत कश्मीर में पड़ने वाली  २४ विधान सभा सीटों, जो वस्तुत: जम्मू का ही हिस्सा है, के लिए नामांकन भी जम्मू संभाग के लोगो के बीच से करना शुरू कर देना चाहिए. ये पाक अधिकृत कश्मीर को वापस लाने की दिशा में एक छोटे से प्रयास के शुरूआत होगी .   


इस बैठक  की एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर  मीडिया में बताया गया  कि जम्मू कश्मीर के ये  नेता घाटी में चाहे जितना बोलते हो लेकिन प्रधानमंत्री के समक्ष अनुशासित  मुद्रा में  सिर झुकाए रहे.  मुझे लगता है इसका   गलत अर्थ नहीं निकाला जा रहा है क्योंकि यह  घाटी के नेताओं की  गिरगिट  वाली फितरत  है.  उन्हें जब सत्ता नजदीक आती दिखाई पड़ती  है तो वह  कुछ भी  कहने और करने से परहेज नहीं करते.  इस समय  जीवित चारों पूर्व मुख्यमंत्रियों सहित  घाटी  के अन्य  सभी मुख्यमंत्रियों ने अपने कार्यकाल में  सत्ता प्राप्ति के लिए  संविधान के नाम पर पद और गोपनीयता की शपथ जरूर ली, भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा भी व्यक्त की लेकिन उन्होंने हमेशा अपने बड़े उद्देश्य के लिए अलगाववादियों और पाकिस्तान की नीतियों का ही समर्थन किया. इन सभी नेताओं के लिए  इनका  मजहब सबसे पहले है और इसलिए अगर मजहब के नाम पर कोई गलत शपथ लेते हैं या छलकपट  करते हैं तो उससे बिल्कुल भी नहीं हिचकते. इसलिए इन नेताओं की बातों पर बहुत अधिक विश्वास करने का कोई कारण नहीं है और  इन नेताओं के हृदय परिवर्तन पर भाजपा को किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए अन्यथा इंदिरा गांधी जैसी एक महाभूल की पुनरावृत्ति हो सकती है. 


नेताओं  का  अतीत  याद रखना होगा 

जहां तक भारत सरकार का प्रश्न है,  बैठक में प्रधानमंत्री ने जम्मू कश्मीर को पूर्ण राज्य का दर्जा दिए जाने की वचनबद्धता दोहराई वही उन्होंने स्पष्ट रूप से यह बता दिया कि फिलहाल  प्राथमिकता  विधानसभा की सीटों का परिसीमन और उसके बाद चुनाव है.  महबूबा मुफ्ती के अलावा किसी भी अन्य नेता ने धारा 370  को बहाल किए जाने के बारे में बैठक में कोई मुद्दा नहीं उठाया लेकिन उमर अब्दुल्ला से लेकर महबूबा मुफ़्ती ने बैठक के बाद शांतिपूर्ण ढंग से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के ख़िलाफ़ संघर्ष करने की बात  दोहराई  है. दिल्ली की  मीडिया  और भाजपा को इससे बहुत अधिक उत्साहित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इन नेताओं को इस बैठक में शामिल होना और  अनुशासित बने रहना, अपने को प्रासंगिक बनाए रहने के लिए आवश्यक हो गया था.  वैसे भी घाटी के  यह नेता  समय-समय पर  विभिन्न भूमिकाएं  बखूबी अदा करना जानते हैं.  शेख अब्दुल्ला के बारे में कहा जाता था कि वह जब कश्मीर घाटी में होते थे  तो  मजहबी  मुस्लिम शासक की भूमिका में होते थे,  जम्मू आकर प्रगतिशील हो जाते थे  और दिल्ली पहुंच कर  भारत के  संविधान के प्रति पूर्णतया समर्पित हो जाते थे. इस सब के पीछे एक ही कारण होता था  सत्ता  में बने रहना जो  उनका पाक समर्थित इस्लामिक  अजेंडा चलाने के लिए  बेहद जरूरी था.  वही हालात आज भी हैं, कुछ भी नहीं बदला सिवाय इन पाक परस्त नेताओं की पीढ़ियों के. 


सरकार को नहीं भूलना चाहिए कि परदे  के पीछे    ये सभी  राजनीतिक दल,  अलगाववादी एवं आतंकवादी संगठन और पाकिस्तान की आईएसआई  सभी मिलजुल कर एक ही उद्देश्य के लिए काम करते हैं,  जो सुनियोजित तरीके से जम्मू कश्मीर को पूर्ण रूप से  इस्लामिक राज्य  बनाना चाहते हैं .  कश्मीर घाटी में जहां  उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम आबादी 68% ( कुल आबादी ६९ लाख)  है,  वहीं जम्मू  संभाग में हिंदू आबादी भी  लगभग 68% ( कुल आबादी ५३ लाख ) है. इन आंकड़ो पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह है और लोगो का मानना है कि कश्मीर में पुस्लिम जनसँख्या को बढा  चढ़ा कर पेश किया गया है, ताकि जम्मू की तुलना में बढ़त दिखाई पड़े और जरूरत पर घुसपैठियों को खपाया जा सके . हाल की राज्य   सरकारों ने, जो वस्तुत: अब्दुल्लाओं और मुफ्तियों के पास ही रही  है,  जम्मू संभाग को भी  मुस्लिम  बाहुल्य  करने की दिशा में सरकारी संरक्षण में अनेक गैर कानूनी कार्य किए .  रोहिंग्याओं को  वर्मा से बांग्लादेश के रास्ते  लाकर जम्मू में बसाना  इसी योजना का एक हिस्सा था.


 जम्मू के  एडवोकेट  अंकुर शर्मा के अनुसार  महबूबा मुफ्ती ने  मुख्यमंत्री रहते हुए 14 फरवरी 2018 को एक कार्यकारी  आदेश  द्वारा   सभी जिलाधिकारियों और पुलिस अधीक्षकों को निर्देश दिया था  कि  रोशनी एक्ट के अंतर्गत  जम्मू संभाग में अगर किसी  मुस्लिम व्यक्ति ने राजकीय,  फॉरेस्ट एरिया  या किसी की निजी जमीन पर कब्जा किया है तो उसके विरुद्ध कोई कार्यवाही न की जाए.  अगर भूस्वामी  अदालत से जमीन खाली  कराने का आदेश भी ले आता है तो  उसके  लिए पुलिस सहायता उपलब्ध न कराई जाए. किसी भी मुस्लिम के विरुद्ध गौ हत्या या गोवंश की तस्करी से संबंधित  कोई भी  प्राथमिकी दर्ज न की जाए.   


एक रिपोर्ट  के अनुसार जम्मू में  जमीन पर  अवैध कब्जा करने वाले 90% से अधिक  व्यक्ति मुसलमान है. उछ न्यायलय के आदेश के विरुद्ध एक याचिका दायर की गयी जिसके अनुसार अवैध कब्जेदारों को यह भूमि आवंटित करने का मानवीय आधार पर निवेदन किया गया है . 


जम्मू से निकलने वाली तवी नदी जिसे सूर्यपुत्री कहा जाता है और  जिसे देवी का दर्जा प्राप्त है, के किनारों  की जमीन पर   ज्यादातर अवैध कब्जे दार मुस्लिम है. जम्मू कश्मीर  उच्च न्यायलय की डिवीजन बेंच के निर्देश पर  जम्मू नगर निगम की सीमा के अंतर्गत इस तरह के अवैध कब्जों  की जांच करने का जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को निर्देश दिया गया था . उच्च न्यायालय की बेंच में   सबमिट  की गई रिपोर्ट  अनुसार   हिंदू बहुल जम्मू  नगर सीमा में  तवी  नदी के किनारे की जमीन पर 668 में से 667 अवैध कब्जेदार मुस्लिम हैं,  जो स्थानीय निवासी भी नहीं है.  जम्मू के लोग  इसे  लैंड जिहाद और जम्मू की जनसंख्या परिवर्तित करने  का सरकारी षड्यंत्र बताते हैं और इन लोगों में अत्यंत रोष भी है .


बड़े आश्चर्य की बात है  की महबूबा मुफ्ती  ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई थी और भाजपा के उपमुख्यमंत्री  और कई मंत्री भी सरकार में होने के बाद कैसे इस तरह के गैरकानूनी आदेश दिए जाते रहे. कैसे  जम्मू से सांसद  और  केंद्रीय राज्यमंत्री जीतेन्द्र सिंह, जो प्रधानमंत्री कार्यालय   से सम्बद्ध  हैं,  इन बातों से अनजान रहे रहे ?  सरकार को इस पर मंथन करना चाहिए और घर में हो रही किसी साजिश  से सावधान  रहना चाहिए .


राज्य में धारा 370  की छाया बाकी है

 “एकजुट जम्मू”  के अधिवक्ता  अंकुर शर्मा के अनुसार  सर्वोच्च न्यायालय के निर्देश दिया था कि   जम्मू कश्मीर राज्य में  अल्पसंख्यकों को  मिलने वाले फायदे मुस्लिमों की बजाय हिंदुओं को दिए जाय, लेकिन सरकार के हलफनामे के बाद भी  2018 से  इस पर कार्यवाही नहीं की गई है और मुस्लिमों को अल्पसंख्यकों का फायदा पूर्ववत मिल रहा है.  इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार के लिए  परिसीमन और लोकतांत्रिक व्यवस्था स्थापित करने  के साथ साथ  कानून का राज स्थापित करना  पहली प्राथमिकता होना चाहिए.  


कश्मीरी पंडितों का नरसंहार और उन्हें घाटी से विस्थापित करके  घाटी का जनसंख्या घनत्व पहले ही परिवर्तित किया जा चुका है और अब जम्मू में  अवैध भू अतिक्रमण कर  अवैध रूप से  रोहिंग्या और बांग्लादेशी घुसपैठियों को बसाया जाना अच्छे संकेत नहीं है. अल्पसंख्यक के रूप में भारी भरकम  सरकारी सहायता का उपयोग पहले भी भारत के विरुद्ध होता रहा है. सरकार को यह पड़ताल करने की आवश्यकता है कि वे कौन लोग हैं जो सर्वोच्च न्यायलय का निर्णय भी लागू नहीं होने देते ?


राज्य में अनेक मामलों में देखा गया है कि धारा 370 हटाने  और राज्य को केंद्र शासित प्रदेश  बनाये  जाने  के बाद भी बहुत से  सरकारी काम  पहले की तरह ही किए जा रहे हैं,  जिन्हें तुरंत रोका जाना जरूरी है अन्यथा जनता में भ्रम की स्थिति बनी रहेगी.  अभी हाल ही में राज्य में कुछ सरकारी नियुक्तियों के लिए आवेदन मांगे गए थे,  जिसमें  निर्देश था कि कश्मीर संभाग के लिए  केवल उसी संभाग के  लोग आवेदन कर सकते हैं लेकिन जम्मू संभाग के लिए निर्देश था कि उसमें पूरे राज्य के लोग आवेदन कर सकते हैं.  जम्मू के लोगों द्वारा प्रदर्शन और बबाल  किए जाने के बाद  जम्मू के लिए भी यह शर्त  कर दी गई कि केवल जम्मू संभाग के लोग ही आवेदन कर सकते हैं. यह  सब यह रेखांकित करता है  कि न केवल जम्मू  के साथ सौतेला व्यवहार अभी भी कायम है, अलगाववादियों और इन कुख्यात नेताओं के इशारे पर चलने वाली मशीनरी अभी भी पूर्ववत कार्य कर रही है. ऐसे और भी मामले हो सकते हैं. इस  सरकारी मशीनरी  की  पुरानी मानसिकता को  बहुत सख्ती  और प्रभावी ढंग से निपटाया जाना आवश्यक है.  अब जबकि जम्मू कश्मीर केंद्र शासित प्रदेश है  राज्य के  कैडर और  दूसरे केंद्र शासित प्रदेशों के  कैडर की अदला बदली तुरंत  आवश्यक है. 


 धारा 370 हटाने के बाद भी सरकार में  अन्य राज्यों से  आए  लोगों को   राज्य में बसने और संपत्ति खरीदने जैसे  कई मामलों में  कुछ  प्रतिबंध लगाये  गए हैं ,  इनका पुनरीक्षण  आवश्यक हो गया है ताकि लोगों को लगे कि कश्मीर भारत का अंग है.


परसीमन में जम्मू के साथ  पारदर्शी न्याय हो 

भौगोलिक क्षेत्रफल  और जनसंख्या के अनुसार  घाटी से बड़ा होने के बाद भी जम्मू में  विधानसभा की 36 और कश्मीर घाटी में 47 सीटें हैं.  प्रथम दृष्टया ऐसा  प्रतीत होता है  कि इसका उद्देश्य था  कि राज्य की सत्ता किसी न किसी तरह घाटी  के लोगों के पास रहे.  स्वतंत्रता के बाद लगातार सत्ता घाटी से संचालित होने के कारण जम्मू के लोग  भेदभाव के शिकार होते रहे हैं. प्रस्तावित परिसीमन में  सरकार को यह ध्यान रखना चाहिए की जम्मू की बहुत पुरानी मांग जिसमें परिसीमन भौगोलिक क्षेत्रफल और जनसंख्या के आधार पर करने की बात कही गई है उसकी अनदेखी न की जाए, ऐसा करना  पाकिस्तान  और उसके इशारे पर काम करने वाले  अलगाववादी और आतंकवादियों का  एजेंडे  रोकने में भी सहायक होगा. 


जम्मू कश्मीर को राज्य का दर्जा देने में जल्दबाजी  न हो 

किसी केंद्र शासित प्रदेश में अगर विधानसभा है, तो जनता द्वारा सीधे चुने हुए प्रतिनिधि शासन प्रशासन में शामिल होते हैं और  इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उसे राज्य का दर्जा मिला है या वह केंद्र शासित प्रदेश है.  जम्मू के लोग 2011 की जनगणना के अनुसार परिसीमन करने का विरोध कर रहे हैं क्योंकि उनका मानना है की 2011 की जनगणना सिर्फ कार्यालय में बैठकर की गई थी  और इसमें कश्मीर संभाग की जनता को जनगणना को बहुत बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया है इस कारण कश्मीर संभाग की जनसंख्या 69 लाख  और जम्मू की जनसंख्या 53 लाख बताई गई है,  जो सही नहीं है.  लोगों का मानना है कि  परिसीमन का आधार जनसंख्या के साथ-साथ क्षेत्रफल भी होना चाहिए और जम्मू के साथ न्याय किया जाना चाहिए.  जम्मू कश्मीर  मामले को दशकों  से देख रहे लोगों का मानना है कि अब जब सरकार इतना आगे पहुंच चुकी है उसे वापस पीछे नहीं  मुड़ना  चाहिए  और पाकिस्तान सहित अन्य इस्लामिक देशों के षड्यंत्र को विफल करने के लिए जम्मू को  अलग केंद्र शासित प्रदेश और कश्मीर को 2 केंद्र शासित प्रदेशों में बांट देना चाहिए  कश्मीर के एक हिस्से में विस्थापित कश्मीरी पंडितों को बसाने ने के लिए  शीघ्र  कार्यवाही करनी चाहिए,  क्योंकि कश्मीरी पंडित  कश्मीर घाटी की  वर्तमान भौगोलिक यथास्थिति के  चलते  भय के कारण  अपनी जान जोखिम में डालकर  वहां बसने नहीं जाएंगे. 


केंद्र सरकार को याद रखना चाहिए कि जो कश्मीरी नेता दिल्ली की मीटिंग में पूरी तरह से अनुशासित और संविधान के प्रति समर्पित दिखाई पड़ रहे थे उन्होंने घाटी वापस पहुंचकर धारा 370 की बहाली  सहित   अन्य मांगों के लिए भी बयान देने शुरू कर दिए हैं.  ऐसा करके वह चाहते हैं कि केंद्र सरकार पर ज्यादा से ज्यादा दबाव बनाकर अपनी मांगे मनवा सके ताकि घाटी में लोगो के अगुआ बन सकें और सत्ता में वापसी कर सकें.  


आशा की जानी चाहिए कि वर्तमान सरकार पिछली सरकारों की तरह, मोदी सरकार  घाटी के नेताओं के झांसे में नहीं आयेगी और व्यापक राष्ट्रीय हित में ऐसे कदम उठायेगी जिससे जम्मू को न्याय और कश्मीर को स्थायित्व मिले और पूरे देश को कश्मीर के भारत में पूर्ण विलय का अहसास हो  सके .

*************************

-शिव मिश्रा

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

Follow me : 
https://www.facebook.com/shiveprakash.mishra/ 
https://twitter.com/shivemishra ; https://hi.quora.com/profile/Shiv-Mishra-20 https://www.instagram.com/shiveprakashmishra/ https://www.linkedin.com/in/shive-prakash-mishra-18907114/
https://www.youtube.com/channel/UC07vsoeT0Ue-yh-MxJY61_w
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~






सोमवार, 28 जून 2021

शादी विवाह करने की सही उम्र क्या है?

 

शादी विवाह  में देर होने से कई समस्याओं से दो चार होना पड़  रहा है,  आखिर क्या होनी चाहिए विवाह की  सही उम्र?

 


 विश्व के ज़्यादतर देशों में लड़के और लड़कियों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 18 ही है. भारत में 1929 के शारदा क़ानून के तहत शादी की न्‍यूनतम उम्र लड़कों के लिए 18 और लड़कियों के लिए 14 साल तय की गई थी. 1978 में संशोधन के बाद लड़कों के लिए ये सीमा 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल हो गई.

लड़की और लड़की की शादी की उम्र में 3 साल का अंतर किया जाना भी एक पहेली ही है  जिसका मतलब निकलता  है कि लड़के  कुछ ज्यादा देर में परिपक्व होते हैं.  यह धारणा भारत की प्राचीन  व्यवस्था और परंपरा से मेल खाती है  लेकिन फिर भी उसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है. भारत में आज भी  सामान्यतः  वर  और  वधू  की उम्र 2 से 2 से लेकर 4 साल तक का अंतर रखा जाता है. 

 अक्सर बात करते हैं आजकल लड़कियों की शादी समय से नहीं हो पाती है, लेकिन  समय से शादी का क्या मतलब है ?

 आजकल बहुत से विषयों पर बहुत सारे रिसर्च हुआ करती हैं  लेकिन ज्यादातर रिसर्च का आधार  प्रश्न और उत्तर ही होता है  और माता पिता के  विचार भी इसमें शामिल किए जाते हैं.  कुछ अन्य  बातों को ध्यान में रखते हुए  ऐसा माना जाता है  की 25 वर्ष की आयु  लड़कों के लिए सबसे उपयुक्त आयु होती है  और लड़कियों के लिए भी  20 से लेकर 23 वर्ष तक  की आयु सबसे उपयुक्त मानी जाती है. 

 हालांकि  कुछ लोगों को यह उम्र भी काफी कम लगती है, लेकिन शोध में ऐसे कई तथ्य निकल कर आए हैं जो यह कहते हैं कि  समय से  शादी करना ही सही फैसला है’।

 शोध में ऐसा पाया गया है कि यदि वर्क ही उम्र 25 से 27 वर्ष के बीच और वधू की उम्र 21 से 24  वर्ष के बीच  हो  तो उनके रिश्तो में भरपूर उत्साह और जोश रहता है जिससे परिवार का वातावरण बहुत ही सुखद और खुशनुमा रहता है.  इस उम्र  में   किए गए रिश्तो में  बेहतर सामंजस्य देखने को मिलता है. दोनों के विचारों में  बेहतर तालमेल के कारण  काफी हद तक  समानता देखने को मिलती है.  इसलिए इस जोड़ी को आदर्श जोड़ी या परफेक्ट कपल कहा जाता है.

 हिन्दू दर्शन के मुताबिक आश्रम प्रणाली में विवाह की उम्र 25 वर्ष थी जिससे बेहतर स्वास्थ्य और कुपोषण की समस्या से छुटकारा मिलता था। ब्रह्मचर्य आश्रम में अपनी पढ़ाई पूर्ण करने के बाद ही व्यक्ति विवाह कर सकता था। उम्र में अंतर होने के मामले हिन्दू धर्म कोई खास नियम नहीं । लड़की की उम्र अधिक हो, समान हो या कि कम हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। यदि दोनों  अच्छे संस्कारबद्ध  है तो दोनों में ही समझदारी होगी.

समय से शादी करने के लिए  अनगिनत  फायदे हैं

  • नौकरी पेशा और कैरियर के लिए दोनों की सामूहिक रुचि का ध्यान रखा जा सकता है. 
  •  परिवार बढ़ाने के बारे में भी सामूहिक फैसला लिया जा सकता है.परिवार भी इस संबंध में कोई दबाव नहीं डालता. 
  •  इस उम्र में शादी करने से लड़कियां अपनी ससुराल में ज्यादा अच्छे ढंग से तालमेल बैठा लेती  हैं.
  •  पति पत्नी की अच्छी शारीरिक अवस्था  के कारण   हृष्ट-पुष्ट बच्चे जन्मते हैं . और पत्नी को प्रसव काल की कोई जटिलताएं सामान्यतः नहीं होती हैं.
  •  माता-पिता और बच्चों के बीच अधिक अंतर ना होने के कारण उनके संबंध  भी दोस्त नुमा हो सकते हैं जो  अगली पीढ़ी के भविष्य के लिए भी काफी सुखदायक होते हैं.  इस तरह के माता-पिता और संतानों के बीच में  पीढ़ी  अंतरण   (जेनरेशन गैप) का अंतर कम से कम होता है. 
  • समय से शादी करने वाले जोड़ों  का दांपत्य जीवन बहुत लंबा  और  अपेक्षाकृत सुखद होता है. 
  • शादी  केवल सामाजिक संस्कार ही नहीं  शारीरिक जरूरत भी होती है इसलिए यह मानसिक शांति के लिए अत्यंत आवश्यक है. शोध में ऐसा पाया गया है इस समय से शादी करने वाले युवकों युवतियों में  नशे की लत, मानसिक विकार,  पर स्त्री / पर पुरुष संबंध से दूर रहते हैं. 
  •  आर्थिक दृष्टि से भी देखा जाए तो समय से शादी करने वालों के पास  अधिक आय अर्जित करने और   ज्यादा बचत  करने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है,  जो घर गृहस्ती को आर्थिक दृष्टि से मजबूत बनाता है और बच्चों के भविष्य के लिए भी है यह अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है.

   विलंब से होने वाले  विवाह के संभावित दुष्परिणाम

 विलंब के कारण  दुष्परिणाम  होते हैंशायद ऐसा   कहना तो उचित नहीं होगा हां इतना अवश्य कहा जा सकता है कि जो फायदा समय से विवाह होने पर नहीं सकता था उससे यह परिवार और यह जोड़ा वंचित हो जाता है.  फिर भी कुछ संभावनाएं जो समय से विवाह होने पर चल सकती थी वे इस प्रकार हैं.

  •  लड़के और लड़की दोनों में अधिक परिपक्वता आ जाने के कारण  पति पत्नी के रूप में सामंजस्य बैठाने में परेशानी आ सकती है.
  •  युवा दंपत्ति के  दांपत्य जीवन के  प्रथम 5 वर्ष सबसे अधिक महत्वपूर्ण होते हैं और उन्हें वह अपने जीवन का अधिकतम आनंद प्राप्त करते हैं,   जिनसे यह लोग वंचित रह जाते हैं.
  •  ज्यादा उम्र में   बढ़ती  जटिलताओं के कारण  संतान  का स्वास्थ्य प्रभावित हो सकता है,  और आनुवंशिकी रोग संतान में पहुंचने की संभावना बढ़ती जाती है.
  •  मानसिक रूप से भी अधिक उम्र में शादी होने से लड़के और लड़कियों दोनों में शादी के प्रति उत्साह  कम या खत्म हो जाता है,  पर ऐसे में विवाह एक औपचारिकता  बन जाती है.
  •  कई बार ज्यादा उम्र हो जाने पर लड़के और लड़कियां दोनों ही कुंवारे रह जाते हैं.
  •  शोध में यह भी पाया गया है जिन लोगों की शादियां देश तो होती हैं  वे बुढ़ापे की बीमारियों से जल्दी ग्रस्त हो जाते हैं.
  •  अधिक उम्र के लड़के लड़कियों दोनों में  नशे की लत,  मानसिक विकार  और यहां तक कि चरित्रक  दुर्बलता   आज आने की बहुत संभावना रहती है. 
  •  सामान्यतः विवाह के बाद ही लोग  अपने भविष्य  की योजनाएं बनाते हैं और देर से विवाह होने के कारण उनके पास पैसा कमाने और उनसे अपनी योजनाएं पूरी करने के लिए समय बहुत कम होता है.  इस कारण बहुत से लोग अपने व्यवसाय यह कमाई में ही इतने व्यस्त हो जाते हैं कि उनका दांपत्य जीवन खुशहाल नहीं होता.
  •  देर से बच्चे होने के कारण   उनका बचपन भी प्रभावित होता है और माता-पिता का उनसे सामंजस्य बना पाना भी अपेक्षाकृत कठिन हो जाता है  और ऐसे में बच्चों का कैरियर/  भविष्य भी  प्रभावित हो  सकता है.   अगर पति पत्नी दोनों सर्विस करते हैं तो उनके सेवाकाल में बच्चों की पढ़ाई लिखाई नौकरी व्यवसाय और शादी संबंध भी समय  से नहीं हो पाते. 
  •  विवाह में विलंब होने से कई लड़के लड़कियां   स्वयं अपने लिए वर वधु ( प्रेम विवाह या गन्धर्व ढूंढ लेते हैं.   जो सामाजिक मर्यादाओं की अनुरूप नहीं भी हो सकता है और उस स्थिति में माता पिता के लिए भी बहुत असहज और अपमानजनक हो जाता है.
  • माता-पिता की तरफ से  विलंब करने के कारण कई लड़के लड़कियां  आजकल प्रचलित लिव इन रिलेशनशिप  में आ जाते हैं,  जो सारी सामाजिक मर्यादाओं को तार-तार कर सकता है और वह इन माता-पिता के लिए भी अत्यंत असहनीय हो  सकता है. 

सनातन परंपरा में व्यक्ति की उम्र 100 वर्ष मानकर  चार आश्रम बनाए गए थे ,  25 वर्ष तक ब्रम्हचर्य ( पढ़ाई लिखाई और शारीरिक शौष्ठव) ,  50 वर्ष तक ग्रहस्थ (मधुर दाम्पत्य, पारिवारिक दायित्व),  75 वर्ष तक वानप्रस्थ ( समाज सेवा, विद्यादान,धर्म कर्म)   और 100 वर्ष तक सन्यास ( सन्यासियों के साथ या सन्यासियों जैसा जीवन).  देर से विवाह करने के कारण  इन चारों आश्रमों से  मनुष्य के जीवन में पहले दो आश्रम ही पूरे  हो पाते हैं और इसलिए इन  व्यक्तियों का जीवन भी अधूरा रह जाने  की संभावना हो जाती है.

आजकल  लड़के लडकियां प्रतियोगिता परीक्षाओं के कारण जिनमे उम्र सीमा सरकार स्वयं बढ़ा   रही है, विलम्ब होता है लेकिन देखा देखी अन्य  माता पिता भी बिलम्ब करने लगे हैं, जो उचित नहीं है .  

 इसलिए   माता-पिता की अत्यधिक  जिम्मेदारी  है  कि वे बिना किसी कारण या अनावश्यक  अपने लड़के लड़कियों के विवाह में विलंब न करें.  अच्छा वर और अच्छा वधू पाने के लिए कोई सीमा नहीं है और इसके कारण  विलंब करना बिल्कुल भी उचित नहीं है.

           **********************************************************************

                                                                     - शिव मिश्रा 

 

मंगलवार, 22 जून 2021

क्या लक्ष द्वीप में हो रहा विरोध मोदी सरकार के विरुद्ध एक षड्यंत्र है?

 प्राय: खबरों से गायब  रहने वाले  लक्ष द्वीप इस  समय सुर्खियों में है और  इसका कारण है वहां के नए प्रशासक  प्रफुल्ल के पटेल  द्वारा  प्रस्तावित कुछ नए कानून जिनका यह कहकर विरोध किया जा रहा है यह प्रस्तावित कानून उनकी जमीन हड़पने, मुंह से निवाला छीनने और द्वीप  का भगवाकरण करने का प्रयास है. 

 

प्रस्तावित कानूनों का विरोध करते हुए  कांग्रेस नेता राहुल  ने प्रधानमंत्री मोदी को एक पत्र लिखा कि इन कानूनों से द्वीप  के निवासियों की धार्मिक और सांस्कृतिक स्वतंत्रता खत्म हो जाएगी.  राष्ट्रवादी पार्टी के नेता शरद पवार ने भी विरोध किया क्योंकि द्वीप का एकमात्र सांसद उनकी पार्टी का सदस्य है.  इसके अलावा 93 रिटायर्ड अधिकारियों ने भी  प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर प्रस्तावित कानूनों  का  विरोध   करते  हुए मांग की कि वर्तमान प्रशासक प्रफुल्ल के पटेल को हटा कर, लोगों के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार प्रशासक नियुक्त किया जाए.  कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने तो यहां तक आरोप लगा दिया  कि सड़क के किनारे पेड़ों पर लाल और सफेद रंग की  जो पट्टियां बनाई गई हैं उससे   लक्षद्वीप  का भगवाकरण   किया जा रहा है,जो निहायत हास्यास्पद  है.  सभी शहरों में सड़क के किनारे समुद्र किनारे पेड़ों को जड़ों के पास से लाल और सफेद रंग की पट्टियां बनाकर सजाया जाता है और उनमें नंबर डाले जाते हैं.

 

क्या है प्रस्तावित कानून ? 

  1. विकास प्राधिकरण बनाने हेतु  लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन मसौदा, 2021

  2. गाय और बैल के अवैध कत्ल पर प्रतिबंध

  3. शराब  की बिक्री को प्रतिबंध मुक्त करना 

  4. पंचायत चुनाव में 2 से अधिक संतानों वाले लोगों के उम्मीदवार होने पर प्रतिबंध

  5. गुंडा एक्ट लागू करना 

 

अगर हम उपरोक्त  प्रस्तावित कानूनों का विश्लेषण करें तो  पाते  हैं कि द्वीप  में विकास प्राधिकरण की स्थापना अत्यंत आवश्यक है,  क्योंकि इस छोटे से द्वीप में प्राकृतिक संसाधनों का दोहन  जितने   अवैज्ञानिक तरीके से  से  किया जा रहा है,  उससे इस  द्वीप  के अस्तित्व पर संकट आ सकता है. हाल ही में आईआईटी खड़कपुर के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में पाया है कि  लक्षद्वीप के  आसपास समुद्र का जल एक मिली मीटर प्रति वर्ष के हिसाब से बढ़ रहा है,  जिसमें हवाओं के वेग और तूफान के कारण और वृद्धि हो सकती है.  इन वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि लक्षद्वीप के लिए अनुमानित समुद्र-स्तर वृद्धि के प्रभावों को ध्यान में रखते हुए,  अल्प और दीर्घ  अवधि  की योजना को बनाना अत्यंत आवश्यक है  ताकि  यहां के निवासियों की जीवन रक्षा की जा सके. इस अध्ययन के अनुसार अगाती द्वीप पर स्थित हवाई अड्डा खतरे में है. ऐसे में  इस द्वीप  में विकास प्राधिकरण की स्थापना  आवश्यक है  जो विशेषज्ञ तरीके से द्वीप  का  रखरखाव और विकास सुनिश्चित कर सकता है.

 

द्वीप  पर अवैध क़त्ल खानों  के कारण पर्यावरण को  गंभीर नुकसान पहुंच रहा है   जिसके कारण आबादी के साथ साथ   पर्यटक भी प्रभावित होते हैं. इसलिए बूचड़खानों  पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है जिसके लिए अन्य राज्यों में  प्रचलित  लाइसेंस  प्रणाली  लागू की जा सकती है,  जिस का विरोध नहीं होना चाहिए.

 किसी भी द्वीप पर जब कोई पर्यटन के लिए जाता है तो उसका उद्देश्य  तनाव से दूर मौज मस्ती करना होता है.  इसलिए शराब और बियर  किसी भी पर्यटन स्थल की आवश्यकता होती है. भारत में गोवा, पुडुचेरी,  दमन एंड दीव   सहित अन्य स्थलों पर भी   मदिरा  पर कोई प्रतिबंध नहीं है.  द्वीप के निवासी बताते हैं कि सरकार ने  तो शराब पर  कभी प्रतिबंधित नहीं  लगाया  बल्कि यह  यहां के निवासियों द्वारा स्वयं लगाया हुआ नियम है जो कालांतर में शराबबंदी के रूप में माना जाने लगा.  शराब विक्री की अनुमति से  भी किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए क्योंकि यह द्वीप  कोई धार्मिक स्थल नहीं है,  जहां शराबबंदी  लागू की  जाए. 

 

जहां तक पंचायत चुनाव का प्रश्न है,  2 से अधिक संतानों वाले व्यक्तियों को   उम्मीदवार बनने से रोक भारत के ज्यादातर राज्यों में लागू है  और यह  बहुत प्रगतिशील  कदम है ताकि पंचायत स्तर से  लोगों को  जनसंख्या नियंत्रण के लिए संदेश दिया जा सके. लक्षद्वीप  में इस कानून का  विरोध समझ से परे है  और राजनीतिक दलों को भी  दलगत  स्वार्थ से ऊपर उठकर सोचना चाहिए.

 

लक्ष द्वीप के  लिए प्रस्तावित गुंडा एक्ट का भी  यह कह कर विरोध किया जा रहा है  कि जब यहां पर कानून और व्यवस्था की स्थिति ठीक है तो इस एक्ट की आवश्यकता  नहीं है.  यह तर्क भी किसी के गले नहीं उतर सकता क्योंकि कानून हमेशा भविष्य की घटनाओं को ध्यान में रखते हुए बनाए जाते हैं और अगर कहीं पर गुंडा नहीं है  तो गुंडा एक्ट से  डरने का कोई मतलब नहीं.  इससे कानून व्यवस्था में और सुधार होने की संभावना बढ़ जाएगी. जब  इस कानून का दुरुपयोग होने लगे तब विरोध किया जाए  तो  यह स्वाभाविक लोकतांत्रिक प्रक्रिया  होगी. 

 

लक्ष दीप इतिहास और सामरिक महत्व:

 

लक्षद्वीप  संस्कृत का  शब्द है, जिसका वर्णन पौराणिक ग्रंथों में मिलता है  और  इसका मतलब है एक लाख द्वीप.  यह भारत के दक्षिणी पश्चिमी तट से 200 से 440 किमी (120 से 270 मील) दूर लक्षद्वीप सागर में स्थित  द्वीपसमूह है,  जिसमें इस समय छोटे-बड़े 36 द्वीप  हैं  और इनका  कुल भूमि  क्षेत्रफल लगभग 32 वर्ग किलोमीटर है । 

लक्ष द्वीप भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक माना जाता है और यह  भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश है.

लक्ष्यदीप का भारत के लिए बहुत सामरिक महत्व है क्योंकि यह 20 हजार वर्ग किलोमीटर का जल क्षेत्र और 4 लाख वर्ग किलोमीटर का विशेष आर्थिक क्षेत्र प्रदान करता है. यह पश्चिमी हिंद महासागर में स्थित है और फारस की खाड़ी की तरफ के समुद्री क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. भारत के क्रूड आयल के जहाज इसी क्षेत्र से आते जाते हैं इसलिए सुरक्षा की दृष्टि से भी इसका अत्यधिक महत्व है.

 लक्ष द्वीप  के  कुछ उल्लेखनीय  तथ्य 

  1. लक्षदीप की जनसंख्या एक लाख से भी कम है और लगभग 98%  जनसंख्या मुस्लिम  है.  मुस्लिम आबादी  का प्रतिशत इतना अधिक होने के कारण,  भारत  गणराज्य का हिस्सा  होने के बाद भी,  यहां की आबादी  इसे इस्लामिक  स्थान समझती  हैं.  इसलिए  स्वाभाविक रूप से उनकी अपेक्षा है कि यहां पर इस्लामिक कानून के अनुसार ही शासन व्यवस्था चलाई जाए. 

  2. कभी आदिवासी रही यहां की  पूरी जनसंख्या को अनुसूचित जनजाति मैं वर्गीकृत किया गया है. 

  3. मुस्लिमों का प्रतिशत इतना अधिक होने के बाद भी उन्हें अल्पसंख्यक होने का दर्जा भी प्राप्त है और तदनुसार उन्हें सभी सरकारी सुविधाएं प्राप्त होती हैं.

  4. प्राचीन काल  में द्वीप पर चोल साम्राज्य का शासन हुआ करता था जो बाद में टीपू सुल्तान के कब्जे में आ गया था और उसी समय यहां पर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ.

  5. अंग्रेजों के शासन समाप्त होने  के बाद 1956 में इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया.

  6. अगर प्रतिशत के हिसाब से देखें तो यह भारत का सर्वाधिक  मुस्लिम जनसंख्या वाला प्रदेश है, 

  7. सुरक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण होने के बाद भी  आज तक  इस केंद्र शासित प्रदेश को सामरिक चुनौतियों का सामना करने के लिए  तैयार नहीं किया  गया. 

  8. ऐसे समय में  जब  आतंकवादी आक्रमण समुद्री सीमा से भी होने लगे हैं , इस द्वीप में सुरक्षात्मक उपाय न करना देश के लिए संभावित खतरे से अंजान बने रहने के बराबर है. 

 

 हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 26 नवंबर को मुंबई में हुआ आतंकी आक्रमण समुद्र के रास्ते से किया गया था और इसके लिए उन्हें विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया था. सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार पाकिस्तान में आतंकवादियों के लिए इस समय जो प्रशिक्षण केंद्र चलाए जा रहे हैं उसमें बड़े-बड़े तरणताल भी बनाए गए हैं ताकि आतंकवादियों को समुद्री रास्ते से भारत पर आक्रमण करने के लिए तैयार किया जा सके. जब  चीन, पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट का कार्य बड़ी तेजी से पूरा कर रहा है, भारत को सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण इस क्षेत्र को सुरक्षा के दृष्टिकोण से मजबूत बनाना ही होगा खासतौर से ऐसे समय में जब केरल में बड़ी संख्या में चरमपंथियों ने अपने ठिकाने बना रखे हो.

 

विरोध  का एक विशेष  कारण 

लक्ष द्वीप  में  हो रहे विरोध के पीछे एक और कारण है और वह  है काव़ारती में महात्मा गांधी की मूर्ति की स्थापना, जिसके  कांग्रेस के शासनकाल में 2010 में लक्ष द्वीप की राजधानी  में स्थापित करने की योजना बनाई गयी थी. उस समय महात्मा गाँधी की मूर्ति पानी के जहाज द्वारा लक्षद्वीप भेजी  गई  लेकिन द्वीप  के निवासियों के भारी विरोध के कारण  यह मूर्ति लक्षद्वीप में जलयान से उतारी भी नहीं जा सकी.  विरोध करने वालों का तर्क था कि इस्लाम में मूर्ति  लगाना हराम माना जाता है इसलिए वह गांधी जी की प्रतिमा नहीं लगने देंगे क्योंकि  इससे समुदाय की मजहबी भावनाओं को ठेस पहुँचेगी। स्थानीय निवासियों का कहना है कि  मूर्ति लगाना हिन्दुत्व का  हिस्सा है  लेकिन  शरिया कानून  इसकी इजाजत  नहीं  देता  । 

 

 उग्र  विरोध के बाद  यह  विशेष जलयान महात्मा गाँधी की मूर्ति के साथ वापस कोच्चि आ गया. इससे पहले कि  दिल्ली में विपक्षी दल इसे राजनीतिक रंग देते, एक दिन बाद यह जहाज फिर  कावारती भेजा गया इस बीच संभवत केंद्र सरकार की सलाह पर  प्रशासन ने कवरत्ती में महात्मा गाँधी की मूर्ति स्थापना की योजना रद्द कर दी  और मूर्ति पुनः कोच्चि वापस आ गई. तब से अब तक 11 साल के बाद भी महात्मा गांधी की  यह मूर्ति  लक्षद्वीप में स्थापित नहीं हो सकी है। अब सूचना  है कि  गांधी जी की यह मूर्ति लक्षद्वीप के प्रशासनिक कार्यालय  पहुंच गई है और स्थापित होने  का इंतजार कर रही है । धर्मनिरपेक्षता एवं अहिंसा की पहचान महात्मा गाँधी जिन्होंने  मुस्लिम समुदाय के लिए   बहुत  कुछ किया,  और हिंदुओं को लगता है कि उनकी कीमत पर किया लेकिन इसके बाद भी उनका विरोध किया जा रहा है.  जो भी हो गांधीजी भारत के राष्ट्रपिता हैं और राष्ट्रपिता की  मूर्ति की स्थापना भारत के किसी भी हिस्से में की जा सकती है  और लक्ष द्वीप  इसका अपवाद नहीं हो सकता .

 

अब कांग्रेस सहित सभी विपक्षी दल  लक्ष द्वीप  के मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने की कोशिश कर रहे हैं,  और   कांग्रेस   को   इस विरोध में महात्मा गांधी  की भी  याद  नहीं.  उसे महात्मा गांधी की याद तभी आती है जब उनकी हत्या के संबंध में  राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को घेरना होता है.  लक्ष द्वीप के प्रस्तावित कानूनों को गृह मंत्रालय की मंजूरी का इंतजार है जो अभी तक नहीं दी गई है और हो सकता है “सबका विश्वास” का नारा लगाने वाली भाजपा इन प्रस्तावित कानूनों को मंजूरी कभी न दें, यद्यपि इन कानूनों का उद्देश्य लक्ष्यदीप का विकास करना है ताकि यह द्वीप भी मालदीप की तरह विकसित हो सके और लोगों को समुचित रोजगार के साथ-साथ उनकी आय में वृद्धि हो सके. लक्षद्वीप में किए जाने वाले सुधारों पर रोक लगाने की माँग के लिए  केरल उच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की गई थी लेकिन न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।

 

सबसे चिंताजनक बात यह है कि लक्ष द्वीप में हो रहे प्रदर्शन कुछ उसी तरह है जैसे शाहीन बाग में किए गए थे, जिसमें छोटे छोटे  मासूम बच्चे भी शामिल किए गए थे, ताकि पूरे विश्व का ध्यान आकृष्ट किया जा सके.  प्रदर्शनकारियों की  समुद्र में खड़े होकर,  पानी के अंदर गोता लगाते हुए तस्वीरें  राष्ट्रीय मीडिया में    छप रही हैं,  जिन्हें देखकर ऐसा लगता है कि यह एक  बड़े राष्ट्रीय  षड्यंत्र का हिस्सा है. 

 

भारत में राजनीत का जो वर्तमान स्वरूप है उसमें केंद्र सरकार और भाजपा के हर अच्छे बुरे कार्य का विरोध करने का फैशन है और उसी फैशन के अंतर्गत लक्ष द्वीप  का विरोध भी हो रहा है. हर विरोध की तरह इस विरोध में भी फिल्म, कला व साहित्य, और सेवानिवृत्त अधिकारी भी शामिल हैं. इस विरोध में शामिल सभी लोगों के  अपने अपने स्वार्थ है . दुर्भाग्य से सेवानिवृत्त अधिकारियों , जिनमें एक पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार भी शामिल हैं, का इतना संकुचित दृष्टिकोण अपना कर विरोध में शामिल होना चिंता का विषय है. इन लोगों में किसी के पास अब वापस करने के लिए पुरस्कार नहीं बचे हैं इसलिए वह प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं.

 

मेरा व्यक्तिगत रुप से मानना है कि  सरकार अगर इस भीड़ तंत्र के सामने झुक जाती है तो भविष्य  में भारत के लिए सुरक्षा की दृष्टि से बहुत घातक परिणाम सामने आने की संभावना है.

  • क्या इन लोगों को यह नहीं मालूम की लक्ष द्वीप भारत का हिस्सा है जो धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है कोई अलग इस्लामिक राष्ट्र नहीं, तो फिर वहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मूर्ति क्यों नहीं लगाई जा सकती ?

  • आतंकवादियों की  समुद्री मार्ग से आक्रमण की साजिशों को रोकने के लिए सैन्य निगरानी की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती?

  • किसी भी प्रदेश में अपराध चाहे कितने ही कम क्यों न हो, अपराध रोकने और कानून व्यवस्था को और अधिक मजबूत करने का कानून क्यों नहीं बनाया जा सकता?

  • लक्षदीप भारत का हिस्सा है और भारत के किसी भी हिस्से को राष्ट्रीय परिपेक्ष में आर्थिक गतिविधियां विकसित करने और राष्ट्रीय आय बढ़ाने के लिए उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता?

 

जो भी हो सरकार का वर्तमान विरोध और आंदोलन के सामने घुटने टेकना उतनी ही बड़ी भूल होगी जितनी कि संविधान में जम्मू कश्मीर के संबंध में धारा 370 जोड़ने को लेकर की गई थी.

~~~~~~~~~~~~~~~  

-शिव मिश्रा

~~~~~~~~~~~~~~~


गुरुवार, 17 जून 2021

लक्ष द्वीप की समस्या क्या है और क्या है इसका मुख्य कारण ? क्या इसका कोई समाधान है?

 लक्ष द्वीप की समस्या, कारण और समाधान

 


लक्ष दीप इतिहास और सामरिक महत्व:

लक्षद्वीप एक संस्कृत का एक शब्द है जिसका मतलब है एक लाख दीपों का समूह. यह भारत के दक्षिणी पश्चिमी तट से 200 से 440 किमी (120 से 270 मील) दूर लक्षद्वीप सागर में स्थित एक द्वीपसमूह है। लक्षद्वीप भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे खूबसूरत स्थानों में से एक माना जाता है यह है भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश है जिसमें 32 वर्ग किलोमीटर किलोमीटर की भूमि पर 36 छोटे बड़े द्वीप हैं.

लक्ष्यदीप का भारत के लिए बहुत सामरिक महत्व है क्योंकि 20 हजार वर्ग किलोमीटर का जल क्षेत्र और 4 लाख वर्ग किलोमीटर का विशेष आर्थिक क्षेत्र प्रदान करता है. यह पश्चिमी हिंद महासागर में स्थित है और फारस की खाड़ी की तरफ के समुद्री क्षेत्र में अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. भारत के क्रूड आयल के जहाज इसी क्षेत्र से आते जाते हैं इसलिए भारत की सुरक्षा की दृष्टि से भी इसका अत्यधिक महत्व है.

कुछ और बातों पर ध्यान देते हैं

  • लक्षदीप की जनसंख्या एक लाख से भी कम है और इसमें 98% मुस्लिम जनसंख्या है और शायद यही इस देश की सबसे बड़ी समस्या भी है क्योंकि इतनी अधिक जनसंख्या प्रतिशत होने के कारण, और भारत का केंद्र शासित प्रदेश होने के बाद भी मुस्लिम इसे इस्लामिक प्रदेश समझते हैं .उनकी अपेक्षा है कि यहां पर इस्लामिक कानून के अनुसार ही शासन व्यवस्था चलाई जाए.

  • यहां की लगभग पूरी जनसंख्या को अनुसूचित जनजाति मैं वर्गीकृत किया गया है. मुस्लिमों का प्रतिशत इतना अधिक होने के बाद भी उन्हें अल्पसंख्यक होने का दर्जा भी प्राप्त है और तदनुसार उन्हें सभी सरकारी सुविधाएं प्राप्त होती हैं.

  • प्राचीन समय में द्वीप पर चोल साम्राज्य का शासन हुआ करता था जो बाद में टीपू सुल्तान के कब्जे में आ गया था और उसी समय यहां पर बड़े पैमाने पर धर्मांतरण हुआ.

  • अंग्रेजों के शासन काल के बाद 1956 में इसे केंद्र शासित प्रदेश बनाया गया लेकिन मुस्लिम जनसंख्या का प्रतिशत लगातार बढ़ता गया.

  • अगर प्रतिशत के हिसाब से देखें तो यह भारत का सबसे अधिक मुस्लिम जनसंख्या वाला केंद्र शासित प्रदेश है, जहां मुस्लिम जनसंख्या प्रतिशत जम्मू कश्मीर से भी अधिक है.

  • सुरक्षा की दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण होने के बाद भी पिछली सरकारों ने इस केंद्र शासित प्रदेश और द्वीप को सामरिक रूप से उस तरह सुसज्जित नहीं किया जितना किसी देश को अपनी सीमाओं की रक्षा करने के लिए करना चाहिए था.

  • अब जबकि आतंकवादी और जिहादी आक्रमण समुद्री सीमा से भी होने लगे हैं ऐसे में इस द्वीप में सुरक्षात्मक उपाय न करना देश के लिए खतरे की घंटी है.

    • 26 नवंबर को मुंबई में हुआ आतंकी आक्रमण समुद्र के रास्ते से किया गया था और इसके लिए उन्हें विशेष रूप से प्रशिक्षित किया गया था.

    • सुरक्षा एजेंसियों के अनुसार पाकिस्तान में आतंकवादियों के लिए जो प्रशिक्षण केंद्र चलाए जा रहे हैं उसमें बड़े-बड़े स्विमिंग पूल और तरणताल भी बनाए गए हैं ताकि आतंकवादियों को समुद्री रास्ते से भारत पर आक्रमण करने के लिए तैयार किया जा सके.

    • अब जबकि चीन, पाकिस्तान के बलूचिस्तान में ग्वादर पोर्ट का कार्य बड़ी तेजी से पूरा कर रहा है, भारत को सामरिक दृष्टि से अति महत्वपूर्ण इस क्षेत्र को सुरक्षा के दृष्टिकोण से मजबूत बनाना ही होगा खासतौर से ऐसे समय में जब केरल में बड़ी संख्या में आतंकवादियों और चरमपंथियों ने अपने ठिकाने बना रखे हो.

विरोध की असली वजह :

कांग्रेस के शासनकाल में 2010 में लक्ष्यद्वीप की राजधानी के काबाराती में महात्मा गांधी की मूर्ति स्थापित करने की योजना बनाई गयी और तदनुसार एमवी अमीनदीवी नमक जलयान में महात्मा गाँधी की कई लाख रुपए की लागत से बनी मूर्ति लक्षद्वीप भेजा गई । महात्मा गाँधी की वह अर्ध-मूर्ति लक्षद्वीप में जलयान से उतारी भी नहीं जा सकी क्योंकि लक्षद्वीप के मुस्लिमों ने ऐसे किसी भी पुतले को लक्षद्वीप में स्थापित करने का उग्र विरोध कर दिया . विरोध करने वालों का तर्क था कि इस्लाम में पुतला लगाना हराम माना जाता है इसलिए वह गांधी जी की प्रतिमा नहीं लगने देंगे. उनका कहना था कि किसी भी पुतले या मूर्ति को स्थापित करने से समुदाय की मजहबी भावनाओं को ठेस पहुँचेगी। स्थानीय मुस्लिम यह मानते हैं कि यदि कोई पुतला स्थापित कर दिया गया तो मुस्लिमों को उसे सम्मान देना और फूलों से सजाना होगा जो कि हिन्दुत्व का एक हिस्सा है और शरिया कानून का उल्लंघन करता है। यही कारण था कि लक्षद्वीप के मुस्लिमों ने कवरत्ती में महात्मा गाँधी की अर्ध-मूर्ति की स्थापना नहीं होने दी .

लक्षद्वीप में मुस्लिमों के विरोध के बाद जलयान एमवी अमीनदीवी महात्मा गाँधी की अर्ध-मूर्ति के साथ वापस कोच्चि आ गया. इससे पहले कि विपक्षी दल इसे राजनीतिक रंग देते एक दिन बाद यह जहाज फिर यह कवरती भेजा गया लेकिन प्रशासन ने मुस्लिमों के कड़े विरोध के चलते कवरत्ती में महात्मा गाँधी की मूर्ति स्थापना की योजना रद्द कर दी थी और मूर्ति पुनः कोच्चि वापस आ गई.

तब से अब तक 11 साल हो गए लेकिन महात्मा गाँधी की वह अर्ध-मूर्ति लक्षद्वीप में स्थापित नहीं हो सकी है। अब ऐसा माना जा रहा है कि गांधी जी की यह अर्ध-मूर्ति लक्षद्वीप के प्रशासनिक कार्यालय में पहुंच गई है और स्थापित होने की राह देख रही है। लक्षद्वीप में मुस्लिमों का विरोध बढ़ता जा रहा है और धर्मनिरपेक्षता एवं अहिंसा की पहचान महात्मा गाँधी जिन्होंने हिंदुओं की कीमत पर मुस्लिमों की पुरजोर तरफदारी की थी और उनका मुस्लिम प्रेम ही उनके अंत का कारण भी बना था .

जो भी हो गांधीजी भारत के राष्ट्रपिता हैं और राष्ट्रपिता की यह मूर्ति अभी भी इस उम्मीद में है कि शायद कभी स्थापित किया जाएगा , जिसके लिए उसे लक्षद्वीप लाया गया था।

लक्षदीप का वर्तमान विरोध

आज लक्षद्वीप विपक्षी नेताओं द्वारा भाजपा सरकार और लक्षद्वीप के प्रशासक की आलोचना का माध्यम बन गया है। दरअसल लक्षद्वीप के प्रशासन ने कुछ कानूनों को मंजूरी दी है, जिसके कारण भारतीय द्वीप समूह के प्रशासक प्रफुल्ल के पटेल के खिलाफ विपक्षी नेता और लक्षद्वीप के स्थानीय लोग लामबंद हो रहे हैं। यद्यपि इन कानूनों का उद्देश्य लक्ष्यदीप का विकास करना है ताकि यह द्वीप भी मालदीप की तरह विकसित हो सके और लोगों को समुचित रोजगार के साथ-साथ उनकी आय में वृद्धि हो सके .

इन कानूनों में प्रमुख रूप से ये हैं -

  • लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण (LDA) के निर्माण के लिये जारी नवीनतम लक्षद्वीप विकास प्राधिकरण विनियमन मसौदा, 2021

  • गाय और बैल के अवैध कत्ल पर प्रतिबंध

  • शराब (alcohol) की बिक्री को मंजूरी

  • पंचायत चुनाव में 2 से अधिक संतानों वाले लोगों के उम्मीदवार होने पर प्रतिबंध

  • गुंडा एक्ट लागू करना

विरोध करने वालों में स्थानीय मुस्लिमों, विपक्षी दलों के अलावा कॉन्ग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी प्रमुख रूप से शामिल हैं। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा कि लक्षद्वीप के प्रशासन ने जिन कानूनी परिवर्तनों को मंजूरी दी है वो लक्षद्वीप के स्थानीय समुदाय के ‘सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं’ पर एक आघात है। इस मामले पर कॉन्ग्रेस ने केरल उच्च न्यायालय में याचिका भी दायर की और लक्षद्वीप में किए जाने वाले सुधारों पर रोक लगाने की माँग की लेकिन न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी।

( पोस्टर भी बोलते हैं )

आम लोगों के अलावा लक्षद्वीप प्रशासन द्वारा कथित तौर पर कई विवादित फैसले लिए जाने के बाद 93 रिटायर्ड अधिकारियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा है। उन्होंने वर्तमान प्रशासक प्रफुल्ल के पटेल को हटा कर, लोगों के प्रति संवेदनशील जिम्मेदार एक स्थाई प्रशासक की मांग की है।

इस बीच शरद पवार और केरल के मुख्यमंत्री ने भी नए नियमों का विरोध किया है,और कहां है कि नए प्रशासन राष्ट्रीय स्वयंसेवक का एजेंडा लागू कर रहे हैं. एक बेहद हास्यप्रद बयान में कांग्रेस के एक स्थानीय नेता ने आरोप लगाया है कि सड़क के किनारे पेड़ों पर लाल और सफेद रंग की पट्टियां बनाई गई हैं जो लक्ष्यदीप का भगवाकरण करना है. सभी शहरों में सड़क के किनारे समुद्र किनारे पेड़ों को जड़ों के पास से लाल और सफेद रंग की पट्टियां बनाकर सजाया जाता है और उनमें नंबर डाले जाते हैं.

( पोस्टर बोलते हैं - कश्मीर शाहीन बाघ से लक्षद्वीप तक एक जैसा प्रदर्शन )

भारत में राजनीत का जो वर्तमान स्वरूप है उसमें केंद्र सरकार और भाजपा के हर कार्य का अच्छे बुरे कार्य का विरोध करने का फैशन है और उसी फैशन के अंतर्गत लक्ष्यदीप का विरोध भी हो रहा है. हर विरोध की तरह इस विरोध में भी फिल्म, कला व साहित्य, और सेवानिवृत्त अधिकारी भी शामिल हैं. इस विरोध में शामिल सभी लोगों कि अपने अपने स्वार्थ है . दुर्भाग्य से सेवानिवृत्त अधिकारियों , जिनमें पूर्व राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जैसे लोग भी शामिल हैं, का इतना संकुचित दृष्टिकोण अपना कर विरोध में शामिल चिंता का विषय है. इन लोगों में किसी के पास अब वापस करने के लिए पुरस्कार नहीं बचे हैं इसलिए वह प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं.

मेरा व्यक्तिगत रुप से मानना है कि अगर सरकार अगर इस भीड़ तंत्र के सामने झुक जाती है तो आगामी सालों में भारत के लिए सुरक्षा की दृष्टि से बहुत घातक परिणाम सामने आने की संभावना है.

लक्ष्यदीप के मुस्लिमों का विरोध तो समझ में आता है लेकिन विपक्षी राजनेताओं सहित सेवानिवृत्त अधिकारियों का सुधारात्मक उपायों का विरोध करना समझ से परे है.

  • क्या इन लोगों को यह नहीं मालूम की लक्ष्यद्वीप भारत का हिस्सा है जो धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है कोई अलग इस्लामिक राष्ट्र नहीं, तो फिर वहां राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की मूर्ति क्यों नहीं लगाई जा सकती ?

  • आतंकवादियों कि समुद्री मार्ग से आक्रमण की साजिशों को रोकने के लिए सैन्य निगरानी की व्यवस्था क्यों नहीं की जा सकती?

  • किसी भी प्रदेश में अपराध चाहे कितने ही कम क्यों न हो, अपराध रोकने और कानून व्यवस्था को और अधिक मजबूत करने का कानून क्यों नहीं बनाया जा सकता?

लक्षदीप भारत का हिस्सा है और भारत के किसी भी हिस्से को राष्ट्रीय परिपेक्ष में आर्थिक गतिविधियां विकसित करने और राष्ट्रीय आय बढ़ाने के लिए उपयोग क्यों नहीं किया जा सकता?

जो भी हो वर्तमान विरोध और आंदोलन के सामने घुटने टेकना उतनी ही बड़ी भूल होगी जितनी कि संविधान में जम्मू कश्मीर के संबंध में धारा 370 जोड़ने को लेकर की गई थी.

~~~~~~~~~~~~~~~

-शिव मिश्रा

~~~~~~~~~~~~~~~


बीमार है ! सर्वोच्च न्यायालय

  बीमार है ! सर्वोच्च न्यायालय | हर पल मिट रही है देश की हस्ती | अब बहुत समय नहीं बचा है भारत के इस्लामिक राष्ट्र बनने में अमेरिका के नवनिर्...