शुक्रवार, 13 दिसंबर 2024

बीमार है ! सर्वोच्च न्यायालय

 


बीमार है ! सर्वोच्च न्यायालय | हर पल मिट रही है देश की हस्ती | अब बहुत समय नहीं बचा है भारत के इस्लामिक राष्ट्र बनने में


अमेरिका के नवनिर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक कार्यक्रम में देश के सर्वोच्च न्यायालय की खुलकर आलोचना की तो मैं हैरान रह गया लेकिन कुछ दिन बाद ही वर्तमान राष्ट्रपति जो बिडेन ने अमेरिकी न्यायपालिका के पक्षपात तथा भ्रष्टाचार के लिए जमकर आलोचना करते हुए उस पर अविश्वास व्यक्त किया और इसी आधार पर अपने बेटे को क्षमादान दे दिया. भारत इस मामले में सर्वथा अलग है. न्यायाधीशों की अपारदर्शी नियुक्तियां, भाई भतीजाबाद, भ्रष्टाचार, राजनीतिक पक्षपात तथा इस्लामिक और वामपंथी शक्तियों के दबाव में काम करने के बाद भी न्यायपालिका का यहाँ बहुत सम्मान किया जाता है. यद्यपि सम्मान की यह भावना स्वतः स्फूर्त नहीं है, हो सकता है कि इसके पीछे अवमानना का भय तथा राजनीतिक आडंबर हो.

कुछ दिन पहले सर्वोच्च न्यायालय ने पूजा स्थल कानून 1991 के विरुद्ध दायर की गई अनेक याचिकाओं पर जो निर्णय दिया, उसने पूरे देश में एक बार फिर सर्वोच्च न्यायालय की कार्यप्रणाली और निष्पक्षता पर प्रश्नचिन्ह लगा दिया है. याचिकाओं में कहा गया है कि अधिनियम धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, जो अदालत का दरवाजा खटखटाने और न्यायिक उपाय मांगने के उनके मौलिक अधिकारों का हनन है. अधिनियम उन्हें अपने पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों के प्रबंधन, रखरखाव और प्रशासन के अधिकार से भी वंचित करता है. याचिकाओं में कहा गया है कि यह अधिनियम अक्रांताओं द्वारा नष्ट किए गए हिंदू, जैन, सिख और बौद्ध पूजा स्थलों और तीर्थस्थलों को बहाल करने के अधिकारों पर भी प्रतिबंध लगाता है.

सर्वोच्च न्यायालय ने बिना सुनवाई किए याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध ही आदेश पारित कर दिया और देशभर की अदालतों को मस्जिदों के सर्वे की मांग करने वाले किसी भी नए मुकदमे या याचिका को स्वीकार करने या आदेश पारित करने पर प्रतिबंध लगा दिया. अदालत ने मौजूदा मुकदमों में भी सर्वे या कोई अन्य प्रभावी आदेश पारित करने पर पूरी तरह से रोक लगा दी है. मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अगुवाई वाली तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि वे केंद्र के जवाब के बिना इस पर फैसला नहीं कर सकते. पीठ ने भारत सरकार से इस संदर्भ में चार सप्ताह में हलफनामा दाखिल करने के लिए कहा है. इस प्रकार यह मामला एक बार फिर ठंडे बस्ते में चला गया है.

न्यायपालिका में सबसे अधिक विवादास्पद फैसले सर्वोच्च न्यायालय के ही होते हैं लेकिन आज तक उसके फैसलों का बहुसंख्यक हिंदुओं ने कभी खुलकर विरोध नहीं किया. इसके विपरीत मुस्लिम समुदाय, हर उस फैसले का, जो उनके विरुद्ध होता है, विरोध करते हैं. उनके विरोध का प्रभाव भी इतना होता है कि सत्तारूढ़ दल विशेषकर तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दल पहले तो सर्वोच्च न्यायालय पर दबाव बनाते हैं और फिर भी यदि मुस्लिम समुदाय के मनमाफिक फैसला नहीं आता है तो संसद में कानून बनाकर सर्वोच्च न्यायालय के फैसले तक बदल देते हैं. आज का सर्वोच्च न्यायालय भारत की ऐसी परिस्थितियों से निपटने में परिपक्व हो गया है. स्वतंत्रता प्राप्ति के लगभग 50 वर्ष तक, जब केंद्र में एक ही राजनीतिक दल और एक ही परिवार की सत्ता थी, सर्वोच्च न्यायालय को भारत सरकार के एक विभाग की तरह काम करने की आदत हो गयी थी. केंद्र सरकार ही उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति करती थी और इसलिए ऐसा कोई व्यक्ति न्यायाधीश ही नहीं बन पाता था जो केंद्र सरकार की इच्छा के विरुद्ध फैसला दे सकने की हिम्मत जुटा सके. कांग्रेस के कई संसद सदस्य त्यागपत्र देकर उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीश बन जाते थे और फिर वहां से त्यागपत्र देकर या सेवा निवृत्त होकर सांसद भी बन जाते थे. सेवानिवृत्ति के बाद कई पसंदीदा न्यायाधीश आकर्षक / संवैधानिक पदों पर नियुक्ति किये जाते थे. यही नहीं सरकार से सुर न मिलाने वाले न्यायाधीशों को प्रताड़ना भी झेलनी पड़ती थी. वे उच्च न्यायालय से सर्वोच्च न्यायालय नहीं पहुँच पाते थे. उनकी वरिष्ठता को अनदेखा करते हुए कनिष्ठ न्यायाधीश को मुख्य न्यायाधीश बना दिया जाता था. केंद्रीय एजेंसियों तथा महा-अभियोग का भय भी एक बड़ा कारक रहता था. ऐसी असहज स्थिति से बचने या अपना सम्मान बचाने के लिए उच्च / सर्वोच्च न्यायालय, कोई ऐसा फैसला नहीं करता था, जो समुदाय विशेष को आक्रोशित करें और केंद्र सरकार को नाराज करें. केंद्र में गैर कांग्रेसी सरकारों के आने के बाद स्थितियां तो बदल गई लेकिन न्यायपालिका की आदत नहीं बदली. संभवत: कांग्रेस और समुदाय विशेष का भय अभी भी उनके मन - मस्तिष्क में व्याप्त है. न्यायपालिका के अलावा यही स्थिति नौकरशाही की भी है. इसीलिए, लोग कहते हैं कि “सरकार बदल गईं लेकिन सिस्टम अभी भी उनका है”

इस बीच प्रयागराज उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति शेखर यादव के बयान की मनचाही व्याख्या करते हुए मुस्लिम तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले राजनीतिक दलों, विशेषकर समाजवादी पार्टी और कांग्रेस ने न्यायमूर्ति यादव पर व्यक्तिगत टिप्पणियां करते हुए जबरदस्त हो हल्ला मचा दिया जिससे सर्वोच्च न्यायालय भी इतना भयभीत हो गया कि प्रशासनिक कार्रवाई करने के उद्देश्य से उसे तुरत फुरत प्रयागराज उच्च न्यायालय से आख्या मांगनी पडी. कांग्रेस और समाजवादी पार्टी सहित पूरे विपक्ष ने न्यायमूर्ति यादव के विरुद्ध महाभियोग लाने की भी तैयारी शुरू कर दी है. इन राजनीतिक दलों का उद्देश्य न्यायपालिका को सन्देश देने के साथ कि वह समुदाय विशेष के विरुद्ध कोई भी आदेश देने और टिप्पणियां करने से बचे, मुस्लिम समुदाय को भी यह संदेश देना है कि वे उनके सच्चे हितैषी हैं और उन्हें, उनके लिए असंवैधानिक और गैरकानूनी कार्य करने में भी कोई संकोच नहीं है.

जहाँ तक पूजा स्थल कानून 1991 का प्रश्न है, कोई अनपढ़ व्यक्ति भी बता सकता है कि यह तुष्टिकरण की पराकाष्ठा है, तथा असंवैधानिक, गैरकानूनी और सनातन धर्मियों के साथ खुला अन्याय है, लेकिन कांग्रेस ने आजतक हिंदू विरोधी कार्य करने में कभी संकोच नहीं किया. गाँधी नेहरू के मुस्लिम प्रेम के कारण ही देश का विभाजन हुआ था लेकिन विभाजन के बाद भी उन्होंने मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल बंद नहीं किया. गाँधी नेहरू परिवार आज भी मुस्लिम समुदाय का उसी तरह ध्यान रखता है जैसे वर्तमान परिस्थितियों में कोई मुगल वंश करता.

एक तथ्य यह भी है कि पूजा स्थल कानून 1991 जिस समय संसद में पारित हुआ था, उस समय लोकसभा में भाजपा के लगभग 120 सांसद थे और अटल आडवाणी जैसे दिग्गज नेता सांसद थे. दुर्भाग्य से राष्ट्र के विनाशकारी तीन कानून - पूजा स्थल, वक्फ बोर्ड और अल्पसंख्यक आयोग उस समय बने जब भाजपा के दोनों भारत-रत्न अटल और आडवाणी संसद में थे तथा एक अन्य भारत रत्न पीवी नरसिम्हा राव प्रधानमंत्री थे. इन तीनों भारत रत्नों ने मिलकर हिंदुओं की बर्बादी और भारत के राष्ट्रांतरण के लिए घातक हथियार उपलब्ध करा दिए. क्या इनमें से कोई भी इतना दूरदर्शी नहीं था जो इन कानूनों के दुष्प्रभावों का अंदाज़ा लगा सकता?

केंद्र में 2014 से लगातार 10 साल तक दो कार्यकाल तक नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की पूर्ण बहुमत वाली सरकार थी लेकिन वह भी इन ऐतिहासिक गलतियों को ठीक करने का साहस नहीं जुटा सकी. वह “सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास” के माया मोह में उलझ गई. यहाँ सबका मतलब केवल मुस्लिम समुदाय से हैं. मैं शुरू से ही लिखता रहा हूँ कि आरएसएस, भाजपा और मोदी मुस्लिमों को प्रसन्न करने के लिए चाहे ध्रुव-तपस्या करें, यह समुदाय किसी भी हालत में उनको वोट नहीं करेगा लेकिन यह उनको तभी समझ में आया जब लोकसभा सांसदों की संख्या 240 रह गई. मोदी सरकार हिन्दुओं के हर महत्वपूर्ण मुद्दों का समाधान सर्वोच्च न्यायालय के कंधे पर रखकर करना चाहती है.सर्वोच्च न्यायालय ने बार बार संकेत दिया है कि सरकार स्वयं कुछ करें लेकिन सरकार ने बयानबाजी के अलावा कुछ नहीं किया.

महाराष्ट्र के चुनाव में भाजपा के पक्ष में जितना ध्रुवीकरण हुआ है, वह हाल के कई दशकों में नहीं देखा गया. यह भी भारत की जनता की ओर से संकेत है कि अभी नहीं तो कभी नहीं. मोदी सरकार को कानून बना कर हिन्दुओं की सभी महत्वपूर्ण समस्याओं का समाधान जितनी जल्दी हो सके, निकालना चाहिए. अन्यथा बहुत देर हो जाएगी क्योंकि हर पल देश की हस्ती मिटती जा रही है. भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनने में अब बहुत अधिक समय नहीं बचा है. अगर भाजपा और मोदी सरकार अभी नहीं चेते, तो इतिहास में उनका उल्लेख ऐसे संगठन और ऐसी सरकार के रूप में किया जाएगा जो अपने धर्म और संस्कृति को भी नहीं बचा सके जबकि उनके पास पर्याप्त समय, सुअवसर और सत्ता थी और वे ऐसा कर सकते थे .

~~~~~~~~~~~~~~~~~~~शिव मिश्रा~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~

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