गुरुवार, 23 जनवरी 2020

डेमोक्रेसी इंडेक्स (Democracy Index) - 2019


ब्रिटेन से निकलने वाले इकोनॉमिस्ट न्यूज़पेपर ग्रुप ने वर्ष 2006 में लोकतंत्र मापने का पैमाना विकसित करने के उद्देश्य से एक प्रणाली / अवधारणा विकसित की और इसका नाम दिया गया "डेमोक्रेसी इंडेक्स" यह काम न्यूज़पेपर ग्रुप की इकोनॉमिस्ट इंटेलिजेंस यूनिट हर वर्ष करती है.इस सर्वे में दुनिया भर के 167 देशों को शामिल किया जाता है और 1से 10 अंकों वाले इस इंडेक्स मैं हर देश को मिलने वाले अंको के आधार पर इन देशों की संयुक्त सूची तैयार की जाती है जिससे तुलनात्मक पता चल सके कि किस देश में लोकतंत्र के क्या स्थिति है। 2018 की तुलना में 2019 में भारत की स्कोर तालिका में 33 बेसिस प्वाइंट्स की कमी आई है और यह 7.23 से घटकर 6.90 हो गया है और इसके कारण सूची में भारत का स्थान 41 वीं पोजीशन से गिरकर 51वी पोजीशन पर आ गया है।
ऐसा क्यों हुआ ? इसको समझने के लिए इंडेक्स की कार्यप्रणाली समझना आवश्यक है. लोकतांत्रिक इंडेक्स में 60 संकेतको के आधार पर एक प्रश्नावली बनाई गई है और हर संकेतक के लिए अंक निश्चित किए गए हैं। इन 60संकेतकों को पांच समूहों में रखा गया है जो इस प्रकार हैं

1.चुनावी प्रक्रिया
2. नागरिक स्वतंत्रता
3.सरकार का कामकाज
4.राजनीतिक सहभागिता और
5.राजनीतिक संस्कृति

इन चार समूहों में भी 1 से 10 की मापन प्रणाली में अंक दिए जाते हैं और इन सभी का योग पुनः 10 के योग (weighted average) में परिवर्तित किया जाता है और इस तरीके से हर देश का सूचकांक 0 से 10 के बीच में होता है । भारत को इन समूह के अनुसार 2019 में मिले अंकों का विवरण निम्न है


1. चुनावी प्रक्रिया-8.67
2.नागरिक स्वतंत्रता- 6.76
3.सरकार का कामकाज -6.79
4.राजनीतिक सहभागिता -6.67
5.राजनीतिक संस्कृति-5.63



उपरोक्त पांच समूह में भारत के अंकों के जो कटौती हुई है वह है चुनावी प्रक्रिया में 50 बेसिस प्वाइंट, नागरिक स्वतंत्रता के मामले में 59 बेसिस प्वाइंट्स और राजनीतिक सहभागिता के मामले में 55 बेसिस प्वाइंट्स। इस तरह हिंदुस्तान को मिले हुए कुलऔसत स्कोर 2019 में 2018की तुलना में 7.23 से घटकर6.90 हो गया है और तदनुसार 33 बेसिस पॉइंट्स की कमी आई है। यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि की पूरे औसत अंकों के आधार पर संसार के सारे देशों को चार बड़े समूह में विभाजित किया गया है


१.पूर्ण लोकतंत्र 8-10
2.त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र 6-8
3 मिली जुली व्यवस्था 4-6
4 .लोकतंत्र का अभाव 0-4


उपरोक्त अंकों के आधार पर स्पष्ट है कि 33 बेसिस प्वाइंट्स की कमी के कारण भारत के समूह में परिवर्तन नहीं हुआ है यानी भारत को पहले भी त्रुटि पूर्ण लोकतंत्र की कैटेगरी में रखा गया था और वह आज भी इसी कैटेगरी में है। इसलिए इस संदर्भ में जो भी हो हल्ला मचाया जाएगा, उन लोगों को सीधे जवाब है कि इसे बहुत बड़ा अंतर नहीं कह सकते आखिर वर्तमान सरकार के पहले भी जो सरकारें थी उनके शासनकाल में भी भारत की कैटेगरी त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र में थी। जिन तीन कैटेगरी में भारत को कम अंक मिले हैं उसके कारण स्वयं स्पष्ट है नागरिक स्वतंत्रता और राजनीतिक सहभागिता के मामले में पश्चिमी देश हमेशा भारत को भारत के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और वामपंथ की आंखों से देखते हैं इसलिए आर्टिकल 370 हटाने के बाद, तीन तलाक खत्म करने के बाद, और संशोधित नागरिक कानून बनाने के बाद यह बहुत स्वाभाविक है। आश्चर्यजनक बात यह है की चुनावी प्रक्रिया में भी 50 बेसिस प्वाइंट्स की कमी आई है और जो स्वयं यह इंगित करती है कि को पूरी गणना की गई है उसमें कहीं ना कहीं कमी है। लेकिन जो कमी आई है उसका भी स्पष्टीकरण है कि भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग हताशा निराशा और सत्ता से बाहर होने के कारण इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को दोष देता रहा है और शायद यही कारण हो सकता है कि जो चुनावी प्रक्रिया है उसमें अंकों की कमी आई है। लेकिन भारत की चुनावी प्रक्रिया विश्व में सर्वश्रेष्ठ है, ऐसा विश्व में ज्यादातर लोगों का मानना है और विश्व में कहीं भी होने वाले चुनाव में भारत के चुनाव आयोग का उदाहरण दिया जाता है और कई बार भारत के चुनाव आयोग की सहायता ली जाती है इसलिए इस कमी का कोई कारण नहीं है।

सबसे बड़ी बात यह है कि इस तरह के लोकतांत्रिक इंडेक्स या कोई पैमाना व्यापारिक उद्देश्यों के लिए भी हो सकता है लेकिन इसकी कोई अहमियत नहीं है और इसकी कोई मान्यता भी नहीं है संयुक्त राष्ट्र संघ या किसी के द्वारा । अगर आप पूरी तालिका को देखेंगे तो भारत के ऊपर जितने भी देश हैं वह सभी जनसंख्या में तो भारत से छोटे हैं ही कुछ देश को छोड़कर सभी क्षेत्रफल में भी बहुत छोटे हैं ।भारत जैसे देश की विविधता और भौगोलिकता में इस तरह के कोई भी सर्वे पूरी तरह से फिट नहीं होते। जो भी सर्वे विदेशी कंपनी द्वारा किए जाते हैं खासतौर से पश्चिमी देशों के द्वारा वह सिर्फ और सिर्फ दिल्ली में बैठकर किए जाते हैं या को चार शहरों में । स्वाभाविक है कि दिल्ली में हो रही घटनाएं बहुत ज्यादा प्रभावी हो जाती हैं लेकिन क्या दिल्ली की घटनाओं से पूरे देश का आकलन करना उचित है ? क्या भारत जैसे बहुत बड़ी जनसंख्या के देश में एक छोटे से सैंपल सर्वे से भारत जैसे विशाल देश के लिए कोई निष्कर्ष निकालना सही है? इस इंडेक्स के अनुसार पूरी वैश्विक व्यवस्था में लोकतंत्र के इस सूचकांक में गिरावट आई है और औसत स्कोर 5.48 से घटकर 5.44 रह गया है । इसलिए भी निराश होने की आवश्यकता नहीं है और वर्तमान व्यवस्था पर सवाल उठना भी उचित नहीं है।

इसलिए मेरी व्यक्तिगत राय है कि इस तरह के सर्वेक्षणों से बहुत अधिक प्रभावित होने की जरूरत नहीं है क्योंकि इस तरह के सर्वेक्षण कई बार दोष पूर्ण होते हैं , पक्षपात पूर्ण होते हैं और शरारतपूर्ण भी होते हैं। कई बार इनके पीछे व्यापारिक उद्देश्य भी छिपे होते हैं। यह परिणाम किसी वैश्विक संस्था द्वारा नहीं दिए गए हैं इसलिए इसमें बहुत अधिक वाद विवाद, प्रतिवाद और स्पष्टीकरण की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए। हां हर समय हर व्यवस्था में विशेषतया हर राजनीतिक व्यवस्था में, हर देश में सुधार की गुंजाइश होती है और हमें उस तरफ ध्यान देना चाहिए लेकिन किसी प्राइवेट एजेंसी द्वारा किए गए सर्वे के आधार पर देश के बड़े सुधारवादी कार्य जैसे आर्टिकल 370, आर्टिकल 35A, ट्रिपल तलाक और संशोधित नागरिक कानून को प्रभावित होने की आवश्यकता नहीं है। देश के हित में सभी कड़े कानून लागू होते रहने ही चाहिए चाहे इस इंडेक्स में भारत को कोई भी स्थान मिले।
         ********************** शिव मिश्रा ***************************

बुधवार, 22 जनवरी 2020

राहुल और मोदी .........

मोदी और राहुल की किसी भी तरह से तुलना करना बेमानी है फिर भी अगर प्रश्न पूछा गया है तो उसका बहुत सरल और स्वाभाविक उत्तर है मोदी जी की प्रतिभा के सामने राहुल का कद नगण्य है।

मोदी और राहुल के बीच का अंतर समझने के लिए इन दोनों व्यक्तियों को समझना  जरूरी है।

मोदी और राहुल के बीच का अंतर समझने के लिए इन दोनों व्यक्तियों को समझना  जरूरी है।

नरेंद्र मोदी का जन्म एक बेहद गरीब और पिछड़ी जाति के परिवार में हुआ । उनके पिताजी रेलवे स्टेशन पर छोटी सी चाय की दुकान चलाते थे और बचपन में नरेंद्र मोदी भी अपने पिताजी के काम में हाथ बटाते हुए लोगों को चाय बेचते थे । जब ट्रेन आती थी तो घूम घूम कर चाय बेचते थे। यह बहुत स्वाभाविक है  कि अपने बचपन से ही उन्होंने अभाव और मानवीय संवेदनाओं को बहुत नजदीक से देखा और महसूस किया । इन सब ने इनके जीवन में बहुत प्रभाव डाला और इसलिए इस समाज के गरीब और निचले तबके के लिए उनके मन मे बहुत दर्द है । काम करने के साथ ही उन्होंने अपना पढ़ाई का कार्यक्रम जारी रखा । 13 वर्ष की उम्र में उनकी सगाई जसोदा बहन के साथ हुई और 17 वर्ष की उम्र में उनकी शादी हो गई। शादी के कुछ समय पश्चात ही उन्होंने घर छोड़ दिया और इसलिए इंटरमीडिएट के बाद उनकी पढ़ाई नियमित विद्यार्थी के रूप में नहीं हो सकी। घर छोड़ने के बाद 2 वर्षों तक उन्होंने पूरे भारत का भ्रमण किया और हिमालय में  एक सन्यासी के रूप में विभिन्न मठों और आश्रमों में काफी समय बिताया। वापस आने पर वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्णकालिक प्रचारक बन गये। इससे पहले 1965 में भारत पाकिस्तान युद्ध के समय उन्होंने रेलवे स्टेशनों पर स्वेच्छा से भारतीय सेना के जवानों की सेवा  की । 1967 में गुजरात में आई भयंकर बाढ़ में उन्होंने बाढ़ ग्रस्त इलाके में भी समाज सेवा का उदाहरण प्रस्तुत  किया। उन्होंने नागपुर आकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का विधिवत प्रशिक्षण लिया और बाद में उन्हें छात्र विभाग का काम दिया गया जिसका आगे चलकर नाम दिया गया अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद। आरएसएस के प्रचारक के रूप में उन्होंने कई राज्यों में काम किया और आपातकाल के समय  बहुत अधिक  सक्रियता से विरोध आंदोलनों में हिस्सा लिया । अपनी बुद्धिमत्ता और रणनीतिक कार्यकुशलता का परिचय देते हुए  तत्कालीन कई बड़े नेताओं का मन मोह लिया  । 1987 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने उन्हें तत्कालीन भारतीय जनता पार्टी में संगठन का कार्य देखने के लिए भेजा । यहां भी उन्होंने अपनी बुद्धिमत्ता और रणनैतिक कौशल की अमित छाप छोड़ी । 1995 और 1998 के गुजरात विधानसभा के चुनाव में उन्होंने पार्टी के लिए बहुत ही आक्रामक प्रचार किया जिसमें उनके संगठनात्मक कार्य की बहुत सराहना की गई। इस बीच उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक और गुजरात विश्वविद्यालय से परास्नातक की डिग्रियां नियमित या व्यक्तिगत छात्र के रूप में अर्जित  की।  राष्ट्रीय स्तर पर उन्हें दो बड़े आयोजनों के लिए जाना जाता है । एक आयोजन था राम मंदिर निर्माण के लिए लालकृष्ण आडवाणी की सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा का आंदोलन, जिसमें उन्होंने लालकृष्ण आडवाणी के सारथी की भूमिका निभाई । राम रथ से यात्रा करते हुए आडवाणी जब रास्ते में एकत्रित लोगो की सभाओं को संबोधित करते थे तब आडवाणी के हाथ मे माइक होता था और मोदी जी पोर्टेबल लाउडस्पीकर  कंधे पर रख कर खड़े होते थे जिससे दूर तक आवाज जा सके।  आज वह व्यक्ति  भारत का  प्रधानमंत्री हैं और उनकी आवाज पूरी दुनिया में सुनी जाती है। दूसरा आयोजन था कन्याकुमारी से कश्मीर तक डॉ मुरली मनोहर जोशी की तिरंगा यात्रा और जोशी जी के सारथी की भूमिका निभाई मोदी ने ।  आतंकवादियों की धमकी के बाद भी  श्रीनगर के लाल चौक पर झंडा फहराया । उनके अनअथक संगठनात्मक प्रयासों के कारण 1995 में गुजरात में भारतीय जनता पार्टी ने शंकर सिंह वाघेला के नेतृत्व में दो तिहाई बहुमत से सरकार बनाई। 2001 में केशुभाई पटेल के खराब स्वास्थ्य के कारण उन्हें गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया। 2001 में गुजरात के भुज में आए भूकंप से भीषण जनधन की हानि हुई थी जिसका सामना मोदी ने बहुत ही प्रशासनिक कुशलता से किया । 27 फरवरी 2002 के  दुर्भाग्यपूर्ण दिन गोधरा  के निकट साबरमती एक्सप्रेस की कोच संख्या S6 को कथित रूप से एक वर्ग विशेष के लोगों ने आग के हवाले कर दिया जिसमें अयोध्या से वापस आ रहे 59 कारसेवकों की जलकर मृत्यु  हो गई । जांच में पकड़े गए कई लोगों पर दोष सिद्ध हुए और उनमें से कई को मृत्युदंड या आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई गई। गोधरा की इस घटना की प्रतिक्रिया स्वरूप गुजरात में दंगे भड़क उठे और उसमें काफी धन जन की हानि हुई। कांग्रेस और तथाकथित अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने मोदी को इन गुजरात दंगों का दोषी आरोपित किया और कांग्रेस की तत्कालीन केंद्र सरकार ने लगातार जांच पर जांच बैठा कर मोदी और अमित शाह दोनों को फांसी के फंदे तक ले जाने की  भरपूर कोशिश की लेकिन इसमें कामयाब नहीं हुए।  मोदी 15 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे और इस बीच में गुजरात ने बहुत अधिक प्रगति की और मोदी के गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद वहां कोई भी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ । गुजरात की विकास गाथा पूरी दुनिया में गुजरात मॉडल के नाम से जानी जाती है। 2014 के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी को अपना प्रधानमंत्री प्रत्याशी घोषित किया और इसके बाद जो हुआ वह ऐतिहासिक घटना है। 30 साल के अंतराल के बाद कोई पार्टी स्वयं पूर्ण बहुमत पाकर केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब हुई थी। अपने पांच साल के पहले कार्यकाल में नरेंद्र मोदी ने पूरे विश्व में भारत का डंका बजा दिया। नोटबंदी, जीएसटी , सर्जिकल स्ट्राइक आदि की  सफलता पर सवार नरेंद्र मोदी को 2019 में हुए लोकसभा  चुनाव में पहले से भी अधिक बहुमत मिला और वह दोबारा प्रधानमंत्री  बने । अपने दूसरे कार्यकाल की शुरुआत उन्होंने बहुत ही तूफानी बल्लेबाजी से की और अब तक तीन तलाक , धारा 370, 35A, हटाने के बादसंशोधित नागरिक कानून लागू कर दिया है। पिछले 70 सालों में कोई भी राजनैतिक व्यक्ति और कोई भी सरकार धारा 370 हटाने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी और तीन तलाक पर सर्वोच्च न्यायालय के न्याय  निर्णय के बाद भी तत्कालीन राजीव गांधी की कांग्रेस सरकार ने एक वर्ग विशेष के सामने घुटने टेकते हुए कानून बनाकर मान्यता दे दी थी। स्पष्ट है  नरेंद्र मोदी का पूरा जीवन संघर्षों  की बुनियाद पर खड़ा है और अपने शून्य से शिखर तक के सफर में उन्होंने न केवल जनता की भरपूर सेवा की बल्कि अपने हर कार्य क्षेत्र में नए कीर्तिमान भी स्थापित किए। अपने अस्सीम साहस, रणनीतिक कौशल और दृढ़ इच्छाशक्ति की बदौलत उन्होंने भारत में अभी तक वह कर दिखाया है जो आगे आने वाले इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों से लिखा जाएगा। नरेंद्र मोदी वह व्यक्ति हैं जो अपने लिए नहीं, अपने परिवार के लिए, नहीं वरन् देश के लिए जीते हैं और जो कुछ भी करते हैं उसने राष्ट्र की भावना छिपी हुई होती है। अगर एक लाइन में कहां जाए तो "नरेंद्र मोदी असाधारण प्रतिभा, अदम्य साहस , दृढ़ इच्छाशक्ति, ओजस्वी वाणी और सच्ची राष्ट्र भक्ति की प्रतिमूर्ति हैं।  
     





राहुल गांधी का जन्म भारत के प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार "गांधी नेहरू" परिवार में हुआ । उनकी मां इटालियन मूल की और पिता भारतीय मूल के थे। उनके पिता, दादी और दादी के पिता सभी भारत के प्रधान मंत्री रह चुके है और वे कांग्रेस के सर्वे सर्वा भी  । अपने मां-बाप की दो संतानों में से वे सबसे बड़े हैं । उनकी प्रारंभिक शिक्षा दिल्ली के सेंट स्टीफेन कालेज तथा दून कॉलेज मे हुई ।  बाद में प्रतिष्ठित हार्ड वर्ड विश्वविद्यालय से कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की और कैंब्रिज विश्वविद्यालय से एमफिल की डिग्री हासिल की। कहा जाता है कि उन्होंने 3 साल तक प्रबंधन परामर्श की एक कंपनी मॉनिटर ग्रुप में काम किया। 2004 में अपने पिता राजीव गांधी के चुनाव क्षेत्र अमेठी से  लोकसभा चुनाव जीतकर राजनीति में प्रवेश किया। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पार्टी जनों के अनुरोध के बावजूद वे केंद्रीय मंत्रिमंडल में कोई भी मंत्री पद स्वीकार करने से बचते रहे। 2007 में उन्हें अखिल भारतीय कांग्रेस समिति का महासचिव नियुक्त किया गया। 2009 में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद और कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं के  उन्हें प्रधानमंत्री बनाए जाने की मांग के बावजूद भी केंद्रीय मंत्री या प्रधानमंत्री का पद लेने में हिचकिचाते रहे। 2014 में हुए लोकसभा के चुनाव में वह कांग्रेस पार्टी के प्रधानमंत्री प्रत्याशी थे, जो नरेंद्र मोदी को सीधे टक्कर देने का प्रयास करते  रहे, लेकिन कांग्रेसका प्रदर्शन बहुत ही निराशाजनक रहा और लोकसभा में कांग्रेसी सांसदों की संख्या घटकर 44 रह गई। 2017 में उन्हें कांग्रेसका अध्यक्ष मनोनीत किया गया। 2019 का लोकसभा चुनाव उन्होंने नरेंद्र मोदी के विरुद्ध बेहद आक्रामक ढंग से लड़ा किंतु कांग्रेस के खाते में सिर्फ निराशा और पराजय ही आ सकी। लोकसभा चुनाव की शर्मनाक पराजय के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेश के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया और पार्टी जनों के अत्यधिक अनुरोध के बावजूद वह पद पुन: स्वीकार नहीं किया जिस पर आज भी उनकी मां सोनिया गांधी कार्यवाहक अध्यक्ष के रूप में कार्यरत हैं। दिल्ली के प्रतिष्ठित समाचार पत्र ने प्रकाशित किया था कि सेंट स्टीफन कॉलेज दिल्ली में उनका प्रवेश अनुचित था क्योंकि उन्हें कॉलेज के स्पोर्ट्स कोटे से पिस्तौल के निशानेबाज के रूप में प्रवेश दिया गया था जबकि राहुल गांधी पिस्तौल चलाना नहीं जानते हैं । एक और पत्रिका न्यूज़ वीक ने अपनी एक अंक  खुलासा किया था कि श्री राहुल गांधी ने हार्वर्ड और कैंब्रिज में अपनी डिग्री कोर्स पूरे नहीं किए थे और उन्होंने कभी भी मॉनिटर ग्रुप में काम नहीं किया था जैसा कि कांग्रेस द्वारा दावा किया जा रहा था। ब्रिटेन के विदेश सचिव को अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी के एक गांव में गरीबी पर्यटन यात्रा के कारण उन्हें बहुत आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। नेशनल हेराल्ड भ्रष्टाचार मामले में राहुल गांधी भी एक आरोपित है और इस समय जमानत पर हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर अपमान जनक  आरोप लगाने के कारण भी देश की कई निचली अदालतों मे उनके विरुद्ध मुकड़में लंबित हैं जहां से उन्हें जमानत लेनी पड़ी है। मई 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में उन्हें भाजपा की स्मृति ईरानी ने उन्हें उनके परंपरागत संसदीय क्षेत्र अमेठी से हरा दिया।  वह केरल के वायनाड संसदीय क्षेत्र से भी प्रत्याशी थे जहां वे मुस्लिम लीग की सहायता से जीतने में सफल रहे।  इसलिए वर्तमान में वह केरल की वायनाड लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। राहुल गांधी अच्छे वक्ता नहीं है और समझ से परे ऊलजलूल  बयानों के कारण अक्सर विवादों में घिरे रहते हैं और कई बार लोगों के मनोरंजन का साधन भी बन जाते हैं। उनके मनोरंजक भाषणों के वीडियो संकलन यूट्यूब पर बहुत बड़ी संख्या में देखे जाते हैं।   वे नेहरू गांधी परिवार के बारिश है इसलिए प्रधानमंत्री पद के दावेदार भी हैं और सोनिया गांधी पुत्र मोह में कांग्रेस पार्टी को ताक पर रखकर यह काम करने के लिए मजबूर है। पिछले लोकसभा चुनाव में आशा के अनुरूप परिणाम ना आने पर श्रीमती सोनिया गांधी ने अपनी बेटी प्रियंका वाड्रा को भी राजनीति में उतार दिया है ताकि राहुल की कुछ सहायता हो सके और शायद कांग्रेस का उद्धार भी हो सके।


हाल ही में आयोजित केरल साहित्य महोत्सव में अपने संबोधन में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा है कि राहुल गांधी पांचवी पीढ़ी के वंशवाद का प्रतीक है और स्वयं अपना मुकाम बनाने वाले कठोर परिश्रमी मोदी के सामने कहीं नहीं ठहरते। उन्होंने कहा कि केरल वासियों ने राहुल गांधी को लोकसभा भेजकर बहुत बड़ी गलती की है। उन्होंने कहा कि नरेंद्र मोदी की असली बढ़त है कि वह राहुल गांधी नहीं है। उन्होंने खुद का मुकाम हासिल किया है ।15 साल तक मुख्यमंत्री के रूप में एक राज्य को चलाया है, उसे आगे बढ़ाया है । उनके पास विशाल प्रशासनिक अनुभव है और वह कठिन परिश्रम करते हैं। सबसे बड़ी बात कि कभी यूरोप जाने के लिए या कहीं घूमने जाने के लिए छुट्टी भी नहीं लेते । कांग्रेस का यह काल मुगल वंश का आखिरी दौर है। उन्होंने केरल  वासियों को सचेत करते हुए कहा कि अगर उन्होंने 2024 में राहुल को दोबारा वायनाड से लोकसभा भेजा तो वह  भयंकर विनाशकारी होगा और मोदी की ही सहायता करेगा। जब तक राहुल राजनीति मे हैं, मोदी को कोई खतरा नहीं है ।

बामपंथ  की विचारधारा से प्रेरित रामचंद्र गुहा, भले ही कांग्रेस समर्थक न हों लेकिन नरेंद्र मोदी के घोर विरोधी है ।   इसलिए और वह नरेंद्र मोदी को खुश करने के लिए तो कोई बात नहीं कर सकते।  हमें उनकी  इस बात का विश्वास करना चाहिए और इसलिए यह फैसला आप स्वयं करिए कि कौन अधिक मेधावी है नरेंद्र मोदी या राहुल गांधी।
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मंगलवार, 21 जनवरी 2020

चुनाव : दिल्ली है दिल वालों की ...किसकी होगी ?


चुनाव : दिल्ली है दिल वालों की ...किसकी होगी ?

बेहद आश्चर्यजनक बात है कि दिल्ली में आपको कई ऐसे लोग मिलेंगे जो भाजपा समर्थक नहीं है, जिन्होंने पिछले चुनाव में  अरविंद केजरीवाल को बहुत उत्साह के साथ तन मन धन से समर्थन दिया था, अबकी बार वह तिराहे पर हैं और उनका कहना है कि ये जानते हुए भी कि  कांग्रेस  की स्थिति बहुत खराब है वे कांग्रेस का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन इस बार केजरीवाल का समर्थन करते हुए उन्हें शर्म आ रही है. क्यों ? ऐसा क्या किया केजरीवाल ने पिछले 5 साल में कि कुछ लोगो को उनके समर्थन में शर्म रही है? क्या होगा इन चुनावों में ? कौन जीतेगा?



२. केजरीवाल की राजनीति समझने से पहले केजरीवाल को शुरू से समझना पड़ेगा . केजरीवाल ने1989 आईंआईटी खड़कपुर से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में बीटेक करने के बाद टाटा स्टील कंपनी ज्वाइन की.  बिना देर लगाए उन्होंने अनुपस्थित के आधार पर छुट्टी ले ली ताकि वह सिविल सर्विसेज की परीक्षा में अच्छी तरह से ध्यान दे सकें. इस तरह की छुट्टी से  सैलरी तो नहीं मिलती लेकिन, नौकरी बची रहती है और उन्होंने सोचा कि अगर उनका सिविल सर्विसेज में सिलेक्शन  होता है तो ठीक वरना वापस आ जाएंगे . बीच-बीच में जब भी कभी समय मिलेगा तो आते रहेंगे  और वेतन लेते रहेंगे. यानी  उपलब्ध सुविधा का भरपूर लाभ.  इसके बाद उनका सिलेक्शन आईआरएस में हो गया और वह बाकायदा नौकरी भी करने लगे तो भी उन्होंने कई बार छुट्टियां ली . 1999 में उन्होंने एक परिवर्तन नामक गैर सरकारी संगठन बनाया और जिसका मुख्य फोकस था सूचना का अधिकार कानून . जब वह पूर्णकालिक आंदोलनकर्ता बन गए और उन्हें लगा कि ये कैरियर ज्यादा अच्छा है तब उन्होंने अपनी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया .  जब उनके विरुद्ध शिकायतें आयीं, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने जांच करवाई तो  पता चला  कि अवैतनिक छुट्टी के बाद भी उन्होंने कई महीने की सैलरी ली है.सभी तरह की छुट्टियां एडजस्ट करने के बाद भी लगभग दस लाख रुपए  की धनराशि उनसे रिकवरी के लिए निकली.मीडिया में सुर्खियां बनने के बाद केजरीवाल ने चेक द्वारा ये धनराशि  सरकार को वापस की. ये है उनकी ईमानदारी के एक मिशाल. दिल्ली मैं जनलोकपाल के समर्थन में अन्ना हजारे का आंदोलन अप्रैल 2011 से शुरू हुआ तो उसमें केजरीवाल ने अपने सहयोगियों के साथ जोर शोर से भाग लिया. पूरे आंदोलन को सोशल मीडिया और दूसरे माध्यमों से जन जन तक पहुंचाने का प्रयास किया गया और  इसका नाम दिया गया इंडिया अगेंस्ट करप्शन . ये आंदोलन बहुत अधिक प्रभावी हुआ और ऐसा लगा कि ये आंदोलनकारी  अब देश से भ्रष्टाचार मिटा कर रहेगें  .  भ्रष्टाचार रहित भारत के सपने पर सवार  लोग लगभग हर शहर में  इंडिया अगेंस्ट करप्शन से जुड़ने लगे. अन्ना आंदोलन का इतना प्रभाव हुआ  कि तत्कालीन काग्रेस की मनमोहन सरकार द्वारा अन्ना हजारे को तिहाड़ जेल भेजने और जेल से छोड़ने तक पूरे देश में आंदोलन का एक बड़ा प्लेटफार्म बन कर तैयार हो गया था .मौके का भरपूर फायदा उठाने में उस्ताद अरविंद केजरीवाल  अन्ना हजारे के प्रथम शिष्य के रूप में स्थापित हो गए.  आंदोलन की सफलता की फसल काटने के उद्देश्य से उन्होंने प्रस्ताव रखा कि  इस जन आंदोलन को राजनैतिक पार्टी में बदल दिया जाए.  अन्ना हजारे सहित संतोष हेगड़े और किरण बेदी आदि इसके खिलाफ थे किंतु अरविंद केजरीवाल  की अति महत्वाकांक्षा भविष्य के ताने-बाने बुन रही थी और उन्होंने अन्ना हजारे की इच्छा के विपरीत राजनीतिक पार्टी बनाने का ऐलान कर दिया.   पार्टी बनाने में उन्हें शांति भूषण और प्रशांत भूषण का सहयोग मिला और उसके बाद अन्य प्रमुख लोग इससे जुड़ते चले गए जिनमें कुमार विश्वास, आशुतोष कुमार,  योगेंद्र यादव आदि प्रमुख थे.





३. आम आदमी पार्टी के रूप में एक राजनीतिक दल बनाने के बाद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा के चुनाव की तैयारी शुरू कर दी और  उन्होंने वे सभी मुद्दे ढूंढ निकाले जिनसे बहुत जल्दी सफलता हासिल की जा सकती थी. शीला दीक्षित की सरकार कौमन वेल्थ खेलों में हुए घोटालों के कारण चर्चा में थी.  इसके अलावा 15 साल से सरकार सत्ता में थी तो जाहिर सी बात  है उसके विरुद्ध भी जनता की बहुत सारी शिकायतें भी  थी,  जिसमें  बिजली और पानी की बढ़ी हुई कीमतें भी शामिल थीं. केजरीवाल ने दोनों मुद्दे हाथों हाथ लिए और बिजली बिल के नाम पर कंपनी के मालिक उद्योगपतियों  के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया और उस मोर्चे में सीधे मोदी को भी लपेट लिया.  हर अच्छे बुरे काम को अपने प्रचार के लिए स्तेमाल करना कोई केजरीवाल से सीखे . हर छोटी बड़ी नाकामी के लिए  वे मोदी को लपेट लेते है. उन्होंने बिजली कंपनियों के विरुद्ध कैग जांच, स्वतंत्र ऑडिट आदि को लेकर बहुत बखेड़ा खड़ा किया  हालांकि इसमें कोई भी तथ्य नहीं निकला लेकिन वे सुर्ख़ियों में बने रहे. .  केजरीवाल हाथ मे प्लास  पेंचकस लिए एक खंबे से दूसरे खंबे पर चढ़ कर कनेक्शन जोड़ने का नाटक करते  रहे.  बात बात में केजरीवाल धरने पर बैठने लगे . संभवत जनता ने उनके इस व्यवहार को जनता के हित में किए जाने वाले कार्य के रूप में लिया.



४. आम आदमी पार्टी ने 2013 का चुनाव दिल्ली में पहली बार लड़ा. कहा जाता है कि इन चुनावों में कांग्रेस  को अपनी हार अवश्यंभावी लग रही थी और इसलिए भाजपा को रोकने के लिए उसने ढके छुपे आम आदमी पार्टी को काफी सहायता दी. उनका मत था कि यदि दिल्ली का चुनाव त्रिकोणीय संघर्ष में बदल जाएगा तो  तो कांग्रेस  एक बार फिर सरकार बना सकती है. कांग्रेस का यह दांव उल्टा पड़ गया और इस त्रिकोणीय संघर्ष में त्रिशंकु विधानसभा के नतीजे आए और सबसे अधिक नुकसान कांग्रेस का हुआ.  15 साल से दिल्ली की सत्ता पर काबिज कांग्रेस  की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित अपदस्थ हो गई. यद्यपि भारतीय जनता पार्टी सबसे बडे दल के रूप में उभरी फिर भी 70 सदस्यों की विधानसभा में 31 सीटें पाकर भी सरकार बनाने में नाकामयाब रही.  आप 28 सीटें पाकर दूसरे स्थान पर रही और कांग्रेस 8 सीटों के साथ तीसरे  स्थान पर चली गई. भारतीय जनता पार्टी ने पर्याप्त समर्थन के अभाव में सरकार बनाने से इंकार कर दिया क्योंकि उसका मानना था कि यदि आप और कांग्रेस की मिली जुली सरकार बनती है तो भविष्य में इसका फायदा भारतीय जनता पार्टी को होगा. कांग्रेस  के सहयोग से केजरीवाल मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन जैसा कि केजरीवाल के नजदीकी लोग बताते हैं कि वह काम कम करते हैं झगड़ा ज्यादा करते हैं, सरकार  नहीं चली . वामपंथ से प्रभावित केजरीवाल बेहद जुझारू प्रवृत्ति के हैं जो आंदोलन के चलते तो केंद्र सरकार से लड़ते रहे और उसके बाद अपने सहयोगियों  से लड़ने लगे. यह सरकार बहुत ज्यादा दिन तक नहीं चल सकी और केजरीवाल ने ४९ दिन में ही इस्तीफा दे दिया . नतीजतन दिल्ली में राष्ट्रपति शासन लागू हो गया. केजरीवाल यही नहीं रुके , उन्होंने वाराणसी से मोदी के विरुद्ध लोकसभा का चुनाव भी लड़ा जहां उन्हें भारी शिकस्त का सामना करना पड़ा लेकिन फिर भी अपने आप को सुर्खियों में रखने में कामयाब हो गए . उन्होंने अपने विश्वसनीय कुमार विश्वास को भी अमेठी से चुनाव लड़ाया जहां से राहुल गांधी के खिलाफ भाजपा की स्मृति ईरानी चुनाव लड़ रही थी. राहुल गांधी अपनी सीट हारते हारते बचे . स्मृति ईरानी ने उनको बहुत ही निकट की टक्कर दी. कुमार विश्वास कुछ भी कर पाने में सफल नहीं रहे . लेकिन यदि वह चुनाव में नहीं होते तो शायद राहुल गांधी का जीतना मुश्किल था.

५. 2014 में हुए लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व भारतीय जनता पार्टी ने बहुमत प्राप्त किया जो 30 साल बाद किसी पार्टी को सांसद  में बहुमत मिला था . भाजपा ने दिल्ली की सभी 7 सीटें जीती और उसे 46% से भी अधिक मत प्राप्त हुए. लोकसभा चुनाव के कुछ समय बाद ही दिल्ली विधानसभा के मध्यावधि चुनाव हुए . इस बीच केजरीवाल ने बेहद नाटकीय अंदाज में अपना प्रचार जारी रखा जिसके केंद्र में मध्यम और निम्न आय वर्ग के लोग थे.  लोकसभा चुनाव की सौ प्रतिशत सफलता के बाद भारतीय जनता पार्टी को इन चुनावों से बेहद आशा थी  किंतु इन चुनावों में बहुत बड़ा उलटफेर हुआ . आम आदमी पार्टी को जबरदस्त सफलता मिली . उस ने 70 में से 67 सीटें जीतकर एक नया कीर्तिमान बनाया. भारतीय जनता पार्टी को केवल 3 सीटें प्राप्त हो सकी. कांग्रेस का सफाया हो गया.  जिस कांग्रेस ने भाजपा को रोकने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से आम आदमी पार्टी की हरसंभव  सहायता की थी वह उसके लिए इतनी घातक हुई कि कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया. नाटकीय  अंदाज के माहिर,  केजरीवाल ने बेहद चालाकी से अपने आप को दिल्ली के सर्वाधिक लोकप्रिय नेता के रूप में स्थापित कर लिया.

६. चुनाव में मिली अपार सफलता से केजरीवाल के हौसले बुलंदियों छूने लगे और उन्होंने अपना ध्यान काम पर लगाने की बजाय केंद्र सरकार और उपराज्यपाल के साथ झगड़ा करने में ज्यादा लगाया. वास्तव में ऐसा करने के पीछे उनका उद्देश्य हमेशा अपने आप को सुर्खियों में रखना और अपने सहयोगियों से  जिनमें कई लोकप्रियता में उनके समकक्ष थे, से अपने आप को बेहतर साबित करना था. उन्होंने अपने ऐसे सहयोगियों को जिनसे भविष्य में उनको खतरा हो सकता था एक-एक करके पार्टी से बेदखल करना शुरू कर दिया. शांति भूषण , प्रशांत भूषण , संतोष हेगड़े,  कुमार विश्वास , आशुतोष कुमार , शाजिया इल्मी , कपिल मिश्रा आदि कुछेक नाम उल्लेखनीय है .




७. अगर अरविंद केजरीवाल का पिछले 5 साल का रिकॉर्ड देखा जाए तो जनता के हित में जो काम वह गिनाते है वह चालाकी भरे  शातिराना अंदाज ज्यादा दिखाई पड़ते हैं . जैसे 200 यूनिट तक मुफ्त बिजली यानी अगर उपयोग 200 यूनिट के अंदर है तब तो बिजली का बिल माफ होगा अगर 200 यूनिट से एक यूनिट भी अधिक हो जाएगी तो उस बिल का पूरा भुगतान करना पड़ेगा. इसी तरह कुछ लीटर तक मुफ्त पानी . अभी हाल ही में महिलाओं के लिए मुफ्त बस यात्रा शुरू की है. इसके अलावा कुछ और योजनाएं हैं जिनमें बजट खर्च के हिसाब से देखा जाए  तो कुछ काम किया हुआ लगता है लेकिन धरातल पर परिस्थितियां अलग हैं, इनमें से मोहल्ला क्लीनिक और शिक्षा के क्षेत्र में किए गए कुछ कार्य भी शामिल है.

८. अपनी हार भांपते हुए, आप ने 2019 के लोकसभा चुनावों के लिए कांग्रेस से गठबंधन करने की हर संभव कोशिश की लेकिन बात नहीं बनी.  विधान सभा चुनाव के विपरीत 2019 में हुए लोकसभा के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने फिर अपनी सफलता दोहराते हुए अपने पिछले रिकॉर्ड में अत्यधिक सुधार करते हुए न केवल सभी 7 सीटें जीती वरन अपना मत प्रतिशत 46% से बढ़ाकर 56%  पर पहुंचा दिया. यह एक बड़ा कीर्तिमान है और अगर लोकसभा के चुनाव को एक संकेत माना जाए तो निश्चित रूप से भारतीय जनता पार्टी की सरकार बननी चाहिए किंतु चुनाव का विशेषण और जमीनी हकीकत कुछ अलग है जो CAA प्रदर्शनों के बाद लगातार बदल रही है. एक और तकनीकी बात यह है,कि  लोकसभा का क्षेत्र काफी बड़ा होता है और एक लोकसभा के चुनाव में औसतन 10 विधानसभा की सीटें आती हैं इसलिए चुनाव क्षेत्र छोटा हो जाता है और यहां पर विभिन्न तरह के समीकरण काम कर जाते हैं और उससे थोड़े से मतों के अंतर से हार जीत हो जाती है. इस विधानसभा चुनाव में पिछले लोकसभा के चुनाव की तरह ही कांग्रेस  की स्थिति अत्यधिक खराब है .कांग्रेस  की खराब स्थिति भारतीय जनता पार्टी के लिए खतरे की घंटी है. ऐसे मतदाता खासतौर से मुस्लिम मतदाता जो कांग्रेस को वोट करते थे अब बदले हुए माहौल में एक विशेष रणनीति के तहत आप पार्टी को वोट करेंगे. देश के अन्य हिस्सों में भी देखा गया है कि सामान्य तौर से मुस्लिम मतदाता उसी पार्टी को वोट करते हैं जो भारतीय जनता पार्टी को हराने की क्षमता रखता हो और क्योंकि वर्तमान समय में कांग्रेसका कोई अस्तित्व नहीं है इसलिए कोई अन्य विकल्प न होने के कारण यह मत आम आदमी पार्टी के खाते में जाएंगे . इसलिए आम आदमी पार्टी का पलड़ा भारी हो सकता है . फिर भी मुकाबला बहुत दिलचस्प है क्योंकि आम आदमी पार्टी ने संशोधित नागरिक कानून के विरोध में जामिया से जेएनयू तक दिल्ली की सड़कों पर तांडव मचाने में एक वर्ग विशेष की बहुत सहायता की और यही नहीं इनके कुछ विधायकों और कार्यकर्ताओं ने उत्पात मचाने की शुरुआत भी की. वास्तव में जामिया से बवाल की शुरूआत  आप के नेता ने ही की बताई जाती है . आज भी शाहीन बाग में जो प्रदर्शनकारी धरने पर बैठे हैं उन्हें केजरीवाल सरकार का प्रत्यक्ष  समर्थन प्राप्त है और उन्हें बहुत सारी सुविधाएं उपलब्ध कराई जा रही है. आम आदमी पार्टी के विधायक अमानुल्लाह और कई कार्यकर्ता प्रदर्शनकारियों के साथ भड़काऊ बयान देते हुए प्रदर्शनकारियों को उकसाते हुए देखे गए हैं. केजरीवाल ने स्वयं CAA  के विरुद्ध युवाओं को भ्रमित करने का प्रयास किया.  मुस्लिम वर्ग में भय का माहौल पैदा करने मे लगे रहे. दिल्ली के उपमुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया ने भी आग में घी डालने का हर संभव प्रयास किया उन्होंने आरोप लगाया की दिल्ली की पुलिस ने स्वयं दिल्ली के सार्वजनिक परिवहन की बसों को आग लगाई जो कि निहायत गैर जिम्मेदाराना और गलत है. उनका ट्वीट अभी तक उनके अकाउंट में पड़ा है. वीडियो फुटेज और दूसरे प्रत्यक्षदर्शियों से पता चला की पुलिस ने इन बसों में पानी डालकर आग बुझाने का प्रयास किया. अरविंद केजरीवाल की बहुत ही नजदीकी और एनडीटीवी की पत्रकार ने इस बात का खुलासा किया है कि कैसे अरविंद केजरीवाल ने संशोधित नागरिक कानून की आड़ में हिंदू मुस्लिम भाईचारे को ठेस पहुंचाई. दोनों समुदायों का ध्रुवीकरण किया जाना एक सोची-समझी रणनीति है और इसका मकसद अल्पसंख्यकों वोट हासिल करना है. स्वाभाविक है कि दिल्ली में इस समय मतदाता दो ग्रुपों में बंटे हुए हैं अगर मुस्लिम मतदाता आम आदमी पार्टी को वोट देंगे  तो इसकी प्रतिक्रिया भी होगी और बहुत संभव है कि हिंदू मतदाता भी संगठित रूप से भाजपा को वोट करें और अगर ऐसा होता है तो आम आदमी पार्टी को जीतना  मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाएगा.

९. अब बात करते हैं केजरीवाल  द्वारा किए गए उन कामों की जिनकी वजह से है कुछ खुद्दार लोगों को शर्म आती है उन्हें समर्थन करने से
·       अरविंद केजरीवाल ने अपने संघर्ष के दिनों से लेकर दिल्ली के चुनाव जीतने के पहले तक अपने आपको बेहद सीधा साधा इंसान साबित करने के लिए एक बेहद साधारण किस्म का मफलर लपेट रखा था, अब  पता नहीं वह कहां चला गया.
·       खांसी अरविंद केजरीवाल की पहचान थी अब गायब हो गई क्या यह बनावटी थी या सरकारी खर्चे पर सब कुछ हो सकता है.
·       परिवारवाद के विरुद्ध बोलने वाले केजरीवाल का पूरा परिवार आज चुनाव प्रचार में लगा हुआ है.
·       साईकिल और ऑटो से विधानसभा पहुंचने वाले केजरीवाल आज मुख्यमंत्री के पद का पूरा मजा ले रहे हैं .
·       आम आदमी का चोंगा लगाएं मुख्यमंत्री बनने के पहले से ही वह चंदे के पैसे से बिजनेस क्लास में सफर करते पाए गए .
·       पहली बार मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देने के बाद भी मुख्यमंत्री को आवंटित बंगले को छोड़ने में आनाकानी करते रहे और कई महीने बाद छोड़ा .
·       हर ईमानदार और संघर्षशील साथियों  को चुन-चुन कर पार्टी से निकाल दिया उदहारण कुमार विश्वाश, आशुतोष, कपिल मिश्र, शाजिया इल्मी , योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण आदि
·       जेएनयू जाकर टुकड़े-टुकड़े गैंग के साथ अपनी आस्था व्यक्त की यानी देश से बढ़ कर स्वार्थ .
·       इनके  प्रधान सचिव पर सीबीआई का छापा पड़ा और कई आपत्तिजनक चीजें बरामद हुई
·       हाल ही में महिलाओं के लिए दिल्ली सरकार की बसों में मुफ्त यात्रा की सुविधा
·       संशोधित नागरिक कानून के प्रति मुस्लिमों में भय का माहौल पैदा किया और पार्टी के मंत्रियों अन्य वरिष्ठ नेताओं ने जामिया से लेकर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय तक हंगामा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
·       केजरीवाल पर आरोप है कि उन्होंने विधानसभा के टिकट बेचे . इसके पहले भी  वह कुमार विश्वास का टिकट काटकर  एक उद्योगपति को राज्यसभा भेज चुके हैं.
·        केजरीवाल की बहुत नजदीकी और एनडीटीवी के पत्रकार ने उनके बारे में बहुत गोपनीय बातें साझा की जिसे पता चलता है कि हिंदू मुस्लिम समुदाय में ध्रुवीकरण के लिए उन्होंने क्या-क्या नहीं किया यानी सामाजिक सद्भाव से कोई लेना देना नहीं. समाज का क्या ? भारत का विभाजन भी हो जाय तो क्या ? सत्ता चाहिए. 
·       एक फ्री लांस पत्रकार पुण्य प्रसून बाजपाई के साथ उनका एक वीडियो वायरल हुआ जिसे पता चला कि वह अपने साक्षात्कार कैसे मैनेज करते थे यानी इंटरव्यू भी नाटक.


  • उपराज्यपाल के साथ उन्होंने यहाँ तक  झगड़ा किया कि उनके कार्यालय में अनशन शुरू कर दिया . देश के इतिहास की शाय पहली घटना थी जब किसी मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडलीय सहयोगी राज्यपाल के कार्यालय में कब्जा करके धरने पर बैठे थे.

·       गणतंत्र दिवस से कुछ पहले जबकि विदेशी मेहमान आ रहे थे, मुख्यमंत्री के रूप में केजरीवाल धरने पर बैठे थे. यानी सविंधान की परवाह नहीं .
·       भारत में हो रहे हर किसी कार्य की बुराई करते हैं लेकिन उनके पास भी उसका कोई समाधान नहीं है
·       मोदी की जिन चीजों की वह बुराई करते हैं उन्हीं की बड़ी शिद्दत से नकल करते हैं जैसे कि अपने मां बाप से आशीर्वाद लेने की फोटो वायरल करते हैं. कैमरा उनके पीछे घूमता है.
·       दिल्ली का प्रदूषण केजरीवाल के लिए एक वार्षिक समारोह है, जिसमें वपड़ोसी राज्यों को रेली जलाने और दूसरी चीजों के लिए दोषी ठहराते हैं और फिर दिल्ली के करदाताओं  के खर्चे पर लगभग सभी टीवी चैनलों पर बड़े-बड़े प्रचार देकर प्रदूषण पर किए जाने वाले उपायों के बारे में बताते हैं . अपनी छवि चमकाने का सरकारी प्रयास यानी हरड़ लगे न फिटकरी रंग चोखो हो जाय.
·       प्रदूषण से मुक्ति के लिए Odd and Even मुहिम चलाते हैं और करोड़ों रुपए खर्च करके टीवी चैनल पर लंबे-लंबे प्रचार करके अपनी छवि चमकाते हैं इतने रुपयों से तो पूरी दिल्ली पर हेलिकप्टर से पानी का छिडकाव किया जा साकता था.
·       वेतन न मिलने से गुस्साए सफाई कर्मियों ने दिल्ली को बनाया कूड़ाघर. कूड़े का अम्बार लगा.

·       लगातार कहते रहते है कि मोदी काम नहीं करने देते तो अभी मोदी को कमसे कम २०२४ तक तो रहना है . कैसे करेंगे काम?
·       सादगी का ढोंग रचने वाले डिनर में मंगाते है बारह हजार प्रति प्लेट का खाना .
·       लालू से गले मिले पटना में और किया साथ साथ कम करने का वादा

·       भ्रष्टाचार के तमाम मामले सामने आये और जन लोकपाल के मुद्दे पर नेता बने केजरीवाल अपनी सरकार में भी लोकपाल नियुक्त नहीं कर पाए .
·       पार्टी के भ्रष्टाचार की जाँच के लिए एडमिरल रामदास को आन्तरिक लोकपाल बनाया गया था पता नहीं वह अब कहाँ हैं?
·       दिल्ली के करदाताओं का पैसा पूरे हिंदुस्तान में राजनैतिक उद्देश्य साधने में  बांट रहे हैं.
·       ट्रासपोर्ट मिनिस्टर को भ्रष्टाचार में स्तीफा देना पड़ा – ४५० करोड़ रुपये का नम्बर प्लेट घोटाला
·       कानून मंत्री तोमर की सभी डिग्री फर्जी पाई गयी और स्तीफा देना पड़ा.
·       मोहल्ला क्लिनिक एक अच्छा विचार लेकिन घोटालों की बुनियाद पर चल रहा है अत्यधिक किराये के मकानों से लेकर भ्रष्टाचार
·       २१ विधायक लाभ के पद पर बैठाये गए जिन्हेबाद में स्तीफा देना पड़ा . यानी रेवड़ी बाँटने में माहिर.
·       सेना के लिए अपमान सूचक शब्दावली
·       पुलवामा और एयर स्ट्राइक पर सबूत मांगे यानी राष्ट्रीय सुरक्षा से मतलब नहीं , देश के स्वाभिमान से कोइ लेनादेना नहीं .
·       केजरीवाल का वादा - काम कम, लड़ाई ज्यादा
·       अरुण जेटली सहित कई भाजपा और कांग्रेस के नेताओं पर केजरीवाल ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाये, बाद में कोर्ट में लिखित माफी मांगी
·       जनता की सहानभूति  अर्जित करने के लिए रोड शो में अपनी पार्टी के आदमी से  खुद को थप्पड़ मरवाया.


·       ईमानदारी का खोखला दावा फर्जी कंपनियों से भी चंदा लिया
·       राशन घोटाले सहित कई घोटालों में में आम आदमी पार्टी  का नाम आया
·       सगे संबंधियों को सरकारी ठेका देने का आरोप
·       करदाताओं से इकट्ठा सरकारी धन की बरबादी टीवी पर प्रचार के लिए यानी मुफ्त का चंदन घिस मेरे नंदन
·       सेल कंपनियों से चंदा यानी सुचिता या पारदर्शिता की कोई अहमियत नहीं. इंडिया अगेंस्ट करप्शन क्या सिर्फ नाटक और जनता के साथ छल ?
·       आप वोटरों को दस बिन्दुओं का गारंटी कार्ड जारी कर रही हैं यानी मतदाताओं को संतुष्टि न होने पर वे गारंटी इनवोक करेंगे  हैं ?


ये भारत  का दुर्भाग्य है कि आजादी के ७२ साल बाद भी आज देश की राजधानी सहित ज्यादातर विधानसभा और लोकसभा  चुनावों का आज भी मुद्दा होता है भूख , गरीबी , भ्रष्टाचारमहंगाई , कानून और व्यबस्था , और दमन . आज भी देश संघर्ष कर रहा है. असली मुद्दों पर तो चुनाव आ ही नहीं पाए हैं ५०० -१०००  रुपये के फायदे के लिए लोगों के वोट प्रभावित हो जाते हैं, और इसका नतीजा होता है बेहद चालबाज, भ्रष्ट और राष्ट्र हित में काम न करने वाले लोग  चुनाव  जीत कर  सरकार   बना लेते हैं. त्वरित लाभ के लिए बड़े विकास के प्रोजेक्ट आ ही नहीं पाते . भाजपा और आम आदमी पार्टी में किसकी सरकार बनती है यह तो निश्चित तौर पर आज नहीं कहा जा सकता लेकिन एक बात बिल्कुल संदेह से परे है कि  कांग्रेस  की दुर्गति होनी एकदम से तय है इसमें किसी तरह का कोई भी संदेह कांग्रेस पार्टी को भी नहीं है. यही बात भाजपा केलिए खतरे की घंटी हैं. अगर कांग्रेस का प्रदर्शन इन चुनावों में अच्छा रहा  तो निसंदेह भाजपा अपना लोकसभा चुनाव का प्रदर्शन दोहराएगी. आज की तिथि में एक और फैक्टर काम कर रहा है वह है टीना (TINA) यानी  There Is No Alternate क्योंकि भाजपा और कांग्रेस ने मुख्यमंत्री के नाम घोषित नहीं किये हैं इसलिए जनता में यही सन्देश जा रहा है कि कोई विकल्प नहीं है. 
                                       

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