शनिवार, 11 सितंबर 2010

दाग हूँ मैं.....

छोड़ दो साथ अब मेरा एक बुझता चिराग हूँ मै,
नहीं भाता   किसी को वह बदनुमा      दाग हूँ मै,
यही दुर्भाग्य है मेरा    न आया काम     कुछ तेरे,
सिवा दुःख दर्द  गम के    नहीं  था पास कुछ मेरे,
आज चाहो तो मुझे अंतिम मधुर मुस्कान दे दो,
दिया हो ना किसी को   या  वही  अपमान दे दो,
अँधेरी  वादियों में भटकता   विरह का राग हूँ मैं,
नहीं भाता    किसी को वह     बदनुमा दाग हूँ  मै !  ......१....

आत्मा पर बोझ बन कर, चाह कर भी न बोल पाया,
रिस रहे घाव अंतर में ,कभी उनसे नहीं   पर्दा उठाया,
आज   चाहे इस तपस्या  का  यहीं अवसान कर दो,
कहूँगा    कुछ     नहीं    चाहे   मुझे बदनाम कर दो,
नहीं      बुझती  कभी,       ऐसी सुलगती आग हूँ मैं,
नहीं  भाता   किसी    को  वह बदनुमा  दाग हूँ मै !!   .....२....
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          - शिव प्रकाश मिश्र
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